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: व्रत या उपवास कितने प्रकार के होते हैं??????

व्रत रखने के नियम दुनिया को हिंदू धर्म की देन है। व्रत रखना एक पवित्र कर्म है और यदि इसे नियम पूर्वक नहीं किया जाता है तो न तो इसका कोई महत्व है और न ही लाभ, राजा भोज के राजमार्तण्ड में 24 व्रतों का उल्लेख है।

हेमादि में 700 व्रतों के नाम बताए गए हैं। गोपीनाथ कविराज ने 1622 व्रतों का उल्लेख अपने व्रतकोश में किया है।

व्रतों के प्रकार तो मूलत: तीन है:- 1. नित्य, 2. नैमित्तिक और 3. काम्य।

1.नित्य व्रत उसे कहते हैं जिसमें ईश्वर भक्ति या आचरणों पर बल दिया जाता है, जैसे सत्य बोलना, पवित्र रहना, इंद्रियों का निग्रह करना, क्रोध न करना, अश्लील भाषण न करना और परनिंदा न करना, प्रतिदिन ईश्वर भक्ति का संकल्प लेना आदि नित्य व्रत हैं। इनका पालन नहीं करते से मानव दोषी माना जाता है।

2.नैमिक्तिक व्रत उसे कहते हैं जिसमें किसी प्रकार के पाप हो जाने या दुखों से छुटकारा पाने का विधान होता है। अन्य किसी प्रकार के निमित्त के उपस्थित होने पर चांद्रायण प्रभृति, तिथि विशेष में जो ऐसे व्रत किए जाते हैं वे नैमिक्तिक व्रत हैं।

3.काम्य व्रत किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाते हैं, जैसे पुत्र प्राप्ति के लिए, धन- समृद्धि के लिए या अन्य सुखों की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले व्रत काम्य व्रत हैं।

व्रतों का वार्षिक चक्र :-

1.साप्ताहिक व्रत : सप्ताह में एक दिन व्रत रखना चाहिए। यह सबसे उत्तम है।

2.पाक्षिक व्रत : 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। प्रत्येक पक्ष में चतुर्थी, एकादशी, त्रयोदशी, अमावस्या और पूर्णिमा के व्रत महतवपूर्ण होते हैं। उक्त में से किसी भी एक व्रत को करना चाहिए।

3.त्रैमासिक : वैसे त्रैमासिक व्रतों में प्रमुख है नवरात्रि के व्रत। हिंदू माह अनुसार पौष, चैत्र, आषाढ और अश्विन मान में नवरात्रि आती है। उक्त प्रत्येक माह की प्रतिपदा यानी एकम् से नवमी तक का समय नवरात्रि का होता है। इन नौ दिनों तक व्रत और उपवास रखने से सभी तरह के क्लेश समाप्त हो जाते हैं।

4.छह मासिक व्रत : चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी नवरात्रि कहते हैं। उक्त दोंनों के बीच छह माह का अंतर होता है। इसके अलावा

5.वार्षिक व्रत : वार्षिक व्रतों में पूरे श्रावण मास में व्रत रखने का विधान है। इसके अलवा जो लोग चतुर्मास करते हैं उन्हें जिंदगी में किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं होता है। इससे यह सिद्ध हुआ की व्रतों में ‘श्रावण माह’ महत्वपूर्ण होता है। सोमवार नहीं पूरे श्रावण माह में व्रत रखने से हर तरह के शारीरिक और मानसिक कलेश मिट जाते हैं।

उपवास के प्रकार:- 1.प्रात: उपवास, 2.अद्धोपवास, 3.एकाहारोपवास, 4.रसोपवास,
5.फलोपवास,
6.दुग्धोपवास,
7.तक्रोपवास,
8.पूर्णोपवास,
9.साप्ताहिक उपवास, 10.लघु उपवास,
11.कठोर उपवास,
12.टूटे उपवास,
13.दीर्घ उपवास। बताए गए हैं, लेकिन हम यहां वर्ष में जो व्रत होते हैं उसके बारे में बता रहे हैं।

1.प्रात: उपवास- इस उपवास में सिर्फ सुबह का नाश्ता नहीं करना होता है और पूरे दिन और रात में सिर्फ 2 बार ही भोजन करना होता है।

2.अद्धोपवास- इस उपवास को शाम का उपवास भी कहा जाता है और इस उपवास में सिर्फ पूरे दिन में एक ही बार भोजन करना होता है। इस उपवास के दौरान रात का भोजन नहीं खाया जाता।

3.एकाहारोपवास- एकाहारोपवास में एक समय के भोजन में सिर्फ एक ही चीज खाई जाती है, जैसे सुबह के समय अगर रोटी खाई जाए तो शाम को सिर्फ सब्जी खाई जाती है। दूसरे दिन सुबह को एक तरह का कोई फल और शाम को सिर्फ दूध आदि।

4.रसोपवास- इस उपवास में अन्न तथा फल जैसे ज्यादा भारी पदार्थ नहीं खाए जाते, सिर्फ रसदार फलों के रस अथवा साग-सब्जियों के जूस पर ही रहा जाता है। दूध पीना भी मना होता है, क्योंकि दूध की गणना भी ठोस पदार्थों में की जा सकती है।

5.फलोपवास- कुछ दिनों तक सिर्फ रसदार फलों या भाजी आदि पर रहना फलोपवास कहलाता है। अगर फल बिलकुल ही अनुकूल न पड़ते हो तो सिर्फ पकी हुई साग-सब्जियां खानी चाहिए।

6.दुग्धोपवास- दुग्धोपवास को ‘दुग्ध कल्प’ के नाम से भी जाना जाता है। इस उपवास में सिर्फ कुछ दिनों तक दिन में 4-5 बार सिर्फ दूध ही पीना होता है।

7.तक्रोपवास- तक्रोपवास को ‘मठाकल्प’ भी कहा जाता है। इस उपवास में जो मठा लिया जाए, उसमें घी कम होना चाहिए और वो खट्टा भी कम ही होना चाहिए। इस उपवास को कम से कम 2 महीने तक आराम से किया जा सकता है।

8.पूर्णोपवास- बिलकुल साफ-सुथरे ताजे पानी के अलावा किसी और चीज को बिलकुल न खाना पूर्णोपवास कहलाता है। इस उपवास में उपवास से संबंधित बहुत सारे नियमों का पालन करना होता है।

9.साप्ताहिक उपवास- पूरे सप्ताह में सिर्फ एक पूर्णोपवास नियम से करना साप्ताहिक उपवास कहलाता है।

10.लघु उपवास- 3 से लेकर 7 दिनों तक के पूर्णोपवास को लघु उपवास कहते हैं।

11.कठोर उपवास- जिन लोगों को बहुत भयानक रोग होते हैं यह उपवास उनके लिए बहुत लाभकारी होता है। इस उपवास में पूर्णोपवास के सारे नियमों को सख्ती से निभाना पड़ता है।

12.टूटे उपवास- इस उपवास में 2 से 7 दिनों तक पूर्णोपवास करने के बाद कुछ दिनों तक हल्के प्राकृतिक भोजन पर रहकर दोबारा उतने ही दिनों का उपवास करना होता है। उपवास रखने का और हल्का भोजन करने का यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक कि इस उपवास को करने का मकसद पूरा न हो जाए।

13.दीर्घ उपवास- दीर्घ उपवास में पूर्णोपवास बहुत दिनों तक करना होता है जिसके लिए कोई निश्चित समय पहले से ही निर्धारित नहीं होता। इसमें 21 से लेकर 50-60 दिन भी लग सकते हैं। अक्सर यह उपवास तभी तोड़ा जाता है, जब स्वाभाविक भूख लगने लगती है अथवा शरीर के सारे जहरीले पदार्थ पचने के बाद जब शरीर के जरूरी अवयवों के पचने की नौबत आ जाने की संभावना हो जाती है।
योग- क्षेम मैं ही सम्हाल लेता हूं कृष्ण कहते हैं।

उतने भाव से, फिर जो भी हो, वही क्षेम है, ध्यान रखना आप! इसका यह मतलब नहीं है कि वैसे व्यक्ति को कभी मुसीबत न आएगी। इसका यह मतलब भी नहीं है कि उसे रोज सुबह चेक उसके हाथ में आ जाएगा! ऐसा कोई मतलब नहीं है। अगर इसे ठीक से समझेंगे, तो इसका मतलब यह है कि सुबह जो भी हाथ में आ जाएगा, वही उसका क्षेम है। जो भी उसे आ जाएगा हाथ में-भूख, तकलीफ, सुख, दुख-जो भी, वही परमात्मा के द्वारा दिया गया क्षेम है। वह उसे ही अपना क्षेम मानकर आगे चल पड़ेगा।

और योग और भी कठिन बात है। कृष्ण कहते हैं, वह भी मैं सम्हाल लेता हूं।

उसका मतलब? ऐसे उपासक को न साधना की जरूरत है, न साधन की जरूरत है; न तप की जरूरत है, न यश की जरूरत है, न किसी विधि की जरूरत है, न किसी व्यवस्था की जरूरत है। ऐसे व्यक्ति को परमात्मा से मिलने के लिए कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। अगर निष्काम उपासना उसका भाव है, तो मैं उसे मिल ही जाता हूं। वह मिलने का काम मैं सम्हाल लेता हूं।

ऐसी बहुत कथाएं हैं, बड़ी मीठी, और मनुष्य के अंतरतम के बड़े गहरे रहस्यों को लाने वाली, जब परमात्मा उपासक को खोजता हुआ उसके पास आया है। ये प्रतीक कथाएं हैं; और इनको समझने में भूल हो जाती है। इन प्रतीक कथाओं का अर्थ यह होता है कि वे एक इंगित करती हैं स्व तथ्य की ओर।

अगर उपासक निष्काम भाव में जीता हो, तो उसे परमात्मा को खोजने भी जाना नहीं पड़ता, परमात्मा ही उसे खोजता चला आता है। आ ही जाएगा। जैसे जब कोई गड्डा होता है, तो वर्षा का पानी भागता हुआ गड्डे में चला आता है। पहाड़ पर भी गिरता है, लेकिन पहाड़ वंचित रह जाते हैं। वे अपने से पहले से ही भरे हुए हैं। उनका अहंकार मजबूत है। गड्डा खाली है, निरहंकार है, पानी भागता हुआ आकर गड्डे में भर जाता है। ठीक ऐसे ही, जहां निष्काम भाव है उपासना का, परमात्मा भागता चला आता है, और हृदय को घेर लेता है।

लेकिन इतनी भी वासना की जरूरत नहीं है-इतनी भी-कि वह आए, कि वह मुझे मिले। यह आखिरी कठिन बात है, जो खयाल में ले लेनी चाहिए। क्योंकि भक्त अगर यह भी कहे कि तू मुझे मिल, तो भी वासना है।

वासना ही हमारे अहंकार का आधार है। जब तक हम कुछ मागते हैं, तभी तक मैं हूं। जब मैं कुछ भी नहीं मांगता, तो मेरे होने का कोई कारण नहीं रह जाता। मैं न होने के बराबर हो जाता हूं। एक खालीपन, एक शून्यता घटित हो जाती है। वही शून्यता उपासना है, वही शून्य परमात्मा की सन्निधि है।

यह जो व्यक्ति के भीतर वासना से छूटकर शून्य का निर्मित होना है, इस पर ध्यान दें। इस पर ध्यान दें, तो कोई कारण नहीं है, कोई कारण नहीं है कि जो हमारे लिए बड़े-बड़े शब्द मालूम पड़ते हैं, खाली और व्यर्थ, वे सार्थक और जीवंत न हो जाएं।

अर्थ अनुभव में होता है, शब्दकोश में नहीं। शब्दकोश में लिखा हुआ है अर्थ, लेकिन अर्थ अनुभव में होता है। और जब तक अनुभव न हो, तब तक हम कितनी ही बार सुनें परमात्मा, परमात्मा, परमात्मा, कुछ होगा नहीं। अर्थ कहां से प्रकट होगा?

इसलिए परमात्मा को छोड़े, उपासना पर ध्यान दें। उपासना से अर्थ निकलेगा। उपासना असली चीज है। जैसे अंधे आदमी से हम कहें कि तू प्रकाश की फिक्र छोड़, तू आंख का इलाज करवा। प्रकाश की फिक्र ही छोड़ दे। जिस दिन आंख ठीक हो जाएगी, उस दिन प्रकाश प्रकट हो जाएगा। ऐसे मैं आपसे कहूं कि आप फिक्र छोड़ दें परमात्मा की, फिक्र कर लें उपासना की। उपासना आंख है। आंख जिस दिन खुल जाएगी, उस दिन परमात्मा प्रकट हो जाएगा। वह यहीं मौजूद है।

उपासना का अर्थ क्या है? उपासना का अर्थ है, हम उसकी उपस्थिति को प्रतिपल स्मरण करते रहें, अनुभव करते रहें। कुछ भी घटित हो, वही हमें याद आए। कुछ भी घटित हो, पहली खबर हमें उसकी ही मिले। कुछ भी हो जाए चारों तरफ, नंबर दो पर दूसरी याद आए, पहली याद उसकी आए। रास्ते पर एक सुंदर चेहरा दिखाई पड़े, तो सुंदर चेहरा नंबर दो हो, पहले उसकी खबर आए। एक फूल खिलता हुआ दिखाई पड़े, फूल नंबर दो हो, पहले उसकी खबर आए। कोई गाली दे, गाली देने वाला बाद में दिखाई पड़े, पहले उसकी खबर आए।

आपकी जिंदगी बदलनी शुरू हो जाएगी, उसकी खबर को प्राथमिक बना लें। इसको ही मैं स्मरण कहता हूं। उसकी खबर को प्राथमिक बना लें। रास्ते पर पागल की तरह अगर राम-राम, राम-राम कहते हुए गुजरते रहें, तो कुछ भी न होगा। बहुत लोग गुजर रहे हैं। राम-राम कहने का सवाल नहीं, स्मरण का है।

जो भी हो, पहले राम, फिर दूसरी बात। सारी जिंदगी बदल जाएगा। अगर किसी ने गाली दी, और पहले राम का स्‍मरण तो फिर गाली का उत्‍तर गाली से देना मुश्‍किल हो जायेगा। कैसे? रात बीच में आ गया, अब गाली देना असंभव है। मौत भी आ जाए, पहले राम का स्मरण आए। फिर मौत में भी दंश न रह जाएगा। कुछ भी हो, राम पहले खड़ा हो जाए।

इसको ही मैं उपासना कह रहा हूं। चौबीस घंटे-उठते, बैठते, सोते-राम का, प्रभु का, परमात्मा की उपस्थिति का अनुभव होता रहे। धीरे- धीरे यह सघन हो जाता है। यह इतना सघन हो जाता है कि सब चीजें पिघलकर बह जाती हैं, यही सघनता रह जाती है। धीरे- धीरे सब चीजें ओझल हो जाती हैं, परमात्मा की चारों तरफ उपस्थिति हो जाती है।

फिर आप चलते हैं, तो परमात्मा आपके साथ चलता है। आप उठते हैं, तो परमात्मा आपके साथ उठता है। आप हिलते हैं, तो परमात्मा आपके साथ हिलता है। आप सोते हैं, तो उसमें सोते हैं। आप जागते हैं, तो उसमें जागते हैं। फिर चारों तरफ वही है। श्वास-श्वास में वही है। हृदय की धड़कन में वही है।

यह उपासना है। और मांग कुछ भी नहीं है। उससे चाहना कुछ भी नहीं है। और मजा यह है, जो उससे कुछ भी नहीं चाहता, उसे सब कुछ मिल जाता है। और जो उससे सब कुछ चाहता रहता है, उसे कुछ भी नहीं मिलता है।

वासना से भरा हुआ व्यक्ति दरिद्र ही मरता है, उपासना से भरा हुआ व्यक्ति सम्राट हो जाता है, इसी क्षण। वासना भिक्षा-पात्र है, मांगते रहो, मांगते रहो, वह कभी भरता नहीं। उपासना भिक्षा-पात्र को तोड़कर फेंक देना है। उपासना इस बात की खबर है कि वह हमारा ही है, उससे मांगना क्या है! वह मुझमें ही है, उससे मांगना क्या है! और जो भी उसने दिया है, वह सब कुछ है, अब और उसमें जोड़ना क्या है!🙏🕉🙏
…आँसु….एक सहज प्रार्थना है।तुम्हें अगर प्रभु का नाम सुनकर आँसु आते हैं, अगर तुम्हें उसके नाम को लेकर आँसु आते हैं तो जिन्दगी के यही पल सार्थक हैं, मंगलदायी हैं । ये पल प्रभु की कृपा हैं, ये पल उसकी करुणा का प्रसाद हैं ।

आँसुओं को रोकना मत, उनको बहने देना, उन आँसुओं में बहुत कुछ कूडा़ कर्कट तुम्हारा बह जाएगा । तुम पीछे तरोताजा अनुभव करोगे । जैसे कि कोई स्नान हो गया हो । आँखों से कंजूसी मत करना, बहने दो इन आँसुओं को, ये आँसु भीतर उठती किसी रसधार की खबर हैं । बस, इतना ख्याल रहे कि इन आँसुओं को अपनी मस्ती जरुर बना लेना । इन आँसुओं को अपना रस, अपना आनन्द बनाना है ।

उस प्रभु के लिए यही तुम्हारी सरल, सहज और निर्मल प्रार्थना है ।

जय श्री कृष्ण🙏​​​​​​🙏

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