आध्यात्मिक शक्ति का एहसास व जानकारी ।
समय अनुसार आध्यात्मिक शक्ति का अनुभव होता है ।
झुनझुनी का एहसास आध्यात्मिक शक्ति का एहसास है । यह सामान्यतः पैर पर कभी भी उभर कर आ जाता है कभी कभार किसी अन्य अंग पर भी आ जाता है ।
परंतु यह झुनझुनी अनियंत्रित होती है । इसे नियंत्रण करने की विद्या आशिर्वाद वरदान विद्या है । सामान्य मानव 7% से भी कम मस्तिष्क शक्ति का प्रयोग करते है ।
मस्तिष्क से उठने वाली चुम्बकीय शक्ति जिसे गुरुत्वाकर्षण बल भी कहते है वह सामान्य मानव का निष्क्रिय होता है ।
जब यह झुनझुनी आप किसी एक अंग पर टिकाते है । मतलब आप पढ़े लिखे है आपको आशीर्वाद वरदान विद्या आती है ।
यह ध्यान तप है । कभी पैर पर कभी हाँथ में कभी उंगली पर इस झुनझुनी को बनाए रखना ध्यान कहलाता है । जब यह झुनझुनी जिस अंग पर टिकेगी वह अंग पक कर या तप कर कठोर होता जाएगा ।
मस्तिष्क से उठने वाली तीन तरह की तरंगे होती है ।
सकारात्मक , नकारात्मक और भावनात्मक ।
अलग अलग मंत्रो द्वारा इस मस्तिष्क शक्ति के ऊर्जा को सासों के संतुलन से शरीर के अलग अलग अंग पर स्थिर या प्रवाहित करेंगें ।
धीरे धीरे एक के बाद एक आशीर्वाद वरदान प्राप्त कर तपस्वी शरीर को तपाता है । अलग अलग मंत्र अलग अलग देवताओं के अधीन होते है मतलब उनकी शक्ति उस मंत्र व उस अंग से संचालित होती है ।
जल देव वायु देव पवन देव सबका अलग अलग चक्र विद्यमान है । सामान्य मानव इन्हें तत्व चक्र के नाम से भी पुकारते है ।
शरीर के सभी चक्र से श्रेष्ट मस्तिष्क का आज्ञा चक्र होता है । यह चक्र सोच व समझ के साथ जीवन को मतलब शरीर को आज्ञा प्रदान करता है । इस चक्र की माया से जीवन संचालित होता है ।
मस्तिष्क के 2 भाग में चेतना व चैतन्य नामक गतिविधि होती है । इसे बुध्दि और विवेक भी कहते है ।
चेतना ही परम ब्रह्म है और चैतन्य जन्म लेता है । देवभाषा में चैतन्य भगवान विष्णु का नाम है और वह जन्म लेते है चेतना ब्रह्मा है जो जन्म नही लेता वह नाभि से उठने वाले ब्रह्म दंड पर बैठा मस्तिष्क के ऊपर भाग में कमल पर विराजमान होता है । यह सहस्तार्थ चक्र के स्वामी है ।
शरीर के पूरे अंग पर तो देवताओं का राज है परंतु मस्तिष्क में देवताओं का अखाड़ा है यहाँ चांद तारे ग्रह सूर्य ब्रह्मांड है । इसकी कुछ बाते गुप्त है इस कारण इतना ही अभी के लिय है ।
सभी चक्रों के संतुलन से प्राप्त शक्ति शिद्धि कहलाती है । जब मानव सिद्धिवान हो जाता है । झुनझुनी से पूरा शरीर तप कर कठोर हो जाता है तब पसीना निकलना बंद हो जाता है । पसीने की जगह से भांफ की तरह ऊर्जा निकलती है । हथेलियों से पैर से यह ऊर्जा नियंत्रित की जाती है ।
जब हथेलियों से ऊर्जा निकलना आरंभ होता है तब उस ऊर्जा को नियंत्रित करने की विद्या का आगाज होता है । जो देवताओं के देवता करते है । अलग अलग उंगलियों के अलग अलग चक्र पर अधिकार होता है । ब्रह्मा सबसे श्रेष्ट वरदान के लिए जाने जाते है । बाकी ब्राह्मण उनसे बड़ा शक्ति नही दे सकते है ।
भस्म का हाँथ ,लोखंड का हाँथ , बाली की नकारात्मक चुम्बकीय शक्ति , बहुँत वरदान है जो ब्राह्मण केवल शिष्यों को बताते है ।
इलाज हेतु आध्यात्मिक मानव अलग अलग ऊर्जा शक्ति व विद्या का प्रयोग करते है । नागपाषाम , चक्ररोधम , शक्ति अवशोषम , प्राणघातम आदि ।
विद्याओं के स्तरता अनुसार , ऋषि , ब्रह्मा ऋषि , देव ऋषि , महा ऋषि आदि उपाधि धारण करते है । पंडित जादा समय , महापात्र कभी कभी कभार , पुजारी केवल मंदिर में , कथा वाचक मजमा में , आशीर्वाद वरदान विद्या वाले ब्राह्मण आवश्यता व जरूरत अनुसार आते है ।