Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

: ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्

जगह-जगह युद्ध चल रहे हैं, जगह-जगह द्वेष हो रहे हैं, जगह-जगह मारधाड़ हो रही है,मार-काट हो रही है और आतंकवाद फैला हुआ है| बहुत-सी बातें हो रही हैं| ये कैसे हो रही हैं| इसकी प्रेरणा वातावरण से मिलती है| वातावरण से प्रकृति भी नाराज़ है, आज प्रकृति भी हमारा संग नहीं दे रही है| फसल ठीक तरह से पैदा नहीं हो रही| मनुष्यों में जो शांति और चैन होना चाहिए, वह भी नहीं मिल रहा|

क्या उपाय करना चाहिए वातावरण संशोधन करने के लिए ? वायुमंडल भी दूषित है| वातावरण ही नहीं, वायुमंडल भी| कैसे? ये कारखाने चलते हैं, मिलें चलती है| इनका धुआँ निकलता है| इन धुओं की वजह से वायुमंडल भी दूषित हो रहा है| एटमबंबो का जो परीक्षण चल रहा है, उसकी वजह से विकिरण फैल रहा है और विकिरण की वजह से संतानें खराब हो रही है| बुरे स्वभाव की हो रही है| अंधी-पंगी हो रही है|

वातावरण का प्रभाव, वायुमंडल का प्रभाव, विकिरण का प्रभाव सारे संसार भर में छाया हुआ है| इसका कया उपाय करना चाहिए? ये पुस्तकीय उपायों से काम नहीं चल सकता| इसके लिए तीर-तलवार काम नहीं दे सकते| मनुष्य का सांसारिक पुरुषार्थ काम नहीं दे सकता| इसके लिए आध्यात्मिक पुरुषार्थ ही कारगर हो सकता है|

  आध्यात्मिक पुरुषार्थों में यज्ञ की बड़ी महिमा बतायी गयी है| यज्ञ की ऋषियों ने बड़ी महत्ता गायी है| यज्ञ को पिता बताया गया है और गायत्री को माँ बताया गया है| गायत्री और यज्ञ मिलकर के माता-पिता होते हैं| गायत्री यज्ञों की वजह से शक्ति पैदा होती है, जो कि नया द्रश्य पैदा कर सके और वातावरण में जो गन्दगी भरी पडी है उसको झाड़-बुहारकर साफ़ कर सके| यह सफाई करने की शक्ति केवल यज्ञ में है| यज्ञ से आप सारे संसारभर की सेवा कर सकते हैं| 

पूज्यवर की अमृतवाणी(भाग एक) – #युगऋषि #श्रीराम #शर्मा #आचार्य
🥤 बेल के रस का नियमित सेवन कराता है ये फायदे!

💁‍♀ गर्मियों में हर रोज बेल का शरबत पीना आपकी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है. इस फल के ढेरों फायदे हैं, जिनके बारे में कई लोग नहीं जानते हैं. जानिये, बेल के फायदे –

● बेल का शरबत गर्मियों में पेट को ठंडक पहुंचाता है.

● इसके रस के शहद के साथ मिलाकर पीने से पेट की समस्याओं से छुटकारा मिलता है.

● बेल का नियमित सेवन बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और शरीर में कोलेस्ट्रॉल के लेवल को संतुलित बनाए रखता है.

● इसकी पत्तियां ब्डल प्रेशर को नियंत्रित रखने में मदद करती हैं. इसके लिए पत्तियों को पानी में उबाल कर छान लें और इस पानी को पिएं.

● ये सभी तत्व लिवर संबंधी समस्याओं को ठीक करने में मदद करते हैं.

● कच्चे बेल की गिरी को तोड़कर तिल के तेल में दो-तीन दिन के लिए डालकर रख दें, फिर इससे शरीर की मालिश करें, यह ठंडक देता है.

● यदि रक्त दूषित हो जाए तो इसे साफ करने के लिए बेल के रस को गुनगुने पानी में मिलाए और शहद की कुछ बूंदे मिलाकर इसे नियमित रूप से पिएं.

● पके हुए बेल के गूदे को मसल कर इसमें पानी मिलाकर छान लें और स्वाद अनुसार इसमें चीनी मिला लें. इसे पीने से लू नहीं लगेगी.

● नियमित रूप से बेल का रस पीना स्वास्थ्य के लिए तो लाभकारी है ही साथ ही यह महिलाओं में होने वाले ब्रेस्ट कैंसर को भी रोकता है.
: 🍃 एक योग टिप

इस गर्मी में अपने आप को चिलचिलाती गर्मी से बचाने के लिए- घर से बाहर निकलने से पहले रूई से दाहिने कान (Right Ear) को बंद कर लें। कुछ ही मिनटों में, बाईं नासिका अधिक सक्रिय हो जाएगी और क्योकि यह चंद्रनाडी है, यह आपको भीतर से ठंडा रखेगा। आप हीटस्ट्रोक, हाई बीपी, पित्त, माइग्रेन और गर्मी के कारण होने वाली अन्य समस्याओं से बच जाएंगे।

(साभार प्रस्तुति)
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
: **ओवर थिंकिंग से हो सकती हैं ये 6 परेशानियां हैं ? 🌺
ओवर थिंकिंग का मष्तिष्क पर प्रभाव – जरूरत से ज़्यादा सोचने से शरीर में कोर्टिसोल हार्मोन ज्यादा बनता है जो की शरीर पर बुरे प्रभाव डालता है। कोर्टिसोल हार्मोन आपके मष्तिष्क की हिप्पोकैम्पस कोशिकाओं को क्षति पहुँचता है जो दिमाग की कनेक्टिविटी में बदलाव का कारण बन सकता है। जिससे काम करने के तरीके में बदलाव आने लगता है । जो लोग ज़रूरत से ज्यादा सोचते हैं उन्हें अधिकतर चिड़चिड़ाहट और मूड स्विंग की की परेशानी रहती है।

हार्ट प्रॉब्लम भी हो सकती है – ओवर थिंकिंग आपके दिल पर भी बहुत बुरा असर डालती ही जिससे कई दिल से सम्बंधित परेशानियां आपको हो सकती हैं | ज्यादा सोचने से चक्कर या छाती में दर्द जैसी कई समस्याएं भी आ सकती हैं। लगातार चिंता इन परेशानियों को गंभीर बना देती है |

पाचन समस्या – बहुत ज़्यादा सोचना तनाव को पैदा करता है जिसका हमारे पाचन तंत्र पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है | जैसे की एसिडिटी , पेट में जलन रहना या पेट साफ़ न होना |

अनिद्रा – जिन लोगों को ज़्यादा सोचने की आदत होती है वो अक्सर रात को आराम से सो नहीं पाते क्योंकि किसी न किसी बात पर उनका मन अशांत रहता है जो उन्हें सोने नहीं देता जिससे धीरे- धीरे वे अनिद्रा के शिकार हो जाते हैं ।

त्वचा पर दुषप्रभाव – ओवर थिंकिंग आपकी स्किन को बहुत बुरी तरह से इफ्फेक्ट करती है क्योंकि अगर आप अंदर से अच्छा महसूस नहीं करेंगे तो उसका असर चेहरे पर साफ नज़र आएगा । चिंता के कारण आपको सोरायसीस, एपोटीक डर्माटिटाइस , गंभीर खुजली, एलोपेशिया एरियाटा और सीब्रोरहाइक डर्माटाइटिस जैसी परेशानियां हो सकती हैं। ज्यादा टेंशन लेने से छोटे -छोटे दाने और पिम्पल भी हो जाते हैं साथ ही वक्त से पहले झुर्रियां आने लगती हैं ।

इम्यून सिस्टम बिगड़ जाता है – जो लोग ज्यादा टेंशन लेते हैं वे अक्सर बीमार रहते हैं । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कोर्टिसोल हार्मोन आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमज़ोर कर देता है जिससे आप जल्दी इन्फेक्शन का शिकार हो जाते हैं ।
🌷🌷🌷🌷
प्रश्न ज्योतिष

प्रश्न ज्योतिष, ज्योतिष कि वह कला है जिससे आप अपने मन की कार्यसिद्धि को जान सकते है। कोई घटना घटित होगी या नहीं, यह जानने के लिए प्रश्न लग्न देखा जाता है। प्रश्न ज्योतिष मै उदित लगन के विषय में कहा जाता है कि लग्न मे उदित राशि के अंश अपना विशेष महत्व रखते है। प्रश्न ज्योतिष में प्रत्येक भाव, प्रत्येक राशि अपना विशेष अर्थ रखती है। ज्योतिष की इस विधा में लग्न में उदित लग्न, प्रश्न करने वाला स्वयं होता है। सप्तम भाव उस विषय वस्तु के विषय का बोध कराता है जिसके बारे मे प्रश्न किया जाता है। प्रश्न किस विषय से सम्बन्धित है यह जानने के लिये जो ग्रह लग्न को पूर्ण दृष्टि से देखता है, उस ग्रह से जुड़ा प्रश्न हो सकता है या जो ग्रह कुण्डली मै बलवान हो लग्नेश से सम्बन्ध बनाये उस ग्रह से जुडा प्रश्न हो सकता है। प्रश्न कुण्डली में प्रश्न का समय बहुत मायने रखता है, इसलिए प्रश्न का समय कैसे निर्धारित किया जाता है इसे अहम विषय माना जाता है।

प्रश्न ज्योतिष में समय निर्धारण

प्रश्न समय निर्धारण के विषय में प्रश्न कुण्डली का नियम है कि जब प्रश्नकर्ता के मन में प्रश्न उत्पन्न हो वही प्रश्न का सही समय है। जैसे- प्रश्नकर्ता ने फोन किया और उस समय ज्योतिषी ने जो समय प्रश्नकर्ता को दिया, इन दोनो मे वह समय लिया जायेगा जिस समय ज्योतिषी ने फोन सुना, वही प्रश्न कुण्डली का समय है। प्रश्न कुण्डली का प्रयोग आज के समय में और भी ज्यादा हो गया है। कई प्रश्नो का जवाब जन्म कुण्डली से देखना मुश्किल होता है, जबकि प्रश्न कुन्ड्ली से उन्हे आसानी से देखा जा सकता है। प्रश्न कुण्डली से जाना जा सकता है कि अमुक इच्छा पूरी होगी या नहीं। प्रश्न कुण्डली से उन प्रश्नो का भी जवाब पाया जा सकता है जिसका जवाब हां या ना में दिया जा सकता है जैसे अमुक मामले में जीत होगी या हार, बीमार व्यक्ति स्वस्थ होगा या नहीं, घर से गया व्यक्ति वापस लौटेगा या नहीं.इतना ही नहीं प्रश्न कुण्डली से यह भी ज्ञात किया जा सकता है कि खोया सामान मिलेगा अथवा नहीं.

प्रश्न कुण्डली मे राशियों का स्थान

प्रश्न ज्योतिष मे राशियो का वर्गीकरण यहाँ यह बताता है कि शिरशोदय राशियाँ प्रश्न कि सफलता बताती है और पृष्टोदय राशियाँ प्रश्न की असफलता कि ओर इशारा करती है, सामान्य प्रश्नों में लग्न में शुभ ग्रह का होना, अच्छा माना जाता है और अशुभ ग्रह का बैठना अशुभ.लग्न को शुभ ग्रह देखे तो प्रश्न कि सफलता कि ओर कदम कह सकते है। इसी प्रकार दिवाबली राशि शुभ प्रश्न कि ओर इशारा करती है जबकि रात्रिबली राशि अशुभ विषय से सम्बन्धित प्रश्न को दर्शाती है। अपने प्रश्न कि पुष्टि के लिए प्रश्न के योग को जन्म कुण्डली में भी देखा जा सकता है जैसे- लग्न मै चर राशि का उदय होना यह बताता है कि स्थिति बदलने वाली है और स्थिर राशि यह बताती है कि जो है वही बना रहेगा, अर्थात यात्रा के प्रश्न में लग्न में चर राशि होने पर यात्रा होगी और स्थिर राशि होने पर नहीं होगी तथा द्विस्वभाव होने पर लग्न के अंशो पर ध्यान दिया जाता है, 00 से 150 तक स्थिर राशि के समान होगा, अन्यथा चर राशि के समान होगा. प्रश्न कि सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है, कि लग्न, लग्नेश, भाव, भावेश का सम्बन्ध जितना अधिक होगा, कार्यसिद्धि उतनी जल्द होगी. प्रश्न मन कि इच्छा है, प्रश्नकर्ता कि जो इच्छा है वह प्रश्नकर्ता के पक्ष मै है या नहीं यह प्रश्नन से देखा जाता है जैसे यात्रा के प्रश्न में प्रश्नकर्ता यात्रा चाहता है और प्रश्न कुण्डली में भी यह आता है तभी कहा जाता है कि व्यक्ति यात्रा करेगा, अन्यथा नहीं. प्रश्न कुण्डली में हार जीत का प्रश्न एक ऐसा प्रश्न है जिसमें लग्न में शुभ ग्रह का होना अशुभ फल देता है जबकि अशुभ अथवा क्रूर ग्रह का परिणाम शुभ होता है। यहां विचारणीय तथ्य यह है कि अगर लग्न एवं सप्तम भाव दोनों ही में अशुभ ग्रह बैठे हों तो अंशों से फल को देखा जाता है। तथ्य यह है कि अगर लग्न एवं सप्तम भाव दोनों ही में अशुभ ग्रह बैठे हों तो अंशों से फल को देखा जाता है।
भाव और कार्येस में सम्बन्ध “

भावो कि संख्या कुण्डली मे १२ है। जन्म कुण्डली मे प्रत्येक भाव स्थिर है और सभी का अपना महत्व है। प्रश्न कुण्डली में किस भाव से क्या देखना है यह प्रश्न पर निर्भर करता है। प्रश्न कुण्डली मे कार्येश वह है जिसके विषय मे प्रश्न किया गया है जैसे- विवाह के प्रश्न मे सप्तम भाव का स्वामी (भावेश) कार्येश है। इसी प्रकार सन्तान के प्रश्न मे पंचमेश कार्येश है। प्रश्न कुण्डली मे प्रश्न की सफलता के लिए भावेश ओर कार्येश मे सम्बन्ध देखा जाता है। इन दोनो मे जितना दृष्टि सम्बन्ध हो, ये दोनो अंशो मे जितने निकट हो उतना ही अच्छा माना जाता है। यदि ये दोनो लग्न, लग्नेश, चंद्र और गुरु से सम्बन्ध बनाये तो उत्तर साकारात्मक होगा, अन्यथा नही।
: ज्योतिष की विधा भृगु संहिता से यह पता लगाया जा सकता है।
इसके अनुसार किसी स्त्री की कुंडली का सप्तम भाव विवाह का कारक स्थान माना जाता है। अलग-अलग लग्न के अनुसार इस भाव की राशि और स्वामी भी बदल जाते हैं। अत: यहां जैसी राशि रहती है, व्यक्ति का जीवन साथी भी वैसा ही होता है।

फलित शास्त्र के अनुसार लड़की की जन्म लग्न कुंडली में लग्न से सप्तम भाव उसके जीवन, पति, दाम्पत्य जीवन तथा वैवाहिक संबंधों का भाव है। इस भाव से उसके होने वाले पति का कद, रंग, रूप, चरित्र, स्वभाव, आर्थिक स्थिति, व्यवसाय या कार्यक्षेत्र, परिवार से संबंध कि आदि की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यहां सप्तम भाव के आधार पर कन्या के विवाह से संबंधित विभिन्न तथ्यों का विश्लेषण प्रस्तुत है स्लाइडर में तस्वीरों के साथ-

क्या होगी शादी की आयु
हम आगे की स्लाइड में आपको बतायेंगे कि कैसे किसी लड़की की शादी की उम्र ज्ञात की जा सकती है।

लड़की का विवाह
बाल्यावस्था में शादी
यदि किसी लड़की या लड़के की जन्मकुंडली में बुध स्वराशि मिथुन या कन्या का होकर सप्तम भाव में बैठा हो, तो विवाह बाल्यावस्था में होगा।

कन्या का विवाह
शादी 13 से 18 साल की उम्र में
यदि जातक या जातका की जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव में सप्तमेश बुध हो और वह पाप ग्रह से प्रभावित न हो, तो शादी 13 से 18 वर्ष की आयु सीमा में होता है।

शादी 18 साल के अंदर
सप्तम भाव में सप्तमेश मंगल
यदि जातक या जातका की जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव में सप्तमेश बुध हो और वह पाप ग्रह से प्रभावित न हो, तो शादी 18 वर्ष के अंदर होगी।

कन्या की शादी
22 साल की उम्र में विवाह
चंद्रमा सप्तमेश होकर पापी ग्रह से प्रभावित हो, तो विवाह 22 वर्ष की आयु में होगा।

कन्या की शादी
25 साल की उम्र में विवाह
शुक्र ग्रह युवा अवस्था का द्योतक है। सप्तमेश शुक्र पापी ग्रह से प्रभावित हो, तो 25 वर्ष की आयु में विवाह होगा।

लड़की का विवाह
27 से 28 साल की उम्र में शादी
बृहस्पति सप्तम भाव में सप्तमेश होकर पापी ग्रहों से प्रभावित न हो, तो शादी 27-28 वें वर्ष में होगी।

लड़की का विवाह
30 साल की उम्र में विवाह
सप्तम भाव को सभी ग्रह पूर्ण दृष्टि से देखते हैं तथा सप्तम भाव में शुभ ग्रह से युक्त हो कर चर राशि हो, तो जातिका का विवाह 30 वर्ष की आयु में संपन्न हो जाता है।

कितनी दूरी पर होगा लड़की का ससुराल
हमारी इस सीरीज़ के अगले भाग में हम आपको बतायेंगे कि कन्या की शादी के बाद उसका ससुराल कितनी दूरी पर होगा। ससुराल गांव में होगा या शहर में या फिर विदेश में? सब कुछ बताता है ज्योतिष।

सभी 12 राशियों की 15-15 खास बातें।

मेष- चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, आ
राशि स्वरूप: मेंढा जैसा, राशि स्वामी- मंगल।

  1. राशि चक्र की सबसे पहली राशि मेष है। यह राशि चर (चलित) स्वभाव की होती है। राशि का चिह्न मेढ़ा संघर्ष का प्रतीक है।
  2. मेष राशि वाले आकर्षक होते हैं। इनका स्वभाव कुछ रुखा हो सकता है। दिखने में सुंदर होते हैं। यह लोग किसी के दबाव में काम करना पसंद नहीं करते। इनका चरित्र साफ-सुथरा एवं आदर्शवादी होता है।
  3. बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं। समाज में इनका वर्चस्व होता है और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।
  4. निर्णय लेने में जल्दबाजी करते हैं तथा जिस काम को हाथ में लिया है, उसे पूरा किए बिना पीछे नहीं हटते।
  5. इनके स्वभाव में कभी-कभी लापरवाही भी आ जाती है। लालच करना इस राशि के लोगों के स्वभाव मे नहीं होता। दूसरों की मदद करना इन्हें अच्छा लगता है।
  6. इनकी कल्पना शक्ति की अच्छी रहती है। सोचते बहुत ज्यादा हैं।
  7. जैसा खुद का स्वभाव है, वैसी ही अपेक्षा दूसरों से भी करते हैं। इस कारण कई बार धोखा भी खाते हैं।
  8. इन्हें गुस्सा बहुत जल्दी आता है। किसी भी चुनौती को स्वीकार करने की आदत होती है।
  9. अपना अपमान जल्दी नहीं भूलते हैं, मन में दबा के रखते हैं। मौका मिलने पर बदला लेने से नहीं चूकते।
  10. अपनी जिद पर अड़े रहना भी मेष राशि का स्वभाव है। इनके भीतर एक कलाकार छिपा होता है।
  11. ये लोग हर काम करने में सक्षम हो सकते हैं। स्वयं को श्रेष्ठ समझते हैं।
  12. अपनी मर्जी के अनुसार ही दूसरों से काम करवाना चाहते हैं। इस कारण इनके कई दुश्मन खड़े हो जाते हैं।
  13. एक ही काम को बार-बार करना इस राशि के लोगों को पसंद नहीं होता।
  14. एक ही जगह ज्यादा दिनों तक रहना भी अच्छा नहीं लगता है। नेतृत्व क्षमता अच्छी होती है।
  15. कम बोलना, जिद करना इनका स्वभाव है। कभी-कभी प्रेम संबंध में दुखी भी रहते हैं।

वृष- ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो
राशि स्वरूप- बैल जैसा
राशि स्वामी- शुक्र।
राशि परिचय

  1. इस राशि का चिह्न बैल है। बैल अधिक पारिश्रमी और ताकतवर होता है, साधारणत: ये जीव शांत भी रहता है, लेकिन गुस्सा आने पर वह उग्र रूप धारण कर लेता है। इसी प्रकार का स्वभाव वृष राशि का भी होता है।
  2. वृष राशि का स्वामी शुक्र ग्रह है। इसके अन्तर्गत कृत्तिका नक्षत्र के तीन चरण, रोहिणी के चारों चरण और मृगशिरा के प्रथम दो चरण आते हैं।
  3. सरकारी ठेकेदारी का काम करवाने की योग्यता इस राशि के लोगों में रहती है।
  4. इनके जीवन में पिता-पुत्र का कलह रहता है, व्यक्ति का मन सरकारी कामों की ओर रहता है।
  5. पिता के पास जमीनी काम या जमीन के द्वारा धन कमाने का साधन होता है। इन लोगों को मसालेदार भोजन अधिक पसंद होता है।
  6. इन लोगों के पास ज्ञान अधिक होता है, जिससे अहम का भाव इनके स्वभाव में आ जाता है। ये लोग जब भी कोई बात करते हैं तो स्वाभिमान की बात करते हैं।
  7. सरकारी क्षेत्रों की शिक्षा और सरकारी काम इनको आकर्षित करते हैं।
  8. यदि कुंडली में केतु का बल मिल जाता है तो व्यक्ति शासन में मुख्य अधिकारी बनने की योग्यता रखता है। मंगल के प्रभाव से व्यक्ति के अंदर मानसिक गर्मी बढ़ती है।
  9. कारखानों, स्वास्थ्य कार्यों और जनता के झगड़े सुलझाने का काम ये लोग कर सकते हैं। इनकी माता के जीवन में परेशानियां ज्यादा होती हैं।
  10. ये लोग सौन्दर्य प्रेमी और कला प्रिय होते हैं। कला के क्षेत्र में नाम कमाते हैं।
  11. माता और पति का साथ या माता और पत्नी का साथ घरेलू वातावरण में तालमेल लाता है। ये लोग अपने जीवनसाथी के अधीन रहना पसंद करते हैं।
  12. चन्द्र-बुध के कारण इन लोगों को संतान के रूप में कन्या मिल सकती है। माता के साथ वैचारिक मतभेद का वातावरण बनाता है।
  13. इनके जीवन में व्यापारिक यात्राएं काफी होती हैं, अपने ही बनाए हुए उसूलों पर जीवन चलाते हैं।
  14. हमेशा दिमाग में कोई योजना बनती रहती है। कई बार खुद के षडयंत्रों में खुद ही फंस भी जाते हैं।
  15. रोहिणी नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी चन्द्रमा है, इस कारण इनके मन में उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी रहती है।

मिथुन- का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, ह
राशि स्वरूप- स्त्री-पुरुष आलिंगनबद्ध, राशि स्वामी- बुध।

  1. यह राशि चक्र की तीसरी राशि है। राशि का प्रतीक युवा दम्पति है, यह द्वि-स्वभाव वाली राशि है।
  2. मृगशिरा नक्षत्र के तीसरे चरण के स्वामी मंगल-शुक्र हैं। मंगल शक्ति और शुक्र माया का प्रतीक है।
  3. शुक्र के कारण ये लोग जीवनसाथी के लिए हमेशा शक्ति बन रहते हैं, कभी-कभी घरेलू कारणों से आपस में तनाव उत्पन्न हो सकता है।
  4. यदि इनकी कुंडली में मंगल और शुक्र की युति है तो इन लोगों में स्त्री रोगों को परखने की अद्भुत क्षमता होती है।
  5. ये लोग वाहनों की अच्छी जानकारी रखते हैं। नए-नए वाहनों और सुख के साधनों के प्रति अत्यधिक आकर्षण होता है। इनका घरेलू साज-सज्जा के प्रति अधिक झुकाव होता है।
  6. मंगल के कारण व्यक्ति वचनों का पक्का बन जाता है।
  7. गुरु आसमान का राजा है तो राहु गुरु का शिष्य है। कुंडली में इन ग्रहों की स्थिति से इस राशि के लोगों में ईश्वर की भक्ति को बढ़ाते हैं।
  8. इस राशि के लोगों में ब्रह्माण्ड को समझने की योग्यता होती है। ये लोग वायुयान और सैटेलाइट के बारे में ज्ञान बढ़ाते हैं।
  9. यदि कुंडली में राहु-शनि एक साथ हैं तो व्यक्ति की शिक्षा और शक्ति बढ़ती रहती है। व्यक्ति का कार्य शिक्षा स्थानों में या बिजली, पेट्रोल या वाहन वाले कामों की ओर होता है।
  10. व्यक्ति एक दायरे में रह कर ही काम कर पाते हैं और पूरा जीवन लाभ प्राप्त करते हैं। व्यक्ति के अंदर एक मर्यादा होती है जो उसे धर्म में बांधे रखती है। व्यक्ति सामाजिक और धार्मिक कार्यों में लगा रहता है।
  11. यदि कुंडली में गुरु और मंगल एक साथ हों तो व्यक्ति अपने क्षेत्र में उच्च शिखर तक पहुंच सकता है।
  12. व्यक्ति अपने ही विचारों में उलझता है। मिथुन राशि पश्चिम दिशा की प्रतीक है। इसका स्वामी बुध है।
  13. बुध की धातु पारा है और इसका स्वभाव जरा-सी गर्मी-सर्दी में ऊपर नीचे होने वाला है। यही स्वभाव इन लोगों का भी होता है। दूसरे की मन की बातें पढ़ने, दूरदृष्टि, बहुमुखी प्रतिभा, अधिक चतुराई से कार्य करने की क्षमता होती है।
  14. व्यक्ति को बुद्धि वाले कामों में सफलता मिलती है। वाणी की चतुरता से इस राशि के लोग कुशल कूटनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञ भी बन जाते हैं।
  15. हर काम में जिज्ञासा और खोजी दिमाग होने के कारण इस राशि के लोग जांच-पड़ताल में भी सफल होते हैं। ये लोग पत्रकार, लेखक, भाषाओं की जानकारी रखने वाले, योजनाकार भी बन सकते हैं।

कर्क- ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो
राशि स्वरूप- केकड़ा, राशि स्वामी- चंद्रमा।

  1. ये राशि चक्र की चौथी राशि है। इस राशि का चिह्न केकड़ा है। यह चर राशि है।
  2. राशि स्वामी चन्द्रमा है। इसके अन्तर्गत पुनर्वसु नक्षत्र का अंतिम चरण, पुष्य नक्षत्र के चारों चरण तथा अश्लेषा नक्षत्र के चारों चरण आते हैं।
  3. कर्क राशि के लोग कल्पनाशील होते हैं। कुंडली में शनि-सूर्य एक साथ हों तो व्यक्ति को मानसिक रूप से अस्थिर बनाते हैं और व्यक्ति में अहम की भावना बढ़ाते हैं।
  4. जिस स्थान पर भी ये लोग काम करने की इच्छा करते हैं, वहां परेशानी ज्यादा मिलती है।
  5. कुंडली में शनि-बुध की युति व्यक्ति को होशियार बना देती है। कुंडली में शनि-शुक्र की युति से व्यक्ति को धन प्राप्त होता है।
  6. शुक्र व्यक्ति को सजने-संवरने की कला देता है और शनि अधिक आकर्षण देता है।
  7. व्यक्ति उपदेशक बन सकता है। कुंडली में बुध की अच्छी स्थिति से गणित की समझ और शनि से लिखने का प्रभाव बढ़ता है। कम्प्यूटर के कामों में व्यक्ति को सफलता मिलती है।
  8. व्यक्ति श्रेष्ठ बुद्धि वाला, जल मार्ग से यात्रा पसंद करने वाला, ज्योतिषी, सुगंधित पदार्थों का का काम करने वाला होता है। वह मातृभक्त होता है।
  9. केकड़ा जब किसी चीज या जीव को अपने पंजों में जकड़ लेता है तो उसे आसानी से छोड़ता नहीं है। उसी तरह ये लोग भी अपने लोगों को तथा अपने विचारों को आसानी से छोड़ते नहीं हैं।
  10. यह भावना उन्हें ग्रहणशील, एकाग्रता और धैर्य के गुण प्रदान करती है।
  11. इनका मूड बदलते देर नहीं लगती है। कल्पनाशक्ति और स्मरण शक्ति बहुत तेज होती है।
  12. उनके लिए अतीत का महत्व होता है। मित्रता को जीवन भर निभाना जानते हैं, अपनी इच्छा के स्वामी होते हैं।
  13. ये सपना देखने वाले होते हैं, परिश्रमी और उद्यमी होते हैं।
  14. व्यक्ति बचपन में दुर्बल होते हैं, लेकिन आयु के साथ-साथ उनके शरीर का विकास होता जाता है।
  15. इन लोगों को भोजन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है।

सिंह- मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे

राशि स्वरूप- शेर जैसा,
राशि स्वामी- सूर्य।

  1. सिंह राशि पूर्व दिशा की प्रतीक है। इसका चिह्न शेर है। राशि का स्वामी सूर्य है और इस राशि का तत्व अग्नि है।
  2. इसके अन्तर्गत मघा नक्षत्र के चारों चरण, पूर्वा फाल्गुनी के चारों चरण और उत्तराफाल्गुनी का पहला चरण आता है।
  3. केतु-मंगल की युति कुंडली में हो तो व्यक्ति दिमागी रूप से तेज होता है। केतु-शुक्र की युति कुंडली में हो तो व्यक्ति सजावट और सुन्दरता के प्रति आकर्षण को बढ़ाता है।
  4. केतु-बुध के प्रभाव से कल्पना करने और हवाई किले बनाने की इनकी सोच होती है। चंद्र-केतु की युति कुंडली में हो तो व्यक्ति की कल्पना शक्ति का विकास होता है।
  5. व्यक्ति का सुन्दरता के प्रति मोह होता है। व्यक्ति में अपने प्रति स्वतंत्रता की भावना रहती है और किसी की बात नहीं मानता।
  6. ये लोग पित्त और वायु विकार से परेशान रहने वाले, रसीली वस्तुओं को पसंद करने वाले होते हैं। कम भोजन करना और खूब घूमना, इनकी आदत होती है।
  7. इनमें हिम्मत बहुत अधिक होती है और मौका आने पर जोखिमभरे काम करने से भी नहीं चूकते।
  8. व्यक्ति जीवन के पहले दौर में सुखी, दूसरे दौर में दुखी और अंतिम अवस्था में पूर्ण सुखी होता है।
  9. सिंह राशि वाले लोग हर काम शाही ढंग से करते हैं, जैसे सोचना शाही, करना शाही, खाना शाही और रहना शाही।
  10. इस राशि वाले लोग जुबान के पक्के होते हैं। ये लोग जो खाते हैं वही खाएंगे, अन्यथा भूखा रहना पसंद करेंगे।
  11. व्यक्ति कठोर मेहनत करने वाले, धन के मामलों में बहुत ही भाग्यशाली होते हैं। सोना, पीतल और हीरे-जवाहरात का व्यवसाय इन्हें बहुत फायदा देने वाले होते हैं।
  12. यदि ये लोग सरकार और नगर पालिका में कार्यरत हैं तो इन्हें लाभ अधिक मिलता है। व्यक्ति की वाणी और चाल में शालीनता पाई जाती है।
  13. इस राशि वाले लोग सुगठित शरीर के मालिक होते हैं। नाचना भी इनकी एक विशेषता होती है। इस राशि वाले या तो बिल्कुल स्वस्थ रहते हैं या फिर अधिकतर बीमार रहते हैं।
  14. जिस वातावरण में इनको रहना चाहिए, अगर वह न मिले तो दुखी रहने लगते हैं।
  15. रीढ़ की हड्डी की बीमारी या चोटों से परेशानियां हो सकती हैं। इस राशि के लोगों को हृदय रोग, धड़कन का तेज होना, लू लगना और आदि बीमारी होने की संभावनाएं होती हैं।

कन्या- ढो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो
राशि स्वरूप- कन्या, राशि स्वामी- बुध।

  1. राशि चक्र की छठी कन्या राशि दक्षिण दिशा की प्रतीक है। इस राशि का चिह्न हाथ में फूल लिए कन्या है। राशि का स्वामी बुध है। इसके अंतर्गत उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के दूसरे, तीसरे और चौथे चरण, चित्रा के पहले दो चरण और हस्त नक्षत्र के चारों चरण आते हैं।
  2. कन्या राशि के लोग बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी होते हैं। भावुक भी होते हैं और वह दिमाग की अपेक्षा दिल से ज्यादा काम लेते हैं।
  3. इस राशि के लोग संकोची, शर्मीले और झिझकने वाले होते हैं।
  4. मकान, जमीन और सेवाओं वाले क्षेत्र में इस राशि के व्यक्ति कार्य करते हैं।
  5. स्वास्थ्य की दृष्टि से फेफड़ों में शीत, पाचनतंत्र एवं आंतों से संबंधी बीमारियां इन लोगों मे मिलती हैं। इन्हें पेट की बीमारी से कष्ट होता है। पैर के रोगों से भी सचेत रहना चाहिए।
  6. बचपन से युवावस्था की अपेक्षा इनकी वृद्धावस्था अधिक सुखी और ज्यादा स्थिर होती है।
  7. इस राशि वाले पुरुषों का शरीर भी स्त्रियों की भांति कोमल हो सकता है। ये लोग नाजुक और कलाओं से प्रेम करने वाले लोग होते हैं।
  8. ये अपनी योग्यता के बल पर उच्च पद पर पहुंचते हैं। विपरीत परिस्थितियां भी इन्हें डरा नहीं सकतीं और ये अपनी सूझबूझ, धैर्य, चातुर्य से आगे बढ़ते रहते हैं।
  9. बुध ग्रह का प्रभाव इनके जीवन मे स्पष्ट झलकता है। अच्छे गुण, विचारपूर्ण जीवन, बुद्धिमत्ता इस राशि के लोगों में देखने को मिलती है।
  10. शिक्षा और जीवन में सफलता के कारण इनके स्वभाव से शर्म तो कम हो जाती है, लेकिन नम्रता तो इनका स्वाभाविक गुण है।
  11. इनको अकारण क्रोध नहीं आता, लेकिन जब क्रोध आता है तो जल्दी समाप्त नहीं होता। जिस कारण क्रोध आता है, उसके प्रति घृणा की भावना इनके मन में घर कर जाती है।
  12. इनमें भाषण देने व बातचीत करने की अच्छी कला होती है। संबंधियों से इन्हें विशेष लाभ नहीं होता है, इनका वैवाहिक जीवन भी सामान्य नहीं होता है।
  13. इनके प्रेम संबंध सफल नहीं होते हैं। करीबी लोगों के साथ इनके झगड़े चलते रहते हैं।
  14. ऐसे व्यक्ति धार्मिक विचारों में आस्था रखते हैं, लेकिन ये लोग किसी विशेष मत के नहीं होते हैं। इन्हें बहुत यात्राएं भी करनी पड़ती है तथा विदेश जाने की भी संभावनाएं रहती हैं। जिस काम में हाथ डालते हैं, लगन के साथ पूरा करके ही छोड़ते हैं।
  15. इस राशि वाले लोग अपरिचित लोगों में अधिक लोकप्रिय होते हैं। वैसे इन लोगों की मित्रता किसी भी प्रकार के व्यक्ति के साथ हो सकती है।

तुला- रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते
राशि स्वरूप- तराजू जैसा,
राशि स्वामी- शुक्र।

  1. तुला राशि का चिह्न तराजू है और यह राशि पश्चिम दिशा की प्रतीक है, यह वायुतत्व की राशि है। शुक्र राशि का स्वामी है। इस राशि वालों को कफ की समस्या होती है।
  2. इस राशि के पुरुष सुंदर, आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं। आंखों में चमक व चेहरे पर प्रसन्नता झलकती है। इनका स्वभाव सम होता है।
  3. ये लोग किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होते, दूसरों को प्रोत्साहन देना, सहारा देना इनका स्वभाव होता है। ये व्यक्ति कलाकार होते हैं।
  4. ये लोग व्यावहारिक भी होते हैं और इनके मित्र इन्हें पसंद करते हैं।
  5. तुला राशि की स्त्रियां आकर्षक होती हैं। इनका स्वभाव खुशमिजाज व मुस्कान बहुत ही सुंदर होती है। बुद्धि वाले काम करने में इनकी अधिक रुचि होती है।
  6. घर की साज-सज्जा और खुद को सुंदर दिखाने का शौक रहता है। कला, गायन आदि घरेलू कामों में दक्ष होती हैं। बच्चों से बेहद जुड़ाव रहता है।
  7. तुला राशि के बच्चे सीधे, संस्कारी और आज्ञाकारी होते हैं। घर में रहना अधिक पसंद करते हैं। खेलकूद व कला के क्षेत्र में रुचि रखते हैं।
  8. तुला राशि के लोग दुबले-पतले, लम्बे व आकर्षक व्यक्तिव वाले होते हैं। जीवन में आदर्शवाद व व्यवहारिकता में पर्याप्त संतुलन रखते हैं।
  9. इनकी आवाज सभी को अच्छी लगती है। चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान छाई रहती है।
  10. इन्हें ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा करना बहुत अच्छा लगता है। ये अच्छे साथी हैं, चाहें वह वैवाहिक जीवन हो या व्यावसायिक जीवन।
  11. अपने व्यवहार में बहुत न्यायवादी व उदार होते हैं। कला और साहित्य से जुड़े रहते हैं। इन्हें गीत, संगीत, यात्रा आदि का शौक रखने वाले व्यक्ति अधिक अच्छे लगते हैं।
  12. लड़कियां आत्म विश्वास से भरपूर होती हैं। मनपसंद रंग गहरा नीला व सफेद होते हैं। वैवाहिक जीवन में स्थायित्व पसंद आता है।
  13. वाद-विवाद में समय व्यर्थ नहीं करती हैं। सामाजिक पार्टियों, उत्सवों में रुचिपूर्वक भाग लेती हैं।
  14. इनके बच्चे पढ़ाई या नौकरी आदि कारणों से दूर जा सकते हैं।
  15. ये एक कुशल मां साबित होती हैं जो कि अपने बच्चों को उचित शिक्षा व आत्मविश्वास प्रदान करती हैं।

वृश्चिक- तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू
राशि स्वरूप- बिच्छू जैसा,
राशि स्वामी- मंगल।

  1. वृश्चिक राशि का चिह्न बिच्छू है और यह राशि उत्तर दिशा की प्रतीक है। वृश्चिक राशि जलतत्व की राशि है। इसका स्वामी मंगल है। यह स्थिर राशि है।
  2. कुंडली में मंगल की कमजोर स्थिति से रोग हो सकते हैं। ये लोग एलर्जी से भी अक्सर परेशान रहते हैं। विशेषकर जब चंद्रमा कमजोर हो।
  3. वृश्चिक राशि वालों में दूसरों को आकर्षित करने की अच्छी क्षमता होती है। इस राशि के लोग बहादुर, भावुक होने के साथ-साथ कामुक भी होते हैं।
  4. इनकी शारीरिक संरचना अच्छी तरह से विकसित होती है। इनके कंधे चौड़े होते हैं। इनमें शारीरिक व मानसिक शक्ति प्रचूर मात्रा में होती है।
  5. इन्हें बेवकूफ बनाना आसान नहीं होता है, इसलिए कोई भी इन्हें धोखा नहीं दे सकता। ये हमेशा साफ-सुथरी और सही सलाह देने में विश्वास रखते हैं।
  6. ये लोग ज्यादातर दूसरों के विचारों का विरोध करते हैं। कभी-कभी ये आदत इनके विरोध का कारण भी बन सकती है।
  7. ये अक्सर विविधता की तलाश में रहते हैं। वृश्चिक राशि के लड़के बहुत कम बोलते होते हैं। इन्हें दुबली-पतली लड़कियां आकर्षित करती हैं।
  8. वृश्चिक वाले एक जिम्मेदार गृहस्थ की भूमिका निभाते हैं। अति महत्वाकांक्षी और जिद्दी होते हैं। अपने रास्ते चलते हैं मगर किसी का हस्तक्षेप पसंद नहीं करते।
  9. लोगों की गलतियों और बुरी बातों को याद रखते हैं और समय आने पर उनका उत्तर भी देते हैं। इनकी वाणी कटु और गुस्सा तेज होता है मगर मन साफ होता है। दूसरों में दोष ढूंढने की आदत होती है। जोड़-तोड़ की राजनीति में चतुर होते हैं।
  10. इस राशि की लड़कियां तीखे नयन-नक्ष वाली होती हैं। यह ज्यादा सुन्दर न हों तब भी इनमें आकर्षण रहता है। इनका बातचीत करने का विशेष अंदाज होता है।
  11. ये बुद्धिमान और भावुक होती हैं। इनकी इच्छा शक्ति बहुत दृढ़ होती है। स्त्रियां जिद्दी और अति महत्वाकांक्षी होती हैं। थोड़ी स्वार्थी प्रवृत्ति की भी होती हैं।
  12. स्वतंत्र निर्णय लेना इनकी आदत में होता है। मायके से अधिक स्नेह रहता है। नौकरीपेशा होने पर अपना वर्चस्व बनाए रखती हैं।
  13. इन लोगों में काम करने की क्षमता काफी अधिक होती है। वाणी की कटुता होती है, सुख-साधनों की लालसा सदैव बनी ही रहती है।
  14. ये व्यक्ति जिद्दी होते हैं, काम के प्रति लगन रखते हैं। ये व्यक्ति उदार व आत्मविश्वासी भी होते है।
  15. वृश्चिक राशि के बच्चे परिवार से अधिक स्नेह रखते हैं। कम्प्यूटर-टीवी का बेहद शौक होता है। दिमागी शक्ति तीव्र होती है, खेलों में इनकी रुचि होती है।

धनु- ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे
राशि स्वरूप- धनुष उठाए हुए,
राशि स्वामी- बृहस्पति।

  1. धनु द्वि-स्वभाव वाली राशि है। इस राशि का चिह्न धनुषधारी है। यह राशि दक्षिण दिशा की प्रतीक है।
  2. धनु राशि वाले काफी खुले विचारों के होते हैं। जीवन के अर्थ को अच्छी तरह समझते हैं।
  3. दूसरों के बारे में जानने की कोशिश में हमेशा करते रहते हैं।
  4. धनु राशि वालों को रोमांच काफी पसंद होता है। ये निडर व आत्म विश्वासी होते हैं। ये अत्यधिक महत्वाकांक्षी और स्पष्टवादी होते हैं।
  5. स्पष्टवादिता के कारण दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचा देते हैं।
  6. इनके अनुसार जो इनके द्वारा परखा हुआ है, वही सत्य है। इसीलिए इनके मित्र कम होते हैं। ये धार्मिक विचारधारा से दूर होते हैं।
  7. धनु राशि के लड़के मध्यम कद-काठी के होते हैं। इनके बाल भूरे व आंखें बड़ी-बड़ी होती हैं। इनमें धैर्य की कमी होती है।
  8. इन्हें मेकअप करने वाली लड़कियां पसंद हैं। इन्हें भूरा और पीला रंग प्रिय होता है।
  9. अपनी पढ़ाई और करियर के कारण अपने जीवन साथी और विवाहित जीवन की उपेक्षा कर देते हैं। पत्नी को शिकायत का मौका नहीं देते और घरेलू जीवन का महत्व समझते हैं।
  10. धनु राशि की लड़कियां लंबे कदमों से चलने वाली होती हैं। ये आसानी से किसी के साथ दोस्ती नहीं करती हैं।
  11. ये एक अच्छी श्रोता होती हैं और इन्हें खुले और ईमानदारी पूर्ण व्यवहार के व्यक्ति पसंद आते हैं। इस राशि की स्त्रियां गृहणी बनने की अपेक्षा सफल करियर बनाना चाहती है।
  12. इनके जीवन में भौतिक सुखों की महत्ता रहती है। सामान्यत: सुखी और संपन्न जीवन व्यतीत करती हैं।
  13. इस राशि के व्यक्ति ज्यादातर अपनी सोच का विस्तार नहीं करते एवं कई बार कन्फयूज रहते हैं। एक निर्णय पर पंहुचने पर इनको समय लगता है एवं यह देरी कई बार नुकसानदायक भी हो जाती है।
  14. ज्यादातर यह लोग दूसरों के मामलों में दखल नहीं देते एवं अपने काम से काम रखते हैं।
  15. इनका पूरा जीवन लगभग मेहनत करके कमाने में जाता है या यह अपने पुश्तैनी कार्य को ही आगे बढाते हैं।

मकर- भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी
राशि स्वरूप- मगर जैसा,
राशि स्वामी- शनि।

  1. मकर राशि का चिह्न मगरमच्छ है। मकर राशि के व्यक्ति अति महत्वाकांक्षी होते हैं। यह सम्मान और सफलता प्राप्त करने के लिए लगातार कार्य कर सकते हैं।
  2. इनका शाही स्वभाव व गंभीर व्यक्तित्व होता है। आपको अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ता है।
  3. इन्हें यात्रा करना पसंद है। गंभीर स्वभाव के कारण आसानी से किसी को मित्र नहीं बनाते हैं। इनके मित्र अधिकतर कार्यालय या व्यवसाय से ही संबंधित होते हैं।
  4. सामान्यत: इनका मनपसंद रंग भूरा और नीला होता है। कम बोलने वाले, गंभीर और उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों को ज्यादा पसंद करते हैं।
  5. ईश्वर व भाग्य में विश्वास करते हैं। दृढ़ पसंद-नापसंद के चलते इनका वैवाहिक जीवन लचीला नहीं होता और जीवनसाथी को आपसे परेशानी महसूस हो सकती है।
  6. मकर राशि के लड़के कम बोलने वाले होते हैं। इनके हाथ की पकड़ काफी मजबूत होती है। देखने में सुस्त, लेकिन मानसिक रूप से बहुत चुस्त होते हैं।
  7. प्रत्येक कार्य को बहुत योजनाबद्ध ढंग से करते हैं।
  8. आपकी खामोशी आपके साथी को प्रिय होती है। अगर आपका जीवनसाथी आपके व्यवहार को अच्छी तरह समझ लेता है तो आपका जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होता है।
  9. आप जीवन साथी या मित्रों के सहयोग से उन्नति प्राप्त कर सकते हैं।
  10. मकर राशि की लड़कियां लम्बी व दुबली-पतली होती हैं। यह व्यायाम आदि करना पसंद करती हैं। लम्बे कद के बाबजूद आप ऊंची हिल की सैंडिल पहनना पसंद करती हैं।
  11. पारंपरिक मूल्यों पर विश्वास करने वाली होती हैं। छोटे-छोटे वाक्यों में अपने विचारों को व्यक्त करती हैं।
  12. दूसरों के विचारों को अच्छी तरह से समझ सकती हैं। इनके मित्र बहुत होते हैं और नृत्य की शौकिन होती हैं।
  13. इनको मजबूत कद-कठी के व्यक्ति बहुत आकर्षित करते हैं। अविश्वसनीय संबंधों में विश्वास नहीं करती हैं।
  14. अगर आप करियर वुमन हैं तो आप कार्य क्षेत्र में अपना अधिकतर समय व्यतीत करती हैं।
  15. आप अपने घर या घरेलू कार्यों के विषय में अधिक चिंता नहीं करती है

कुंभ- गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा

राशि स्वरूप- घड़े जैसा, राशि स्वामी- शनि।

  1. राशि चक्र की यह ग्यारहवीं राशि है। कुंभ राशि का चिह्न घड़ा लिए खड़ा हुआ व्यक्ति है। इस राशि का स्वामी भी शनि है। शनि मंद ग्रह है तथा इसका रंग नीला है। इसलिए इस राशि के लोग गंभीरता को पसंद करने वाले होते हैं एवं गंभीरता से ही कार्य करते हैं।
  2. कुंभ राशि वाले लोग बुद्धिमान होने के साथ-साथ व्यवहारकुशल होते हैं। जीवन में स्वतंत्रता के पक्षधर होते हैं। प्रकृति से भी असीम प्रेम करते हैं।
  3. शीघ्र ही किसी से भी मित्रता स्थपित कर सकते हैं। आप सामाजिक क्रियाकलापों में रुचि रखने वाले होते हैं। इसमें भी साहित्य, कला, संगीत व दान आपको बेहद पसंद होता हैं।
  4. इस राशि के लोगों में साहित्य प्रेम भी उच्च कोटि का होता है।
  5. आप केवल बुद्धिमान व्यक्तियों के साथ बातचीत पसंद करते हैं। कभी भी आप अपने मित्रों से असमानता का व्यवहार नहीं करते हैं।
  6. आपका व्यवहार सभी को आपकी ओर आकर्षित कर लेता है।
  7. कुंभ राशि के लड़के दुबले होते हैं। आपका व्यवहार स्नेहपूर्ण होता है। इनकी मुस्कान इन्हें आकर्षक व्यक्तित्व प्रदान करती है।
  8. इनकी रुचि स्तरीय खान-पान व पहनावे की ओर रहती है। ये बोलने की अपेक्षा सुनना ज्यादा पसंद करते हैं। इन्हें लोगों से मिलना जुलना अच्छा लगता है।
  9. अपने व्यवहार में बहुत ईमानदार रहते हैं, इसलिये अनेक लड़कियां आपकी प्रशंसक होती हैं। आपको कलात्मक अभिरुचि व सौम्य व्यक्तित्व वाली लड़कियां आकर्षित करती हैं।
  10. अपनी इच्छाओं को दूसरों पर लादना पसंद नहीं करते हैं और अपने घर परिवार से स्नेह रखते हैं।
  11. कुंभ राशि की लड़कियां बड़ी-बड़ी आंखों वाली व भूरे बालों वाली होती हैं। यह कम बोलती हैं, इनकी मुस्कान आकर्षक होती है।
  12. इनका व्यक्तित्व बहुत आकर्षक होता है, किन्तु आसानी से किसी को अपना नहीं बनाती हैं। ये अति सुंदर और आकर्षक होती हैं।
  13. आप किसी कलात्मक रुचि, पेंटिग, काव्य, संगीत, नृत्य या लेखन आदि में अपना समय व्यतीत करती हैं।
  14. ये सामान्यत: गंभीर व कम बोलने वाले व्यक्तियों के प्रति आकर्षित होती हैं।
  15. इनका जीवन सुखपूर्वक व्यतित होता है, क्योंकि ये ज्यादा इच्छाएं नहीं करती हैं। अपने घर को भी कलात्मक रूप से सजाती हैं।

✔मीन- दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची

राशि स्वरूप- मछली जैसा, राशि स्वामी- बृहस्पति।

  1. मीन राशि का चिह्न मछली होता है। मीन राशि वाले मित्रपूर्ण व्यवहार के कारण अपने कार्यालय व आस पड़ोस में अच्छी तरह से जाने जाते हैं।
  2. आप कभी अति मैत्रीपूर्ण व्यवहार नहीं करते हैं। बल्कि आपका व्यवहार बहुत नियंत्रित रहता है। ये आसानी से किसी के विचारों को पढ़ सकते हैं।
  3. अपनी ओर से उदारतापूर्ण व संवेदनाशील होते हैं और व्यर्थ का दिखावा व चालाकी को बिल्कुल नापसंद करते हैं।
  4. एक बार किसी पर भी भरोसा कर लें तो यह हमेशा के लिए होता है, इसीलिये आप आपने मित्रों से अच्छा भावानात्मक संबंध बना लेते हैं।
  5. ये सौंदर्य और रोमांस की दुनिया में रहते हैं। कल्पनाशीलता बहुत प्रखर होती है। अधिकतर व्यक्ति लेखन और पाठन के शौकीन होते हैं। आपको नीला, सफेद और लाल रंग-रूप से आकर्षित करते हैं।
  6. आपकी स्तरीय रुचि का प्रभाव आपके घर में देखने को मिलता है। आपका घर आपकी जिंदगी में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
  7. अपने धन को बहुत देखभाल कर खर्च करते हैं। आपके अभिन्न मित्र मुश्किल से एक या दो ही होते हैं। जिनसे ये अपने दिल की सभी बातें कह सकते हैं। ये विश्वासघात के अलावा कुछ भी बर्दाश्त कर सकते हैं।
  8. मीन राशि के लड़के भावुक हृदय व पनीली आंखों वाले होते हैं। अपनी बात कहने से पहले दो बार सोचते हैं। आप जिंदगी के प्रति काफी लचीला दृटिकोण रखते हैं।
  9. अपने कार्य क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने के लिये परिश्रम करते हैं। आपको बुद्धिमान और हंसमुख लोग पसंद हैं।
  10. आप बहुत संकोचपूर्वक ही किसी से अपनी बात कह पाते हैं। एक कोमल व भावुक स्वभाव के व्यक्ति हैं। आप पत्नी के रूप में गृहणी को ही पसंद करते हैं।
  11. ये खुद घरेलू कार्यों में दखलंदाजी नहीं करते हैं, न ही आप अपनी व्यावसायिक कार्य में उसका दखल पसंद करते हैं। आपका वैवाहिक जीवन अन्य राशियों की अपेक्षा सर्वाधिक सुखमय रहता है।
  12. मीन राशि की लड़कियां भावुक व चमकदार आंखों वाली होती हैं। ये आसानी से किसी से मित्रता नहीं करती हैं, लेकिन एक बार उसकी बातों पर विश्वास हो जाए तो आप अपने दिल की बात भी उससे कह देती हैं।
  13. ये स्वभाव से कला प्रेमी होती हैं। एक बुद्धिमान व सभ्य व्यक्ति आपको आकर्षित करता है। आप शांतिपूर्वक उसकी बात सुन सकती हैं और आसानी से अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं करती हैं।
  14. अपनी मित्रता और वैवाहिक जीवन में सुरक्षा व दृढ़ता रखना पसंद करती हैं। ये अपने पति के प्रति विश्वसनीय होती है और वैसा ही व्यवहार अपने पति से चाहती हैं।
  15. आपको ज्योतिष आदि में रुचि हो सकती है। आपको नई-नई चीजें सीखने का शौक होता है।
    : ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुण्डली का नवम
    भाव भाग्य का होता है। यह स्थान यदि दूषित हो
    तो जातक भाग्यहीन होता है। नवम स्थान पर यदि
    चंद्र हो या उसकी दृष्टि हो तो भाग्य प्रबल होता
    है। वहीं राहु, मंगल, शनि यदि शत्रु राशि युक्त या
    नीच के हो तो जातक भाग्यहीनता से परेशान हो
    जाता है। उसको जरा जरा से काम में अड़चने आती हैं।
    सूर्य, शुक्र, बुध भाग्य स्थान पर सौभाग्यवती नारी
    दिलाते हैं। जो व्यक्ति के भाग्य को चमोत्कर्ष कर
    देती है। भाग्य स्थान पर गुरु मान सम्मान वैभव
    दिलाता है। वह व्यक्ति शुरू से ही अपने भाग्य के दम
    पर पूरे घर को तार देता है। केतु भाग्य स्थान पर
    सामान्य फल देने वाला होता है। भाग्य को बदलने में
    केवल ईश्वर ही सक्षम है। अत: अपने अपने इष्टदेव का
    रोजाना पूजन, अर्चन, अराधना करते रहें
    : ज्योतिष में त्रिदोषों का विवरण
    〰🌼〰🌼〰🌼〰🌼〰
    ज्योतिष एवं त्रिदोष आयुर्वेद का सबसे महत्वपूर्ण सूत्र यह है कि सभी रोगों का मुख्य कारण शरीर में विदेशी तत्व का संचय है। इन तत्वों के संचय से शरीर में त्रिदोष का संतुलन बिगड़ जाता है। यह त्रिदोष हैं- वात-पित्त और कफ। त्रिदोषों का संतुलन बिगडऩे से शारीरिक एवं मानसिक रोग होते हैं।

वैदिक काल में ज्योतिष और आयुर्वेद एक ही थे। ग्रह एवं राशियों का गहरा संबंध त्रिदोष के साथ है। यदि ज्योतिष और आयुर्वेद के संबंध को गहराई से समझा जाए एवं उन सिद्धांतों का प्रयोग किया जाए तो बहुत बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।

वात 👉 वात सबसे महत्वपूर्ण है तथा अन्य दो दोषों को नियंत्रित करती है। वात में स्थिति परिवर्तन करने की क्षमता होती है। जिस ग्रह का वात पर नियंत्रण है वह है शनि। बुध का सभी दोषों पर नियंत्रण है अत: वात पर इनका भी नियंत्रण माना जाता है। वात रजोगुणी, हल्की, सूखी एवं ठण्डी होती है। वात शरीर में जमा होती है यथा हड्डियों में जोडों में, मस्तिष्क में। वात स्नायुतंत्र को प्रभावित करती है। ज्योतिष में स्नायुतंत्र के कारक बुध हैं, शनि-बुध का संबंध स्नायु तंत्र की बीमारियों को जन्म देता है। वात के कारण होने वाले पागलपन को वातोन्माद कहते हैं। वात ही गठिया रोग का मुख्य कारण है। ज्योतिष में गठिया रोग के कारक शनि हैं। यदि जन्म पत्रिका में शनि पीडि़त हो तो व्यक्ति वात और गठिया की समस्याओं से पीडि़त रहता है।

पित्त👉 पित्त का संबंध अग्नि तत्व से है। ज्योतिष में पित्त का संबंध सूर्य से है। पित्त गर्म, हल्की और सतोगुणी है। आग के समान इसमें भेदने की क्षमता है। पित्त पाचन तंत्र का महत्वपूर्ण अंग है। यह भोजन के पोषक तत्व को उस रूप में परिवर्तित करता है जो हमारे शरीर द्वारा अवशोषित कर लिया जाए। यह पोषक तत्व ही हमारी जीवनी शक्ति का ईंधन है। सूर्य जो पित्त के कारक हैं वहीं प्राण के कारक हैं। जन्मपत्रिका में बलवान सूर्य ही अच्छा स्वास्थ्य और प्रतिरोधक क्षमता देते हैं। शरीर में पित्त का असंतुलन पाचन क्षमता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है और बुखार, संक्रमण आदि गंभीर समस्याओं को जन्म देता है।

कफ👉 कफ का संबंध जल तत्व से है। कफ के कारक ग्रह चन्द्रमा हैं। कफ ठंडी गतिहीन एवं तमोगुणी होती है। यह वात के साथ या उसके प्रभाव में गति करता है। कफ का नियंत्रण शरीर में उपस्थित जल, प्लाज्मा, वसा इत्यादि पर है। ज्योतिष में इन सभी विषयों के कारक चन्द्रमा हैं। कफ जनित सभी बीमारियों पर चन्द्रमा का आधिपत्व है।
〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
: 🙏🏻🌹🙏🏻
सभी आदरणीय बन्धुओं को मेरा सादर प्रणाम
बन्धुओं क्रोध क्या होता है…???

दो प्रकार का क्रोध होता है

जो अग्नि कमरे को उष्मा देती है, वही अग्नि घर को जला भी देती है। दिग्भ्रमित भावनाओं का प्रतिफल क्रोध होता है।_

क्रोध एक प्राकृतिक भाव है। कोई भी मनुष्य जिसके मन में प्रेम, करूणा और दया की भावना है वह आक्रोश घृणा और इस तरह की अन्य भावनाओं से भी घिरा हो सकता है। जो भी हो किन्तु अपने विचारों पर डिगे रहना निश्चित रूप से क्रोधित होना नहीं है। अतः आप यह कैसे जानेंगे कि अनुशासित करने की कोई भी भंगिमा क्रोध की उपज नहीं किन्तु आवश्यकता है।
क्रोध नकारात्मक ऊर्जा को बढाती है जो आपको तत्क्षण ही कमजोर बना देती है। यहाँ पर सर्वोपरि बात यह है कि क्रोध और अनुशासन में प्राथमिक अंतर यह है कि क्रोध अप्रत्याशित, अकस्मात् और अनियंत्रित होता है।

एक समय की बात है कि एक युवक था। वह अपने क्रोध की ज्वार से थक गया था। यहाँ तक कि उसके इर्द-गिर्द रहनेवाले भी इससे उससे थक गए थे। वह छोटी सी बात पर भी पागलपन की हद तक क्रोध करता और फिर बाद में क्षमा याचना करता। उसकी क्षमा याचना का कोई प्रभाव नहीं होता था क्योंकि उसके क्रिया कलाप उसके शब्दों को पूरा करने में चूक जाते थे। उसने अपने आप को समझा लिया था कि जन्मजात क्रोध उसमें बसा हुआ है जो नियंत्रण से परे है। उसे हैरानी होती थी कि उसके अपने प्रिय लोग यह कैसे नहीं देख पा रहे हैं और वो जैसा है वैसा ही उसे क्यों नहीं स्वीकार कर पा रहे हैं? वह अपने गुरु के पास गया और उनसे याचना की कि उसपर कुछ प्रकाश डालें।

स्वामीजी ने कहा, “लकड़ी का एक तख्ता लाओ। हर बार तुम्हें जब क्रोध आये, इस तख्ते पर एक कील ठोंक दो। जब यह भर जाए तो वापस आकर मुझे बताओ।”

वह आदमी वापस चला गया और परामर्श का गंभीरता से पालन करने लगा। शीघ्र ही, कुछ सप्ताहों में ही उस तख्ते पर कोई जगह नहीं बचा बची और वह पूरी तरह कीलों से भर गया। तख़्त की इस स्थिति को देखकर वह बहुत लज्जित हुआ। वह गुरूजी के पास वापस गया और बताया कि तख़्त पूरी तरह कीलों से भर गया है।

“अब अपने क्रोध की ज्वाला को नियंत्रित करने का जाग्रत प्रयास करो। जब कभी तुम अपने क्रोध के ज्वार को नियंत्रित करने में सफल हो, तख्ते में से एक कील निकाल लो। जब तख़्त पर एक भी कील नहीं बचे तो उसे यहाँ ले आना।”

वह विजयी हुआ। तख़्त पर से सारे कीलों को निकालने में कई महीने लग गए। उसे क्रोध को नियंत्रित करने की अनुभूति का अच्छा अनुभव हुआ। दुबारा उसे उस तख़्त को कील रहित देखकर उसने चैन की साँस ली और अपने गुरु के पास गया।

गुरूजी ने तख़्त को अपने हाथ में लिया और कहा, “वाह! मैं देख रहा हूँ कि तुमने तख़्त को बिल्कुल साफ़ कर दिया है। किन्तु मैं बहुत प्रेम पूर्वक ऐसी इच्छा करता हूँ कि काश तुम इस तख्ते पर बने हुए छिद्रों को मिटाकर इसे पहले की तरह बना देते।”

“क्रोध में किये गए क्षति को दूर किया जा सकता है तख्ते में लगाए गए और फिर बाहर निकाले गए कील की मानिंद, फिर भी इसे मिटाया नहीं जा सकता। चिन्ह हमेशा के लिए रह जाएगा।”

यह एक बहुत सामान्य सी भ्रांति है कि क्रोध को बाहर निकालकर हम हल्का अनुभव करते हैं। जबकि यह जितना सत्य है उतना ही असत्य, इससे हुयी क्षति अपूरणीय है। अपने क्रोध को रखना एक बड़ी भूल की तरह है। यहाँ आवश्यकता है क्रोध को, भावुकता की स्थिति को प्रेम, करूणा, समानुभूति और अन्य सशक्त एवं श्रेष्ठ भावनाओं में परिवर्तित करने की।

आप अपने क्रोध को कैसे अनुभव करते हैं और व्यक्त करते हैं, यह प्रायः आपकी भावात्मक स्थिति, मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति, आपका पालन-पोषण और अन्य दूसरे कारक जैसे आपके घर और बाहर का वातावरण, तथा धर्म और संस्कृति का अनुबंधन है। मैं आपको क्रोध के दो तुल्यता प्रस्तुत करता हूँ:

१. ज्वालामुखी
कुछ लोग ताप में आने पर ज्वालामुखी की तरह फट पड़ते हैं, जब विपरीत परिस्थितियों का दबाव पड़ता है तो वो गुब्बारे की तरह फूल जाते हैं। वे अपने क्रोध की अभिव्यक्ति भावनात्मक आवेग, आवेश में करते हुए उन्मत्त हो जाते है। क्षण भर में क्रोधित हो जाते हैं और फिर एक दम से ठंढे हो जाते हैं, शीघ्र ही सामान्य हो जाते हैं। फिर वे अपने किये पर पश्चाताप करते हैं, क्षमा भी मांगते हैं, और दुबारा क्रोध न करने की शपथ भी लेते हैं। किन्तु यह सब अनुपयोगी और निरर्थक सिद्ध होता है। अगली बार जब भी इनका सामना प्रतिरोध या ताना-तानी से होता है, ये बिल्कुल वैसे ही व्यवहार करते हैं जैसा कि पिछली बार किया था।क्यों? क्योंकि क्रोध का आवेग उनके लिए पलायन का रास्ता है। और! चूँकि यह उनका क्रोध से निपटने का साधन बन गया है, कठिन परिस्थितियों का सामना करने के लिए भी ये अपने क्रोध के आवेग का ही सहारा लेते हैं, जब तक यह सब इनके निज का शरीर सह पाता है। जैसा कि ये वांछनीय परिस्थिति में प्रसन्न हो जाते हैं, अवांछनीय परिस्थिति में क्रोधित होना जारी रखते हैं।यदि आप किसी भी नकारात्मक प्रतिक्रिया को अपने निपटने के साधन की रूप में स्वीकार करते हैं तो आप तत्क्षण ही अपनी नकारात्मक भावना को सकारात्मक भावना में बदलने की क्षमता खो देते हैं। अधिकतर आवेग उपयुक्त रास्ता नहीं है, यह बिल्कुल लकड़ी के तख्ते पर ठोंके गए उस कील की तरह है जो एक साश्वत चिन्ह छोड़ जाएगा।
क्रोध को जारी रखना आपके क्रोध को कम नहीं करेगा, यह आपको शान्तिपूर्वक रहने नहीं देगा। अब प्रश्न यह है कि क्यों कुछ लोग क्रोध में उत्तेजित हो जाते हैं जबकि वे यह जानते हैं कि यह क्षति ही कर रहा है, जबकि वे ऐसा होने देना कम-से-कम चाहते हैं, उन्हें क्या बाध्य करता है? पढ़ते रहिये।

२. कुम्भक या काफी को ब्रू करने का यंत्र
एक निश्चित अवधि के बाद भी जब आप काफी को उबालते हैं या ब्रू करते हैं तो क्या होता है? यह वह कड़वा हो जाता है, इतना अधिक कड़वा हो जाता है कि पीने योग्य नहीं रहता। किसी भी तरह से, किसी भी शहद से मीठा नहीं किया जा सकता। इसी तरह जब कोई व्यक्ति नकारात्मक भावनाओं को अपने अन्दर पकड़ कर रखता है वह नकारात्मक भावनाओं की ब्रेविंग होने भावनाएँ अन्दर ही अन्दर उबलने लगती हैं जो उस व्यक्ति को भी कटु बना देती है। जबतक कड़वाहट को पकड़ कर रखते हैं, कटुता भी बढ़ती जाती है।क्रोध को ब्रू करना या अन्दर दबाये रखना क्रोध के आवेग को तीव्र करता है क्योंकि क्रोध का आवेग लक्षण, कारण या कोई प्रतिफल नहीं है अपितु नकारात्मक भावनाओं को अपने अन्दर लम्बे समय तक संचित रखना है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा कि भाप से पकाए हुए डम्पलिंग को माइक्रोवेभ में गर्म किया जाए। एक निश्चित तापमान तक तो डम्पलिंग ठीक रहेगा लेकिन उससे अधिक होने पर वह फट जाएगा, चारों ओर बिखर जाएगा, खाने लायक भी नहीं रहेगा, और परोसने लायक भी नहीं रहेगा।ब्रुवर वास्तव में जानलेवा है, यह धीमा जहर है। ज्वालामुखी से भिन्न इसे ह्रदय में रखा जाता है। बहुत से लोग क्रोध और नकारात्मक भावनाओं को अपने ह्रदय में बसाए रखते हैं, ये इसे जाने नहीं देते। एक अंगीठी के बारे में सोचिये, इसमे जो लकड़ी जलाई जाती है उससे पूरा कमरा गरम हो जाता है, लेकिन यदि लकड़ी को सही तरीके से नहीं जलाया जाए तो यह आसानी से पूरा घर जला सकती है। ठीक इसी तरह से जो लोग अपनी भावात्मक स्थिति को नियंत्रित करना नहीं जानते हैं तब ये भीषण रूप ले सकता है। क्रोध अपर्याप्त तरीके से सम्हाले गए भावनाओं का फल होता है, स्वयं के भावात्मक पीड़ा का सही उपचार नहीं करने का प्रतिफल है, लगभग भ्रमित प्रेम जो कि नकारात्मक भावना का रूप धारण कर लेती है, उसमें निहित उष्मा, वो उष्मा जो नकारात्मकता को पिघला सकती थी अब वास्तव में ब्रू कर रही है।
यदि आप सचमुच गंभीर हैं क्रोध को अपने तंत्र से पूरी तरह निकालने के लिए, आपको स्वयं अपने उपचार पर काम करना होगा, जब तक आप अपने स्वयं का अभयारण्य, अपनी आतंरिक शान्ति और मौन का, नहीं ढूंढ लेते तब तक क्रोध आ सकता है और अनभिग्यता की स्थिति में आपको जकड़ ले सकता है, शीघ्र ही आपको असंतुलित कर देगा; किसी भी समय, जब आपको उकसाया जाएगा या प्रतिरोध होगा। साक्षरा विपरीताश्चेद्राक्षसा एव केवलम् ।
सरसो विपरीताश्चेद् सरसत्वं न मुञ्चति ।।

भावार्थ – साक्षर (पढ़े लिखे) लोग जब शब्द और स्वभाव से विपरीत हो जाते हैं तब राक्षस शब्द बनता है और व्यवहार भी ऐसा ही हो जाता है। परन्तु सरस (सज्जन) शब्दको विपरीत करोगे तो सरस (सज्जन) ही बनेगा और व्यवहार भी अच्छा ही रहेगा। अर्थात जो स्वभाव से सज्जन होता है, विषम परिस्थितियों में भी उसके स्वभाव में परिवर्तन नही आता, परन्तु जो स्वभाव से सज्जन न होकर केवल साक्षर होते हैं उनकी दुर्जनता प्रकट हो ही जाती है।

दसवाँ घर और आपका करियर

दशम स्थान में बारह राशियों का फल

किसी भी जातक की कुंडली में चार केंद्र स्थान प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव होता है। दशम भाव कर्म भाव भी कहलाता है। अतः जातक के जीवन में इसका विशेष प्रभाव होता है। कुंडली में दशम घर से कर्म, आत्मविश्वास, आजीविका, करियर, राज्य प्राप्ति, कीर्ति, व्यापार, पिता का सुख, गोद लिए पुत्र का विचार, विदेश यात्रा आदि का विचार किया जाता है। कहा जा सकता है कि दशम भाव किसी के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

परंतु आजीविका की अच्छी स्थिति जानने के लिए मुख्यतः चंद्रमा, गुरु-सूर्य व शनि की स्थिति का अवलोकन भी करना चाहिए। यदि दशम भाव व भाग्य भाव मजबूत है तो निश्चित रूप से अच्छा करियर होता है। साथ ही आपका भविष्य सुनहरा होता है।

मेषः यदि दसवें स्थान में मेष राशि हो तो जातक घूमने-फिरने का शौकीन, दौड़ने का शौक रखने वाला, चाल कुछ टेढ़ी हुआ करती है। यदि विवाह योग कुंडली में न हो तो भी वह सुख भोगता है। नम्रता से हीन, चुगलखोर, क्रोधी होता है और शीघ्र ही लोगों का अप्रिय बन जाता है। ऐसा जातक कई कार्यों को एक साथ शुरू कर देता है। यदि कुंडली में मंगल शुभ हो तो निश्चित ही करियर बहुत अच्छा, धन, पद व अधिकार प्राप्ति होती है। माता-पिता, गुरुजनों, मित्रों व पत्नी से सत्य व सौम्य व आदर का व्यवहार करना चाहिए।

वृषभ: कुंडली में दशम घर में वृषभ राशि होने से जातक पिता का प्यार पाने वाला, वाली, स्नेही, विनम्र, धनी, व्यापार में कुशल, बड़े लोगों से मित्रता करने वाला, आत्मविश्वासी और राजपुरुषों से कार्य लेने वाला होता है। यदि शुक्र शुभ अंशों में बलवान हो तो जातक अच्छा व्यापारी व मैनेजर बन सकता है।

मिथुनः ऐसा जातक कर्म को ही प्रधान मानता है। समाज का हितैषी, मन्दिर निर्माण करने वाला, दुर्गा जी का भक्त, देवी दर्शन करने वाला, भगवान को मानने वाला, व्यापार या कृषि कर्म से आजीविका चलाने वाला, बैंक, बीमा कपंनी, कोषाध्यक्ष, अध्यापक की नौकरी करने वाला होता है।

कर्कः यदि कुंडली के दसवें घर में कर्क राशि हो तो जातक कई सगुणों से युक्त, यदि चतुर्थ चन्द्रमा हो तो राजनीति में रूचि रखने वाला व राज्य सत्ता प्राप्त करके समाज की भलाई करने वाला, पापों से डरने वाला, स्नेहवान, अन्याय के विरुद्ध लड़ने वाला होता है। वह आत्मविश्वासी भी होता है।

सिंहः ऐसा जातक अहंकार से घिरा होता है। यदि अहंकार को त्याग दे तो जीवन को जगमगा सकते हैं। संर्कीण विचारधारा के कारण कभी-कभी अपयश के पात्र होते हैं। यदि गुरु, शनि, सूर्य, मगंल, चंद्रमा अति शुभ हो तो जातक पद, प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। पिता धनी होता है, बहुत बड़े उद्योग स्थापित करता है।

कन्याः वाकपटुता के कारण लोकप्रिय प्रोफेसर, दुखी व्यक्तियों की सहायता करने वाला, अपने प्राणों को संकट में डालकर दूसरों की रक्षा में तत्पर, स्वाभिमानी होता है। बुध बलवान होने से राज्य में सम्मान होता है। यदि गुरु भी शुभ हो तो जातक अच्छा पद, प्रतिष्ठा प्राप्त जरूर प्राप्त करता है।

तुलाः दशम भाव में तुला राशि हो तो जातक मानव-भाग की भलाई में लगा रहता है। धर्म प्रचारक, धर्म के गूढ़ मर्म को समझने वाला आदर्श व्यक्ति होता है। नौकरी की बजाय व्यापार हितकारी व पसंदीदा होता है। युवावस्था में ही ऐसा जातक अपनी कार्यक्षमता कौशल के बल पर पूर्णतया स्थापित हो जाता है।

वृश्चिकः सौम्य व्यवहार व बुद्धि कौशल के बल पर परिस्थितियों को अनुकूल बनाना इन्हें अच्छी तरह आता है। धार्मिक व सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। यदि मंगल बलवान हो या लग्नेश शनि स्वयं दसवे घर में हो तो जातक धनी होता है। खेलकूद, राजनीति, पुलिस अधिकारी होता है। इसकी सूर्य, गुरु की स्थिति भी अच्छी रहती है।

धनुः यदि बृहस्पति उच्च का हो या नवांश, दशमांश कुण्डली में शुभ हो तो जातक धनी भी हो सकता है। पिता की सेवा करने वाला, सुंदर वस्तुओं को एकत्र करने वाला, उपकारी होता है। व्यापार में विशेष उन्नति प्राप्त करता है।

मकरः कर्म हो ही धर्म समझने वाला, स्वार्थी, मानसिक शक्ति वाला, समयानुकूल कार्य करने वाला, दया से हीन होता है। जीवन के मध्यकाल में सुखी होता है। ऐसा जातक खोजी, आविष्कारक होता है और अपनी खोज से लोगों को आश्चर्यचकित कर देता है। इसका काम हटकर होता है।

कुंभः यदि दसवे घर में कुंभ राशि हो तो जातक कूटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ विरोधियों से भी काम निकालने वाला, आस्तिक होता है। आर्थिक स्थिति अच्छी होती है। शनि की स्थिति अच्छी होने पर खूब धन, पद प्रतिष्ठा मिलती है। पिता से संबंध अच्छे नहीं रहते। नौकरी करते हैं यदि कुण्डली में शुभ योग हो तो शानदार प्रगति करते हैं।

मीनः मीन राशि दशम में होने से जातक गुरु आशा पालन करने वाला, गौ, ब्राह्मण व देव उपासक होता है। जल से संबंधित कार्यों से जीविका चलाने वाला, सम्मानित होता है। यदि गुरु बलवान हो तो राज्य पद, धन, आयु का दाता होता है।..
: ज्योतिष कक्षा
📚📚📓📓
जन्म कुंडली अध्ययन से रोग का पता लगाना
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
जन्म पत्रिका का अष्टम भाव वैसे तो मोक्ष का स्थान माना जाता है। परंतु यह बिमारी का भी घर है। कुछ योग ऐसे हं जो अष्टम स्थान में प्रभावशील होकर रोग उत्पन्न करते हैं। कौन से हैं वे रोग आइए जानते हैं।

1👉 अष्टम भाव मंगल, चंद्र और शुक्र हो तो जातक सेक्स संबधी एवं हर्निया रोग से ग्रसित होता है।
2👉 अष्टम भाव में शुक्र हो तथा प्रथम भाव में शनि हो तो पेंशाब में घात संबधी रोग होता है। शनि यदि अष्टम भाव में हो उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि ना हो तो भी पेशाब संबधी रोग होता है।
3👉 अष्टम भाव में मंगल, शुक्र की युति हो तो वीर्य संबंधी रोग होता है।
4👉 अष्टम भाव में शनि हो तथा उस पर मंगल की दृष्टि हो तो जलोदर नाम का रोग होता है।
5👉 मोक्ष स्थान अष्टम में केतु अशुभ होने पर वायु गोला रोग करता है, केतु पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो अल्सर भी हो सकता है।
6👉 अष्टम स्थान पर चंद्रमा नीच का हो, शत्रु या अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो सर्दी संबधी रोग होते हैं। हर्निया, गैस, हृदय रोग भी हो सकता है।
7👉 अष्टम स्थान पर नीच का मंगल राहु से युक्त हो, चंद्र कमजोर हो तो बाढ़ में बहने या जल में डूबने का खतरा रहता है।
8👉 अष्टम भाव में शनि या शुक्र नीच का होकर बैठा हो तथा उस पर कोई शुभ दृष्टि भी न हो तो जातक को शुगर, ब्लडप्रेशर, अपेन्डि़क्स जैसे रोग होते हैं।

शनि रोग का कारक बनता हो, जो जातक को लम्बे समय तक पीड़ित रखता है. यह और एक दर्द भी है कि राहु जब किसी रोग का जनक होता है, तो बहुत समय तक तो उस रोग की जांच (डायग्नोसिस) ही नहीं हो पाती है. डॉक्टर यह समझ ही नहीं पाता है कि जातक को क्या बीमारी है? और ऐसी स्थिति में रोग अपेक्षाकृत अधिक अवधि तक चलता है. प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी रोगों से अवश्य पीड़ित होता है. कुछ व्यक्ति कुछ विशेष समय में अथवा माह में ही प्रतिवर्ष बीमार हो जाते है. ये सभी तथ्य प्राय: जन्मप्रत्रिका में ग्रहों की भागवत एवं राशिगत स्थितियों और दशा, अन्तदर्शा पर निर्भर करते हैं. इसके अतिरिक्त कई बीमारियां ऐसी हैं, जो होने पर बहुत कम दुष्प्रभाव डाल पाती हैं, जबकि कुछ बीमारियां ऐसी हैं, जो जब भी जातक विशेष को होती हैं, तो बहुत नुकसान पहुंचाती है. कई बार ऐसा स्थिति उत्पन्न होती है कि बीमारी होती तो हैं लेकिन उसकी पहचान भली प्रकार से नहीं हो पाती है. उन सभी प्रकार के तथ्यों का पता जातक की कुंडली को देखकर लगाया जा सकता है।📚🖍🙏🙌
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
: स्मरण शक्ति बढ़ाने के ज्योतिष्य उपाय
35 वर्ष की आयु के पश्चात याद रखने की क्षमता
कमजोर होने लगती है। इसके कई कारण हो सकते हैं। जैसे
देर से उठना, अत्यधिक सहवास करना, देर रात तक
काम करना आदि। साथ ही इसके अलावा आजकल
बच्चों में भी यह परेशानी देखने को मिल रही है कि
उन्हें काफी कुछ याद नहीं रहता वे जल्द ही पढ़ाई
संबंधी बातें भुल जाते हैं।
क्या कारण है इसका? ज्योतिष शास्त्र के अनुसार
याददाश्त और बुद्धि के कारक ग्रह गुरु, बुध और सूर्य है।
जन्म पत्रिका में लग्र में गुरु, बुध हो तो जातक तीक्ष्ण
बुद्धि का होता है।
ऐसे ही यदि गुरु लग्र कुंडली का (1 हॉउस ) में उच्च का
या मित्र राशि का हो तो याददाश्त बहुत तेज
होती है।
वह घटनाओं को जीवनभर भूलता नहीं हैं। यही तीनों
ग्रह सुर्य, बुध, गुरु नीच के हो और शत्रु राशि में या
अस्त हो तो जातक कमजोर बुद्धिवाला होता है और
उसकी निर्णय लेने की क्षमता भी कमजोर होती है।
बढ़ती उम्र के साथ ज्यादा सोने, गलत आदतें, अत्यधिक
सहवास, किसी भी प्रकार का नशा, तंबाकू का
सेवन, देर से सोना और देर से उठना, दिन में सोना
आदि से याददाश्त कमजोर हो जाती है। कैसे बढ़ाएं
याददाश्त: – आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ करें। –
प्रात: सूर्य नमस्कार कर गायत्री मंत्र का जाप करें। –
रात्रि में समय पर सोएं और ब्रह्म मुहूर्त में उठें या
सूर्योदय तक तो उठ ही जाएं। – किसी भी प्रकार के
नशे, तंबाकू का सेवन न करें।
: संसार में सब लोग सुखी होना चाहते हैं । परंतु विधि नहीं जानते , कि हम कैसे सुखी या प्रसन्न रह सकते हैं ।
संसार का अध्ययन करें , खूब अच्छी तरह से परीक्षण करें । लंबे अध्ययन एवं परीक्षण से आपको यह पता चलेगा, कि इस संसार में जो लोग अपने अंदर गुणों का विकास करते हैं, उनको देखकर संसार के लोग भी प्रसन्न होते हैं । और वे लोग फिर उस गुणवान व्यक्ति का उत्साह बढ़ाते हैं, जिससे वह व्यक्ति प्रसन्न या सुखी रह सकता है।
परंतु जो लोग हमेशा दुखी रहते हैं । अपने दुखों का ही रोना सब के आगे रोते रहते हैं । तो संसार के लोग उन्हें और अधिक चिढ़ाते हैं। उनके प्रति प्रायः लोग सहानुभूति नहीं रखते। कोई कोई अपवादस्वरूप व्यक्ति को छोड़ दें , तो अधिकांश लोग उनकी खिल्ली ही उड़ाते हैं , तथा उन्हें और अधिक परेशान करते हैं । यहां तक कि रोने वाले व्यक्ति की आंख का अपना आंसू भी उसका साथ नहीं देता । वह आंसू भी आंख से गिर जाता है, उससे दूर चला जाता है।
इसलिए दुखी न हों, सब के आगे अपने दुखों का रोना न रोएँ। प्रसन्न रहने का प्रयास करें, जिससे दूसरे लोग भी आप को प्रसन्न रहने में सहयोग करें , तभी आपका जीवन सफल बनेगा। –
: 1- सब लोग धन की कामना करते हैं । धन अनेक प्रकार का है । रुपया पैसा मकान मोटर गाड़ी सोना चांदी इत्यादि , ये सब धन कहलाते हैं । इनकी सहायता से जीवन आसान हो जाता है। यह सब तो चाहिए ही । परंतु इन में सबसे बड़ा धन है ज्ञान. जो हमें सबसे अधिक सुख देता है । इसलिए भौतिक धन भी प्राप्त करें , परन्तु उससे अधिक महत्वपूर्ण ज्ञान अवश्य प्राप्त करें। उसकी अधिक आवश्यकता है ।
2- इसी प्रकार से व्यक्ति को अपनी सुरक्षा के लिए बहुत से अस्त्र शस्त्र भी चाहिएँ। भौतिक अस्त्र शस्त्र भी रखें, परन्तु उससे भी बड़ा शस्त्र है धैर्य , जो कि हमारी बहुत अधिक रक्षा करता है.
3- व्यक्ति को जीवन में सुरक्षा भी चाहिए । सुरक्षा के लिए वह अनेक उपाय करता है । वे सब उपाय तो करने ही चाहिएँ। परंतु इन सबके साथ साथ सबसे अधिक सुरक्षा विश्वास में है। जिसे किसी पर भी विश्वास नहीं , स्वयं पर भी नहीं , ईश्वर पर भी नहीं ; वह कभी भी सुरक्षित नहीं हो सकता . तो स्वयं पर, ईश्वर पर , एवं यथायोग्य दूसरों पर भी विश्वास करें, तभी आपका जीवन सुरक्षित रहेगा ।
4- और अपने स्वास्थ्य के लिए कितने ही प्रकार के टॉनिक भी आप लेते रहते होंगे । चिकित्सक के परामर्श के अनुसार टॉनिक भी लेवें। परंतु मन को सदा प्रसन्न रखें, यह सबसे बड़ा टॉनिक है। जो आपको सब प्रकार से आनंदित और समृद्ध बनाता है।
: संसार में अनेक लोग मिलते हैं । उनके साथ कुछ चर्चाएं होती हैं, और फिर उनमें से कुछ लोग मित्र बन जाते हैं । परंतु सब लोग एक जैसे मित्र नहीं बन पाते ।
जिन लोगों के आपस में विचार मिलते हैं, उनके साथ मित्रता बनती है । कई बार लोग एक दूसरे के साथ लंबी लंबी चर्चाएं करते हैं और चाहते हैं कि हमारी आपस में मित्रता बन जाए । परंतु लंबी चर्चाएं करने के बाद भी उनकी मित्रता नहीं बन पाती।
और कभी-कभी कुछ ऐसे लोग भी मिलते हैं जिनके साथ छोटी छोटी दो-चार मुलाकातें होती हैं, और उनके साथ आत्मीयता का संबंध जुड़ जाता है । क्योंकि आपके विचार उनके साथ मेल खा जाते हैं।
तो जीवन में भले ही आप 2/4 मित्र बनाएँ। परंतु उत्तम आचरण वाले लोगों को ही मित्र बनाएँ। जिनके साथ आपके विचार मिलते हैं, जिनके साथ आपका आचरण मिलता है। आपकी रुचि मिलती है , आपका उद्देश्य भी एक जैसा है । बस ऐसे ही दो चार मित्रों के साथ अपना जीवन आनंदपूर्वक बिताएँ, और एक दूसरे को सुख देते हुए अपने लक्ष्य की प्राप्ति करें –
: जब दो व्यक्ति में कोई संबंध होता है , तो ऐसा अधिकतर देखा जाता है, कि एक व्यक्ति स्वयं को बड़ा, और दूसरे को छोटा मानता है ।
जो व्यक्ति गुणों में कुछ बड़ा होता है , वह स्वभाव से कुछ अभिमानी हो जाता है।
जब दूसरा व्यक्ति , इससे कम योग्यता वाला या कम गुणवान होता है तो वह उस अधिक योग्य व्यक्ति से प्रेम भी करता है और उससे संबंध बनाए रखना चाहता है।
ऐसी स्थिति में प्रायः देखा जाता है कि जो अभिमानी व्यक्ति होता है , वह अभिमान के कारण क्रोध आदि दोषों से भी ग्रस्त हो जाता है , और छोटी-छोटी बातों में गुस्सा करने लगता है ।
उस छोटी योग्यता वाले व्यक्ति पर अन्याय भी करता है ।
तब छोटा व्यक्ति बार बार यही कहता है , अच्छा मुझसे गलती हो गई , मुझे माफ कर दो .
और बड़ा व्यक्ति भी उससे बार बार यही सुनना चाहता है कि तुम यही कहते रहो , मुझे माफ कर दो.
अभिमानी व्यक्ति की यह प्रवृत्ति अच्छी नहीं है। इसलिये अभिमान न करें। मिल जुलकर एक दूसरे के दोषों को सुधारें। आपस में प्रेम से रहें तभी जीवन में आनंद होगा, अन्यथा नहीं।

Recommended Articles

Leave A Comment