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👉 आत्मचिंतन के क्षण

ये शिला देख रहे हैं आप ये वही शिला है जो आप मंदिरों में पाते हैं, जिसके समक्ष आप शीश झुकाते हैं, हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं, विनती करते हैं। अब सोचिये ये शिला बनती किससे है, पाषाण के एक खण्ड से, बिल्कुल साधारण सा पाषाण का खण्ड। यदि यही पाषाण का खण्ड आपको कहीं और मिल जाए तो आप क्या करोगे? ठोकर मार दोगे?? वो पाषाण आपके लिए अधिक महत्व नहीं रखता। अब यही मनुष्य के साथ भी होता है। अब या तो आप सम्मान पा सकते हैं या ठोकर खा सकते हैं, प्रयत्न आपका होगा। यदि आप अपने भीतर अच्छे विचार जगाएँ, शुभ कर्म करें, कठिनाइयों का, संकटों का सामना करें, सदाचार के मार्ग पर चलें तो आपको सम्मान अवश्य प्राप्त होगा अन्यथा विफलता का मार्ग तो आपके पास है ही।

कहते हैं यदि भाग्य साथ न हो, यदि भाग्य ही खराब हो, नदी का पानी भी खारा बन जाता है। ये बात अनुचित है। हर बात के लिए, हर समस्या के लिए, भाग्य दोषी नहीं हो सकता। कई बार हमारी असावधानी भी होती है। सावधान रहना अत्यंत आवश्यक है। हम आने वाले समय के लिए सावधान नहीं रहते और जब अचानक संकट हमारे समक्ष आ जाता है, तो स्वयं को संभाल नहीं पाते, क्योंकि हम सज्ज नहीं रहते? उस परिस्थिति में हम हार जाते हैं? सावधानी अत्यंत आवश्यक है, जब आप किसी अंजान राह पर निकलते हैं, तो सर्वप्रथम अपना एक पैर अपनी धरा पर जमाए रखना और दूसरे पैर से आने वाली भूमि का आकलन करना जरूरी है। ये समस्या है ऐसा मानना सावधानी का अंत है। आने वाले भविष्य का आकलन करना क्योंकि कुछ भी कर लो आप आने वाली परिस्थिति को तो देख नहीं सकते। यदि भविष्य में आपके संकट ही लिखा है तो आने वाले संकट का सामना करने के लिए आप सावधानी की ढाल का तो उपयोग कर सकते हैं।

विषपान करने के बाद भी महादेव देवों के देव महादेव कहलाते हैं? वहीं दूसरी ओर अमृतपान करने के पश्चात भी राहू और केतू असुर ही कहलाते हैं? क्यों?? इसका कारण है भाव। आपके कर्मों के पीछे जो आपका भाव है, अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये संसार किसी व्यक्ति को वहीं से तो जानता है, कर्मों के पीछे उसके भाव से। यदि कोई परोपकार करे और उसके पीछे भाव स्वार्थ का हो, तो वो परोपकारी मनुष्य अपने आप अपना महत्व खो देता है। यदि आपके कर्म के पीछे भाव उचित हो तो श्राप भी वरदान में परिवर्तित हो सकता है। यदि आपके कर्म का भाव अनुचित हो तो वरदान को श्राप का रूप लेने में अधिक समय नहीं लगता। ये सारा खेल है कर्मों का और भावों का। : जीवन की बेशकीमती स्नेह सौहार्द की दौलत सौपने वाले सभी सुहृदजनो का भाव- स्पंदित हृदय से हजारो हज़ार नतशीश साधुवाद सहित शुभमंगल

“” ईश्वर क्या है…..””

दोस्तो ,

एक बार किसी विद्वान से एक बूढ़ी औरत ने पूछा- क्या इश्वर सच में होता है???

उस विद्वान ने कहा- माई! आप क्या करती हो???

बूढ़ी औरत ने कहा- मैं तो दिन भर घर में अपना चरखा कातती हूँ और घर के बाकी काम करती हूं।

उस विद्वान ने कहा- माई! क्या ऐसा भी कभी हुआ है कि आपका चरखा बिना आपके चलाये चला हो, या कि बिना किसी के चलाये चला हो???

बूढ़ी औरत ने कहा- ऐसा कैसे हो सकता है कि वो बिना किसी के चलाये चल जाये???
ऐसा तो संभव ही नहीं है।

तब विद्वान ने कहा- माई! अगर आपका चरखा बिना किसी के चलाये नहीं चल सकता है,
तो फिर ये पूरी सृष्टि बिना किसी के चलाए कैसे चल सकती है???
और जो इस पूरी सृष्टि को चला रहा है,
वही इसका बनाने वाला भी है और उसे ही इश्वर कहते हैं।

इसी तरह एक व्यक्ति ने उसी विद्वान से पूछा- आदमी मजबूर है या सक्षम ????

विद्वान ने कहा- अपना एक पैर उठाओ।

उस व्यक्ति ने उठा दिया।

फिर उस विद्वान ने कहा- अब अपना दूसरा पैर भी उठाओ।

उस व्यक्ति ने कहा- ऐसा कैसे हो सकता है???
मैं एक साथ दोनों पैर कैसे उठा सकता हूँ???

तब उस विद्वान ने कहा- इंसान ऐसा ही है।
ना पूरी तरह से मजबूर और ना ही पूरी तरह से सक्षम।
उसे इश्वर ने एक हद तक सक्षम बनाया है,
और उसे पूरी तरह से छूट भी नहीं है।
उसको इश्वर ने सही और गलत को समझने की शक्ति दी है।
और ये अब उस पर निर्भर करता है,
कि वो सही और गलत को समझकर ही अपने कर्म को करे ।

अंत मे दोस्तों….👇🏻

ज़िन्दगी एक यात्रा है….रो कर जीने से बहुत लम्बी लगेगी और हंस कर बिताने पर कब पूरी हो जाएगी, पता भी नहीं चलेगा.


: गुरु-दक्षिणा

🙏🏻🚩🌹 👁❗👁 🌹🚩🙏🏻

एक बार एक शिष्य ने विनम्रतापूर्वक अपने गुरु जी से पूछा- ‘गुरु जी,कुछ लोग कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष है, कुछ अन्य कहते हैं कि जीवन एक खेल है और कुछ जीवन को एक उत्सव की संज्ञा देते हैं | इनमें कौन सही है?

गुरु जी ने तत्काल बड़े ही धैर्यपूर्वक उत्तर दिया।

पुत्र,जिन्हें गुरु नहीं मिला उनके लिए जीवन एक संघर्ष है; जिन्हें गुरु मिल गया उनका जीवन एक खेल है और जो लोग गुरु द्वारा बताये गए मार्ग पर चलने लगते हैं, मात्र वे ही जीवन को एक उत्सव का नाम देने का साहस जुटा पाते हैं|

यह उत्तर सुनने के बाद भी शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट न था| गुरुजी को इसका आभास हो गया |वे कहने लगे-‘लो, तुम्हें इसी सन्दर्भ में एक कहानी सुनाता हूँ|ध्यान से सुनोगे तो स्वयं ही अपने प्रश्न का उत्तर पा सकोगे |’
गुरूजी -: एक बार की बात है कि किसी गुरुकुल में तीन शिष्यों नें अपना अध्ययन सम्पूर्ण करने पर अपने गुरु जी से यह बताने के लिए विनती की कि उन्हें गुरुदाक्षिणा में, उनसे क्या चाहिए |गुरु जी पहले तो मंद-मंद मुस्कराये और फिर बड़े स्नेहपूर्वक कहने लगे-‘मुझे तुमसे गुरुदक्षिणा में एक थैला भर के सूखी पत्तियां चाहिए, ला सकोगे?’ वे तीनों मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए क्योंकि उन्हें लगा कि वे बड़ी आसानी से अपने गुरु जी की इच्छा पूरी कर सकेंगे |सूखी पत्तियाँ तो जंगल में सर्वत्र बिखरी ही रहती हैं| वे उत्साहपूर्वक एक ही स्वर में बोले-‘जी गुरु जी, जैसी आपकी आज्ञा |’

अब वे तीनों शिष्य चलते-चलते एक समीपस्थ जंगल में पहुँच चुके थे |लेकिन यह देखकर कि वहाँ पर तो सूखी पत्तियाँ केवल एक मुट्ठी भर ही थीं ,उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा | वे सोच में पड़ गये कि आखिर जंगल से कौन सूखी पत्तियां उठा कर ले गया होगा? इतने में ही उन्हें दूर से आता हुआ कोई किसान दिखाई दिया |वे उसके पास पहुँच कर, उससे विनम्रतापूर्वक याचना करने लगे कि वह उन्हें केवल एक थैला भर सूखी पत्तियां दे दे |

अब उस किसान ने उनसे क्षमायाचना करते हुए, उन्हें यह बताया कि वह उनकी मदद नहीं कर सकता क्योंकि उसने सूखी पत्तियों का ईंधन के रूप में पहले ही उपयोग कर लिया था | अब, वे तीनों, पास में ही बसे एक गाँव की ओर इस आशा से बढ़ने लगे थे कि हो सकता है वहाँ उस गाँव में उनकी कोई सहायता कर सके |
वहाँ पहुँच कर उन्होंने जब एक व्यापारी को देखा तो बड़ी उम्मीद से उससे एक थैला भर सूखी पत्तियां देने के लिए प्रार्थना करने लगे लेकिन उन्हें फिर से एकबार निराशा ही हाथ आई क्योंकि उस व्यापारी ने तो, पहले ही, कुछ पैसे कमाने के लिए सूखी पत्तियों के दोने बनाकर बेच दिए थे लेकिन उस व्यापारी ने उदारता दिखाते हुए उन्हें एक बूढी माँ का पता बताया जो सूखी पत्तियां एकत्रित किया करती थी|

पर भाग्य ने यहाँ पर भी उनका साथ नहीं दिया क्योंकि वह बूढी माँ तो उन पत्तियों को अलग-अलग करके कई प्रकार की ओषधियाँ बनाया करती थी |अब निराश होकर वे तीनों खाली हाथ ही गुरुकुल लौट गये |गुरु जी ने उन्हें देखते ही स्नेहपूर्वक पूछा- ‘पुत्रो,ले आये गुरु दक्षिणा ?
तीनों ने सर झुका लिया |गुरूजी द्वारा दोबारा पूछे जाने पर उनमें से एक शिष्य कहने लगा- ‘गुरुदेव,हम आपकी इच्छा पूरी नहीं कर पाये |हमने सोचा था कि सूखी पत्तियां तो जंगल में सर्वत्र बिखरी ही रहती होंगी लेकिन बड़े ही आश्चर्य की बात है कि लोग उनका भी कितनी तरह से उपयोग करते हैं

’गुरु जी फिर पहले ही की तरह मुस्कराते हुए प्रेमपूर्वक बोले- ‘निराश क्यों होते हो ?प्रसन्न हो जाओ और यही ज्ञान कि सूखी पत्तियां भी व्यर्थ नहीं हुआ करतीं बल्कि उनके भी अनेक उपयोग हुआ करते हैं; मुझे गुरुदक्षिणा के रूप में दे दो |’तीनों शिष्य गुरु जी को प्रणाम करके खुशी-खुशी अपने-अपने घर की ओर चले गये |
वह शिष्य जो गुरु जी की कहानी एकाग्रचित्त हो कर सुन रहा था,अचानक बड़े उत्साह से बोला-‘गुरु जी,अब मुझे अच्छी तरह से ज्ञात हो गया है कि आप क्या कहना चाहते हैं |आप का संकेत, वस्तुतः इसी ओर है न कि जब सर्वत्र सुलभ सूखी पत्तियां भी निरर्थक या बेकार नहीं होती हैं तो फिर हम कैसे, किसी भी वस्तु या व्यक्ति को छोटा और महत्त्वहीन मान कर उसका तिरस्कार कर सकते हैं? चींटी से लेकर हाथी तक और सुई से लेकर तलवार तक-सभी का अपना-अपना महत्त्व होता है |

गुरु जी भी तुरंत ही बोले-‘हाँ, पुत्र,मेरे कहने का भी यही तात्पर्य है कि हम जब भी किसी से मिलें तो उसे यथायोग्य मान देने का भरसक प्रयास करें ताकि आपस में स्नेह, सद्भावना,सहानुभूति एवं सहिष्णुता का विस्तार होता रहे और हमारा जीवन संघर्ष के बजाय उत्सव बन सके |

दूसरे,यदि जीवन को एक खेल ही माना जाए तो बेहतर यही होगा कि हम निर्विक्षेप,स्वस्थ एवं शांत प्रतियोगिता में ही भाग लें और अपने निष्पादन तथा निर्माण को ऊंचाई के शिखर पर ले जाने का अथक प्रयास करें |’अब शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट था |

अंततः यदि हम मन, वचन और कर्म- इन तीनों ही स्तरों पर इस कहानी का मूल्यांकन करें, तो भी यह कहानी खरी ही उतरेगी |सब के प्रति पूर्वाग्रह से मुक्त मन वाला व्यक्ति अपने वचनों से कभी भी किसी को आहत करने का दुःसाहस नहीं करता और उसकी यही ऊर्जा उसके पुरुषार्थ के मार्ग की समस्त बाधाओं को हर लेती है |वस्तुतः,हमारे जीवन का सबसे बड़ा ‘उत्सव’ पुरुषार्थ ही होता है-ऐसा विद्वानों का मत है |

🌹🙏🏻🚩 जय सियाराम 🚩🙏🏻🌹
🚩🙏🏻 जय श्री महाकाल 🙏🏻🚩
🌹🙏🏻 जय श्री पेड़ा हनुमान 🙏🏻🌹
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: वैर से कभी वैर नष्ट नहीं हो सकता। वह शान्ति से – क्षमा से – सहिष्णुता से – प्रेम के प्रयोग से ही नष्ट हो सकता है।परन्तु कुछ लोग ऐसे हैं, जो वैर को वैर से नष्ट करना चाहते हैं। ऐसे लोग आग को घासलेट से बुझाना चाहते हैं, पानी से नहीं। कैसी मूर्खता है?_
_इससे भी भयंकर बात यह है कि कुछ व्यक्ति स्वभाव से ही वैरी होते हैं। उन्हें तब तक भोजन ही हजम नहीं होता, जब तक वे पड़ौस में या अन्यत्र जा कर कोई-न-कोई झगड़ा नहीं कर आते। वे भ्रम से यह समझते हैं कि झगड़ने और उसमें जीतने से ही कुटुम्बी और अन्य लोगों में हमारी धाक जमेगी, प्रतिष्ठा बढ़ेगी।

Զเधॆ Զเधॆ🙏🙏
: 💐भक्ति 💐

 *भगवान की भक्ति सर्वोपरि है। यदि किसी में धन, रुप, तप, योग, बुद्धि आदि गुण विद्यमान हैं, परन्तु हृदय में ठाकुर जी के प्रति भक्ति नहीं तो ये सब गुण व्यर्थ हैं। क्योंकि ये गुण प्रभु को सन्तुष्ट करने में समर्थ नहीं हैं।*

   *दूसरी ओर पशु होते हुए भी गजेन्द्र में श्री हरि के प्रति भक्ति थी। अतः भगवान उससे सन्तुष्ट हो गये थे। भगवान तो भक्ति को देखते हैं, न शरीर को देखते हैं और न जाति अथवा वर्ण को देखते हैं।*

   *ब्राह्मण में सर्वगुण है लेकिन प्रभु के चरणों की भक्ति नहीं है तो वह श्रेष्ठ नहीं और दूसरी ओर एक चाण्डाल जो श्मशान में रहता है लेकिन सतत प्रभु के नाम का जप करता है, भजन करता है तो वह चाण्डाल भी उस अभक्त सर्वगुणोपेत ब्राह्मण से श्रेष्ठ है।*

जस्य श्री कृष्ण🙏🙏
: नतशीश नमन सहित शुभमंगल रात्रि।

दोस्तो ,

आखिर ये बड़ी सोच है क्या….?????

शायद कुछ लोग यहाँ पर ये सवाल कर सकते है की ये बड़ी सोच क्या बला है??? सच में..!

सबके दिमाग का आकार सामान होता है। लोग अपने शिक्षा, अनुभव, जरुरत और माहौल इन सबसे प्रेरित होकर सोचता है। तो फिर बड़े और छोटे की क्या सवाल ??? बेशक लोगो के सोच में अंतर होता है। उनके शिक्षा, अनुभव, माहौल और जरूरते भले ही उनकी सोच पर प्रभाव डालता है, लेकिन फिर भी इन्सान की सोच का आकार अलग अलग होता है। इंसान के सोचने के तरीके के हिसाब से हम लोगो को दो वर्गों में बाँट सकते है:-

पहले वर्ग में वो लोग आते है, जो भीड़ में शामिल रहते है। ज्यादातर वक़्त वो शिकायते करते रहते है। सफलता से ज्यादा असफलता के बारे में सोचते है। उन्हें कुछ भी नया काम करने से डर लगता है। वो लोग रास्ते में आने वाली बाधाओ और मुश्किलों के बारे में ही सोचते है और घबरा जाते है। कोई बड़ा सपना नही देखते। ना ही कोई बड़ा काम शुरू करते है। वो लोग जैसा है वैसे ही चलने देते है। परिवर्तन या सुधार का प्रयास नही करते। छोटी-छोटी बातो को दिल में ले लेते है। बस अपनी योजन कम उचाई तक, और जहा तक नुकसान ना हो, वही तक बनाते है। अपने आप को भीड़ में रखना चाहते है और “”लोग क्या कहेंगे”” वाली बाते बोलते है।

दुसरे वर्ग में वे लोग आते है, जो हर काम और चीजो के बारे में रचनात्मक तरीके से सोचते है। बड़े सपने रखते है, और उनपे विश्वास रखते है। और उन सपनो को पूरा करने के लिए आगे बढ़ चलते है। ऐसे लोग शिकायतों और असफलताओ के विचारो से दूर रहते है। और सिर्फ सफलता के बारे में सोचते है। अपने सपनो और रास्तो में आने वाली बाधाओ और मुश्किलों के बारे में नही सोचते। और उनको पार करते हुए आगे बढ़ जाते है। अपनी सोच को छोटी-छोटी बाते से ऊपर रखते है। ऐसे लोगो की सोच बड़ी होती है। जो भीड़ से अलग और ऊपर होता है।

आप इनमे से कौन से वर्ग में आते है??? अगर आप दुसरे वाले वर्ग में आते है, तो आप बेशक बड़ी सोच के जादू से परिचित होंगे। लेकिन अगर आप पहले वाले वर्ग में है तो बहुत हद तक आप अपनी जिंदगी को बदलना चाहते होंगे।


: 💥जय श्री हनुमान !!
जय श्री शनिदेवाजी !!


“मनुष्य जीवन में सुकर्म की सहायता से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। लोक और परलोक दोनों सुधारे जा सकते हैं। कर्म के आगे असम्भव को कहीं स्थान ही नहीं है। संसार के इतिहास पर दृष्टि दौड़ाइये, हजारों उदाहरण मिलेंगे। अतः मनुष्य को सदा सावधान होकर कर्म करना चाहिये। मृत्यु के बाद कोई भी अपने साथ नहीं जाता, केवल अपना किया हुआ शुभाशुभ कर्म ही साथ जाता है। स्वार्थमय जगत में जब तक धन है, तभी तक आत्मीय स्वजन अपने बनें हुये हैं, निर्धन व्यक्ति के तो स्वजन पराये हो जाते हैं। मित्रगण तथा कुटुम्बीजन तो केवल श्मशान तक साथ जाकर मृत-शरीर को आग पर फेंककर चले जाते हैं और यहाँ तक उनकी अन्तिम कर्त्तव्य की समाप्ति हो जाती है। साथ एकमात्र केवल कर्म ही जाता है। अतः बड़ी सावधानी से साथ जाने वाले शुभ कर्मों की मनुष्य को आराधना करनी चाहिये। शुभ कर्म ही मनुष्य का सच्चा मित्र है। इस मित्र की सहायता से वह साँसारिक तथा पारलौकिक सुख सम्पत्तियों को प्राप्त करता है। इसके विपरीत अशुभ कर्म से बढ़कर मनुष्य का कोई शत्रु नहीं जो कुविचारों और कुकर्मों में लिप्त रहेगा उसे सदा सर्वत्र अशाँति पीड़ा एवं दुर्गति ही मिलेगी और उसका फल भी न्यायधीश श्री शनिदेव जी देते हैं। उनकी सुकृपा सदा आप सभी पे बनी रहे।”


‘शुभ-शनिवार-वन्दनम’
🌻🌻🌹🌹🌻🌻
!! जय सियारामजी !!
: 🍁जय शनिदेवा !!
जय श्री हनुमान !!


“मानव को चित्त की शुद्धि के लिए निष्काम कर्मयोग की बड़ी आवश्यकता है। मन के पवित्र होने से काम, क्रोध आदि नष्ट हो जाते हैं। दृष्टि में अद्वैत भावना आ बसती है। इसके बाद जीवनमुक्ति का मार्ग मिल जाता है। जिस प्रकार गीता में योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र ने निष्काम कर्म के ऊपर जोर दिया है, वैसे ही उन्होंने चित्त-शुद्धि को भी अत्यावश्यक बतलाया है, क्योंकि इसके बिना तो ईश्वर-सान्निध्य प्राप्त होना असम्भव है। कोई जीव क्षण भर भी बिना कर्म किये नहीं रह सकता। अतः कर्म करने से पूर्व मनुष्य को यह निश्चय कर लेना चाहिए, कि क्या कर्त्तव्य है, और क्या अकर्त्तव्य है। उस निश्चय के लिये धार्मिक ग्रन्थों की सहायता लेनी पड़ती है, परन्तु अपनी आत्मा यदि पवित्र हो तो वह इसकी सबसे अच्छी और सच्ची निर्णायक हो सकती है। यह छिपा हुआ शब्द प्रत्येक काम करने के पहले हमें सावधान करता रहता है। चाहे हम उसे ध्यान से सुनें या न सुनें, उसकी आज्ञा मानें या न मानें। इससे भी बड़ी बात यह है, कि निःस्वार्थ स्वधर्मोवित्त कर्त्तव्य सारी बाधाओं और बन्धनों से परे है अन्यथा भगवान श्री शनिदेव जी का कोपभाजन तो बनना ही पड़ेगा। श्री शनि देव जी की कृपा आप सभी पे बनी रहे।”


‘शुभ-शनिवार-वन्दनम’
🌹🌹🌻🌻🌹🌹
!! जय सीतारामजी !!
: 🌀यदि तुम भक्तिमार्ग पर चलते हुए किन्हीं कष्टों में से गुजरते हो तो यह निश्चय कर जानो कि वह मार्ग परम सुख की ओर ले जा रहा है।।

🌀श्री सदगुरू का ध्यान करोगे तो मार्ग प्रकाशमय होगा और समय पर सहायता मिलेगी।।

🌀तुमने चाहे कितने पाप किये हों परन्तु जब भी ह्रदय से उनके लिए क्षमा-याचना करोगे और भविष्य में वे कुकर्म नहीं करोगे तो दातार अथवा प्रभु से अवश्य बक्शे जाओगे।।

🌀जो तुम्हारा स्वभाव तुम्हें अच्छा नहीं लगता, उसमें परिवर्तन लाने का दृढ़ निष्चय करके श्री चरणों में विनय करो।।

🌀कष्टों को देखकर घबराओ मत, कितने ही सुख तुम्हें मालिक से प्राप्य हैं, उन्हें स्मरण कर उनका आभार मनाओ। मालिक ने तुम्हें ज्योतिपूर्ण नेत्र दिए हैं, जिव्हा, कान, हाथ और पैर दिए हैं, अन्न, मेवा और सब्जियाँ आदि अनेक सुविधाएं प्रदान की हैं, उन्हें स्मरण कर उनका धन्यवाद करो।।
: प्रसन्नता कोई तुम्हें नहीं दे सकता, ना ही बाजार में किसी दुकान पर जाकर पैसे देकर आप खरीद सकते हैं। अगर पैसे से प्रसन्नता मिलती तो दुनिया के सारे अमीर खरीद लेते।
प्रसन्नता जीवन जीने के ढंग से आती है। जिंदगी भले ही खूबसूरत हो लेकिन जीने का अंदाज खूबसूरत ना हो तो जिंदगी को बदसूरत होते देर नहीं लगती। झोंपड़ी में भी कोई आदमी आनन्द से लबालब मिल सकता है और कोठियों में भी दुखी, अशांत, परेशान आदमी मिल जायेगा।
आज से ही सोचने का ढंग बदल लो जिंदगी उत्सव बन जायेगी। स्मरण रखना संसार जुड़ता है त्याग से और बिखरता है स्वार्थ से। त्याग के मार्ग पर चलोगे तो सबका अनुराग बिना माँगे ही मिलेगा और जीवन बाग़ बनता चला जायेगा।: जब व्यक्ति संसार में आता है तो खाली हाथ अर्थात कोई संपत्ति हाथ में नहीं लाता । जब संसार से जाता है तब भी सारी संपत्ति यहीं छोड़ जाता है , अपने साथ कोई रुपया पैसा या और कोई संपत्ति अपने साथ नहीं ले जाता।
परंतु जीवन काल में यदि कुछ चीजें मिलती हैं , तब व्यक्ति को बहुत खुशी होती है । जब उनमें से कोई वस्तु खो जाती है , नष्ट हो जाती है , या छिन जाती है तब वह ‘घबरा’ जाता है दुखी हो जाता है , उदास निराश हो जाता है, डिप्रेशन में चला जाता है । ऐसी हानि की घटनाएं सबके साथ होती हैं।
आपके साथ भी होती होंगी। ऐसी स्थिति में घबराए नहीं । चिंता ना करें । जब आप संसार में आए थे , उस दिन आप खाली हाथ थे। धीरे-धीरे लोगों ने आपको पढ़ना लिखना सिखाया , खाना पीना सिखाया , धन कमाना सिखाया और उनके सहयोग परिश्रम से तथा अपने पुरुषार्थ से आपने कुछ धन कमाया , तथा कुछ वस्तुएं प्राप्त की।
यदि उन वस्तुओं में से कोई वस्तु खो जाए, नष्ट हो जाए , या छिन जाए , तो दुखी ना हों। क्योंकि वह केवल आपकी कमाई हुई नहीं है। उसमें अन्य देश भर के भी करोड़ों व्यक्तियों का सहयोग है । इसलिए चिंता न करें ; और कमा लेंगे ।
आपको माता पिता एवं गुरुजनों ने बहुत सुंदर विद्याएँ सिखा रखी हैं। उन्हीं विद्याओं से आपने कुछ धन कमाया । उसमें से यदि कुछ खो गया , तो चिंता ना करें । उसी विद्या से आप और फिर से कमा लेंगे।
हां , अपनी वस्तुओं की सुरक्षा अवश्य रखें। पूरी ईमानदारी बुद्धिमत्ता तथा मेहनत से कमाएं और उनकी सुरक्षा करें । यदि धन संपत्ति आदि अधिक हो जाएं, तो अन्य योग्य पात्रों में बांट दें । तभी आपका जीवन सफल होगा –
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हम जब भी किसी दुविधा, संकट की घङी में होते है, तो केवल उस समय ईश्वर से ही प्रार्थना करते है । अपने मन के अशुभ और अनर्गल विचारों को निकाल फेंकने में प्रार्थनाओं से बढ़कर प्रभावशाली एवं सरल पद्धति दूसरी नहीं है। तन्मय होकर, बेसुध होकर, भाव में बहकर, दिल की संपूर्ण सच्चाई से एक बार तुम ईश्वर अपने इष्ट से प्रार्थना करो और देखो । ईश्वर सुने या न सुने यह पीछे की बात। किंतु हमारा दिल अवश्य ही हल्का हो जाता है , हमारा आत्म बल बढ जाता है । हमें यह भी मानना पड़ेगा कि ईश्वर भी हमारी पुकार उसी मात्रा में सुन लेता है जितना मात्रा में हम आकुल पुकार और सच्ची प्रार्थना करते है।,

जय श्री कृष्ण🙏🙏: आज का संदेश

     नीच और अधम श्रेणी के मनुष्य- कठिनाईयो के भय से किसी उत्तम कार्य को प्रारंभ ही नहीं करते। मध्यम श्रेणी के मनुष्य- कार्य को तो प्रारंभ करते हैं मगर विघ्नों को आते देख घबराकर बीच में ही छोड़ देते हैं। ये विघ्नों से लड़ने की सामर्थ्य नहीं रख पाते। 

     उत्तम श्रेणी के मनुष्य- विघ्न बाधाओं से बार-बार प्रताड़ित होने पर भी प्रारंभ किये हुए उत्तम कार्य को तब तक नहीं छोड़ते, जब तक कि वह पूर्ण न हो जाए। कार्य जितना श्रेष्ठ होगा बाधाएं भी उतनी ही बड़ी होंगी। आत्मबल जितना ऊँचा होगा तो फिर सारी समस्याए स्वतः उतनी ही नीची नज़र आने लगेंगी। 

     ध्यान रहे इस श्रृष्टि में श्रेष्ठ की प्राप्ति उसी को होगी जिसने सामना करना स्वीकार किया, मुकरना नहीं। अतः जीवन में उत्कर्ष के लिए संघर्ष जरुरी है।

सुरपति दास
इस्कॉन
: हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

“सबसे बड़ी हिम्मत का काम है– अपनी वास्तविकता समझना और अपने दोषों तथा दुर्बलताओं को स्पष्ट रूप से स्वीकार कर लेना ।” इस स्वीकृति के बाद लगेगा कि जिसे दुर्बलताओं से छुड़ाने और पापों से बचाने की जरूरत है, “वह प्रथम व्यक्ति हम स्वयं ही हैं ।” अपनी कुरूपता स्वीकार करने में जिसे डर नहीं लगता और अपनी असलियत को बिना छिपाए प्रकट करता है, “असल में सबसे बहादुर शूरवीर उसे ही कहना चाहिए ।” ऐसा धर्मयुद्ध आरम्भ करने के लिए हमारा अपना मन और जीवन ही सबसे बड़ा कुरुक्षेत्र, युद्ध का मोर्चा हो सकता है ।

“दोषों” और “दुर्बलताओं” को छिपाने में हम जितना मनोयोग लगाते हैं, उससे आधा भी यदि उनके परिष्कार में लगा दें तो सरलतापूर्वक “निर्मल” और “निष्पाप” गतिविधियाँ अपनाने में सफलता मिल सकती है ।”

जय हो प्रभुपाद
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण दंडवत प्रणाम और नमस्कार हरे कृष्ण
: • क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है।

• जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।

• तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।

• खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।

• परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।

• न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है – फिर तुम क्या हो?

• तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।

• जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान को अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आनंन्द अनुभव करेगा।

🙏🙏🙏
: ।। चाबी ।।
किसी गाँव में एक ताले वाले की दुकान थी। ताले वाला रोजाना अनेकों चाबियाँ बनाया करता था। ताले वाले की दुकान में एक हथौड़ा भी था| वो हथौड़ा रोज देखा करता कि ये चाभी इतने मजबूत ताले को भी कितनी आसानी से खोल देती है।
एक दिन हथौड़े ने चाभी से पूछा कि मैं तुमसे ज्यादा शक्तिशाली हूँ, मेरे अंदर लोहा भी तुमसे ज्यादा है और आकार में भी तुमसे बड़ा हूँ लेकिन फिर भी मुझे ताला तोड़ने में बहुत समय लगता है और तुम इतनी छोटी हो फिर भी इतनी आसानी से मजबूत ताला कैसे खोल देती हो।
चाभी ने मुस्कुरा के ताले से कहा कि तुम ताले पर ऊपर से प्रहार करते हो और उसे तोड़ने की कोशिश करते हो लेकिन मैं ताले के अंदर तक जाती हूँ, उसके अंतर्मन को छूती हूँ और घूमकर ताले से निवेदन करती हूँ और ताला खुल जाया करता है।
वाह! कितनी गूढ़ बात कही है चाभी ने कि मैं ताले के अंतर्मन को छूती हूँ और वो खुल जाया करता है।
आप कितने भी शक्तिशाली हो या कितनी भी आपके पास ताकत हो, लेकिन जब तक आप लोगों के दिल में नहीं उतरेंगे, उनके अंतर्मन को नहीं छुयेंगे तब तक कोई आपकी इज्जत नहीं करेगा।
हथौड़े के प्रहार से ताला खुलता नहीं बल्कि टूट जाता है ठीक वैसे ही अगर आप शक्ति के बल पर कुछ काम करना चाहते हैं तो आप 100% नाकामयाब रहेंगे क्योंकि शक्ति ने आप किसी के दिल को नहीं छू सकते।
चाभी बन जाये, सबके दिल की चाभीजय
: ।। भगवान की प्लानिंग ।।

एक बार भगवान से उनका सेवक कहता है,
भगवान-
आप एक जगह खड़े-खड़े थक गये होंगे

एक दिन के लिए मैं आपकी जगह मूर्ति बनकर खड़ा हो जाता हूं,
आप मेरा रूप धारण कर घूम आओ l
.
भगवान मान जाते हैं, लेकिन शर्त रखते हैं
कि जो भी लोग प्रार्थना करने आयें,
तुम बस उनकी प्रार्थना सुन लेना कुछ बोलना नहीं,
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मैंने उन सभी के लिए प्लानिंग कर रखी है,
सेवक मान जाता है l
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सबसे पहले मंदिर में बिजनेस मैन आता है और कहता है,
भगवान मैंने एक नयी फैक्ट्री खोली है,
उसे खूब सफल करना l
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वह माथा टेकता है,
तो उसका पर्स नीचे गिर जाता है l
वह बिना पर्स लिये ही चला जाता है l
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सेवक बेचैन हो जाता है. वह सोचता है
कि रोककर उसे बताये कि पर्स गिर गया,
लेकिन शर्त की वजह से वह नहीं कह पाता l

इसके बाद एक गरीब आदमी आता है और
भगवान को कहता है कि घर में खाने को कुछ नहीं.
भगवान मदद करो l
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तभी उसकी नजर पर्स पर पड़ती है.
वह भगवान का शुक्रिया अदा करता है
और पर्स लेकर चला जाता है l
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अब तीसरा व्यक्ति आता है, वह नाविक होता है l
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वह भगवान से कहता है कि मैं 15 दिनों के।लिए
जहाज लेकर समुद्र की यात्रा पर जा रहा हूं,
यात्रा में कोई अड़चन न आये भगवान..
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तभी पीछे से बिजनेस मैन पुलिस के साथ आता है
और कहता है कि मेरे बाद ये नाविक आया है l
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इसी ने मेरा पर्स चुरा लिया है,
पुलिस नाविक को ले जा रही होती है
तभी सेवक बोल पड़ता है l
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अब पुलिस सेवक के कहने पर उस गरीब आदमी को पकड़ कर जेल में बंद कर देती है.

रात को भगवान आते हैं,
तो सेवक खुशी खुशी पूरा किस्सा बताता है l
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भगवान कहते हैं, तुमने किसी का काम बनाया नहीं,
बल्कि बिगाड़ा है l
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वह व्यापारी गलत धंधे करता है,
अगर उसका पर्स गिर भी गया,
तो उसे फर्क नहीं पड़ता था l
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इससे उसके पाप ही कम होते,
क्योंकि वह पर्स गरीब इंसान को मिला था.
पर्स मिलने पर उसके बच्चे भूखों नहीं मरते.
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रही बात नाविक की, तो वह जिस यात्रा पर जा रहा था,
वहां तूफान आनेवाला था,
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अगर वह जेल में रहता,
तो जान बच जाती. उसकी पत्नी विधवा होने से बच जाती.
तुमने सब गड़बड़ कर दी l

कई बार हमारी लाइफ में भी ऐसी प्रॉब्लम आती है,
जब हमें लगता है कि ये मेरे साथ ही क्यों हुआ l
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लेकिन इसके पीछे भगवान की प्लानिंग होती है l
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जब भी कोई प्रॉब्लमन आये. उदास मत होना l
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इस कहानी को याद करना और सोचना कि जो भी होता है,i
अच्छे के लिए होता है……
: संघर्ष का बल

एक बार एक किसान 👨🏼‍🦰परमात्मा से बड़ा नाराज हो गया ! कभी बाढ़ 🌊आ जाये, कभी सूखा पड़ जाए, कभी धूप ☀बहुत तेज हो जाए तो कभी ओले पड़ 🌨जाये! हर बार कुछ ना कुछ कारण से उसकी फसल थोड़ी ख़राब हो जाये!

एक दिन बड़ा तंग आ कर उसने परमात्मा से कहा ,देखिये प्रभु🙏🏻, आप परमात्मा हैं , लेकिन लगता है आपको खेती-बाड़ी🌱 की ज्यादा जानकारी नहीं है ,एक प्रार्थना है कि एक साल ☝🏻मुझे मौका दीजिये , जैसा मै चाहू वैसा मौसम☁ हो,फिर आप देखना मै कैसे अन्न के भण्डार भर दूंगा! परमात्मा मुस्कुराये 😊और कहा ठीक है, जैसा तुम कहोगे वैसा ही मौसम दूंगा, मै दखल नहीं करूँगा!

किसान ने गेहूं 🎋की फ़सल बोई ,जब धूप चाही ,तब धूप ☀ मिली, जब पानी तब पानी 🌦! तेज धूप, ओले,बाढ़ ,आंधी तो उसने आने ही नहीं दी, समय के साथ फसल बढ़ी🎍 और किसान की ख़ुशी भी,क्योंकि ऐसी फसल तो आज तक नहीं हुई थी ! किसान ने मन ही मन सोचा अब पता चलेगा परमात्मा को, की फ़सल कैसे करते हैं ,बेकार ही इतने बरस हम किसानो को परेशान😏 करते रहे.

फ़सल काटने का समय भी आया ,किसान बड़े गर्व से फ़सल काटने 👨🏾‍🌾गया, लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा ,एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया! गेहूं की एक भी बाली के अन्दर गेहूं नहीं था ,सारी बालियाँ 🎋अन्दर से खाली थी, बड़ा दुखी😟 होकर उसने परमात्मा से कहा ,प्रभु ये क्या हुआ ?

💥 तब परमात्मा बोले-☝

ये तो होना ही था ,तुमने पौधों को संघर्ष का ज़रा सा भी मौका नहीं दिया . ना तेज धूप में उनको तपने दिया , ना आंधी ओलों से जूझने दिया ,उनको किसी प्रकार की चुनौती का अहसास जरा भी नहीं होने दिया , इसीलिए सब पौधे 🌱☘🍀खोखले रह गए, जब आंधी आती है, तेज बारिश होती है ओले गिरते हैं तब पोधा अपने बल से ही खड़ा रहता है, वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है वोही उसे शक्ति देता है ,उर्जा देता है, उसकी जीवटता को उभारता है.सोने🧭
को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने 🔥, हथौड़ी से🔨 पिटने,गलने जैसी चुनोतियो से गुजरना पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है,उसे अनमोल बनाती है 🙂!
: 🕉 आत्मचिंतन के क्षण 🕉

🔷 कहते हैं कि शनिश्चर और राहू की दशा सबसे खराब होती है और जब वे आती हैं तो बर्बाद कर देती हैं। इस कथन में कितनी सचाई है यह कहना कठिन है, पर यह नितान्त सत्य है कि आलस्य को शनिश्चर और प्रमाद को-समय की बर्बादी को-राहू माना जाय तो इनकी छाया पड़ने मात्र से मनुष्य की बर्बादी का पूरा-पूरा सरंजाम बन जाता है।

🔶 दुःख और कठिनाइयेां में ही सच्चे हृदय से परमात्मा की याद आती है। सुख-सुविधाओं में तो भोग और तृप्ति की ही भावना बनी रहती है। इसलिए उचित यही है कि विपत्तियों का सच्चे हृदय से स्वागत करें। परमात्मा से माँगने लायक एक ही वरदान है कि वह कष्ट दे, मुसीबतें दें, ताकि मनुष्य अपने लक्ष्य के प्रति सावधान व सजग बना रहे।

🔷 निराशा वह मानवीय दुर्गुण है, जो बुद्धि को भ्रमित कर देती है। मानसिक शक्तियों को लुंज-पुंज कर देती है। ऐसा व्यक्ति आधे मन से डरा-डरा सा कार्य करेगा। ऐसी अवस्था में सफलता प्राप्त कर सकना संभव ही कहाँ होगा? जहाँ आशा नहीं वहाँ प्रयत्न नहीं। बिना प्रयत्न के ध्येय की प्राप्ति न आज तक कोई कर सका है, न आगे संभव है।

  *।।जय श्री कृष्णा।।*

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