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जानिए गण्डमूल नक्षत्र क्या होता है, मूल नक्षत्र में जन्मे लोग होते हैं बहुत भाग्यशाली

गण्डमूल नक्षत्रों के बारे में अक्सर सुनने में आता है कि, किसी बच्चे का जन्म मूल में हुआ है इसलिए पूजा-पाठ करवाना पड़ेगा 27 कुओं के पानी की आवश्यकता पड़ेगी, 27 वृक्षों के पत्ते चाहिए होंगे, 27 जानवरों के पैरों के नीचे की मिट्टी की जरूरत होगी, ऐसी ही कई चीजों की आवश्यकता के साथ मूल नक्षत्र के बारे में अंधविश्वास पहले हुए हैं ,मूल नक्षत्र के संबंध में कुछ बातें सत्य और कुछ बातें सत्य है सत्य चीजों के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं .

आइए सबसे पहले जानते हैं मूल या गण्डमूल नक्षत्र क्या होता है.

जन्म राशि वृत्त को 360 डिग्री में बांटा जाता है, जिनमें 12 राशियां और 27 नक्षत्र होते हैं, 360 डिग्री को यदि 12 सामान हिस्सों में बांटा जाए तो, प्रत्येक राशि के हिस्से में 30 डिग्री आता है , यही 30 डिग्री पूरी एक राशि मानी जाती है, इसी प्रकार से एक नक्षत्र का मान 13 अंश 20 कला होता है, 27 नक्षत्रों के साथ अभिजीत नक्षत्र को यहां नहीं जोड़ा गया है अभिजीत नक्षत्र को मिलाने के पश्चात यहां 28 नक्षत्र हो जाते हैं.

राशि और नक्षत्र जब एक स्थान पर समाप्त होते हैं तब, इस स्थिति को गण्ड नक्षत्र कहते हैं.और जब किसी स्थान से एक नया नक्षत्र प्रारंभ होता है तब, इस स्थिति को मूल की संज्ञा दी जाती है, साधारण बोलचाल की भाषा में कई ज्योतिष गण्ड और मूल नक्षत्र में बिना फेस समझाएं ही इन नक्षत्रों को गण्डमूल नक्षत्र कह देते हैं परंतु ऐसा नहीं है.

या तो नक्षत्र गण्ड होता है या मूल दोनों शब्द अलग-अलग होते हैं और अलग-अलग स्थिति के लिए प्रयोग किए जाते हैं गंड का अर्थ यहां पर किसी भी चीज के पूर्ण समापन से लिया गया है और मूल शब्द को यहां किसी चीज के निर्माण की प्रथम अवस्था को दर्शाने के लिए किया गया है,

उदाहरण= जैसे वृक्ष का मूल उसकी जड़ होती है.

आइए अब जानते हैं गण्डमूल नक्षत्रों के नाम .

27 नक्षत्रों में से रेवती, अश्वनी, अश्लेषा, मघा, जेस्टा अथवा मूल नक्षत्र की गंड मूल नक्षत्र के रूप में जाना जाता है, राशियों और नक्षत्रों के अंशु के अंत और उद्गम स्थान के आधार पर नक्षत्रों की कुल 6 स्थितियां बनती हैं जिनमें, से तीन गण्ड नक्षत्र कहलाती हैं और 3 मूल नक्षत्र कहलाती हैं.

आइए इस स्थिति को थोड़ा अच्छे से समझते हैं.

जब कर्क राशि तथा आश्लेषा नक्षत्र साथ में समाप्त होते हैं तो यहां से सिंह राशि और मघा नक्षत्र उदय होते हैं, इसी प्रकार से आश्लेषा नक्षत्र को गंड नक्षत्र और मघा को मूल नक्षत्र बोला जाता है,इसी प्रकार दूसरी स्थिति में वृश्चिक राशि और जस्ता नक्षत्र एक साथ समाप्त होते हैं और यहीं से धनु राशि और मूल नक्षत्र की शुरुआत होती है, तीसरी स्थिति मीन राशि और रेवती नक्षत्र एक साथ समाप्त होते हैं और मेष राशि और अश्विनी नक्षत्र की शुरुआत होती है.

अब यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि एक नक्षत्र में चार चरण होते हैं जिसमें कुछ ही ऐसे चरण हैं जो जातक और उसके परिवार के लिए अधिक अनिष्ट कारी होते हैं इसीलिए यहां जानना जरूरी है कि कौन से नक्षत्र के कौन से चरण हैं जिनमें बच्चे का पूजन बहुत ज्यादा आवश्यक हो जाता है.

1- पहला अश्विनी नक्षत्र का पहला चरण,2- आश्लेषा नक्षत्र का आचरण, 3- मघा नक्षत्र का पहला चरण, 4- ज्येष्ठ नक्षत्र का चौथा चरण, 5- पांच मूल नक्षत्र का पहला चरण, 6- रेवती नक्षत्र का चौथा चरण

ऊपर लिखी गई स्थितियों में जन्मे जातक का ही मूल पूजन किया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित करने के लिए आपको किसी ज्योतिषी के पास जाने की भी जरूरत नहीं होगी, इसके अलावा और भी कुछ स्थितियां होती हैं जिनके होने से गंड मूल पूजन की आवश्यकता नहीं होती.

1- लग्न को आधार बनाकर देखिए यदि जातक का जन्म वृषभ लग्न, सिंह लग्न, वृश्चिक लग्न या कुंभ लग्न में हुआ है तो, यहां पर गण्डमूल पूजा की आवश्यकता नहीं होती बल्कि इन नक्षत्रों में जन्मे बालक बहुत ही भाग्यशाली होते हैं.

2- लड़के का जन्म रात में हुआ हो और लड़की का जन्म दिन में हुआ हो तो भी गण्डमूल पूजन की आवश्यकता नहीं होती.

गण्डमूल पूजन जन्म के कितने दिनों बाद तक करवाना चाहिए.

जन्म के 27 वह दिन जब वही नक्षत्र जो कि जातक की जन्म कुंडली में हो दोबारा आता है तब यह पूजन किया जाता है.

इस पूजन में 27 वृक्षों के पत्ते, 27 को या फिर जलाशयों का जल, सात प्रकार के निर्धारित अनाज, सात खेड़ा की मृतिका द्वारा पूजन किया जाता है.

नक्षत्र के संबंधित देवता की पूजा भी यहां करने का प्रावधान है बचपन में पूजन नहीं करवा पाए और अब परेशान हैं तो उसके लिए यहां कुछ सटीक उपाय बताने जा रहे हैं उन्हें ध्यान से पढ़ें.
1- नक्षत्र का स्वामित्व बुद्ध के क्षेत्र में आता है तो गणेश जी का पूजन रोज करें.

बुध ग्रह के बीज मंत्रों का जाप करिए पन्ना धारण करें गौ माता को रोज हरा चारा खिलाएं सुबह सुबह के समय पौधों को पानी जरूर दें.

2- यदि नक्षत्र का स्वामित्व केतु के क्षेत्र में आता हूं तो नरसिंह भगवान का पूजन रोज करें,केतु देव के बीज मंत्रों का जाप करिए, लहसुनया धारण करें कुत्ते को रोज खाने की पहली रोटी खिलाएं, शनिवार के दिन भैरव बाबा को चार मुखी दीया अर्पण करें.

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