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भोग और मोक्ष कामना विधान

श्रीविद्या उपासना
महाविद्या के मंत्र और पूजा विधान सिर्फ दीक्षित हुवे उपासको को ही दिए जाते है , पर हरेक धर्मप्रेमिओ को भी महामाया त्रिपुरसुंदरी की उपासना का अधिकार है । जीवमात्र महात्रिपुर सुंदरी के ही संतान है । महामाया की ये श्रेष्ठ पूजा द्वारा हरकोई धन वैभव सुख सम्पति प्राप्त करे और जीव मोक्षगामी बने इस हेतु सर ये विधान दे रहे है । ये ये विधान उपासना हरकोई कर सकते है ।

श्री विद्या साधना” भगवान श्री शिव जी की दूसरी प्रणाली एवं अर्धागनी कही जाती हैं.. “श्री विद्या साधना” 16 कलाओं से परिपूर्ण हैं! इसलिए इनका नाम श्री विद्या,त्रिपुर- सुंदरी,त्रिपुर- मालिनी या ‘षोडशी’ भी है। ये चार पायों से युक्त हैं जिनके नीचे ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, ईश्वर पाया बन जिस सिंहासन को अपने मस्तक पर विराजमान किए हैं उसके ऊपर सदा शिव लेटे हुए हैं और उनकी नाभी से एक कमल जो खिलता है, उस पर ये त्रिपुरा विराजमान हैं। सैकड़ों पूर्वजन्म के पुण्य प्रभाव और गुरु कृपा से इनका मंत्र मिल पाता है। किसी भी ग्रह, दोष, या कोई भी अशुभ प्रभाव इनके भक्त पर नहीं हो पाता।

श्रीयंत्र का पूजन सभी के वश की बात नहीं है। कलिका पुराण के अनुसार एक बार पार्वती जी ने भगवान शंकर से पूछा, ‘भगवन! आपके द्वारा वर्णित तंत्र शास्त्र की साधना से जीव के आधि-व्याधि, शोक संताप, दीनता-हीनता तो दूर हो जाएगी, किन्तु गर्भवास और मरण के असह्य दुख की निवृत्ति और मोक्ष पद की प्राप्ति का कोई सरल उपाय बताइए।’ तब पार्वती जी के अनुरोध पर भगवान शंकर ने त्रिपुर सुन्दरी श्रीविद्या साधना-प्रणाली को प्रकट किया। “भैरवयामल और शक्तिलहरी” में त्रिपुर सुन्दरी उपासना का विस्तृत वर्णन मिलता है। ऋषि दुर्वासा आपके परम आराधक थे। इनकी उपासना “श्री चक्र” में होती है। आदिगुरू शंकरचार्य ने भी अपने ग्रन्थ सौन्दर्यलहरी में त्रिपुर सुन्दरी श्रीविद्या की बड़ी सरस स्तुति की है। कहा जाता है भगवती त्रिपुर सुन्दरी के आशीर्वाद से साधक को भोग और मोक्ष दोनों सहज उपलब्ध हो जाते हैं।

शाम सुर्यास्त से एक घंटा पूजा घर में उत्तरमुखी होकर गुलाबी रंग के आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने लकड़ी के पट्टे पर गुलाबी वस्त्र बिछाकर उस पर महात्रिपुर सुन्दरी का चित्र और श्री यंत्र को विराजमान करें। दाएं हाथ में जल लेकर संकल्प करें तत्पश्चात हाथ जोड़कर महात्रिपुर सुन्दरी का ध्यान करें।  

ध्यानमंत्र : सा काली द्विविद्या प्रोक्ता श्यामा रक्ता प्रभेदत:। श्यामा तु दक्षिणा प्रोक्ता रक्ता श्री सुन्दरी मता।।

देवी महात्रिपुर सुन्दरी की विभिन्न प्रकार से पूजा करें। आटे से बना चौमुखी शुद्ध घी का दीपक जलाएं। देवी पर गुलाल चढ़ाएं। देवी पर गुलाब के फूल चढ़ाएं। खुशबूदार धूप जलाएं और इत्र अर्पित करें। काजू व मावे से बने मिष्ठान का भोग लगाएं। तत्पश्चात बाएं हाथ मे कमलगट्टे लेकर दाएं हाथ से स्फटिक की माला से देवी के इस अदभूत मंत्र का 11 माला का जाप करें।

मंत्र: ॐ ह्रीं महालक्ष्मये नमः

पूजा विधान :-

किसी भी शुक्रवार को सूर्यास्त समय स्नान करके उत्तर मुख आसन पर बैठे ।

1 आसन पूजा – भूमि को स्पर्श करते हुवे मनमे एक गायत्री मंत्र पढ़े ।
2 देह शुद्धि – दाएं हाथमे जल लेकर तीन आचमन करे । ॐ भु: स्वाहा
ॐ भुव: स्वाहा
ॐ स्व: स्वाहा
आचमन करके हाथ धो लीजिये
3 प्राणायाम – मूलमंत्र से ( यहां मूल मंत्र ॐ ह्रीं महालक्ष्मये नमः ) तीन प्राणायाम करे । नाक के दाएं छिद्र से एक मंत्र मनमे पढ़ते हुवे स्वास खिंचे । चार मंत्र मनमे पढ़े तबतक स्वास को रोके । फिर मनमे दो मंत्र पढ़ते पढ़ते नाक के बाएं छिद्र से स्वास छोड़े । अब उल्टा करे , नाक के बाएं छिद्र से मनमे एक मंत्र पढ़ते हुवे स्वास खिंचे । मनमे चार मंत्र पढ़े तबतक स्वास रोके । फिर नाक के दाएं छिद्र से मनमे दो मंत्र पढ़ते हुवे स्वास छोड़े । ये एक प्राणायाम हुवा ,ऐसे तीन प्राणायाम करे और हाथ धो ले ।
4 अब आंखे बंद करके गुरु गणपति ओर कुलदेवी का ध्यान करे ।
5 संकल्प – हाथमे जल की चमच भरे ओर महामाया की पूजा का संकल्प करे
में ( आपका नाम गोत्र ) अध्यदिने ( उसदिन की तिथि ) ( गांव शहर का नाम ) स्थिते महात्रिपुर सुंदरी महालक्ष्मी प्रीत्यर्थे यथामति अनुसार जप पूजा करिष्ये ।ऐसे संकल्प बोलकर जल भगवती के शरणमे छोड़े ।
5 स्थापन – बाजोठ ( लकड़ी की पाट ) पर गुलाबी वस्त्र बिछाए । हल्दी केशर मिश्रित अक्षत बाजठ पर रखे और उनपर त्रिपुरसुंदरी की एक फोटो तस्वीर स्थापित करे । ओर श्रीयंत्र अक्षत की ढगली पर स्थापित करे ।
6 आवाहन – आंखे बंद करके महामाया का ध्यान करे। ध्यान मंत्र पढ़े । और मनोमन भगवती को आवाहन करे ।
7 आसन :- हाथमे थोड़े अक्षत ओर फूल लेकर भगवती को आसन देने की भावना करे । फूल और अक्षत तस्वीर के पास छोड़े ।
8 प्रक्षाल – हाथमे जल का चमच रखे और महामाया के हाथ और चरण धोने के भाव करे और जल तस्वीर के पास छोड़े ।
9 आवर्तन :- हाथमे एक सुगंधित पुष्प ले और भगवती को अर्पण करें ।
10 स्नान – अभिषेक :- एक पात्रमे श्रीयंत्र को रखे और प्रथम जल से फिर पंचामृत से , इत्र ओर पुष्प से ओर फिर जलसे अभिषेक करें । मूल मंत्र का जाप करते हुवे अभिषेक करें । स्वच्छ वस्त्र से श्रीयंत्र को साफ करके फिरसे बाजठ पर स्थापन करे ।
11 वस्त्रांलंकार ;- चंदन ओर कूम कूम का श्रीयंत्र ओर तस्वीर को तिलक करें । और भगवती की तस्वीर पर गुलाबी वस्त्र अर्पण कर केशर मिश्र अक्षत धरे । गुलाब , चमेली , कनेर बिगैरे सुगन्दीत पुष्प ओर पुष्पमाला अर्पण करें।
12 धूप- दीप :- भगवती की दायी तरफ गाय के घी का ओर बायीं तरफ चमेली के तेल का दीपक जलाएं ओर सुगन्दीत धूप करे ।
13 नैवेद्य – प्रसाद :- गाय के दुग्धमे केशर साकर चावल से बनाई क्षीर , बेसनमें बनाई मिठाई ओर सुका मेवा का प्रसाद धरे । आंखे बंद करे और भगवती को प्रसाद ग्रहण करने की भावना करे और शुद्ध पात्रमे जल अर्पण करें ।
14 मुखवास : भगवती को फल अर्पण कर , इलाइची , लोंग वाला पान बीड़ा अर्पण करे ।
15 दक्षिणा :- यथाशक्ति दक्षिणा अर्पण करे ।
16 आरती :- आटे से बना चौमुखी दीपक जलाये ओर ध्वनिनाद सह भगवती की आरती उतारे । ओर पुष्पांजलि अर्पित करे ।
17 क्षमापना :- आंखे बंद करके भगवती से प्राथना करे कि मुज अबुध से आपकी पूजा अर्चना मे कोई क्षति हुई हो तो हमे क्षमा करें और हमारी पूजा स्वीकार करे ।

अब बाए हाथमे कमल गट्टे रखे और दाएं हाथमे स्फटिक मालासे भगवती के इस मंत्र की 11 माला का जाप करे ।

मंत्र - ॐ ह्रीं महालक्ष्मये नमः 

एक माला मंत्र जाप शिवमंत्र की करे।

मंत्र :- ॐ ह्रीं नमः शिवाय

मंत्र जाप होने के बाद खड़े हो जाये और भगवती को दंडवत प्रणाम करे । बैठकर भगवती को सदैव हमारे निवासमे वास करे यह प्रार्थना करे । श्रीयंत्र ओर कमलगट्टे गुलाबी वस्त्रमे लपेट कर आपके घरके पूजा स्थानमे स्थापित करे और पूजा का बाकी सब सामान जलमे विसर्जित करदे । अब दिन या रातमे एकबार हरदिन श्रीयंत्र को कुम कूम तिलक करके मूल मंत्र की 10 माला का जाप करे । ये क्रम नित्य करते रहिए । स्फटिक माला हमेशा गौमुखी ने ही रखे ।

आपका ओर आपके परिवार जनो का पूरा जीवन ही बदल जायेगा । धन , धान्य , सुख , सम्पति , सुसन्तति , सुआरोग्य ओर यश कीर्ति के साथ जीव की मोक्षगति प्राप्त होती है l

       

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