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🐍मनसा देवी माता की कथा🐍
मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। इनके पति जगत्कारु तथा पुत्र आस्तिक जी हैं। इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में पूजा जाता है, प्रसिद्ध मंदिर एक शक्तिपीठ पर हरिद्वार में स्थापित है। इन्हें शिव की मानस पुत्री माना जाता है परंतु कई पुरातन धार्मिक ग्रंथों में इनका जन्म कश्यप के मस्तक से हुआ हैं, ऐसा भी बताया गया है। कुछ ग्रंथों में लिखा है कि वासुकि नाग द्वारा बहन की इच्छा करने पर शिव नें उन्हें इसी कन्या का भेंट दिया और वासुकि इस कन्या के तेज को न सह सका और नागलोक में जाकर पोषण के लिये तपस्वी हलाहल को दे दिया। इसी मनसा नामक कन्या की रक्षा के लिये हलाहल नें प्राण त्यागा।
माता मनसा देवी मुरादो को पूरा करने वाली देवी है । कहते हैं कि मनसा देवी का जन्म संत कश्यप के मस्तिष्क से हुआ है । मनसा देवी को भी सिद्ध पीठो में गिना जाता है । मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री भी माना जाता है । माता मनसा देवी के साथ एक बहुत ही प्रचलित कथा जुडी हुयी है जिसका उल्लेख मैं यहाँ करना चाहूंगा – और इस कथा को हमारे बहुत से साधक लोग एक पुरानी फ़िल्म में भी देख चुके हैं – याद करवाने के लिए मैं उस फ़िल्म का दूँ ” नाग पंचमी ” ।
सती बेहुला चम्पक नगरी में चन्द्रधर नामक एक धनी वैश्य था । वह परम शिव-भक्त था – किन्तु मनसा देवी से उसका बड़ा विरोध था । इस विरोध का मुख्य कारन था कि मनसा देवी चंद्रधर से अपनी खुद कि पूजा करवाना चाहती थीं क्योंकि चंद्रधर के बारे में मशहूर था कि वह भगवान शिव का अनन्य भक्त है और वह उनके अलावा किसी और का नाम तक नहीं लेता – इसी विरोध के कारण मनसा देवी ने चन्द्रधर के छह पुत्रों को विषधर नागों से डंसवा कर मरवा डाला । सातवें पुत्र लक्ष्मीचंद्र का विवाह उज्जयिनी के धार्मिक साधु नामक वैश्य की परम सुन्दरी साध्वी कन्या बेहुला के साथ हुआ। लक्ष्मीचंद्र की कुण्डली देखकर ज्योतिषियों ने बता दिया था कि विवाह की प्रथम रात्रि में ही सांप के काटने से इसकी मृत्यु हो सकती है ।
चन्द्रधर ने लोहे का ऐसा मजबूत घर बनवाया, जिसमें वायु भी प्रवेश न कर सके, मगर मनसा देवी ने भवन-निर्माता से छोटा-सा छेद छोड़ देने के लिए कह दिया । विवाह-रात्रि को नागिन ने लक्ष्मीचंद्र को डंस लिया और वह मर गया। सारे घर में शोर मच गया। तब उसकी पत्नी बेहुला ने केले के पौधे की नाव बनवाई और पति के शव को लेकर, उसमें बैठ गई। उसने लाल साड़ी पहन रखी थी और सिन्दूर लगा रखा था । नदी की लहरें उस शव को बहुत दूर ले गईं । वह अपने पति को पुन: जिन्दा करने पर तुली हुई थी । बहुत दिनों तक उसने कुछ नहीं खाया, जिससे उसका शरीर सूख गया था । लक्ष्मीचंद्र के शरीर से दुर्गन्ध भी आने लगी थी । उसके सारे शरीर में कीड़े पड़ गए थे । मात्र उसका कंकाल ही शेष रह गया था।बेहुला नाव को किनारे की ओर ले चली । उसने वहां एक धोबिन के मुख से तेज टपकते देखा । उसके कठोर तप को देख कर ही मनसा देवी ने उसे वहां भेजा था ।
उसने बेहुला से कहा :- “तुम मेरे साथ देवलोक में चल कर अपने नृत्य से महादेव को रिझा दो तो तुम्हारे पति पुन: जिन्दा हो जाएंगे।” बेहुला ने उसकी सलाह मान ली। वह उसके साथ चल पड़ी पति की अस्थियां उसके वक्षस्थल से चिपकी थीं। वह अपने पति की स्मृति से उन्मत्त होकर नृत्य करने लगी। सारा देव समुदाय द्रवित हो गया। मनसा देवी भी द्रवित हो गईं। लक्ष्मीचंद्र जीवित हो गया और इसके साथ ही बेहुला का नाम अमर हो गया।

        

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