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कुंडली के केंद्र भाव में किस ग्रह का क्या प्रभाव होता है?

कुंडली में चार केंद्र स्थान यानी मध्य भाव होते हैं। कुंडली में केंद्र स्थान किसी भी व्यक्ति के जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव डालता है। कुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम भाव को केंद्र भाव माना गया है। पहले भाव को स्वयं के तन का, चौथे भाव को सुख का, सप्तम भाव को वैवाहिक जीवन का और दसवें भाव को कर्मभाव माना गया है। यदि इन चारों भाव में कोई शुभ ग्रह हो तो व्यक्ति धनवान होता है। वहीं केंद्र में उच्च के पाप ग्रह बैठे हो तो व्यक्ति बहुत धनवान होने पर भी गरीब हो सकता है।

  • बुध के केंद्र में होने से व्यक्ति अध्यापक तथा गुरु के केंद्र में होने से व्यक्ति ज्ञानी होता है।
  • शुक्र के केंद्र में होने पर धनवान तथा विद्यावान होता है। शनि के केंद्र में होने से व्यक्ति बुरे लोगों की सेवा करने वाला होता है।
  • यदि केंद्र में उच्च का सूर्य हो तथा गुरु केंद्र में चौथे भाव में बैठा हो तो व्यक्ति सभी सुख और मान-सम्मान प्राप्त करता है।
  • सूर्य के केंद्र में होने से व्यक्ति राजा का सेवक, चंद्रमा ! ेंद्र में हो तो व्यापारी, मंगल केंद्र में हो तो व्यक्ति सेना में काम करता है।
    अगर केंद्र में कोई ग्रह न हो तो ऐसी कुंडली को शुभ नहीं माना जाता है। ऐसा व्यक्ति जीवन में कर्ज से हमेशा परेशान रहता है।
    : तुलसी के विषय मे महत्त्वपूर्ण बातें!!!!!!!!!

पुरानी परंपरा है कि घर में तुलसी जरूर होना
चाहिए। शास्त्रों में तुलसी को पूजनीय, पवित्र और देवी का स्वरूप बताया गया है। यदि आपके घर में भी तुलसी हो तो यहां बताई जा रही 10 बातें हमेशा ध्यान रखनी चाहिए। यदि ये बातें ध्यान रखी जाती हैं तो सभी देवी-देवताओं की विशेष कृपा हमारे घर पर बनी रहती है। घर में सकारात्मक और सुखद वातावरण रहता है। पैसों की कमी नहीं आती है और परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है। यहां जानिए शास्त्रों के अनुसार बताई गई तुलसी की खास बातें…

1 : – तुलसी के पत्ते चबाना नहीं चाहिए
तुलसी का सेवन करते समय ध्यान रखें कि इन पत्तों को चबाए नहीं, बल्कि निगल लेना चाहिए। इस तरह तुलसी का सेवन करने से कई रोगों में लाभ मिलता है। तुलसी के पत्तों में पारा धातु के तत्व होते हैं। पत्तों को चबाते समय ये तत्व हमारे दांतों पर लग जाते हैं जो कि दांतों के लिए फायदेमंद नहीं है। इसीलिए तुलसी के पत्तों को बिना चबाए ही निगलना चाहिए।

2 : – शिवलिंग पर तुलसी नहीं चढ़ाना चाहिए
शिवपुराण के अनुसार, शिवलिंग पर तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाना चाहिए। इस संबंध में एक कथा बताई गई है। कथा के अनुसार, पुराने समय दैत्यों के राजा शंखचूड़ की पत्नी का नाम तुलसी था। तुलसी के पतिव्रत धर्म की शक्ति के कारण सभी देवता भी शंखचूड़ को हराने में असमर्थ थे। तब भगवान विष्णु ने छल से तुलसी का पतिव्रत भंग कर दिया। इसके बाद शिवजी ने शंखचूड़ का वध कर दिया। जब ये बात तुलसी को पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दिया। विष्णुजी ने तुलसी का श्राप स्वीकार कर लिया और कहा कि तुम धरती पर गंडकी नदी तथा तुलसी के पौधे के रूप में हमेशा रहोगी। इसके बाद से ही अधिकांश पूजन कर्म में तुलसी का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है, लेकिन शंखचूड़ की पत्नी होने के कारण तुलसी शिवलिंग पर नहीं चढ़ाई जाती है।

3 : – तुलसी के पत्ते कुछ खास दिनों में नहीं तोड़ना चाहिए। ये दिन हैं एकादशी, रविवार और सूर्य या चंद्र ग्रहण समय। इन दिनों में और रात के समय तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए। बिना वजह तुलसी के पत्ते कभी नहीं तोड़ना चाहिए। ऐसा करने पर दोष लगता है। अनावश्यक रूप से तुलसी के पत्ते तोड़ना, तुलसी को नष्ट करने के समान माना गया है।

4 : – रोज करें तुलसी का पूजन हर रोज तुलसी पूजन करना चाहिए। साथ ही, तुलसी के संबंध में यहां बताई गई सभी बातों का भी ध्यान
रखना चाहिए। हर शाम तुलसी के पास दीपक
जलाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि जो लोग
शाम के समय तुलसी के पास दीपक जलाते हैं, उनके घर में महालक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है।

5 : – तुलसी से दूर होते हैं वास्तु दोष घर-आंगन में तुलसी होने से कई प्रकार के वास्तु दोष भी समाप्त हो जाते हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति पर भी इसका शुभ असर होता है।

6 : – तुलसी घर में हो तो नहीं लगती है बुरी नजर मान्यता है कि तुलसी से घर पर किसी की बुरी नजर नहीं लगती है। साथ ही, घर के आसपास की किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा पनप नहीं पाती है। सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।

7 : – तुलसी से वातावरण होता है पवित्र तुलसी से घर का वातावरण पूरी तरह पवित्र और
हानिकारक सूक्ष्म कीटाणुओं से मुक्त रहता है। इसी पवित्रता के कारण घर में लक्ष्मी का वास होता है और सुख-समृद्धि बनी रहती है।

8 : – तुलसी का सूखा पौधा नहीं रखना चाहिए घर में यदि घर में लगा हुआ तुलसी का पौधा सूख जाता है तो उसे किसी पवित्र नदी में, तालाब में या कुएं में प्रवाहित कर देना चाहिए। तुलसी का सूखा पौधा घर में रखना अशुभ माना जाता है। एक पौधा सूख जाने के बाद तुरंत ही दूसरा पौधा लगा लेना चाहिए। घर में हमेशा स्वस्थ तुलसी का पौधा ही लगाना चाहिए।

9 : – तुलसी है औषधि भी आयुर्वेद में तुलसी को संजीवनी बूटी के समान माना जाता है। तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बहुत-सी बीमारियों को दूर करने में और उनकी रोकथाम करने में सहायक होते हैं। तुलसी का पौधा घर में रहने से
उसकी महक हवा में मौजूद बीमारी फैलाने वाले कई सूक्ष्म कीटाणुओं को नष्ट करती है।

10 : – रोज तुलसी की एक पत्ती सेवन करने से मिलते हैं ये फायदे तुलसी की महक से सांस से संबंधित कई रोगों में लाभ मिलता है। साथ ही, तुलसी का एक पत्ता रोज सेवन करने से हम सामान्य बुखार से बचे रहते हैं। मौसम परिवर्तन के समय होने वाली बीमारियों से बचाव हो जाता है। इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, लेकिन हमें नियमित रूप से तुलसी का सेवन करते रहना चाहिए।

एक और बात तुलसी कृष्ण को बेहद प्यारी हैं,इसलिये प्रतिदिन कान्हा के चरणों में तुलसीदल यानि तुलसी का पत्ता ज़रूर अर्पण करना चाहिये..
कृष्णसेवा के प्रत्येक भोग में तुलसी दल रखकर अर्पण करना चाहिये।

“तुलसी कृष्ण प्रेयसी नमो: नमो:
: हाँ तो बात हो रही थी कर्मकाण्डों की जिसके मुखर आलोचक व्हाट्सएप पर छाए हुये हैं।

इनका सबका कहना है कि कर्मकांड के कारण हिन्दू धर्म का क्षय हो गया। वास्तव में इसमें थोड़ी बहुत सच्चाई भी है। धर्म को धंधा बनाने वालों की कमी नहीं है। साथ ही जातीय श्रेष्ठता की भावना रखने वाले भी इसे पोषित करने में कमी नहीं छोड़ते। कुछ की अपनी सहूलियत भी है कि कौन इस सब झंझट में फंसे जबकि जीवन सफलतापूर्वक चल ही रहा है। वैसे भी ईश्वर को दुखियारे लोग ही अधिक स्मरण करते हैं।

मैं उदाहरण से अपनी बात रखता हूँ। आज कितने जन किसी विवाह के आयोजन में आनंद पूर्वक जाना चाहते हैं और कितने मात्र संबंध निभाने के लिए ? आज विवाह की आत्मा में वो आत्मीय सम्बन्ध नहीं रहा। बहुत सारे पुराने कर्मकांड भुला दिए गए या उनका प्रतीकात्मक प्रयोग ही होता है। उनके स्थान पर धन वैभव को प्रदर्शित करने वाले नए विधान अपना लिए गए हैं।

एक समय था कि घर परिवार तो छोड़िए, गाँव और सगे संबंधियों में भी महीनों पहले से उत्साह रहता था। बुआ, दीदी महीनों पहले घर में आकर जम जाती। प्रकार प्रकार के विधि विधान स्त्रियों द्वारा पूर्ण किये जाते। अब महानगर छोड़िए गाँव में भी सब विवाह के एक सप्ताह में निपटा दिए जाते हैं। किसी को समय नहीं है।

मेरे पापा की पीढ़ी के समय तक दहेज बड़ी समस्या नहीं था। मैंने किंचित ही सुना हो उनके समय किसी को दहेज के लिए मार दिया हो। ये जो कर्मकांड हमें आज भारी लग रहे हैं ये टेलीविजन के आने के पश्चात के हैं, जब उस पर विज्ञापन आकर मध्यवर्ग को लुभाने लगे। आकांक्षाएं बढ़ने लगी। पहले लोग प्रसन्नता से देते थे, तत्पश्चात उनको मिला है तो मैं भी पाउँगा तो करूँगा टाइप भावना बलवती होती गई। धीरे धीरे मुँह खोलकर मांगा जाने लगा।

पहले बाराती के लिए टाट, जाजिम आदि गाँव से ही माँगकर मिल जाता। बर्तन से लेकर बहुत सारी आवश्यक वस्तुएँ माँग कर ही मिल जाती। मात्र शर्बत पिला कर काम चल जाता। भोजन में भी अधिक विविधता नहीं थी। भोजन आज के जैसे फेंका भी नहीं जाता था।

आज हमें सब कुछ मूल्य चुकाकर मिल रहा है। टेंट हाउस तो छोड़िए, गाँव में पानी भी क्रय करके बाराती को पिलाया जा रहा है। अब सोचिये जब आपसी सहभागिता को नष्ट कर दिया गया तो कर्मकाण्ड भारी लगेंगे ही। आज विवाह करना घर या जमीन क्रय करने से भी महँगा हो गया है और कारण मात्र वैभव का प्रदर्शन है।

विवाह एक आयोजन था जिसमें सभी सगे संबंधी एक बार मिलते थे। अब मोबाइल फोन ने दूरियों को इतना पास ला दिया है कि हम पास तो खड़े हैं पर हिंदी के ३६ जैसे। हमारे मुँह विपरीत दिशा में हैं।

बात करते हैं मृत्युभोज की। किसी के घर मृत्यु हो जाती है, उसे कोई कर्मकाण्ड नहीं करना है। बस शोक मनाना है, सोचिये उसके घर सगे संबंधी कितने दिन शोक मनाने के लिए रुकेंगे ? वहीं मृत्युभोज के नाम पर उसकी तैयारी के लिए संबंधी के साथ साथ पड़ोसी भी शोकाकुल परिवार के घर बराबर बने रहते हैं। उस परिवार को भी शोक मनाने के स्थान पर इन्हीं कर्मकाण्डों में जुटना पड़ता है और वो एकांत नहीं पाता जिससे उसे दुःख को अकेले नहीं झेलना पड़ता।

आप शहर के विवाह में अपने को कितना कनेक्ट कर पाते हैं ? मात्र खाये, लिफाफा दिए और चल दिये। कई बार तो दूल्हे दुल्हन का मुँह तक नहीं देखते। ऐसे में आपको कर्मकांड आडम्बर ही लगेगा क्योंकि आप उससे कनेक्ट ही नहीं हो।

आप पूजा के लिए पंडित बुलाते हो, कथा मात्र इसलिए सुनना है कि श्रीमती जी की इच्छा का सम्मान करना है तो वो पूजा आडम्बर ही लगेगी। आप तो चाहोगे कि पंडी जी थोड़ी मुद्रा अधिक ले लें और मंत्र शीघ्रता से समाप्त करें।

थक गया लिखते लिखते। बात समाप्त नहीं हुई है। किसी अन्य पोस्ट में कुछ और उदाहरण के साथ अपनी बात रखूँगा।
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हिन्दू सनातन सस्कृति में अंतिम संस्कार

एक व्यक्ति (बच्चा/व्यस्क/जवान/बुजुग) के इस दुनिया से विदा लेने पर जो दुःख और तकलीफ उसके परिवार को मिलती है उसका सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है, महसूस नहीं किया जा सकता। अधिकांशतः लोग संवेदना व्यक्त ही कर पाते है।
परन्तु हिन्दू सनातन संस्कृति विधि के इस अटल सत्य और विधान को सामाजिक सहभागिता से ऐसा अद्धभूद कर देती है के पीड़ित परिवार को दर्द का एहसास शीघ्रता से कम होता दीखता है।

मृत्यु सत्य है, यह सबको आनी है पर हिन्दू समाज को छोड़ कर किसी और समाज में यह साहस ही नहीं के वो इस सत्य को दोनों हाथ खोल कर स्वागत कर सके।

यह साहस, शौर्य और मजबूत मानसिक शक्ति वाले समाज के ही बस की बात है और यह साहस सिर्फ हिन्दू सनातन संस्कृति में ही निहित है।

कैसे ?
हिन्दू संस्कृति कहती है के आप भले ही किसी की ख़ुशी में शामिल हो या न हो परन्तु दुःख में अवश्य शामिल होना चाहिए।

पर कैसे ?
क्या सिर्फ संवेदना के दो शब्द पर्याप्त है ?
क्या सिर्फ मृत शरीर की अंतिम क्रिया तक साथ रेहान ही पर्याप्त है ?
क्या इतना कर लेने से ही परिवार की दुःख कम हो जाता है ?

आज का आधुनिक विज्ञानं भी कहता है के दुःख बांटने से कम होता है।
आप अपना दुःख किसी को बताये, किसी के कंधे पर सर रख कर रो सके, कोई आपके सर पर अपना हाथ रख कर आपको सांत्वना दे-आशीर्वाद दे, यह होती है मानव मन की चाह।

पर क्या सिर्फ एक बार से हो जाता है सब दुःख दूर ?
क्या सिर्फ एक संवेदना से आपको शक्ति मिल जाती है ?

हिन्दू सनातन सस्कृति में अंतिम संस्कार (भाग -२)

जाने वाले व्यक्ति की यादो के ज्वार भाटे से दुखी परिवार को निकलना अगर सीखना हो तो किसी हिन्दू संस्कृति के समाज में आ कर सीख सकते हो।

किसी का दुःख सिर्फ एक दिन की सांत्वना से नहीं जाता यह तय है
बहुत समय लगता है किसी की याद को धुंधला होने में

हिन्दू समाज का जब कोई इस दुनिया से विदा होता है तो सबसे पहले उसके क्रिया कर्म की व्यवस्था की जाती है।

आपको शायद नहीं पता होगा या शायद आपने कभी ध्यान ना दिया हो के अगल अलग जाती और उप जाती के लोगो के अलग अलग मान्यताएं है, आस्थाएं है और पारिवारिक परम्पराएं होती है।
पर कुछ मान्यताएं और परम्पराएं पुरे हिन्दू समाज पर एक सामान लागू होती है
जैसे
अंतिम क्रिया की सामग्री लेने परिवार का सदस्य नहीं जा सकता
(यह चलन शायद इसलिए बनाया है ताकि समाज अपने दायित्व का निर्वाह कर सके, वरना दुखी परिवार सामग्री खरीदते वक्त और दुखी होगा यह तय बात है)

आज के इस स्वार्थी युग में भी मैंने एक विशेष जाती में एक विशेष परम्परा का चलन देखा है। इस जाती के लोग अक्सर अंतिम क्रिया की सामग्री लेने के लिए स्वतः ही दौड़ पड़ते है, सुखद बात यह है के इस जाती के लोग अंतिम क्रिया की सामग्री का पैसा भी लेने से इंकार ही करते है, वो भी पुरे मन से। इस जाती के लोगो से जब मैंने बात की तो उनका कहना था के अंतिम क्रिया के सामान अपनी जेब से लाना बहुत पुण्य का कार्य है। मैं नतमस्तक था उनके इस जवाब पर।

यह हिन्दू समाज ही तो है जो दिखाता है के दुःख में कैसे साथ निभाया जाता है
यह हिन्दू समाज की संस्कृति और परम्पराएं ही तो है जो हमें एक दूसरे से जोड़ती है

बाकी लगभग सभी समाज में अंतिम क्रिया के बाद लोग विदा हो जाते है और दुखी परिवार अकेला रह जाता है।
पर हिन्दू समाज के लोग एक दूसरे से वार्तालाप प्रारम्भ करते है।
कौन दुखी परिवार के यहाँ क्या क्या और कब कब ले जाएगा।
क्युकी यह प्रथा है के जिस परिवार में मृत्यु हुई यो वो एक निश्चित समय तक चूल्हा नहीं जलाएगा।

अब कुछ आधुनिक लोग कहेंगे के यह तो पाखण्ड हुआ
तो साहब मैं उन लोगो से कहना चाहूंगा के यह सामजिक भागीदारी की प्रथा है, जिसे सिर्फ अति-आधुनिक लोग ही समझ सकते है।

यह प्रथा इसलिए है के जिसके यहाँ मृत्यु हुई हो वो अपने दुःख में इतना दुखी होगा के उसे खाने पीने का होश ही कहा होगा।
ऐसे में दूर दूर से आये रिश्तेदारों और मिलने वालो के लिए खाने पिने की व्यवस्था कौन करेगा ?
कौन ध्यान रखेगा के परिवार के सदस्यों ने खाना खाया भी है या नहीं ?
कौन उनको समझा बुझा कर खाना खिलाएगा ?

तब यह हिन्दू समाज अपनी भागेदारी सुनिश्चित करता है और सब दुखी परिवार के यहाँ कुछ न कुछ रोज भिजवाते है।
यकीन मानिए एक दूसरे से पूछने और सलाह मशवरा करने के बाद भी खाने पीने के सामान की अधिकता ही रहती है हमेशा।
जब तक चूल्हा नहीं जलता तब तक पडोसी और कुछ आम और कुछ ख़ास लोग लगातार दुखी परिवार के संपर्क में बने रहते है।
वो सभी परिवार के सभी सदस्यों के खाने पीने का ख्याल रखते है।

हर धर्म, पंथ मजहब, समुदाय किसी न किसी व्यवस्था को मानता है
और यह व्यवस्था मूलतः किसी ना किसी किताब की शक्ल में दिखाई जाती है
मैंने ऐसा सुना है के हिन्दू/सनातनी/वैष्णव/शैव आदि “वेद” को अपना मूल मानते है
वेद –
मूल रूप में वेद एक ही ग्रन्थ के रूप में थे
फिर
महर्षि वेद व्यास (जिनका मूल नाम कृष्णद्वैपायन है) ने वेदो को ४ भागो में प्रस्तुत किया

मैंने जो जाना है, समझा है वो जरा अलग है
” वेद श्रुति है ”
संस्कारी, सुशिक्षित और संतुलित व्यवस्था वाला समाज कैसा हो यह वेद हमें सिखाते है

इन्ही सब को समझने और समझाने के लिए अलग अलग लोगो ने विभिन्न रचनाओं का प्रकाशन किया है

१६ संस्कार भी उनमे से एक है
प्रत्येक संस्कार का अपना एक विधान है यानि उसे पूरा करने का एक तरीका
जैसे विवाह संस्कार
विवाह कई प्रकार से हो सकता है – गन्धर्व विवाह, देव विवाह, प्रजापति विवाह आदि
इनके करने के कई विधान है
हिन्दू समाज में जो विवाह चलन में है उसमे ब्राह्मण का योगदान सिर्फ ७ फेरो तक ही सिमित है
उसके अलावा बाकी सभी कुछ सिर्फ उत्सव है
जूता चुराई, वरमाला, भोज, संगीत आदि सिर्फ व्यक्ति के अपनी इच्छा और सामर्थ पर निर्भर रहता है। कोई पंडित आपको बाध्य नहीं करता के आपको ऐसा ही करना होगा।

परन्तु
इस आडम्बर का ठीकरा सिर्फ ब्राह्मणो के मत्थे ही फोड़ा जाता है।
जबकि
यह करने वाले की अपनी इच्छा पर निर्भर है

मृत्युभोज — आज कल लगभग सभी यही मानते है के मृत्युभोज भी ब्राह्मणो के द्वारा रचाया गया चक्रव्यूह है। पर क्या यह सच है ??

16वा संस्कार है अंतिम संस्कार
इसके भी कुछ विधान है
जो लोग इस संस्कार में बहुतायत में जाते है उनसे पूछिए के इस संस्कार की प्रमुख विधि कौन बताता है/करवाता है
जवाब मैं देता हु – इस संस्कार को संपन्न करवाने में घर का या समाज का अनुभवी व्यक्ति ही आगे आता है। कब क्या और कैसे करना है यह वही बताता है, क्युकी प्रत्येक परिवार/समाज की अपनी कुछ विशेष मान्यताएं होती है जिसका पालन करने की कोशिश की जाती है।

फूल चुनना आदि पारिवारिक क्रिया है

उठावनी मुख्यतः व्यापारिक प्रतिष्ठानों के स्वामियों (दूकान, फैक्टरी मालिकों) के यहाँ ही देखने को मिलेगी क्युकी नौकरी पेशा व्यक्ति इस क्रिया को कैसे करेगा ?

इसी प्रकार त्रियोदशी सस्कार(अंतिम संस्कार का एक उप संस्कार) का भी चलन देखने को मिलता है
इसके भी अपने विधान है
पर मूल में भावना ही निहित है, भावना में उसका सामर्थवान होना भी जरुरी है।
अगर व्यक्ति नहीं चाहे तो कोई उसे बाध्य नहीं करता के आपको यह संस्कार करना ही है
यह आपकी अपनी इच्छा पर निर्भर है
कोई गरीब कैसे १३ ब्राह्मणो को जिमा सकता है ? दान देना तो संभव ही नहीं।
असमय या जवान मृत्यु के समय भी ब्रह्मभोज का प्रावधान नहीं है, बस प्रतीकात्मक क्रिया की जाती है।

इसके अलावा
जिस व्यक्ति ने स्वर्ण नसेनी प्राप्त कर ली हो उसकी मृत्यु पर ढोल नगाड़े बजवाए जाते है।

सनद रहे
मृत्यु से बड़ा और अंतिम सच कोई और नहीं
यह भारतीय समाज ही है जो चौथी पीढ़ी देखे हुए व्यक्ति की मृत्यु पर उत्सव मनाती है।
ऐसे व्यक्ति का सम्मान होना ही चाहिए जिसने अपने समस्त उत्तरदायित्वों का निर्वाह इसी जीवन में किया हो।

अंत में
साल के ३६५ दिनों में मात्र १५ दिनों के लिए ” श्राद्ध पक्ष ” आते है
उत्तर प्रदेश में १८ प्रतिशत ब्राह्मण है, फिर भी इन दिनों ब्राह्मणो का आभाव स्पस्ट दीखता है (जो अमीर है उनको नहीं दिखेगा) क्युकी श्राद्ध पक्ष का भोजन करना हर किसी के बस की बात नहीं। मैं खुद एक ब्राह्मण हु परन्तु श्राद्ध पक्ष में मैंने आज तक अपने घर के अलावा किसी के यहाँ भोजन ग्रहण नहीं किया है।

बस यही कारण है के कुछ स्वार्थी और आलसी लोग मृत्युभोज का तिरस्कार कर रहे है, क्युकी उनको एक ब्राह्मण नहीं मिलता वो १३ कहाँ से ढूंढ कर लाएंगे।
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: पंच-तत्व का शरीर क्या है और ये कैसे काम करते है?

आज बात करते है शरीर के पंच तत्वों की जिनसे ये शरीर बना है। ये पंच तत्व ही भौतिक और अभौतिक रूप में शरीर का गि निर्माण करते है। कम ही लोगों को पता हो कि ये पंच तत्व क्या है और शरीर में कैसे काम करते है। आज इन्ही तत्वों को समझेगे। ये पंच तत्व है क्रम अनुसार 1. पृथ्वी, 2. जल, 3. अग्नि, 4. वायु, 5. आकाश।

  1. पृथ्वी तत्व- ये वो तत्व है जिससे हमारा भौतिक शरीर बनता है। जिन तत्त्वों, धातुओं और अधातुओं से पृथ्वी (धरती) बनी उन्ही से हमारे भौतिक शरीर की भी सरंचना हुई है। यही कारण है कि हमारे शरीर लौह धातु खून में, कैल्शियम हड्डियों में, कार्बन फाइबर रूप में, नाइट्रोजन प्रोटीन रूप में और भी कितने ही तत्व है जो शरीर में पाए जाते है। और यही कारण है कि आयुर्वेद में शरीर की निरोग और बलशाली बनाने के लिए धातु की भस्मो का प्रयोग किया जाता है।
  2. जल तत्व- जल तत्व से मतलब है तरलता से। जितने भी तरल तत्व जो शरीर में बह रहे है वो सब जल तत्व ही है। चाहे वो पानी हो, खून हो, वसा हो, शरीर मे बनने वाले सभी तरह के रा रस और एंजाइम। वो सभी जल तत्व ही है। जो शरीर की ऊर्जा और पोषण तत्वों को पूरे शरीर मे पहुचाते है। इसे आयुर्वेद में कफ के नाम से जाना जाता हैं। इस जल तत्व की मात्रा में संतुलन बिगड़ते ही शरीर भी बिगड़ कर बीमार बना देगा।
    3.अग्नि तत्व- अग्नि तत्व ऊर्जा, ऊष्मा, शक्ति और ताप का प्रतीक है। हमारे शरीर में जितनी भी गर्माहट है वो सब अग्नि तत्व ही है। यही अग्नि तत्व भोजन को पचाकर शरीर को निरोग रखता है। ये तत्व ही शरीर को बल और शक्ति वरदान करता है। इसे आयुर्वेद में पित्त के नाम से ज जाना जाता है। इस तत्व की ऊष्मा का भी एक स्तर होता है, उससे ऊपर या नीचे जाने से शरीर भी बीमार हो जाता है।
  3. वायु तत्व- जितना भी प्राण है वो सब वायु तत्व है। जो हम सांस के रूप में हवा (ऑक्सीजन) लेते है, जिससे हमारा होना निश्चित है, जिससे हमारा जीवन है। वही वायु तत्व है। पतंजलि योग में जितने भी प्राण व उपप्राण बताये गए है वो सब वायु तत्व के कारण ही काम कर रहे है। इसको आयुर्वेद में वात के नाम से जानते है। इसका भी सन्तुलन बिगड़ने से शरीर का संतुलन बिगड़ कर शरीर बीमार पड़ जाता है।
  4. आकाश तत्व- ये तत्व ऐसा जिसके बारे में कुछ साधक ही बता सकते है कि ये तत्व शरीर मे कैसे विद्यमान है और क्या काम करता है। ये आकाश तत्व अभौतिक रूप में मन है। जैसे आकाश अनन्त है वैसे ही मन की भी कोई सीमा नही है। जैसे आकाश आश्चर्यों से भरा पड़ा है वैसे ही मन के आश्चर्यो की कोई सीमा नही है। जैसे आकाश अनन्त ऊर्जाओं से भरा है वैसे ही मन की शक्ति की कोई सीमा नही है जो दबी या सोई हुई है। जैसे आकाश में कभी बादल, कभी धूल और कभी बिल्कुल साफ होता है वैसे ही मन में भी कभी ख़ुशी, कभी दुख और कभी तो बिल्कुल शांत रहता है। ये मन आकाश तत्व रूप है जो शरीर मे विद्यमान है।

इन पंच तत्व से ऊपर एक तत्व है जो आत्मा है। जिसके होने से ही ये तत्व अपना काम करते है।ओर शरीर मे ऊर्जा शक्ति व इन तत्वों को ॐ नियंत्रण में रख सकता है ।लेकिन ॐ के द्वारा हर व्यक्ति इन पञ्च तत्वों को एक साथ संतुलन में नही कर सकता इसलिए सबसे पहले हमको इन तत्वों का संतुलन करना आवश्यक होता है वरना भटक जाओगे ओर तत्वों को गलती से असंतुलन कर दिया तो परिणाम भी गम्भीर भुगत सकते हो।
मनुस्य का शरीर तन्त्रो पर खड़ा है विभिन्न प्रकार के उत्तक से मिलकर अंगों का निर्माण हुआ है जो कि अलग अलग अंग तंत्र orgon system का डिपार्टमेंट में व्यस्तिथ है शरीर तंत्र में मुख्य 4 है 1 -मस्तिक 2-प्रमस्तिक 3- मेरुदण्ड 4-तंत्रिकाओं का पुंज
इसके अलावा कई और तंत्र है जैसे स्वशन तंत्र,पाचन तंत्र, ज्ञानेन्द्रिय तंत्र,जननांग तंत्र आदि आदि आदि।
इन सभी तत्वों को समझ कर हम तत्वों को कुछ प्रयोग के द्वारा संतुलन में कर सकते है जिससे हमारे आगे की यात्रा बढ़ सके।
जैसे जैसे हम क्रिया करेगे उसका अनुभव हमको प्रत्यक्ष मिलेगा हमारी हाथ की उंगलियों में तत्व मैसेज देगे की कोनसा तत्व आपके भीतर कम है या अधिक क्योकि हम जानते है हाथ की 5 उंगुली इन्ही 5 तत्वों का प्रतिनिधत्व करती है
अंगूठा अग्नि का
तर्जनी वायु का
मध्यमा आकाश का
अनामिका पृथ्वी का
कनिष्का जल का प्रधिनिधित्व करती है ओर इन उंगलियों में विधुत धारा प्रवाहित होती रहती है।
शीघ्र ही हमारे संस्थान का एक नया ग्रुप बन रहा है जिस में इस पर ही प्रयोग करवाए जाएंगे क्योकि धार्मिक स्थलों ,आध्यात्मिक प्रवचनों, ओर जन चेतना शिविरों का बाद भी मनुस्य सन्तुष्टि व स्वस्थ मन स्वस्थ तन को प्राप्त नही कर पा रहा आध्यात्मिक ऊर्जा को पकड़ नही पा रहा कुछ समय सब सही चलता है फिर कुछ समय के बाद ठहराव आ जाता है क्यो? कहीं न कही तो भूल हो रही है।
मानव शरीर प्राकतिक मशीन है जिसके सुक्ष्म संसाधनों व तन्त्रो ओर तत्वों के प्रयोग की सटीक संहज क्रिया कर हम अपनी ऊर्जा को निरन्तर गति दे सकते है। जिससे हमारे शरीर के पाँचो कोश
अन्नमय कोश
प्राणमय कोश
मनोमय कोश
विज्ञानमय कोश
आनंदमय कोश व पंच तत्वों पर कार्य व क्रिया करेगे जिससे जीवन जीवन आनदमय ।
अन्तर्विज्ञान यात्रा
।।।। जय सिया राम जी ।।।।
: क्यों बढ़ रही है अविवाहितों की संख्या?


जल्दी शादी के लिए क्या करें उपाय

आज देश में हर समाज व समुदाय बड़ी संख्या में विवाह योग्य युवक-युवतियों का विवाह न हो पाने की समस्या से जूझ रहा है। कुछ दशक पहले तक यह समस्या इतनी बड़ी नहीं थी लेकिन अब यह समस्या दिन ब दिन गहराती जा रही है। इस समस्या के सामाजिक पहलू पर चर्चा करना समाज विज्ञानियों का काम हो सकता है लेकिन इसके ज्योतिषीय पहलू पर चर्चा करना भी जरूरी है। जिस देश में विवाह को धार्मिक संस्कार मानकर विवाह पूर्व कुंडली मिलान को जरूरी माना गया हो वहां अविवाहितों की संख्या बढऩे के ज्योतिषीय कारण व समाधान पर चर्चा निहायत जरूरी है।

जीवन साथी और जन्म कुंडली?

जन्म कुंडली में जब सप्तम भाव, सप्तमेश तथा शुक्र या गुरु (पुरुष के लिए शुक्र और स्त्री के लिए गुरु) निर्बल अथवा पीडि़त हो तथा उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि या युति न हो तो पुरुष या स्त्री को जीवन साथी की प्राप्ति नहीं होती।

विवाह न होने के योग

-सप्तमेश शुभ युक्त न होकर कुंडली के 6, 8 या 12वें भाव में हो या नीच राशि, अस्तगत या बहुत कम या 28 या 29 डिग्री लेकर स्थित हो।
-सप्तमेश द्वादश भाव में स्थित हो व लग्नेश या चंद्र राशीश सप्तम भाव में हो।
-षष्ठेश, अष्टमेश या द्वादशेश सप्तम भाव में स्थित हो व सप्तमेश छ, 8,12वें भाव में स्थित हो।
-यदि शुक्र व चंद्रमा दोनों किसी भाव में स्थित हो व शनि एवं मंगल से दृष्ट हो।
-लग्न, सप्तम एवं द्वादश भाव में पाप ग्रह स्थित हो व चंद्रमा पंचम भाव में निर्बल हो।
-शुक्र व बुध सप्तम भाव में एक साथ हो व पापग्रह युक्त या दृष्ट हो तो विवाह नहीं होता। यदि शनि दृष्ट हो तो विवाह बड़ी आयु में होता है।
-शुक्र व मंगल दोनों 5,7 या 9वें भाव में हो तो स्त्री सुख नहीं होता।
-शुक्र व सूर्य पंचम, सप्तम या नवम् भाव में स्थित हो।
-चंद्रमा से सप्तम में मंगल, शनि व शुक्र हो।
-शुक्र पापयुक्त हो या शुक्र से सप्तम पाप ग्रह हो।

विवाह में देरी के ज्योतिषीय कारण

सप्तम भाव में बुध और शुक्र दोनों के होने पर विवाह में लगातार देरी होती जाती है, विवाह प्राय: आधी उम्र में होता है।
-चौथा भाव या लग्न भाव मंगल युक्त हो, सप्तम में शनि हो तो कन्या की रुचि शादी में नहीं होती।
-सप्तम भाव में शनि और गुरु शादी देर से करवाते हैं।
-चंद्रमा से सप्तम भाव में स्थित गुरु शादी देरी से करवाता है। यही बात चंद्रमा की राशि कर्क से भी लागू होती है।
-सप्तम में त्रिक भाव का स्वामी हो, कोई शुभ ग्रह योगकारक न हो, तो पुरुष का विवाह देरी से होता है।
-जब सूर्य, मंगल या बुध लग्न या राशिपति को देखता हो और गुरु बारहवें भाव में बैठा हो तो आध्यात्मिकता अधिक होने से विवाह में देरी होती है।

  • लग्न, सप्तम या बारहवें भाव में गुरु या शुभ ग्रह योगकारक नहीं हो, कुटुम्ब भाव में चंद्रमा कमजोर हो तो विवाह नहीं होता, अगर हो गया तो संतान नहीं होती।
    -कन्या की कुंडली में सप्तमेश या सप्तम भाव शनि से पीडि़त हो तो विवाह देर से होता है।
    -राहु की दशा में शादी हो, या राहु सप्तम भाव को पीडि़त कर रहा हो, तो शादी होकर टूट जाती है, यह सब दिमागी भ्रम के कारण होता है।

हस्तरेखाओं में विवाह में बाधक लक्षण

हाथ की सबसे छोटी अंगुली यानी कनिष्ठिका अंगुली के नीचे स्थित विवाह रेखा जब ऊपर की ओर मुड़ी हो तब ऐसा जातक यह तय नहीं कर पाता कि उसे विवाह करना चाहिए या नहीं। कभी वह कल्पना के आधार पर तो कभी अपने विवाह में कुछ और अधिक पाने की लालसा में विलंब करता जाता है।
यदि विवाह रेखा मुड़ कर कनिष्ठिका अंगुली के मूल तक पहुंच जाती है तो ऐसा जातक जीवन भर अविवाहित रहता है।
यदि विवाह रेखा हृदयरेखा की ओर झुकाव लिए हुए मुड़ी हुई प्रतीत होती है तो ऐसे जातक की विवाह में कम रुचि रहती है। ऐसे जातक की विषय-भोग में आसक्ति कम होती है तथा उसमें नैराश्य या वैराग्य की भावना अधिक रहती है।

विवाह बाधा दूर करने के आसान व अनुभूत उपाय


1. हल्दी के प्रयोग से उपाय

विवाह योग लोगों को शीघ्र विवाह के लिये प्रत्येक गुरुवार को नहाने वाले पानी में एक चुटकी हल्दी डालकर स्नान करना चाहिए। भोजन में केसर का सेवन करने से विवाह शीघ्र होने की संभावनाएं बनती है।

2. पीला वस्त्र धारण करना

ऐसे व्यक्ति को सदैव शरीर पर कोई भी एक पीला वस्त्र धारण करके रखना चाहिए।

3. वृृद्धों का सम्मान करना

उपाय करने वाले व्यक्ति को कभी भी अपने से बड़ों व बूढ़ों का अपमान नहीं करना चाहिए।

4. गाय को रोटी देना

जिन व्यक्तियों को शीघ्र विवाह की कामना हों उन्हें गुरुवार को गाय को दो आटे के पेड़े पर थोडी हल्दी लगाकर खिलाना चाहिए तथा इसके साथ ही थोडा सा गुड़ व चने की पीली दाल का भोग गाय को लगाना शुभ होता है।

5. शीघ्र विवाह प्रयोग

इसके अलावा शीघ्र विवाह के लिये एक प्रयोग भी किया जा सकता है. यह प्रयोग शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को किया जाता है। इस प्रयोग में गुरुवार की शाम को पांच प्रकार की मिठाई, हरी इलायची का जोड़ा तथा शुद्ध घी के दीपक के साथ जल अर्पित करना चाहिये। यह प्रयोग लगातार तीन गुरुवार को करना चाहिए।

6. केले के वृृक्ष की पूजा

गुरुवार को केले के वृ़क्ष के सामने गुरु के 108 नामों का उच्चारण करने के साथ शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए तथा जल भी अर्पित करना चाहिए।

7. सूखे नारियल से उपाय

एक अन्य उपाय के रूप में सोमवार रात 12 बजे के बाद कुछ भी ग्रहण नहीं किया जाता, इस उपाय के लिये जल भी ग्रहण नहीं किया जाता। इस उपाय को करने के लिये अगले दिन मंगलवार को प्रात: सूर्योदय काल में एक सूखा नारियल लें, सूखे नारियल में चाकू की सहायता से एक इंच लम्बा छेद कर लें। अब इस छेद में 300 ग्राम बूरा (चीनी पाउडर) तथा 11 रुपये का पंचमेवा मिलाकर नारियल को भर देवें। यह कार्य करने के बाद इस नारियल को पीपल के पेड़ के नीचे गड्ढा करके दबा देवें। इसके बाद गड्ढे को मिट्टी से भर देवें तथा कोई पत्थर उसके ऊपर रख देवें।
यह क्रिया लगातार 7 मंगलवार तक करने से व्यक्ति को लाभ प्राप्त होता है। यह ध्यान रखना है कि सोमवार की रात 12 बजे के बाद कुछ भी ग्रहण नहीं करना है।

8. मांगलिक योग का उपाय

अगर किसी का विवाह कुंडली के मांगलिक योग के कारण नहीं हो पा रहा है, तो ऐसे व्यक्ति को मंगलवार के दिन चण्डिका स्तोत्र का पाठ और शनिवार व मंगलवार को सुन्दर काण्ड का पाठ करना चाहिए। इससे भी विवाह के मार्ग की बाधाओं में कमी होती है।

9. छुआरे सिरहाने रख कर सोना

यह उपाय उन व्यक्तियों को करना चाहिए जिन व्यक्तियों की विवाह की आयु हो चुकी है परन्तु विवाह सम्पन्न होने में बाधा आ रही है। इस उपाय को करने के लिये शुक्रवार की रात आठ छुआरे जल में उबाल कर जल के साथ ही अपने सोने वाले स्थान पर सिरहाने रख कर सोयें तथा शनिवार प्रात: स्नान करने के बाद किसी भी बहते जल में इन्हें प्रवाहित कर दें।

कन्या करे कात्यायनी मंत्र का पाठ

जिस कन्या के विवाह में लगातार बाधा आ रही हो तो उस कन्या को देवी कात्यायनी मंत्र का जाप रोज 108 बार करना चाहिए।
यह मंत्र निम्न प्रकार है-

ओम् कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरी।
नन्द गोप सुतं देवी पतिं मे कुरुते नम:।।

कन्या करे बृहस्पति की पूजा

कन्या की कुंडली में विवाह सुख के कारक ग्रह बृहस्पति हैं। शीघ्र विवाह के लिए बृहस्पति का मंत्र जाप, दान, व्रत, पूजादि से विशेष लाभ होता है। बृहस्पति का दिन गुरुवार है और केले का पौधा इन्हें प्रिय है। बृहस्पति का रंग पीला है। शीघ्र विवाह और वैवाहिक सुख के लिए कन्या को बृहस्पतिवार के दिन पीले वस्त्र धारण करने चाहिए, केले की पूजा करनी चाहिए और यदि संभव हो तो व्रत भी रखना चाहिए। केले का सेवन बृहस्पतिवार को नहीं करना चाहिए। बृहस्पति मंत्र ओम् बृं बृहस्पति नम: का पाठ करने से लाभ होता है।

पुरुष करे यह मंत्र पाठ

पुरुष जातक को शीघ्र विवाह के लिए दुर्गा सप्तशती के इस मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए-

पत्नी मनोरमां देहि मनोवृतानुसारिणीं,
तारिणीं दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम्।

ऐसे लड़के जिनका विवाह नहीं हो रहा हो या वे जिससे प्रेम करते हैं उससे प्रेम विवाह में लगातार विलंब हो रहा हो, उन्हें शीघ्र मनपसंद विवाह के लिए श्रीकृष्ण के इस मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए-

क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा।

शाबर मंत्र भी है उपयोगी

इस शाबर मंत्र का जाप करने से विवाह होने में किसी भी प्रकार की आ रही रुकावट, अड़चन अथवा समस्या का समाधान हो जाता है-

ओम् नम: शिवाय नम: महादेवाय…
जैसे गोरा को तुम, जैसे सीता को राम,
जैसे इंद्र को शची, जैसे राधा को श्याम।
ऐसी ही जोड़ी हमारी बने महादेव,
तुझे इस गुरु मंत्र की आन।।

इस मंत्र को भगवान शंकर के चित्र के सामने धूप, दीप प्रज्ज्वलित कर नियमित रूप से एक निश्चित समय पर 108 बार करने से विवाह होने में आ रही सभी बाधाएं नष्ट हो जाती हैं। यह मंत्र स्त्री-पुरुष कोई भी कर सकता है। इस मंत्र का प्रभाव छह माह में प्राप्त होता है।


: क्या आप जानते हैं रक्षा कलावा बांधने का सही नियम

हाथ में रंग बिरंगे धागे बांधने का मानो फैशन सा चल पड़ा है। अकसर मंदिरों में ये धागे बांधने वाले पंडित खड़े रहते है या फिर घर पर किसी खास पूजा के दौरान ये बांधे जाते है। लाल धागे वैसे हम मौली भी कहते है। लेकिन ये पतला लाल धागा बहुत कम लोग जानते है कि ये हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा पैदा करता है। हाथ में धागा अगर अपनी परेशानी या इष्ट देवता के हिसाब से बांधा जाएं तो इसके कई अच्छे परिणाम होते है।
लेकिन, गलती से ये धागा बिना मतलब या बिना समय के बांधा तो ये खतरनाक भी हो सकता है। ये हमारी रक्षा करता है इसलिए इसे रक्षासूत्र भी कहते है।

लेकिन ये तभी रक्षा करेगा जब सही वक्त पर ये बांधा हो।
हमारे शास्त्रों में इसकी पूरी जानकारी है – ज्योतिष में रक्षासूत्र का महत्व है। इसलिए अगर हाथ पर धागा बांध रहें है तो पूरी विधि विधान के साथ बांधें। तो ही इसका पूरा लाभ आपको मिलेगा।

किस ग्रह और देवता के लिए कौन सा रक्षासूत्र-
शनि – शनि की कृपा के लिए नीले रंग का सूती धागा बांधना चाहिए।
बुध – बुध के लिए हरे रंग का सॉफ्ट धागा बांधना चाहिए।
गुरु और विष्णु – गुरु के लिए हाथ में पीले रंग का रेशमी धागा बांधना चाहिए।
शुक्र और लक्ष्मी – शुक्र या लक्ष्मी की कृपा के लिए सफेद रेशमी धागा बांधना चाहिए।
चंद्र और शिव – शिव की कृपा या चंद्र के अच्छे प्रभाव के लिए भी सफेद धागा बांधना चाहिए।
राहु-केतु और भैरव – राहु-केतु और भैरव की कृपा के लिए काले रंग का धागा बांधना चाहिए।

मंगल और हनुमान – भगवान हनुमान या मंगल ग्रह की कृपा के लिए लाल रंग का धागा हाथ में बांधना चाहिए।

कैसे बांधा मंदिर का लाल धागा जिसका मिलेगा सही फल-
जिस भी देवता या ग्रह के शुभफल के लिए धागा बांधना है, उसके लिए उसी वार को मंदिर जाएं। वैसे आप धागा पहले से लेकर रख सकते है। भगवान की मूर्ति की पूजा करें, प्रसाद चढ़ाएं फिर उस धागे को भगवान के पास छू जाएं ऐसा रख दें।मंदिर में पंडित से ही उस धागे को अपने सीधे हाथ में बंधवाएं। इसके लिए 11 या 21 रुपए पंडित को दक्षिणा भी दें। इस तरह बांधा गया धागा आपको काफी लाभ देगा। आपके लिए ये सुरक्षा का घेरा तैयार करेगा।
आखिर मंदिर का लाल धागा मौली यानि कलावा क्यों बांधते हैं? आखिर इसकी वजह क्या है औऱ इसके पीछे की कहानी क्या है?

रक्षा सूत्र का महत्व
ऐसा माना जाता है कि असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था। इसे रक्षाबंधन का भी प्रतीक माना जाता है। देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए ये बंधन बांधा था।

मौली का अर्थ
‘मौली’ का शाब्दिक अर्थ है ‘सबसे ऊपर’. मौली का तात्पर्य सिर से भी है। मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं। इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है। शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान हैं, इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है।

कैसे बनता है ये रक्षासूत्र
मौली कच्चे धागे से बनाई जाती है। इसमें मूलत: 3 रंग के धागे होते हैं- लाल, पीला और हरा, लेकिन कभी-कभी ये 5 धागों की भी बनती है , जिसमें नीला और सफेद भी होता है। 3 और 5 का मतलब कभी त्रिदेव के नाम की, तो कभी पंचदेव।

कहां-कहां बांधते हैं मौली
मौली को हाथ की कलाई, गले और कमर में बांधा जाता है।मन्नत के लिए किसी देवी-देवता के स्थान पर भी बांधा जाता है।मन्नत पूरी हो जाने पर इसे खोल दिया जाता है।
मौली बांधने के नियम पर ध्यान दें

  • पुरुषों और अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए।
  • विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में कलावा बांधने का नियम है।
  • जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों, उसकी मुट्ठी बंधी होनी चाहिए। दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए।
  • मौली कहीं पर भी बांधें, एक बात का हमेशा ध्यान रहे कि इस सूत्र को केवल 3 बार ही लपेटना चाहिए।

मौली करती है रक्षा
मौली को कलाई में बांधने पर कलावा या उप मणिबंध कहते हैं।हाथ के मूल में 3 रेखाएं होती हैं जिनको मणिबंध कहते हैं।भाग्य और जीवनरेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है। इन मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु और ब्रह्मा हैं। इसी तरह शक्ति, लक्ष्मी और सरस्वती का भी यहां साक्षात वास रहता है। जब कलावा का मंत्र रक्षा हेतु पढ़कर कलाई में बांधते हैं तो ये तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों और त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाता है, जिससे रक्षा-सूत्र धारण करने वाले प्राणी की सब प्रकार से रक्षा होती है>

क्‍या कहते हैं शास्‍त्र
शास्त्रों का ऐसा मत है कि मौली बांधने से त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु, महेश और तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है.
मंदिर का लाल धागा – वैसे मौली का चिकित्सीय पक्ष भी है. कलाई, पैर, कमर और गले में मौली बांधने के चिकित्सीय लाभ भी हैं। शरीर विज्ञान के अनुसार इससे त्रिदोष यानि वात, पित्त और कफ का संतुलन बना रहता है। ब्लड प्रेशर, हार्टअटैक, डायबिटीज और लकवा जैसे रोगों से बचाव के लिए मौली बांधना हितकर बताया गया है।
: सुख व दु:ख जीवन के दो रंग हैं। कभी सुख आता है तो कभी दु:ख। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके भाग्य में सिर्फ दु:ख ही दु:ख होता है। वे अपना जीवन परेशानी में ही बिताते हैं और हर बात के लिए अपने भाग्य को कोसते रहते हैं लेकिन वे यह नहीं जानते कि मंत्रों के माध्यम से दुर्भाग्य को भी सौभाग्य में बदला जा सकता है। जीवन के सभी कष्टों का निवारण करने वाले मंत्रों में से एक अचूक मंत्र इस प्रकार है

मंत्र

ऊँ रां रां रां रां, रां रां रां रां, कष्टं स्वाहा

जप विधि

प्रतिदिन सुबह उठकर नित्य कर्मों से निपट कर भगवान श्रीराम की पूजा करें

अब कुश के आसन पर बैठकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके तुलसी की माला से इस मंत्र का जप करें। कम से कम एक माला जप अवश्य करें

एक समय, स्थान, माला व आसन होने से यह मंत्र शीघ्र ही शुभ फल देता है

कुछ ही समय में आप देखेंगे कि आपके जीवन में परिवर्तन आने लगा है और दुर्भाग्य, सौभाग्य में बदल रहा है

जय श्री कृष्णा: :
नाभि में तेल लगाने के फायदे

नाभि शरीर का केंद्र बिंदु होता है। ह र रात सोने से पहले अगर आप मात्र दो बूंद तेल भी नाभि में डालते हैं तो सेहत के कई आश्चर्यजनक फायदे मिल सकते हैं। यह त्वचा, प्रजनन, आंखों और मस्तिष्क के लिए अत्यंत उपयोगी है।

-नाभि में रोजाना तेल लगाने से फटे हुए होंठ नर्म और गुलाबी हो जाते हैं।

-इससे आंखों की जलन, खुजली और सूखापन भी ठीक हो जाता है।

-नाभि में तेल लगाने से शरीर के किसी भी भाग में सूजन की समस्या खत्म हो जाती है।

-सरसों का तेल नाभि पर लगाने से घुटने के दर्द में राहत मिलती है।

-नाभि पर सरसो तेल लगाने से हमारे चेहरे की रंगत बढ़ जाती है, इसलिए आपको रोजाना नाभि पर सरसो तेल लगाना चाहिए।

-नाभि पर सरसो तेल लगाने से पिंपल्स और दाग-धब्बे ठीक होते है।

-नाभि पर सरसो तेल लगाने से हमारा पाचन तंत्र भी मजबूत होता है।

  • बादाम का तेल लगाने से त्वचा की रंगत निखर जाती है।
  • नाभि में तेल लगाने से पेट का दर्द कम होता है।

-इससे अपच, फ़ूड पॉइजनिंग, दस्त, मतली जैसी बीमारियों से भी राहत मिलती है।

-इस तरह की समस्याओं के लिए पिपरमिंट आइल और जिंजर आइल को किसी अन्य तेल के साथ पतला करके नाभि में लगाना चाहिए।

  • अगर आप मुहांसों की समस्या से परेशान हैं तो आपको नीम के तेल को नाभि में लगाना चाहिए। इससे आपके कील-मुहांसे दूर होने लगेंगे।

-अगर आपके चेहरे पर कई तरह के दाग की समस्या है तो नीम का तेल नाभि में डालने से ये दाग दूर होंगे। नाभि में लेमन आयल लगाने से भी दाग धब्बे भी दूर होते हैं।

-नाभि प्रजनन तंत्र से जुड़ी हुई होती है। इसलिए नाभि में तेल लगाने से प्रजनन क्षमता विकसित होती है।

  • कोकोनट या ऑलिव आइल को नाभि में लगाने से महिलाओं के हार्मोन संतुलित होते हैं और गर्भधारण की संभावना बढ़ती है।
  • नाभि में तेल लगाने से पुरुषों के शरीर में शुक्राणुओं की वृद्धि और सुरक्षा होती है।
  • माहवारी से संबंधित समस्याओं से आजकल हर दूसरी-तीसरी महिला ग्रस्त मिलती है। अगर पीरियड्स के दौरान ज्यादा दर्द हो तो रूई के फाहे में थोड़ी सी ब्रांडी लगाकर नाभि में लगाने से ये दर्द तुरंत दूर हो जाता है।

नाभि की नियमित रूप से सफाई बहुत जरूरी है इसके लिए कुसुम, जोजोबा, ग्रेप्स सीड, या इसी तरह के अन्य हल्के तेलों को रूई में लगाकर नाभि में लगायें और धीरे-धीरे मैल साफ़ करें।

नाभि में मौजूद मैल के कारण बैक्टीरिया और फंगस के पनपने की संभावना होती है। इसलिए कोई भी संक्रमण बढ़ सकता है। ऐसे में यह जरूरी है कि आप संक्रमण को दूर करने वाले असरदार तेलों का प्रयोग करके नाभि को नम बनाकर रखें। इन तेलों में टी ट्री आइल और मस्टर्ड आइल सबसे असरदार हैं।

सोते समय नाभि में बस 2 बूंद तेल डालें और सेहत के बहुत से फायदे पाएं।

: जरुरी वास्तु टिप्स – इन वास्तु टिप्स से आप रहेंगे स्वस्थ – SIMPLE VASTU TIPS, FOR GOOD HEALTH :

स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ दिमाग का निवास होता है। इसके लिए, अपनी जीवन शैली में सुधार लाने के साथ-साथ अगर वास्तुशास्त्र के कुछ आधारभूत नियमों का भी खयाल रखा जाए तो परिवार में स्वास्थ्यप्रद वातावरण बना रहेगा :

  1. सुबह उठकर पूर्व दिशा की सारी खिडकियां खोल दें। उगते सूरज की किरणें सेहत के लिए बहुत लाभदायक होती हैं। इससे पूरे घर के बैक्टीरिया एवं विषाणु नष्ट हो जाते हैं।
  2. दोपहर बाद सूर्य की अल्ट्रावॉयलेट किरणों से निकलने वाली ऊर्जा तरंगें सेहत के लिए बहुत नुकसानदेह होती हैं। इनसे बचने के लिए, सुबह ग्यारह बजे के बाद घर की दक्षिण दिशा स्थित खिडकियों और दरवाजों पर भारी पर्दे डाल कर रखें, क्योंकि ये किरणें त्वचा एवं कोशिकाओं को क्षति पहुंचाती हैं।
  3. रात को सोते समय ध्यान दें, कि आपका सिर कभी भी उत्तर एवं पैर दक्षिण दिशा में न हो अन्यथा सिरदर्द और अनिद्रा जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
  4. गर्भवती स्त्रियों को दक्षिण-पश्चिम दिशा स्थित कमरे का इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसी अवस्था में पूर्वोत्तर दिशा या ईशान कोण में बेडरूम नहीं रखना चाहिए। इसके कारण गर्भाशय संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
  5. नवजात शिशुओं के लिए घर के पूर्व एवं पूर्वोत्तर के कमरे सर्वश्रेष्ठ होते हैं। सोते समय बच्चे का सिर पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
  6. हाई ब्लडप्रेशर के मरीजों को दक्षिण-पूर्व में बेडरूम नहीं बनाना चाहिए। यह दिशा अग्नि से प्रभावित होती है और यहां रहने से ब्लडप्रेशर बढ जाता है।
  7. बेडरूम हमेशा खुला और हवादार होना चाहिए। ऐसा न होने पर व्यक्ति को मानसिक तनाव एवं नर्वस सिस्टम से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं।
  8. वास्तुशास्त्र की दृष्टि से दीवारों पर सीलन होना नकारात्मक स्थिति मानी जाती है। ऐसे स्थान पर लंबे समय तक रहने से श्वास एवं त्वचा संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
  9. परिवार के बुजुर्ग सदस्यों को हमेशा नैऋत्य कोण, अर्थात दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित कमरे में रहना चाहिए। यहां रहने से उनका तन-मन स्वस्थ रहता है।
  10. किचन में अपने कुकिंग रेंज अथवा गैस स्टोव को इस प्रकार व्यवस्थित करें कि खाना बनाते वक्त आपका मुख पूर्व दिशा की ओर रहे। यदि खाना बनाते समय गृहिणी का मुख उत्तर दिशा में हो तो वह सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस एवं थायरॉइड से प्रभावित हो सकती है। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन बनाने से बचें। गृहिणी के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर इसका नकारात्मक प्रभाव पडता है। इसी तरह पश्चिम दिशा में मुख करके खाना बनाने से आंख, नाक, कान एवं गले से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।
  11. यह ध्यान रखें कि रात को सोते हुए बेड के बिलकुल पास मोबाइल, स्टेवलाइजर, कंप्यूटर या टीवी आदि न हो। अन्यथा इनसे निकलने वाली विद्युत-चुंबकीय तरंगें मस्तिष्क, रक्त एवं हृदय संबंधी रोगों का कारण बन सकती हैं।
  12. बेडरूम में पुरानी और बेकार वस्तुओं का संग्रह न करें। इससे वातावरण में नकारात्मकता आती है। साथ ही, ऐसे चीजों से टायफॉयड और मलेरिया जैसी बीमारियों के वायरस भी जन्म लेते हैं।
  13. आंखों की दृष्टि मजबूत बनाने के लिए सुबह जल्दी उठकर, किसी खुले पार्क या हरे-भरे बाग बगीचे में टहलें। वहां मिलने वाला शुद्ध ऑक्सीजन शरीर की सभी ज्ञानेंद्रियों को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होता है।
  14. कोशिश होनी चाहिए कि भोजन करते समय आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा में रहे। इससे सेहत अच्छी बनी रहती है। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन करने से पाचन तंत्र से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं।
  15. टीवी देखते हुए खाने की आदत ठीक नहीं है। ऐसा करने पर मन-मस्तिष्क भोजन पर केंद्रित न होकर माहौल के साथ भटकने लगता है। इससे शरीर को संतुलित मात्रा में भोजन नहीं मिल पाता। साथ ही टीवी से निकलने वाली नकारात्मक ऊर्जा का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है।

नोट : प्रिय मित्रो, ऐसे लेख आपकी जानकारी के लिए शेयर किये जाते हैं. इनपर कितना विश्वास किया जाये, कितना नहीं, यह निर्णय आप को लेना है.
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आप का आज का दिन मंगलमयी हो – आप स्वस्थ रहे,


: प्रकृति का एक तोहफा – इसबगोल – अनेकानेक बीमारियो की एक औषिधि – ईसबगोल के कुछ गुण –

प्रकृति का एक तोहफा – ईसबगोल :
वैसे तो हमारे घर और रसोई में ऐसे-२ अनेक मसाले, और पदार्थ हैं, जिनके सही प्रयोग जान लेने से हम छोटी-मोती रोज़मर्रा की तकलीफों से छुटकारा पा सकते हैं. यह प्राकृतिक पदार्थ किसी ‘डाक्टर’ से कम नहीं. आज से हम नियमित रूप से आपको इन ‘डाक्टरों’ की जानकारी देंगे.
ईसबगोल एक प्रसिद्ध प्राकृतिक पदार्थ है, जिस का बहुत पुराने समय से प्रयोग किया जाता रहा है। मुख्यता इसका प्रयोग पेट से सबण्धित रोगों में – जैसे कब्ज में किया जाता है। पर यह अतिसार कीड़ों , अमीबीया जियारडिया और अम्ल- पित्त में भी प्रभावी है। बहुत लोग इस के रक्त-चाप, हृदय-रोग, मधुमेह, वजन को नियमित रखने में और शीघ्र-पात आदि में इस के लाभों से परिचित नहीं.

इस को लेने का एक बढ़िया तरीका है- आधे ग्लास पानी में एक से दो चम्मच 5 मिनट तक भिगो कर पी लें और इस के बाद एक ग्लास पानी और पी लें। इसे खाने के 1 घंटे बाद लेना बेहतर है।
वजन घटाने के लिए दिन में 3 बार खाने से आधा घंटा पहिले लेना उचित है, अन्य में सोने से पहले।

इसबगोल के कुछ लाभ और प्रयोग विधि :

1 डाइबिटीज – ईसबगोल का पानी के साथ सेवन, रक्त में बढ़ी हुई शर्करा को कम करने में मदद करता है।

2 बवासीर – खूनी बवासीर में अत्यंत लाभकारी ईसबगोल का प्रतिदिन सेवन आपकी इस समस्या को पूरी तरह से खत्म कर सकता है। पानी में भि‍गोकर इसका सेवन करना लाभदायक है।

3 अतिसार (DIARRHEA) – पेट दर्द, आंव, दस्त व खूनी अतिसार में भी ईसबगोल बहुत जल्दी असर करता है, और आपकी तकलीफ को कम कर देता है. दही में मिलकर खाने से तुरन्त लाभ मिलता है.
बवासीर एवं दस्त रोगों में, ईसबगोल का विशिष्ट योग :
ईसबगोल 50 ग्राम, छोटी इलायची 25 ग्राम और धनिया के बीज 25 ग्राम लेकर सबको मिलाकर चूर्ण बना लें तथा नित्य 5 ग्राम की मात्रा में नित्य प्रात: एवं शाम को पानी या दूध के साथ सेवन करने से बवासीर, रक्तस्राव, मूत्रकृच्छ, प्रमेह, कब्ज, वर में दस्त, पुराना दस्त रोग, नकसीर एवं पित्तविकार के कारण दस्त में लाभ होता है। दस्त रोगों में चूर्ण को जल के साथ ही लेना उचित रहता है।

4 पाचन तंत्र – यदि आपको पाचन संबंधित समस्या बनी रहती है, तो ईसबगोल आपको इस समस्या से निजात दिलाता है। प्रतिदिन भोजन के पहले गर्म दूध के साथ ईसबगोल का सेवन पाचन तंत्र को दुरूस्त करता है।

5 जोड़ों में दर्द – जोड़ों में दर्द होने पर ईसबगोल का सेवन राहत देता है। इसके अलावा दांत दर्द में भी यह उपयोगी है। वि‍नेगर के साथ इसे दांत पर लगाने से दर्द ठीक हो जाता है।

6 कफ – कफ जमा होने एवं तकलीफ होने पर ईसबगोल का काढ़ा बनाकर पिएं। इससे कफ निकलने में आसानी होती है।

  1. वजन कम करे – वजन कम करने के लिए भी फाइबर युक्त ईसबगोल उपयोगी है। इसके अलावा यह हृदय को भी स्वस्थ रखने में मदद करता है।
  2. सर दर्द – ईसबगोल का सेवन सि‍रदर्द के लिए भी उपयोगी है। नीलगिरी के पत्तों के साथ इसका लेप दर्द से राहत देता है, साथ ही प्याज के रस के साथ इसके उपयोग से कान का दर्द भी ठीक होता है।
  3. सांस की दुर्गन्ध – ईसबगोल के प्रयोग से सांस की दुर्गन्ध से बचाता है, इसके अलावा खाने में गलती से कांच या कोई और चीज पेट में चली जाए, तो ईसबगोल सकी मदद से वह बाहर निकलने में आसानी होती है।

10 नकसीर – नाक में से खून आने पर ईसबगोल और सिरके का सर पर लेप करना, फायदेमंद होता है।

इनके अतिरिक्त, कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए, पेशाब की जलन, श्वेतप्रदर, कान का दर्द, मुंह के छाले, आंतों की जलन, मूत्रकृच्छ्र आदि में भी इससे लाभ मिलता है.

विशेष :
इसबगोल का अधिक सेवन करने से कब्ज हो जाता हैं। जठराग्नि का मंद होना भी संभव हैं, इसलिए इसके तयशुदा सेवन के समय प्रचुर मात्रा में पेय पदार्थो का सेवन करे। इसके साथ दाक्षसव का सेवन करने से भी इसके अहित प्रभावों से बचा जा सकता हैं। गर्भवती स्त्रियां इसका सेवन सावधानी पूर्वक करे। सेवन करने से पहले चिकित्सक की सलाह अवश्य ले

GOOD MORNING, FRIENDS !
Isabagol husk (chilaka isabagol) is a well-recognized natural product, taken for centuries, in Ayurveda, mainly, for stomach disorders – esp’ constipation.

But, it is also equally effective in diarrhea, worms, amoebias, giardiasis & acidity etc. But, its role in BP, diabetes, cholesterol, heart, premature ejaculation, etc. is not well-appreciated. If we take 1-2 teaspoonfuls , 3 times a day, it can work wonders, in all these conditions . Best way is to soak 1-2 spoons in about half a glass of water for 5 minutes & take it. For taste, little bit of salt/sugar can be added, but better taken plain. For weight, it should be taken 1/2 half hour , before meals. In other conditions , 1/2 -1 hour , after meals/ bed time.

Have a healthy & happy day !
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आप का आज का दिन मंगलमयी हो – आप स्वस्थ रहे, सुखी रहे – इस कामना के साथ।


: व्यापार व कारोबार में वृद्धि का उपाय।

यदि किसी के व्यापार में वृद्धि नहीं हो रही है और व्यापार व कारोबार में वृद्धि के उपाय टोटके प्राप्त करना चाहते हो तो व्यापार में उन्नति के टोटका/मंत्र का प्रयोग कर वृद्धि प्राप्त कर सकते है|

आप गोमती चक्र के प्रयोग से व्यापार में उन्नति के लिए अचूक टोटका कर सकते हैं. इसके लिए विषम मात्रा में गोमती चक्र लेकर ( 3,5,7 आदि) उन्हें चांदी के किसी तार में पीरों दें. इसके बाद इसके किसी पारदर्शी थैली लेकर उसमे डाल दें. आप इसे किसी साफ़ कपड़े में भी लपेटकर रख सकते हैं. इन गोमती चक्रों को अपने जेब डालकर रखें. ये व्यापार व कारोबार में वृद्धि के अंतर्गत बहुत ही असरदार टोटका है. इस टोटके का प्रयोग आपको चारो तरफ़ से सफलता दिलाएगा. इससे आपकी धन संबंधी सभी मुश्किलें हल होंगी|

इस प्रयोग को करते समय ये ध्यान रखें कि इस दौरान आप मांस का सेवन, मदिरा पान, स्त्री-प्रसंग आदि से दूर रहें. इस प्रयोग के दौरान शमशान में जाना भी वर्जित है| जब भी आप घर से दुकान या ऑफिस जाएँ आपने इष्टदेव को ज़रूर याद करके जाएँ. ये छोटा या उपाय आपके रास्ते की सारी मुश्किलों को दूर कर देगा|

यदि आपके कारोबार में बरकत नहीं हो रही है और आपको बिज़नस में बहुत हानि हो रही है तो व्यापार बढाने के तरीके/टोटके/मंत्र का प्रयोग कर व्यापार में वृद्धि प्राप्त कर सकते है| यदि किसी ने आपके व्यापार में रुकावट पैदा की है और आप बहुत मेहनत के बाद भी सफल नहीं हो पा रहे हो तो व्यापार की बंधी को ख़तम करना पड़ेगा| इसके बाद आपके व्यपार बहुत तेजी से बढ़ेगा | किसी भी तरह की समस्या जैसा के व्यपार, कारोबार, दुकान इत्यादि में सफलता प्राप्त करना चाहते हो तो हमसे परामर्श करे और अपने जीवन को सफल बनाये |
: ज्योतिष शास्त्र में ग्रह-नक्षत्रों और उनके मंत्रों द्वारा सौंदर्य और आकर्षक व्यक्तित्व पाने के तरीके बताए गए हैं। वेदिक ज्योतिष के अनुसार सौंदर्य, आकर्षक, ग्लैमर और लग्जरी लाइफ का कारक ग्रह शुक्र है। जिन लोगों की कुंडली में मजबूत और शुभ शुक्र ग्रह होता है उनमें एक विशेष तरह का ओरा होता है। ऐसे लोगों के संपर्क में जब भी कोई आता है, वह सम्मोहित सा हो जाता है। ज्योतिष में मनुष्य के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं।

आइए जानें उनके बारे में-

1.
लक्ष्मी न सिर्फ धन की देवी है, बल्कि सुख, सौंदर्य, आकर्षण और प्रभावी व्यक्तित्व प्रदान करने वाली देवी भी है। इसीलिए शुक्र ग्रह की प्रतिनिधि देवी महालक्ष्मी है। लक्ष्मी की आराधना करने से शुक्र से संबंधित व्यक्ति के जीवन में साकार होने लगते हैं। इससे शुक्र प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति को मनचाहा सौंदर्य के साथ लक्ष्मी की कृपा से धन की भी प्राप्ति होती है।

2.
शुक्र का बीज मंत्र अत्यंत चमत्कारी बताया गया है। शुक्र को बीज मंत्र का प्रतिदिन जाप करने से व्यक्ति के चारों ओर एक पॉजिटिव ओरा बनता है। उसके आस पास एक ऐसी आकर्षण उर्जा का प्रवाह होने लगता है, जिससे उसके चेहरे पर चमक आती है। व्यक्तित्व और वाणी में आकर्षण प्रभाव होता है। ऐसा व्यक्ति सैकड़ों लोगों को एक साथ सम्मोहित करने में सफल होता है। ऐसे व्यक्ति से हर कोई प्रभावित रहता है। बीज मंत्र का पूरा लाभ लेने के लिए लगातार 40 दिनों तक 20 हजार मंत्र जाप करें। मंत्र: ओम ड्रां ड्रीं ड्रौं सह शुक्राय नमः।।

3.
शुक्र से संबंधित वस्तुओं के दान से भी सौंदर्य की प्राप्ति की जा सकती है। शुक्रवार के दिन कपड़े और दही का दान करें। इससे शुक्र के बुरे प्रभाव नष्ट होकर शुभ प्रभावों में वृद्धि होती है। शुक्र से संबंधित गुण व्यक्ति के जीवन में आने लगते हैं। व्यक्ति के मुख पर विशिष्ट प्रकार का ओज आने लगता है।

4.
ऋग्वेद में आया श्री सूक्त अद्भुत और चमत्कारी है। श्री सूक्त में साक्षात महालक्ष्मी का वास होता है। इसके प्रतिदिन पाठ से न केवल लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, बल्कि शुक्र को मजबूत करने में चमत्कारिक रूप से असरदार है। लुक, आकर्षण प्रभाव, चेहरे की चमक, स्वस्थ और सुंदर शरीर पाने के लिए श्री सूक्त का वेदिक विधि से पाठ करना चाहिए।

5.
शुक्र की पॉजिटिव एनर्जी हासिल करने के लिए शुक्रवार का व्रत रखना चाहिए। यह व्रत करने वाले व्यक्ति की आंखों में तीव्र आकर्षण प्रभाव पैदा होता है। जब कोई विपरीत लिंगी व्यक्ति उसकी आंखों में देखता है तो तुरंत आकर्षित हो जाता है।

6.
शुक्र को मजबूत बनाने के लिए छह मुखी रूद्राक्ष भी धारण किया जा सकता है। कमजोर शुक्र के कारण आ रही परेशानियां छह मुखी रूद्राक्ष पहनने से दूर हो जाती है और व्यक्ति को अपने शानदार व्यक्तित्व के कारण हर जगह सफलता मिलने लगती है।

7.
शुक्र का प्रतिनिधि रत्न हीरा है। हीरा धारण करने से शुक्र से संबंधित समस्त गुण व्यक्ति में नजर आने लगते हैं। इसे पहनने से चमकदार आंखें, प्रभावित करने वाली आवाज, ग्लैमर, लग्जरी लाइफ की प्राप्ति होने लगती है। लेकिन ध्यान रखें हीरा तीव्र प्रभावी होता है। इसे धारण करने से पहले किसी योग्य ज्योतिषी से सलाह अवश्य लें।

8.
पेड़-पौधों की जड़ भी असरकारक होती है। अरंड मूल की जड़ में शुक्र का वास होता हे। इसे अपने ताबीज में भरकर गले या दाहिने बाजू पर शुक्रवार को बांधकर रखें। इससे शुक्र को पॉवर मिलता है और व्यक्ति सैकड़ों लोगों के समूह को निडर होकर संबोधित करने की शक्ति हासिल कर लेता है।

9.
कुछ ज्योतिषी और तांत्रिक शुक्र का यंत्र भी पास रखने की सलाह देते हैं। शुक्र यंत्र को चांदी पर बनवाकर हमेशा साथ में रखने से लक्ष्मी की प्राप्ति के साथ सौंदर्य प्राप्त होता है।

10.
प्रतिदिन प्रातः पूजा के समय केसर का तिलक लगाने से भी व्यक्ति के आकर्षण प्रभाव में वृद्धि होती है। ऐसा व्यक्ति अपनी वाणी से लोगों को मोहित कर सकता है
जिन व्यक्ती के फोन उठा नही सके वह आज शाम को 7 बजे फोन करे सभी का समाधान 100% होगा

जय श्री कृष्णा
: कर्ज से मुक्ति पाने के आसन उपाय
ऐसा क्यों होता है कि कभी-कभी कर्ज चुकने का नाम ही नहीं लेता?कर्ज शब्द का भाव है कि किसी से उधार कुछ धन लिया और बाद मे उस पर कुछ अतिरिक्त धन देकर मुलधन को वापस कर देना । ये सबसे बुरी बीमारी है और अगर एक साल ब्याज की किस्त किसी कारण वष नही दें पाया तो अगले वर्श उस ब्याज को मूलधन मे जोड दिया जाता है और इस प्रकार ब्याज के उपर ब्याज देना पडता है । इसी प्रकार हम हर रोज या हर माह जैसा निष्चित किया गया है उनके हिसाब के मुताबिक ब्याज व मुलधन नही दे सके तो एक दिन ऐसा आऐगा कि हम कर्ज से इतने दब जायेंगे कि पूरी जिन्दगी दबे रहेंगे न खाना अच्छा खा सकेंगे और बच्चो का सही ढंग से पालन पोशण कर पाएंगे । और एक दिन जब कर्ज से ज्यादा दब जायेगें और किसी भी स्थिति मे चुकता नही कर पाएगें तो हमे दिवालिया घोशित कर दिया जाएगा कोई भी आदमी आदर से नही देखेगा और उसे दुनियां के लोग बडी घृणा से देखते है । लोग उसे कुछ भी देना पसन्द नही करते है ।शास्त्रों में मंगलवार और बुधवार को कर्ज के लेन-देन के लिए निषेध किया है। मंगलवार को कर्ज लेने वाला जीवनभर कर्ज नहीं चुका पाता तथा उस व्यक्ति की संतान भी इस वजह परेशानियां उठाती हैं।जीवन में प्रत्येक व्यक्ति को कभी न कभी अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए कर्ज लेना ही पड़ता है। कई बार व्यक्ति कर्ज को जल्दी चुकाने की इच्छा रखता है, लेकिन कर्ज का अंत नहीं आता है। कर्ज के लेन-देन में वार का भी विशेष महत्व होता है।
यदि व्यक्ति को किसी कारणवश कर्ज लेना पड़े तो वार देखकर लेना हितकर रहेगा।
कर्ज को न बढने दो इसे रोज चुकाओ बिना नागा किए भजन सुमिरन करो ताकि ब्याज और मुलधन दोनो को चुका दिया जाए ।
‘‘करि रोज भजन तु भाई । कर्मो की करि लै लाई’’ ‘‘फसलॅ पहुंच जाय खलियान’’

रोज़मर्रा की जिंदगी और घर-गृहस्ती के कामों के लिए इंसान कमोबेश ऋण लेता रहता है| यह कर्ज तब तक भार नहीं लगता है, जब तक वह चुकता रहता है| लेकिन समस्या तब बढ़ जाती है, जब कर्ज लेकर कर्जा चुकाएं या कर्जे पर कर्जा बढ़ता चला जाए| ऐसा क्यों होता है और ज्योतिष की दृष्टी से इसके कारण निवारणों पर ध्यान दिया जाए तो यह पता चलता है कि इस तरह के कुछ योग होते हैं जिनमे कर्ज चुकने में ही नहीं आता है|

कर्ज और वार का संबंध

सोमवार👉 सोमवार की अधिष्ठाता देवी पार्वती हैं। यह चर संज्ञक और शुभ वार है। इस वार को किसी भी प्रकार का कर्ज लेने-देने में हानि नहीं होती है।

मंगलवार👉 मंगलवार के देवता कार्तिकेय हैं। यह उग्र एवं क्रूर वार है। इस वार को कर्ज लेना शास्त्रों में निषेध बताया गया है। इस दिन कर्ज लेने के बजाए पुराना कर्ज हो तो चुका देना चाहिए।

बुधवार👉 बुधवार के देवता विष्णुहैं। यह मिश्र संज्ञक शुभ वार है, मगर ज्योतिष की भाषा में इसे नपुंसक वार माना गया है। यह गणेशजी का वार है। इस दिन कर्ज देने से बचना चाहिए।

गुरुवार👉 गुरुवार के देवता ब्रह्माहैं। यह लघु संज्ञक शुभ वार है। गुरुवार को किसी को भी कर्ज नहीं देना चाहिए, लेकिन इस दिन कर्ज लेने से कर्ज जल्दी उतरता है।

शुक्रवार👉 शुक्रवार के देवता इन्द्र हैं। यह मृदु संज्ञक और सौम्य वार है। कर्ज लेने-देने दोनों दृष्टि से अच्छा वार है।

शनिवार👉 शनिवार के देवता काल हैं। यह दारुण संज्ञक क्रूर वार है। स्थिर कार्य करने के लिए ठीक है, परंतु कर्ज लेन-देने के लिए ठीक नहीं है। कर्ज विलंब से चुकता है।

रविवार👉 रविवार के देवता शिव हैं। यह स्थिर संज्ञक और क्रूर वार है। रविवार को न तो कर्ज दें और न ही कर्ज लें।
कर्ज के पिंड से छुटकारा नहीं हो रहा हो तो प्रत्येक बुधवार को गणेशजी के सम्मुख तीन बार ‘ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र’ का पाठ करें और यथाशक्ति पूजन करें।

कुंडली के कर्ज कारक योग:
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल ग्रह को कर्ज का कारक ग्रह माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार मंगलवार को कर्ज लेना निषेध माना गया है। वहीं बुधवार को कर्ज देना अशुभ है क्योंकि बुधवार को दिया गया कर्ज कभी नही मिलता। मंगलवार को कर्ज लेने वाला जीवनभर कर्ज नहीं चुका पाता तथा उस व्यक्ति की संतान भी इस वजह परेशानियां उठाती हैं।जन्म कुंडली के छठे भाव से रोग, ऋण, शत्रु, ननिहाल पक्ष, दुर्घटना का अध्ययन किया जाता है। ऋणग्रस्तता के लिए इस भाव के आलावा दूसरा भाव जो धन का है, दशम-भाव जो कर्म व रोजगार का है, एकादश भाव जो आय का है एवं द्वादश भाव जो व्यय भाव है, का भी अध्ययन किया जाता है। इसके आलावा ऋण के लिए कुंडली में मौजूद कुछ योग जैसे सर्प दोष व वास्तु दोष भी इसके कारण बनते हैं। इस भाव के कारक ग्रह शनि व मंगल हैं।
दूसरे भाव का स्वामी बुध यदि गुरु के साथ अष्टम भाव में हो तो यह योग बनता है। जातक पिता के कमाए धन से आधा जीवन काटता है या फिर ऋण लेकर अपना जीवन यापन करता है। सूर्य लग्न में शनि के साथ हो तो जातक मुकदमों में उलझा रहता है और कर्ज लेकर जीवनयापन व मुकदमेबाजी करता रहता है।12 वें भाव का सूर्य व्ययों में वृद्धि कर व्यक्ति को ऋणी रखता है। अष्टम भाव का राहू दशम भाव के माध्यम से दूसरे भाव पर विष-वमन कर धन का नाश करता है और इंसान को ऋणी होने के लिए मजबूर कर देता है इनके आलावा कुछ और योग हैं जो व्यक्ति को ऋणग्रस्त बनाते हैं।

👉 उपर बताएं पाप ग्रह अगर मंगल को देख रहे हों तो भी कर्जा होता है।

👉 कुंडली में खराब फल देने वाले घरों (छठे, आठवें या बारहवें) घर में कर्क राशि के साथ हो तो व्यक्ति का कर्ज लंबे समय तक बना रहता है।
👉 षष्ठेश पाप ग्रह हो व 8 वें या 12 वें भाव में स्थित हो तो व्यक्ति ऋणग्रस्त रहता है।
👉 छठे भाव का स्वामी हीन-बली होकर पापकर्तरी में हो या पाप ग्रहों से देखा जा रहा हो।
👉 अगर कुंडली में मंगल कमजोर हो यानि कम अंश का हो तो ऋण लेने की स्थिति बनती है।
👉 अगर मंगल कुंडली में शनि, सूर्य या बुध आदि पापग्रहों के साथ हो तो व्यक्ति को जीवन में एक बार ऋण तो लेना ही पड़ता है।
👉 दूसरा व दशम भाव कमजोर हो, एकादश भाव में पाप ग्रह हो या दशम भाव में सिंह राशि हो, ऐसे लोग कर्म के प्रति अनिच्छुक होते हैं।
👉 यदि व्यक्ति का 12 वां भाव प्रबल हो व दूसरा तथा दशम कमजोर तो जातक उच्च स्तरीय व्यय वाला होता है और 5. निरंतर ऋण लेकर अपनी जरूरतों की पूर्ति करता है।
👉 आवास में वास्तु-दोष-पूर्वोत्तर कोण में निर्माण हो या उत्तर दिशा का निर्माण भारी व दक्षिण दिशा का निर्माण हल्का हो तो व्यक्ति के व्यय अधिक होते हैं और ऋण लेना ही पड़ता है।

उपाय

👉नित्य गोपाल विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
👉रविवार तक 10 वर्ष से कम उम्र की कन्याओं को भोजन कराएं।
👉हर मंगलवार लाल गाय को गुड़ खिलाएं।
👉शनिवार को ऋणमुक्तेश्वर महादेव का पूजन करें।
👉मंगल की भातपूजा, दान, होम और जप करें।
👉विधि-विधान पूर्वक लक्ष्मी-यन्त्र की स्थापना कर लक्ष्मी-स्तोत्र व कवच का पाठ करें या कराएं।
👉मंगल एवं बुधवार को कर्ज का लेन-देन न करें।
👉लाल, सफेद वस्त्रों का अधिकतम प्रयोग करें।
👉श्रीगणेश को प्रतिदिन दूर्वा और मोदक का भोग लगाएं।
👉लक्ष्मी- गायत्री मंत्र ‘ॐ महालक्ष्म्मै च विद्महे, विष्णु पत्नये च धीमहि, तन्नो लक्ष्मिः प्रचोदयात’ का जप करें या कराएं|
👉श्रीगणेश का अथर्वशीर्ष का पाठ प्रति बुधवार करें।
👉शिवलिंग पर प्रतिदिन कच्चा दूध चढ़ाएं।

अपनी राशी अनुसार जाने उधार और कर्ज से बचने के लिए उपाय
मेष🐐 घोड़े को हरा चारा खिलाए या रोगीयों को औषधि का दान दें।
वृष🐂 विद्यार्थियों को अध्ययन की सामग्री दान दें।
मिथुन👫 हरे पौधों को पानी दें या तोते को हरी मिर्च खिलाए।
कर्क🦀 10 वर्ष से कम उम्र वाली कन्या को मिठाई खिला कर भेंट दें।
सिंह🦁 किन्नर को हरी चुडिय़ां दान दें।
कन्या👩 गाय को हरे मूंग खिलाए और हरे वस्त्र पहनें।
तुला⚖️ जरूरतमंद को हरे वस्त्र दान दें।
वृश्चिक🦂 कुल देवी देवता को कांसे का दीपक लगांए।
धनु🏹 जीवनसाथी को आभूषण या पन्ना रत्न पहनाएं।
मकर🐊 किसी को ऋण दें या ऋण दिलाने में मदद करें।
कुंभ🍯 किसी वृद्ध को हरे वस्त्र का दान दें।
मीन🐳 गणेश जी को दूर्वा चढ़ाए।

: ज्योतिष शास्त्र में सप्ताह के हर दिन को किसी ना किसी ग्रह के साथ जोड़ा गया है और साथ ही साथ यह माना गया है कि इन ग्रहों को ध्यान में रखते हुए अगर अपना दिन बिताया जाए तो सफलता आवश्य ही हाथ लगती है। दिन के हिसाब से किस रंग को पहनना चाहिए, ये बात तो आप कई बार पढ़ चुके होंगे और ये हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि किस दिन घर में क्या अवश्य बनना चाहिए।

इस लेख में हम आपको ये बताने जा रहे हैं कि दिन के हिसाब से आपको किस दिन क्या नहीं खाना चाहिए, ताकि आपके ऊपर ग्रहों का नकारात्मक प्रभाव ना पड़े।

सोमवार

चीनी को चंद्रमा का भोजन माना गया है, इसलिए सोमवार के दिन चीनी खाने से परहेज करना चाहिए, या ऐसा कोई भोजन जिसमें चीनी डली हो नहीं करना चाहिए।

मंगलवार

मंगलवार के दिन घी का सेवन वर्जित कहा गया है। आपको परहेज रखना चाहिए।

बुधवार

बुधवार के दिन हरी सब्जियों का दान किया जाता है, इसलिए उन्हें खाने से परहेज रखना चाहिए।

गुरुवार

गुरुवार के दिन दूध और केला नहीं खाना चाहिए, इस दिन इन दोनों खाद्य पदार्थों को विष्णु जी को अर्पित किया जाता है।

शुक्रवार

शुक्रवार के दिन खट्टी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए, अन्यथा सेहत पर इसका नकारात्मक प्रभाव हो सकता है।

शनिवार

शनिवार के दिन ऐसा कोई भी भोजन नहीं करना चाहिए जिसमें सरसों का तेल डला हो। इस दिन शनिदेव को सरसों का तेल अर्पित किया जाता है, इसलिए इसका सेवन नहीं करना चाहिए।

ज्योतिष शास्त्र में सप्ताह के हर दिन को किसी ना किसी ग्रह के साथ जोड़ा गया है और साथ ही साथ यह माना गया है कि इन ग्रहों को ध्यान में रखते हुए अगर अपना दिन बिताया जाए तो सफलता आवश्य ही हाथ लगती है। दिन के हिसाब से किस रंग को पहनना चाहिए, ये बात तो आप कई बार पढ़ चुके होंगे और ये हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि किस दिन घर में क्या अवश्य बनना चाहिए।

इस लेख में हम आपको ये बताने जा रहे हैं कि दिन के हिसाब से आपको किस दिन क्या नहीं खाना चाहिए, ताकि आपके ऊपर ग्रहों का नकारात्मक प्रभाव ना पड़े।

सोमवार

चीनी को चंद्रमा का भोजन माना गया है, इसलिए सोमवार के दिन चीनी खाने से परहेज करना चाहिए, या ऐसा कोई भोजन जिसमें चीनी डली हो नहीं करना चाहिए।

मंगलवार

मंगलवार के दिन घी का सेवन वर्जित कहा गया है। आपको परहेज रखना चाहिए।

बुधवार

बुधवार के दिन हरी सब्जियों का दान किया जाता है, इसलिए उन्हें खाने से परहेज रखना चाहिए।

गुरुवार

गुरुवार के दिन दूध और केला नहीं खाना चाहिए, इस दिन इन दोनों खाद्य पदार्थों को विष्णु जी को अर्पित किया जाता है।

शुक्रवार

शुक्रवार के दिन खट्टी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए, अन्यथा सेहत पर इसका नकारात्मक प्रभाव हो सकता है।

शनिवार

शनिवार के दिन ऐसा कोई भी भोजन नहीं करना चाहिए जिसमें सरसों का तेल डला हो। इस दिन शनिदेव को सरसों का तेल अर्पित किया जाता है, इसलिए इसका सेवन नहीं करना : आदतें जो ग्रहों को क्रोधित करती हैं
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  1. घर का मंदिर कभी गंदा नहीं होना चाहिए, अगर ऐसा होता है तो बृहस्पति ग्रह क्रोधित होते हैं। कोशिश करें कि आपके घर का मंदिर हमेशा साफ-सुथरा रहे।
  2. अगर आप अपने झूठे बर्तन वहीं छोड़ देते हैं तो चंद्रमा और शनि नाराज होते हैं। ऐसा होने से सफलता में कमी आने लगती है।
  3. जो व्यक्ति देर रात तक जागता है उसे चंद्रमा कभी शुभ फल प्रदान नहीं कर पाता।
  4. जब भी आपके घर कोई मेहमान आता है तो उसे ठंडा और स्वच्छ पानी अवश्य पिलाएं, ऐसा करने से राहु ग्रह ठीक रहता है और अशुभ नहीं करता।
  5. अगर आप रसोई को गंदा रखते हैं तो मंगल ग्रह का नकारात्मक परिणाम आपके ऊपर पड़ता है। इसलिए रात को सोते समय रसोई हमेशा साफ करें।
  6. अगर रोज सुबह उठकर आप अपने घर में लगे पौधों को पानी देते हैं तो इसे बुध, शुक्र, सूर्य और चंद्रमा ग्रह मजबूत होकर शुभ फल देते हैं।
  7. जो लोग अपना पैर घसीटकर चलते हैं, उन लोगों का राहु खराब होता है। अपने ऐस आदत को जल्द से जल्द सुधार लें।
  8. बाथरूम में पानी को बिखेरना, गंदे कपड़े वहां रखना, ये सब चंद्रमा को रुष्ट करता है। ऐसा करने से चंद्रमा कभी शुभ फल नहीं देता।
  9. जो लोग घर में घुसते ही अपने चप्पल, जुराबें और कपड़े इधर-उधर फेंक देते हैं, उनके जीवन में शत्रुओं की संख्या बढ़ने लगती है।
    जो लोग हर समय चीखते और गुस्से में रहते हैं, उनका शनि खराब होता है। शनि के खराब होने से जमीन-जायदाद से जुड़े मसलों में नुकसान होता है।
  10. कमरे का बिस्तर हमेशा फैला रहता है, बिस्तर पर हमेशा सिलवटें पड़ी रहती हैं और साथ ही तकिए भी इधर-उधर गिरे रहते हैं, उन्हें राहु और शनि परेशान करते हैं।
  11. बुजुर्गों का आशीर्वाद लेने से बृहस्पति ग्रह प्रसन्न होते हैं और वे जातक को शुभ फल प्रदान करते हैं।
    🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 🌹🚩🚩🚩🚩🚩चन्द्र के अशुभ होने के पूर्व संकेत🚩🚩🚩🚩🚩🌹

• जातक की कोई चाँदी की अंगुठी या अन्य आभूषण खो जाता है या जातक मोती पहने हो, तो खो जाता है ।
• जातक के पास एकदम सफेद तथा सुन्दर वस्त्र हो वह अचानक फट जाता है या खो जाता है या उस पर कोई गहरा धब्बा लगने से उसकी शोभा चली जाती है ।
• व्यक्ति के घर में पानी की टंकी लीक होने लगती है या नल आदि जल स्रोत के खराब होने पर वहाँ से पानी व्यर्थ बहने लगता है । पानी का घड़ा अचानक टूट जाता है ।
• घर में कहीं न कहीं व्यर्थ जल एकत्रित हो जाता है तथा दुर्गन्ध देने लगता है ।

उक्त संकेतों से निम्नलिखित विषयों में अशुभ फल दे सकते हैं:

• माता को शारीरिक कष्ट हो सकता है या अन्य किसी प्रकार से परेशानी का सामना करना पड़ सकता है ।
• नवजात कन्या संतान को किसी प्रकार से पीड़ा हो सकती है ।
• मानसिक रुप से जातक बहुत परेशानी का अनुभव करता है ।
• किसी महिला से वाद-विवाद हो सकता है ।
• जल से जुड़े रोग एवं कफ रोगों से पीड़ा हो सकती है । जैसे – जलोदर, जुकाम, खाँसी, नजला, हेजा आदि ।
• प्रेम-प्रसंग में भावनात्मक आघात लगता है ।
• समाज में अपयश का सामना करना पड़ता है । मन में बहुत अशान्ति होती है ।
• घर का पालतु पशु मर सकता है ।
• घर में सफेद रंग वाली खाने-पीने की वस्तुओं की कमी हो जाती है या उनका नुकसान होता है । जैसे – दूध का उफन जाना ।
• मानसिक रुप से असामान्य स्थिति हो जाती है ।
: कुंडली में शनी चंद्र युती का क्या परिणाम होता है?

ज्योतिष मे चन्द्रमा को मन तथा शनि को दु:खों का कारक माना गया है, इन दोनों की युति हो जाने मन सदैव दु:खी सा रहता है ।
चन्द्रमा जल का कारक है और शनि बहुत ही ठंडा ग्रह है अत: शनि मनरुपी अथवा जलरुपी चन्द्रमा को बर्फ में परिवर्तित कर देता है ।
चन्द्रमा सबसे तेज चलने वाला और शनि सबसे धीमा ग्रह है अत: यह युति किसी प्रकार का असंतुलन, असंतोष और निराशा को दर्शाती है ।
यदि यह युति किसी पापी ग्रहों जैसे मंगल या राहु-केतु के द्वारा दृष्ट हो तो व्यक्ति निसंदेह रुप से अपना मानसिक संतुलन खो सकता है । उसी तरह, यदि शनि और चन्द्रमाँ यदि शुभ भावों में हों या शुभ भावों के स्वामी हो और शुभ ग्रहों द्वारा देखे जातें हों तो यह योगकारक भी सिद्ध होते है । यह तत्थ प्रतिव्यक्ति की जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थति और संबधों पर निर्भर करता है ।
मेरे अनुभव से, यदि शनि के अंश चन्द्रमा की अपेक्षा कम हो तो यह जीवन के विभिन्न क्षेत्रों जैसे नौकरी, व्यापार, विवाह इत्यादि मे अनचाही देरी को प्रदान करता है ।
: किसी भी जन्म-पत्रिका का विश्लेषण करते समय चंद्रमा का अध्ययन अति आवश्यक है क्योंकि संसार में सबका पार पाया जा सकता है परन्तु मन का नहीं। संसार के सारे क्रिया-कलाप मन पर ही टिके हुये हैं तथा मन को तो एक सफल ज्योतिषी ही अच्छी तरह से पढ़ सकता है। सामान्यतः हम सुनते आए है कि हमारा मन नहीं लग रहा अथवा हमारा मन तो बस इसी में लगता है। जन्म-पत्रिका में यदि चन्द्रमा शुभ ग्रह से सम्बन्ध करता है तो उसमें अमृत-शक्ति का प्रादुर्भाव होता है तथा यदि वह अशुभ ग्रह अथवा पाप ग्रह से सम्बन्ध करता है तो विभिन्न विकार उत्पन्न करता है। यह सम्बन्ध किसी भी रूप में हो सकता है यथा युति सम्बन्ध, दृष्टि सम्बन्ध, राशि सम्बन्ध या नक्षत्र सम्बन्ध। विष यानि जहर। विष का जीवन में किसी भी प्रकार से होना मृत्यु अथवा मृत्यु तुल्य कष्ट का परिचायक है। जन्म-पत्रिका में चन्द्रमा तथा शनि के सम्बन्ध से विष योग का निर्माण होता है। दूसरे शब्दों में चन्द्रमा पर शनि का किसी भी रूप से प्रभाव हो चाहे दृष्टि सम्बन्ध या अन्य, यह योग जीवन में विष योग के परिणाम देता है। किसी भी जन्म-पत्रिका में यह युति सर्वाधिक रूप से बुरे फल प्रदान करती है। इसमें चन्द्रमा तथा शनि दोनों से संबन्धित शुभ फलों का नाश होता है। युति सम्बन्ध केवल शनि तथा चन्द्रमा के साथ-साथ बैठने से ही नहीं होता है अपितु दोनों का दीप्तांशों में समान होने पर ही यह युति होती है। दोनों ग्रह जितने अधिक अंशानुसार साथ होंगे उतना ही यह योग प्रभावशाली होगा साथ ही उसी अनुपात में नकारात्मक भी। खीर बनाते समय उसमें जाने-अनजाने यदि नमक पड़ जाये तो उसके स्वाद से तो सभी भलीभाँति परिचित हैं ही, ठीक इसी प्रकार जन्म-पत्रिका में यह योग विष का एहसास कराता है। जिस भाव में यह योग बनता है उससे संबन्धित अशुभ फल व्यक्ति को मिलते हैं। चूंकि चन्द्रमा माता का भी कारक होता है अतः माता के विषय में जानकारी चन्द्रमा की स्थिति से ही पता चलती है। जन्म-पत्रिका में इस योग के होने से माता का शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होगा। माता मानसिक रूप से निराशा का शिकार हो सकती है। ऐसे योग में माता के सुख में कमी, सम्बन्धों में अवरोध, विचारों में भिन्नता तथा विरोध का होना भी पाया जाता है। “चन्द्रमा मन सो जातः”, जन्म-पत्रिका में विष योग होने से व्यक्ति का मन दुखी रहता है, सबके होते हुये भी वह अकेलापन महसूस करता है, सच्चे प्रेम की कमी उसको खलती रहती है, माता के स्नेह का इच्छुक होते हुये भी उसे वह सुख पूर्णतः नहीं मिलता है या अपनी ही कमी के कारण वह ले नहीं पाता है। कारण कोई भी हो सकता है चाहे दूरी हो, बीमारी हो, विवाद हो या किसी प्रकार की मजबूरी। निराशा गहरी होती है, मन कुंठित रहता है। दिखने में व्यक्ति सामान्य नजर आता है परन्तु माता के सुख में कमी के कारण व्यक्ति उदास रहता है। चन्द्रमा तथा शनि से बना पूर्ण विष योग माता को भी पीड़ित करता है, व्यक्ति माता को तंग करता है। शनि तथा चन्द्रमा का किसी भी प्रकार से सम्बन्ध माता की आयु को भी कम करता है अर्थात माता का पीड़ित होना या माता से पीड़ित होना निश्चित है। जब कभी चंद्र-शनि का किसी विशेष अंश पर योग होता ह तो व्यक्ति में आत्म हत्या की भावना उत्पन्न होती है। यदि इस स्थिति में चन्द्रमा पाप-कर्तरी में हो तो आत्म हत्या की भावना प्रबल बन जाती है। जन्म-पत्रिका में चन्द्रमा तथा शनि की युति सबसे अधिक बुरा फल प्रदान करती है। यह युति किसी भी भाव में शुभ नहीं मानी जाती है, जिस भाव में भी यह युति होती है उस भाव का फल पूरी तरह से नष्ट हो जाता है। वैसे तो इस योग का सभी भावों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है परन्तु जब यह योग विशेष रूप से सप्तम भाव में हो तो व्यक्ति की मानसिक असन्तोष तथा अलगाववादी स्थिति बनी रहेगी। पहले तो विवाह में ही हजार अड़चने आती हैं, कभी-कभी विवाह होता भी नहीं है यदि होता भी है तो इतनी देर से कि मन भर जाता है – आकर्षण समाप्त हो जाता है। व्यक्ति जीवन साथी के साथ रहता तो है पर अलग-अलग, विचार दूर-दूर तक नहीं मिलते, शादी होना बस खाना-पूर्ति जैसा ही लगता है। मन खुश हो तो सारी दुनिया अच्छी लगती है अन्यथा सारे भौतिक सुख होने पर भी सब कुछ फीका-फीका लगता है। शनि चंद्र का योग युति, दृष्टि, अंश आदि किसी भी प्रकार से बनता हो उसमें नक्षत्र का विशेष महत्व होता है अर्थात जब शनि चन्द्रमा के नक्षत्र रोहिणी, हस्त तथा श्रवण में हो अथवा चन्द्रमा शनि के नक्षत्र पुष्य, अनुराधा तथा उत्तरा-भाद्रपद में हो या शनि तथा चन्द्रमा एक ही राशि में हों तो विष योग का निर्माण होता है। यदि नक्षत्र मित्र राशि या परम मित्र राशि में है तो समस्या कर जल्दी ही चली जाती है मन की स्थिति खराब नहीं होती है किन्तु यदि नीच राशि का चन्द्रमा शनि के साथ (वृश्चिक राशि तथा अनुराधा नक्षत्र) बहुत निम्न स्थिति का निर्माण करता है – व्यक्ति का मानसिक रोगी होना निश्चित है। चंद्रमा और शनि की डिग्री देखकर और उपनक्षत्रो के आधार पर निवारण सुनिश्चित है।
चन्द्रमा तथा शनि की अंशात्मक दूरी कम हो, चन्द्रमा निर्बल हो, उसे कोई पाप ग्रह देखता हो विशेषकर शनि तो व्यक्ति भाग्यहीन तथा प्रवज्या लेने वाला होता है। चन्द्रमा शनि के द्रेष्काॅण में हो या शनि के नवांश में हो या दृष्ट हो तो व्यक्ति प्रवज्या पाता है। चन्द्रमा पक्ष बली हो, शुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति स्वस्थ तथा उत्साहित होता है। क्षीण चन्द्रमा शनि से दृष्ट या युत होने से व्यक्ति अवसादपूर्ण तथा निराशाग्रस्त होता है। पूर्ण चन्द्रमा यदि वैरागी ग्रह शनि के साथ हो तो व्यक्ति उच्च कोटि का तत्व-चिंतक संत होता है। चतुर्थ भाव में यह योग व्यक्ति को पूर्णतः उदासीन बना देता है। उदासीन साधु-संन्यासियों की जन्म-पत्रिका में शनि से प्रभावित चन्द्रमा प्रायः पाया जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि चन्द्रमा की स्थिति व्यक्ति के आचार-विचार, स्वभाव, प्रकृति आदि को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। शनि व चन्द्रमा के विपरीत स्वभाव के कारण, कार्य सम्पादन में बाधा बार-बार इस योग के कारण ही आती है। यह योग भावों के अनुसार अलग-अलग प्रकार से कष्टदायी होता है जैसे – द्वितीय भाव में यह योग वाणी दोष, तुतलाहट आदि पैदा करता है। चतुर्थ भाव में मन अवसाद से भरा रहता है तथा वीर्य विकार उत्पन्न होता है। शनि की दशम भावस्थ स्थिति बड़ी प्रबल होती है यदि इस पर चन्द्रमा का प्रभाव हो तो मानसिक विकृतियों का प्रादुर्भाव होता है जिसके परिणाम भयंकर होते हैं। इस प्रकार शनि तथा चन्द्रमा की युति कभी भी शुभ नहीं होती है।कुछ विशेष उपाय से शांति प्राप्त की जा सकती है।, व्यक्ति में निराशा जबरदस्त प्रभावी होती है। यदि शनि-चन्द्रमा पर राहु की दृष्टि भी हो जाये तो आग में घी का काम होता है – धन-नाश, स्वास्थ्य हानि, रक्त-विकार, नेत्र कष्ट, छाती के रोग तथा माता को कष्ट होना निश्चित है। चन्द्रमा बलवान हो तो हानि कम होती है। यदि चन्द्रमा क्षीण हो तो हानि का प्रतिशत बढ़ जाता है। चन्द्रमा यदि लग्नेश होकर शनि के नवांश में हो तो व्यक्ति भोगी होता है और अधिकार भावना प्रबल होती है। भूमि, भवन, वाहन प्राप्त करने की विशेष इच्छा होती है किन्तु ऐसे व्यक्ति के जीवन में कोई न कोई कष्ट या परेशानी रहती रहती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विष योग किसी भी प्रकार से शुभ नहीं होता है।
: व्यक्ति के आचार-विचार, स्वभाव, प्रकृति आदि को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। शनि व चन्द्रमा के विपरीत स्वभाव के कारण, कार्य सम्पादन में बाधा बार-बार इस योग के कारण ही आती है। यह योग भावों के अनुसार अलग-अलग प्रकार से कष्टदायी होता है जैसे – द्वितीय भाव में यह योग वाणी दोष, तुतलाहट आदि पैदा करता है। चतुर्थ भाव में मन अवसाद से भरा रहता है तथा वीर्य विकार उत्पन्न होता है। शनि की दशम भावस्थ स्थिति बड़ी प्रबल होती है यदि इस पर चन्द्रमा का प्रभाव हो तो मानसिक विकृतियों का प्रादुर्भाव होता है जिसके परिणाम भयंकर होते हैं। इस प्रकार शनि तथा चन्द्रमा की युति कभी भी शुभ नहीं होती है।कुछ विशेष उपाय से शांति प्राप्त की जा सकती है।, व्यक्ति में निराशा जबरदस्त प्रभावी होती है। यदि शनि-चन्द्रमा पर राहु की दृष्टि भी हो जाये तो आग में घी का काम होता है – धन-नाश, स्वास्थ्य हानि, रक्त-विकार, नेत्र कष्ट, छाती के रोग तथा माता को कष्ट होना निश्चित है। चन्द्रमा बलवान हो तो हानि कम होती है। यदि चन्द्रमा क्षीण हो तो हानि का प्रतिशत बढ़ जाता है। चन्द्रमा यदि लग्नेश होकर शनि के नवांश में हो तो व्यक्ति भोगी होता है और अधिकार भावना प्रबल होती है। भूमि, भवन, वाहन प्राप्त करने की विशेष इच्छा होती है किन्तु ऐसे व्यक्ति के जीवन में कोई न कोई कष्ट या परेशानी रहती रहती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विष योग किसी भी प्रकार से शुभ नहीं होता है।जन्मकुंडली के अनुसार उचित उपाय से समाधान संभव है।
: महादशा फलित करते समय ग्रहो के बल को ध्यान में रखना जरूरी है जिनमे

बल

1- उच्च बल
2- सप्तवर्गज बल
3- ओज युग्म राशि बल
4-ओज युग्म नवमांश बल
5- केन्द्रादिबल
6- द्रेशकोण बल

आदि जरुर देखने चाहिए ।

मेष ,वृष , कर्क , धनु, मकर, पृष्ठोदय राशियां है , इन राशियों में बैठा ग्रह दशा के अंतिम चरण में अपना पूर्ण फल देगा

सिंह , कन्या, तुला, वृश्चिक, और कुम्भ, शीर्षोदय राशियां है ,इन राशियों में बैठा ग्रह दशा के शुरुवात में ही अपना फल दे सकता है,

मिथुन और मीन उभयोदय राशियां है ,जातक पारिजात के अनुसार इन राशियों में बैठा ग्रह पूरे दशा काल मे अपना फल देगा
लेकिन फल दीपिका के अनुसार केवल दशा के मध्य में ही वो पूर्ण फल देगा

अगर 12वे भाव का स्वामि पीड़ित हो तो उसकी दशा में जातक अनेकों बीमारियों से घिर सकता है उसे अपमान का सामना करना पड़ सकता है , उसके धन का नुकसान ठीक ऐसे ही हो सकता है जैसे कृष्ण पक्ष का निरंतर घटता हुआ चंद्रमा ।

जिस ग्रह की अपने अष्टकवर्ग में जिस जिस भाव मे शून्य बिंदु हो या कोई शुभ बिंदु ना हो उस भाव को भी ग्रह अपनी दशा अंतर में बिगाड़ता है
अर्थात शनि की महादशा हो और शनि के अष्टकवर्ग में 5वे भाव मे कोई बिंदु ना हो तो शनि की दशा अंतर में 5वे भाव से जुड़ा कस्ट होगा

चाहे कोई ग्रह अपनी उच्च राशि मे हो ,चाहे वो मित्र राशि मे हो , चाहे वे पूर्ण षड्बल से सम्पन्न हो लेकिन अगर ग्रह भाव सन्धि में है तो फल देने में असमर्थ हो जाता है predictions करते समय इन बातो का ध्यान करना चाहिए l

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