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स्वस्तिक से वास्तु दोष निवारण
वास्तु शास्त्र में चार दिशाएँ होती हैं। स्वस्तिक
चारों दिशाओं का बोध कराता है। पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर।
चारों दिशाओं के देव पूर्व के इंद्र, दक्षिण के यम, पश्चिम के वरुण,
उत्तर के कुबेर। स्वस्तिक की भुजाएँ चारों उप दिशाओं
का बोध कराती हैं। ईशान, अग्नि, नेऋत्य, वायव्य।
स्वस्तिक के आकार में आठों दिशाएँ गर्भित हैं। वैदिक हिन्दू धर्म के
अनुकूल स्वस्तिक को गणपति का स्वरूप माना है। स्वस्तिक
की चारों दिशाएँ से चार युग, सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग
की जानकारी मिलती है। चार
वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। चार आश्रम ब्रह्मचर्य,
गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास। चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और
मोक्ष। चार वेद इत्यादि अनंत जानकारी का बोधक है।
स्वस्तिक की चार भुजाओं में जिन धर्म के मूल
सिद्धांतों का बोध होता है। समवसरण में भगवान का दर्शन चतुर्थ
दिशाओं से समान रूप से होता है। चार घातिया कर्म
ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय,
मोहनीय, अंतराय। चार अनंत चतुष्टय अनंतदर्शन,
अनंतज्ञान, अनंतसुख, अनंत वीर्य। उपवन भूमि में
चारों दिशाओं में क्रमशः अशोक, सप्तच्छद, चंपक और आम्रवन होते
हैं। चार अनुयोग- प्रथमानुयोग, चरणानुयोग, करणानुयोग, द्रव्यानुयोग।
चार निक्षेप- नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव। चार कषाय- क्रोध, मान, माया,
लोभ। मुख्य चार प्राण- इंद्रिय, बल, आयु, श्वासोच्छवास। चार
संज्ञा- आहार, निद्रा, मैथुन, परिग्रह। चार दर्शन- चक्षु,
अचक्षु, अवधि, केवल। चार आराधना- दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप।
चार गतियाँ- देव, मनुष्य, तिर्यन्च, नरक।
प्राचीन काल में जिन वास्तु नियमों को विद्वानो ने लिख गए
हैं उनका महत्त्व आज भी कम
नहीं हुआ है। परन्तु कई कारणों से इन
नियमों को पालन न करने की सूरत में घर में
किसी न किसी तरह का वास्तु दोष आ
ही जाता है। इन वास्तु दोषों के निवारण के उपाय
किसी प्रशिक्षित वास्तु विशेषज्ञ से कराने चाहिए। लेकिन
फौरी तौर पर एक स्वस्तिक प्रयोग बता रहें हैं जिससे
वास्तु की समस्या का कुछ हद तक निवारण
हो सकता है।
वास्तु दोष को दूर करने के लिए बनाया गया स्वस्तिक 6 इंच से कम
नहीं होना चाहिए। घर के मुख्य़ द्वार के दोनों ओर
ज़मीन से 4 से 5 फुट ऊपर सिन्दूर से यह स्वस्तिक
बनाऐं। घर में जहां भी वास्तु दोष है और उसे दूर
करना संभव न हो तो वहां पर भी इस तरह
का स्वस्तिक बना दें। जिस
भी दिशा की शांति करानी हो उस
दिशा में 6″ x 6″ का तांबे का स्वस्तिक यंत्र पूजन कर
लगा देना चाहिए। इस यंत्र के साथ उस
दिशा स्वामी का रत्न भी यंत्र के साथ लगा दें।
नींव पूजन के समय भी इस तरह के यंत्र
आठों दिशाओं व ब्रह्म स्थान पर दिशा स्वामियों के रत्न के साथ
लगा कर गृहस्वामी के हाथ के बराबर गड्ढा खोद कर,
चावल बिछा कर, दबा देना चाहिए। पृथ्वी में इन अभिमंत्रित
रत्न जड़े स्वस्तिक यंत्र की स्थापना से इनका प्रभाव
काफ़ी बड़े क्षेत्र पर होने लगता है।
दिशा स्वामियों की स्थिति इस प्रकार है- ब्रह्म स्थान-
माणिक, पूर्व-हीरा, आग्नेय-मूंगा, दक्षिण-
नीलम, नैऋत्य-पुखराज, पश्चिम-पन्ना, वायव्य-गोमेद,
उत्तर-मोती, इशान-स्फटिक।
विधि :– शरीर
की बाहरी शुद्धि करके शुद्ध
वस्त्रों को धारण करके ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए (जिस
दिन स्वस्तिक बनाएँ) पवित्र भावनाओं से नौ अंगुल का स्वस्तिक 90
डिग्री के एंगल में सभी भुजाओं को बराबर
रखते हुए बनाएँ। केसर से, कुमकुम से, सिन्दूर और तेल के मिश्रण
से अनामिका अंगुली से ब्रह्म मुहूर्त में विधिवत बनाने
पर उस घर के वातावरण में कुछ समय के लिए अच्छा परिवर्तन
महसूस किया जा सकता है। भवन या फ्लैट के मुख्य द्वार पर एवं
हर रूम के द्वार पर अंकित करने से सकारात्मक ऊर्जाओं का आगमन
होता है।
स्वस्तिक चिह्न लगभग हर समाज में आदर से पूजा जाता है
क्योंकि स्वस्तिक के चिह्न की बनावट
ऐसी होती है, कि वह दसों दिशाओं से
सकारात्मक एनर्जी को अपनी तरफ
खींचता है। इसीलिए
किसी भी शुभ काम की शुरुआत
से पहले पूजन कर स्वस्तिक का चिह्न बनाया जाता है। ऐसे
ही शुभ कार्यो में आम की पत्तियों को आपने
लोगों को अक्सर घर के दरवाज़े पर बांधते हुए देखा होगा क्योंकि आम
की पत्ती,
इसकी लकड़ी, फल को ज्योतिष
की दृष्टी से भी बहुत शुभ
माना जाता है। आम की लकड़ी और
स्वस्तिक दोनों का संगम आम
की लकड़ी का स्वस्तिक उपयोग किया जाए
तो इसका बहुत ही शुभ प्रभाव पड़ता है।
यदि किसी घर में किसी भी तरह
वास्तुदोष हो तो जिस कोण में वास्तु दोष है उसमें आम
की लकड़ी से बना स्वस्तिक लगाने से
वास्तुदोष में कमी आती है क्योंकि आम
की लकड़ी में सकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित
करती है। यदि इसे घर के प्रवेश द्वार पर लगाया जाए
तो घर के सुख समृद्धि में वृद्धि होती है। इसके
अलावा पूजा के स्थान पर भी इसे लगाये जाने का अपने
आप में विशेष प्रभाव बनता है।

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