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गुरु मंत्र दीक्षा रहस्य

गुरु का जीवन में बहुत ही अधिक महत्व है चाहे वो लोग सांसारिक हो चाहे सन्यासी गुरु सबको बनाना चाहिए । गुरु का महत्व इसी बात से लगाया जा सकता है कि जितने भी अवतार हुए भगवान के उन्होंने भी गुरु धारण किया है गुरु के बिना जीवन उसी प्रकार है जैसे पानी बिना घड़ा । गुरु की रचना क्यों प्रभु ने की इसके पीछे भी बड़ा कारण है ।सभी इंसान के कर्म इतने अच्छे नही है जो प्रभु प्रत्यक्ष सबके साथ रहे और उनका मार्गदर्शन करें ।यही देखकर प्रभु से गुरु के रूप में अपने आप को प्रकट किया इसलिए गुरु और प्रभु में कोई भेद नही किया जाता । गुरु के रूप में भगवान खुद आपके पल पल साथ होता है ।जिससे जब चाहो अपने दिल का हाल कह सकते हो और उसका उचित उत्तर भी मिलता है लेकिन आप डायरेक्ट भगवान से प्रसन करो तो सम्भव नही है कि आपको तुरंत उत्तर मिले इसी कारण भगवान गुरु रूप में पृथ्वी पर विराजमान है । जो गुरु का सच्चा सेवक है उसे तो किसी बात का डर होना ही नही चाहिए । सांसारिक सुख दुःख तो आते रहते है आपने देखा होगा बहुत से साधक भयंकर बीमारी से घिर जाते है ऐसी हालत हो जाती है चला भी नही जाता आप सोचते है कुछ समय का मेहमान है लेकिन आप कुछ दिन आप उसको देखते है लगता है उसे कुछ हुआ ही ना हो ये सब पाप करमो का नाश होता है । जब तक आपको कर्मो का फल नही मिल जाता तब मोक्ष को प्राप्त नही हो सकते । ये हुआ गुरु का जीवन में महत्व अब बात करते है गुरु दीक्षा की हम जब भी किसी को गुरु बनाते है तो वो अपने अपने पंथ सम्प्रदाय अनुसार मन्त्र दीक्षा देता है । वो मन्त्र कोई साधरण मन्त्र नही होता उस मन्त्र में पूरी गुरु परम्परा के सभी सिद्ध महात्मो की शक्ति समाई रहती है । ये मन्त्र किसी को भी बताया नही जाता इसको बड़े गुप्त तरीके से गुरु अपने शिष्य के कान में फुकता है ताकि अपने चारों और विद्यमान अदृश्य शक्तियां भी उसे सुन ना पाए । ये मन्त्र हमे गुरु से अदृश्य रूप से जोडे रखता है ।गुरु मंत्र का जाप कभी भी वाचिक (बोलकर) उपांशु( जिस जप में बहुत धीमें होठ और जिव्हा हिले) नही करना चाहिए इसका जप मानसिक होता है । गृहस्थ लोगो के लिए गुरु मंत्र जप ही गुरु सेवा होती है ।गुरु दीक्षा में आपका नामकरण भी होता है जिसमे आपको 1 नया नाम दिया जाता है इसका भी 1 रहस्य है जो सभी नही जानते किसी से पूछो आपके गुरु ने आपको ये नाम क्यों दिया तो ज्यादा से ज्यादा यही कह पाता है कि हमारी परम्परा में सभी को मिलता है जैसे नाथ पंथ के साधु नाम के पीछे नाथ लगाते है । लेकिन दूसरा नाम इसलिए देते है क्योंकि आपके कर्म आपके नाम से जुड़े रहते है ।आपका नामकरण होते ही आपको नया जन्म शुरू हो जाता है पीछे के सभी कर्म आपसे कट जाते है ।इसी कारण गुरु धारण किये हुआ साधक साधना को 1 बार में ही सिद्ध कर लेता है बाकी लोग उसी साधना को 10 बार करने पर भी सिद्ध नही कर पाते जबकि साधना विधि आदि सबकुछ सही होता है ।क्योकि बिना गुरु वाला जब साधना में मन्त्र जप करता है तो उस जप का फल आपके पाप कर्म ले लेते जब आपके पाप कर्म नष्ट हो जाएंगे तब आप साधना सिद्ध करने लग जाओगे । यही कारण है पहले गुरु अपने शिष्य को गुरु मंत्र के रूप में गायत्री मंत्र देता था जो पाप नाशक है गायत्री मंत्र का जप करने से पापो का नाश होता है । ये एक वैदिक मन्त्र भी है और कीलित भी इसलिए उसको देना बंद कर दिया । हां इसकी साधना कर सकते है उत्कीलन करके जो बहुत ही फलदायी होती है । अब जैसा की कलयुग है और कलयुग में शाबर मंत्र फलदायी है और कीलित भी नही है तो गुरु अपने शिष्य को गुरु मंत्र के रूप में शाबर मंत्र देने लग गए जिससे मन्त्र जप का प्रभाव जल्द से जल्द हो सके । नाथ सम्प्रदाय में तो शाबर मंत्र ही देते है । अगर आप कभी किसी कार्य में सफल नही तो एक बार अच्छे ज्योतिष को दिखाकर नाम चेंज करे आपको लाभ हो सकता है । तो ये है गुरु महत्व , गुरु मंत्र और नामकरण का रहस्य । अगर आपको ये जानकारी अच्छी लगी हो तो शेयर करके बाकि लोगो तक भी पहुचाये ।

         

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