Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

भगवान ​अयप्पा

शिव की वह संतान, जिसे भगवान विष्णु ने दिया था जन्म

भगवान शिव और विष्णु की पौराणिक कथाओं पर ध्यान दें, तो दोनों ही देवताओं ने मानव कल्याण के लिए कई लीलाएं रचीं. भगवान विष्णु ने तो अपने बारह अवतारों के साथ हर बार मानव जीव की भलाई के लिए किसी न किसी उदाहरण को प्रस्तुत किया है. भगवान शिव ने भी अपने ध्यान, क्रोध और त्याग से हमें हर रूप में सतकर्म करने का संदेश दिया है.
.
महादेव शिव का एक ही परिवार माना गया है, जिसमें गणेश और कार्तिकेय के रूप में उनकी दो संताने हैं. परन्तु यह पूरा सत्य नहीं है. शिव की तीसरी संतान भी है, इसे भगवान अयप्पा के रूप में पूजा जाता है.
.
रहस्य तो इसमें निहित है कि शिव की तीसरी संतान को ​भगवान विष्णु के एक अवतार विष्णु धरा मोहिनी ने जन्म दिया था.
कह सकते हैं दो पुरूषों की संतान !
.
भगवान अयप्पा के जन्म से जुड़े रहस्य
.
अमृत देवताओं को देने के लिए विष्णु ने धरा मोहिनी रूप
.
अब तो विज्ञान की सहायता से पुरूष बच्चों को जन्म भी देने लगे हैं परन्तु पौराणिक इतिहास में दो पुरूष देवताओं की संतान होना आश्चर्य से भर देता है. इसके पहले कि आप किसी निर्णय पर पहुंचे और कोई अनचाही धारणा बनाएं उसके पहले जरा इस रहस्य को समझ लें!
.
यदि पौराणिक कथाएं पढ़ी या सुनी है तो आपको देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन के बारे में जरूर याद होगा. समुद्र मंथन में बार बार एक नाम का जिक्र होता है, जिसे मोहिनी कहा गया है. धटना के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत सागर से बाहर आया तो देवाओं और राक्षसों के बीच उसके बंटवारे को लेकर विवाद पैदा हो गया.
.
तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और अमृत का कलश उठा लिया. मोहिनी इतनी सुंदर थी कि राक्षसों का ध्यान अमृत के बर्तन से ज्यादा मोहिनी के रूप पर रहा. इसी समय छल हुआ और मोहिनी ने देवताओं को अमृतपान करवाया जबकि राक्षसों को साधारण जल पिलाती रही. पर मोहिनी की भूमिका केवल समुद्रमंथन की कथा तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके आगे एक और कथा है.
.
महिषासुर की बहन ने मांगा एक वरदान
.
तब महिषासुर नाम का एक राक्षस धरती पर वास कर रहा था. जिसने अपने अहंकार और अत्याचार की सभी सीमाएं पार कर दी थीं. महिषासुर की अत्याचारों से परेशान देवताओं ने सहायता के लिए मां दुर्गा से प्रार्थना की. इसके बाद देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया. लेकिन महिषासुर के साथ हिंसा और अहंकार का अंत नहीं हुआ.
.
महिषासुर की बहन महिषी अपने भाई के मृत्यु से बहुत दुखी थी. वह देवतों से नाराज थी और इसी लिए उसने खुद को शक्तिशाली बनाने के लिए घोर तप करना शुरू किया. उसने भगवान शिव की आराधना की. कई सालों तक लगातार की गई इस आराधना से महादेव प्रसन्न हो गए. तब महिषी ने अपने लिए अमरता का वरदान मांगा.
.
महादेव ने कहा कि यह सृष्टि के नियमों के विरुद्ध है. जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चिय है. वह चाहे तो अपनी मृत्यु की स्थिति निश्चित कर सकता है परन्तु उसे टाल नहीं सकता. महिषी ने बीच का रास्ता निकाला. उसने वरदान मांगा कि मैं चाहती हूं कि मेरा वध शिव और विष्णु की संतान के द्वारा हो.
.
भगवान शिव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और वरदान दे दिया. महिषी को लगा कि यह होना कभी संभव ही नहीं है. चूंकि दो देव पुरूषों का मिलन और फिर संतान उत्पत्ति हो ही नहीं सकती. इसी अहंकार के चलते उसने धरती से लेकर देवलोक तक हाहाकार मचा दिया. एक बार फिर देवता संकट में थे.
.
मोहिनी ने दिया शिव पुत्र को जन्म
.
इस बार फिर से सभी देवता भगवान शिव की शरण में पहुंचे. उन्होंने कहा कि आपने जो वरदान महिषी को दिया है उसका कोई तोड़ नहीं है. दो पुरूषों के मिलन से संतान की उत्पत्ति नहीं हो सकती. यही कारण है कि उसे हममें से कोई नहीं मार सकता. एक प्रकार से वह अमर हो चुकी है.
.
इसके बाद देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे इस समस्या का हल निकालने की प्रार्थना की. वास्तव वे यह समझ रहे थे कि इस वरदान का कोई तोड़ हो ही नहीं सकता.
.
परन्तु नियति में कुछ और ही लिखा था
.
भगवान विष्णु ने अपने अवतार मोहिनी को कैलाश भेजा. मोहिनी को देखते ही भगवान शिव उन्हें पहचान गए. मोहिनी ने शिव के आगे प्रेम प्रस्ताव रखा. चूंकि शिव योगी थे और काम वासना कभी उनकी कमजोरियों में शामिल नहीं हुई इसलिए उन्होंने मोहिनी के साथ अपने मिलने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया. परन्तु मोहिनी के प्रेम की लाज रखी.
.
शिव ने मोहिनी को अपना वीर्य, जिसे पारद कहा जाता है. वह दिया. इस तरह संबंध बनाएं बिना शिव और मोहिनी का मिलन हुआ. चूंकि मोहिनी विष्णु का अवतार थी इसलिए इसे शिव और विष्णु का मिलन भी कहा जाता है. पारद के प्रभाव से मोहिनी गर्भवति हुई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया गया.
.
पुराणों में इस पुत्र को ‘हरिहर’ या ‘मणिकांता’ के नाम से जाना गया. दक्षिण भारत में पूजे जाने वाले भगवान अयप्पा ही ‘हरिहर’ हैं. अयप्पा शिव—विष्णु की संतान हैं इसलिए उनमें दोनों देवताओं की शक्तियां समाहित थीं. आगे चलकर उन्ही ने महिषी का वध करके देवताओं को उसके अत्याचारों से मुक्त किया.
.
दक्षिण भारत पूजे जाते हैं भगवान अयप्पा
.
यह पौराणिक कथा दक्षिण भारत में काफी प्रचलित है, जबकि उत्तर और पूर्वी भारत में भगवान अयप्पा का वर्णन नहीं होता है. दक्षिण भारत के केरल राज्य में सबरीमाला मंदिर है. माना जाता है कि यहीं अयप्पा का वास है. इसके अलावा तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक राज्यों में लगभग हर गली-कूचे में भगवान अयप्पा के मंदिर मिलते हैं.
.
भगवान अयप्पा के विषय में कहा जाता है कि उनकी पूजा तभी स्वीकार्य होती है जब व्यक्ति ब्रह्मचर्य का कठोर पालन करता है.
.
बीते कुछ सालों से भगवान अयप्पा का सबरीमाला मंदिर चर्चाओं में बना हुआ है. जिस लोक कथा का हमने अभी वर्णन किया इसी को आधार मानकर पुजारियों ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगा दिया था. उनका तर्क है कि जब अयप्पा का जन्म दो पुरूष देवताओं के संयोग से हुआ है, वह भी ब्रह्मचर्य नियम का पालन करते हुए.. तो भला वहां महिलाओं को प्रवेश क्यों?
.
भगवान अयप्पा के जन्म से एक बार तो साफ है कि हिंदू पौराणिक कथाओं में देव पुरूषों मिलन की कथा वर्णित है. तो अगली बार जब किसी दक्षिण भारतीय के मुंह से भगवान अयप्पा का नाम सुने तो आश्चर्य न करें!

      

Recommended Articles

Leave A Comment