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संगम तट पर विराजमान लेटे हनुमान मंदिर की अद्भूत कहानी
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कुम्भ नगरी प्रयाग अगर संगम के लिए प्रसिद्ध है, तो इसी के तट पर मारूती नन्दन वीर हनुमान का एक ऐसा मंदिर है जो दुनियाभर के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं. यहां पवनसुत वीर हनुमान लेटी हुई मुद्रा में विराजमान हैं. दुनियाभर में यह इकलौता मंदिर ऐसा है जहां अंजनी पुत्र शयन मुद्रा में मौजूद हैं. संगम तट पर लेटे हनुमान का यह मंदिर अति प्राचीन है. विद्वानों की माने तो पदम पुराण में इस मंदिर का विस्तृत वर्णन भी है।
मूर्ति को हटाने का किया गया था प्रयास लिहाजा, इतिहास में इस मंदिर का वर्णन तब से मिलता आया है जब अकबर ने संगम के तट पर किला बनवाया था. कहते हैं अकबर के किले का जो नक्शा बनाया गया था वह इस मंदिर के मध्य से हो कर जाता था. किले के रास्ते में मंदिर आया तो अकबर ने इसे दूसरी जगह स्थापित करने का हुक्म दे दिया. बादशाह के हुक्म का पालन करने के लिए हजारों मजदूर इस प्रतिमा को दूसरी जगह स्थापित करने के लिए लगाए गए.
लेकिन बजरंगबली की मूर्ति अपने स्थान से टस से मस नहीं हुई. इधर अकबर को यह समाचार सुनाने के लिए कोई जाने की हिम्मत नहीं जुटा सका, तो प्रयाग के कुछ पुरोहित उनके पास पहुंच गए. पुरोहितों ने अकबर को सारा किस्सा सुनाते हुए अनुरोध किया कि मंदिर वहीं रहने दें तो उचित होगा. अकबर ने भी तब इस मंदिर के महत्व को जाना और किले की दीवार को टेढ़ा करने का हुक्म देते हुए मंदिर के जीर्णोद्धार का आदेश दे दिया. प्रयाग के इस लेटे हुए हनुमान की मंदिर को लेकर दुनियाभर में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं.
इतिहासकार प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी ने बताया कि इनमें से एक किंवदंती के अनुसार प्राचीन युग में एक हनुमान भक्त व्यापारी उनकी मूर्ति नाव पर रख कर यमुना के रास्ते जा रहा था. अचानक प्रयाग में संगम से तट के पास नाव डूब गई. काफी खोजबीन के बाद भी न तो नाव का पता चला और ना ही मूर्ति मिली. इसके कई वर्षों बाद जब नदी की धारा बदली तो पानी खाली हुए तट पर हनुमान जी की मूर्ति लोगों को नजर आई. इसके बाद भक्तों ने मूर्ति को उठाकर किसी मंदिर में स्थापित करने की योजना बनाई. योजना के मुताबिक करीब 100 से ज्यादा लोगों ने मूर्ति को उठाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन वह टस से मस न हुई. प्रयास कई दिनों तक किया जा जाता रहा, लेकिन मूर्ति एक इंच भी नहीं खिसकी.
नहीं हिली मूर्ति तो वहीं बनवा दिया विशाल मंदिर आखिर में भक्तों ने महात्माओं की शरण ली. महात्माओं ने भक्तों से कहा तुम चाहे जितना प्रयास कर लो मूर्ति वहां से नहीं हटा सकोगे क्योंकि भगवान वहां स्वयं शयन मुद्रा में हैं. भक्तों ने उपाय पूछा तो महात्माओं ने कहा कि मूर्ति जहां जिस मुद्रा में है वैसी ही रहने दो और वहीं मंदिर का निर्माण करा दो. भक्तों ने महात्माओं की बात मानते हुए वहीं मंदिर बनवा दिया, जो आज भी संगम के तट पर लेटे हनुमान या बड़े हनुमान के नाम से प्रसिद्ध मंदिर मौजूद है।
बड़े हनुमान यानि लेटे हुए हनुमान की मान्यताएं एक दूसरी किंवदंती के मुताबिक लंका विजय के बाद बजरंग बली भारद्वाज ऋषि का आशीर्वाद लेने प्रयाग आए थे. संगम स्नान के बाद अचानक शारीरिक थकान की अधिकता से मूर्छित होकर गिर गए. मूर्छित होकर धरती पर लेटे हनुमान को मां जानकी ने सिंदूर चढ़ाकर उनके चिरायु और सर्वशक्तिमान होने का आशीर्वाद दिया था. तब से ही आज तक लेटे हनुमान पर सिंदूर चढ़ाने की परम्परा है. यह मां जानकी का ही आशीर्वाद है कि यहां बजरंग बली मां गंगा के समकक्ष स्थापित हैं. लेटे हनुमान मंदिर के छोटे महन्त आनन्द गिरी महाराज ने कहा कि ऐसी मान्यता है कि संगम का स्नान तब तक अधूरा है जब तक बड़े हनुमान का दर्शन न किया जाए. यहां देश विदेश से करोड़ों भक्त हर साल आते हैं और शाम को होने वाली आरती में शामिल होकर स्वयं को धन्य मानते हैं. मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी कोई भी ऐसी कामना नहीं जो पूरी न हो. लेटे हनुमान मंदिर से जुड़े कई ऐसे रहस्य हैं जिसके पीछे का कारण किसी को नहीं मालूम. यहां विराजमान लेटे हनुमान को शहर का कोतवाल माना जाता है. कहते हैं कि यदि किसी ने जीवन में कभी भी चोरी की है और इस मंदिर में आता है तो उसे बेचैनी होती है. इसके बाद जब तक वह मूर्ति के सामने जाकर अपने पापों का प्रायश्चित नहीं कर लेता, उसे शांति नहीं मिलती. एक अन्य रहस्य जो इस मंदिर से जुड़ा है वह यह कि बरसात में गंगा का जल कम से कम एक बार इस मंदिर तक जरूर पहुंचता है. गंगा की धारा मूर्ति के चरण तक पहुंचने के बाद धीरे-धीरे जलस्तर गिरने लगता है. इसके बाद गंगा अपने वास्तविक धारा के साथ बहने लगती है. जबकि गंगा की धारा और मंदिर की दूरी करीब साढ़े तीन किलोमीटर की है. गंगा जी का मंदिर के गर्भ तक पहुंचने के पीछे का एक कारण यह भी है कि अगर किसी वर्ष पानी बजरंगी बली के चरणों तक नहीं पहुंचता है तो माना जाता है कि कोई न कोई प्राकृतिक आपदा आ सकती है. लेटे हनुमान को बड़े हनुमान के नाम से भी इसलिए जाना जाता है क्योंकि यह शहर में बजरंग बली की सबसे बड़ी मूर्ती है, जो करीब 20 फिट से ज्यादा की है. हालांकि इस मूर्ति से भी बड़ी प्रतिमा बनाने का कई बार प्रयास हुआ लेकिन सफलता नहीं मिली. इसीलिए इसे बड़े हनुमान के नाम से भी जाना जाता है।


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