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🕉अपने को ‘शरीर’ नहीं, ‘आत्मा’ मानिए🕉

आप अपने को आत्मा माना कीजिए। ‘मैं’ या ‘हम’, शब्द का अर्थ ‘आत्मा’ है, यह बात अन्तःकरण में बहुत गहराई तक उतार लीजिए, उसे भली प्रकार हृदयंगम कर लीजिए। आपके मस्तिष्क में जो विचार उठते हैं, आपके मन में जो विश्वास जमे हुए हैं उनका सावधानी से निरीक्षण कीजिए और देखिए कि वे “आत्मा” जैसे महान तत्व के गौरव के अनुरूप हैं या नहीं? आप जो काम करते हैं या करना चाहते हैं, विचार कीजिए कि वे परमात्मा के राजकुमार के करने योग्य हैं, उचित हैं तब तो उन्हें प्रसन्नता-पूर्वक ग्रहण करते रहिए। यदि आपका अन्तःकरण कहे कि यह विचार और कार्य तुच्छ हैं, निष्कृष्ट हैं ओछे हैं, आत्म सम्मान के विरुद्ध हैं तो उन्हें साहसपूर्वक परित्याग कर दीजिए, दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर दूर फेंक दीजिए। जिस विचार या कार्य को करने से आपको भय, झिझक, लज्जा, अधर्म, असन्तोष पश्चात्ताप का अनुभव होता हो उसे एक क्षण के लिए भी मत अपनाइये, भले ही उसके द्वारा साँसारिक बड़े से बड़ा लाभ होने वाला हो। जिस विचार या कार्य के करने से आपको प्रसन्नता, आनन्द, उल्लास, सन्तोष, गर्व, महत्व, सम्मान उन्नति, पुण्य का अनुभव होता है। उसे अपनाने में एक क्षण के लिए भी विलम्ब मत कीजिए, भले ही उसके द्वारा कोई साँसारिक घाटा, हानि दिखाई देती हो, यही आत्म-ज्ञान का सीधा सा मार्ग है।

 *।‌। हरि ओम तत्सत्।।*

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