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श्री त्रयम्बकेश्वर महादेव

     ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
  उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||

तीन अम्बिकाओ को धारण करनेवाले परम तत्व शिवस्वरूप त्रयम्बकेश्वर महादेब। इस क्षेत्रमे हरकोई जीव के कठिन पातक से भी मुक्ति पा सकता है । ब्रह्म हत्या और गौहत्या से मुक्ति देने शिवजी का प्रागट्य हुवा। मृत्यु के देवता काल को भी जीव को मुक्त करना पड़ता है वो महामृत्युंजय मंत्र के अधिष्ठाता देव त्रयम्बकेश्वर महादेव ।किसी भी प्रकार के प्रायश्चित कर्म और अनुष्ठान की सफलता केलिए ये सिद्धपीठ है । कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि पूजन केवल श्री त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग पर ही संपन्‍न किया जाता है।

  यहां प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन समय में ब्रह्मगिरी पर्वत पर देवी अहिल्या के पति ऋषि गौतम रहते थे और तपस्या करते थे। क्षेत्र में कई ऐसे ऋषि थे जो गौतम ऋषि से ईर्ष्या करते थे और उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते रहते थे। एक बार सभी ऋषियों ने गौतम ऋषि पर गौहत्या का आरोप लगा दिया। सभी ने कहा कि इस हत्या के पाप के प्रायश्चित में देवी गंगा को यहां लेकर आना होगा। तब गौतम ऋषि ने शिवलिंग की स्थापना करके पूजा शुरू कर दी। ऋषि की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी और माता पार्वती वहां प्रकट हुए। भगवान ने वरदान मांगने को कहा। तब ऋषि गौतम से शिवजी से देवी गंगा को उस स्थान पर भेजने का वरदान मांगा। देवी गंगा ने कहा कि यदि शिवजी भी इस स्थान पर रहेंगे, तभी वह भी यहां रहेगी। गंगा के ऐसा कहने पर शिवजी वहां त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप वास करने को तैयार हो गए और गंगा नदी गौतमी के रूप में वहां बहने लगी। गौतमी नदी का एक नाम गोदवरी भी है।

 त्र्यंबकेश्वर मंदिर बहुत ही प्राचीन है। मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे शिवलिंग हैं। ये तीन शिवलिंग ब्रह्मा, विष्णु और शिव के नाम से जाने जाते हैं। त्र्यबंकेश्वर मंदिर के पास तीन पर्वत स्थित हैं, जिन्हें ब्रह्मगिरी, नीलगिरी और गंगा द्वार के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मगिरी को शिव स्वरूप माना जाता है। नीलगिरी पर्वत पर नीलाम्बिका देवी और दत्तात्रेय गुरु का मंदिर है। गंगा द्वार पर्वत पर देवी गोदावरी यां गंगा का मंदिर है। मूर्ति के चरणों से बूंद-बूंद करके जल टपकता रहता है, जो कि पास के एक कुंड में जमा होता है।

गंगा, गायत्री, गिरीजा ने गौरव किया हुआ ब्रम्हगिरी त्र्यंबकेश्वरकी शान है । ब्रम्हगिरीपर पाच शिखर है, उनके नाम है सदयोजात, वामदेव, अघोर, तत्पुरुष और ईशान । त्र्यंबकराज के सोनेरी मुख की पाँच मुखे है । ज्योर्तिलिंगका ही मंगलरुप ब्रम्हगिरी है । गंगा का मूल स्थान ब्रम्हगिरी है और शिवरुप ब्रम्हगिरीका साथी नीलपर्वत है ।

कहा जाता है नीलपर्वत पर नीलाबिंका याने रेणूका माता का वास्तव्य हुआ करता था । रेणूका परशुराम की जननी है । भगवान शिवाजीके अणूरेणू मे बसा करूणा अवतार रेणूका है । परशुरामजी को अपनी जननी और अवधूत दत्तजी का दर्शन यही हुआ था । रेणूका देवी का यह स्थान दत्तात्रय पावन सिध्दीक्षेत्र के नाम से मशहूर है । ब्रम्हगिरीके दक्षिण दिशा की और कोलांबा माता का मंदिर है । कोलांबा माता का मंदिर है । कोलांबा शिव की शक्तीका ही रुप माना जाता है।

कहा जाता है…… कोलांबा देवी शक्तीका गंगाद्वार है तो नीलांबा देवी विद्या का महाद्वार है । इन दोनो शक्तीयोका मातृकापीठ त्र्यंबकेश्वर है । ‘त्रि’ मतलब तीन, ‘अबक’ माने लोचन, तीन ऑखोवाले त्र्यंबकराज की ऑखे ब्रम्हा, विष्णु, महेश समान है । इस मूर्तिकी ऑखे खुली हुई है । तथा ऑखो की करूणा गंगा है ।

‘ऊ’ त्र्यंबकं यजामहे इस मृत्युजय महामंत्र की देवता त्र्यंबकेश्वर है । ब्रम्हानिष्ठ वसिष्ठ इस मंत्र को जापते थे । विश्वमित्र गायत्रीमंत्र जापते थे । गायत्रीदेवी का यह त्रिसंध्या क्षेत्र है । वसिष्ठ ऋषीका ब्रम्हतेज के क्षात्रतेज की प्राणप्रतिष्ठा मृत्युंजय मे है । मृत्युके समय तारक मंत्र उपदेश करनेवाली काशीनाथ् ही गौतमी के तीर पर बसे त्र्यंबकेश्वर मे आ बसे है । त्रि-देव तथा तीन अग्नियोंका दर्शन त्र्यंबकेश्वर मे होता है । पार्वती जिनकी अर्धांगिणी ब्रम्हा और विष्णू जिनके दुसरे अंग है वह त्र्यंबकनाथ है ।

नाथसंप्रदायमे त्र्यंबकेश्वर का महत्व अधिक है । इस सिध्दभूमी पर गोरक्षनाथ और निवृत्तीनाथ की गुरुकृपा है । त्र्यंबकमठ शैवोका आदरपात्र है । शैव ग्रंथकार सोमानंद अभिनव गुप्ताजीके पर दादाजी थे । सोमानंदके कारण यह बीज काश्मिर मे पहुंचा । सोमानंदका श्रीकृष्णशिवभी नागयोगीके परपुज्य थे । आद्य शंकराचार्यजीने भक्ती की योग की जोड देते हुये भागवत धर्म की स्थापना की । वारकरी समाज भी यह धर्म का पुरस्कर्ता है और त्याग वैराग्य की सीख देता है । ज्ञान के सुरज का दर्शन जिस त्र्यंबकराजा के चरण मे होता है । उन्हे कोटी कोटी प्रणाम ।

तव तत्वं न जानामि की शोह्यसि महेश्वर ।

या शोसि महादेव ताशाय नमोनम: ।।

गांग वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम् ।

त्रिपुरारी शिरश्चारि पुनातुमाम् ।।

  

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