जानिए शिव मंत्रों का रहस्य…
हिंदू धर्म और मान्यताओं में शिव मंत्र सार्वाधिक लोकप्रिय और महत्वपूर्ण स्थान रखता है. मान्यताओं के मुताबिक इन मंत्रों का जाप व्यक्ति को आध्यात्मिक सुख और शांति प्रदान करता है. लेकिन क्या आपको मालूम है शिव जाप के लिए इन मंत्रों का क्या मतलब है ? जानिए, इन मंत्रों को आखिर ये मंत्र क्या हैं और इनका क्या महत्व है?
नमः शिवाय … अर्थात शिव जी को नमस्कार
नमः शिवाय पांच अक्षर का मंत्र है “न”, “म”, “शि”, “व” और “य”. प्रस्तुत मंत्र इन्ही पांच अक्षरों की व्याख्या करता है. स्तोत्र के पांच छंद पाँच अक्षरों की व्याख्या करते हैं. अतः ये स्तोत्र पंचाक्षर स्तोत्र कहलाता है.
“ॐ” का प्रयोग
“ॐ” के प्रयोग से ये मंत्र छः अक्षर का हो जाता है. “ॐ” नमः शिवाय’’. ” शिव षडक्षर स्तोत्र इन छः अक्षरों पर आधारित है.
पांच अक्षर नमः शिवाय पर आधारित मंत्र
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे “न” काराय नमः शिवायः॥
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे “म” काराय नमः शिवायः॥
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय|
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै “शि” काराय नमः शिवायः॥
वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै “व” काराय नमः शिवायः॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय|
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै “य” काराय नमः शिवायः॥
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत शिव सन्निधौ|
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
क्या है पांच अक्षरों पर आधारति इस मंत्र का अर्थ
जब सृष्टि का विस्तार संभव न हुआ तब ब्रह्मा ने शिव का ध्यान किया और घोर तपस्या की. शिव अर्द्ध नारीश्वर रूप में प्रकट हुए. उन्होंने अपने शरीर के अर्द्ध्भागसे शिवा (शक्ति या देवी) को अलग कर दिया. शिवा को प्रकृति, गुणमयीमाया तथा निर्विकार बुद्धि के नाम से भी जाना जाता है. इसे अंबिका, सर्वलोकेश्वरी,त्रिदेव जननी, नित्य तथा मूल प्रकृति भी कहते हैं. इनकी आठ भुजाएं तथा विचित्र मुख हैं. अचिंत्य तेजोयुक्तयह माया संयोग से अनेक रूपों वाली हो जाती है. इस प्रकार सृष्टि की रचना के लिए शिव दो भागों में विभक्त हो गए, क्योंकि दो के बिना सृष्टि की रचना असंभव है. शिव सिर पर गंगा और ललाट पर चंद्रमा धारण किए हैं. उनके पांच मुख पूर्वा, पश्चिमा, उत्तरा,दक्षिणा तथा ऊध्र्वाजो क्रमश:हरित,रक्त,धूम्र,नील और पीत वर्ण के माने जाते हैं. उनकी दस भुजाएं हैं और दसों हाथों में अभय, शूल, बज्र,टंक, पाश, अंकुश, खड्ग, घंटा, नाद और अग्नि आयुध हैं.
तीन नेत्रों वाले
उनके तीन नेत्र हैं. वह त्रिशूल धारी, प्रसन्नचित, कर्पूर गौर भस्मा शक्ति काल स्वरूप भगवान हैं. उनकी भुजाओं में तमोगुण नाशक सर्प लिपटे हैं. शिव पांच तरह के कार्य करते हैं जो ज्ञानमय हैं. सृष्टि की रचना करना, सृष्टि का भरण-पोषण करना, सृष्टि का विनाश करना, सृष्टि में परिवर्तनशीलता रखना और सृष्टि से मुक्ति प्रदान करना.
आठ रूपों में हैं शिव
कहा जाता है कि सृष्टि संचालन के लिए शिव आठ रूप धारण किए हुए हैं. चराचर विश्व को पृथ्वी रूप धारण करते हुए वह शर्वअथवा सर्व हैं. सृष्टि को संजीवन रूप प्रदान करने वाले जलमयरूप में वह भव हैं. सृष्टि के भीतर और बाहर रहकर सृष्टि स्पंदित करने वाला उनका रूप उग्र है. सबको अवकाश देने वाला, नृपोंके समूह का भेदक सर्वव्यापी उनका आकाशात्मकरूप भीम कहलाता है. संपूर्ण आत्माओं का अधिष्ठाता, संपूर्ण क्षेत्रवासी, पशुओं के पाश को काटने वाला शिव का एक रूप पशुपति है. सूर्य रूप से आकाश में व्याप्त समग्र सृष्टि में प्रकाश करने वाले शिव स्वरूप को ईशान कहते हैं. रात्रि में चंद्रमा स्वरूप में अपनी किरणों से सृष्टि पर अमृत वर्षा करता हुआ सृष्टि को प्रकाश और तृप्ति प्रदान करने वाला उनका रूप महादेव है. शिव का जीवात्मा रूप रुद्र कहलाता है. सृष्टि के आरंभ और विनाश के समय रुद्र ही शेष रहते हैं. सृष्टि और प्रलय, प्रलय और सृष्टि के मध्य नृत्य करते हैं. जब सूर्य डूब जाता है, प्रकाश समाप्त हो जाता है, छाया मिट जाती है और जल नीरव हो जाता है उस समय यह नृत्य आरंभ होता है. तब अंधकार समाप्त हो जाता है और ऐसा माना जाता है कि उस नृत्य से जो आनंद उत्पन्न होता है वही ईश्वरीय आनंद है. शिव,महेश्वर, रुद्र, पितामह, विष्णु, संसार वैद्य, सर्वज्ञ और परमात्मा उनके मुख्य आठ नाम हैं.