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💐#गीताकामाहात्म्य !!💐

अपने विराट स्वरूप का दर्शन कराते हुए
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा सॅपूर्ण गीता का
उपदेश अर्जुन को प्राप्त हो रहा है।

विश्व के किसी भी धर्म या संप्रदाय में ग्रंथ
एवं काव्यों की जयंती नहीं मनाई जाती,
लेकिन समस्त विश्व में हिंदू धर्म के
श्रीमद्भगवद्‍गीता ही एक ऐसा ग्रंथ है
जिसकी जयंती मनाने की परंपरा
पुरातन काल से चली आ रही है।

इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि अन्य
सभी ग्रंथों को किसी मनुष्य द्वारा लिखा
या संकलित किया गया है।
जबकि गीता का जन्म स्वयं श्री कृष्ण
भगवान के श्रीमुख से हुआ है या स्वयं…

पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता।।

श्रीमद्भगवद्गीता का जन्म कुरुक्षेत्र के
मैदान में मार्गशीर्ष मास में शुक्लपक्ष
की एकादशी को हुआ था।

यह तिथि वर्तमान में मोक्षदा एकादशी
के नाम से विख्यात है।
श्रीमद्भगवद्गीता एक सार्वभौम ग्रंथ है।

यह किसी काल,धर्म,संप्रदाय या जाति
विशेष के लिए नहीं,अपितु संपूर्ण मानव
जाति के लिए है।

इसे स्वयं श्री कृष्ण भगवान ने अर्जुन को
निमित्त बनाकर कहा है।
इसलिए इस ग्रंथ में श्री भगवानुवाच का
प्रयोग किया गया है।

इस छोटे से ग्रंथ में इतने सत्य,ज्ञान
औरउपदेश भरे हैं जो मनुष्यमात्र को
भी देवताओं के स्थान पर बैठाने की
शक्ति प्रदान करते हैं।

भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में पवित्र
गीता का दिव्य उपदेश तो अर्जुन को
दिया था,लेकिन वास्तव में अर्जुन तो
माध्यम मात्र था।

श्री कृष्ण उसके माध्यम से संपूर्ण मानव
जाति को सचेत करना चाहते थे।
श्रीमद्भगवद्गीता सब तरह के संकटों से
मानव जाति को उबारने का सर्वोत्तम
साधन है।

गीता विश्व में भयमुक्त समाज की स्थापना
का मंत्र देती है,जो विश्व में शांति कायम
करने में सर्वथा सक्षम है।

श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश उस समय
दिया जब कुरुक्षेत्र में अर्जुन को विषाद
उत्पन्न हो गया और श्री कृष्ण से अर्जुन
ने कहा कि उसे स्वजनों को मारकर राज्य
की इच्छा नहीं है।
मैं युद्ध नहीं करना चाहता।

भगवान श्री कृष्ण समझ गए की अर्जुन
मोह ग्रस्त हो गया है।

अर्जुन ने श्री कृष्ण से अनेकानेक सवाल
किए जिनके उत्तर देकर श्री कृष्ण ने उसे
निराशा से उबारा और वह फिर से युद्ध के
लिए तैयार हो गया।

इसी निराशा को आशा में बदलने का
नाम ही ‘गीता’ है।

इस वर्ष गीता जयंती 25 दिसम्बर को
मनाई जाएगी।

ब्रह्मपुराण के अनुसार,मार्गशीर्ष शुक्ल
एकादशी का बहुत बड़ा महत्व है।
द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने इसी
दिन अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश
दिया था।

यह एकादशी मोह का क्षय करने वाली है,
इसीलिए इसका नाम मोक्षदा रखा गया है।

भगवान श्री कृष्ण मार्गशीर्ष में आने वाली
इस मोक्षदा एकादशी के कारण ही कहते
हैं कि मैं महीनों में मार्गशीर्ष का महीना हूं।

इसके पीछे मूल भाव यह है कि मोक्षदा
एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा
देने वाली गीता का उपदेश हुआ था।

महाकाव्य महाभारत से उद्धृत है गीता !!

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य
ग्रंथ है,जो स्मृति वर्ग में आता है।
कभी-कभी केवल जय भारत कहा जाने
वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक,
पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ है।

विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ
और महाकाव्य,हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों
में से एक है।

इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना
जाता है।

यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम
कृतियों में से एक माना जाता है,किन्तु
आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के
लिए एक अनुकरणीय स्रोत है।

यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की
एक गाथा है।

इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रन्थ
भगवद्गीता सन्निहित है।
पूरे महाभारत में लगभग
१,१०,००० श्लोक हैं,
जो यूनानी काव्यों इलियट और
ओडिसी से परिमाण में दस गुणा
अधिक हैं।

हिन्दू मान्यताओं,पौराणिक संदर्भों
एवं स्वयं महाभारत के अनुसार,इस
काव्य का रचनाकार भगवान विष्णु
के ज्ञानवातार वेदव्यास जी को माना
जाता है।

इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने
अपने इस अनुपम काव्य में वेदों,वेदांगों
और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का
निरुपण किया हैं।

इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय,शिक्षा,
चिकित्सा,ज्योतिष,युद्धनीति,योगशास्त्र,
अर्थशास्त्र,वास्तुशास्त्र,शिल्पशास्त्र,
कामशास्त्र,खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र
का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं,
परन्तु महाभारत के आदिपर्व में दिये वर्णन
के अनुसार कई विद्वान इस ग्रंथ का आरम्भ
नारायणं नमस्कृत्य से,तो कोई आस्तिक पर्व
से और दूसरे विद्वान ब्राह्मण उपचिर वसु की
कथा से इसका आरम्भ मानते हैं।

💐#विभिन्न_नाम !!💐

यह महाकाव्य जय भारत महभारत इन तीन
नामों से प्रसिद्ध है।

वास्तव में वेद व्यास जी ने सबसे पहले
१,००,००० श्लोकों के परिमाण के ‘भारत’
नामक ग्रंथ की रचना की थी,इसमें उन्होंने
भारतवंशियों के चरित्रों के साथ-साथ अन्य
कई महान ऋषियों, चन्द्रवंशी-सूर्यवंशी
राजाओं के उपाख्यानों सहित कई अन्य
धार्मिक उपाख्यान भी डालें।

इसके बाद व्यास जी ने २४,००० श्लोकों
का बिना किसी अन्य ऋषियों,चन्द्रवंशी-
सूर्यवंशी राजाओं के उपाख्यानों का केवल
भारतवंशियों को केन्द्रित करके
‘भारत’ काव्य बनाया।

इन दोनों रचनाओं में धर्म की अधर्म पर
विजय होने के कारण इन्हें ‘जय’ भी कहा
जाने लगा।

महाभारत में एक कथा आती है कि जब
देवताओं ने तराजू के एक पासे में चारों
‘वेदों’ को रखा और दूसरे पर ‘भारत ग्रंथ’
को रखा,तो भारत ग्रंथ सभी वेदों की
तुलना में सबसे अधिक भारी सिद्ध हुआ,
अतः ‘भारत’ ग्रंथ की इस महत्ता(महानता)
को देखकर देवताओं और ऋषियों ने इसे
‘महाभारत’ नाम दिया और इस कथा के
कारण मनुष्यों में भी यह काव्य महाभारत
के नाम से सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ।

महाभारत में ऐसा वर्णन आता है कि
वेदव्यास जी ने हिमालय की तलहटी
की एक पवित्र गुफा में तपस्या में संलग्न
तथा ध्यान योग में स्थित होकर महाभारत
की घटनाओं का आदि से अन्त तक स्मरण
कर मन ही मन में महाभारत की रचना कर ली।

परन्तु इसके पश्चात् उनके सामने एक गंभीर
समस्या आ खड़ी हुई कि इस काव्य के ज्ञान
को सामान्य जन साधारण तक कैसे पहुंचाया
जाए।

क्योंकि इसकी जटिलता और लम्बाई के
कारण यह बहुत कठिन था कि कोई इसे
बिना कोई गलती किए वैसा ही लिख दे
जैसा कि वे बोलते जाएं।

इसलिए ब्रह्मा जी के कहने पर व्यास
गणेश जी के पास पहुंचे।

गणेश जी लिखने को तैयार हो गये,
किंतु उन्होंने एक शर्त रखी कि कलम
एक बार उठा लेने के बाद काव्य समाप्त
होने तक वे बीच नहीं रुकेंगे।

व्यास जी जानते थे कि यह शर्त बहुत
कठनाईयां उत्पन्न कर सकती है,अतः
उन्होंने भी अपनी चतुरता से एक शर्त
रखी कि कोई भी श्लोक लिखने से
पहले गणेश जी को उसका
अर्थ समझना होगा।

गणेश जी ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
इस तरह व्यास जी बीच-बीच में कुछ कठिन
श्लोकों को रच देते थे,तो जब गणेश जी उनके
अर्थ पर विचार कर रहे होते उतने समय में ही
व्यास जी कुछ और नये श्लोक रच देते।

इस प्रकार सम्पूर्ण महाभारत ३ वर्षों के
अन्तराल में लिखी गयी।
वेदव्यास जी ने सर्वप्रथम पुण्यकर्मा मानवों
के उपाख्यानों सहित एक लाख श्लोकों का
आद्य भारत ग्रंथ बनाया।

तदन्तर उपाख्यानों को छोड़कर चौबीस
हजार श्लोकों की भारत संहिता बनायी।

तत्पश्चात व्यास जी ने साठ लाख श्लोकों
की एक दूसरी संहिता बनायी,जिसके तीस
लाख श्लोकों देवलोक में,पंद्रह लाख
पितृलोक में तथा चौदह लाख श्लोक
गन्धर्वलोक में समादृत हुए।

मनुष्य लोक में एक लाख श्लोकों का आद्य
भारत प्रतिष्ठित हुआ।

महाभारत ग्रंथ की रचना पूर्ण करने के बाद
वेदव्यास जी ने सर्वप्रथम अपने पुत्र शुकदेव
को इस ग्रंथ का अध्ययन कराया,तदन्तर
अन्य शिष्यों वैशम्पायन,पैल,जैमिनि,
असित-देवल आदि को इसका
अध्ययन कराया।

शुकदेव जी ने गन्धर्वों,यक्षों और राक्षसों
को इसका अध्ययन कराया।
देवर्षि नारद ने देवताओं को,असित-देवल
ने पितरों को और वैशम्पायन जी ने मनुष्यों
को इसका प्रवचन दिया।

वैशम्पायन जी द्वारा महाभारत काव्य
जनमेजय के यज्ञ समारोह में सूत सहित
कई ऋषि-मुनियों को सुनाया गया था।

💐#विशालता !!💐

महाभारत की विशालता और दार्शनिक
गूढ़ता न केवल भारतीय मूल्यों का संकलन है,
बल्कि हिन्दू धर्म और वैदिक परम्परा का भी
सार है।

महाभारत की विशालता का अनुमान
उसके प्रथम पर्व में उल्लेखित एक श्लोक
से लगाया जा सकता है,
जो यहां (महाभारत में) है वह आपको
संसार में कहीं न कहीं अवश्य मिल जायेगा,
जो यहां नहीं है वह संसार में आपको अन्यत्र
कहीं नहीं मिलेगा।

इसे महाभारत का अखिल भाग भी कहते है।
इसमें विशेषकर भगवान श्री कृष्ण का वर्णन है।

वेदव्यास जी को पूरी महाभारत रचने में
३ वर्ष लग गये थे।

इसका कारण यह हो सकता है कि उस
समय लेखन लिपि कला का इतना विकास
नहीं हुआ था।

उस काल में ऋषियों द्वारा वैदिक ग्रन्थों को
पीढ़ी दर पीढ़ी परम्परागत मौखिक रुप से
याद करके सुरक्षित रखा जाता था।

उस समय संस्कृत ऋषियों की भाषा थी
और ब्राह्मी आम बोलचाल की भाषा हुआ
करती थी।

इस प्रकार ऋषियों द्वारा सम्पूर्ण वैदिक
साहित्य मौखिक रुप से याद कर पीढ़ी
दर पीढ़ी सहस्त्रों वर्षों तक याद रखा गया।

फिर धीरे-धीरे जब समय के प्रभाव से
वैदिक युग के पतन के साथ ही ऋषियों
की वैदिक साहित्यों को याद रखने की
शैली लुप्त हो गयी तब से वैदिक साहित्य
को पाण्डुलिपियों पर लिखकर सुरक्षित
रखने का प्रचलन हो गया।

यह सर्वमान्य है कि महाभारत का
आधुनिक रूप कई अवस्थाओं से
गुजर कर बना है।

विद्वानों द्वारा इसकी रचना की चार
प्रारम्भिक अवस्थाएं पहचानी गयी हैं।
ये अवस्थाएं संभावित रचनाकाल क्रम में
निम्लिखित हैं-

1) सर्वप्रथम वेदव्यास द्वारा पर्वों के रूप
में एक लाख श्लोकों का रचित भारत
महाकाव्य,जो बाद में महाभारत के
नाम से प्रसिद्ध हुआ।

2) दूसरी बार व्यास जी के कहने पर
उनके शिष्य वैशम्पायन जी ने पुनः इसी
भारत महाकाव्य को जनमेजय के यज्ञ
समारोह में ऋषि-मुनियों को सुनाया।

3) तीसरी बार फिर से वैशम्पायन और
ऋषि-मुनियों की इस वार्ता के रूप में
कही गयी।
महाभारत को सूत जी द्वारा पुनः १८ पर्वों
के रूप में सुव्यवस्थित करके समस्त ऋषि
मुनियों को सुनाना।

4) सूत जी और ऋषि-मुनियों की इस वार्ता
के रूप में कही गयी महाभारत का लेखन कला
के विकसित होने पर सर्वप्रथम ब्राह्मी या संस्कृत
में हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के रूप में लिपी
बद्ध किया जाना।

भंडारकर संस्थान द्वारा संरक्षित महाभारत !!

इसके बाद भी कई विद्वानों द्वारा इसमें
बदलती हुई रीतियों के अनुसार बदलाव
किया गया,जिसके कारण उपलब्ध प्राचीन
हस्तलिखित पाण्डुलिपियों में कई भिन्न-भिन्न
श्लोक मिलते हैं।

इस समस्या के निदान के लिए पुणे में
स्थित 💐#भांडारकरप्राच्यशोध_संस्थान
ने पुरे दक्षिण एशिया में उपलब्ध महाभारत
की सभी पाण्डुलिपियों (लगभग 1,1०, ०००)
का शोध और अनुसंधान करके उन सभी में
एक ही समान पाये जाने वाले लगभग
७५,००० श्लोकों को खोजकर उनका
सटिप्पण एवं समीक्षात्मक संस्करण
प्रकाशित किया।

कई खण्डों वाले ३,००० पृष्ठों के इस
ग्रंथ का सारे संसार के सुयोग्य विद्वानों
ने स्वागत किया।

पाणिनि द्वारा रचित अष्टाध्यायी (६००-४००
ईसा पूर्व) में महाभारत और भारत दोनों का
उल्लेख है तथा इसके साथ-साथ श्री कृष्ण
एवं अर्जुन का भी संदर्भ आता है।

अतैव यह निश्चित है कि महाभारत और
भारत पाणिनि के काल के बहुत पहले से
ही अस्तित्व में रहे थे।

💐#प्रथमशताब्दीका_उल्लेख !!

यूनान के पहली शताब्दी के राजदूत
डियोक्ररायसोसटम यह बताते हैं की
दक्षिण-भारतीयों के पास एक लाख
श्लोकों का एक ग्रंथ है,जिससे यह पता
चलता है कि महाभारत पहली शताब्दी
में भी एक लाख श्लोकों का था।

महाभारत की कहानी को ही बाद के
मुख्य यूनानी ग्रंथों इलियटऔर ओडिसी
में बार-बार अन्य रूप से दोहराया गया,
जैसे धृतराष्ट्र का पुत्र मोह,कर्ण-अर्जुन
प्रतिसपर्धा आदि।

संस्कृत की सबसे प्राचीन पहली शताब्दी
की एमएस स्पित्जर पाण्डुलिपि में भी
महाभारत के १८ पर्वों की अनुक्रमणिका
दी गयी है।

जिससे यह पता चलता है कि इस काल
तक महाभारत १८ पर्वों के रूप में प्रसिद्ध थी।

यद्यपि १०० पर्वों की अनुक्रमणिका बहुत
प्राचीन काल में प्रसिद्ध रही होगी,क्योंकि
वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना
सर्वप्रथम १०० पर्वों में की थी,जिसे
बाद में सूत जी ने १८ पर्वों के रूप में
व्यवस्थित कर ऋषियों को सुनाया था।

💐#५वींशताब्दीकेअभिलेखमें !!💐

महाराजा शरवन्थ के ५वीं शताब्दी के
तांबे की स्लेट पर पाये गये अभिलेख
में महाभारत को एक लाख श्लोकों की
संहिता बताया गया है।

वह अभिलेख निम्नलिखित है-

‘उक्तञच महाभारते शतसाहस्त्रयां
संहितायां पराशरसुतेन वेदव्यासेन व्यासेन।’

💐#सरस्वती_नदी !!

प्राचीन वैदिक सरस्वती नदी का महाभारत
में कई बार वर्णन आता हैं,बलराम जी द्वारा
इसके तट के समान्तर प्लक्ष पेड़
(प्लक्षप्रस्त्रवण,यमुनोत्री के पास)
से प्रभास क्षेत्र (वर्तमान कच्छ का रण)
तक तीर्थयात्रा का वर्णन भी महाभारत
में आता है।

कई भू-विज्ञानी मानते हैं कि वर्तमान सूखी हुई घग्गर-हकरा नदी ही प्राचीन वैदिक सरस्वती
नदी थी,जो ५०००-३००० ईसा पूर्व पूरे प्रवाह
से बहती थी और लगभग १९०० ईसा पूर्व में
भूगर्भी परिवर्तनों के कारण सूख गयी थी।

ऋग्वेद में वर्णित प्राचीन वैदिक काल में
सरस्वती नदी को नदीतमा की उपाधिदी
गई थी।

उनकी सभ्यता में सरस्वती नदी ही सबसे
बड़ी और मुख्य नदी थी,गंगा नहीं।

भूगर्भी परिवर्तनों के कारण सरस्वती नदी
का पानी गंगा में चला गया और कई विद्वान
मानते हैं कि इसी कारण गंगा के पानी की
महिमा हुई।

इस घटना को बाद के वैदिक साहित्यों में
वर्णित हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहाकर
ले जाने से भी जोड़ा जाता है,क्योंकि
पुराणों में आता है कि परीक्षित की
२८ पीढ़ियों के बाद गंगा में बाढ़ आ
जाने के कारण सम्पूर्ण हस्तिनापुर
पानी में बह गया और बाद की पीढ़ियों
ने कौशाम्बी को अपनी राजधानी बनाया।

महाभारत में सरस्वती नदी के विनाश्न
नामक तीर्थ पर सूखने का सन्दर्भ आता है,
जिसके अनुसार मलेच्छों से द्वेष होने के
कारण सरस्वती नदी ने मलेच्छ
(सिंध के पास के) प्रदेशो में जाना
बंद कर दिया।

💐#द्वारका !!

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग ने
गुजरात के पश्चिमी तट पर समुद्र में डूबे
४०००-३५०० वर्ष पुराने शहर खोज
निकाले हैं।

इनको महाभारत में वर्णित द्वारका के
सन्दर्भों से जोड़ा गया है।
प्रो. एस.आर राव ने कई तर्क देकर इस
नगरी को द्वारका सिद्ध किया है।
यद्यपि अभी मतभेद जारी है क्योंकि
गुजरात के पश्चिमी तट पर कई अन्य
७५०० वर्ष पुराने शहर भी मिल चुके हैं।

💐#निष्कर्ष !!💐

इन सम्पूर्ण तथ्यों से यह माना जा सकता है
कि महाभारत ३००० ईसा पूर्व या निश्चित
तौर पर १९००-१००० ईसा पूर्व रची गयी
होगी,जो महाभारत में वर्णित ज्योतिषीय
तिथियों,भाषाई विश्लेषण,विदेशी सूत्रों
एवं पुरातत्व प्रमाणों से मेल खाती है।

परन्तु आधुनिक संस्करण की रचना
६००-२०० ईसा पूर्व हुई होगी।

अधिकतर अन्य वैदिक साहित्यों के समान
ही यह महाकाव्य भी पहले वाचिक परंपरा
द्वारा हम तक पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंचा और
बाद में छपाई की कला के विकसित होने
से पहले ही इसके बहुत से अन्य भौगोलिक
संस्करण भी हो गये,जिनमें बहुत-सी ऐसी
घटनायें हैं जो मूल कथा में नहीं दिखती या
फिर किसी अन्य रूप में दिखती हैं।

💐#महाभारतयुद्धकी
💐#पृष्ठभूमिऔरइतिहास !!

महाभारत चंद्रवंशियों के दो परिवारों कौरव
और पाण्डव के बीच हुए युद्ध का वृत्तांत है।
१०० कौरव भाइयों और पांच पाण्डव भाइयों के
बीच भूमि के लिए जो संघर्ष चला उससे अंततः महाभारत युद्ध का सृजन हुआ।

इस युद्ध की भारतीय और पश्चिमी विद्वानों
द्वारा कई भिन्न-भिन्न निर्धारित की गयी तिथियां
निम्नलिखित हैं-

विश्व विख्यात भारतीय गणितज्ञ एवं
खगोलज्ञ वराहमिहिर के अनुसार महाभारत
युद्ध २४४९ ईसा पूर्व हुआ था।

विश्व विख्यात भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ
आर्यभट के अनुसार महाभारत युद्ध १८ फरवरी
३१०२ ईसा पूर्व में हुआ था।

चालुक्य राजवंश के सबसे महान सम्राट
पुलकेसि २ के ५वीं शताब्दी के ऐहोल
अभिलेख में यह बताया गया है कि भारत
युद्ध को हुए ३,७३५ वर्ष बीत गए है।

इस दृष्टिकोण से महाभारत का युद्ध
३१०० ईसा पूर्व लड़ा गया होगा।

पुराणों की माने तो यह युद्ध १९०० ईसा
पूर्व हुआ था,पुराणों में दी गई विभिन्न राज
वंशावली को यदि चन्द्रगुप्त मौर्य से मिला
कर देखा जाये तो १९०० ईसा पूर्व की तिथि
निकलती है,परन्तु कुछ विद्वानों के अनुसार
चन्द्रगुप्त मौर्य १५०० ईसा पूर्व में हुआ था,
यदि यह माना जाये तो ३१०० ईसा पूर्व की
तिथि निकलती है क्योंकि यूनान के राजदूत
मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में जिस
चन्द्रगुप्त का उल्लेख किया था वो गुप्त वंश
का राजा चन्द्रगुप्त भी हो सकता है।

1) अधिकतर पश्चिमी विद्वान जैसे मायकल
विटजल के अनुसार भारत युद्ध १२०० ईसा
पूर्व में हुआ था, जो इसे भारत में लौह युग
(१२००-८०० ईसा पूर्व) से जोड़कर देखते हैं।

2) अधिकतर भारतीय विद्वान जैसे बी ऐन
अचर,एन एस राजाराम,के सदानन्द,सुभाष
काक ग्रह-नक्षत्रों की आकाशीय गणनाओं
के आधार पर इसे ३०६७ ईसा पूर्व और
कुछ यूरोपीय विद्वान जैसे पी वी होले इसे
१३ नवंबर ३१४३ ईसा पूर्व में आरम्भ हुआ
मानते हैं।

भारतीय विद्वान पी वी वारटक महाभारत में
वर्णित ग्रह-नक्षत्रों की आकाशीय गणनाओं के
आधार पर इसे १६ अक्तूबर ५५६१ ईसा पूर्व में
आरम्भ हुआ मानते हैं।

उनके अनुसार यूनान के राजदूत मेगस्थनीज
ने अपनी पुस्तक इंडिका में अपनी भारत यात्रा
के समय जमुना (यमुना) के तट पर बसे मेथोरा
(मथुरा)राज्य में शूरसेनियों से भेंट का वर्णन
किया था।

मेगस्थनीज ने यह बताया था कि यह शूरसेनी
किसी हेराकल्स नामक देवता की पूजा करते
थे और यह हेराकल्स काफी चमत्कारी पुरुष
होता था तथा चन्द्रगुप्त से ३८ पीढ़ी पहले था।

हेराकल्स ने कई विवाह किए और कई पुत्र
उत्पन्न किए,परन्तु उसके सभी पुत्र आपस
में युद्ध करके मारे गये।

यहां यह स्पष्ट है कि यह हेराकल्स श्रीकृष्ण
ही थे, विद्वान इन्हें हरिकृष्ण कह कर श्री कृष्ण
से जोड़ते हैं क्योंकि श्री कृष्ण चन्द्रगुप्त से
३८ पीढ़ी पहले थे,तो यदि एक पीढ़ी को
२०-३० वर्ष दें तो ५६०० ईसा पूर्व
श्री कृष्ण हुए थे।

इस वर्ष गीता की 5155वीं जयंती मनाई
जायेगी।

💐#साभारसंकलित

नमो विश्वस्वरूपाय विश्वस्थित्यन्तहेतवे।
विश्वेश्वराय विश्वाय गोविन्दाय नमो नमः॥1॥

नमो विज्ञानरूपाय परमानन्दरूपिणे।
कृष्णाय गोपीनाथाय गोविन्दाय नमो नमः॥2॥

नमः कमलनेत्राय नमः कमलमालिने।
नमः कमलनाभाय कमलापतये नमः॥3॥

बर्हापीडाभिरामाय रामायाकुण्ठमेधसे।
रमामानसहंसाय गोविन्दाय नमो नमः॥4॥

कंसवशविनाशाय केशिचाणूरघातिने।
कालिन्दीकूललीलाय लोलकुण्डलधारिणे॥5॥

वृषभध्वज-वन्द्याय पार्थसारथये नमः।
वेणुवादनशीलाय गोपालायाहिमर्दिने॥6॥

बल्लवीवदनाम्भोजमालिने नृत्यशालिने।
नमः प्रणतपालाय श्रीकृष्णाय नमो नमः॥7॥

नमः पापप्रणाशाय गोवर्धनधराय च।
पूतनाजीवितान्ताय तृणावर्तासुहारिणे॥8॥

निष्कलाय विमोहाय शुद्धायाशुद्धवैरिणे।
अद्वितीयाय महते श्रीकृष्णाय नमो नमः॥9॥

प्रसीद परमानन्द प्रसीद परमेश्वर।
आधि-व्याधि-भुजंगेन दष्ट मामुद्धर प्रभो॥10॥

श्रीकृष्ण रुक्मिणीकान्त गोपीजनमनोहर।
संसारसागरे मग्नं मामुद्धर जगद्गुरो॥11॥

केशव क्लेशहरण नारायण जनार्दन।
गोविन्द परमानन्द मां समुद्धर माधव॥12॥

समस्त चराचर प्राणियों एवं सकल विश्व
का कल्याण करो प्रभु श्रीनारायण💐

जयति पुण्य सनातन संस्कृति💐
जयति पुण्य भूमि भारत💐
जयतु जयतु हिंदुराष्ट्रं💐

सदा सर्वदासुमंगल💐
हर हर हर महादेव💐

जय भवानी💐
जय श्री राम💐

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