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🌹 प्राणायाम के प्रकार🌹
हठयोग ग्रंथों में आठ प्रकार के प्राणायामों का वर्णन आया है।
” सूर्यभेदनमुज्जायी सीत्कारी शीतली तथा।
भस्त्रिका भ्रमारी मूच्र्छा केवली चाष्ट कुम्भकः।।”
यथा सूर्यभेदी प्राणायाम, उज्जायी प्राणायाम, सीत्कारी प्राणायाम, शीतली प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, मूचर्छा प्राणायाम।
इनके अलावा एक और नाड़ी-शोधन (अनुलोम-विलोम प्राणायाम) का अभ्यास प्राणायाम कर्म से पूर्व करते है। क्योंकि इस प्राणायाम के अभ्यास बिना साधक अन्य उपरोक्त उल्लिखित प्राणायामों का अभ्यास सही रूप से नहीं सकता। साथ ही उसे पूर्ण सिद्धियों भी प्राप्त नहीं होगी।
नाड़ी-शोधन (अनुलोम-विलोम प्राणायाम)
समस्त योगशास्त्रों में प्राणायाम से पूर्व नाड़ी-शोधन प्राणायाम का विधान बताया है, क्योकि मल से परिपूर्ण नाड़ियों में बिना शोधन प्राण का सुगम प्रवेश नहीं हो पाता। इसलिए नाड़ियों को मल रहित करने के लिए जिस प्राणायाम की सहायता ली जाती है, उसे ही नाड़ी-शोधन प्राणायाम कहते है।
🌸 प्राणायाम करने की विधि
इस प्राणायाम के लिए सर्वप्रथम पद्मासन में स्थित होकर अपने मरूदण्ड एंव गर्दन को सीधीे रखते हुए, अपने दोनों हाथों को अंजलि मुद्रा में रखकर नाभि के समीप रखते है। तत्पश्चाताप दाहिने हाथ की अंगुष्ठा, मध्यमा एंव अनामिका अंगुलियों से मुद्रा बनाते हुए, अंगूठे से दायें नासारन्ध्र को मध्यमा एंव अनामिका को बायें नासारन्ध्र पर रखते हैं। दृष्टि को सम रखते हुए दायें नासारन्ध्र को बंद रखते हुए, अपने बायें नासारन्ध्र से बिना ध्वनि किए धीरे-धीरे श्वास का रेचक करते है। जैसे-जैसे श्वास का रेचक करते हैं, वैसे-वैसे उसी अनुपात में पेट की ओर सने लगता है।
पूरा श्वास बाहर निकालने के बाद इसी मुद्रा में धीरे-धीरे बायें नासारन्ध्र से श्वास का पूरक करते है। जैसे-जैसे श्वास का पूरक करते है वैसे-वैसे उसी अनुपात में अपने पेट की ओर फूलता जाता है। पूरक के बाद गुदाद्वार का ऊपर की ओर संकोचन करते हुए मूलबंध लगाते है। साथ ही अपनी ठुड्डी को कण्ठकूप में लगाते हुए जालन्धर बन्ध का प्रयोग करते है। इसी स्थिति में अपने दोनों नासारन्ध्र बन्द रखते हैं एंव दायें हाथ को भी अंजलि मुद्रा में अपने नाभि के पास ले आते है।
मात्रानुसार श्वास का कुम्भक करने के पश्चात् रेचन के लिए पुनः दायें हाथ को मुद्रा के रूप में नासारन्ध्रों पर ले आते है, जालन्धर बन्ध हटाते हैं एंव नेत्रों को खोलते हुए धीरे-धीरे दायें नासारन्ध्र से बिना ध्वनि किए अपने श्वास का रेचन करते हुए उडियानबन्ध का प्रयोग करते है साथ ही मूलबन्ध को भी हटा लेते है।
पुनः एक बार पूरक के साथ दायें नासारन्ध्र से ही उपरोक्त वर्णित विधि से ही श्वास का पूरक, कुम्भक एंव रेचक का कार्य बायें नासारन्ध्र से करते है। इस प्रकार इस प्राणायाम का एक चक्र पूरा होता है। अपनी सामथ्र्यनुसार इस प्राणायाम का अभ्यास करते है। दिन में चार बार इस प्राणायाम का अभ्यास करने से एक महीने में नाड़ी शुद्धि का कार्य संपन्न हो जाता है।
प्राणायाम संबंधी सावधानी

🌸 इस प्राणायाम का अभ्यास करते समय कुछ सावधानी भी रखनी पड़ती है। यथा-

  1. प्राणायाम करते समय मात्रा का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  2. ह्दय रोगी, उच्च रक्तचाप रोगी इस प्राणायाम का अभ्यास करते समय दीर्घ कुम्भक का प्रयोग नहीं कर सकते।
  3. आहार का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
    🌸 प्राणायाम संबंधी लाभः
    जब तक नाड़ियों में मल व्याप्त रहता है, तब तक नाड़ियों में प्राण का सहज संचार नहीं हो पाता। सुषुम्ना में प्राण वायु का संचार न होने से उन्मनी भाव अर्थात् समाधि की स्थिति नहीं आ पाती। और प्राण का संचार न होने के कारण इच्छुक कार्य सिद्ध नहीं हो सकता अर्थात् प्राणायाम में पूर्ण सफलता नहीं मिल सकती। इसलिए किसी भी प्रकार के प्राणायाम करने से पूर्व नाड़ी-शोधन प्राणायाम करना अत्यावश्यक माना गया है।
  4. नड़ियों मलों से रहित होकर स्वच्छ केवल नाड़ी-शोधन प्राणायाम से ही हो सकती है।
    नाड़ी-शोधन का अर्थ है- नाड़ियों को शुद्ध करने वाला प्राणायाम। इसके कार्य के अनुरूप ही इसका नाम नाड़ी-शोधन रखा गया है।
  5. नाड़ी-शोधन प्राणायाम से शरीर स्थित 72,864 नाड़ियों की शुद्धि होती है।
  6. नजला, जुकाम, खांसी आदि को दूर करने में उपयोगी है।
  7. जठराग्नि प्रदीप्त होती है। साथ ही अभ्यासी का चेहरा कांतिमान होता है।
  8. रक्त विकार, शीतपित्त, गर्मी के रोग, खून की गर्मी, पित्ती उछलना (छपाकी) आदि जैसे रोग दूर होते है।

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