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हमारे #सनातन धर्म में चार #युगों का उल्लेख है। ये चार युग हैं-
—-#किंचितआवश्यकजानकारी
( १ ) – सत युग
( २ ) – त्रेता युग
( ३ ) – द्वापर युग
( ४ ) – कलि युग।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन चारों युगों में कितने वर्ष होते हैं एवं इन चार युगों का प्रारंभ किस दिन से होता है।
युगों के क्रम में सबसे पहले सत युग आता है शेष तीनों युग क्रमश: आते हैं। आइए जानते हैं कि यह चारों युग कबसे प्रारंभ होते हैं एवं कितने वर्षों बाद इनका प्रारंभ होता है।

( १ ) – #सत_युग- सत युग जिसे कृत युग भी कहा जाता है। सत युग में कुल 17,28,000 वर्ष होते हैं। शास्त्रानुसार सत युग का प्रारंभ अत्यंत पवित्र कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि से होता है। जिसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है। सत युग में धर्म अपने 4 चरणों से विद्यमान रहता है।

सत्ययुग का तीर्थ – पुष्कर है ।

इस युग के अवतार – मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह (सभी अमानवीय अवतार हुए) है ।
अवतार होने का कारण – शंखासुर का वध एंव वेदों का उद्धार, पृथ्वी का भार हरण, हरिण्याक्ष दैत्य का वध, हिरण्यकश्यपु का वध एवं प्रह्लाद को सुख देने के लिए।
इस युग की मुद्रा – रत्नमय है ।
इस युग के पात्र – स्वर्ण के है ।

( २ ) – #त्रेता_युग- त्रेतायुग में कुल 12,96,000 वर्ष होते हैं। शास्त्रानुसार त्रेता युग का प्रारंभ वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि से होता है। जिसे अक्षय तृतीया या आखा तीज भी कहा जाता है। त्रेता युग में धर्म अपने 3 चरणों से विद्यमान रहता है।

त्रेतायुग का तीर्थ – नैमिषारण्य है ।

इस युग के अवतार – वामन, परशुराम, राम
अवतार होने के कारण – बलि का उद्धार कर पाताल भेजा, मदान्ध क्षत्रियों का संहार, रावण-वध एवं देवों को बन्धनमुक्त करने के लिए ।
इस युग की मुद्रा – स्वर्ण है ।
इस युग के पात्र – चाँदी के है ।

( ३ ) – #द्वापर_युग- द्वापर युग में कुल 8,64,000 वर्ष होते हैं। शास्त्रानुसार द्वापर युग का प्रारंभ माघ मास की पूर्णिमा तिथि से होता है। द्वापर युग में धर्म अपने 2 चरणों से विद्यमान रहता है।

द्वापरयुग का तीर्थ – कुरुक्षेत्र है ।

इस युग के अवतार – कृष्ण, (देवकी के गर्भ से एंव नंद के घर पालन-पोषण)।
अवतार होने के कारण – कंसादि दुष्टो का संहार एंव गोपों की भलाई, दैत्यो को मोहित करने के लिए ।
इस युग की मुद्रा – चाँदी है ।
इस युग के पात्र – ताम्र के हैं ।

( ४ ) – #कलि_युग- कल युग में कुल 4,32,000 वर्ष होते हैं। शास्त्रानुसार कलि युग का प्रारंभ आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि से होता है। कलि युग में धर्म अपने 1 चरण से विद्यमान रहता है।

कलियुग का तीर्थ – गंगा है ।

इस युग के अवतार – कल्कि (ब्राह्मण विष्णु यश के घर) ।
अवतार होने के कारण – मनुष्य जाति के उद्धार अधर्मियों का विनाश एंव धर्म कि रक्षा के लिए।
इस युग की मुद्रा – लोहा है।
इस युग के पात्र – मिट्टी के है।
——कलियुगे तु मृदमये!!

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