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: शास्त्रों में तीन प्रकार की अष्टगन्ध का वर्णन है, जोकि इस प्रकार है-
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शारदा तिलक के अनुसार अधोलिखति आठ पदार्थों को अष्टगन्ध के रूप में लिया जाता है-

चन्दन, अगर, कर्पूर, तमाल, जल, कंकुम, कुशीत, कुष्ठ। यह अष्टगन्ध शैव सम्प्रदाय वालों को ही प्रिय होती है।

दूसरे प्रकार की अष्टगन्ध में अधोलिखित आठ पदार्थ होते हैं-

कुंकुम, अगर, कस्तुरी, चन्द्रभाग, त्रिपुरा, गोरोचन, तमाल, जल आदि।

यह अष्टगन्ध शाक्त व शैव दोनों सम्प्रदाय वालों को प्रिय है।

वैष्णव अष्टगन्ध के रूप में इन आठ पदार्थ को प्रिय मानते है-

चन्दन, अगर, ह्रीवेर, कुष्ठ, कुंकुम, सेव्यका, जटामांसी, मुर।

अन्य मत से अष्टगन्ध के रूप में निम्न आठ पदार्थों को भी मानते हैं-

अगर, तगर, केशर, गौरोचन, कस्तूरी, कुंकुम, लालचन्दन, सफेद चन्दन।

ये पदार्थ भली-भांति पिसे हुए, कपड़छान किए हुए, अग्नि द्वारा भस्म बनाए हुए और जल के साथ मिलाकर अच्छी तरह घुटे हुए होने चाहिएं।
🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏 : वैदिक यज्ञ चिकित्सा करें बीमारियां दूर

यज्ञ वायु मण्डल को शुद्ध कर रोगों महामारियों को दूर करता है। प्राचीन ऋषियों ने यज्ञ का ऐसा वैज्ञानिक सूक्ष्म अध्ययन किया था कि कृषि यज्ञ द्वारा वर्षा करा लेते थे, फसल को कीटो से बचाने के लिए यज्ञ करते थे पौधों की खाद देने के लिए यज्ञ धूम का प्रयोग करते थे।

यज्ञ चिकित्सा अत्यंत उत्कृष्ट थी। अथर्ववेद में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है। अथर्ववेद मंडल 3 सूक्त 11 मंत्र 2 के अनुसार किसी की आयु क्षीण हो चुकी है, जीवन से निराश हो चुका है। मृत्यु के बिल्कुल समीप पहुँच चुका है। इससे स्पष्ट होता है कि यज्ञ थैरेपी संसार की सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा पद्धति है जो मृत्यु के मुख से भी मनुष्य को छीन कर स्वस्थ बनाने की क्षमता रखती है।

अथर्ववेद में रोगोत्पादक कृमियों का वर्णन आता है हो श्वास, वायु, भोजन जाल द्वारा पहुंच कर अथवा काटकर शरीर को रोगी करते हैं। यज्ञ द्वारा कर्मी विनाशक औषधियों की आहुति देकर इस रोग कृमियों को विनष्ट कर रोगों से बचा जा सकता है। अग्नि में डाली हुई हवि रोगों को उसी प्रकार दूर बहा ले जाती है। जिस प्रकार नदी पानी के झागों को बहा ले जाती है। यज्ञ धूम से मकानों के अंधकार पूर्ण कोनों में संदूक के पीछे पाइप आदि सामानों के पीछे, दीवारों की दरारों में तथा गुप्त स्थानों में जो रोग कर्मी बैठे रहते है वे कर्मी औषधियों के यज्ञीय धूम से विनष्ट हो जाते है। दूध, पानी जाल वायु आदि के माध्यम से शरीर के अन्दर पहुंचे हुए रोग कर्मी भी नष्ट होकर शरीर को स्वस्थ बनाते है।
यज्ञीय हवि द्वारा रोगी के अन्दर प्राण फूंका जाता है। रोगों को दूर किया जाता है। उसे दीर्घ आयु प्रदान की जाती सकती है।

यज्ञ द्वारा रोग निवारण की प्रक्रिया यज्ञ से औषधी युक्त सामग्री और गौ घृत की आहुति से रोग निवारण गंध वायु मंडल में फ़ैल जाती है। वह श्वास द्वारा फैफड़ों में भरते है। उस वायु का रक्त से सीधा सम्पर्क होता है। रोग निवारक परमाणुओं को वह वायु रक्त में पहुंचा देता है। रक्त में विद्यमान रोग कर्मी मर जाते है। रक्त के अनेक दोष वायु में आ जाते हैं प्राणायाम द्वारा वायु को बाहर निकालते है तब उसके साथ वे दोष भी हमारे शरीर से बाहर निकल जाते है। इस प्रकार यज्ञ द्वारा संस्कृत वायु में बार-बार श्वास लेने शैने: शैने: रोगी स्वस्थ हो जाता है।

भस्म को पुष्पों फलों अन्नों की फसलों में कीटनाशक के रूप में बुरक कर लाभ उठाया जा सकता है।

रोगी को कोई पौष्टिक पदार्थ खिलाने से हानि का भय रहता है किन्तु उस पौष्टिक पदार्थ क होम कर उसका सार तत्व टोगी को श्वास द्वारा खिलाया जा सकता है। संसार कि कोई पैथी इस प्रकार का कार्य नहीं कर सकती है।
जो औषधी खाने से शरीर के अन्दर प्रविष्ट होकर रोग नष्ट करती है वही यज्ञ के माध्यम से घृत के परमाणुओं से प्रयुक्त होकर सूक्ष्म गैस बनकर श्वास के साथ शरीर में प्रविष्ट होकर इंजेक्शन की भांति तत्काल सीधी रक्त में मिलकर रोग को नष्ट करती है तथा फलदायक होती है अत: यज्ञ द्वारा चिकित्सा की विधि सर्वोतम है।

आयुर्वेद के विभिन्न ग्रंथों के प्रयोग से जो अग्नि में औषधी डालकर धूनी से ठीक होते है वह भी यज्ञ चिकित्सा का रूप है।

नीम के पत्ते, वच, कूठ, हरण, सफ़ेद सरसों, गूगल के चूर्ण को घी में मिलाकर धूप दें इससे विषमज्वर नष्ट हो जाता है।

नीम के पत्ते, वच, हिंग, सैंधानमक, सरसों, समभाग घी में मिलाकर धूप दें उससे व्रण के कर्मी खाज पीव नष्ट होते है।

मकोय के एक फल को घृत लगाकर आग पर डालें उसकी धूनी से आँख से कर्मी निकलकर रोग नष्ट हो जाते है। अगर, कपूर, लोवान, तगर, सुगन्धवाला, चन्दन, राल इनकी धूप देने से दाह शांत होती है।

अर्जुन के फूल बायविडंग, कलियारी की जड़, भिलावा, खस, धूप सरल, राल, चन्दन, कूठ समान मात्रा में बारीक़ कुटें इसके धूम से कर्मी नष्ट होते है। खटमल तथा सिर के जुएं भी नष्ट हो जाते है।

सहजने के पत्तों के रस को ताम्र पात्र में डालकर तांबे की मूसली से घोंटें घी मिलाकर धूप दें। इससे आँखों की पीड़ा अश्रुस्राव आंखो का किरकिराहट व शोथ दूर होता है।

असगन्ध निर्गुन्डी बड़ी कटेरी, पीपल के धूम से अर्श (बवासीर) की पीड़ा शांत होती है।

महामारी प्लेग में भी यज्ञ से आरोग्य लाभ होता है।

हवन गैस hawan Gas से रोग के कीटाणु नष्ट होते है। जो नित्य हवन करते हैं उनके शरीर व आसपास में ऐसे रोग उत्पन्न ही नहीं होते जिनमें किसी भीतरी स्थान से पीव हो। यदि कहीं उत्पन्न हो गया हो तो वह मवाद हवन गैस से शीघ्र सुख जाता है और घाव अच्छा हो जाता है।

हवन में शक्कर जलने से हे फीवर नहीं होता।

हवन में मुनक्का जलने से टाइफाइड फीवर के कीटाणु नष्ट हो जाते है।

पुष्टिकारक वस्तुएं जलने से मिष्ठ के अणु वायु में फ़ैल कर अनेक रोगों को दूर कर पुष्टि भी प्रदान करते है।

यज्ञ सौरभ महौषधि है। यज्ञ में बैठने से ह्रदय रोगी को लाभ मिलता है। गिलोय के प्रयोग से हवन करने से कैंसर के रोगी को लाभ होने के उदहारण भी मिलते है।

गूगल के गन्ध से मनुष्य को आक्रोश नहीं घेरता और रोग पीड़ित नहीं करते ।

गूगल, गिलोय, तुलसी के पत्ते, अतीस, जायफल, चिरायते के फल सामग्री में मिलाकर यज्ञ करने से मलेरिया ज्वर दूर होता है।

गूगल, पुराना गुड, केशर, कपूर, शीतलचीनी, बड़ी इलायची, सौंठ, पीपल, शालपर्णी पृष्ठपर्णी मिलाकर यज्ञ करने से संग्रहणी दूर होती है।

चर्म रोगों में सामग्री में चिरायता गूगल कपूर, सोमलता, रेणुका, भारंगी के बीज, कौंच के बीज, जटामांसी, सुगंध कोकिला, हाउवेर, नागरमौथा, लौंग डालने से लाभ होता है।

जलती हुई खांड के धुंए में वायु शुद्ध करने की बड़ी शक्ति होती है। इससे हैजा, क्षय, चेचक आदि के विष शीघ्र नष्ट हो जाते है।

डा. हैफकिन फ़्रांस के मतानुसार घी जलने से चेचक के कीटाणु मर जाते है।

मद्रास में प्लेग के समय डा. किंग आई एम. एस. ने कहा था घी और केशर के हवन से इस महामारी का नाश हो सकता है।

शंख वृक्षों के पुष्पों से हवन करने पर कुष्ठ रोग दूर हो जाते है।

अपामार्ग के बीजों से हवन करने पर अपस्मार (मिर्गी) रोग दूर होते है।

ज्वर दूर करने के लिए आम के पत्ते से हवन करें।

वृष्टि लाने के लिए बेंत की समिधाओं और उसके पत्रों से हवन करें।

वृष्टि रोकने के लिए दूध और लवण से हवन करें।

ऋतू परिवर्तन पर होने वाली बहुत सी बीमारियां सर्दी जुकाम मलेरिया चेचक आदि रोगों को यज्ञ से ठीक किया जा सकता है।
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: ज्योतिष में कालसर्प योग से प्राप्त फल
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ज्योतिष की परिभाषा में कालसर्प दो शब्दों से मिलकर बना है-काल और सर्प। जब सूर्यादि सातों ग्रह राहु(सर्प मुख) और केतु(सर्प की पूंछ) के मध्य आ जाते हैं तो कालसर्प योग बन जाता है। जिसकी कुण्‍डली में यह योग होता है उसके जीवन में काफी उतार चढ़ाव और संघर्ष आता है। इस योग को अशुभ माना गया है। कुण्‍डली में कालसर्प योग के अतिरिक्‍त सकारात्‍मक ग्रह अधिक हों तो व्‍यक्ति उच्‍चपदाधिकारी भी बनता है, परन्‍तु एक दिन उसे संघर्ष अवश्‍य करना पड़ता है। यदि नकारात्‍मक ग्रह अधिक बली हों तो जातक को बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ता है। यदि आपकी कुण्‍डली में कालसर्प दोष है तो घबराएं नहीं, इसके उपाय आसानी से किये जा सकते हैं और इससे होने वाले कष्टों से निजात पाया जा सकता है।

कालसर्प दोष के लक्षण
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रोजगार में दिक्कत या फिर रोजगार हो तो बरकत न होना। बाल्यकाल में किसी भी प्रकार की बाधा का उत्पन्न होना। अर्थात घटना-दुर्घटना, चोट लगना, बीमारी आदि का होना। विद्या अध्ययन में रुकावट होना या पढ़ाई बीच में ही छूट जाना। पढ़ाई में मन नहीं लगना या फिर ऐसी कोई आर्थिक अथवा शारीरिक बाधा जिससे अध्ययन में व्यवधान उत्पन्न हो जाए। घर-परिवार मांगलिक कार्यों के दौरान बाधा उत्पन्न होना।आए दिन घटना-दुर्घटनाएं होते रहना।घर में कोई सदस्य यदि लंबे समय से बीमार हो और वह स्वस्थ नहीं हो पा रहा हो साथ ही बीमारी का कारण पता नहीं चल रहा है। यदि परिवार में किसी का गर्भपात या अकाल मृत्यु हुई है तो यह भी कालसर्प दोष का लक्षण है। एक अन्य लक्षण कालसर्प दोष है संतान का न होना और यदि संतान हो भी जाए तो उसकी प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है। घर के किसी सदस्य पर प्रेतबाधा का प्रकोप रहना या पूरे दिन दिमाग में चिड़चिड़ापन रहना। इस दोष के चलते घर की महिलाओं को कुछ न कुछ समस्याएं उत्पन्न होती रहती हैं। विवाह में विलंब भी कालसर्प दोष का ही एक लक्षण है। यदि ऐसी स्थिति दिखाई दे तो निश्चित ही किसी विद्वान ज्योतिषी से संपर्क करना चाहिए। इसके साथ ही इस दोष के चलते वैवाहिक जीवन में तनाव और विवाह के बाद तलाक की स्थिति भी पैदा हो जाती है। रोज घर में कलह का होना। पारिवारिक एकता खत्म हो जाना।परिजन तथा सहयोगी से धोखा खाना, खासकर ऐसे व्यक्ति जिनका आपने कभी भला किया हो।

ग्रह स्थितियों अनुसार कालसर्प दोष की पहचान
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जब लग्न मेष, वृष या कर्क हो तथा राहु की स्थिति १, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ११ या १२ वें भाव में हो। तब उस स्थिति में जातक स्त्री, पुत्र, धन-धान्य व अच्छे स्वास्थ्य का सुख प्राप्त करता है।जब राहु छठे भाव में अवस्थित हो तथा बृहस्पति केंद्र में हो तब जातक का जीवन खुशहाल व्यतीत होता है।जब राहु व चंद्रमा की युति केंद्र (१,४,७,१० वें भाव) या त्रिकोण में हो तब जातक के जीवन में सुख-समृद्धि की सारी सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं। जब राहु के साथ बृहस्पति की युति हो तब जातक को तरह-तरह के अनिष्टों का सामना करना पड़ता है। जब राहु की मंगल से युति यानी अंगारक योग हो तब संबंधित जातक को भारी कष्ट का सामना करना पड़ता है। जब राहु के साथ सूर्य या चंद्रमा की युति हो तब भी जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, शारीरिक व आर्थिक परेशानियाँ बढ़ती हैं।जब कालसर्प योग में राहु के साथ शुक्र की युति हो तो जातक को संतान संबंधी ग्रह बाधा होती है।जब लग्न व लग्नेश पीड़ित हो, तब भी जातक शारीरिक व मानसिक रूप से परेशान रहता है।चंद्रमा से द्वितीय व द्वादश भाव में कोई ग्रह न हो। यानी केंद्रुम योग हो और चंद्रमा या लग्न से केंद्र में कोई ग्रह न हो तो जातक को मुख्य रूप से आर्थिक परेशानी होती है।जब राहु के साथ चंद्रमा लग्न में हो और जातक को बात-बात में भ्रम की बीमारी सताती रहती हो, या उसे हमेशा लगता है कि कोई उसे नुकसान पहुँचा सकता है या वह व्यक्ति मानसिक तौर पर पीड़ित रहता है।जब अष्टम भाव में राहु पर मंगल, शनि या सूर्य की दृष्टि हो तब जातक के विवाह में विघ्न, या देरी होती है। यदि जन्म कुंडली में शनि चतुर्थ भाव में और राहु बारहवें भाव में स्थित हो तो संबंधित जातक बहुत बड़ा धूर्त व कपटी होता है। इसकी वजह से उसे बहुत बड़ी विपत्ति में भी फंसना पड़ जाता है। जब राहु के साथ शनि की युति यानी नंद योग हो तब भी जातक के स्वास्थ्य व संतान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसकी कारोबारी परेशानियाँ बढ़ती हैं।जब राहु की बुध से युति अर्थात जड़त्व योग हो तब भी जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसकी आर्थिक व सामाजिक परेशानियाँ बढ़ती हैं।जब लग्न में राहु-चंद्र हों तथा पंचम, नवम या द्वादश भाव में मंगल या शनि अवस्थित हों तब जातक की दिमागी हालत ठीक नहीं रहती। उसे प्रेत-पिशाच बाधा से भी पीड़ित होना पड़ सकता है।जब दशम भाव का नवांशेश मंगल/राहु या शनि से युति करे तब संबंधित जातक को हमेशा अग्नि से भय रहता है और अग्नि से सावधान भी रहना चाहिए।जब दशम भाव का नवांश स्वामी राहु या केतु से युक्त हो तब संबंधित जातक मरणांतक कष्ट पाने की प्रबल आशंका बनी रहती है।जब राहु व मंगल के बीच षडाष्टक संबंध हो तब संबंधित जातक को बहुत कष्ट होता है। वैसी स्थिति में तो कष्ट और भी बढ़ जाते हैं जब राहु मंगल से दृष्ट हो।जब लग्न में मेष, वृश्चिक, कर्क या धनु राशि हो और उसमें बृहस्पति व मंगल स्थित हों, राहु की स्थिति पंचम भाव में हो तथा वह मंगल या बुध से युक्त या दृष्ट हो, अथवा राहु पंचम भाव में स्थित हो तो संबंधित जातक की संतान पर कभी न कभी भारी मुसीबत आती ही है, अथवा जातक किसी बड़े संकट या आपराधिक मामले में फंस जाता है।जब दशम भाव में मंगल बली हो तथा किसी अशुभ भाव से युक्त या दृष्ट न हो। तब संबंधित जातक पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।जब मंगल की युति चंद्रमा से केंद्र में अपनी राशि या उच्च राशि में हो, अथवा अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट न हों। तब कालसर्प योग की सारी परेशानियां कम हो जाती हैं।जब शुक्र दूसरे या १२ वें भाव में अवस्थित हो तब जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।जब बुधादित्य योग हो और बुध अस्त न हो तब जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।जब लग्न व लग्नेश सूर्य व चंद्र कुंडली में बलवान हों साथ ही किसी शुभ भाव में अवस्थित हों और शुभ ग्रहों द्वारा देखे जा रहे हों। तब कालसर्प योग की प्रतिकूलता कम हो जाती है।जब राहु अदृश्य भावों में स्थित हो तथा दूसरे ग्रह दृश्य भावों में स्थित हों तब संबंधित जातक का कालसर्प योग समृध्दिदायक होता है। जब राहु छठे भाव में तथा बृहस्पति केंद्र या दशम भाव में अवस्थित हो तब जातक के जीवन में धन-धान्य की जरा भी कमी महसूस नहीं होती।जब शुक्र से मालव्य योग बनता हो, यानी शुक्र अपनी राशि में या उच्च राशि में केंद्र में अवस्थित हो और किसी अशुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट न हो रहा हो। तब कालसर्प योग का विपरत असर काफी कम हो जाता है।जब शनि अपनी राशि या अपनी उच्च राशि में केंद्र में अवस्थित हो तथा किसी अशुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट न हों। तब काल सर्प योग का असर काफी कम हो जाता है।
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जन्म कुंडली मे राहु का खराब होना-

जब कुन्डली में राहु खराब होता है,तो दिमागी तकलीफ़ें बढ जाती है,बिना किसी कारण के दिमाग में पता नही कितनी टेन्सन पैदा हो जाती है,बिना किसी कारण के सामने वाले पर शक किया जाने लगता है,और जो अपने होते हैं वे पराये हो जाते है,और जो पराये और घर को बिगाडने वाले होते है,उन पर जानबूझ कर विश्वास किया जाता है,घर के मुखिया का राहु खराब होता है,तो पूरा घर ही बेकार सा हो जाता है,संतान अपने कारणो से आत्महत्या तक कर लेती है,पुत्र या पुत्र वधू का स्वभाव खराब हो जाता है,वह अपने शंकित दिमाग से किसी भी परिवार वाले पर विश्वास नही कर पाती है,घर के अन्दर साले की पत्नी,पुत्रवधू, मामी,भानजे की पत्नी,और नौकरानी इन सबकी उपाधि राहु से दी जाती है,कारण केतु का सप्तम राहु होता है,और राहु के खराब होने की स्थिति में इन सब पर असर पडना चालू हो जाता है,राहु के समय में इन लोगों का प्रवेश घर के अन्दर हो जाता है,और यह लोग ही घर और परिवार में फ़ूट डालना इधर की बात को उधर करना चालू कर देते है,साले की पत्नी घर में आकर पत्नी को परिवार के प्रति उल्टा सीधा भरना चालू कर देती है,और पत्नी का मिजाज गर्म होना चालू हो जाता है,वह अपने सामने वाले सदस्यों को अपनी गतिविधियों से परेशान करना चालू कर देती है,उसके दिमाग में राहु का असर बढना चालू हो जाता है,और राहु का असर एक शराब के नशे के बराबर होता है,वह समय पर उतरता ही नही है,केवल अपनी ही झोंक में आगे से आगे चला जाता है,उसे सोचने का मौका ही नही मिलता है,कि वह क्या कर रहा है,जबकि सामने वाला जो साले की पत्नी और पुत्रवधू के रूप में कोई भी हो सकता है,केवल अपने स्वार्थ के लिये ही अपना काम निकालने के प्रति ही अपना रवैया घर के अन्दर चालू करता है,उसका एक ही उद्देश्य होता है,कि राहु की माफ़िक घर के अन्दर झाडू लगाना और किसी प्रकार के पारिवारिक दखलंदाजी को समाप्त कर देना,गाली देना,दवाइयों का प्रयोग करने लग जाना,शराब और तामसी कारणो का प्रयोग करने लग जाना,लगातार यात्राओं की तरफ़ भागते रहने की आदत पड जाना,जब भी दिमाग में अधिक तनाव हो तो जहर आदि को खाने या अधिक नींद की गोलियों को लेने की आदत डाल लेना,अपने ऊपर मिट्टी का तेल या पैट्रोल डालकर आग लगाने की कोशिश करना,राहु ही वाहन की श्रेणी में आता है,उसका चोरी हो जाना,शराब और शराब वाले कामो की तरफ़ मन का लगना,शहर या गांव की सफ़ाई कमेटी का सदस्य बन जाना,नगर पालिका के चुनावों की तरफ़ मन लगना,घर के किसी पूर्वज का इन्तकाल हो जाना और अपने कामों की बजह से उसके क्रिया कर्म के अन्दर शामिल नही कर पाना आदि बातें सामने आने लगती है,जब व्यक्ति इतनी सभी बातो से ग्रसित हो जाता है,तो राहु के लिये वैदिक रीति से काफ़ी सारी बातें जैसे पूजा पाठ और हवन आदि काम बताये जाते है,जाप करने के लिये राहु के मन्त्रों को बताया जाता है।

परिवार में चन्द्रमा के खराब होने की पहिचान होती है कि घर के किसी व्यक्ति को ह्रदय वाली बीमारी हो जाती है,और घर का पैसा अस्पताल में ह्रदय रोग को ठीक करने के लिये जाने लगता है,ह्रदय का सीधा सा सम्बन्ध नशों से होता है,किसी कारण से ह्रदय के अन्दर के वाल्व अपना काम नही कर पाते है,उनके अन्दर अवरोध पैदा हो जाता है,और ह्रदय के अन्दर आने और जाने वाले खून की सप्लाई बाधित हो जाती है,लोग अस्पताल में जाते है,लाखो रुपये का ट्रीटमेंट करवाते है,दो चार साल ठीक रहते है फ़िर वहीं जाकर अपना इलाज करवाते है,मगर हो वास्तब में होता है,उसके ऊपर उनकी नजर नही जाती है,ह्रदय रोग के लिये चन्द्रमा बाधित होता है,तभी ह्रदय रोग होता है,और चन्द्रमा का दुश्मन लालकिताब के अनुसार केवल बुध को ही माना गया है,कुन्डली का तीसरा भाव ही ह्रदय के लिये जिम्मेदार माना जाता है,इसका मतलब होता है,कि कुन्डली का तीसरे भाव का चन्द्रमा खराब है,इस के लिये बुध का उपाय करना जरूरी इसलिये होता है कि बुध ही नशों का मालिक होता है,और किसी भी शारीरिक प्रवाह में अपना काम करता है,बुध के उपाय के लिये कन्या भोजन करवाना और कन्या दान करना बहुत उत्तम उपाय बताये जाते है,इसके अलावा तुरत उपाय के लिये कन्याओं को हरे कपडे दान करना और कन्याओं को खट्टे मीठे भोजन करवाना भी बेहतर उपाय बताये जाते है.

स्नायु रोगों के लिये बुध को ही जिम्मेदार माना जाता है,संचार का मालिक ग्यारहवां घर ही माना जाता है,आज के वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया है,किकि किसी भी प्रकार से ग्यारहवां घर शनि का घर नही है,शनि कर्म का दाता है,और शनि के लिये संचार का मालिक होना नही के बराबर है,युरेनस को संचार का मालिक कहा गया है,और ग्यारहवा,सातवां और तीसरा घर आपस में मुख्य त्रिकोण भी बनाते है,इस प्रकार से यह त्रिकोण जीवन साथी या साझेदार के साथ अपना लगाव भी रखता है,स्नायु रोग का मुख्य कारण अति कामुकता होती है,वीर्य जो शरीर का सूर्य होता है,और इस सूर्य का सहगामी और सबसे पास रहने वाला ग्रह बुध ही इसे संभालकर रखता है,अगर किसी प्रकार से यूरेनस की चाल इसकी समझ मे आजाता है,तो यह शरीर के अन्दर लगातार चलता रहता है,इसके चलते ही और अपने को प्रदर्शित करने के चक्कर में यह उल्टी सीधी जगह पर चला जाता है,दिमाग में विरोधी सेक्स के प्रति अधिक चाहत रहने से यह अपने को अपने स्थान पर रोक नही पाता है,और खराब हो जाता है,इसके कारण ही नशों में दुर्बलता और की चमक चली जाती है,हाथ पैर और शरीर के अवयव सुन्न से हो जाते है,दिमाग में कितनी ही कोशिशों के बाद भी कोई बात नही बैठ पाती है,याददास्त कमजोर हो जाती है,कोई भी किया गया काम कुछ समय बाद दिमाग से निकल जाता है,उचित उपाय करके समस्या पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
: पत्नी के सौन्दर्य के सम्बन्ध में जानना हो तो लड़के की कुंडली में सातवें भाव को ध्यान से देखना चाहिए| अगर सातवें भाव का स्वामी कोई शुभ ग्रह हो और वह उसी भाव में उपस्थित हो, उस पर किसी क्रूर ग्रह की दृष्टि भी न हो तो पत्नी सुन्दर सौम्य और सुशील मिलती है|
सातवें भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में उपस्थित हो तो इस स्थति में भी रूपवती पत्नी मिलती है|
क्शारीरिक सम्बन्ध कैसे रहेंगे यह कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति से तय होता है, यदि वह उच्च भाव में है तो निसंदेह शयनकक्ष का माहौल मधुर और प्रेमिल रहेगा| सप्तम भाव में शुक्र उपस्थित रहे तो पत्नी सुन्दर मिलने की संभावना प्रबल रहती है| अगर सूर्य तुला या मकर राशि का न हो तो सातवें में भाव में शनि, राहू, केतु के होने से भी फर्क नहीं पड़ता| इसके लिए जानकार कुंडली विशेषज्ञ से परामर्श ली जा सकती है|
अगर सातवें भाव में वृषभ या तुला राशि हो, तो इस स्थिति में भी सुन्दर पत्नी मिलती है| ऐसा होने पर शादी के बाद किस्मत बुलंद हो जाती है, चमत्कारिक रूप से भाग्योदय होता है| इसके पीछे कारण यह है कि पत्नी सुन्दर होने के साथ चतुर, मधुर वचन बोलने वाली, कला से प्रेम करने वाली और संस्कारी होती है| ऐसा जीवन साथी मिले तो भाग्योदय होना स्वाभाविक ही है|
पतिव्रता पत्नी योग

सबसे पहले पतिव्रता शब्द के अर्थ को समझे, इसे हम प्राचीन मान्यता के अनुसार ग्रहण नहीं कर सकते| प्राचीन काल में स्त्रियाँ अपने को पतिव्रता सिद्ध करने के लिए पति की मृत्यु के बाद उसकी चिता पर बैठकर आत्मदाह कर लेती थीं| आज यह संभव नहीं है| वर्तमान में इसका अर्थ व्यापक है अर्थात ऐसी पत्नी जो अपने पति को समझे, उसकी परेशानी को समझे, विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाने की कुप्रवृत्ति न हो, कठोर वचन न बोलती हो और किसी भी परिस्थिति में पति को त्यागने का विचार मन में न लाती हो| इसके साथ ही पतियों की जिम्मेदारी होती है कि सहचरी की भावनओं को समझे, उसके साथ हिंसक व्यवहार न करे, उसे नीचा न दिखाए आदि| कुछ लड़कियों के कुंडली में ही यह दर्ज होता है कि वह पति के प्रति समर्पित रहेगी चाहे कुछ भी हो जाए वह साथ नहीं छोड़ेगी| उदाहरण के लिए कुछ प्रमुख योगों का विवरण इस प्रकार है –

अगर सप्तम भाव का स्वामी चौथे भाव में या दसवें भाव में उपस्थित हो तो वह लड़की अपने पति से बहुत प्यार करती है|
सप्तम भाव का स्वामी गुरु के साथ हो या फिर सातवें भाव में ही उपस्थित हो साथ ही गुरु पर शुक्र या बुद्ध की दृष्टि हो तो लड़की जीवन भर अपने पति से बंधी रहती है|
लग्नेश और शुक्र एक साथ रहे साथ ही उन पर गुरु की दृष्टि हो तो लड़की अपने पति के अलावा किसी अन्य के बारे में सोच भी नहीं सकती|
सप्तमेश उच्च स्थिति में गुरु के साथ हो, और चौथे भाव का स्वामी किसी भी दो शुभ ग्रह के बीच उपस्थित हो तो यह स्थति भी आदर्श है| जन्मकुंडली में ऐसा योग होने का अर्थ है कि लड़की जीवन भर अपने पति के प्रति ईमानदार रहेगी और उसी से प्रेम करेगी|
अगर सातवें भाव में मंगल शुक्र के नवांश और उन पर किसी शुभ गृह की दृष्टि भी हो तो ऐसी लड़की अपने पति से बहुत प्रेम करती है|

मनचाही पत्नी पाने के उपाय

कहते हैं –हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले| यानी बात बात जीवनसाथी की हो तो लड़कों का मन अनंत कल्पनाओं से भर जाता है| इसलिए सबसे पहले अपने स्वाभाव का, जीवन शैली, आर्थिक स्थिति आदि के बारे में विचार करते हुए सोचें कि किस प्रकार की स्त्री के साथ आप निभा पाएंगे, एक तरफ़ा अपेक्षा जीवन को दुखो से भर देता है| इसलिए व्यावहारिक सोच रखते हुए तय करें आपको कैसी पत्नी चाहिए और निम्नलिखित उपाय करें –

एक पीढ़े पर नया लाल कपड़ा बिछा दें, उस पर देवी दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें या चित्र रखे, पंचोपचार विधि से पूजा करें, लाल गुलाब इत्रादि अर्पित करें और मंत्र का जाप करें –
पत्नीं मनोरमां देहि, मनोवृत्तानुसारिणीम

तारिणी दुर्ग संसारसागरस्य कुलोद्भावाम||

मनचाही पत्नी पाने के लिए सुन्दर काण्ड का पाठ भी लाभकारी होता है| किसी पीढ़े को धो कर उस पर नया लाल कपड़ा बिछा लें उस पर हनुमानजी का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें और लगातार नौ दिनों तक पाठ करें| इसमें भी पहले दिन एक बार दूसरे दिन दो बार तीसरे दिन तीन बार, इसी क्रम से नौवें दिन नौ बार पाठ करें| गुड़ चने का भोग लगाएं| इस पूजा से बार बार सगाई टूट रही हो तो भी सुन्दर सुशील पत्नी मिलती है|
अंततः कुछ बातों का ध्यान रखें कि असंभव गुणों से युक्त स्त्री पत्नी के रूप कल्पना न करें निराशा होगी तथा खुद को भी परखें| तालमेल सहयोग और प्रेम अपनी तरफ से भी रखें जीवन सुखमय रहेगा|

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जानिए जन्म कुंडली में वृहस्पति (गुरु) ग्रह के फल और प्रभाव के बारे में…

1.जातक का दाम्पत्य जीवन सुखी नहीं रहता है| ऐसा जातक दानशील और दयावान होता है| जातक सम्मान चाहता है| शारीरिक सुख शांति से अपूर्ण रहता है| जातक की कन्याएं होंगी, स्त्री और रत्न की अधिकता होगी| सौंदर्य बोध अधिक होगा| यदि गुरु नीच और कुसंग होंगे तो शुभफलों में कमी होगी| पुत्र संतान अच्छी नहीं होगी|

  1. गुरु के द्वितीय भाव में रहने से व्यक्ति पाक कला में कुशल होता है| स्वयं के बनाए भोजन से ही संतुष्ट होता है, दूसरों के बनाए भोजन में त्रुटियां निकालता है| बहुत बोलता है सुनता कम है| एक पैसा बचने के चक्कर में एक लाख की हानि उठा सकता है| सदैव शत्रुओं को परस्त करने के बारे में सोंचता है| ऐसे जातक दीर्घ आयु, अति घमंडी और निरोगी होते है| चिंतन करने वाली बातों पर चिंतन नहीं करता जिस पर न विचार करना हो उस पर चिंतन करता है|
  2. तृतीय भाव में गुरु के होने से जातक का जीवन संघर्षपूर्ण रहता है| जीविका के लिए किये गए प्रयासों में सफलता नहीं मिलती है| कान में विकार रहता है| पति या पत्नी सुसंस्कारित होते है| बड़े परिवार के भरण पोषण का उत्तरदायित्व होता है| संतान उन्नतिशील होती है| स्वयं का भाग्य वर्षवर्षा ऋतु में बोये गए धान की तरह होता है| जन्म स्थान से स्थानांतरण हो जाता है|
  3. चौथे स्थान पर गुरु के होने से धन पर्याप्त मात्र में होता है, पत्नी तेज़ होती है|बहन को कष्ट रहता है| ह्रदय का रोग होता है| कृष्ण वर्ण के लोग धूम्रपान करने वाला होते है और कम बोलते है|
  4. पंचम भाव में गुरु होने से और सभी तारों के अधिपति चन्द्रमा दशम भाव में जाने पर ऐसे व्यक्ति में पराविद्या का ज्ञान होता है| जातक को पत्नी और परिवार से अलग रहना पड़ता है| संतान नहीं होने का योग, आँख में विकृति, शरीर भरा नहीं होता है, हस्त लिपि अच्छी नहीं होती है| कड़ुआ बोलने वाला और दार्शनिक विचारों वाला होता है|
    6.छठवें भाव में गुरु होने से जातक ज्ञानी, सम्मानजनक, धर्म में आस्था, पुत्र द्वारा अपयश, नेत्रों में पीड़ा होती है| जातक की पत्नी अधिक सुन्दर नहीं होती है, रोगी होती है| बहु पुत्रों की माता होती है| जातक को यश कीर्ति प्रख्याति मिलती है और जातक लेखक होता है|
  5. सप्तम भाव में गुरु का नाम सप्तघृते होने से जातक सामंजस्यकारी, बुद्धि एवं धैर्य पृथ्वी के सामान सहनसील और धैर्यशाली होता है| जातक को पथरी और गुर्दे का विकार बार-बार होता है| प्रतिदिन धनागमन होता है| जातक का दाम्पत्य जीवन अधूरा रहता है| किन्तु बड़े बुज़ुर्गों की, गुरु की और देवी देवताओं की सेवा करने से दाम्पत्य जीवन सुखपूर्ण होता है| दीनदुखियों की सहायता करने से दाम्पत्य जीवन के दोष दूर हो जाते है|
  6. रंध्र भाव में वृहस्पति होने से आवाज़ रौद्रकारी, उग्र और व्यग्र नज़र आता है| चक्रवात की तरह विपत्तियाँ आती है| बहुत बोलनेवाला और चटपटे स्वाद पसंद करता है| किसी दीर्घ कालीन रोग से ग्रसित रहता है| गृहक्लेश में सम्मिलित रहता है| क्षण भर में रुष्ट और क्षण भर में प्रसन्न वाला होता है| क्रोधी और व्यंग करने वाला मन का काल होता है|
  7. धर्म भाव में गुरु होने से जीवन का पूर्वार्ध कष्टमय बीतता है| किसी इष्ट का वियोग होता है| संसार में बहुत अधिक परिश्रम और भ्रमित रहने का विधान होता है| कई नगरों में जीविका के लिए भ्रमण का योग होता है, तब मणि के सामान जीवन में प्रतिभा और कीर्ति गौरव बढ़ने लगती है| धर्म में अविरुचि होती है| संतान सौम्य और सुन्दर होती है|
  8. दशम भाव में वृहस्पति होने से व्यक्ति लौह के सामान कर्मवान और धर्मवान होता है| पुत्र और कन्याएं पर्याप्त होती है| ह्रदय का रोगी होता है| भोजन अधिक करते है और भोज भी देते है|आग में ईंट की भांति संघर्ष करते है और संघर्ष करते-करते एक बड़ा साम्राज्य बनाते है| जातक बड़ा व्यापार करने वाला और व्यसन से विरक्त रहता है|
  9. एकादश भाव में गुरु होने से उत्तम बुद्धि किन्तु क्षीण स्मरण शक्ति, धैर्य, शालीनता और सद्विचार जैसे गुण होते है| स्वजनों से विरोध, कुल में विकृति तथा दाम्पत्य जीवन नीरस होता है| जातक अधिक बोलने वाला और अधिक अपेक्षा रखने वाल होता है| अनेक संतान पिता के लिए अनिष्ट कारक होते है| जीवन साथी मधुमेह के रोग से पीड़ित होता है|
  10. द्वादश भाव में गुरु के होने से बुद्धि में ज्ञान की गंगा बहती रहती है| जातक घर का ज्येष्ठ होता है| सहानुभूति करने में सबसे श्रेष्ठ होता है| परिजनों से दूर प्रवास करता है| पेट की पाचन तंत्र क्रिया कमज़ोर होती है| ऐसे जातक पीठ पीछे सबकी निंदा करते है सामने मित्रवत व्यवहार करते है| ईंट की तरह बलिदान देने वाला होता है|
    : जानिये प्रेम विवाह के कुछ खास योग
    ✍🏻प्रेम विवाह सुनते ही मनको अति प्रसन्नता होती है, युवा वर्ग इसे बहुत ही प्रेक्टिकल लेते है, जो इस ज़माने में हर युवा वर्ग का सपना और आकर्षण है, किन्तु इसका मतलब परंपरागत लोगो के लिए उल्टा है वे इसे कुछ झंजत समझते है, सब अपनी अपनी सोच है कोई अपनी जगह गलत नहीं, अपनी पसंद से विवाह करना ये व्यक्तिगत सोच पर हे और कुंडली में कुछ बनते योगो पर निर्धारितहोता है:- १.-किसी भी जातक की कुंडली में पंचम भाव से प्रणय संबंधों का पता चलता है जबकि सप्तम भाव विवाह से संबंधित है। शुक्र सप्तम भाव का कारक ग्रह है अतः जब पंचमेश-सप्तमेश एवं शुक्र का शुभ संयोग होता है तो पति-पत्नी दोनों में घनिष्ठ स्नेह संबंध होता है। ऐसी ग्रह स्थिति में प्रेम विवाह भी संभव है। २.-शुक्र सप्तमेश से संबंधित होकर पंचम भाव में बैठा हो तो भी प्रेम विवाह संभव होता है। ३.-पंचमेश व सप्तमेश की युति या राशि परिवर्तन हो तो भी प्रेम विवाह संभव होता है। ४.-मंगल, शुक्र का परस्पर दृष्टि प्रेम विवाह का परिहोना है। ५.-पंचम या सप्तम भाव में सूर्य एवं हर्षल की युति होने पर भी प्रेम विवाह हो सकता है। इस प्रकार के योग यदि जन्म कुंडली में होते हैं, तब प्रेम विवाह के योग बनते हैं। यह जरूरी नहीं है कि प्रेम विवाह मतलब जाति से बाहर विवाह होना।
    “कुंडली परामर्श के लिए संपर्क करें:-
    ✍🏻9839760662 : फलित के दो मूल आधार हैं:-

ज्योतिष में फलित के लिए दो मूल आधार हैं।

1-विभिन्न ग्रहों का किसी विशेष राशि पर आसीन होकर किसी अन्य ग्रह से संयोग करना या न करना।

2-विभिन्न ग्रहों का किसी विशेष भाव पर आसीन होकर किसी अन्य ग्रह से संयोग करना या न करना।

उक्त सिध्दांत का विस्तार:-


किसी भी ग्रह या ग्रहों के किसी विशेष राशि पर आसीन होकर योगकारक बनने के लाखों योग हमारे होराग्रंथों में उपलब्ध हैं।

अब यह ज्योतिषियों की योग्यता पर निर्भर है कि किसी जन्मकुण्डली में उपलब्ध कितने योग/योगों को हम अपनी स्मृति से पकड़ पाते हैं।

लेकिन, किसी ग्रह को किसी विशेष भाव पर आसीन देख कर उनके शुभयोगकारक या अशुभयोगकारक होने की पहचान कर लेना उतना कठिन नही है।

जैसे:-


1-जन्मकुण्डली में किसी केन्द्रभाव (1,4, 7, 10) का स्वामिग्रह यदि किसी कोणभाव (1,5 या 9) में आसीन हो जाता है तो निश्चित ही वह ग्रह शुभकारक बन जाता हैं।
जहां भी उसका दृष्टि संबंध होगा शुभ ही होगा।

2-जन्मकुण्डली में किसी कोण (1,5 या 9) भाव का स्वामिग्रह यदि यदि किसी केन्द्रभाव (1,4, 7 या 10) में आसीन हो जाता है तो निश्चित ही वह शुभकारक ग्रह बन जाता हैं।

3-यदि किसी भाव का स्वामिग्रह लग्न से 6,8 या 12 ( दुखभावों ) में आसीन हो जाता है तो वह अपनी 50% शुभता ( स्थिर कारकता एवं भावेश का फल दोनों ) खो देता है।

यदि इस ग्रह पर किसी भी क्रूर/पापी या लग्न अनुसार अकारक बने ग्रह की दृष्टि पड़े तो वह ग्रह अपनी कुल 75% तक (अपने दोनों भावों की ) शुभता खो देता है।

4-इसी प्रकार यदि किसी भाव का स्वामिग्रह यदि अपने किसी *एक भाव * से 6,8,12 की संख्या वाले भाव पर आसीन हो जाता है ( लग्न से 6,8 या 12 नही ) तो वह ग्रह अपने उस भाव की 50% तक की शुभता खो देता है।

यदि इस ग्रह पर किसी भी क्रूर/पापी या लग्न अनुसार अकारक बने ग्रह की दृष्टि पड़े तो वह ग्रह अपनी कुल 75% तक की उस भाव से संबंधित शुभता को खो देता है।

चाहे वह ग्रह कितना भी योगकारी ही क्यों न बना हो।

-केवल अध्ययन के उद्देश्य से हम आदरणीय श्री नरेन्द्रमोदी जी की बृश्चिक लग्न वाली जन्मकुण्डली को लेते हैंः

1-पंचम( कोणभाव) का स्वामिग्रह बृहस्पति भवनभाव में है । यह बृहस्पति भाव संख्या 04,08,10 और 12 पर अपना शुभप्रभाव ( जनता से अगाध प्रेम और राजसत्ता) दिला रहे हैं। स्पष्ट भी है।

लेकिन दूसरी ओर यही परम शुभयोगकारक बृहस्पति ! अपने भाव (पांचवे) से 12वे होकर भवनभाव पर बैठे हैं। साथ ही ये शनि की दूसरी दृष्टि में हैं। इस दुष्परिणाम वस उन्हें 75% तक सन्तान और उच्चशिक्षा में कमी सिध्द हो गई।
सन्तानप्राप्ति अथवा सुख की शेष 25% आशा सातवे भाव पर मंगल और शनि की दृष्टि से समाप्त हो गई।
: जानिए कौन से ग्रह तय करते हैं कुंडली में नौकरी मिलने का योग ….

जीवन में एक वक्त ऐसा जरूर होता है जब हम सोचते हैं कि नौकरी कब लगेगी? या अगर नौकरी छूट गई है तो नई नौकरी कब मिलेगी?

इस सभी सवालों का जवाब हमारी कुंडली में छुपा होता है जिसमें ग्रहों की भूमिका खास होता है। राहु और केतु भी इसमें महत्पपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

जीवन की कोई भी शुभ या अशुभ घटना राहु और केतु की दशा या अंतरदशा में घटित हो सकती है। यह घटना राहु या केतु का संबंध किसी भाव से कैसा (शुभ या अशुभ) है, इस पर निर्भर करती है।

दशम भाव व्यवसाय का भाव माना जाता है अतः दशमेश की दशा या अंतरदशा में नौकरी मिल सकती है।

एकादश भाव धनलाभ का और दूसरा धन का माना जाता है अतः द्वितीयेश और एकादशेश की दशा या अंतरदशा में भी नौकरी मिल सकती है।

ग्रहों का गोचर भी महत्वपूर्ण घटना में अपना योगदान देता है। गोचर: गुरु गोचर में दशम या दशमेश से नौकरी मिलने के समय केंद्र या त्रिकोण में होता है।

अगर जातक का लग्न मेष, मिथुन, सिंह, वृश्चिक, वृष या तुला हो, तो जब भी शनि और गुरु एक-दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में हों, तो नौकरी मिल सकती है .

अर्थात नौकरी मिलने के समय शनि और गुरु का एक-दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में होना अति आवश्यक है।

नौकरी मिलने के समय शनि या गुरु या दोनों का दशम भाव और दशमेश दोनों से या किसी एक से संबंध होता है। नौकरी मिलने के समय शनि और राहु एक-दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में होते हैं।

नौकरी मिलने के समय जिस ग्रह की दशा और अंतरदशा चल रही है उसका संबंध किसी तरह दशम भाव या दशमेश से या दोनों से होता है।

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वैदिक ज्योतिष और रोजगार की स्थिति
व्यक्ति को जीवन में रोजगार, व्यवसाय, पद प्राप्ति, नौकरी आदि के कौन से अवसर प्राप्त होंगे अथवा जातक की आर्थिक स्थिति कैसी रहेगी, इसके संबंध में अपने पाठकों को यहाँ विस्तार पूर्वक जानकारी प्रदान की जा रही है. यहां कुछ मूल सिद्धांतो, ग्रहों के सांमंजस्य से बनते रोजगार एवम व्यवसायों, पद प्राप्ति व नौकरी प्राप्ति से संबंधित समस्याओं पर प्रकाश डाला जा रहा है.

१. व्यक्ति को सरकारी सेवा/ नौकरी/रोजगार/व्यापार अथवा कोई पद प्राप्त होगा, जन्मकुंडली के प्रथम, द्वितीय, दशम एवम एकादश भावों में ग्रहों की स्थिति एवम इन भावों के स्वामी ग्रहों की स्थिति एवम इन सब पर पडते अन्य ग्रहों के प्रभाव पर निर्भर करती है. यदि दसवें भाव का स्वामी ग्रह किसी प्रकार भी पहले, दूसरे, छठें एवम ग्यारहवें भावों से संबंध रखता है तो व्यक्ति को हर हालत में अच्छे रोजगार की प्राप्ति होती है. तथा वो पूर्णतया लाभदायक सिद्ध होता है.

२. जन्मकुंडली में अधिकांश ग्रह जिन राशियों में हो उस राशि के तत्व गुण, स्वभाव एवम जिस जिस रोजगार को वह राशि सूचित करेती है, व्यक्ति का स्वाभाविक झुकाव उन्हीं कार्यों की तरफ़ होता है.

३. दो या दो से अधिक क्रूर ग्रहों के साथ केतु जब मेष, वृश्चिक, मकर या कुंभ में से किसी राशि में हो तो व्यक्ति को निराशा, असफ़लता, हार तथा बार बार नौकरी छूटने का काष्ट सहन करना पडता है.

४. दसवें भाव का स्वामी ग्रह शुभ स्थिति में नौवें या बारहवें भाव में वृहस्पति के साथ स्थित हो तो व्यक्ति विदेश में सफ़लता प्राप्त करता है.

५. जब जन्मकुंडली में शनि से आगे राहु ( जैसे जन्मकुंडली में शनि पांचवें भाव में और राहु सातवें भाव में हो) होता है और इन दोनों के मध्य अन्य कोई ग्रह ना हो तो व्यक्ति को पहले ३५ वर्ष तक की आयु में रोजगार संबम्धी कष्टों और परेशानियों का सामना करना पडता है. किसी भी काम में उसके पूरी तरह से पैर नही जम पाते.

६. जन्मकुंडली मे बुध ग्रह कहीं भी अकेला एवम अशुभ प्रभाव से दूर हो तो व्यापार में जातक अत्यधिक उन्नति प्राप्त करता है.

७. यदि अधिकांश ग्रह जनमकुंडली में तीसरे, दसवें, ग्यारहवें एवम बारहवें अथवा ७, ८, ९, १०. ११ एवम १२ वें भाव में बैठे हों और उन्हीं में सूर्य ग्रह भी सम्मिलित हो तो जातक के लिये नौकरी करना अथवा जनहित विभागों में कार्य करना ही लाभ प्रद रहता है. ऐसे व्यक्ति व्यापार में कभी प्रगति नही कर सकते.

10 वें भाव में स्थित ग्रह अथवा 10 वें भाव का स्वामी ग्रह

रोजगार/ व्यवसाय
सूर्य
बहुत आशाएं और उमंगे रखने वाला, जीवन में उच्च अधिकारी बनना चाहे, उच्च पद प्राप्ति, सरकारी सेवा सेवा नौकरी में रहना कठिन, डाक्टर, लीडर या प्रबंधकीय कार्यों में सलंग्न.
चंद्रमा
व्यापार, प्रोविजन स्टोर, कृषि, जलीय पदार्थ, पैतृक व्यवसाय में सलंग्न, रोजगार में परिवर्तन हेतुबार बार विचार उठते रहें.
मंगल
जोखिम के कार्य, पुलिस सेना, मैक्नीकल, सर्जन, धातु का कार्य, केमिस्ट, फ़ायर ब्रिगेड, होटल, ढाबा, अग्नि से संबंधित कार्य, डाईवर, मेकेनिक एवम इंजीनीयर आदि.
बुध
व्यापारी, ज्योतिषी, प्रिंटिंग कार्य, सेकेरेट्री, लेखक, अकाऊंटेंट, क्लर्क, आडीटर, एजेंट, पुस्तक विक्रेता, दलाल, अनुवादक, अध्यापक, सहायक, नर्सिंग, मुंशी, स्पीडपोस्ट, कोरियर इत्यादि का कार्य.
गुरू
शिक्षक, प्रकाशक, जज, न्यायाधीश, वकील, धार्मिक नेता, कथावाचक, पुरोहित, बैंक अधिकारी, मेनेजर, कपडा स्टोर, प्रोविजन स्टोर, सलाहकारिता आदि के कार्य
शुक्र
स्वास्थ्य विभाग, अस्पताल, मेटरनिटी होम, सोसायटी, रेस्टोरेंट, रेडीमेड वस्त्र, मनियारी की दुकान, फ़ोटोग्राफ़ी, गिफ़्ट आयटम, आभूषण एवम स्त्री से संबंधित विभाग/कार्यक्षेत्र
शनि
लेबर, लेबर विभाग, प्रबंधक या फ़िर अधिनस्थ सेवा में उच्चपद, अधिकारी, उद्योगपति, डाक्टर, रंग रसायन, पेट्रोकेमिकल इत्यादि.

सब्र संतोष, सुझबूझ रखे तो व्यवसाय ठीक चले, जल्दबाजी करे तो मुश्किले खडी हों और हानि हो, दुर्घटनाएं, निराशा एवम घाटे का मुंह देखना पडे.
राहु
डाक्टर, कसाई, सफ़ाई कर्मचारी, जेल विभाग, विद्युत विभाग, लेखक उच्चाधिकारी एवम उच्च पद प्राप्ति.

यदि सूझबूझ रखे और दिमाग से काम ले तो उन्नति करे नही तो अपना काम खुद ही बिगाडे.
केतु
गुप्त विद्या, तांत्रिक, ज्योतिषि, होम्योपैथी/आयुर्वेद/नेचरोपैथी का डाक्टर, ट्रेवल एजेंट, फ़र्नीचर का काम, पशुओं का व्यापारी.
: : 🙏श्री गणेशाय नम:🙏 :

          "ॐ साई राम "

चंद्र पर्वत चंद्रमा पर्वत के सामान्य लक्षण -:

चंद्र पर्वत, अंगूठे के सामने हथेली के आधार पर स्थित होता है। यह पर्वत एक मजबूत कल्पना शक्ति को दर्शाता है।
यह लोगों में भावनात्मक या कलात्मक और सौंदर्य, रोमांस, रचनात्मकता, आदर्शवाद आदि को प्रदर्शित करता है। पूर्ण विकसित चंद्र पर्वत व्यक्ति को कला प्रेमी बनाता है ऐसे लोग कलाकार, संगीतकार, लेखक बनते हैं। ऐसे व्यक्ति मजबूत कल्पना शक्ति के गुणी होते हैं। यह लोग अति रुमानी होते हैं लेकिन अपनी इच्छाओं के प्रति आदर्शवादी होते हैं।
शुक्र पर्वत की तरह इनमें भावुकता या कामुकता वाला स्वभाव नही होता है।

चन्द्र पर्वत का विकास -: पूर्ण विकसित चंद्र पर्वत व्यक्ति को भावनाओं मे बहने वाला और किसी को उदास न देखने वाला होता है।
प्रायः यह लोग वास्तविकता से परे कल्पनाप्रधान और अच्छे लेखक और कलाकार होते हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों में ऐसे लोग उन्मादी और तर्कहीन व्यवहार करते हैं।
इसके अतिरिक्त ये निर्णय लेने मे अधिक समय लेने वाले और अत्यधिक महत्वाकांक्षी होते हैं।
अति विकसित चंद्र पर्वत व्यक्ति को आलसी और सनकी बनाता है।
ऐसे व्यक्ति कल्पना से पूर्ण और वास्तविकता से दूर रहते हैं।
कभी कभी, यह एक हल्के रूपमें विकसित हो कर एक प्रकार का पागलपन भी हो सकता है।
यदि चंद्र पर्वत अविकसित है, तो व्यक्ति मे अच्छी कल्पना का अभाव, दूरदर्शिता का अभाव, नए और रचनात्मक विचारों का अभाव रहता है, यह लोग क्रूर और स्वार्थी होते हैं। चन्द्र पर्वत का शीर्ष -:
यदि चंद्र पर्वत का शिखर अंगूठे के आधार की ओर स्थित है तो व्यक्ति अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए दृढ संकल्पी होता है। जब इसके शिखर का झुकाव शुक्र पर्वत की ओर हो तो व्यक्ति का झुकाव संगीत, कला, रंगमंच की ओर होता है।
जब यह मणिबंध की ओर झुका हो तो व्यक्ति की रुचि यात्राओं की ओर रहती है लेकिन उसे गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है।
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                     *परमपिता परमात्मा ने सुंदर सृष्टि का सृजन किया | ऊँचे - ऊँचे पहाड़ , पहाड़ों पर जीवनदायिनी औषधियाँ , गहरे समुद्र , समुद्र में अनेकानेक रत्नों की खान उत्पन्न करके धरती को हरित - शस्य श्यामला बनाने के लिए भिन्न - भिन्न प्रजाति के पेड़ पौधों का सृजन किया | प्राकृतिक संतुलन बना रहे इसलिए समयानुकूल ऋतुएं प्रकट हुईं | चौरासी लाख योनियों का सृजन करके उन सबकी शिरमौर मानवयोनि बनाई और मनुष्य अपने बुद्धि - विवेक , बल एवं कार्यशैली से इस सम्पूर्ण पृथ्वीमण्डल का अधिपति हो गया | प्रकृति की छटा इतनी सुहानी थी एवं ईश्वर द्वारा बनाई गयी समयबद्धता इतनी पारदर्शी थी कि समय समय पर गर्मी , ठण्ढक , बरसात एवं बसन्त स्वयं अपने क्रियानुसार मनुष्य को आनन्द प्रदान करते थे | आदिकाल से ही भारत के विकास में कृषिकार्य का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है | भारत कृषि प्रधान देश है | भारत की कृषि प्राचीन समय में प्रकृति पर ही आधारित थी | जब किसान को खेतों में जल की आवश्यकता होती थी तब मेघ जलवृष्टि करते रहते थे | प्राकृतिक संतुलन इतना अच्छा था कि मनुष्य दिन रात मेहनत करते वृक्षों की छाया में अपनी थकान तो मिटाता ही थासाथ चैन की वंशी भी बजाता था | परंतु धीरे - धीरे मनुष्य ने अपनी आवश्यकतायें बढ़ानी प्रारम्भ कर दीं और यहीं से मनुष्य ने प्रकृति का दोहन प्रारम्भ कर दिया और बिगड़ने लगा प्राकृतिक संतुलन | पृथ्वी पर मौसम के परिवर्तन एवं मनुष्य को जीवनदायिनी स्नच्छ वायु प्रदान करने में वृक्षों का महत्त्वपूर्ण योगदान है | इसीलिए हमारे पूर्वजों ने विभिन्न रूपों में "प्रकृति पूजा" का विधान बनाया था | परंतु मनुष्य ने इन वृक्षों को ही निशाना बनाकर विकास पथ पर आगे बढ़ा जिसका परिणाम समस्त पृथ्वी को असंतुलित बरसात एवं भीषण गर्मी के रूप में भोगना पड़ रहा है | परंतु हमारा चक्षुन्मीलन नहीं हो पा रहा है | समय समय पर प्रकृति हमें सावधान करती रहती है परंतु हम अपनी मस्ती में बढ़ते चले जा रहे हैं |*

आज का मनुष्य लोभ के वशीभूत होकर प्रकृति का दोहन कर रहा है | मनुष्य की अति-उपभोगवादी प्रवृत्ति के कारण प्रकृति को इतना नुकसान पहुँच चुका है कि प्रकृति की मूल संरचना ही विकृत हो गई है | यदि हम यह विचार करें कि जिस प्रकृति की मनुष्य पूजा करता था, वह उसके प्रति इतना क्रूर कैसे हो गया ? तो यही उत्तर प्राप्त हो सकता है कि :- समय के साथ मनुष्य की सोच में परिवर्तन आ गया है | प्रकृति के साथ सहजीवन व सह-अस्तित्व की बात करने वाला मनुष्य कालान्तर में यह सोचने लगा कि यह पृथ्वी केवल उसके लिए ही है; वह इस पर जैसे चाहे वैसे रहे | अपनी इस नवीन सोच के कारण वह प्रकृति को पूजा व सम्मान की नहीं अपितु उपभोग की एक वस्तु के रूप में देखने लगा | मनुष्य के विचारो में आया यह परिवर्तन ही पर्यावरण असंतुलन का आधार बना | आज का मनुष्य अपनी आर्थिक उन्नति के लिए ”कोई भी कीमत” देने को तैयार है | उस ”कोई भी कीमत” की सबसे बडी कीमत प्रकृति को ही देनी पड़ती है | भारी औद्योगीकरण आज विकास का पर्यायवाची बन गया है | इन बड़े उद्योगों की स्थापना से लेकर इनके संचालन तक प्रत्येक स्तर पर पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है | इन औद्योगिक इकाइयों के निर्माण के लिए वनों की कटाई की जाती है | मनुष्य को पर्यावरण की रक्षा के लिए अपनी विकासात्मक गतिविधियों को रोकना जरूरी नहीं है | परंतु इतना जरूर है कि हमें पर्यावरण की कीमत पर विकास नहीं करना चाहिए क्योंकि विकास से अभिप्राय समग्र विकास होता है केवल आर्थिक उन्नति नहीं |

मनुष्य को मात्र इतना ध्यान रखना चाहिए कि ये पेड-पौधे नदियां-तालाब. वन्य-जीव हमसे पिछली पीढ़ी ने हम तक सुरक्षित पहुँचाया है |अतः हमारा दायित्व है कि हम इसे अपनी आने वाली पीढी तक सुरक्षित अवश्य पहुँचाये |

 🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺

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🙏🌹जय श्री हरि🌹🙏

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व्यक्ति का मन कभी भी खाली नहीं रह सकता । वह शुभ-अशुभ , कुछ ना कुछ जरूर चिंतन करता रहता है। या तो परमात्मा का चिन्तनया फिर विषय चिन्तन करता है। ईश्वर चिन्तन से मन पवित्र होता है। जबकि विषयों के चिंतन से मन में कुविचार विकसित होते है।
ज्यादा विषय भोग के चिन्तन से इन्हें प्राप्त करने की तीव्र इच्छा प्रगट हो जाती है और प्राप्त ना होने पर मन अशान्त और परेशान हो जाता है। विषयोपभोग से बुद्धि जड़ हो जाती है। जड़ बुद्धि में शुभ संकल्प प्रगट, शुभ विचार जन्म ले ही नहीं सकते है।
मनुष्य पहले विचार करता है और अपने विवेकानुसार उसे करने की योजना बनाता है। संकल्पानुसार हाथ पैर सब करने को तैयार होते है। यहाँ से पाप और पुण्य दोनों हो सकते हैं। अत: जीवन को आनंदमय बनाने के लिए जरुरी है कि मन को ज्यादा से ज्यादा सत्कर्मों में या ईश्वर के सिमरन में लगाया जाए ताकि मन को गलत जगह पर जाने के अवसर ही प्राप्त ना हों।

जय श्री कृष्ण🙏🙏

आज का दिन शुभ मंगलमय हो।
: आपअपनी ड्यूटी और फ़र्ज़ को निरंतर जारी रखें , मन का क्या है उसका तो काम ही है अच्छे और नेक काम के प्रति आपको उदासीन करना ताकि हम उस उदासीनता को अपनी करनी पर हावी कर उस करनी को ही छोड़ दें।
ऐसे में तो मन ने आपके ऊपर जीत हासिल कर ली होती है।
लेकिन बहादुरी तो इसी बात में है कि किसी नेक और अच्छे काम के लिये मन आपको उदासीन करे लेकिन फिर भी आप उस काम को करते जा रहे हैं , तो ऐसे में मन के ऊपर आप जीत हासिल करने का काम कर रहे होते हैं

Զเधॆ Զเधॆ🙏🙏

🕉ॐ ओउम् तीन अक्षरों से बना है।🕉
अ उ म् । 

“अ” का अर्थ है उत्पन्न होना,

“उ” का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास, 

“म” का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् “ब्रह्मलीन” हो जाना।

 
ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है।

ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है।
जानीए 

ॐ कैसे है स्वास्थ्यवर्द्धक और अपनाएं आरोग्य के लिए ॐ के उच्चारण का मार्ग…

1. ॐ और थायराॅयडः-

ॐ का उच्‍चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।

2. ॐ और घबराहटः-

अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं।

3. ॐ और तनावः-

यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।

4. ॐ और खून का प्रवाहः-

यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है।

5. ॐ और पाचनः-

ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है।

6. ॐ लाए स्फूर्तिः-

इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।

7. ॐ और थकान:-

थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।

8. ॐ और नींदः-

नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है। रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चिंत नींद आएगी।

9. ॐ और फेफड़े:-

कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है।

10. ॐ और रीढ़ की हड्डी:-

ॐ के पहले शब्‍द का उच्‍चारण करने से कंपन पैदा होती है। इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है।

11. ॐ दूर करे तनावः-

ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है।

आशा है आप अब कुछ समय जरुर ॐ का उच्चारण  करेंगे। साथ ही साथ इसे उन लोगों तक भी जरूर पहुंचायेगे जिनकी आपको फिक्र है 🙏

🙏🚩🇮🇳🔱🏹🐚🕉 : राधे राधे-
पूरे दिन दूसरों की कमियों की , स्वभाव की चर्चा करते-करते हम अपने समय का तो अपव्यय करते ही हैं इससे हमारी स्वयं की संकल्प शक्ति भी कमजोर हो जाती है। गलत आचरण वाले लोगों की चर्चा करते-करते मन भी यह धारणा निर्मित कर लेता है कि दुनिया ख़राब लोगों से भरी पड़ी है वो भी असत्य व असद मार्ग पर चले।
अपने जीवन को शुभ उद्देश्यों और शुभ संकल्पों के लिए तैयार करो। जो व्यक्ति सृजनात्मक , रचनात्मक कार्य में लग जाते हैं उन्हें दूसरों की बुराई और दोष देखने का वक़्त ही नहीं मिलता।
दुनिया में जितने भी महान व्यक्ति जैसे वैज्ञानिक, कलाकार, चित्रकार, कवि, साहित्यकार और वैज्ञानिक हुए वो केवल इसीलिए सफल हो पाए क्योंकि वो प्रत्येक पल अपने अनुष्ठान में सतत संलग्न रहे। आप भी संसार को बहुत कुछ दे सकते हैं। क्या दे सकते है अब ये तो आप स्वयं ही जानते हैं।
: राधे राधे ॥
यदि कोई यह कहता है कि उसने अपने जीवन में कभी कोई गलती नहीं की, तो इसका मतलब हुआ कि उसने अपने जीवन में कुछ हटके नहीं किया, नया नहीं किया। गलती करना कोई बुरी बात नहीं, एक गलती को बार-बार करना बुरी बात है। कोई भी गलती आप दो बार नहीं कर सकते, अगर आप गलती दोहराते हैं तो फिर ये गलती नहीं आपकी इच्छा है।
उपलब्धि और आलोचना दोनों बहिन हैं। उपलब्धियाँ बढेंगी तो निश्चित ही आपकी आलोचना भी बढ़ेगी। लोग निंदा करते हैं या प्रशंसा ये महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण ये है कि जिम्मेदारियाँ ईमानदारी से पूरी की गई हैं या नहीं ?
और एक बात ! जिस काम को करने में डर लगे, उसी को करने का नाम साहस है। मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है, जैसा वह विश्वास करता है, वैसा बन जाता है। खुद पर भरोसा रखो। छोड़ो ये बात कि लोग क्या कहेंगे ? लोगों की परवाह किये बिना अपने विचारों को सृजन का रूप दे दो ताकि हर कोई कह सके ” मान गए आपको “

🙏 जय श्री राधे कृष्णा 🙏

          

त्रिनाडी विचार

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार नाड़ी तीन प्रकार की होती है, इन नाड़ियों के नाम हैं आदि नाड़ी, मध्य नाड़ी, अन्त्य नाड़ी।
इन नाड़ियों को किस प्रकार विभाजित किया गया है आइये इसे देखें:

A.आदि नाड़ी: ज्येष्ठा, मूल, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, शतभिषा, पूर्वा भाद्र और अश्विनी नक्षत्रों की गणना आदि या आद्य नाड़ी में की जाती है।

B.मध्य नाड़ी: पुष्य, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, भरणी, घनिष्ठा, पूर्वाषाठा, पूर्वा फाल्गुनी और उत्तरा भाद्र नक्षत्रों की गणना मध्य नाड़ी में की जाती है।

C.अन्त्य नाड़ी: स्वाति, विशाखा, कृतिका, रोहणी, आश्लेषा, मघा, उत्तराषाढ़ा, श्रावण और रेवती नक्षत्रों की गणना अन्त्य नाड़ी में की जाती है।

नाड़ी दोष किन स्थितियों में लगता है आइये अब इसे समझते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जब वर और कन्या दोनों के नक्षत्र एक नाड़ी में हों तब यह दोष लगता है। सभी दोषों में नाड़ी दोष को सबसे अशुभ माना जाता है क्योंकि इस दोष के लगने से सर्वाधिक गुणांक यानी 8 अंक की हानि होती है।
इस दोष के लगने पर शादी की बात आगे बढ़ाने की इज़ाज़त नहीं दी जाती है।

आचार्य वाराहमिहिर के अनुसार यदि वर-कन्या दोनों की नाड़ी आदि हो तो उनका विवाह होने पर वैवाहिक सम्बन्ध अधिक दिनों तक कायम नहीं रहता अर्थात उनमें अलगाव हो जाता है। अगर कुण्डली मिलाने पर कन्या और वर दोनों की कुण्डली में मध्य नाड़ी होने पर शादी की जाती है तो दोनों की मृत्यु हो सकती है, इसी क्रम में अगर वर वधू दोनों की कुण्डली में अन्त्य नाड़ी होने पर विवाह करने से दोनों का जीवन दु:खमय होता है। इन स्थितियों से बचने के लिए ही तीनों समान नाड़ियों में विवाह की आज्ञा नहीं दी जाती है।

महर्षि वशिष्ट के अनुसार नाड़ी दोष होने पर यदि वर-कन्या के नक्षत्रों में नज़दीकियां होने पर विवाह के एक वर्ष के भीतर कन्या की मृत्यु हो सकती है अथवा तीन वर्षों के अन्दर पति की मृत्यु होने से विधवा होने की संभावना रहती है।
आयुर्वेद के अन्तर्गत आदि, मध्य और अन्त्य नाड़ियों को वात, पित्त एवं कफ की संज्ञा दी गयी है।

नाड़ी मानव के शारीरिक स्वस्थ्य को भी प्रभावित करता है! मान्यता है कि इस दोष के होने पर उनकी संतान मानसिक रूप से अविकसित एवं शारीरिक रूप से अस्वस्थ होते हैं!

इन स्थितियों में नाड़ी दोष नहीं लगता है:———

A-. यदि वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक ही हो परंतु दोनों के चरण पृथक हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता है।

B- यदि वर-वधू की एक ही राशि हो तथा जन्म नक्षत्र भिन्न हों तो नाड़ी दोष से व्यक्ति मुक्त माना जाता है।

C- वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक हो परंतु राशियां भिन्न-भिन्न हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता!


#टोनेटोटकोंसे_बचाव

👉अपने ईष्ट की पूजा करें। उनका कोई प्रतीक जैसी मौली, माला आदि कुछ भी पहन लें। काली या बगलामुखी पूजा से भी लाभ मिलता है।

👉कुछ सावधानी भी रखें कि जैसे किसी दूसरे का दिया हुआ खासकर जिस पर बहुत ज्यादा भरोसा न हो, कुछ नहीं खाएं। मीठा, पान, लौंग-ईलायची, ईत्र आदि दूसरे से लेकर खाने में परहेज करें। महिलाएं रात के समय बाल खुले रखने से बचें एवं अपनी कोई भी Blood लगी चीज़ किसी भी ऐसी जगह नहीं फेंकें कि जहां से कोई उसे उठा सके। रात में कपड़ों को बाहर सूखने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए। यदि आप शादीशुदा महिला हैं तो जिस साड़ी में आपकी शादी हुई है, वो किसी को नहीं देना चाहिए।
: कुलदेवता/कुलदेवी की पूजा क्यूं
करनी चाहिये ।

एक सुन्दर संकलित लेख आपके अवलोकनार्थ
*
हिन्दू पारिवारिक आराध्य व्यवस्था में कुल देवता/कुलदेवी का स्थान सदैव से रहा है ,,प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं जिनसे उनके गोत्र का पता चलता है ,बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णों में हो गया विभिन्न कर्म करने के लिए ,जो बाद में उनकी विशिष्टता बन गया और जाति कहा जाने लगा । हर जाति वर्ग , किसी न किसी ऋषि की संतान है और उन मूल ऋषि से उत्पन्न संतान के लिए वे ऋषि या ऋषि पत्नी कुलदेव / कुलदेवी के रूप में पूज्य हैं । पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया था ,ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे जिससे उनकी नकारात्मक शक्तियों/ऊर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहें |

समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने ,धर्म परिवर्तन करने ,आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने ,जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने ,संस्कारों के क्षय होने ,विजातीयता पनपने ,इनके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता /देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उनके कुल देवता /देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है ,इनमें पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं ,कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्त्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इन पर ध्यान नहीं दिया |

कुल देवता /देवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई ख़ास अंतर नहीं समझ में आता ,किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं ,नकारात्मक ऊर्जा ,वायव्य बाधाओं का बेरोक-टोक प्रवेश शुरू हो जाता है ,उन्नति रुकने लगती है ,पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती ,संस्कारों का क्षय ,नैतिक पतन ,कलह, उपद्रव ,अशांति शुरू हो जाती हैं ,व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है, कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों
से इनका बहुत मतलब नहीं होता है ,अतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है ,भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है|

कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो
किसी भी बाहरी बाधा ,नकारात्मक ऊर्जा के परिवार
में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं ,यह पारिवारिक संस्कारों और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं ,यही किसी भी ईष्ट को दी जाने वाली पूजा को ईष्ट तक पहुचाते हैं ,,यदि इन्हें पूजा नहीं मिल रही होती है तो यह नाराज भी हो सकते हैं और निर्लिप्त भी हो सकते हैं ,,ऐसे में आप किसी भी ईष्ट की आराधना करे वह उस ईष्ट तक नहीं पहुँचता ,क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है ,,बाहरी बाधाये ,अभिचार आदि ,नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुचने लगती है ,,कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही ईष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है ,अर्थात पूजा न ईष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है|

ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम
शशक्त होने से होता है ।

कुलदेवता या देवी सम्बंधित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति ,उलटफेर ,विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं ,सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है ,यह परिवार के अनुसार भिन्न समय होता है और भिन्न विशिष्ट पद्धति होती है ,,शादी-विवाह-संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं ,,,यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह नाराज होते हैं या कोई मतलब न रख मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है ,परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं ,,अतः प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने कुल देवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा -उन्नति होती रहे ।
🔱⚜🕉🕉🛐🙏🕉⚜🔱💐
: || ॐ श्री हनुमते नमः ||
जय महावीर हनुमान
किसी भी प्रकार के जादू टोने तंत्र मंत्र की काट बजरंग बाण

हनुमान जी से तो आप सभी परिचित ही है लेकिन आज बात करेंगे कुछ विशिष्ट तांत्रिक प्रयोगों की जिनके करने से व्यक्ति खुद तो सुरक्षित हो ही जाता है ।साथ ही साथ वह दूसरों के मदद करने योग्य बन जाता है । यह विधि अत्यन्त प्रभावशाली है ।जिसे हर कोई कर सकता है । इसके अतिरिक्त अन्य तीव्र मंत्र भी है जिसे करने का अधिकार केवल साधको के लिए है जैसे ‘हनुमत जंजीरा’ आदि।
बजरंग बाण मे बीज मंत्रों का सरल प्रयोग हुआ है
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥
बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
इसके साथ ही बाधाओं का भी निवारण भी हो जाता है ।
चाहे वो किसी भी प्रकार की हो
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
इसके पाठ की विधि इस प्रकार है।
आज हम आपको हनुमान जी के बजरंग बाण के रात्रि में किये जाने वाले पाठ के विषय में बता रहे है | वैसे तो बजरंग बाण का नियमित रूप से पाठ आपको हर संकट से दूर रखता है | किन्तु अगर रात्रि में बजरंग बाण को इस प्रकार से सिद्ध किया जाये तो इसके चमत्कारी प्रभाव तुरंत ही आपके सामने आने लगते है | अगर आप चाहते है अपने शत्रु को परास्त करना या फिर व्यापर में उन्नति या किसी भी प्रकार के अटके हुए कार्य में पूर्णता तो रात्रि में बजरंग बाण पाठ को अवश्य करें |

विधि इस प्रकार है : –

किसी भी मंगलवार को रात्रि का 11 से रात्रि 1 बजे तक का समय सुनिश्चित कर ले | बजरंग बाण का पाठ आपको 11 से रात्रि 1 तक करना है | सबसे पहले आप एक चौकी को पूर्व दिशा की तरफ स्थापित करें अब इस चौकी पर एक पीला कपडा बिछा दे | अब आप इस मंत्र को एक कागज पर लिख कर इसे फोल्ड करके इस चौकी पर रख दे | मंत्र इस प्रकार है : “ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् ” ||

अब आप चौकी के दायें तरफ एक मिटटी के दिए में घी का दीपक जला दे | आपको इस चौकी के सामने आसन पर बैठ जाना है | इस प्रकार आपका मुख पूर्व दिशा कर तरफ हो जायेगा और दीपक आपके बाएं तरफ होगा | अब आप परमपिता परमेश्वर का ध्यान करते हुए इस प्रकार बोले : – हे परमपिता परमेश्वर मै(अपना नाम बोले ) गोत्र (अपना गोत्र बोले ) आपकी कृपा से बजरंग बाण का यह पाठ कर रहा हु इसमें मुझे पूर्णता प्रदान करें | अब आप ठीक 11 बजते ही इस मंत्र का जाप शुरू कर दे ” ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् ” इस मंत्र को आप 5 मिनट तक जाप करें, ध्यान रहे मंत्र में जहाँ पर फट शब्द आता है वहा आप फट बोलने के साथ -साथ 2 उँगलियों से दुसरे हाथ की हथेली पर ताली बजानी है |

अब आप 11 बजकर 5 मिनट से और रात्रि 1 बजे तक लगातार बजरंग बाण का पाठ करना प्रारंभ कर दे | ध्यान रहे बजरंग बाण पाठ आपको याद होना चाहिए | किताब से पढ़कर बिलकुल न करें | जैसे ही 1 बजता है आप बजरंग बाण के पाठ को पूरा कर अब आप फिर से इस मंत्र ” ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् ” का जाप 5 मिनट तक करें |
: मुस्लिम मंत्र तंत्र काटने का मंत्र —- ओम नमो निरंजन परमात्मने ना अल्लाह का चले ना बिस्मिल्लाह का चले चले निरंजन का वार , तैतिस्कोटी देवता काटे बैरी का वार दुहाई धूमावती माई की त्रिशूल महा देव के हाथ कंकलिना का खरक काटे दूसमन का जादू मंतर मोहम्मद का हाथ बांध मक्का मदीना कि ताकत बांध सहायता करे बीर हनुमान जा मंत्र छु ,,, एक सांस में तीन बार मंत्र पर के झरना है रोगी को अगर मुस्लिम का किया करा है तो रोगी ठीक होगा एक सांस में तीन तीन कर के ११ बार झरना फूलना है ११ से जादा बार भी कर सकते है
संपर्क – 9839760662
: गुप्त नवरात्र 3 से 11 जुलाई

नवरात्र (Navratri) यानि मां भगवती के नौ रूपों, नौ शक्तियों की पूजा के वो दिन जब मां हर मनोकामना पूरी करती है। यूं तो हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्र होते हैं जिनमें लोग पूरी श्रद्धा के साथ घट स्थापना करते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि साल में इन दो नवरात्रों से अलग 2 और नवरात्र भी होते हैं..? ये गुप्त नवरात्र (Gupt Navratri) हैं जिनके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक गुप्त नवरात्र(Gupt Navratri) साल में 2 बार आते हैं एक माघ महीने में और दूसरा आषाढ़ महीने में।
गुप्त नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की बजाय दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है। ये दस महाविद्याएं हैं – काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी।
गुप्त नवरात्र पूजा विधि

  • इस व्रत में मां दुर्गा की पूजा देर रात ही की जाती है।
  • मूर्ति स्थापना के बाद मां दुर्गा को लाल सिंदूर, लाल चुन्नी चढ़ाई जाती है
  • नारियल, केले, सेब, तिल के लडडू, बताशे चढ़ाएं और लाल गुलाब क
    देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्रि आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्र के दौरान साधक मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं।

गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं।

आषाढ़ गुप्त नवरात्र 2019 (Aashadh Gupt Navtari 2019)

(3 जुलाई 2019 से 11 जुलाई  2019)

शारदीय नवरात्र 2019 (Shardiy Navratri 2019)

( 29 सितम्बर 2019 से 8 अक्टूबर 2019 : 🙏🏻🙏🏻🙏🏻जय श्री राधे🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

शनि, राहु-केतु : तीन ग्रहों की त्रिवेणी, कैसा होगा आपका जीवन

राहु और केतु की भूमिका एक पुलिस अधिकारी की तरह है जो न्यायाधीश शनि के आदेश पर कार्य करते हैं। ‍शनि का रंग नीला, राहु का काला और केतु का सफेद माना जाता है। शनि के देवता भैरवजी हैं, राहु की सरस्वतीजी और केतु के देवता भगवान गणेशजी है।

शनि के अनुचर हैं राहु और केतु। शरीर में इनके स्थान नियु‍क्त हैं। सिर राहु है तो केतु धड़। यदि आपके गले सहित ऊपर सिर तक किसी भी प्रकार की गंदगी या खार जमा है तो राहु का प्रकोप आपके ऊपर मंडरा रहा है और यदि फेफड़ें, पेट और पैर में किसी भी प्रकार का विकार है तो आप केतु के शिकार हैं।

शनि का पशु भैंसा, राहु का हाथी और कांटेदार जंगली चूहा तथा केतु का कुत्ता, गधा, सुअर और छिपकली है। शनि का वृक्ष कीकर, आंक व खजूर का वृक्ष, राहु का नारियल का पेड़ व कुत्ता घास और केतु का इमली का दरख्त, तिल के पौधे व केला है। शनि शरीर के दृष्टि, बाल, भवें, हड्डी और कनपटी वाले हिस्से पर, राहु सिर और ठोड़ी पर और केतु कान, रीढ़, घुटने, लिंग और जोड़ पर प्रभाव डालता है।

  • राहु की मार : यदि व्यक्ति अपने शरीर के अंदर किसी भी प्रकार की गंदगी पाले रखता है तो उसके ऊपर काली छाया मंडराने लगती है अर्थात राहु के फेर में व्यक्ति के साथ अचानक होने वाली घटनाएं बढ़ जाती है। घटना-दुर्घटनाएं, होनी-अनहोनी और कल्पना-विचार की जगह भय और कुविचार जगह बना लेते हैं।

राहु के फेर में आया व्यक्ति बेईमान या धोखेबाज होगा। राहु ऐसे व्यक्ति की तरक्की रोक देता है। राहु का खराब होना अर्थात् दिमाग की खराबियां होंगी, व्यर्थ के दुश्मन पैदा होंगे, सिर में चोट लग सकती है। व्यक्ति मद्यपान या संभोग में ज्यादा रत रह सकता है। राहु के खराब होने से गुरु भी साथ छोड़ देता है।

  • राहु के अच्छा होने से व्यक्ति में श्रेष्ठ साहित्यकार, दार्शनिक, वैज्ञानिक या फिर रहस्यमय विद्याओं के गुणों का विकास होता है। इसका दूसरा पक्ष यह कि इसके अच्छे होने से राजयोग भी फलित हो सकता है। आमतौर पर पुलिस या प्रशासन में इसके लोग ज्यादा होते हैं।
  • केतु की मार : जो व्यक्ति जुबान और दिल से गंदा है और रात होते ही जो रंग बदल देता है वह केतु का शिकार बन जाता है। यदि व्यक्ति किसी के साथ धोखा, फरेब, अत्याचार करता है तो केतु उसके पैरों से ऊपर चढ़ने लगता है और ऐसे व्यक्ति के जीवन की सारी गतिविधियां रुकने लगती है। नौकरी, धंधा, खाना और पीना सभी बंद होने लगता है। ऐसा व्यक्ति सड़क पर या जेल में सोता है घर पर नहीं। उसकी रात की नींद हराम रहती है, लेकिन दिन में सोकर वह सभी जीवन समर्थक कार्यों से दूर होता जाता है।

केतु के खराब होने से व्यक्ति पेशाब की बीमारी, जोड़ों का दर्द, सन्तान उत्पति में रुकावट और गृहकलह से ग्रस्त रहता है। केतु के अच्छा होने से व्यक्ति पद, प्रतिष्ठा और संतानों का सुख उठाता है और रात की नींद चैन से सोता है।

  • शनि की मार : पराई स्त्री के साथ रहना, शराब पीना, मांस खाना, झूठ बोलना, धर्म की बुराई करना या मजाक उड़ाना, पिता व पूर्वजों का अपमान करना और ब्याज का धंधा करना प्रमुख रूप से यह सात कार्य शनि को पसंद नहीं। उक्त में से जो व्यक्ति कोई-सा भी कार्य करता है शनि उसके कार्यकाल में उसके जीवन से शांति, सुख और समृद्धि छिन लेता है। व्यक्ति बुराइयों के रास्ते पर चलकर खुद बर्बाद हो जाता है। शनि उस सर्प की तरह है जिसके काटने पर व्यक्ति की मृत्यु तय है।

शनि के अशुभ प्रभाव के कारण मकान या मकान का हिस्सा गिर जाता है या क्षतिग्रस्त हो जाता है, नहीं तो कर्ज या लड़ाई-झगड़े के कारण मकान बिक जाता है। अंगों के बाल तेजी से झड़ जाते हैं। अचानक आग लग सकती है। धन, संपत्ति का किसी भी तरह नाश होता है। समय पूर्व दांत और आंख की कमजोरी।

शनि की स्थिति यदि शुभ है तो व्यक्ति हर क्षेत्र में प्रगति करता है। उसके जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता। बाल और नाखून मजबूत होते हैं। ऐसा व्यक्ति न्यायप्रीय होता है और समाज में मान-सम्मान खूब रहता हैं।
: 🙏 आजका सदचिंतन 🙏
“”””””””””””””””””””””””””””””””””
( “मौन का महत्व” – क्रमशः)
ध्यान – विचार केन्द्रीत
मौन ध्यान भटकाने वाली फोन, जैसी चीजों से दूर करता है। इससे किसी एक बात या चीज पर ध्यान केन्द्रित करना आसान हो जाता है।
प्रकृति से निकटता
जब आप हर मौसम में मौन धारण करना शुरू कर देंगे तो आप जान पाएंगे कि बसंत में चलने वाली हवा और सर्दियों में चलने वाली हवा की आवाज भी अलग-अलग होती है। मौन हमें प्रकृति के करीब लाता है
शरीर और मन शांत
मौन आपको आपके शरीर पर ध्यान देना सिखाता है। अपने शरीर को महसूस करने से आपका अशांत मन भी शांत हो जाता है। शांत मन स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है।….( पूर्ण )
विचार क्रांति अभियान
🙏 सबका जीवन मंगलमय हो 🙏
[6/12, 10:51] Daddy: 🌻🌻🌻🌻🌻

 तंबाकू में एक प्रकार का नहीं, चार प्रकार का विष पाया जाता है -- *निकोटीन, कोलटार, आर्सेनिक और कार्बन मॉनोऑक्साइड।* अस्तु, उसका सेवन करने से इन विषों का शरीर में पहुँचना स्वाभाविक ही है।
  जहाँ आध्यात्मिक प्रगति के लिए मनुष्य का हर प्रकार से निर्व्यसन एवं निर्विकार होना अनिवार्य है; वहाँ तंबाकू जैसा मादक पदार्थ मनुष्य को अनिवार्य रूप से शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक तीनों प्रकार से मंद एवं मलीन बनाता रहता है। 
  निराहार व्रत, उपवासों में भी तंबाकू की तलब रोके नहीं रुकती; पूजा-पाठ में एकाग्रता नहीं आने देती और ध्यान-धारणा में भी उसकी आवश्यकता व्यवधान डालती है, जिससे साधक के सारे नियम-निर्वाह भंग एवं भ्रष्ट हो जाते हैं। इस तंबाकू का तुच्छ व्यसन मनुष्य की आध्यात्मिक यात्रा में बहुत बड़ा अवरोध बना रहता है।
  अस्तु, तन, मन, धन के साथ बुद्धि-विवेक तथा आत्मा का ह्रास करने वाली तंबाकू को संकल्पपूर्वक त्यागकर मनुष्य को आत्मविश्वास, आत्मबल एवं मानसिक महानताओं की वृद्धि के साथ मधुर एवं मांगलिक जीवन का द्वार खोल लेना चाहिए।
               - युग निर्माण योजना 


                ✍🏼🌺

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