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पुनर्नवा जो बनाये आपके शरीर को नया

पुनर्नवा जो बनाये आपके शरीर को नया
शरीर पुनर्नवं करोति इति
पुनर्नवा ।

जो अपने रक्तवर्धक एवं रसायन गुणों द्वारा सम्पूर्ण शरीर को अभिनव स्वरूप प्रदान करे, वह है ‘पुनर्नवा’ ।

यह हिन्दी में  साटी, साँठ, गदहपुरना, विषखपरा, गुजराती में साटोड़ी, मराठी  में घेटुली  तथा  अंग्रेजी में ‘हॉगवीड’ नाम से जानी जाती है ।

   मूँग या चने की दाल मिलाकर इसकी बढ़िया सब्जी बनती है, जो शरीर की सूजन, मूत्ररोगों (विशेषकर मूत्राल्पता), हृदयरोगों, दमा, शरीरदर्द, मंदाग्नि, उलटी, पीलिया, रक्ताल्पता, यकृत व प्लीहा के विकारों आदि में फायदेमंद है । इसके ताजे पत्तों के 15-20 मि.ली. रस में चुटकी भर काली मिर्च व थोड़ा-सा शहद मिलाकर पीना भी हितावह है । भारत में यह सब्जी सर्वत्र पायी जाती है ।

   पुनर्नवा का शरीर पर होनेवाला रसायन कार्यः

दूध, अश्वगंधा आदि रसायन द्रव्य रक्त-मांसादि को बढ़ाकर शरीर का बलवर्धन करते हैं परंतु पुनर्नवा शरीर में संचित मलों को मल-मूत्रादि द्वारा बाहर निकालकर शरीर के पोषण का मार्ग खुला कर देती है ।

   बुढ़ापे में शरीर में संचित मलों का उत्सर्जन यथोचित नहीं होता । पुनर्नवा अवरूद्ध मल को हटाकर हृदय, नाभि, सिर, स्नायु, आँतों व रक्तवाहिनियों को शुद्ध करती है, जिससे मधुमेह, हृदयरोग, दमा, उच्च रक्तदाब आदि बुढ़ापे में होनेवाले कष्टदायक रोग उत्पन्न नहीं होते ।

   यह हृदय की क्रिया में सुधार लाकर हृदय का बल बढ़ाती है । पाचकाग्नि को बढ़ाकर रक्तवृद्धि करती है । विरूद्ध आहार व अंग्रेजी दवाओं के अतिशय सेवन से शरीर में संचित हुए विषैले द्रव्यों का निष्कासन कर रोगों से रक्षा करती है ।

   बालरोगों में लाभकारी पुनर्नवा शरबतः पुनर्नवा के पत्तों के 100 ग्राम स्वरस में मिश्री चूर्ण 200 ग्राम व पिप्पली (पीपर) चूर्ण 12 ग्राम मिलाकर पकायें तथा चाशनी गाढ़ी हो जाने पर उसको उतार के छानकर शीशी में रख लें । इस शरबत को 4 से 10 बूँद की मात्रा में (आयु अनुसार) रोगी बालक को दिन में तीन-चार बार चटायें । खाँसी, श्वास, फेपडों के विकार, बहुत लार बहना, जिगर बढ़ जाना, सर्दी-जुकाम, हरे-पीले दस्त, उलटी तथा बच्चों की अन्य बीमारियों में बाल-विकारशामक औषधि कल्प के रूप में इसका उपयोग बहुत लाभप्रद है ।

   औषधि- प्रयाग


1.       (अ) नेत्रों की फूलीः पुनर्नवा की जड़ को घी में घिसकर आँखों में आँजें ।

(ब) नेत्रों की खुजलीः पुनर्नवा की जड़ को शहद या दूध में घिसकर आँख में आँजें ।

(स) नेत्रों से पानी गिरनाः पुनर्नवा की जड़ को शरहद में घिसकर आँखों में आँजें ।

   2. पेट के रोगः गोमूत्र एवं पुनर्नवा का रस समान मात्रा में मिलाकर पीयें ।

   3. गैसः 2 ग्राम पुनर्नवा के मूल का चूर्ण, आधा ग्राम हींग व 1 ग्राम काला नमक गर्म पानी से लें ।

   4. मूत्रावरोधः पुनर्नवा का 40 मि.ली. रस अथवा उतना ही काढ़ा पीयें पुनर्नवा के पत्ते बाफकर पेडू पर बाँधें । 1 ग्राम पुनर्नवाक्षार (आयुर्वेदिक औषधियों की दुकान से मिलेगा) गर्म पानी के साथ पीने से तुरंत फायदा होता है ।

5. पथरीः पुनर्नवा की जड़ को दूध में उबालकर सुबह-शाम पीयें ।

6. सूजनः पुनर्नवा की जड़ का काढ़ा पिलाने एवं सूजन पर जड़ को पीसकर लेप करने से लाभ होता है ।

7. वषण शोथ (हाइड्रोसिल) : पुनर्नवा का मूल दूध में घिस के लेप करने से वृषण की सूजन मिटती है ।

8. पीलियाः पुनर्नवा के पंचांग (जड़, छाल, पत्ती, फूल और बीज) को शहद एवं मिश्री के साथ लें अथवा उसका रस या काढ़ा पीयें ।

9. पागल कुत्ते का विषः सफेद पुनर्नवा के मूल का 25 से 50 ग्राम घी में मिलाकर रोज पीयें ।

10. फोड़ाः पुनर्नवा के मूल का काढ़ा पीने से कच्चा अथवा पका हुआ फोड़ा भी मिट जाता है ।

11. अनिद्राः पुनर्नवा के मूल का 100 मि.ली. काढ़ा दिन में 2 बार पीयें ।

12. संधिवातः पुनर्नवा के पत्तों की सब्जी सोंठ डालकर खायें ।

13. एड़ी में वायुजन्य वेदना होती हो तो ‘पुनर्नवा तेल’ एड़ी पर घिसें व सेंक करें ।

14. योनिशूलः पुनर्नवा के हरे पत्तों को पीसकर बनायी गयी उँगली जैसे आकार की लंबी गोली को योनी में रखने से भयंकर योनिशूल भी मिटता है ।

15. खूनी बवासीरः पुनर्नवा के मूल को पीसकर फीकी छाछ (200 मि.ली.) या बकरी के दूध (200 मि.ली.) के साथ पीयें ।

16. हृदयरोगः हृदयरोग के कारण सर्वांग सूजन हो गयी तो पुनर्नवा के मूल का 10 ग्राम चूर्ण और अर्जुन की छाल का 10 ग्राम चूर्ण 200 मि.ली. पानी में काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीयें ।

17. दमाः 10 ग्राम भारंगमूल चूर्ण और 10 ग्राम पुनर्नवा चूर्ण को 300 मि.ली. पानी में उबालकर काढ़ा बनायें । 50 मि.ली. बचे तब सुबह-शाम पीयें ।

18. हाथीपाँवः 50 मि.ली. पुनर्नवा का रस और उतना ही गोमूत्र मिलाकर सुबह-शाम पीयें ।

19. जलोदरः पुनर्नवा की जड़ के 2-3 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ खायें ।

वन्देमातरम !

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