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मोक्ष क्या है?????

शास्त्रों और पुराणों के अनुसार जीव का जन्म और मरण के बंधन से छूट जाना ही मोक्ष है। भारतीय दर्शनों में कहा गया है कि जीव अज्ञान के कारण ही बार बार जन्म लेता और मरता है । इस जन्ममरण के बंधन से छूट जाने का ही नाम मोक्ष है ।

लेकिन मोक्ष मिलेगा लेकिन किसे?

जो धर्म के रास्ते पर चलेगा, जब आप शास्त्रों के बताये रास्ते पर चलेंगे तब पता चलेगा कि मोक्ष का मालिक, मोक्ष का अधिपति एकमात्र भगवान् है, परमात्मा परमेश्वर परमब्रह्म ही अमर पुरुष है और जो अमर होगा वही किसी को अमरता प्रदान कर सकता है, जो स्वयं में अमर नहीं होगा वह कैसे दूसरे को अमरत्त्व प्रदान करेगा?

जहाँ तक अमरता का विधान है एक परमब्रह्म-परमेश्वर ही ऐसा परम सत्ता-शक्ति है जो मोक्ष दे सकता है, और किसी को भी मुक्ति-अमरता यानी मोक्ष देने का अधिकार नहीं है, क्योंकि उसके पास क्षमता-शक्ति ही नहीं है और जिसके पास क्षमता-शक्ति नहीं होगी, जिसके पास कोई अधिकार नहीं होगा, वह किसी को कैसे दे सकता है मुक्ति और अमरता? ये अधिकार एकमात्र परमब्रह्म परमेश्वर का हैं।

सज्जनों, आप हम चाहे कितनी दौलत कमा लें, कितने आश्रम-धर्मशालायें बना लें, कितने भी बड़े पद या सत्ता पर रहें, कितने बड़े फिल्मी नायक बन जायें, कितने बड़े अविष्कारक बन जायें, लेकिन जीव की मंजिल वहाँ तक ही है जब तक शरीर में प्राण है, जीव चाहे कितना भी सुखमय जीवन जीयें, जीव के जीवन के सामने शरीर का जीवन है ही कितना? इसका अस्तित्त्व ही कितना है?

शरीर के जीवन की यदि तुलना कि जाये तो जीव और जीवन का अस्तित्व ही क्या है? मान लिजिये शरीर की उम्र एक सौ वर्ष हैं, मनुष्य के जीवन को यदि सौ वर्ष मान लिया जाये तो इस शरीर का सौ वर्ष वाला जीवन पल झपकते ही बीत जाता है, पच्चीस वर्ष तक सिखने में, पच्चीस वर्ष धन कमाने में, फिर पच्चीस वर्ष पंचायती और दुनियाँ में सभी की खोट निकालने में, बाकी के पच्चीस वर्ष कैसे जाते होंगे वह आप सब समझते हैं।

अब आप अपनी तुलना स्वयं से करें, आपको कैसा जीवन जीना है? आपके जीवन का उद्देश्य मोक्ष है या जन्म पर जन्म लेना, सनातन सत्य तो यही है कि मनुष्य जन्म के बाद कोई जन्म नहीं होता, यह आखिरी जन्म होता है, क्या आप वापिस जन्म नहीं ले ऐसा जीवन जी रहे हैं? आप का मन क्या कहता है, आप अपने जीवन के उद्देश्य को स्पष्ट किजिये, क्या हम स्थायी रूप से यहाँ आये है?क्या हमें मरना नहीं है? क्या हम अमर हैं? नहीं, बिल्कुल नहीं, हमें किसी भी समय इस शरीर को छोड़कर जाना पड़ सकता है।

भाई-बहनों, हमारे जीवन का कोई भरोसा नहीं है तो हम दुनियाँ की इस आपाधापी में लगे क्यों है? हम अपने उद्देश्य को कैसे भूल सकते हैं? इस शरीर के अल्प जीवन के पीछे कौन सी सत्ता काम कर रही है? हमको शक्ति कौन दे रहा है? कौन सी शक्ति हमारी सेवा कर रही है, याद रखिये सूर्य बन कर जीवन में प्रकाश कौन देता है, चन्द्रमा बन कर शीतलता कौन दे रहा है, पानी, हवा, अनाज कौन दे रहा है, भाई-बहनों परमात्मा ही शक्ति रूप में हमारे साथ है और वहीं हमारी जरूरतों को पूरा कर रहा है।

पूरी सृष्टि हमारी सेवा करती है, लेकिन हम किसकी सेवा करते हैं? अपनी खूद की, अपने परिवार की, अपने बाल-बच्चों की, दोस्तों! याद रखियें हम किसी की कोई सेवा नहीं कर रहे हैं, वह तो भगवान् ने हमको केवल निमित्त बनाया है, हमारा जीवन कितना है? हमें मालूम नहीं, हम कहाँ मरेंगे? मालूम नहीं, हम कितना जीयेंगे हमें मालूम नहीं? मतलब हमें अपने बारे में कुछ भी मालूम नहीं है, फिर यह हेकड़ी किस बात की, जब मौत का बुलावा आता है न तो सब कुछ यहीं का यहीं धरा का धरा रह जाता है।

नहीं कमायी हुई दौलत साथ में आती है और न अपना रूतबा, अगर साथ में आता है तो केवल अपने मनुष्य जीवन में किये हुये कर्म, अपने जीवन में किये गये अच्छे-बुरे कर्मो से हमारा अगला जीवन निर्धारित होगा, अगर कर्म सात्विकता से किये गये है और उद्देश्य सेवा का था, तो निश्चित ही हमको मोक्ष की प्राप्ति होगी, अगर कुछ हिसाब-किताब में कुछ कमी है तो जरूर हमें एक मौका मनुष्य जीवन का अवश्य मिलेगा, हम बड़े उद्देश्यों के लिये जियें है, तो अवश्य ही हमें सम्पन्न संस्कारवान परिवार में फिर सै जन्म मिलेगा।

लेकिन दोस्तों, अगर हमने बिना उद्देश्य के पशुओं वाला जीवन जिया है, सबको कष्ट पहुचांया है, धर्म विहीन जीवन जीया है, संस्कारों और मर्यादाओं को तिलांजलि देकर दानवों जैसा जीवन जिया है, तो निश्चित हमें बार-बार जन्म लेना होगा और बार-बार मरना होगा, और यह भी‌ सत्य है कि मनुष्य जीवन तो कदापि नहीं मिल सकता, जब हम मनुष्य ही बन कर ही आये थे तो अपना जीवन यश-मोज, सुख और वैभव में बीता दिया, लेकिन कभी शास्त्रों में वर्णित जीवन को जीने की कोशिश ही नहीं की।

सज्जनों! हमें अच्छा भला मानव जीवन मिला है, और मनुष्य जीवन को बर्बाद कर दे, इसको कौन सही कह सकता है? यह सब बातें सोचने एवं जानने-समझने की है, जब किसी व्यक्ति को फोड़ा होता है और विशेष दर्द होता है, तो अपने आराम के लिये डाक्टर के पास जाते हैं, वही डाक्टर रुपये लेकर के आपरेशन करता है, जो दर्द की वजह से उस भाग को छूआ भी नहीं जा सकता, वही भाग को डाक्टर चाकू से काटकर ओपरेशन करता है।

हम वह डाक्टर वाला दर्द इसलिये सह लेते हैं कि कुछ दिनों की पीड़ा सह लेने पर पीड़ा से हमेशा के लिये आराम मिलेगा, और हम सहज भाव से सही जीवन जीयेंगे, दर्द रहित, कष्ट रहित जीवन जीयेंगे, इसी प्रकार हम समाज के लिये, देश के लिये, धर्म के लिये, हम कुछ दर्द सह लेंगे तो हमें बार-बार जन्म लेकर मरना नहीं पड़ेगा, सज्जनों, क्या सोचते हो? जन्म में जीव को कोई पीड़ा नहीं होती, जरूर होती है, जन्म लेने की प्रक्रिया तो आप सब जानते ही हो।

जन्म के पहले माँ के पेट में मूत्र, विस्टा और खून में अमुक अवधि तक उस नर्क में रहना होता है, जब कहीं जन्म मिलता है, भाई-बहनों हम कर्म ही ऐसा करें कि हमें जन्म-मरण की पीड़ा से हमेशा के लिये छुटकारा मिल जायें, अगर हमें अपना मनुष्य जीवन सुधारना है तो वेद-शास्त्रों का स्वाध्याय करें, सद्गुरु की चरण में जायें, भगवान् के दिये हुये जीवन को बड़े उद्देश्यों के लिये जियें, तप करें, मानव मूल्यों में विश्वास करें, कोई जीव हत्या ना करें, किसी का दिल ना दुखायें, और समाज की सेवा करें।

भाई-बहनों, मैं आपको मोक्ष तो नहीं दे सकता हूंँ, मैं तो कुछ बातों से आपके संस्कारों को जागृत करने की कोशिश ही कर सकता हूँ, आपको जीवन उद्देश्यों से अवगत करा सकता हूंँ, अगर अध्यात्म के प्रति आप सोये हुये हो तो आपको जगाने की छोटी सी कोशिश कर सकता हूँ, और बिना जागे आपका भाग्य संवरने वाला नहीं, अगर मोक्ष के लिये आतुर हो तो सज्जनों! भागवत् कथा, रामकथा और भगवान् श्रीकृष्ण के मुखारविन्द से कही गयी गीता जैसे ग्रन्थों का श्रवीण करों, चिन्तन करों, मनन करों।

भगवान् के नाम का स्मरण, भगवान् ने बनायें सभी जीवों की सेवा, प्रभु की भक्ति, भगवान् के प्रति अटूट समर्पण तथा त्यागमय् और मर्यादामय् जीवन जीयें, जिससे हमारे जीवन में सात्विकता बढेगी और संस्कारों का जीवन में प्रवेश होने लगेगा, हमारी सनातन संस्कृति का बोध होने लगेगा और किये हुयें पापों से मुक्त हो सकेंगे, नये सात्विक कर्मों की बढ़ोतरी होगी और जीवन के आखिरी क्षण में भगवान् का नाम जिव्हा पर आ जाता है और हम परमगति को प्राप्त होते हैं, इस प्रकार आत्मा का परमात्मा में विलय हो जाता है, इसे ही जिसे मोक्ष कहते है।

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