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व्रह्मांड और समय की धारणा(ASTRO QUANTUM PHYSICS , time and space ) PART-2
”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””’
ध्यान से पड़े अच्छा लगेगा ईश्वर की अद्भुत सृष्टि को जानकर और ये वैदिक ”समय का सही निर्णय” आपको हमारे प्राचीन सनातन धर्म की प्रति श्रद्धा और आस्था को वनाये रखेगा।

आपको गर्व अनुभव होगा के हम अति प्राचीन ज्ञान के एकमात्र धारक सनातन धर्मीय परिवार में जन्म लिए है।

भारतवर्ष में जन्म लिए है।

आज के वैज्ञानिक समय कैसे नाप ते है?

पिकोसेकेण्ड
नैनो सेकेण्ड
माईक्रो सेकेण्ड,
सेकेण्ड
60 सेकेण्ड मे 1 मिनट,
60 मिनट मे 1 घन्टा,
24 घन्टे मे 1 दिन,(पृथ्वी के आपनी धुरी पर घुमना)
30 दिन मे 1 माह
12 माह मे 1 साल या वर्ष ।(पृथ्वी का सुर्य को एक वार परिक्रमण करना)

वस?

अव वेद मे आते है।
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।

*1 परमाणु = काल की सबसे सूक्ष्मतम अवस्था
*2 परमाणु = 1 अणु
*3 अणु = 1 त्रसरेणु
*3 त्रसरेणु = 1 त्रुटि
*10 ‍त्रुटि = 1 प्राण
*10 प्राण = 1 वेध
*3 वेध = 1 लव या 60 रेणु
*3 लव = 1 निमेष
*1 निमेष = 1 पलक झपकने का समय
*2 निमेष = 1 विपल (60 विपल एक पल होता है)
*3 निमेष = 1 क्षण
*5 निमेष = 2 सही 1 बटा 2 त्रुटि

*2 सही 1 बटा 2 त्रुटि = 1 सेकंड या 1 लीक्षक से कुछ कम।
*20 निमेष = 10 विपल, एक प्राण या 4 सेकंड
*5 क्षण = 1 काष्ठा
*15 काष्ठा = 1 दंड, 1 लघु, 1 नाड़ी या 24 मिनट
*2 दंड = 1 मुहूर्त
*15 लघु = 1 घटी=1 नाड़ी
*1 घटी = 24 मिनट, 60 पल या एक नाड़ी
*3 मुहूर्त = 1 प्रहर
*2 घटी = 1 मुहूर्त= 48 मिनट
*1 प्रहर = 1 याम
*60 घटी = 1 अहोरात्र (दिन-रात) (पृथ्वी के आपनी धुरी पर घुमना )

*15 दिन-रात = 1 पक्ष
*2 पक्ष = 1 मास (पितरों का एक दिन-रात)
*कृष्ण पक्ष = पितरों का एक दिन और शुक्ल पक्ष = पितरों की एक रात।
*2 मास = 1 ऋतु
*3 ऋतु = 6 मास

*6 मास = उत्तरायन (देवताओं का एक दिन-)वाकि 6 मास दक्षिणायण(देवता की रात)

*2 अयन = 1 वर्ष (पृथ्वी के सुर्य की परिक्रमा करना)

*मानवों का एक वर्ष = देवताओं का एक दिन जिसे दिव्य दिन कहते हैं।

*1 वर्ष = 1 संवत्सर=1 अब्द
*10 अब्द = 1 दशाब्द
*100 अब्द = शताब्द

*360 अब्द = 1 दिव्य वर्ष अर्थात देवताओं का 1 वर्ष।

  • 12,000 दिव्य वर्ष = एक महायुग (चारों युगों को मिलाकर एक महायुग) =43,20,000 मानव वर्ष

सतयुग : 4800 देवता वर्ष ×360(17,28,000मानव वर्ष)
त्रेतायुग : 3600 देवता वर्ष× 360(12,96000मानव वर्ष)
द्वापरयुग : 2400 देवता वर्ष×360 (8,64000मानव वर्ष)
कलियुग : 1200 देवता वर्ष×360 (4,32000 मानव वर्ष)

  • 71 महायुग = 1 मन्वंतर
  • चौदह मन्वंतर = एक कल्प।
  • एक कल्प = ब्रह्मा का एक दिन। (ब्रह्मा का एक दिन बीतने के बाद महाप्रलय होती है और फिर इतनी ही लंबी रात्रि होती है)। इस दिन और रात्रि के आकलन से उनकी आयु 100 वर्ष होती है। उनकी आधी आयु निकल चुकी है और शेष में से यह प्रथम कल्प है।
  • ब्रह्मा का वर्ष यानी 31 खरब 10 अरब 40 करोड़ वर्ष। ब्रह्मा की 100 वर्ष की आयु अथवा ब्रह्मांड की आयु- 31 नील 10 अरब 40 अरब वर्ष (31,10,40,00,00,00,000 वर्ष)

अव एक अहोरात्र (24 घंटे) पृथ्वी आपनी धुरी पर घुमती है।
एक वर्ष ( 365 दिन) मे जैसे पृथ्वी सुर्य की चारो तरफ घुमती है।

ठीक उसी तरह सुर्य भी सारे ग्रहो के साथ आकाशगंगा नाम के निहारिका की (पुराणो में आकाश गंगा शिशुमार चक्र नाम से प्रसिद्ध है) परिक्रमा कर रहै।

सिर्फ हमारे सुर्य ही नही और भी सुर्य आपने ग्रह मण्डल को लेकर इसकी परिक्रमा करते है । वेद के अनुसार हमारे आकाश गंगा में (शिशुमार चक्र में) 7 सुर्य है।

और मेरु रेखा में कश्यप नाम के एक वहुत वड़ा सुर्य है जिनको शिशुमार चक्र परिक्रमा करते है। हमारे सप्तर्षि मंडल केे ऋषि कश्यप है।

सात सुर्य

1)आरोग
2)भाज
3)पटर
4)पतंग
5)स्वर्णर
6)ज्योतिषीमान
7)विभास

ऋषि कश्यप (मेरुरेखा में अवस्थित सप्तर्षि केे एक ऋषि)

हमारे सुर्य का नाम आरोग है।

रुको रुको अभी भी वाकी है सुर्य को आकाश गंगा(शिशुमार चक्र) की एक चक्कर लगाने मे जितना समय लगता है उसे ही एक मनवंतर काल कहते है (4 युग मिलाकर 1 दिव्य युग 71 दिव्य युग मे एक मनवंतर पहले वता चुकी ) ये करने मे
4320000×71=30,84,48000 मानव वर्ष लगते है।
आधुनिक विज्ञान इसे मानते है और उनके हिसाब से 25,00,00000 मानव वर्ष समय लगता है।

आधुनिक विज्ञान इस से आगे नही जा पाये।

मगर हमारे ऋषिऔ ने खोज कर लिये

अभी भी वाकि है आकाशगंगा के जैसा कई निहारिका है जिसके अन्दर वहुतो सुर्य मण्डल और पृथ्वी जैसे ग्रह है।

ये सारी निहारिका सप्त ऋषि के एक ऋषि मंडल की परिक्रमा कर रहे। जिसके लिए एक कल्प (14 मन्वंतर मे एक कल्प) लग जाते हे। समय 4320000000 मानव वर्ष

ऐसे सात ऋषि है अंतरिक्ष में (सबके शिशुमार चक्र जैसा कई चक्र है जो आपने अंदर अपना सुर्य और उसके ग्रह को लिये है) ये 7 ऋषिगण ध्रुव मण्डल की परिक्रमा कर रहे।
इस परिक्रमा में ब्रह्मा की 100 वर्ष (31,10,40,00,00,00,000 मानव वर्ष )समय लगता है

ये वात तब की है जब भगवान ने ध्रुव जी को ये मण्डल प्रदान करते हुए कहे थे सारे ब्रह्माण्ड लय होने पर भी ध्रुव लोक नष्ट नही होगा तुम मेरे गोद मे सदा सुरक्षित रहो गे।
सप्त ॠषि आपने ग्रह नक्षत्र के साथ सदैव तुमको प्रदक्षिणा करेंगे ।(भागवतपुराण )

अतएव आपको पता चला हमारे सुर्य का नाम आरोग है जो और 6 सुर्य केे साथ शिशुमार चक्र नाम केे निहारिका को परिक्रमण कर रहे और हमारे निहारिका कश्यप नामक सप्तर्षि मंडल केे एक वड़े नक्षत्र के चक्कर काट रहे है और सप्तर्षि ध्रुव मंडल की परिक्रमण कर रहे।

सबसे अद्भुत वात ये हे ये सव परस्पर आकर्षण वल के प्रभाव से एक नियम अनुसार आपने में निर्दिष्ट दुरी रख कर युगो से प्ररिक्रमा करके चल रहे।

क्या अब भी भगवान पर विश्वास नही?
क्या अब भी सोच रहे है इये सिस्टम आपने आप वना है?
[: सावधान, आंखों की समस्या भी हो सकती है आंख फड़कने का कारण

1 आंखों की समस्या – आंखों में मांस पेशियों से संबंधित समस्या होने पर भी आंख फड़क सकती है। अगर लंबे समय से आपकी आंख फड़क रही है, तो एक बार आंखों की जांच जरूर करवा लें। हो सकता है आपको चश्मा लगाने की जरूरत हो या आपके चश्मे का नंबर बलने वाला हो।
2 तनाव – तनाव के कारण भी आपकी आंख फड़क सकती है। खास तौर से जब तनाव के कारण आप चैन से सो नहीं पाते और आपकी नींद पूरी नहीं होती, तब आंख फड़कने की समस्या हो सकती है। 
3 थकान – अत्यधिक थकान होने पर आंखों में भी समस्याएं होती हैं। इसके अलावा आंखों में थकान या कम्यूटर, लैपटॉप पर ज्यादा देर काम करते रहने से भी यह समस्या हो सकती है। इसके लिए आंखों को आराम देना जरूरी है।
4 सूखापन – आंखों में सूखापन होने पर भी आंख फड़कने की समस्या होती है। इसके अलावा आंखों में एलर्जी, पानी आना, खुजली आदि समस्या होने पर भी ऐसा हो सकता है।
5 पोषण – शरीर में मैग्नीशियम की कमी होने पर आंख फड़कने की समस्या पैदा सकती है। इसके अलवा अत्यधिक कैफीन का शराब का सेवन र्भी इस समस्या को जन्म देता है।
[ अगर इन 6 चीजों को रातभर भिगोकर खाएंगे, तो बीमारियों से रहेंगे कोसों दूर

  1. मुनक्का -इसमें मैग्नीशियम, पोटेशियम और आयरन काफी मात्रा में होते हैं। मुनक्के का नियमित सेवन कैंसर कोशिकाओं में बढ़ोतरी को रोकता है। इससे हमारी स्किन भी हेल्दी और चमकदार रहती है। एनीमिया और किडनी स्टोन के मरीजों के लिए भी मुनक्का फायदेमंद है। 
  2. काले चने -इनमें फाइबर्स और प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा होती हैं जो कब्ज दूर करने में सहायक होते है। 
  3. बादाम -इसमें मैग्नीशियम होता है जो हाई बीपी के रोगियों के लिए फायदेमंद होता है। कई अध्ययनों में पाया गया है कि नियमित रूप से भीगी हुई बादाम खाने से खराब कोलेस्ट्रॉल का लेवल कम हो जाता है। 
  4. किशमिश -किशमिश में आयरन और एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर मात्रा में होते हैं। भीगी हुई किशमिश को नियमित रूप से खाने से स्किन हेल्दी और चमकदार बनती है। साथ ही शरीर में आयरन की कमी भी दूर होती है। 
  5. खड़े मूंग -इनमें प्रोटीन, फाइबर और विटामिन बी भरपूर मात्रा में होता है। इनका नियमित सेवन कब्ज दूर करने में बहुत फायदेमंद होता है। इसमें पोटेशियम और मैग्नेशियम भी भरपूर मात्रा में होने की वजह से डॉक्टरस हाई बीपी के मरीजों को इसे रेगुलर खाने की सलाह देते है। 
  6. मेथीदाना -इनमें फाइबर्स भरपूर मात्रा में होते हैं जो कब्ज को दूर कर आंतों को साफ रखने में मदद करते हैं। डायबिटीज के रोगियों के लिए भी मेथीदाने फायदेमंद हैं। साथ ही इनका सेवन महिलाओं में पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द को भी कम करता हैं।
    [: बैलेंस डाइट लेना है तो आहार में फाइबर भी जरूर शामिल करें, जानिए क्यों?

1 रेशा प्रिबायोटिक है। इससे कोलोन में मित्र बैक्टीरिया में वृद्धि होती है।
2 फाइबर एक महत्वपूर्ण एंटीऑक्सीडेंट होता है।
3 डाइट में लिया गया फाइबर बुरे कॉलेस्ट्रॉल को भी बढ़ने से रोकता है।
4 रेशे वाला भोजन खाने की संतुष्टि देता है। इससे पेट भरा रहता है।
5 इसके विपरीत रेशे रहित पदार्थ मैदा इत्यादि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
6 फल, सब्जी, साबुत अनाज और दालों से फाइबर प्राप्त किया जा सकता है। भारतीय भोजन में फाइबर मौसमी फल, रोटी, सब्जी, तुअर दाल, उड़द दाल, मूंग की दाल, राजमा आदि से प्राप्त हो सकता है।
7 रेशा या फाइबर पेट को साफ रखने में मदद करता है। सिर्फ इतना ही नहीं भोजन में पर्याप्त फाइबर, डाइबिटीज, कैंसर, हृदय रोग और मोटापे को भी दूर रखता है।
[: वजन घटाना है, तो घबराएं नहीं.. रोजाना पिएं मूंग दाल का पानी

मूंग की दाल अधिकांश घरों में बनाई जाती है और काफी पसंद भी की जाती है। वैसे तो सभी तरह की दालों में पौष्टिक तत्व होते हैं, लेकिन हम आपको बता रहे हैं कि मूंग की दाल खाने से आपको कौन से फायदे मिलेंगे –
1 मूंग की दाल में भारी मात्रा में कैल्शियम, मैग्नेशियम, पोटैशियम और सोडियम होता है। साथ ही इसे खाने से विटमिन-सी, कार्ब्स, प्रोटीन और डायटरी फाइबर भी मिलता है।
2 मूंग की दाल खाने से एनीमिया की समस्या में राहत मिलती है और वजन कम करने में भी ये सहायक होती है।
3 मूंग की दाल का पानी पिने से फाफी देर तक पेट भरा रहता है और आप एनर्जेटिक भी फील करते हैं।
4 मूंग की दाल का पानी छोटे बच्चों के लिए भी फायदेमंद होता है, बच्चे इसे आसानी से पचा पाते हैं। ये बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद कतती है।
5 अगर किसी को दस्त या डायरिया की समस्या हो गई हो, तो उन्हें 1 कटोरी मूंग दाल पिलाएं। इससे उनके शरीर में पानी की कमी पूरी होगी साथ ही दस्त रूकने में मदद मिलेगी।
[21/07, 12:08] Daddy: 55% महिलायें थाइरोइड बीमारी से ग्रस्त हैं.!
● थायरायड को कैसे कम करे…
जानिये…!
● आजकल एक गंभीर समस्या बहुतायात देखने को मिल रही है थायराइड।
● थायरायड गर्दन के सामने और स्वर तंत्र के दोनों तरफ होती है।
● थायरायड में अचानक बृद्धि हो जाना या फिर अचानक कम हो जाना है।

●●●थाइरोइड●●●
● एक स्वस्थ्य मनुष्य में थायरायड ग्रंथि का भार 25 से 50 ग्राम तक होता है।
● यह ‘थाइराक्सिन‘ नामक हार्मोन का उत्पादन करती है।

●पैराथायरायड ग्रंथियां●
● थायरायड ग्रंथि के ऊपर एवं मध्य भाग की ओर एक-एक जोड़े यानी कि कुल चार होती हैं। यह ”पैराथारमोन” हार्मोन का उत्पादन करती हैं।

●● तनावग्रस्त जीवन शैली से थाइरोइड रोग बढ़ रहा है।
● आराम परस्त जीवन से भी हाइपो थायराइड और तनाव से हाइपर थायराइड के रोग होने की आशंका, आधुनिक चिकित्सक निदान में करने लगे हैं।
● आधुनिक जीवन में व्यक्ति अनेक चिंताओं से ग्रसित है जैसे
परिवार की चिंताऐं तथा आपसी स्त्री-पुरुषों के संबंध।
● आत्मसम्मान को बनाए रखना।
● लोग क्या कहेंगे आदि अनेक चिंताओं के विषय हैं।

●●●उपचार●●●
1- थायरायड की समस्या वाले लोगों को दही और दूध का इस्तेमाल अधिक से अधिक करना चाहिए क्योंकि दूध और दही में मौजूद कैल्शियम, मिनरल्स और विटामिन्स थाइरोइड से ग्रसित पुरूषों को स्वस्थ बनाए रखने का काम करते हैं।

2- थायरायड ग्रन्थि को बढ़ने से रोकने के लिए गेहूं के ज्वार का सेवन कर सकते है।
गेहूं का ज्वार आयुर्वेद में थायरायड की समस्या को दूर करने का बेहतर और सरल प्राकृतिक उपाय है।
इसके अलावा ये साइनस, उच्च रक्तचाप और खून की कमी जैसी समस्याओं को रोकने में भी प्रभावी रूप से काम करता है।

3- थायरायड की परेशानी में जितना हो सके, फलों और सब्जियों का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि फल और सब्जियों में एंटीआक्सिडेंटस होता है जो थायरायड को कभी भी बढ़ने नहीं देता है।
सब्जियों में टमाटर, हरी मिर्च आदि का सेवन करें।

4- थायरायड के मरीजों को थकान बड़ी जल्दी लगने लगती है और वे जल्दी ही थक जाते हैं एैसे में मुलेठी का सेवन करना बेहद फायदेमंद होता है, चूंकि मुलेठी में मौजूद तत्व थायरायड ग्रन्थि को संतुलित बनाते हैं और थकान को उर्जा में बदल देते हैं। मुलेठी थायरायड में कैंसर को बढ़ने से भी रोकता है।

5- योग के जरिए भी थायरायड की समस्या से निजात पाया जा सकता है इसलिए भुजंगासन, ध्यान लगाना, नाड़ीशोधन, मत्स्यासन, सर्वांगासन और बृहमद्रासन आदि करना चाहिए।

6- अदरक में मौजूद गुण जैसे पोटेशियम, मैग्नीश्यिम आदि थायरायड की समस्या से निजात दिलवाते हैं अदरक में एंटी-इंफलेमेटरी गुण थायरायड को बढ़ने से रोकता है और उसकी कार्यप्रणाली में सुधार लाता है।

स्वस्थ रहें, खुश रहें ।
[: चमत्कारी त्रिफला

त्रिफला तीन श्रेष्ठ औषधियों हरड, बहेडा व आंवला के पिसे मिश्रण से बने चूर्ण को कहते है।जो की मानव-जाति को हमारी प्रकृति का एक अनमोल उपहार हैत्रिफला सर्व रोगनाशक रोग प्रतिरोधक और आरोग्य प्रदान करने वाली औषधि है। त्रिफला से कायाकल्प होता है त्रिफला एक श्रेष्ठ रसायन, एन्टिबायोटिक व ऐन्टिसेप्टिक है इसे आयुर्वेद का पेन्सिलिन भी कहा जाता है। त्रिफला का प्रयोग शरीर में वात पित्त और कफ़ का संतुलन बनाए रखता है। यह रोज़मर्रा की आम बीमारियों के लिए बहुत प्रभावकारी औषधि है सिर के रोग, चर्म रोग, रक्त दोष, मूत्र रोग तथा पाचन संस्थान में तो यह रामबाण है। नेत्र ज्योति वर्धक, मल-शोधक,जठराग्नि-प्रदीपक, बुद्धि को कुशाग्र करने वाला व शरीर का शोधन करने वाला एक उच्च कोटि का रसायन है। आयुर्वेद की प्रसिद्ध औषधि त्रिफला पर भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर, ट्राम्‍बे,गुरू नानक देव विश्‍वविद्यालय, अमृतसर और जवाहर लाल नेहरू विश्‍वविद्यालय में रिसर्च करनें के पश्‍चात यह निष्‍कर्ष निकाला गया कि त्रिफला कैंसर के सेलों को बढ़नें से रोकता है।

हरड

हरड को बहेड़ा का पर्याय माना गया है। हरड में लवण के अलावा पाँच रसों का समावेश होता है। हरड बुद्धि को बढाने वाली और हृदय को मजबूती देने वाली,पीलिया ,शोध ,मूत्राघात,दस्त, उलटी, कब्ज, संग्रहणी, प्रमेह, कामला, सिर और पेट के रोग, कर्णरोग, खांसी, प्लीहा, अर्श, वर्ण, शूल आदि का नाश करने वाली सिद्ध होती है। यह पेट में जाकर माँ की तरह से देख भाल और रक्षा करती है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। हरड को चबाकर खाने से अग्नि बढाती है। पीसकर सेवन करने से मल को बाहर निकालती है। जल में पका कर उपयोग से दस्त, नमक के साथ कफ, शक्कर के साथ पित्त, घी के साथ सेवन करने से वायु रोग नष्ट हो जाता है। हरड को वर्षा के दिनों में सेंधा नमक के साथ, सर्दी में बूरा के साथ, हेमंत में सौंठ के साथ, शिशिर में पीपल, बसंत में शहद और ग्रीष्म में गुड के साथ हरड का प्रयोग करना हितकारी होता है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। 200 ग्राम हरड पाउडर में 10-15 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर रखे। पेट की गड़बडी लगे तो शाम को 5-6 ग्राम फांक लें । गैस, कब्ज़, शरीर टूटना, वायु-आम के सम्बन्ध से बनी बीमारियों में आराम होगा ।

*बहेडा *

बहेडा वात,और कफ को शांत करता है। इसकी छाल प्रयोग में लायी जाती है। यह खाने में गरम है,लगाने में ठण्डा व रूखा है, सर्दी,प्यास,वात , खांसी व कफ को शांत करता है यह रक्त, रस, मांस ,केश, नेत्र-ज्योति और धातु वर्धक है। बहेडा मन्दाग्नि ,प्यास, वमन कृमी रोग नेत्र दोष और स्वर दोष को दूर करता है बहेडा न मिले तो छोटी हरड का प्रयोग करते है

*आंवला *

आंवला मधुर शीतल तथा रूखा है वात पित्त और कफ रोग को दूर करता है। इसलिए इसे त्रिदोषक भी कहा जाता है आंवला के अनगिनत फायदे हैं। नियमित आंवला खाते रहने से वृद्धावस्था जल्दी से नहीं आती।आंवले में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है,इसका विटामिन किसी सी रूप (कच्चा उबला या सुखा) में नष्ट नहीं होता, बल्कि सूखे आंवले में ताजे आंवले से ज्यादा विटामिन सी होता है। अम्लता का गुण होने के कारण इसे आँवला कहा गया है। चर्बी, पसीना, कपफ, गीलापन और पित्तरोग आदि को नष्ट कर देता है। खट्टी चीजों के सेवन से पित्त बढता है लेकिन आँवला और अनार पित्तनाशक है। आँवला रसायन अग्निवर्धक, रेचक, बुद्धिवर्धक, हृदय को बल देने वाला नेत्र ज्योति को बढाने वाला होता है।

*त्रिफला बनाने के लिए तीन मुख्य घटक हरड, बहेड़ा व आंवला है इसे बनाने में अनुपात को लेकर अलग अलग ओषधि विशेषज्ञों की अलग अलग राय पाई गयी है *

कुछ विशेषज्ञों कि राय है की ———

तीनो घटक (यानी के हरड, बहेड़ा व आंवला) सामान अनुपात में होने चाहिए
कुछ विशेषज्ञों कि राय है की यह अनुपात एक, दो तीन का होना चाहिए
कुछ विशेषज्ञों कि राय में यह अनुपात एक, दो चार का होना उत्तम है
और कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यह अनुपात बीमारी की गंभीरता के अनुसार अलग-अलग मात्रा में होना चाहिए ।एक आम स्वस्थ व्यक्ति के लिए यह अनुपात एक, दो और तीन (हरड, बहेडा व आंवला) संतुलित और ज्यादा सुरक्षित है। जिसे सालों साल सुबह या शाम एक एक चम्मच पानी या दूध के साथ लिया जा सकता है। सुबह के वक्त त्रिफला लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ़ करने वाला) होता है।

  • ऋतू के अनुसार सेवन विधि :-*
    1.शिशिर ऋतू में ( 14 जनवरी से 13 मार्च) 5 ग्राम त्रिफला को आठवां भाग छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।
    2.बसंत ऋतू में (14 मार्च से 13 मई) 5 ग्राम त्रिफला को बराबर का शहद मिलाकर सेवन करें।
    3.ग्रीष्म ऋतू में (14 मई से 13 जुलाई ) 5 ग्राम त्रिफला को चोथा भाग गुड़ मिलाकर सेवन करें।
    4.वर्षा ऋतू में (14 जुलाई से 13 सितम्बर) 5 ग्राम त्रिफला को छठा भाग सैंधा नमक मिलाकर सेवन करें।
    5.शरद ऋतू में(14 सितम्बर से 13 नवम्बर) 5 ग्राम त्रिफला को चोथा भाग देशी खांड/शक्कर मिलाकर सेवन करें।
    6.हेमंत ऋतू में (14 नवम्बर से 13 जनवरी) 5 ग्राम त्रिफला को छठा भाग सौंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।

ओषधि के रूप में त्रिफला

रात को सोते वक्त 5 ग्राम (एक चम्मच भर) त्रिफला चुर्ण हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होता है।

अथवा त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें इससे कब्ज दूर होता है।

इसके सेवन से नेत्रज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है।

सुबह पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण साफ़ मिट्टी के बर्तन में भिगो कर रख दें, शाम को छानकर पी ले। शाम को उसी त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, इसे सुबह पी लें। इस पानी से आँखें भी धो ले। मुँह के छाले व आँखों की जलन कुछ ही समय में ठीक हो जायेंगे।

शाम को एक गिलास पानी में एक चम्मच त्रिफला भिगो दे सुबह मसल कर नितार कर इस जल से आँखों को धोने से नेत्रों की ज्योति बढती है।

एक चम्मच बारीख त्रिफला चूर्ण, गाय का घी10 ग्राम व शहद 5 ग्राम एक साथ मिलाकर नियमित सेवन करने से आँखों का मोतियाबिंद, काँचबिंदु, द्रष्टि दोष आदि नेत्ररोग दूर होते है। और बुढ़ापे तक आँखों की रोशनी अचल रहती है।

त्रिफला के चूर्ण को गौमूत्र के साथ लेने से अफारा, उदर शूल, प्लीहा वृद्धि आदि अनेकों तरह के पेट के रोग दूर हो जाते है।

त्रिफला शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकता है, त्रिफला की तीनों जड़ीबूटियां आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं।

चर्मरोगों में (दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि) सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए।

एक चम्मच त्रिफला को एक गिलास ताजा पानी मे दो- तीन घंटे के लिए भिगो दे, इस पानी को घूंट भर मुंह में थोड़ी देर के लिए डाल कर अच्छे से कई बार घुमाये और इसे निकाल दे। कभी कभार त्रिफला चूर्ण से मंजन भी करें इससे मुँह आने की बीमारी, मुहं के छाले ठीक होंगे, अरूचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी ।

त्रिफला, हल्दी, चिरायता, नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिला कर मिश्रण को आधा किलो पानी में जब तक पकाएँ कि पानी आधा रह जाए और इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह शाम गुड या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द कि समस्या दूर हो जाती है।

त्रिफला एंटिसेप्टिक की तरह से भी काम करता है। इस का काढा बनाकर घाव धोने से घाव जल्दी भर जाते है।

त्रिफला पाचन और भूख को बढ़ाने वाला और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने वाला है।

मोटापा कम करने के लिए त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर ले।त्रिफला चूर्ण पानी में उबालकर, शहद मिलाकर पीने से चरबी कम होती है।

त्रिफला का सेवन मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में बहुत लाभकारी है। प्रमेह आदि में शहद के साथ त्रिफला लेने से अत्यंत लाभ होता है।

त्रिफला की राख शहद में मिलाकर गरमी से हुए त्वचा के चकतों पर लगाने से राहत मिलती है।

5 ग्राम त्रिफला पानी के साथ लेने से जीर्ण ज्वर के रोग ठीक होते है।

5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गोमूत्र या शहद के साथ एक माह तक लेने से कामला रोग मिट जाता है।

टॉन्सिल्स के रोगी त्रिफला के पानी से बार-बार गरारे करवायें।

त्रिफला दुर्बलता का नास करता है और स्मृति को बढाता है। दुर्बलता का नास करने के लिए हरड़, बहेडा, आँवला, घी और शक्कर मिला कर खाना चाहिए।

त्रिफला, तिल का तेल और शहद समान मात्रा में मिलाकर इस मिश्रण कि 10 ग्राम मात्रा हर रोज गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट, मासिक धर्म और दमे की तकलीफे दूर होती है इसे महीने भर लेने से शरीर का सुद्धिकरन हो जाता है और यदि 3 महीने तक नियमित सेवन करने से चेहरे पर कांती आ जाती है।

त्रिफला, शहद और घृतकुमारी तीनो को मिला कर जो रसायन बनता है वह सप्त धातु पोषक होता है। त्रिफला रसायन कल्प त्रिदोषनाशक, इंद्रिय बलवर्धक विशेषकर नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकने वाला व मेधाशक्ति बढ़ाने वाला है। दृष्टि दोष, रतौंधी (रात को दिखाई न देना), मोतियाबिंद, काँचबिंदु आदि नेत्ररोगों से रक्षा होती है और बाल काले, घने व मजबूत हो जाते हैं।

डेढ़ माह तक इस रसायन का सेवन करने से स्मृति, बुद्धि, बल व वीर्य में वृद्धि होती है।

दो माह तक सेवन करने से चश्मा भी उतर जाता है।

विधिः 500 ग्राम त्रिफला चूर्ण, 500 ग्राम देसी गाय का घी व 250 ग्राम शुद्ध शहद मिलाकर शरदपूर्णिमा की रात को चाँदी के पात्र में पतले सफेद वस्त्र से ढँक कर रात भर चाँदनी में रखें। दूसरे दिन सुबह इस मिश्रण को काँच अथवा चीनी के पात्र में भर लें।

सेवन-विधिः बड़े व्यक्ति10 ग्राम छोटे बच्चे 5 ग्राम मिश्रण सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लें दिन में केवल एक बार सात्त्विक, सुपाच्य भोजन करें। इन दिनों में भोजन में सेंधा नमक का ही उपयोग करे। सुबह शाम गाय का दूध ले सकते हैं।सुपाच्य भोजन दूध दलिया लेना उत्तम है.

मात्राः 4 से 5 ग्राम तक त्रिफला चूर्ण सुबह के वक्त लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ़ करने वाला) होता है। सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ इसका सेवन करें तथा एक घंटे बाद तक पानी के अलावा कुछ ना खाएं और इस नियम का पालन कठोरता से करें ।

सावधानीः दूध व त्रिफलारसायन कल्प के सेवन के बीच में दो ढाई घंटे का अंतर हो और कमजोर व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को बुखार में त्रिफला नहीं खाना चाहिए।

घी और शहद कभी भी सामान मात्रा में नहीं लेना चाहिए यह खतरनाक जहर होता है ।

त्रिफला चूर्णके सेवन के एक घंटे बाद तक चाय-दूध कोफ़ी आदि कुछ भी नहीं लेना चाहिये।

त्रिफला चूर्ण हमेशा ताजा खरीद कर घर पर ही सीमित मात्रा में (जो लगभग तीन चार माह में समाप्त हो जाये ) पीसकर तैयार करें व सीलन से बचा कर रखे और इसका सेवन कर पुनः नया चूर्ण बना लें।

त्रिफला से कायाकल्प

कायाकल्प हेतु निम्बू लहसुन ,भिलावा,अदरक आदि भी है। लेकिन त्रिफला चूर्ण जितना निरापद और बढ़िया दूसरा कुछ नहीं है।आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला के नियमित सेवन करने से कायाकल्प हो जाता है। मनुष्य अपने शरीर का कायाकल्प कर सालों साल तक निरोग रह सकता है, देखे कैसे ?

एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर चुस्त होता है।

दो वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर निरोगी हो जाता हैं।

तीन वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति बढ जाती है।

चार वर्ष तक नियमित सेवन करने से त्वचा कोमल व सुंदर हो जाती है ।

पांच वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुद्धि का विकास होकर कुशाग्र हो जाती है।

छः वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर शक्ति में पर्याप्त वृद्धि होती है।

सात वर्ष तक नियमित सेवन करने से बाल फिर से सफ़ेद से काले हो जाते हैं।

आठ वर्ष तक नियमित सेवन करने से वृद्धाव्स्था से पुन: योवन लोट आता है।

नौ वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति कुशाग्र हो जाती है और सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु भी आसानी से दिखाई देने लगती हैं।

दस वर्ष तक नियमित सेवन करने से वाणी मधुर हो जाती है यानी गले में सरस्वती का वास हो जाता है।

ग्यारह वर्ष तक नियमित सेवन करने से वचन सिद्धि प्राप्त हो जाती है अर्थात व्यक्ति जो भी बोले सत्य हो जाती है।

अमर शहीद राष्ट्रगुरु, आयुर्वेदज्ञाता, होमियोपैथी ज्ञाता स्वर्गीय भाई राजीव दीक्षित जी को जाने व इनके ज्ञान को ग्रहण कर इनके व अपने सपनो (स्वस्थ व समृद्ध भारत) को पूरा करने हेतु अपना समय दान दें

मेरी दिल की तम्मना है हर इंसान का स्वस्थ स्वास्थ्य के हेतु समृद्धि का नाश न हो इसलिये इन ज्ञान को अपनाकर अपना व औरो का स्वस्थ व समृद्धि बचाये। ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और जो भाई बहन इन सामाजिक मीडिया से दूर हैं उन्हें आप व्यक्तिगत रूप से ज्ञान दें।

आप अपने सगे संबंधियों व जाने अनजाने दोस्तों अर्थात हर इंसान तक इस संदेश को पहुँचाये।

अगर आप मेरी बातों से सहमत हो तो इसे अपने जानकारों तक ज्यादा से ज्यादा शेयर करें
[: जिनको नकसीर फूटती है उनके लिए ये योग है।

जीवनोपयोगी कुजिंया
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
जिनको निकलती है,तो उसके पुदिना,हरा धनिया पीसकर माथे पर लेप करें और रात को आँवला,धनिया का चूर्ण भिगोकर रखें और सुबह पियें, ठीक हो जायेगा तुलसी या हरा धनिया की रस की दो बूंद नाक में डाल दो,नकसीर ठीक हो जायेगी,तरबूज ठंडी लस्सी, आँवला मिश्री का घोल पियें।
[ मस्तक रेखा
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मस्तक में विधाता ने हमारा भाग्य अंकित कर रखा है ! आपने कभी-कभी किसी व्यक्ति विशेष को परेशानी आदि की स्थिति में माथा पीते हुए यह कहते सुना होगा -“मेरा तो भाग्य ही फूट गया, मेरा तो नसीब ही फूट गया अथवा मेरी तो किस्मत ही मारी गयी है आदि !!!

  क्योंकि मस्तक से व्यक्ति विशेष के संदर्भ में बहुत सी रोचक जानकारी प्राप्त होती है, यह जानकारी विशेषकर मस्तक अथवा ललाट में स्थित रेखाओं द्वारा प्राप्त होती है ! मस्तक पर मुख्यत: सात रेखायें पायी जाती हैं ! ललाट(सिर के बालों के नीचे का स्थान) के नीचे प्रथम रेखा है -शनि रेखा तत्पश्चात क्रमश: गुरू, मंगल, बुध, शुक्र, सूर्य तथा चंद्र रेखायें पायी जाती हैं ! 

    शुक्र रेखा आज्ञा चक्र(दोनो भौहों के बीत का स्थान, जहाँ पर तिलक लगाया जाता है) पर स्थित है तथा सूर्य रेखा दाह्नी भौहों के ऊपर और चंद्र रेखा बांयी भौहों के ऊपर स्थित है ! जौनसी रेखा स्पष्ट, लम्बी तथा अखंडित(बिना टूटी-फूटी) होगी, उससे सम्बन्धित ग्रह को बलवान अथवा शुभ प्रभाव युक्त समझना चाहिए ! और जो रेखा खंडित(टूटी-फूटी), अस्पष्ट अथवा टेढ़ी-मेढ़ी हो, उससे सम्बन्धित ग्रह को कमजोर अथवा अशुभ समझना चाहिए !

       मस्तक पर स्थित मोटी अथवा गहरी रेखायें भाईयों की तथा हल्की रेखायें बहनों की प्रतीक हैं ! स्पष्ट तथा सीधी रेखा भाई-बहनो का सुख प्रदान करती हैं तथा उन्हें दीर्घजीवी(दीर्घायु) बनाती हैं ! इसके विपरीत खंडित अथवा अस्पष्ट रेखा भाई-बहनों को अल्पायु तथा उनके सुख सं वंचित रखती हैं !

     मस्तक पर स्थित सभी रेखायें लम्बी, निर्दोष तथा अखंडित हों, तो व्यक्ति सुखी, सम्पन्न, दीर्घायु,ऐश्वर्यशाली, भाई-बहनों तथा संतान सुख से युक्त तथा जीवन में उच्च सफलताादि प्राप्त करने वाला होता है ! इसके विपरीत खंडित,अस्पष्ट अथवा दुषित रेखा विपरीत फल प्रदान करती है ! मस्तक रेखाओं की भिन्-भिन्न स्थिति के कारण इनका फलादेश भी भिन्न हो जाता है -
  • सीधी, स्पष्ट तथा पूर्ण रेखा: दीर्घायु, सुखी, भाई-बहनों का सुख अथवा सहयोग प्राप्त होना, ऐश्वर्,यशाली तथा सम्पन्न !
  • छिन्न-भिन्न अथवा दुषित रेखायें: आर्थिक परेशानी, दु:ख-संकट, बाधायें, भाई-बहनो के सुख से वंचित !
  • निर्दोष(स्पष्ट, लम्बी तथा अखंडित) सूर्य रेखा: यश, सम्मान, प्रतिष्ठा प्राप्त होना, नौकरी अथवा राज्य सरकार(उच्चाधिकारी) द्वारा लाभ !
  • निर्दोष चंद्र रेखा: कला, नृत्य, संगीतादि में रूची तथा सफलता प्राप्त करना, दृढ़ मनोबल, मात्र सुख, माता दीर्घायु,आर्थिक सम्पन्नता !
  • दुषित(खंडित,अस्पष्ट अथवा छिन्न-भिन्न) सूर्य रेखा: यश, सम्मान, प्रतिष्ठा में कमी तथा पित्र सुख से वंचित !
  • दुषित चंद्र रेखा: मानसिक परेशानियाँ, मानसिक अस्थिरता, आर्थिक बाधा, जल भय, श्वान( कुत्ता) द्वारा काटना तथा मात्र सुख से वंचित, माता को कष्ट !
  • निर्दोष शुक्र रेखा: नृत्य, कला, संगीतादि में रूचि, नवीन(नये) वस्त्रादि पगनने में रूचि, फैशनादि में रूचि, सम्मोहक तथा आकर्षक व्यक्तित्व, पत्नी सुख, विवाहोपरांत भाग्योदय !
  • दुषित शुक्र रेखा: पत्नी से अनबन अथवा तलाक, उत्साह में कमी, साधारण व्यक्तित्व, विवाहा में बाधादि, बदनामी आदि !
  • रेखाओं का अभाव(एक भी रेखा न होना): 30-40 वर्षायु !
  • 5से अधिक रेखायें: अल्पायु !
  • 3रेखा: सुखी तथा 70वर्ष से अधिक आयु !
  • 2कटी हुयी रेखायें: हमेशा परेशान रहना !
  • मस्तक पर चाँद: ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है, महान संत, महात्मा तथा उपदेशक !
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    [ओ३म् (ॐ) या ओंकार का नामान्तर प्रणव है…!
    यह ईश्वर का वाचक है… ईश्वर के सृष् सात करोड़ मंत्रों का आविर्भाव है…! इस एक शब्द को ब्रह्मांड का सार माना जाता है…!
    सम्पूर्ण ब्रह्माण्डसे हमेशा ॐ की ध्वनि निकलती है…!
    ओम (ॐ) के बिना किसी घर की पूजा पूरी नहीं होती..!
    कहते हैं बिना ओम (ॐ)के सृष्टि की कल्पना भी नहीं हो सकती है…!
    ओम सिर्फ एक पवित्र ध्वनि ही नहीं, बल्कि अनन्त शक्ति का प्रतीक है..!
    ॐ शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है..अ उ म. अ का मतलब होता है उत्पन्न होना, उ का मतलब होता है उठना यानी विकास और म का मतलब होता है मौन हो जाना यानी कि ब्रह्मलीन हो जाना…!
    ॐ शब्द इस दुनिया में किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों का प्रमुख भाग है..!
    ॐ के उच्चारण से ही शरीर के अलग अलग भागों मे कंपन शुरू हो जाती है, जैसे की ‘अ’:- शरीर के निचले हिस्से में (पेट के करीब) कंपन करता है. ‘उ’– शरीर के मध्य भाग में कंपन होती है जो की (छाती के करीब) . ‘म’ से शरीर के ऊपरी भाग में यानी (मस्तिक) कंपन होती है..!
    ॐ शब्द के उच्चारण से कई शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक लाभ मिलते हैं. अमेरिका के एक FM रेडियो पर सुबह की शुरुआत ॐ शब्द के उच्चारण से ही होती है…!
    वैज्ञानिकों ने ओम के उच्चारण पर रिसर्च किया और निरीक्षण किया कि रोज़ाना ॐ के उच्चारण से मष्तिष्क के साथ साथ पूरे शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है…!
    ऊँ की ध्वनि का महत्व जानिये..!
    एक घडी,आधी घडी,आधी में पुनि आध…!
    तुलसी चरचा राम की, हरै कोटि अपराध…!
    1 घड़ी= 24मिनट
    1/2घडी़=12मिनट
    1/4घडी़=6 मिनट
    क्या ऐसा हो सकता है कि 6 मि. में किसी साधन से करोडों विकार दूर हो सकते हैं…!
    उत्तर है … हाँ हो सकते हैं…!

वैज्ञानिक शोध करके पता चला है कि…सिर्फ 6 मिनट ऊँ का उच्चारण करने से सैकडौं रोग ठीक हो जाते हैं जो दवा से भी इतनी जल्दी ठीक नहीं होते…!

छः मिनट ऊँ का उच्चारण करने से मस्तिष्क मै विषेश वाइब्रेशन (कम्पन) होता है…. और औक्सीजन का प्रवाह पर्याप्त होने लगता है…!

कई मस्तिष्क रोग दूर होते हैं.. स्ट्रेस और टेन्शन दूर होती है….!
मैमोरी पावर बढती है..!
लगातार सुबह शाम 6 मिनट ॐ के तीन माह तक उच्चारण से रक्त संचार संतुलित होता है और रक्त में औक्सीजन लेबल बढता है..!
रक्त चाप , हृदय रोग, कोलस्ट्रोल जैसे रोग ठीक हो जाते हैं….!
विशेष ऊर्जा का संचार होता है …! मात्र 2 सप्ताह दोनों समय ॐ के उच्चारण से घबराहट, बेचैनी, भय, एंग्जाइटी जैसे रोग दूर होते हैं..!

कंठ में विशेष कंपन होता है मांसपेशियों को शक्ति मिलती है..!
थाइराइड, गले की सूजन दूर होती है और स्वर दोष दूर होने लगते हैं..!
पेट में भी विशेष वाइब्रेशन और दबाव होता है….!
एक माह तक दिन में तीन बार 6 मिनट तक ॐ के उच्चारण से पाचन तन्त्र , लीवर, आँतों को शक्ति प्राप्त होती है, और डाइजेशन सही होता है, सैकडौं उदर रोग दूर होते हैं..!
उच्च स्तर का प्राणायाम होता है, और फेफड़ों में विशेष कंपन होता है…!
फेफड़े मजबूत होते हैं,स्वसनतंत्र की शक्ति बढती है, 6 माह में अस्थमा, राजयक्ष्मा (T.B.) जैसे रोगों में लाभ होता है…! आयु बढती है.. .!!
ये सारे रिसर्च (शोध) नासा और विश्व स्तर के वैज्ञानिक स्वीकार कर चुके हैं..!
जरूरत है छः मिनट रोज करने की….।
नोट:- ॐ का उच्चारण लम्बे स्वर में करें ।।

धन्यवाद… आयुशमान भव्य:..!!.
[: बृहदेश्वर मंदिर (तंजावुर, तमिलनाडु)

तमिलनाडु के तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर पूरी तरह से ग्रेनाइट नि‍र्मि‍त है। विश्व में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जो कि ग्रेनाइट का बना हुआ है। बृहदेश्वर मंदिर अपनी भव्यता, वास्‍तुशिल्‍प और केन्द्रीय गुम्बद से लोगों को आकर्षित करता है। इस मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया है।

💜बृहदेश्वर मंदिर का रहस्य

राजाराज चोल – I इस मंदिर के प्रवर्तक थे। यह मंदिर उनके शासनकाल की गरिमा का श्रेष्‍ठ उदाहरण है। चोल वंश के शासन के समय की वास्तुकला की यह एक श्रेष्ठतम उपलब्धि है। राजाराज चोल- I के शासनकाल में यानि 1010 एडी में यह मंदिर पूरी तरह तैयार हुआ और वर्ष 2010 में इसके निर्माण के एक हजार वर्ष पूरे हो गए हैं।
अपनी विशिष्ट वास्तुकला के लिए यह मंदिर जाना जाता है। 1,30,000 टन ग्रेनाइट से इसका निर्माण किया गया। ग्रेनाइट इस इलाके के आसपास नहीं पाया जाता और यह रहस्य अब तक रहस्य ही है कि इतनी भारी मात्रा में ग्रेनाइट कहां से लाया गया। इसके दुर्ग की ऊंचाई विश्‍व में सर्वाधिक है और दक्षिण भारत की वास्तुकला की अनोखी मिसाल इस मंदिर को यूनेस्‍को ने विश्‍व धरोहर स्‍थल घेषित किया है।

👉मंदिर में नन्दी महाराज की मूर्ति

तंजावुर का “पेरिया कोविल” (बड़ा मंदिर) विशाल दीवारों से घिरा हुआ है। संभवतः इनकी नींव 16वीं शताब्दी में रखी गई। मंदिर की ऊंचाई 216 फुट (66 मी.) है और संभवत: यह विश्व का सबसे ऊंचा मंदिर है। मंदिर का कुंभम् (कलश) जोकि सबसे ऊपर स्थापित है केवल एक पत्थर को तराश कर बनाया गया है और इसका वज़न 80 टन का है। केवल एक पत्थर से तराशी गई नंदी सांड की मूर्ति प्रवेश द्वार के पास स्थित है जो कि 16 फुट लंबी और 13 फुट ऊंची है।
हर महीने जब भी सताभिषम का सितारा बुलंदी पर हो, तो मंदिर में उत्सव मनाया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि राजाराज के जन्म के समय यही सितारा अपनी बुलंदी पर था। एक दूसरा उत्सव कार्तिक के महीने में मनाया जाता है जिसका नाम है कृत्तिका। एक नौ दिवसीय उत्सव वैशाख (मई) महीने में मनाया जाता है और इस दौरान राजा राजेश्वर के जीवन पर आधारित नाटक का मंचन किया जाता था।
मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य स्लाइडर के साथ पढ़ें-

👉कैसे की होगी ग्रेनाइट पर नक्काशी?

ग्रेनाइट की खदान मंदिर के सौ किलोमीटर की दूरी के क्षेत्र में नहीं है; यह भी हैरानी की बात है कि ग्रेनाइट पर नक्‍काशी करना बहुत कठिन है। लेकिन फिर भी चोल राजाओं ने ग्रेनाइट पत्‍थर पर बारीक नक्‍काशी का कार्य खूबसूरती के साथ करवाया।

👉जब पूरे हुए थे एक हजार साल

रिजर्व बैंक ने 01 अप्रैल 1954 को एक हजार रुपये का नोट जारी किया था। जिस पर बृहदेश्वर मंदिर की भव्य तस्वीर है। संग्राहकों में यह नोट लोकप्रिय हुआ। इस मंदिर के एक हजार साल पूरे होने के उपलक्ष्‍य में आयोजित मिलेनियम उत्सव के दौरान एक हजार रुपये का स्‍मारक सिक्का भारत सरकार ने जारी किया। 35 ग्राम वज़न का यह सिक्का 80 प्रतिशत चाँदी और 20 प्रतिशत तांबे से बना है।

👉और भी हैं मंदिर के नाम

बृहदेश्वर मंदिर पेरूवुदईयार कोविल, तंजई पेरिया कोविल, राजाराजेश्वरम् तथा राजाराजेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव को समर्पित यह एक हिंदू मंदिर है।

👉जमीन पर नहीं पड़ती गोपुरम की छाया

इस मंदिर की एक और विशेषता है कि गोपुरम (पिरामिड की आकृति जो दक्षिण भारत के मंदिर के मुख्य द्वार पर स्थित होता है) की छाया जमीन पर नहीं पड़ती। मंदिर के गर्भ गृह में चारों ओर दीवारों पर भित्ती चित्र बने हुए हैं, जिनमें भगवान शिव की विभिन्न मुद्राओं को दर्शाया गया है।

पुरातात्व विभाग ने पहले जैसा बनाया
अंदर भित्ती चित्रों में एक भित्तिचित्र जिसमें भगवान शिव असुरों के किलों का विनाश करके नृत्‍य कर रहे हैं और एक श्रद्धालु को स्वर्ग पहुंचाने के लिए एक सफेद हाथी भेज रहे है।

भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण ने चित्रों को डी-स्टक्को विधि का प्रयोग करके एक हजार वर्ष पुरानी चोल भित्तिचित्रों को पुन: पहले जैसा बना दिया है।
[: केदारेश्वर महादेव
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कोई अदृश्य शक्ति करती हैं जलाभिषेक और पूजा

महादेव के चमत्कारों को कौन नहीं जानता
राजा भोज की नगरी के नाम से प्रसिद्ध कस्बा मऊरानीपर क्षेत्र में भी ऐसा ही एक चमत्कारी शिवलिंग है जो नन्दी महाराज की पीठ पर स्थित है । यही नहीं ऐसा माना जाता है कि कोई अदृश्य शक्ति पूजा- अर्चना करने के बाद गायब हो जाती है । मीडिया ने अपने कैमरे में इसे कैद करने की बहुत कोशिशें की परन्तु सब बेकार रहीं ।

जिला मुख्यालय से करीब 80 किमी दूर मऊरानीपुर के ग्राम रौनी की ऊंची पहाड़ी पर शिवजी का एक मंदिर है । इसे श्रद्धालु केदारेश्वर धाम के नाम से जानते हैं । इस मंदिर में दुर्लभ शिवलिंग है, जो नंदी की पीठ पर स्थापित है । काफी समय पूर्व पुरातत्व इकाई की टीम के साथ जब यहां सर्वेक्षण करने में लगी थी तो वहां आसमान की ऊंचाई छू रही इसी पहाड़ी पर बने मंदिर को टीम ने देखा था ।

पुरातत्व विभाग के अध्ययन के बाद यह जानकारी हुई थी कि यह मंदिर कोई साधारण मंदिर नहीं बल्कि 9वीं प्रतिहार कालीन सदी का है । नंदी की पीठ पर शिवलिंग, गरुण पर बैठे विष्णु और आलिंगनबद्ध स्त्री-पुरुष की लघु आकृतियां इस मंदिर की विशेषता हैं । पुरातत्व विभाग अधिकारियों के मुताबिक यह प्रतिमा बेहद दुर्लभ है । मंदिर के गर्भगृह की छत पर पर कमल के पुष्पों की नक्काशी है और मूर्ति के समीप ही नवग्रह बने हैं ।

मंदिर के द्वार पर मां गंगा-यमुना की प्रतिमाएं भी विद्यमान हैं ऐसा बताया जाता है कि शिवलिंग सेंड स्टोन का बना हुआ है । मंदिर के पास ही कई अन्य मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए हैं । भगवान भोलेनाथ के दर्शन लाभ के लिए करीब 600 सीढ़ियों द्वारा मंदिर तक पहुंचा जा सकता है । पहाड़ी के शिखर पर मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क भी बना दी गई है । इस सड़क के माध्यम से कार या बाइक से आसानी से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है ।

अब तक बना है यह एक रहस्य

मऊरानीपुर नगर के बरिष्ठजन और भगवान केदारेश्वर पर नियमित जाने वाले नगर के प्रबुद्घजनो का कहना है कि मंदिर में बने शिवलिंग पर आज तक कोई पहली पूजा नही कर पाया है । मंदिर के द्वार खुलने से पहले ही कोई अदृश्य शक्ति पूजा करके चली जाती है । यहां आने वाले श्रद्धालुओं का ऐसा भी कहना है कि मंदिर में भगवान की सबसे पहले पूजा महोबा के अमर वीर कहे जाने वाले आल्हा द्वारा की जाती है । वह घोड़े पर सवार होकर पूजा करने आते हैं । कई बार रात्रि में मंदिर परिसर में रुकने वाले श्रद्धालुओं ने घोड़े की टापों को भी सुना है ।

सीता रसोई में आज भी खनकते हैं बर्तन

श्रद्धालुओं का कहना है कि मंदिर से कुछ दूरी पर पत्थरों से एक और कमरा बना हुआ है । लोग इसे सीता की रसोई के नाम से जानते हैं । बताया जाता है कि जब भगवान राम वनवास के लिए निकले थे तो कुछ समय के लिए यहां पर रुके थे । इस रसोई में माता सीता ने भगवान के लिए भोजन बनाया था । रात के समय सीता की रसोई से भी विशाल आकार के पत्थरों से अजीब तरह की आवाजें निकलती हैं,जो किसी बर्तन की तरह प्रतीत होती हैं । मंदिर के सेवादार चिन्नागोटी महाराज की मानें तो उनके पूर्वज कई पीढ़ियों से मंदिर की सेवा करते आ रहे हैं । लेकिन आज तक यह जानकारी नही कर सके कि मंदिर में भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग का सबसे पहले जलाभिषेक करता कौन है ?

सावन मास में उमड़ता है हजारों कांवड़ियों का सैलाब

सावन मास में भगवान शिव जी के धाम केदारेश्वर पर हजारों की संख्या में कांवड़ियों का सैलाब उमड़ता है । दूर-दराज से जल लेकर कांवड़िये भगवान शिव के केदारेश्वर धाम पर जलाभिषेक करते हैं । केन्द्रीय मंत्री उमा भारती का इस मंदिर में पूजा करने आने का कार्यक्रम अक्सर देखा जा सकता है । इसके अलावा अन्य वीवीआईपी भी यहां मत्था टेकने आते रहते हैं । लोगो की सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए पर्याप्त पुलिस बल भी तैनात किया जाता है

ज्योतिष शास्त्र के कुछ अचूक उपाय

संसार में बहुत से लोग हैं जिन्हे अपने जन्म समय, जन्म तिथि और जन्म स्थान के बारे में न तो पता है न ही उन्होंने कभी अपनी जन्मपत्रिका ही बनवाई है। ऐसी स्थिति में ज्योतिष विद्या मानव जीवन की अनेक समस्याओं का हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस के उपायों के द्वारा बेहद अचूक परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।अगर आपको जन्म का विवरण पता नहीं है तो आपके परिवार का कुम्बे का कोई भी सदस्य का जन्म विवरण ऊपर से आपके बारे में पूर्ण सटीक बताया जा सकता है।

****धन प्राप्ति के उपाय——–

नमक को कभी भी खुले बर्तन में न रखे।
प्रतिदिन पीपल की जड़ में जल डालें।
अपने घर के प्रत्येक दरवाज़े के कब्ज़े में तेल लगाये ताकि उनमें से ‘चू चू’ की आवाज़ ना आये।
भोजन तैयार करते समय पहली रोटी गाय के लिए और आखिरी रोटी कुत्ते के लिए निकले।
जब भी अपनी बहन या बुआ को घर पर आमंत्रित करें तो उसे खाली हाथ न भेजें ।
जब भी घर का फ़र्श साफ़ करें तो उसमे थोड़ा सा नमक मिला लें।

****धन के ठहराव के लिए उपाय———————

नोटों की गिनती कभी भी उँगलियों पर थूक लगा कर न करें।
कभी भी सूर्यास्त के बाद घर में झाड़ू न लगाये।
बुधवार के दिन किसी भी किन्नर को हैसियत दान दे कर उससे कुछ पैसे वापिस ले लें।
बुधवार को किसी को भी पैसे उधार न दें।

***शीघ्र विवाह हेतु उपाय ——

हमेशा अपने से बड़े व्यक्तियों और बुज़ुर्गों का सम्मान करें।
जब भी आप स्नान करें तो उसमें थोड़ा सा हल्दी पाउडर मिला लें।
अगर हो सके तो अपने घर पर एक खरगोश पाले और हर बुधवार को उसे हरी घास खाने को दें।
नव-विवाहित व्यक्ति के पुराने वस्त्रों का उपयोग करें।
देवगुरु बृहस्पति का पूजन करें।
जब कभी भी आप के माता-पिता आपके लिए वर देखने जाएं उस दिन लाल वस्त्र धारण करें और उनके वापिस लौटने तक अपने बाल खुले रखें।
रात को सोने से पूर्व अपने सिर के पास आठ खजूर और प्रातःकाल उसे चलते पानी में बहा दें।
शनिवार की रात्रि चौराहे पर नया बंद ताला चाभी के साथ रख आयें।

***सुखी विवाहित जीवन के लिए उपाय—————–
अपने जीवन साथी को कम आय के लिए कभी भी ताने न मारें।
प्रतिदिन प्रातः केले और पीपल के पेड़ का पूजन करें।
हमेशा अपना मासिक वेतन अपनी पत्नी को दें और उससे कह दें कि इसका उपयोग करने से पहले एक बार इसे तिजोरी में रख ले।
अपनी पत्नी का सम्मान सदैव ‘लक्ष्मी’ की भाँति ही करें।
पति के भोजन करने के उपरान्त पत्नी को पति की जूठी थाली में से कुछ भोजन ग्रहण करना चाहिए।

**बच्चों की शिक्षा सम्बन्धी कुछ उपाय —————————–

बच्चों को 11 तुलसी-पत्र के रस में मिश्री मिलाकर दें इससे उनकी एकाग्रता में वृद्धि होगी।
प्रतिदिन सूर्य भगवान को जल अर्पित करें।
प्रतिदिन 21 बार गायत्री मंत्र का उच्चारण करें।
विद्यार्थी अपने अध्ययन कक्ष में विद्या की देवी माँ सरस्वती का चित्र लगायें।
इमली की 22 पत्तियाँ लें उनमें से 11 पत्तियाँ सूर्य देवता को अर्पित कर दें और शेष अपनी पुस्तक में रख लें।
रात्रि सोने से पूर्व 11 बार “ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः” मंत्र का उच्चारण करें।
अपने अध्ययन कक्ष में हरे रंग के परदे लगायें।

**स्वयं में विश्वास उत्पन्न करने के लिए उपाय ——————-

रविवार को लाल रंग के बैल को गुड़ खिलायें।
अपने घर के मंदिर में लाल रंग के बैल का खिलौना रखें।
प्रतिदिन अपने दांत फिटकरी पाउडर से साफ़ करें।
शक्कर मिश्रित जल सूर्य भगवान को अर्पित करें।

**रोगों से छुटकारा पाने हेतु उपाय ————————–

दवाइयाँ शुरु करने से पहले उन्हें कुछ समय के लिए शिव मंदिर में रख दें।
अपनी शयन करने की चारपाई के चारों पाँवों में चांदी की कील लगायें।
जब भी जल पिएं उसमे थोड़ा सा गंगा जल दाल लें।
प्रतिदिन प्रातः हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करें।
अपने बुरे कर्मों के पिता परमेश्वर से क्षमा याचना करें।

** व्यवसाय में वृद्धि हेतु उपचार——————-
एक लाल रंग के कपड़े में थोड़ा सा लाल चन्दन पाउडर बांधे और उसे अपनी तिजोरी में रखें।
अपने व्यवसाय में अपनी पत्नी को हिस्सेदार बनाये।
आप अपने पहले ग्राहक से जो भी धनराशि कमाते हैं उसमें से कुछ धनराशि किसी जरूरतमंद को अवश्य दान करें।
प्रातः अपने घर से आप जब व्यवसाय वाले स्थान पर जाने के लिए निकले तो रास्ते में कही और न रुक कर सीधा अपने व्यवसाय वाले स्थान पर ही जाएं ।

**नौकरी प्राप्त करने हेतु उपाय —————————————

“ॐ श्रीं श्रीं क्री ग्लो गं गणपतये वर वरदाय मम नमः” इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जप करें।
रोजगार हेतु साक्षात्कार के लिए जाते समय एक चम्मच दही-शक्कर खा कर जाएँ।
साक्षात्कार के लिए घर से निकलते समय पहले दाहिना पैर बाहर निकालें और अपने परिवा र के सदस्य से आपके ऊपर से साबुत मूंग घुमा कर बाहर फैंकने के लिए कहें।
जब भी साक्षात्कार के लिये जायें तो जो भी मंदिर पहले आप के रास्ते में आये वहां पर नारियल चढ़ाये।
शीघ्र नौकरी प्राप्त करने के लिए शनि सम्बन्धी कुछ उपाय करें।

**कर्ज़ से छुटकारा पाने हेतु उपाय———————

अपने घर और व्यवसाय के स्थान का मध्य स्थान खाली और साफ़ रखें।
अपने घर में ख़राब हुई वस्तुएँ जैसे बिजली का ख़राब सामान, ख़राब घड़ियाँ और अन्य ख़राब सामान न रखें।
अपने ऋण के बारें में बार-बार बात न करें।
अपने घर के गंदे जल का निकास उत्तर पूर्व की ओर रखें।
अपने कर्मचारियों का ध्यान रखे और सम्मान करें।…..
🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹

संसार का सुख भोगने की इच्छाओं को आप जितना पूरा करते जाएंगे , वे इच्छाएं और अधिक बढ़ती जाएंगी। संसार के लोग जीवन भर इन इच्छाओं को पूरा करते रहते हैं। जैसे, धन की इच्छा, सम्मान की इच्छा, खाने पीने की इच्छा, मोटर गाड़ी बंगले सोना चांदी की इच्छा इत्यादि । परंतु इन सब इच्छाओं को पूरा करने का परिणाम क्या होता है ? इच्छाएं बढ़ती हैं या घटती हैं? आप कहेंगे, कि बढ़ती हैं। सभी का अनुभव ऐसा ही है कि इच्छाओं को पूरा करने से इच्छाएँ बढ़ती हैं।
अब सोचने वाली बात है , क्या किसी व्यक्ति की सारी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं ? आप कहेंगे , नहीं हो सकती. फिर सोचिए जो इच्छाएं पूरी नहीं हो पाएँगी, वे सुख देंगी या दुख देंगी? दुख देंगी? तो सार क्या हुआ ? यह हुआ , कि इच्छाओं को पूरा करने से अंत में दुख ही बढ़ेगा, सुख नहीं।
तो फिर क्या करें ? इच्छाओं को कम करें। इच्छा तो चीज ही ऐसी है , जो कभी पूरी होने वाली नहीं है।
हां, यदि ईश्वर के आनंद की प्राप्ति की इच्छा हो जाए और व्यक्ति पूरी शक्ति लगाए , तथा उसे ईश्वर का आनंद प्राप्त हो जाए, तो केवल वही इच्छा पूरी हो सकती है। सांसारिक सुख की इच्छा तो कभी पूरी होने वाली नहीं है । अब क्या करना है ? आप स्वयं सोचिए – स्वामी विवेकानंद परिव्राजक
[🔱🚩⏳शिव जी का डमरू : ⏳🚩🔱

💫जब डमरू बजता है तो उसमें से 14 तरह के साऊंड निकलते हैं। पुराणों में इसे मंत्र माना गया। यह साऊंड इस प्रकार है:- ‘अइउण्‌, त्रृलृक, एओड्, ऐऔच, हयवरट्, लण्‌, ञमड.णनम्‌, भ्रझभञ, घढधश्‌, जबगडदश्‌, खफछठथ, चटतव, कपय्‌, शषसर, हल्‌। उक्त आवाजों में सृजन और विध्वंस दोनों के ही स्वर छिपे हुए हैं।

👉डमरू बजने का लाभ :

पुराणों अनुसार भगवान शिव के डमरू से कुछ अचूक और चमत्कारी मंत्र निकले थे। कहते हैं कि यह मंत्र कई बीमारियों का इलाज कर सकते हैं। कोई भी कठिन कार्य हो शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है। उक्त मंत्र या सूत्रों के सिद्ध होने के बाद जपने से सर्प, बिच्छू के काटे का जहर उतर जाता है। ऊपरी बाधा हट जाती है। माना जाता है कि इससे ज्वर, सन्निपात आदि को भी उतारा जा सकता है।

👉रहस्य : >
डमरू की ध्वनि जैसी ही ध्वनि हमारे भीतर भी बजती रहती है। इसे अ, उ और म या ओम कहते हैं। हृदय की धड़कन और ब्रह्मांड की आवाज में भी डमरू के स्वर मिले हुए हैं। रिसर्च अनुसार डमरू की आवाज लय में सुनते रहने से मस्तिष्क को शांति मिलती है और हर तरह का तनाव हट जाता है। इसकी आवाज से आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियां भी दूर हो जाती है।

डमरू भगवान शिव का वाद्ययंत्र ही नहीं यह बहुत कुछ है। इसे बजाकर भूकंप लाया जा सकता है और बादलों में भरा पानी भी बरसाया जा सकता है। डमरू की आवाज यदि लगातर एक जैसी बजती रहे तो इससे चारों और का वातावरण बदल जाता है। यह बहुत भयानक भी हो सकता है और और सुखदायी भी। डमरू के भयानक आवाज से लोगों के हृदय भी फट सकते हैं। कहते हैं कि भगवान शंकर इसे बाजाकर प्रलय भी ला सकते हैं। यह बहुत ही प्रलयंकारी आवाज सिद्ध हो सकती है। डमरू की आवाज में कई रहस्य छिपे हुए हैं।
हर हर महादेव 😇🙏🙌
[: शिव खोड़ी की गुफाएं।
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शिव खोड़ी शिवालिक पर्वत शृंखला में एक प्राकृतिक गुफा है, जिसमें प्रकृति-निर्मित शिव-लिंग विद्यमान है।

शिव खोड़ी तीर्थ स्थल पर महाशिवरात्रि के दिन बहुत बड़ा मेला आयोजित होता है जिसमें हजारों की संख्या में लोग दूर-दूर से यहां आकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं और आयोजित इस मेले में शामिल होते हैं। शिव खोड़ी की यात्रा बारह महीने चलती है। अति प्राचीन मंदिरों के कई अवशेष अब भी इस क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं। शिव खोड़ी शिवभक्तों के लिए एक महान तीर्थ स्थल है।

शिव खोड़ी शिव तीर्थ का कोई प्रामाणिक इतिहास आज तक उपलब्ध नहीं हो पाया है। लोक श्रुतियों में कहा गया है कि स्यालकोट (वर्तमान में यह स्थान पाकिस्तान में है) के राजा सालवाहन ने शिव खोड़ी में शिवलिंग के दर्शन किए थे और इस क्षेत्र में कई मंदिर भी निर्माण करवाए थे, जो बाद में सालवाहन मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुए।

इस गुफा में दो कक्ष हैं। बाहरी कक्ष कुछ बड़ा है, लेकिन भीतरी कक्ष छोटा है। बाहर वाले कक्ष से भीतरी कक्ष में जाने का रास्ता कुछ तंग और कम ऊंचाई वाला है जहां से झुक कर गुजरना पड़ता है।

आगे चलकर यह रास्ता दो हिस्सों में बंट जाता है, जिसमें से एक के विषय में ऐसा विश्वास है कि यह कश्मीर जाता है। यह रास्ता अब बंद कर दिया गया है। दूसरा मार्ग गुफा की ओर जाता है, जहां स्वयंभू शिव की मूर्ति है। गुफा की छत पर सर्पाकृति चित्रकला है, जहां से दूध युक्त जल शिवलिंग पर टपकता रहता है।

इस गुफा में दो कक्ष हैं। बाहरी कक्ष कुछ बड़ा है, लेकिन भीतरी कक्ष छोटा है। बाहर वाले कक्ष से भीतरी कक्ष में जाने का रास्ता कुछ तंग और कम ऊंचाई वाला है जहां से झुक कर गुजरना पड़ता है।

आगे चलकर यह रास्ता दो हिस्सों में बंट जाता है, जिसमें से एक के विषय में ऐसा विश्वास है कि यह कश्मीर जाता है। यह रास्ता अब बंद कर दिया गया है। दूसरा मार्ग गुफा की ओर जाता है, जहां स्वयंभू शिव की मूर्ति है। गुफा की छत पर सर्पाकृति चित्रकला है, जहां से दूध युक्त जल शिवलिंग पर टपकता रहता है।

यह स्थान रियासी-राजोरी सड़कमार्ग पर है, जो पौनी गांव से दस मील की दूरी पर स्थित है। शिवालिक पर्वत शृंखलाओं में अनेक गुफाएं हैं।

ये गुफाएं प्राकृतिक हैं। कई गुफाओं के भीतर अनेक देवी-देवताओं के नाम की प्रतिमाएं अथवा पिंडियां हैं। उनमें कई प्रतिमाएं अथवा पिंडियां प्राकृतिक भी हैं। देव पिंडियों से संबंधित होने के कारण ये गुफाएं भी पवित्र मानी जाती हैं। डुग्गर प्रांत की पवित्र गुफाओं में शिव खोड़ी का नाम अत्यंत प्रसिद्ध है।

यह गुफा तहसील रियासी के अंतर्गत पौनी भारख क्षेत्र के रणसू स्थान के नजदीक स्थित है। जम्मू से रणसू नामक स्थान लगभग एक सौ किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए जम्मू से बस मिल जाती है। यहां के लोग कटरा, रियासी, अखनूर, कालाकोट से भी बस द्वारा रणसू पहुंचते रहते हैं।

रणसू से शिव खोड़ी छह किलोमीटर दूरी पर है। यह एक छोटा-सा पर्वतीय आंचलिक गांव है। इस गांव की आबादी तीन सौ के करीब है। यहां कई जलकुंड भी हैं। यात्री जलकुंडों में स्नान के बाद देव स्थान की ओर आगे बढ़ते हैं। देव स्थान तक सड़क बनाने की परियोजना चल रही है। रणसू से दो किलोमीटर सड़क मार्ग तैयार है।

यात्री सड़क को छोड़ कर आगे पर्वतीय पगडंडी की ओर बढ़ते हैं। पर्वतीय यात्रा तो बड़ी ही हृदयाकर्षक होती है। यहां का मार्ग समृद्ध प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है। सहजगति से बहते जलस्त्रोत, छायादार वृक्ष, बहुरंगी पक्षी समूह पर्यटक यात्रियों का मन बरबस अपनी ओर खींच लेते हैं।

चार किलोमीटर टेढ़ी-मेढ़ी पर्वतीय पगडंडी पर चलते हुए यात्री गुफा के बाहरी भाग में पहुंचते हैं। गुफा का बाह्‌य भाग बड़ा ही विस्तृत है। इस भाग में हजारों यात्री एक साथ खड़े हो सकते हैं। बाह्‌य भाग के बाद गुफा का भीतरी भाग आरंभ होता है।

यह बड़ा ही संकीर्ण है। यात्री सरक-सरक कर आगे बढ़ते जाते हैं। कई स्थानों पर घुटनों के बल भी चलना पड़ता है। गुफा के भीतर भी गुफाएं हैं, इसलिए पथ प्रदर्शक के बिना गुफा के भीतर प्रवेश करना उचित नहीं है। गुफा के भीतर दिन के समय भी अंधकार रहता है।

अत: यात्री अपने साथ टॉर्च या मोमबत्ती जलाकर ले जाते हैं। गुफा के भीतर एक स्थान पर सीढ़ियां भी चढ़नी पड़ती हैं, तदुपरांत थोड़ी सी चढ़ाई के बाद शिवलिंग के दर्शन होते हैं। शिवलिंग गुफा की प्राचीर के साथ ही बना है। यह प्राकृतिक लिंग है। इसकी ऊंचाई लगभग एक मीटर है।

शिवलिंग के आसपास गुफा की छत से पानी टपकता रहता है। यह पानी दुधिया रंग का है। उस दुधिया पानी के जम जाने से गुफा के भीतर तथा बाहर सर्पाकार कई छोटी-मोटी रेखाएं बनी हुई हैं, जो बड़ी ही विलक्षण किंतु बेहद आकर्षक लगती हैं।

गुफा की छत पर एक स्थान पर गाय के स्तन जैसे बने हैं, जिनसे दुधिया पानी टपक कर शिवलिंग पर गिरता है। शिवलिंग के आगे एक और भी गुफा है। यह गुफा बड़ी लंबी है। इसके मार्ग में कई अवरोधक हैं। लोक श्रुति है कि यह गुफा अमरनाथ स्वामी तक जाती है।
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[ जानें किस समस्या के लिए कौन से मंत्र

शास्त्रों के अनुसार गायत्री मंत्र को वेदों का सर्वश्रेष्ठ मंत्र बताया गया है। इसके जप के लिए तीन समय बताए गए हैं। गायत्री मंत्र का जप का पहला समय है प्रात:काल, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के पश्चात तक करना चाहिए।

मंत्र जप के लिए दूसरा समय है दोपहर का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जाता है।

तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त के कुछ देर पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए। इन तीन समय के अतिरिक्त यदि गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से जप करना चाहिए। मंत्र जप तेज आवाज में नहीं करना चाहिए।

गायत्री मंत्र का अर्थ : सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं, वह परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें।

अथवा

उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें।

इस मंत्र के नियमित जाप से त्वचा में चमक आती है। नेत्रों में तेज आता है। सिद्धि प्राप्त होती है। क्रोध शांत होता है। ज्ञान की वृद्धि होती है।

विद्यार्थियों के लिए यह मंत्र बहुत लाभदायक है। रोजाना इस मंत्र का 108 बार जप करने से विद्यार्थी को सभी प्रकार की विद्या प्राप्त करने में आसानी होती है। पढऩे में मन नहीं लगना, याद किया हुआ भूल जाना, शीघ्रता से याद न होना आदि समस्याओं से भी मुक्ति मिल जाती है।दरिद्रता का नाश करे :- व्यापार, नौकरी में हानि हो रही है या कार्य में सफलता नहीं मिलती, आमदनी कम है तथा व्यय अधिक है तो गायत्री मंत्र का जप काफी फायदा पहुंचाता है। शुक्रवार को पीले वस्त्र पहनकर हाथी पर विराजमान गायत्री माता का ध्यान कर गायत्री मंत्र के आगे और पीछे श्रीं सम्पुट लगाकर जप करने से दरिद्रता का नाश होता है। इसके साथ ही रविवार को व्रत किया जाए तो अधिक लाभ होता है।

संतान का वरदान :-

किसी दंपत्ति को संतान प्राप्त करने में कठिनाई आ रही हो या संतान से दुखी हो अथवा संतान रोगग्रस्त हो तो प्रात: पति-पत्नी एक साथ सफेद वस्त्र धारण कर ‘यौं’ बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। संतान संबंधी किसी भी समस्या से शीघ्र मुक्ति मिलती है।

शत्रुओं पर विजय :-

शत्रुओं के कारण परेशानियां झेल रहे हैं तो मंगलवार, अमावस्या अथवा रविवार को लाल वस्त्र पहनकर माता दुर्गा का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र के आगे एवं पीछे ‘क्लीं’ बीज मंत्र का तीन बार सम्पुट लगाकार 108 बार जाप करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।।

विवाह कराए गायत्री मंत्र :-

यदि विवाह में देरी हो रही हो तो सोमवार को सुबह के समय पीले वस्त्र धारण कर माता पार्वती का ध्यान करते हुए ‘ह्रीं’ बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर 108 बार जाप करने से विवाह कार्य में आने वाली समस्त बाधाएं दूर होती हैं। यह साधना स्त्री-पुरुष दोनों कर सकते हैं।

रोग निवारण :-

यदि किसी रोग से मुक्ति जल्दी चाहते हैं तो किसी भी शुभ मुहूर्त में एक कांसे के पात्र में स्वच्छ जल भरकर रख लें एवं उसके सामने लाल आसन पर बैठकर गायत्री मंत्र के साथ ‘ऐं ह्रीं क्लीं’ का संपुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। जप के पश्चात जल से भरे पात्र का सेवन करने से गंभीर से गंभीर रोग का नाश होता है। यही जल किसी अन्य रोगी को पीने देने से उसका रोग भी नाश होता हैं।.
[ 🚩🚩🚩🚩
#आरती के बाद क्यों बोलते हैं #कर्पूरगौरं_मंत्र :

किसी भी मंदिर में या हमारे घर में जब भी पूजन कर्म होते हैं तो वहां कुछ मंत्रों का जप अनिवार्य रूप से किया जाता है, सभी देवी-देवताओं के मंत्र अलग-अलग हैं, लेकिन जब भी आरती पूर्ण होती है तो यह मंत्र विशेष रूप से बोला जाता है l

कर्पूरगौरं मंत्र :

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्। सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।

ये है इस मंत्र का अर्थ :

इस मंत्र से शिवजी की स्तुति की जाती है। इसका अर्थ इस प्रकार है :

कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले।

करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं।

संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं।

भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं।

सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है।

मंत्र का पूरा अर्थ :-

जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।

यही मंत्र क्यों….

किसी भी देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरम् करुणावतारं….मंत्र ही क्यों बोला जाता है, इसके पीछे बहुत गहरे अर्थ छिपे हुए हैं। भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय विष्णु द्वारा गाई हुई मानी गई है। अमूमन ये माना जाता है कि शिव शमशान वासी हैं, उनका स्वरुप बहुत भयंकर और अघोरी वाला है। लेकिन, ये स्तुति बताती है कि उनका स्वरुप बहुत दिव्य है। शिव को सृष्टि का अधिपति माना गया है, वे मृत्युलोक के देवता हैं, उन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है, पशुपति का अर्थ है संसार के जितने भी जीव हैं (मनुष्य सहित) उन सब का अधिपति। ये स्तुति इसी कारण से गाई जाती है कि जो इस समस्त संसार का अधिपति है, वो हमारे मन में वास करे। शिव श्मशान वासी हैं, जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं। हमारे मन में शिव वास करें, मृत्यु का भय दूर हो।
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🌷ॐ नमः शिवाय।।🌷
[पारदशिवलिंग पूजन का महत्त्व
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वैदिक रीतियों में, पूजन विधि में, समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति में पारद से बने शिवलिंग एवं अन्य आकृतियों का विशेष महत्त्व होता है। पारद जिसे अंग्रेजी में एलम (Alum) भी कहते हैं , एक तरल पदार्थ होता है और इसे ठोस रूप में लाने के लिए विभिन्न अन्य धातुओं जैसे कि स्वर्ण, रजत, ताम्र सहित विभिन्न जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है। इसे बहुत उच्च तापमान पर पिघला कर स्वर्ण और ताम्र के साथ मिला कर, फिर उन्हें पिघला कर आकार दिया जाता है।

पारद को भगवान् शिव का स्वरूप माना गया है और ब्रह्माण्ड को जन्म देने वाले उनके वीर्य का प्रतीक भी इसे माना जाता है। धातुओं में अगर पारद को शिव का स्वरूप माना गया है तो ताम्र को माँ पार्वती का स्वरूप। इन दोनों के समन्वय से शिव और शक्ति का सशक्त रूप उभर कर सामने आ जाता है। ठोस पारद के साथ ताम्र को जब उच्च तापमान पर गर्म करते हैं तो ताम्र का रंग स्वर्णमय हो जाता है। इसीलिए ऐसे शिवलिंग को “सुवर्ण रसलिंग” भी कहते हैं।

पारद के इस लिंग की महिमा का वर्णन कई प्राचीन ग्रंथों में जैसे कि रूद्र संहिता, पारद संहिता, रस्मर्तण्ड ग्रन्थ, ब्रह्म पुराण, शिव पुराण आदि में पाया गया है।

योग शिखोपनिषद ग्रन्थ में पारद के शिवलिंग को स्वयंभू भोलेनाथ का प्रतिनिधि माना गया है। इस ग्रन्थ में इसे “महालिंग” की उपाधि मिली है और इसमें शिव की समस्त शक्तियों का वास मानते हुए पारद से बने शिवलिंग को सम्पूर्ण शिवालय की भी मान्यता मिली है ।

इसका पूजन करने से संसार के समस्त द्वेषों से मुक्ति मिल जाती है। कई जन्मों के पापों का उद्धार हो जाता है। इसके दर्शन मात्र से समस्त परेशानियों का अंत हो जाता है। ऐसे शिवलिंग को समस्त शिवलिंगों में सर्वोच्च स्थान मिला हुआ है और इसका यथाविधि पूजन करने से

मानसिक, शारीरिक, तामसिक या अन्य कई विकृतियां स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं। घर में सुख और समृद्धि बनी रहती है।

पौराणिक ग्रंथों में जैसे कि “रस रत्न समुच्चय” में ऐसा माना गया है कि 100 अश्वमेध यज्ञ, चारों धामों में स्नान, कई किलो स्वर्ण दान और एक लाख गौ दान से जो पुण्य मिलता है वो बस पारे के बने इस शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही उपासक को मिल जाता है।

अगर आप अध्यात्म पथ पर आगे बढ़ना चाहते हों, योग और ध्यान में आपका मन लगता हो और मोक्ष की प्राप्ति की इच्छा हो तो आपको पारे से बने शिव लिंग की उपासना करनी चाहिए। ऐसा करने से आपको मोक्ष की प्राप्ति भी हो जाती है।

पारद एक ऐसा शुद्ध पदार्थ माना गया है जो भगवान भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय है। इसकी महिमा केवल शिवलिंग से ही नहीं बल्कि पारद के कई और अचूक प्रयोगों के द्वारा भी मानी गयी है।

धातुओं में सर्वोत्तम पारा अपनी चमत्कारिक और हीलिंग प्रॉपर्टीज के लिए वैज्ञानिक तौर पर भी मशहूर है।

पारद के शिवलिंग को शिव का स्वयंभू प्रतीक भी माना गया है। रूद्र संहिता में रावण के शिव स्तुति की जब चर्चा होती है तो पारद के शिवलिंग का विशेष वर्णन मिलता है। रावण को रस सिद्ध योगी भी माना गया है, और इसी शिवलिंग का पूजन कर उसने अपनी लंका को स्वर्ण की लंका में तब्दील कर दिया था।

कुछ ऐसा ही वर्णन बाणासुर राक्षस के लिए भी माना जाता है। उसे भी पारे के शिवलिंग की उपासना के तहत अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने का वर प्राप्त हुआ था।

ऐसी अद्भुत महिमा है पारे के शिवलिंग की। आप भी इसे अपने घर में स्थापित कर घर में समस्त दोषों से मुक्त हो सकते हैं। लेकिन ध्यान अवश्य रहे कि साथ में शिव परिवार को भी रख कर पूजन करें।

पारद के कुछ अचूक उपायों का विवरण निम्नलिखित है, जिन्हें आप स्वयं प्रयोग कर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति कर सकते हैं:

  1. अगर आप अध्यात्म पथ पर आगे बढ़ना चाहते हों, योग और ध्यान में आपका मन लगता हो और मोक्ष के प्राप्ति की इच्छा हो तो आपको पारे से बने शिवलिंग की उपासना करनी चाहिए। ऐसा करने से आपको मोक्ष की प्राप्ति भी हो जाती है।
  2. अगर आपको जीवन में कष्टों से मुक्ति नहीं मिल रही हो, बीमारियों से आप ग्रस्त रहते हों, लोग आपसे विश्वासघात कर देते हों, बड़ी-बड़ी बीमारियों से ग्रस्त हों तो पारद के शिवलिंग को यथाविधि शिव परिवार के साथ पूजन करें। ऐसा करने से आपकी समस्त परेशानियां ख़त्म हो जाएंगी और बड़ी से बड़ी बीमारियों से भी मुक्ति मिल जाएगी।
  3. अगर आपको धन सम्पदा की कमी बनी रहती है तो आपको पारे से बने हुए लक्ष्मी और गणपति को पूजा स्थान में स्थापित करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि जहां पारे का वास होता है वहां माँ लक्ष्मी का भी वास हमेशा रहता है। उनकी उपस्थिति मात्र से ही घर में धन लक्ष्मी का हमेशा वास रहता है।
  4. अगर आपके घर में हमेशा अशांति, क्लेश आदि बना रहता हो, अगर आप को नींद ठीक से नहीं आती हो, घर के सदस्यों में अहंकार का टकराव और वैचारिक मतभेद बना रहता हो तो आपको पारद निर्मित एक कटोरी में जल डाल कर घर के मध्य भाग में रखना चाहिए। उस जल को रोज़ बाहर किसी गमले में डाल दें। ऐसा करने से धीरे-धीरे घर में सदस्यों के बीच में प्रेम बढ़ना शुरू हो जाएगा और मानसिक शान्ति की अनुभूति भी होगी।

पारद को पाश्चात्य पद्धति में उसके गुणों की वजह से Philospher’s stone भी बोला जाता है। आयुर्वेद में भी इसके कई उपयोग हैं।

  1. अगर आप उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं, हृदय रोग से परेशान हैं, या फिर अस्थमा, डायबिटीज जैसी जानलेवा बीमारियों से ग्रसित हैं तो आपको पारद से बना मणिबंध जिसे कि ब्रेसलेट भी कहते हैं, अच्छे शुभ मुहूर्त में पहननी चाहिए। ऐसा करने से आपकी बीमारियों में सुधार तो होगा ही आप शान्ति भी महसूस करेंगे और रोगमुक्त भी हो जाएंगे।

पारे के शिवलिंग के पूजन की महिमा तो ऐसी है कि उसे बाणलिंग से भी उत्तम माना गया है। जीवन की समस्त समस्याओं के निदान के लिए पारद के उपयोग एवं इससे सम्बंधित उपाय अत्यंत प्रभावशाली हैं। यदि इनका आप यथाविधि अभिषेक कर, पूर्ण श्रद्धा से पूजन करेंगे तो जीवन में सुख और शान्ति अवश्य पाएंगे।
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[: 10 बातें जो आज के युवा को सीखनी चाहिए भगवान श्री राम जी से

रोज हम भगवान श्री राम की पूजा और आराधना करते हैं किन्तु कभी राम जी के गुणों को देखने की कोशिश नहीं करते हैं. ना जाने क्यों हम राम जी से कुछ भी सीखना नहीं चाहते हैं?

किन्तु सत्य यह है कि यदि हम इनके गुणों का पालन करते हैं तो हमारा जीवन सुखमय हो जायेगा,

मात्र आराधना से कोई बात नहीं बनती है, आप रोज सर झुकाओ और कर्म से कपटी बने रहो, तो ऐसे में शान्ति आपको प्राप्त नहीं हो सकती है.

आइये पढ़ते हैं 10 बातें जो सीखनी चाहिए हमें भगवान श्री राम जी के जीवन से-

आचरण
महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण में भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम बताया गया है. श्रीराम भगवान विष्णु के रूप थे. इनके आचरण में हम सदा पवित्रता को देख सकते हैं जो आज हमारे जीवन से गायब हो चुकी है. आज हम आचरण से मतलबी और झूठे हो चुके है.

पिता आज्ञा पालन
माता कैकेयी चाहती थी उनके पु्त्र भरत राजा बनें, इसलिए उन्होंने राम को, दशरथ द्वारा 14 वर्ष का वनवास दिलाया. पिता नहीं चाहते थे कि राम वनवास जाए किन्तु पिता का वचन पूरा करना था, भगवान राम को पता था कि मेरे पिता मजबूर हैं, वो चाहते तो नहीं है किन्तु उनका वचन पूरा करवाना ही, उनकी आज्ञा का पालन होगा इसलिए भगवान ने अपने लिए वनवास चुन लिया.

माता सेवा
माँ का ऋण हम कभी नहीं उतार सकते हैं. माँ की सेवा ही सबसे बड़ा पूण्य होती है. भगवान राम जी ने अपने माता जी को हमेशा प्यार दिया, उनकी सेवा की. यही एक बात हम आज भूल गये हैं, माँ की सेवा हमारे जीवन से जैसे गायब ही हो चुकी है.

गुरु भक्ति
गुरु हमें विद्या देता है. हमें ज्ञान देता है जिसके दम पर हम आगे अपने जीवन में तरक्की करते हैं. किन्तु क्या हम आज गुरु का आदर करते हैं? गुरु की आज्ञा का पालन करते हैं? यही एक वजह आज हमारे पतन का कारण बन रही है.

भगवान श्री राम जी ने हमेशा गुरु की भक्ति की है, उनका आदर किया है.

धैर्य
जीवन की किसी भी घड़ी में भगवान ने अपना धैर्य नहीं खोया है. गुस्सा उनके चेहरे पर कभी नजर नहीं आया. क्रोध काम को बिगाड़ता ही है ना कि उनको सही करता है. इसलिए यह गुण भी हमें भगवान राम जी से जरूर सीखना चाहिए.

कर्म
श्रीराम भगवान विष्णु के रूप थे. इनके लिए दुनिया में कुछ भी करना संभव था किन्तु फिर भी इन्होनें अपने कर्म किये हैं.

कई बार हम दुनिया में कर्म नहीं करना चाहते हैं बस बैठे-बैठे फल की इच्छा करते हैं. किन्तु हमें समझना चाहिए कि जब भगवान ने भी कर्म किये हैं तो हम क्यों उनको करने से डरते हैं?

मानवता
मानवता परो धर्म! मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं है. राम जी ने हमेशा मानवता को सबसे बड़ा धर्म माना है. युद्ध ना हो इसलिए भगवान राम अंत तक प्रयास करते रहे.

आज हम मानवता को भूल चुके हैं, सड़क पर भी कोई इंसान मरता देखते हैं तो उसकी मदद की कोशिश हम नहीं करते.

धर्म की रक्षा
धर्म से आगे कोई नहीं होता है. यदि हमारा धर्म ही खत्म हो जायेगा तो हम तो खुद ब खुद खत्म हो जायेंगे.

हमें राम जी से सीखना चाहिए ही कैसे हमें धर्म की रक्षा करनी है? धर्म की रक्षा के लिए यदि कोई लड़ाई भी हमें लड़नी पड़े तो उससे हमको मुंह नहीं फेरना चाहिए.

नियति को स्वीकार करना

नियति में जो लिखा हुआ है हमें वह स्वीकार करना आना चाहिए. नियति से ना कोई लड़ सका है और ना ही लड़ सकता है. बस हाँ इसे साथ हम दोस्ती जरूर कर सकते हैं.

यही काम भगवान श्री राम जी ने किया था. कभी नियति को बदलने की कोशिश इन्होनें नहीं की है.

दूसरों की चुगली नहीं करो
राम जी ने कई बार दूसरों को यह शिक्षा दी है कि भूलकर भी हमें दूसरों की चुगली नहीं करनी चाहिए. इससे मिलने वाला पाप बहुत घातक रहता है. और इंसान तरक्की नहीं कर पाता है.

आज हम 24 घंटे में से अधिकतर समय दूसरों की चुगली और उनके बुरे के बारे में ही सोचते हैं.

भगवान राम जी के जीवन से इन 10 बातों को हमें जरूर अपनाना चाहिए

जीवन के हमारे आधे दुख तो इनको अपनाने से ही दूर हो जायेंगे.
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अमरकथा ~~

अमर कथा के विषय में विद्वानों में कई प्रकार का मतभेद है।
कुछ विद्वानों का कथन है कि अमृत संजीवनी मन्त्र, महामृत्युंजय मंत्र अथवा मृत्युंजय मन्त्र ही अमर कथा है, क्योंकि तीनों के जप से मृत्यु पर विजय प्राप्त होती है।
इन्हीं का विस्तार ऋषि, छन्द, विनियोग, करन्यास, हृदयन्यास, दिङ्न्यास, पद तथा अक्षरन्यास, ध्यान तथा स्तोत्र बताया गया है।
यह तीनों ही वैदिक मन्त्र है।

कुछ विद्वान कहते हैं कि चारों वेदों के पांचों महावाक्यों का वाच्यार्थ तथा लक्ष्यार्थ का प्रतिपादन करते हुये, भागत्याग लक्षणा से जीव तथा ईश्वर के विरोधी अंशों का त्यागपूर्वक लक्ष्यार्थ में एकता का प्रतिपादन ही अमर कथा है।
उसी लक्ष्यार्थ में अभेद चिंतन करते हुए जीव “भृंगीकीट-न्याय” से ब्रह्मभाव को प्राप्त करता है।
अमर होने का अर्थ शरीर के अमर होने से नहीं है।
शरीर तो किसीका भी अमर नहीं है।
ब्रह्माऽदि त्रिदेवों का शरीर भी आयु पूर्ण होने पर नहीं रहता।
अतः अमर होने का अर्थ है——– संचित, प्रारब्ध,क्रियमाण तीनों कर्मों, स्थूल, सूक्ष्म, कारण तीनों शरीरों के नाश के अनन्तर व्यष्टि जीव चैतन्य का समष्टि ब्रह्म चैतन्य में लय होना ही अमर होना है।
यह निरपेक्ष अमरत्व है।

कुछ विद्वान कहते हैं कि भगवान शिवजी ने माता पार्वतीजी को बयालीस सौ श्लोकों, चौंसठ सर्गों तथा सात कांडों में अध्यात्म रामायण सुनाई, यही अमर कथा है।
इस कथा के प्रारम्भ में पार्वती जी ने रामतत्त्व को समझने के लिए प्रश्न किया था।
तब श्री हनुमान जी के प्रति सीता जी तथा श्रीराम जी ने “राम हृदय” नामक सर्ग में राम तत्त्व बताया।
बालकाण्ड के दूसरे सर्ग में पार्वती जी ने विस्तार से शंकर जी से रामकथा सुनाने की प्रार्थना की।
शिवजी श्रीराम जी के राज्याभिषेक पर्यन्त छः कांड सुना गये किन्तु बीच में पार्वती जी ने कहीं कोई भी प्रश्न नहीं किया।
उत्तरकाण्ड के आरम्भ में ही पार्वती जी ने शंकर जी से प्रश्न किया।
इससे अनुमान होता है कि सम्भवतः बीच में पार्वती जी सो गई हों।
और यही अमर कथा प्रतीत होती है क्योंकि इसमें प्रत्येक सर्ग में भक्ति, ज्ञान, वैराग्य भरा पड़ा है।
शंकर जी ने ब्रह्मतत्त्व का प्रतिपादन करने वाले हज़ारों उपनिषद् के मंत्रों की विस्तृत व्याख्या इसमें की है।
इस रामायण का मूल अखण्ड पाठ करने में दश घण्टे लगते हैं।
इतने दीर्घकाल में पार्वती जी का सो जाना कोई बड़ी बात नहीं है।
अतः यही अमर कथा सिद्ध होती है।

गीताप्रेस-गोरखपुर से मुनिलाल गुप्त जी के अनुवाद सहित छपे अध्यात्म रामायण की भूमिका में लिखा है कि यह रामायण ब्रह्मांड पुराण के उत्तरखण्ड से उद्धृत है, अतः व्यासकृत है।
किंतु मैंने सम्पूर्ण ब्रह्मांड पुराण पढ़ा, पर उसमें कहीं भी अध्यात्म रामायण नहीं आया है।
हां, आनन्द रामायण के मनोहर कांड के आठवें सर्ग में महर्षि वाल्मीकि कृत्त जिन नब्बे रामायणों का उल्लेख है, उसमे अध्यात्म रामायण का भी नाम है।
अवश्य ही अध्यात्म रामायण का एक अध्याय में महात्म्य आया हुआ है ब्रह्मांड पुराण के उत्तर खण्ड में।

कुछ विद्वानों का कथन है कि शंकर जी ने विशेष प्राणायाम करके मूलाधार चक्र में सोई हुई कुंडलिनी को जागृत करने की विधि तीनों बंध (मूलबन्ध, जालंधर बंध, उड्डियान बंध) लगाकर अनेकों विशेष प्राणायामों द्वारा , जो विशेष रूप से गुरुमुख द्वारा सीखें जा सकते हैं, छः चक्रों का भेदन करके ब्रह्मरंध्र में कुंडलिनी को पहुंचाने की विधि बताई।
ब्रह्मरंध्र में स्थित कुंडलिनी का शिव से संयोग होने पर चन्द्रमण्डल से अमृत योगी की जीभ पर गिरता है।
उसको पान करके योगी अमर हो जाता है अर्थात् मृत्यु को जीत लेता है, इच्छा मरण हो जाता है।
क्योंकि खेचरी मुद्रा के सिद्ध होने पर सभी रोग नष्ट हो जाते हैं, बुढापा नहीं आता, सिद्धों से बातें करता है, आकाशगमनादि सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
शिव का शक्ति के साथ सम्बन्ध होने पर क्या होता है ? इसपर कहते हैं———-

“कुल कुण्डलिनी शक्तिः देहिनां देहधारिणीम्।
तया शिवस्य संयोगः मैथुनं परिकीर्तितम्।।”

कुल कुण्डलिनी शक्ति (कुण्डलिनी का मूलाधार से लेकर ब्रह्मरंध्र पर्यन्त आने-जाने के मार्ग को ‘कुल’ कहते हैं, इसीलिए इसके विशेषज्ञों को ‘कौल मार्गीय’ कहा जाता है।) शरीरधारियों के शरीर को धारण करने वाली है। इसका ब्रह्मरंध्र में शिव के साथ सम्बन्ध मैथुन कहा गया है।
इस योगमार्ग के द्वारा अभ्यासशील साधक पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होता, अतः यही अमर कथा है।

कुछ विद्वान स्कंदपुराण, कौशिकी संहितादि के प्रमाण से श्रीमद्भागवतपुराण को अमर कथा कहते हैं।
इसकी भागवत कथा मंच से कथाव्यास व्याख्या करते रहते हैं, आपलोगों ने कई बार सुना होगा ही।
अतः इसपर कुछ विशेष लिखने का औचित्य प्रतीत नहीं होता।
[पृथ्वी की 9 प्रकार की जानकारी

xxxxxxxxxx 01 xxxxxxxxxx
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

xxxxxxxxxx 02 xxxxxxxxxx
तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

xxxxxxxxxx 03 xxxxxxxxxx
चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

xxxxxxxxxx 04 xxxxxxxxxx
पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

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छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच), मोह, आलस्य।

xxxxxxxxxx 06 xxxxxxxxxx
सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।

xxxxxxxxxx 07 xxxxxxxxxx
आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।

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नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

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दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।
वन्दे मातरम
भारत माता की जय
[ एक ग्रंथ ऐसा भी है हमारे सनातन धर्म मे।

इसे तो सात आश्चर्यों में से पहला आश्चर्य माना जाना चाहिए —

यह है दक्षिण भारत का एक ग्रन्थ

क्या ऐसा संभव है कि जब आप किताब को सीधा पढ़े तो रामायण की कथा पढ़ी जाए और जब उसी किताब में लिखे शब्दों को उल्टा करके पढ़े
तो कृष्ण भागवत की कथा सुनाई दे।

जी हां, कांचीपुरम के 17वीं शदी के कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ “राघवयादवीयम्” ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ है।

इस ग्रन्थ को
‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है। पूरे ग्रन्थ में केवल 30 श्लोक हैं। इन श्लोकों को सीधे-सीधे
पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है और
विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा। इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक।

पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है ~ “राघवयादवीयम।”

उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक हैः

वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥

अर्थातः
मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं, जो
जिनके ह्रदय में सीताजी रहती है तथा जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या वापिस लौटे।

अब इस श्लोक का विलोमम्: इस प्रकार है

सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥

अर्थातः
मैं रूक्मिणी तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के
चरणों में प्रणाम करता हूं, जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ
विराजमान है तथा जिनकी शोभा समस्त जवाहरातों की शोभा हर लेती है।

” राघवयादवीयम” के ये 60 संस्कृत श्लोक इस प्रकार हैं:-

राघवयादवीयम् रामस्तोत्राणि
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥

विलोमम्:
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥

साकेताख्या ज्यायामासीद्याविप्रादीप्तार्याधारा ।
पूराजीतादेवाद्याविश्वासाग्र्यासावाशारावा ॥ २॥

विलोमम्:
वाराशावासाग्र्या साश्वाविद्यावादेताजीरापूः ।
राधार्यप्ता दीप्राविद्यासीमायाज्याख्याताकेसा ॥ २॥

कामभारस्स्थलसारश्रीसौधासौघनवापिका ।
सारसारवपीनासरागाकारसुभूरुभूः ॥ ३॥

विलोमम्:
भूरिभूसुरकागारासनापीवरसारसा ।
कापिवानघसौधासौ श्रीरसालस्थभामका ॥ ३॥

रामधामसमानेनमागोरोधनमासताम् ।
नामहामक्षररसं ताराभास्तु न वेद या ॥ ४॥

विलोमम्:
यादवेनस्तुभारातासंररक्षमहामनाः ।
तां समानधरोगोमाननेमासमधामराः ॥ ४॥

यन् गाधेयो योगी रागी वैताने सौम्ये सौख्येसौ ।
तं ख्यातं शीतं स्फीतं भीमानामाश्रीहाता त्रातम् ॥ ५॥

विलोमम्:
तं त्राताहाश्रीमानामाभीतं स्फीत्तं शीतं ख्यातं ।
सौख्ये सौम्येसौ नेता वै गीरागीयो योधेगायन् ॥ ५॥

मारमं सुकुमाराभं रसाजापनृताश्रितं ।
काविरामदलापागोसमावामतरानते ॥ ६॥

विलोमम्:
तेन रातमवामास गोपालादमराविका ।
तं श्रितानृपजासारंभ रामाकुसुमं रमा ॥ ६॥

रामनामा सदा खेदभावे दया-वानतापीनतेजारिपावनते ।
कादिमोदासहातास्वभासारसा-मेसुगोरेणुकागात्रजे भूरुमे ॥ ७॥

विलोमम्:
मेरुभूजेत्रगाकाणुरेगोसुमे-सारसा भास्वताहासदामोदिका ।
तेन वा पारिजातेन पीता नवायादवे भादखेदासमानामरा ॥ ७॥

सारसासमधाताक्षिभूम्नाधामसु सीतया ।
साध्वसाविहरेमेक्षेम्यरमासुरसारहा ॥ ८॥

विलोमम्:
हारसारसुमारम्यक्षेमेरेहविसाध्वसा ।
यातसीसुमधाम्नाभूक्षिताधामससारसा ॥ ८॥

सागसाभरतायेभमाभातामन्युमत्तया ।
सात्रमध्यमयातापेपोतायाधिगतारसा ॥ ९॥

विलोमम्:
सारतागधियातापोपेतायामध्यमत्रसा ।
यात्तमन्युमताभामा भयेतारभसागसा ॥ ९॥

तानवादपकोमाभारामेकाननदाससा ।
यालतावृद्धसेवाकाकैकेयीमहदाहह ॥ १०॥

विलोमम्:
हहदाहमयीकेकैकावासेद्ध्वृतालया ।
सासदाननकामेराभामाकोपदवानता ॥ १०॥

वरमानदसत्यासह्रीतपित्रादरादहो ।
भास्वरस्थिरधीरोपहारोरावनगाम्यसौ ॥ ११॥

विलोमम्:
सौम्यगानवरारोहापरोधीरस्स्थिरस्वभाः ।
होदरादत्रापितह्रीसत्यासदनमारवा ॥ ११॥

यानयानघधीतादा रसायास्तनयादवे ।
सागताहिवियाताह्रीसतापानकिलोनभा ॥ १२॥

विलोमम्:
भानलोकिनपातासह्रीतायाविहितागसा ।
वेदयानस्तयासारदाताधीघनयानया ॥ १२॥

रागिराधुतिगर्वादारदाहोमहसाहह ।
यानगातभरद्वाजमायासीदमगाहिनः ॥ १३॥

विलोमम्:
नोहिगामदसीयामाजद्वारभतगानया ।
हह साहमहोदारदार्वागतिधुरागिरा ॥ १३॥

यातुराजिदभाभारं द्यां वमारुतगन्धगम् ।
सोगमारपदं यक्षतुंगाभोनघयात्रया ॥ १४॥

विलोमम्:
यात्रयाघनभोगातुं क्षयदं परमागसः ।
गन्धगंतरुमावद्यं रंभाभादजिरा तु या ॥ १४॥

दण्डकां प्रदमोराजाल्याहतामयकारिहा ।
ससमानवतानेनोभोग्याभोनतदासन ॥ १५॥

विलोमम्:
नसदातनभोग्याभो नोनेतावनमास सः ।
हारिकायमताहल्याजारामोदप्रकाण्डदम् ॥ १५॥

सोरमारदनज्ञानोवेदेराकण्ठकुंभजम् ।
तं द्रुसारपटोनागानानादोषविराधहा ॥ १६॥

विलोमम्:
हाधराविषदोनानागानाटोपरसाद्रुतम् ।
जम्भकुण्ठकरादेवेनोज्ञानदरमारसः ॥ १६॥

सागमाकरपाताहाकंकेनावनतोहिसः ।
न समानर्दमारामालंकाराजस्वसा रतम् ॥ १७ विलोमम्:
तं रसास्वजराकालंमारामार्दनमासन ।
सहितोनवनाकेकं हातापारकमागसा ॥ १७॥

तां स गोरमदोश्रीदो विग्रामसदरोतत ।
वैरमासपलाहारा विनासा रविवंशके ॥ १८॥

विलोमम्:
केशवं विरसानाविराहालापसमारवैः ।
ततरोदसमग्राविदोश्रीदोमरगोसताम् ॥ १८॥

गोद्युगोमस्वमायोभूदश्रीगखरसेनया ।
सहसाहवधारोविकलोराजदरातिहा ॥ १९॥

विलोमम्:
हातिरादजरालोकविरोधावहसाहस ।
यानसेरखगश्रीद भूयोमास्वमगोद्युगः ॥ १९॥

हतपापचयेहेयो लंकेशोयमसारधीः ।
राजिराविरतेरापोहाहाहंग्रहमारघः ॥ २०॥

विलोमम्:
घोरमाहग्रहंहाहापोरातेरविराजिराः ।
धीरसामयशोकेलं यो हेये च पपात ह ॥ २०॥

ताटकेयलवादेनोहारीहारिगिरासमः ।

हासहायजनासीतानाप्तेनादमनाभुवि ॥ २१॥

विलोमम्:
विभुनामदनाप्तेनातासीनाजयहासहा ।
ससरागिरिहारीहानोदेवालयकेटता ॥ २१॥

भारमाकुदशाकेनाशराधीकुहकेनहा ।
चारुधीवनपालोक्या वैदेहीमहिताहृता ॥ २२॥

विलोमम्:
ताहृताहिमहीदेव्यैक्यालोपानवधीरुचा ।
हानकेहकुधीराशानाकेशादकुमारभाः ॥ २२॥

हारितोयदभोरामावियोगेनघवायुजः ।
तंरुमामहितोपेतामोदोसारज्ञरामयः ॥ २३॥

विलोमम्:
योमराज्ञरसादोमोतापेतोहिममारुतम् ।
जोयुवाघनगेयोविमाराभोदयतोरिहा ॥ २३॥

भानुभानुतभावामासदामोदपरोहतं ।
तंहतामरसाभक्षोतिराताकृतवासविम् ॥ २४॥

विलोमम्:
विंसवातकृतारातिक्षोभासारमताहतं ।
तं हरोपदमोदासमावाभातनुभानुभाः ॥ २४॥

हंसजारुद्धबलजापरोदारसुभाजिनि ।
राजिरावणरक्षोरविघातायरमारयम् ॥ २५॥

विलोमम्:
यं रमारयताघाविरक्षोरणवराजिरा ।
निजभासुरदारोपजालबद्धरुजासहम् ॥ २५॥

सागरातिगमाभातिनाकेशोसुरमासहः ।
तंसमारुतजंगोप्ताभादासाद्यगतोगजम् ॥ २६॥

विलोमम्:
जंगतोगद्यसादाभाप्तागोजंतरुमासतं ।
हस्समारसुशोकेनातिभामागतिरागसा ॥ २६॥

वीरवानरसेनस्य त्राताभादवता हि सः ।
तोयधावरिगोयादस्ययतोनवसेतुना ॥ २७॥

विलोमम्
नातुसेवनतोयस्यदयागोरिवधायतः ।
सहितावदभातात्रास्यनसेरनवारवी ॥ २७॥

हारिसाहसलंकेनासुभेदीमहितोहिसः ।
चारुभूतनुजोरामोरमाराधयदार्तिहा ॥ २८॥

विलोमम्
हार्तिदायधरामारमोराजोनुतभूरुचा ।
सहितोहिमदीभेसुनाकेलंसहसारिहा ॥ २८॥

नालिकेरसुभाकारागारासौसुरसापिका ।
रावणारिक्षमेरापूराभेजे हि ननामुना ॥ २९॥

विलोमम्:
नामुनानहिजेभेरापूरामेक्षरिणावरा ।
कापिसारसुसौरागाराकाभासुरकेलिना ॥ २९॥

साग्र्यतामरसागारामक्षामाघनभारगौः ॥
निजदेपरजित्यास श्रीरामे सुगराजभा ॥ ३०॥

विलोमम्:
भाजरागसुमेराश्रीसत्याजिरपदेजनि ।स
गौरभानघमाक्षामरागासारमताग्र्यसा ॥ ३०॥

॥ इति श्रीवेङ्कटाध्वरि कृतं श्री ।।

कृपया अपना थोड़ा सा कीमती वक्त निकाले और उपरोक्त श्लोको को गौर से अवलोकन करें की दुनिया में कहीं भी ऐसा नही पाया गया ग्रंथ है ।

शत् शत् प्रणाम है सनातन धर्म को। मैं इतना भाग्यशाली हूं की भारत की इस पवित्र भूमि मे मेरा जन्म हुआ। जय श्रीकृष्ण जय श्रीराम।🌷🙏🌷🙏🌷🙏🌷🌷🙏🌷🙏🌷

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