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सामान्यतः भोजन न लेने को उपवास कहा जाता है जबकि भोजन न लेने से ” उपवास ” का कोई संबध नहीं है ।जिस तरह भोजन करके कुछ समय पश्चात पुनः खाने को ” अध्यशन ” कहते हैं और भोजन का समय व्यतीत हो जाने पर भोजन करने को ” विषमाशन ” कहते है उसी तरह भोजन न करने को ” अनशन ” कहते हैं ।”उपवास ” शब्द का अर्थ है स्वयं के पास बैठना ।जो अपने भीतर विराजमान है वह ” उपवासा ” कहलाता है और जो अपने भीतर विराजमान हो गया वह भोजन करते हुए भी भोजन नही करता क्योकि भोजन तो शरीर में ही जाता है ,वह चलते हुए भी चलता नही क्योंकि चलता तो शरीर है वह तो साक्षी बना रहता है।दरअसल यह उस भोजन का न लेना है जो मनुष्य अन्य इन्द्रियों से ग्रहण करता है ।उपवास की सार्थकता तभी है जब हम शरीर, इन्द्रिय, मन,बुद्धि से किसी बाहरी और संसारी तत्व को न ग्रहण करते हुए प्रतिपल- प्रतिक्षण ईश्वर की महिमा का चिन्तन करें ।जब कोई व्यक्ति संसार के किसी भी विषय से प्रभावित हुए बिना अपने अन्दर स्थित हो जाता है तब वह ” उपवासा ” कहलाता है।

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