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सुन्दरता का शत्रु है साबुन

दुनिया का शायद ही कोई कोना ऐसा होगा , जहाँ साबुन का साम्राज्य न फैला हुआ हो । आज की पीढ़ी को नहाने के समय साबुन की जरूरत कुछ वैसे ही महसूस होती है जैसे कि भूख के समय भोजन की । शायद ही गिने चुने लोग हों जो साबुन के गुलाम न होंगे । आदत तो कुछ ऐसी हो गई है कि अगर एक दो दिन भी बगैर साबुन के नहाना पड़ जाय तो लगता है कि जैसे कई जन्मों से शरीर पर पानी ही न पड़ा हो । वास्तव में विज्ञापनी मायजाल ने साबुन को हमारी अनिवार्यताओं में शामिल कर दिया है । अन्यथा , त्वचा के स्वास्थ्य की दृष्टि से साबुन एकदन गैरजरूर और नुकसानदेह चीज है । साबुन में इस्तेमाल किए जाने वाले रसायन तमाम चर्मरोगों के कारण बनते हैं । हालाँकि जैसे – जैसे हम में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ रही है वैसे – वैसे त्वचा के प्रति अहनिफर होने का दाग करने वाले साबुनों की संख्या भी बढ़ने लगी है । कई साबुन निर्माता दावा करते हैं कि उनका न मत है या जड़ी – बूटियां के निश्रण से बनाया गया है परंतु यह अच्छी तरह याद रखना चाहिए कि उच्च से उच्च कोटि के साबुन में भी झाग पैदा करने के लिए कम से कम एक नुकसानदेह रसयन एसएल . एस . ( सोडियम लॉरेल सल्फेट ) तो मिलाया ही जाता है । अलबत्ता , कुछ साबुन या शैम्पू के रैपर पर जड़ी – बूटियों को लीखते हैं पर हानिप्रद रसायन मिलाने के बावजूद इनका नाम नहीं देते जो लोग साबुन मल – मलकर नहाने के बाद पवीत्र ( ? ) होकर घटों भजन – पूजन करते हैं , उन्हें यह अच्छी तरह याद रखना चाहिए ये ज्यादार साबुन में बूचड़खाने खाने से निकलने वाली पशुयों की चर्बी मिलाई जाती है । जो लोग यह सोचकर शरीर पर साबुन मलते हैं कि इससे मैल साफ होते हैं या सौन्दर्य में निखार आता है , वे बहुत हद तक भ्रम में जीते हैं । याद रखें कि साबुन से अगर कुछ ऊपरी गंदगी साफ होती है तो रसायनों की कहीं ज्यादा खतरनाक गंदगी त्वचा के रोये छिद्र से शरीर के भीतर प्रवेश कर जाती है । दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि आजकल की अपने को सभ्य और आधुनिक समझने रखने वाली कई माँ अपने नन्हें – मुन्ने शिशुयों तक को भॉति भॉति के साबुना में खूब रगड़ – रगड़कर इसलिए नहलाती हैं कि इससे उनका वर्ण व त्वचा में निखार आ जाएगा ।अब इन सभ्य पूर्ण माताओं के कौन समझाए कि अपने बच्चों का हित साधने की कोशिश में वे उनका कितना अहित कर रही हैं भाँति – भॉति के बेबी – सोप ‘ भी अंततः निरापद नहीं हैं । गौर करने वाली बात यह भी है कि जो फिल्मी हिरोइनें साबुन के लुभावने विज्ञापनों में नजर आती हैं वे भी अपनी असली जिंदगी में उन साबुनों को इस्तेमाल करने लायक नहीं मानती ।साबुन विरोधी इतनी बातों के बाद सवाल यह है कि अब अगर साबुन न लगाएँ तो कैसे नहाए ? साबुन लगाने की जिनकी रोज की अदत है , उनके लिए बगैर साबुन के स्नान की कल्पना तो और भी कष्टदायी है । पर यह वास्तव में एकदम से मुश्किल नहीं है । मन मे थोड़ा दृढ़ कर लीजिए तो साबन की आदत बड़ी आसानी से समाप्त हो जाएगी । त्वचा प्रकरण हेतु कई बेहतर घरेलू विकल्प मिल जाएंगे । उन्हें इस्तेमाल करके त्वचा के सौन्दर्य की भलीभांति देखभाल की जा सकती है यें शरीर पर कुछ भी न लगाएं तो भी नहाते समय गीले तौलिये से रगड़ रगड़ कर त्वचा की सफाई कर लेना पर्याप्त है । अगर तेल मालिश करते हों तो एक मोटी तौलिया अलग से रखें । स्नान के बाद इस सूखी तौलिया से शरीर को रगड़ – रगड़कर साफ कर लें , तो आपकी त्वचा स्निग्ध और स्वस्थ तो बनगी ही और साबुन की जरूरत भी नहीं पड़ेगी । इसके अलावा सुविधा हो तो बेसन , मुलतानी मिट्टी और कई तरह के उबटन बेहतर विकल्प है । इनकी वीधियों को अपने घर के बड़े बुजुर्गों से सिख सकते हैं यदि इतने पर भी साबुन को अलविदा कह पान मुश्किल ही लग रहा हो तो नीम , रीठा , शिककई आदि जड़ी – बूटियों के योग से बने कुछ अच्छे साबुन यद – कदा इस्तेमाल किए जा सकते हैं । बच्चों के लिए साबुन के बजाय स्नान कराने से पहले उबटन लगाना सबसे अच्छा उपाय




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