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: गर्मी में होने वाली एलर्जी और उनसे बचने के 7 आसान से उपाय

1 गर्मियों में आंखों से पानी आना, आंखों में जलन, जुकाम की समस्या का कई लोगों को सामना करना पड़ता है। इस मौसम में नाक व गले की एलर्जी भी ज्यादा होती है। 
2 गर्मियों के मौसम में मक्खी व मच्छर की तादाद बहुत ज्यादा बढ़ जाती है और उनके काटने से मलेरिया, डायरिया जैसी बीमारी होना भी एक कॉमन समस्या है। 
3 इस मौसम में पाचन संबंधी समस्या भी आम है, साथ ही फूड पॉइजनिंग भी जल्दी होने की आशंका रहती है। 
4 गर्मियों में थकान और अधिक पसीने की वजह से डिहाइड्रेशन की शिकायत भी सामान्य है। इसके अलावा गर्मियों में सिर दर्द होना, नाक की बजाय मुंह से सांस लेना, कान बंद होना, गले में खराश होना और नींद कम आना भी आम बात है।

 किसी तरह की कोई एलर्जी व समस्या न हो, इसके लिए आप कुछ एहतियात भी बरतें। आइए, जानते हैं उन्हीं के बारे में – 
1 घर के खिड़की व दरवाजे बंद रखें, ताकि कम से कम धूल अंदर आए।
 2 बेडशीट व टॉवल को हर हफ्ते धोएं। 
3 बालों को भी नियमित धोएं, ज्यादा गर्मी में 2 बार नहाएंगे तो भी अच्छा होगा। 
4 गर्मी में मिल्क प्रॉडक्ट्स खाने से बचें। दरअसल, गर्मी में दूध से बने प्रॉडक्ट्स जल्दी खराब होते हैं और इनसे एलर्जी भी जल्दी होती है। 
5 जब स्विमिंग करें, तो कान में कॉटन लगा लें। 
7 इस मौसम में बाहर का खाने से बचें और पेट्स को भी अपने से थोड़ा दूर रख पाए तो बेहतर है। 
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मकान बनाने के योग
एक अच्छा घर बनाने की इच्छा हर व्यक्ति के जीवन की चाह होती है। व्यक्ति किसी ना किसी तरह से जोड़-तोड़ कर के घर बनाने के लिए प्रयास करता ही है। कुछ ऎसे व्यक्ति भी होते हैं जो जीवन भर प्रयास करते हैं लेकिन किन्हीं कारणो से अपना घर फिर भी नहीं बना पाते हैं। कुछ ऎसे भी होते हैं जिन्हें संपत्ति विरासत में मिलती है और वह स्वयं कुछ भी नहीं करते हैं. बहुत से अपनी मेहनत से एक से अधिक संपत्ति बनाने में कामयाब हो जाते हैं।जन्म कुंडली के ऎसे कौन से योग हैं जो मकान अथवा भूमि अर्जित करने में सहायक होते हैं, उनके बारे में आज इस लेख के माध्यम से जानने का प्रयास करेगें।
स्वयं की भूमि अथवा मकान बनाने के लिए चतुर्थ भाव का बली होना आवश्यक होता है, तभी व्यक्ति घर बना पाता है।मंगल को भूमि का और चतुर्थ भाव का कारक माना जाता है,इसलिए अपना मकान बनाने के लिए मंगल की स्थिति कुंडली में शुभ तथा बली होनी चाहिए।
मंगल का संबंध जब जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव से बनता है तब व्यक्ति अपने जीवन में कभी ना कभी खुद की प्रॉपर्टी अवश्य बनाता है।मंगल यदि अकेला चतुर्थ भाव में स्थित हो तब अपनी प्रॉपर्टी होते हुए भी व्यक्ति को उससे कलह ही प्राप्त होते हैं अथवा प्रॉपर्टी को लेकर कोई ना कोई विवाद बना रहता है।मंगल को भूमि तो शनि को निर्माण माना गया है. इसलिए जब भी दशा/अन्तर्दशा में मंगल व शनि का संबंध चतुर्थ/चतुर्थेश से बनता है और कुंडली में मकान बनने के योग मौजूद होते हैं तब व्यक्ति अपना घर बनाता है।चतुर्थ भाव/चतुर्थेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव घर का सुख देता है।चतुर्थ भाव/चतुर्थेश पर पाप व अशुभ ग्रहो का प्रभाव घर के सुख में कमी देता है और व्यक्ति अपना घर नही बना पाता है।चतुर्थ भाव का संबंध एकादश से बनने पर व्यक्ति के एक से अधिक मकान हो सकते हैं।एकादशेश यदि चतुर्थ में स्थित हो तो इस भाव की वृद्धि करता है और एक से अधिक मकान होते हैं।
यदि चतुर्थेश, एकादश भाव में स्थित हो तब व्यक्ति की आजीविका का संबंध भूमि से बनता है। कुंडली में यदि चतुर्थ का संबंध अष्टम से बन रहा हो तब संपत्ति मिलने में अड़चने हो सकती हैं।जन्म कुंडली में यदि बृहस्पति का संबंध अष्टम भाव से बन रहा हो तब पैतृक संपत्ति मिलने के योग बनते हैं। चतुर्थ,अष्टम व एकादश का संबंध बनने पर व्यक्ति जीवन में अपनी संपत्ति अवश्य बनाता है और हो सकता है कि वह अपने मित्रों के सहयोग से मकान बनाएं।चतुर्थ का संबंध बारहवें से बन रहा हो तब व्यक्ति घर से दूर जाकर अपना मकान बना सकता है या विदेश में अपना घर बना सकता है।जो योग जन्म कुंडली में दिखते हैं वही योग बली अवस्था में नवांश में भी मौजूद होने चाहिए।भूमि से संबंधित सभी योग चतुर्थांश कुंडली में भी मिलने आवश्यक हैं-
चतुर्थांश कुंडली का लग्न/लग्नेश, चतुर्थ भाव/चतुर्थेश व मंगल की स्थिति का आंकलन करना चाहिए।यदि यह सब बली हैं तब व्यक्ति मकान बनाने में सफल रहता है।मकान अथवा भूमि से संबंधित सभी योगो का आंकलन जन्म कुंडली,नवांश कुंडली व चतुर्थांश कुंडली में भी देखा जाता है।यदि तीनों में ही बली योग हैं तब बिना किसी के रुकावटों के घर बन जाता है।जितने बली योग होगें उतना अच्छा घर और योग जितने कमजोर होते जाएंगे,घर बनाने में उतनी ही अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।जन्म कुंडली में यदि चतुर्थ भाव पर अशुभ शनि का प्रभाव आ रहा हो तब व्यक्ति घर के सुख से वंचित रह सकता है।उसका अपना घर होते भी उसमें नही रह पाएगा अथवा जीवन में एक स्थान पर टिक कर नही रह पाएगा। बहुत ज्यादा घर बदल सकता है।चतुर्थ भाव का संबंध छठे भाव से बन रहा हो तब व्यक्ति को जमीन से संबंधित कोर्ट-केस आदि का सामना भी करना पड़ सकता है।वर्तमान समय में चतुर्थ भाव का संबंध छठे भाव से बनने पर व्यक्ति बैंक से लोन लेकर या किसी अन्य स्थान से लोन लेकर घर बनाता है।चतुर्थ भाव का संबंध यदि दूसरे भाव से बन रहा हो तब व्यक्ति को अपनी माता की ओर से भूमि लाभ होता है।चतुर्थ का संबंध नवम से बन रहा हो तब व्यक्ति को अपने पिता से भूमि लाभ हो सकता है।
अपना मकान बनाने के लिए उपाय
धरती पर रहने वाला हर व्यक्ति चाहता है कि उसका अपना खुद का घर हो,जहां वह अपनी मनमर्जी के अनुसार रह सके,खा पी सके,उसे सजा सँवार सके, अपने परिवार के सदस्यों के साथ जीवन व्यतीत कर सके व्यक्ति के जीवन की कमाई, उसकी पहचान उसका अपना भवन होता है।लेकिन यह भी सत्य है कि आज की महँगाई के दौर में अपने लिए किसी अच्छी सुरक्षित और जहाँ पर आधारभूत सुविधाएँ हो ऐसी जगह घर बना पाना एक टेढ़ी खीर भी है। दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी किराये के मकानों में रहती है।स्वयं की भूमि अथवा मकान बनाने के लिए चतुर्थ भाव का बली होना आवश्यक होता है, मंगल ग्रह को भूमि,भवन का और चतुर्थ भाव का कारक माना जाता है,अगर आप भी चाहते हैं आपका अपना घर, तो यहाँ पर बताये जा रहे कुछ उपायों को अवश्य ही करें।इनको करने से शीघ्र ही आपके घर खरीदने के योग बनेंगे,मार्ग में आने वाली बाधाएं शान्त होगी –
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी जातक की कुंडली में मंगल या शनि ग्रह से संबंधित कोई ग्रह दोष हो तो उसे अपने घर का सपना पूरा करने में तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए अपनी कुंडली किसी अच्छे ज्योतिष को दिखाकर मंगल और शनि के उपाय अवश्य ही कर लें।मंगल को भूमि तो शनि को निर्माण का कारक माना गया है। इसलिए जब भी दशा/अन्तर्दशा में मंगल व शनि का संबंध चतुर्थ/चतुर्थेश से बनता है, तब व्यक्ति अपना घर बनाता है उसे भूमि , प्रापर्टी डीलिंग के कार्यों में श्रेष्ठ सफलता मिलती है।
अपने घर की चाह रखने वाले जातक नित्य प्रात: स्नान कर गणेशजी को दूर्वा और एक लाल फूल चढ़ाएं। ऐसा लगातार 21 दिन तक करते हुए भगवान श्री गणेश जी से अपने घर की समस्या के निवारण के लिए प्रार्थना करें।
अपने घर बनवाने के मार्ग में किसी भी प्रकार की अड़चनों को दूर करने के लिए किसी भी मंदिर में एक नीम की लकड़ी का बना हुआ छोटा सजा-संवरा सा घर दान करें।
अपना घर बनवाने के योग मजबूत करने के लिए मंगलवार के दिन सफेद गाय और उसके बछड़े को लाल मसूर की दाल व गुड़ और घोड़े को चने की भीगी हुई दाल खिलाएं।नित्य कौए को दूध में भीगी रोटी और तोतों को सप्तधान डालें। इससे आर्थिक पक्ष मजबूत होने लगता है धीरे धीरे अपना स्वयं का घर बनाने की परिस्थितियाँ बनने लगती है।मंगलवार को लाल मसूर की दाल का दान करने से भी अपना भवन बनाने के योग प्रबल होते हैं ।
अपने घर के पूजा स्थल अथवा ईशान दिशा में एक मिट्टी का छोटा घर लाकर रखें और उसमें हर रविवार को सरसो तेल का दीपक जलाएं और दीपक जलने के बाद उसमें फिर से कपूर जलाएं। इस मिटटी के घर को भी अपने हाथ से खूबसूरत तरीके से सजाएं। इससे भी ग्रह निर्माण में आने वाली बाधाएं दूर होने लगती है।
मान्यताओं के अनुसार यदि किसी घर में चिडिय़ा या गिलहरी अपना घोंसला बना लें तो उस घर में सुख शांति, धन समृद्धि की कोई भी कमी नहीं होती। अत: यदि वह आपके घर में अपना घोसला बना लें तो उसे जबरन हटाना नहीं चाहिए।घर में चिडिय़ा का घोंसला बनना शुभ संकेत माना जाता है। कहते है की जिन घरों में चिडिय़ा का घोंसला होता है वहां सभी देवी-देवताओं की असीम कृपा बनी रहती है। उस घर के लोगो को अपना मनचाहा भवन का सुख प्राप्त होता है।
जिन लोगों को अपना मकान खरीदने या बनाने की इच्छा है लेकिन कोई न कोई रूकावट लगी रहती है तो वह रविवार से शुरू करके नित्य प्रात: गाय को गुड़ खिलाएं। इस उपाय को पूर्ण श्रद्धा पूर्वक लगातार करने से गौ माता की कृपा से अपना मकान खरीदने में आने वाली समस्त बाधाएं दूर होने लगती है।अगर आप अपना स्वयं का मकान बनाना चाहते हैं,तो शुक्ल पक्ष के शुक्रवार अथवा नवरात्र के किसी भी दिन एक लाल कपड़े में छ: चुटकी कुमकुम,छ: लौंग,नौ बिंदिया,नौ मुट्ठी साफ़ मिट्टी और छ: कौड़ियाँ लपेट कर किसी भी नदी या बहते हुए पानी में मन ही मन में अपनी मनोकामना कहते हुए विसर्जित कर दें।इस उपाय से माँ दुर्गा की कृपा से शीघ्र ही अपना मकान बनाने में सफलता मिलेगी।अपनी मनचाही जमीन अथवा अपना मनचाहा मकान पाने के लिए नवरात्र अथवा शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को एक उपाय करें जहाँ पर आप मकान चाहते है उस स्थान की थोड़ी सी मिट्टी लाकर उसे एक कांच की शीशी में डालें।फिर उस शीशी में गंगा जल और कपूर डाल कर घर के ईशान कोण अथवा अपने पूजा घर पर जौ के ढेर पर स्थापित करें। फिर शुक्रवार से नित्य या पूरे नवरात्र उस शीशी के आगे माता का सिद्ध नवार्ण मन्त्र “ऐं हीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे”की पांच माला जप करें और उस जौ के ढेर में गंगा जल डालते रहे।नवें दिन(नवमी के दिन) हवन के बाद थोड़े से अंकुरित जौ निकाल कर उसे अपनी मन चाही जगह पर डाल दें।काँच की शीशी के अंदर की सामग्री को नदी में विसर्जित कर दें और काँच की शीशी के अंदर की सामग्री को नदी में विसर्जित कर दें और कांच की खाली शीशी को नदी में न डालकर पीपल के पेड़ के नीचे रख दें। माँ दुर्गा की कृपा से आपको मनचाहा घर मिलने के प्रबल योग बनेगे।
: आदत बदलने से ग्रह भी अच्छा फल दे सकते….
1-मंदिर को साफ़ करते है तो बृहस्पति बहुत अच्छे फल देगा
२-अपनी झूठी थाली या बर्तन उसी जगह पर छोड़ना -सफलता मे कमी..
3-झूठे बर्तन को उठाकर जगह पर रखते है या साफ़ कर लेते है तो चन्द्रमा , शनि ग्रह ठीक होते है ।
4-देर रात जागने से चन्द्रमा अच्छे फल नहीं देता है।
5-कोई भी बाहर से आये उसे स्वच्छ पानी जरुर पिलाए। राहू ग्रह ठीक होता है । राहू का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता ।
6-रसोई को गन्दा रखते हैं तो आपको मंगल ग्रह से दिक्क्तें आएँगी। रसोई हमेशा साफ़ सुथरी रखेंगै तो मंगल ग्रह ठीक होता ।
7-घर में सुबह उठकर पौधों को पानी दिया जाता है तो हम बुध,सूर्य,शुक्र और चन्द्रमा मजबूत करते हैं ।।
8-जो लोग पैर घसीट कर चलते है उन का राहु खराब होता है।
9-बाथरूम में कपडे इधर उधर फेंकते है , बाथरूम में पानी बिखराकर आ जाते है तो चन्द्रमा अच्छे फल नहीं देता है।
1०-बाहर से आकर अपने चप्पल , जूते , मोज़े इधर उधर फेंक देते है ,उन्हें शत्रु परेशान करते है
11-राहू और शनि ठीक फल नही देते है जब बिस्तर हमेशा फैला हुआ होगा , सलवटे होंगी ,चादर कही , तकिया कही है।।
12-चीख कर बोलेंने से शनि खराब खराब होता है और शनि खराब होने जमीन जयदाद पर असर पड़ता है ।
13-बुजूर्गों के आशीर्वाद से घर में सुख समृद्धि बढती है तथा गुरू ग्रह अच्छा होता है ।
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🍂🍁नीम के फायदे / लाभ / औषधीय प्रयोग :

🍁1-अजीर्ण- नीम की निबौली खाने से अजीर्ण नष्ट हो जाता है । इसके सेवन से मल निष्कासित होकर रक्त स्वच्छ हो जाता है। रक्त संचार तीव्रता से होने के कारण जठराग्नि तीव्र हो जाती है । परिणामस्वरूप क्षुधा बढ़ जाती है

🍁2-सुन्नपन- शरीर अथवा शरीर का कोई अंग विशेष यदि सुन्न हो गया हो तो नियमित 3-4 सप्ताह के नीम तैल की मालिश से सुन्न नसों में पूर्ण रूपेण चेतना आकर सुन्नपन नष्ट हो जाता है। नीम के बीजों का तैल निकलवाकर मालिश करें ।

🌺3-अफीम खाने की लत- नीम पत्तियों का रस 1-1 चम्मच प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से अफीम खाने की लत में कमी आकर धीरे-धीरे छूट जाती है । यदि अफीम खाने की लत अधिक सताये तो भांग का अल्प मात्रा में सेवन कर लिया करें । अफीम के मुकाबले भांग कम हानिकारक है तथा इसका सेवन कभी भी छोड़ा जा सकता है ।

🌻4-अरुचि- अरुचि खाने-पीने की हो अथवा काम धन्धे की, नीम के सूखे पत्तों का चूर्ण बनाकर 1-1 चुटकी प्रत्येक 2-2 घंटे पर दिन में 3-4 बार सेवन करने से नष्ट हो जाती है । इस हेतु नीम की कोपलें भूनकर भी खाई जा सकती है ।

🌺5-हर्निया- अन्डवृद्धि (हर्निया) में नीम, हुरहुर की पत्तियाँ और अमरबेल सभी सममात्रा में लेकर गोमूत्र में घोट-पीसकर अन्डकोषों पर लेप करते रहना अत्यन्त उपयोगी है।

🌸6-आँखे दुखने पर-नीम की पत्तियों का रस 1-1 बूंद आँखों में डालें । नोट –बच्चों की दुखती आंखों में न डालकर कानों में डालें तथा यदि 1 आँख दुख रही हो तो विपरीत कान (बांयी आँख पर दुखने पर दांये कान में डालें

🌼7-आँखों की जलन- नीम की पत्तियों का रस और पठानी लोध (10-10 ग्राम पीसकर आँखों की पलकों पर लेप करने से आँखों की जलन और लालिमा नष्ट हो जाती है स्नेहा समुह

🌸8-आँखों में सूजन- होने पर 10 ग्राम नीम की पत्तियाँ उबालकर 5 ग्राम फिटकरी में घोलकर दिन में तीन बार करना लाभप्रद है।

🌼9-आग से जल जाने पर- नीम तैल लगाना उपयोगी है। नीम की 50 ग्राम कोंपले तोड़कर 250 ग्राम खौलते तैल में इतना पकायें कि नीम की कोपलें जल जायें (किन्तु जलकर राख न हों) तदुपरान्त 1-2 बार छानकर सुरक्षित रखलें और लगायें

💐11-नीम का मरहम- 250 ग्राम नीम के तैल में 125 ग्राम वैक्स (मोम), नीम की हरी पत्तियों का रस 1 किलो, नीम की जड़ की छाल का चूरा 50 ग्राम और नीम की पत्तियों की राख 25 ग्राम डालें । तैल और नीम का रस हल्की आग पर इतना पकायें कि तैल आधा या इससे भी कम रह जाए। फिर इसी में मोम डाल दें । जब तैल और मोम एकजान हो जाए तो छाल का चूरा और पत्तियों की राख भी मिला दें । यह प्रत्येक प्रकार का घाव भरने हेतु रामबाण मरहम तैयार हो गया।
💐12-पड़वाल- नीम की हरी पत्तियां, भीमसैनी कपूर, जस्ता भस्म, लाल चन्दन का बुरादा 10-10 ग्राम और शुद्ध रांगा 50 ग्राम को किसी लोहे के पात्र (कड़ाही) में खूब घोटकर सुरमा बनाकर आंखों में लगाने से पड़वाल (आंखों के बालों का आंखों के अन्दर की ओर जाना) जड़मूल से नष्ट हो जाता है।

🌻13-उपदंश- आतशक(उपदंश) में नीम की पत्तियों का रस 10 ग्राम अथवा नीम का तैल 5 ग्राम नित्य पियें और यौनांगों पर नीम तैल की मालिश करें । अति उपयोगी योग है।

🥀14-आधासीसी- नीम की पत्तियाँ, काली मिर्च और चावल 25-25 ग्राम घोट पीसकर नसवार बनालें । सूरज निकलने से पूर्व ही 1-1 चुटकी यह नसवार लेकर नथुनों से ऊपर खींचें । मात्र 1 सप्ताह के नित्य प्रयोग से पुराने से पुराना आधासीसी का रोग जड़ से भाग जाएगा

🌾15-आँव आने पर – नीम पत्तियों का आधा कप काढा अथवा पत्ती का 2 या ढाई ग्राम चूर्ण या पत्ती का दस ग्राम रस या छाल का चूर्ण डेढ़ से दो ग्राम तक अथवा फल, फूल छाल, डन्ठल और पत्ती अर्थात् पंचांग का चूर्ण हो तो मात्र दो ग्राम सेवन करने से लाभ हो जाता है ।

🌻16-वमन- 20 ग्राम नीम की पत्तियाँ पीसकर आधा कप पानी में घोलकर 5 दाने काली मिर्च के भी मिलालें । इसे पीने से किसी भी कारण से उल्टियां (वमन या कै) आ रही हो, शर्तिया शान्त हो जाती हैं ।
🥀7-एक्जिमा- नीम की छाल, मजीठ, पीपल की छाल, नीम वृक्ष पर चढ़ी गिलोय प्रत्येक 10-10 ग्राम लेकर काढ़ा बनाकर आधा-आधा कप सुबह-शाम पीने से एक्जिमा नष्ट हो जाता है

🌻18-दो किलो नीम पत्ती का रस, 500 मि.ली. सरसों का तैल, आक का दूध, लाल कनेर की जड़ और काली मिर्च 5-5 ग्राम लेकर हल्की आग पर पकाकर तैल मात्र शेष रहने पर छानकर सुरक्षित रखलें । इस तैल को लगाने से एक्जिमा समूल नष्ट हो जाता है तथा त्वचा पर कोई दाग शेष नहीं रहता है।

🍁19-कब्ज- प्रात: (सूर्योदय से पूर्व) कुल्ला करके नीम की 10 ग्राम पत्तियाँ घोटकर पानी में मिलाकर पीने से कब्ज मिटकर पेट स्वच्छ हो जाता है ।
🌼20-कण्ठमाला – महानिम्ब (बकायन) के पत्तों और छाल का काढ़ा पीने से और छाल की पुल्टिस बनाकर गले पर बांधने से कण्ठमाला रोग जड़ मूल से मिट जाता है ।

🌸21-कनफोड़े- कच्ची निबौली को चबाने से कर्णमूल (कनफोड़े) ठीक हो जाते हैं अथवा नीम के बीजों को नीम के ही तैल में पकाकर इसमें फुलाया हुआ नीला थोथा पीसकर मरहम बनाकर लगायें ।
🌻नोट-नीला थोथा जहर है अतः प्रयोग के बाद हाथ अवश्य साबुन से खूब भली-भांति घोकर स्वच्छ करलें ।

🌺22-कनखजूरे के विष में- नीम की पत्तियाँ घोटकर सैंधा नमक मिलाकर लेप करने से (जहाँ कनखजूरे ने काटा हो वहाँ लेप करें) विष नष्ट हो जाता है ।

🌺23- कानों के कीड़े – नीम पत्तियों का 25 ग्राम रस नमक मिलाकर गुनगुना करके कानों में टपकाने से कानों से समस्त कीड़े निकल जाते हैं । आवश्यकता पड़ने पर (कान में कीड़े होने पर) यह क्रिया दूसरे दिन भी की जा सकती है

🌺24- कानों का बहना- 50 ग्राम सरसों के तेल में 25-30 ग्राम नीम के पत्ते पकावें । (इसी में 5 ग्राम पिसी हल्दी डाल लें । तदुपरान्त इस तैल को छानकर 1 छोटा चम्मच शहद मिलाकर शीशी में सुरक्षित रखलें । इस तैल को 3-4 दिनों कान में टपकाने से कानों की बहना और दुर्गन्ध निकलना शर्तिया दूर हो जाता है । अथवा नीम के तैल में शहद मिलाकर रूई की बत्ती से कान में फेरने मात्र से ही पीव आना और दुर्गन्ध निकलना, दर्द होना मिट जाता है ।

🥀25-कान सुन्न पड़ जाना – नीम पत्ती 1 का रस चम्मच पीने से तथा 2-2 बूंद कानों में डालने से कान सुन्न पड़ जाने का रोग दूर हो जाता है ।

🍁26-सफेद कोढ़- नीम की फूल-पत्ती और निबौली पीसकर 40 दिन निरन्तर शर्बत बनाकर पीने से सफेद कोढ़ से मुक्ति मिल जाती है

🌻27- गलित कोढ़- नीम का गोंद नीम के ही रस में ही पीस कर पीने से गलित कोढ़ नष्ट हो जाता है । कोढ़ (लेप्रोसी) से ग्रसित रोगी को नीम वृक्ष के नीचे ही रहने, खाने, पीने और नीम की पत्तियां बिछावन की भांति बिछाकर सोना अत्यन्त ही लाभप्रद है घावों पर नीम का तैल लगाना अथवा शरीर पर मालिश करना, नीम की पत्तियों का रस पीना अथवा नीम से झरने वाला मद (50 ग्राम) तक पीना हितकर है। नीम की पत्ती का रस पानी में मिलाकर स्नान करना तथा बिस्तर से हटायी गयी नीम पत्तियों को जलाकर (धूनी लगाने से) वातावरण स्वच्छ रहता है । जली हुई पत्तियों की राख नीम के तैल में मिलाकर घावों पर लगाना भी लाभकारी है ।

🌺28- मच्छर भगाना – नीम की सूखी पत्तियों के ढेर में गन्धक चूर्ण डालकर आग लगाने से खटमल और मच्छर भाग जाते हैं।

🥀29-गले में जलन- पेट की खराबी के कारण होने वाले गले की दाह में नीम के रस में निबौली घोटकर शर्बत की भांति पीना लाभप्रद है।

🥀30- बलगमी खाँसी में – नीम के पत्तों की भस्म शहद में मिलाकर चाटना अत्यन्तु लाभकारी है । नीम भस्म को सौंठ, अजवायन, काली मिर्च, पुदीना एवं अदरक रस में घोटकर चाटने से तुरन्त लाभ होता है । इस प्रयोग से श्वास नली के समस्त अवरोध और दूषण शान्त हो जाते है ।

🌺31-खून की खराबी- 30 ग्राम नीम की कोपलों का रस तीन दिन पीने से खून की खराबी दूर हो जाती है।

🌻32-खुजली में – नीम और मेंहदी के पत्तों को एक साथ रगड़कर रस निकाल कर 25 ग्राम की मात्रा में पीना तथा शेष बचे रस को नारियल के तैल में भूनकर छानकर
शरीर पर मलना लाभकारी है। अथवा नीम का पंचांग (बीज, फूल, फल और पत्ते तथा जड़) समान मात्रा में पीसकर 4 चम्मच सरसों के तैल में उक्त चूरा हल्की आग पर तपाकर (नीम ज़लने की गन्ध फैलते ही और धुंआ उठते हुए ही) उतारकर, छानकर साफ-स्वच्छ शीशी में सुरक्षित रखलें। इस तेल की मालिश से मात्र खुजली ही नहीं, वरन् त्वचा सम्बन्धी समस्त विकार नष्ट हो जाते हैं

🌻33- खूनी दस्त- पतझड़ के मौसम में नीम छाल को पीसकर छानकर दो ग्राम की मात्रा में 3-3 घंटे पर ताजे पानी से सेवन करने से खूनी दस्त रुक जाते हैं।

🌼34-गंजापन- नीम तैल की निरन्तर काफी दिनों तक मालिश करते रहने से गंजापन नष्ट हो जाता है।

🌺35- गठिया – 25 ग्राम सरसों के तैल को पकाकर (खूब खौलने तक पकायें) उसमें 10 ग्राम नीम की कोपलें डालकर काली पड़ने दें (जलने से पहले ही उतार लें) फिर इसवने छानकर तैल को पुनः गुनगुना करके गठिया से आक्रान्त अंगों पर मालिश करें तथा इसी तैल से शाक-भाजी बनाकर खायें । गठिया के लिए अक्सीर योग है। अथवा महानिम्ब (बकायन) के बीज को पीसकर दो ग्राम की मात्रा में गुनगुने पानी के साथ सेवन करें । सुन्न पड़ गये अंगों को इस योग के सेवन करने से चैतन्यता मिलती है।

🌹36-शरीर में गर्मी- नीम पत्तियों के रस में मिश्री मिलाकर सुबह-शाम पीने से शरीर (देह) की गर्मी (शरीर में गर्मी का जोर) शान्त हो जाता है ।

🥀37-गर्मी से बुखार होने पर- नीम की छाल, गिलोय, लाल चन्दन, धनिया और कुटकी सम मात्रा में लेकर जौकुट कर काढ़ा बनाकर 20 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन (तीन दिन में तीनखुराके) ले इससे अधिक सेवन कदापि न करें। यह ‘गड्न्यादि क्वाथ’ कहलाता है । मात्र इतने सेवन से ही बुखार भाग जाता है। और प्यास भी शान्त हो जाती है । यह उपचार रक्त को ठण्डा करता है ।

💐38-गले की जलन- नीम की पत्तियों का रस निकालकर हल्का गर्म करके (इसमें 5-7 बँट शहद भी मिला सकते हैं) गरारें (कुल्ला) करने से गले की जलन शान्त हो जाती है तथा कफ को हटाने में तो यह योग लाभप्रद है ।

🌾39-गिल्टियों और सूजन में-नीम की पत्तियों को दरड़ लें (बारीक न पीसे) और नमक डालकर कड़वे तैल में पकायें, इसमें एक चुटकी पिसी हल्दी मिलाकर पुल्टिस तैयार कर किसी कपड़े में पोटली बनाकर गिल्टियों और सूजन पर हल्कीहल्की टकोर (सेंक) करें । दो दिन में ही आराम मिलने लगेगा ।।
🍃नोट–टकोर करने पर पहले तो सूजन बढती हुई लगेगी, ऐसा खून संचार की क्रिया के कारण होता है । मगर बाद में शर्तिया लाभ होगा। अत: घबरायें नहीं और प्रयोग जारी रखें।

🍂40- जोड़ों में दर्द –महानीम (बकायन) के पत्तों का रस पानी में मिलाकर पीने और जड़ की छाल को पीसकर लेप करने से गृधसी रोग (कमर से निचले जोड़ों में दर्द और जकड़न) नष्ट हो जाता है ।

🌻41-घमौरियाँ- नीमरस में जरा सा नमक (सम्भव हो तो पांचों पिसे हुए नमक) मिलाकर दिन में 4 बार पीते रहने से घमौरियाँ नष्ट हो जाती हैं तथा गर्मी, खुश्की नहीं होती है और पित्ती भी नहीं निकलती है।

💐42-पित्ती – नीम के तैल में कपूर की टिकिया घोलकर ठण्डी हवा और छांव में बैठकर (धूप के असर से होने वाली पित्ती निकलने पर) मालिश करना तथा आधा घंटे के पश्चात् स्नान करना अत्यधिक लाभप्रद है ।

🌻43-घाव- नीम की पत्तियों का रस और सरसों का तैल 10-10 ग्राम लेकर आग पर इतना पकायें कि रस जल जाए, तेल मात्र शेष रहे । इस तैल को घाव पर लगाना इतना अधिक गुणकारी है कि ऐलोपैथी की कीमती से कीमती घाव भरने का आयन्टमैन्ट (मलहम) इसका मुकाबला नहीं कर सकता है।

🍂44-सोरायसिस- 40 दिनों तक निरन्तर नीम क्वाथ पीने से और त्वचा पर नीम का तेल लगाते रहने से चम्बल रोग (सोरायसिस) जड़ से नष्ट हो जाता है ।

🌻45-त्वचा रोग – बहार के मौसम में प्रतिदिन नीम की 5 कोपलें चबाते रहने से अथवा 1 हफ्ता तक बेसन की रोटी में नीम की कोपले कुतरकर मिला दें तथा घी में खूब तर करके खाने से 1 साल तक त्वचा रोगों से बचाव हो जाता है ।

🌺46- चेचक रोग- नीम की 7 लाल पत्तियाँ और 7 काली मिर्च के दाने प्रतिदिन चबाने से अथवा नीम और बहेड़े के बीज तथा हल्दी 5-5 ग्राम पीसकर ताजा पानी में घोलकर 1 सप्ताह पीने से 1 साल तक चेचक रोग से बचाव हो जाता है ।

🍃47- बुखार- हरड़, बहेड़ा, आँवला का छिलका, सौंठ, पीपल, अजवायन, सैंधा और काला नमक प्रत्येक 10-10 ग्राम, काली मिर्च 1 ग्राम नीम के पत्ते आधा किलो और जौ क्षार 20 ग्राम को कूट पीस छानकर सुरक्षित रखलें । 3 से 5 ग्राम की मात्रा में फेंकी मारकर गुनगुने पानी के साथ पीने से चौथैया बुखार तो भाग ही जाता है इसका सेवन प्रत्येक प्रकार की ज्वरों में में भी उपयोगी है ।

🌻48- जलोदर रोग- सुबह-सुबह नीम की छाल का रस निकालकर 25 ग्राम की मात्रा में पीने के दो घंटे बाद घी की चूरी (परांठे की चूरी बनाकर घी में सानकर) 1 सप्ताह तक निरन्तर खाने (पानी न पियें अथवा कम से कम पियें) से जलोदर रोग नष्ट हो जाता है ।

🌺49-कील मुँहासे- जवानी के कील मुँहासे मुरझाकर दाग छोड़ गए हों तो नीम के बीज सिरके में पीसकर 5-7 दिन दागों पर लेप करने से लाभ हो जाता है ।

🌼50- जहरवा- नीम का मद (गोंद) दो ग्राम प्रतिदिन खाने से जहरवाद नष्ट हो जाता है।

🥀51- जुएं- नीम का तैल सिर में मालिश करने से जुएं लीखें नष्ट हो जाती है ।

🌻नीम के नुकसान :

•सामान्य खुराक (मात्रा) में नीम के उपयोग से दुष्प्रभाव नहीं होते हैं।
नवजात शिशुओं को नीम का सेवन नहीं कराना चाहिये |
• गर्भावस्था में महिलायें नीम का सेवन वैद्यकीय सलाहानुसार करें |

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: लू लगना

लू लगने से मृत्यु क्यों होती है❓

दिल्ली से आंध्रप्रदेश तक….सैकड़ो लोग लू लगने से मर रहे हैं।

हम सभी धूप में घूमते हैं फिर कुछ लोगो की ही धूप में जाने के कारण अचानक मृत्यु क्यों हो जाती है?

👉 हमारे शरीर का तापमान हमेशा 37° डिग्री सेल्सियस होता है, इस तापमान पर ही हमारे शरीर के सभी अंग सही तरीके से काम कर पाते है।

👉 पसीने के रूप में पानी बाहर निकालकर शरीर 37° सेल्सियस टेम्प्रेचर मेंटेन रखता है, लगातार पसीना निकलते वक्त भी पानी पीते रहना अत्यंत जरुरी और आवश्यक है

👉 पानी शरीर में इसके अलावा भी बहुत कार्य करता है, जिससे शरीर में पानी की कमी होने पर शरीर पसीने के रूप में पानी बाहर निकालना टालता है।( बंद कर देता है )

👉 जब बाहर का टेम्प्रेचर 45° डिग्री के पार हो जाता है और शरीर की कूलिंग व्यवस्था ठप्प हो जाती है, तब शरीर का तापमान 37° डिग्री से ऊपर पहुँचने लगता है।

👉 शरीर का तापमान जब 42° सेल्सियस तक पहुँच जाता है तब रक्त गरम होने लगता है और रक्त मे उपस्थित प्रोटीन पकने लगता है ( जैसे उबलते पानी में अंडा पकता है )

👉 स्नायु कड़क होने लगते है इस दौरान सांस लेने के लिए जरुरी स्नायु भी काम करना बंद कर देते हैं।

👉 शरीर का पानी कम हो जाने से रक्त गाढ़ा होने लगता है, ब्लडप्रेशर low हो जाता है, महत्वपूर्ण अंग (विशेषतः ब्रेन ) तक ब्लड सप्लाई रुक जाती है।

👉 व्यक्ति कोमा में चला जाता है और उसके शरीर के एक- एक अंग कुछ ही क्षणों में काम करना बंद कर देते हैं, और उसकी मृत्यु हो जाती है।

👉गर्मी के दिनों में ऐसे अनर्थ टालने के लिए लगातार थोडा थोडा पानी पीते रहना चाहिए, और हमारे शरीर का तापमान 37° मेन्टेन किस तरह रह पायेगा इस ओर ध्यान देना चाहिए।
Equinox phenomenon: इक्विनॉक्स प्रभाव अगले 5 -7 दिनों मे एशिया के अधिकतर भूभाग को प्रभावित करेगा।

कृपया 12 से 3 के बीच ज्यादा से ज्यादा घर, कमरे या ऑफिस के अंदर रहने का प्रयास करें।

तापमान 40 डिग्री के आस पास विचलन की अवस्था मे रहेगा।

यह परिवर्तन शरीर मे निर्जलीकरण और सूर्यातप की स्थिति उत्पन्न कर देगा।

(ये प्रभाव भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर सूर्य चमकने के कारण पैदा होता है।)

कृपया स्वयं को और अपने जानने वालों को पानी की कमी से ग्रसित न होने दें।

किसी भी अवस्था मे कम से कम 3 ली. पानी जरूर पियें ।किडनी की बीमारी वाले प्रति दिन कम से कम 6 से 8 ली. पानी जरूर लें।

जहां तक सम्भव हो ब्लड प्रेशर पर नजर रखें। किसी को भी हीट स्ट्रोक हो सकता है।

ठंडे पानी से नहायें
दही / छाछ का प्रयोग अधिक करें !

फल और सब्जियों को भोजन मे ज्यादा स्थान दें

हीट वेव कोई मजाक नही है।

एक बिना प्रयोग की हुई मोमबत्ती को कमरे से बाहर या खुले मे रखें, यदि मोमबत्ती पिघल जाती है तो ये गंभीर स्थिति है।

शयन कक्ष और अन्य कमरों मे 2 आधे पानी से भरे ऊपर से खुले पात्रों को रख कर कमरे की नमी बरकरार रखी जा सकती है

अपने होठों और आँखों को नम रखने का प्रयत्न करें।

जनहित मे इस सन्देश को ज्यादा से ज्यादा प्रसारित करें।
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ब्लडप्रेशर की समस्या में फायदेमंद है अंकुरित मोठ, जानिए इसे नियमित खाने के 5 फायदे

अधिकतर लोग सुबह के नाश्ते में अंकुरित मोठ खाते हैं लेकिन अगर आपकी डाइट में ये शामिल नहीं है, तो इसे नियमित खाने के सेहत फायदे जानने के बाद आप इसे जरूर रोजाना खाना शुरू कर देंगे –
1 यह प्रोटीन और कैल्शियम का एक बढ़िया स्त्रोत है, जो आपको भरपूर मात्रा में फाइबर भी देता है। इतना ही नहीं यह विटामिन्स और मिनरल्स का भी अच्छा स्त्रोत है।
2 इसमें मौजूद जिंक आपके इम्यून पावर को बढ़ाता है, साथ ही यह शरीर को तनाव के कुप्रभावों से भी बचाता है।
3 मोठ का सेवन करना मांसपेशियों के लिए काफी फायदेमंद है। मांसपेशियों के विकास में सहायक होने के साथ ही यह वसा को कम करने में भी मददगार है।
4 चूंकि यह फाइबर से भरपूर होती है, अत: यह आपको कब्ज की समस्या से बचाती है और पाचन तंत्र को सुरक्षित व स्वस्थ रखती है।
5 कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम करने का गुण होने के कारण यह ब्लडप्रेशर की समस्याओं में भी फायदेमंद है। हाई ब्लडप्रेशर में यह लाभकारी है।
: घर-परिवार में बाधा के लक्षण—-
परिवार में अशांति और कलह।
बनते काम का ऐन वक्त पर बिगड़ना। आर्थिक परेशानियां।
योग्य और होनहार बच्चों के रिश्तों में अनावश्यक अड़चन।
विषय विशेष पर परिवार के सदस्यों का एकमत न होकर अन्य मुद्दों पर कुतर्क करके आपस में कलह कर विषय से भटक जाना।
परिवार का कोई न कोई सदस्य शारीरिक दर्द, अवसाद, चिड़चिड़ेपन एवं निराशा का शिकार रहता हो।
घर के मुख्य द्वार पर अनावश्यक गंदगी रहना।
इष्ट की अगरबत्तियां बीच में ही बुझ जाना।
भरपूर घी, तेल, बत्ती रहने के बाद भी इष्ट का दीपक बुझना या खंडित होना।
पूजा या खाने के समय घर में कलह की स्थिति बनना।
व्यक्ति विशेष का बंधन—
हर कार्य में विफलता।
हर कदम पर अपमान।
दिल और दिमाग का काम नहीं करना।
घर में रहे तो बाहर की और बाहर रहे तो घर की सोचना।
शरीर में दर्द होना और दर्द खत्म होने के बाद गला सूखना।
इष्ट पर आस्था और विश्वास रखें।
हमें मानना होगा कि भगवान दयालु है। हम सोते हैं पर हमारा भगवान जागता रहता है। वह हमारी रक्षा करता है। जाग्रत अवस्था में तो वह उपर्युक्त लक्षणों द्वारा हमें बाधाओं आदि का ज्ञान करवाता ही है, निद्रावस्था में भी स्वप्न के माध्यम से संकेत प्रदान कर हमारी मदद करता है। आवश्यकता इस बात की है कि हम होश व मानसिक संतुलन बनाए रखें। हम किसी भी प्रतिकूल स्थिति में अपने विवेक व अपने इष्ट की आस्था को न खोएं, क्योंकि विवेक से बड़ा कोई साथी और भगवान से बड़ा कोई मददगार नहीं है। इन बाधाओं के निवारण हेतु हम निम्नांकित उपाय कर सकते हैं।
उपाय : पूजा एवं भोजन के समय कलह की स्थिति बनने पर घर के पूजा स्थल की नियमित सफाई करें और मंदिर में नियमित दीप जलाकर पूजा करें। एक मुट्ठी नमक पूजा स्थल से वार कर बाहर फेंकें, पूजा नियमित होनी चाहिए।
स्वयं की साधना पर ज्यादा ध्यान दें।
गलतियों के लिये इष्ट से क्षमा मांगें।
इष्ट को जल अर्पित करके घर में उसका नित्य छिड़काव करें।
जिस पानी से घर में पोछा लगता है, उसमें थोड़ा नमक डालें।
कार्य क्षेत्र पर नित्य शाम को नमक छिड़क कर प्रातः झाडू से साफ करें।
घर और कार्यक्षेत्र के मुख्य द्वार को साफ रखें।
हिंदू धर्मावलंबी हैं, तो गुग्गुल की और मुस्लिम धर्मावलम्बी हैं, तो लोबान की धूप दें।
व्यक्तिगत बाधा निवारण के लिए उपाय —-
व्यक्तिगत बाधा के लिए एक मुट्ठी पिसा हुआ नमक लेकर शाम को अपने सिर के ऊपर से तीन बार उतार लें औरउसे दरवाजे के बाहर फेंकें। ऐसा तीन दिन लगातार करें। यदि आराम न मिले तो नमक को सिर के ऊपर वार कर शौचालय में डालकर फ्लश चला दें। निश्चित रूप से लाभ मिलेगा।
हमारी या हमारे परिवार के किसी भी सदस्य की ग्रह स्थिति थोड़ी सी भी अनुकूल होगी तो हमें निश्चय ही इन उपायों से भरपूर लाभ मिलेगा।
अपने पूर्वजों की नियमित पूजा करें। प्रति माह अमावस्या को प्रातःकाल ५ गायों को फल खिलाएं।
गृह बाधा की शांति के लिए पश्चिमाभिमुख होकर क्क नमः शिवाय मंत्र का २१ बार या २१ माला श्रद्धापूर्वक जप करें।
यदि बीमारी का पता नहीं चल पा रहा हो और व्यक्ति स्वस्थ भी नहीं हो पा रहा हो, तो सात प्रकार के अनाज एक-एक मुट्ठी लेकर पानी में उबाल कर छान लें। छने व उबले अनाज (बाकले) में एक तोला सिंदूर की पुड़िया और ५० ग्राम तिल का तेल डाल कर कीकर (देसी बबूल) की जड़ में डालें या किसी भी रविवार को दोपहर १२ बजे भैरव स्थल पर चढ़ा दें।
बदन दर्द हो, तो मंगलवार को हनुमान जी के चरणों में सिक्का चढ़ाकर उसमें लगी सिंदूर का तिलक करें।
पानी पीते समय यदि गिलास में पानी बच जाए, तो उसे अनादर के साथ फेंकें नहीं, गिलास में ही रहने दें। फेंकने से मानसिक अशांति होगी क्योंकि पानी चंद्रमा का कारक है।
शास्त्रों के अनुसार मनुष्य के जीवन के 16 महत्वपूर्ण संस्कार बताए गए हैं, इनमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार में से एक है विवाह संस्कार। सामान्यत: बहुत कम लोगों को छोड़कर सभी लोगों का विवाह अवश्य ही होता है। शादी के बाद सामान्य वाद-विवाद तो आम बात है लेकिन कई बार छोटे झगड़े भी तलाक तक पहुंच जाते हैं। इस प्रकार की परिस्थितियों को दूर रखने के लिए ज्योतिषियों और घर के बुजूर्गों द्वारा एक उपाय बताया जाता है।

अक्सर परिवार से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए मां पार्वती की आराधना की बात कही जाती है। शास्त्रों के अनुसार परिवार से जुड़ी किसी भी प्रकार की समस्या के लिए मां पार्वती भक्ति सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। मां पार्वती की प्रसन्नता के साथ ही शिवजी, गणेशजी आदि सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त हो जाती है। अत: सभी प्रकार के ग्रह दोष भी समाप्त हो जाते हैं।

ज्योतिष के अनुसार कुंडली में कुछ विशेष ग्रह दोषों के प्रभाव से वैवाहिक जीवन पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे में उन ग्रहों के उचित ज्योतिषीय उपचार के साथ ही मां पार्वती को प्रतिदिन सिंदूर अर्पित करना चाहिए। सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है। जो भी व्यक्ति नियमित रूप से देवी मां की पूजा करता है उसके जीवन में कभी भी पारिवारिक क्लेश, झगड़े, मानसिक तनाव की स्थिति निर्मित नहीं होती है।
– सप्तम स्थान में स्थित क्रूर ग्रह का उपाय कराएं।

– मंगल का दान करें ।

– गुरुवार का व्रत करें।

– माता पार्वती का पूजन करें।

– सोमवार का व्रत करें।

– प्रतिदिन शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और पीपल की परिक्रमा करें।
: सुखी वैवाहिक /दाम्पत्य जीवन का ज्योतिषीय कारण—

विवाह एक जाटिल संस्था है| जब मान, मुल्य, धामिक आस्था व परपराऐ बिखरने लगें तथा स्वाथॅ, सता लोभ को प्राथमिकता मिले वहां विवाह पर कुछ भी कहना मानों शत्रुता मोल लेना है| एक बार अमेरिका में किसी न्यायधीश ने कहा था विवाह अनुबंध अन्य किसी भी प्रकार के अनुबंध से भिन्न है| यदि कोई व्यापारीक गठबंधन टुटता है| तो मात्र संबंधित दो दलों पर ही इसका प्रभाव पड़ता है| इसके विपरीत विवाह विच्छेद मात्र दो व्यक्तियो को ही नहीं अपितु परिवार व समाज को झकझोर कर रख देता हैं| बिखरे परिवार के बच्चे असुरक्षा की भावना में पलते व बढ़ते है| तो कभीं समाज विरोधी कायौ मे समलित हो जाते है| इस प्रकार देश व समाज की खुशहाली में बाधा पड़तीं है|
१ विवाह गृहस्थ जीवन का प्रवेश द्वारा है| देश व समाज का भविष्य को सजने संवारने की विधा है|पति-पत्नी का परस्पर प्रगाढ प्रेम बच्चों मे स्नेह, संवेदना परस्पर सहयोग व सहायता के गुणो को पुब्ट करता है| भावी पीढ़ी में सहजता सजगता व सच्चाई देश के भविष्य को उज्ज्वल बनती है| वैवाहिक जीवन में सभी प्रकार के तनाव व दबाव सहने की क्षमता का आंकलन करने के लिए भारत में कुंडली मिलान विधा का प्रयोग शताब्दीयो से प्रचलित है|
( 2 ) यदि सप्तम भाव हीनबली है तो उसका मिलान ऐसी कुंड़ली से जो उस अशुभता का प्रतिकार कर सके| उदाहरण के लिए मंगलीक कन्या के लिए मंगलिक वर का ही चयन करें| कुंड़लियो का बल परास्पर आकषर्ण देह व मन की समता जानकर किए गए विवाह दामपत्य खुख व स्थायित्व को बढाते हैं|
उदृाहरण >>के लिए यदि वर या कन्या की कुंड़ली में शुक्र अथवा मंगल सप्तमस्थ है तो इसे यौन उत्तेजना व उदात संवेगों का कारक जानें| वहां दूसरी कुंड़ली के सप्तम भाव में मंगल या शुक्र की उपस्थिति एक अनिवार्य शर्त बन जाती है| यदि असावधानी वश सप्तमस्थ बुध या गुरु वाले जातक से विवाह हो जाए तो यौन जीवन में असंतोष परिवार में कलह, कलेश व तनाव को जन्म देता है| इतिहास ऐसें जातकों से भरा पड़ा है जहां अनमेल विवाह के कारण परिवारिक जीवन नरक सरीखा होगा|
( ३ )लग्न में मिथुन, कन्या, धनु और मीन राशि होने पर जातक विवाहेतर प्रणय संबंधो की और उन्मुख होता है| कारण उस अवस्था में सप्तम भाव बाधा स्थान होता हैं| अतः यौन जीवन में असंतोष बना रहता है| यदि दशम भाव का संबंध गुरु से हो तो जातक दुराचार मे संलिप्त नहीं होता|
काम सुख के लिए अभिमान,अंहता यदि विष तो दैन्यता, विनम्रता, सेवा सहयोग की भावना, रुग्ण दंपत्य को सवस्थ व निरोग बनाने की अमृत औषधीहै|
मधुर गृहस्थ जीवन कैसे बनाएँ यह प्रत्येक गृहस्थी के लियें ज्योतिषीय द्ष्टि से चितन करना अवश्यक हैं| गृहस्थ जीवन काम-वासना या स्वेच्छाचारिता के लिए नहीं हुआ करता यह एक पवित्र बंधन होता है जिसमें आत्मवंश की वल्ली को निरन्तर बनाने के साथ-साथ लौकिक एंवं पारपौकिक सुख की कामना छिपी रहती हैं| विवाह से पूर्व प्रायः जीवन साथी बचपन से विवाह तक अलग-अलग परिवार के सदस्य होते हैं और बच्चपन के संस्कार प्रायः स्थाई भाव जमाएं रहते हैं, ये संस्कार और स्थाई भाव समय के साथ बदल नहीं पाते और गृहस्थी को नारकीय या स्वणिैम बना डालते है|
ज्योतिषिय गृह योगों के अधार पर एक दुसरे की अपेक्षाओं को समझकर चला जाय तो गृहस्थ जीवन मधुर बना रहता है|
गृहस्थ जीवन के वैसे तो कईं भाग महत्वपूर्ण होते है लेकिन अभिव्यक्ति एंव चितन ही सबसे महत्वपूर्ण होते है छोटी-छोटी बातों पर आशंका करना या अंतर्मन में कुछ और होते हुएं वाणी से कुछ का कुछ कह देना दामपत्य जीवन में बिगाड़ ला देता हैं|
यहां पर कुछ ज्योतिषीय योग दे रहा हूँ| ( 1 ) दादश भाव में धनु या वृश्चिक का राहु हो, चन्द्र शनिदेव सप्तम, दितीय, लग्न या नवम में हो तो एक दूसरे के प्रति भा्तिया, आशंकाएं तथा आत्मभय पैदा करवा देतें हैं|
( 2 ) नीच के गुरु, चन्द्र मीन में बुध-शनि भी अनावश्यक प्रंसगो में आंशकाए खडीं करवा देता है यह योग स्त्री कि कुंडली में हो तीव्रतर प्रभाव डालता हैं|
( 3 ) तीसरे एवं पाचवें भाव का अधिपति सूर्य शनि मंगल में से कोई भी हो तथा नीचस्थ होकर गुरु से संबध कर रहें हो तो अपने ही परिजनो के यवहार में दोहरापन रहने से गृहस्थ जीवन में आशांति हो जाती है|
(4) दुसरे तीसरे स्थान पर नीचस्थ ग्रहो का बैठना अप्रिय भाषण का कारण होता है लेकिन सूर्य वास्तविकता को उजागार करवाता हैं चन्द्रमा चंचलता पैदा करवाकर कुत्रिम व्यवहार करवा देता है जिसकी पोल कुछ समय में ही खुल जाती है और स्वंय को लज्जित भी करवा देती हैं|
(5)सत्तमेश, लग्नेश का नीचस्थ शुक्र से संबंध बना हो या स्वंय शुक्र ही इनका स्वामी हो और नवमांश में हीनाश मंगल के साथ संबंध कर रहा हो तो अंतरंग संबधों को लेकर शीतयुद्ध चलता रहता है तथा इन्ही की महादशा एंव अन्तरदशा आ जाय तब भंयकर विस्फोट की आंशका बन जाती है|
ऐसी स्थती में पुरुष के ग्रह हो तो स्त्री को वयर्थ भातिंयो से बचना चाहिए ऐसी स्थती में सोमवार को भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिएं|
(6 )मंगल-चन्द्रमा कर्क राशि में एक साथ हो तो दोहरी बातें करने के कारण गृहस्थ जीवन में निराधार आशंकाए खड़ी हो जाती हैं
(7 )मीन राशि में बुध के साथ शनि या केतु दुसरे,तीसरे भाव में हो आधी बात छोड़कर रहस्य बनायें रखने कि आदत हो जाती है|
(8 )गुरु – शुक्र मकर राशि में हो तो दोहरी वार्ताओ में दक्ष बनाता है तथा रहस्यवादी होकर भी बहुत व्यवहारिक व्यक्तित्व दिखाईं देता है जबकि आंतरिक रुप से स्वार्थ पराकाष्ठा होती है पुरुष के योग तो संकारात्मक परिणामकारी होते है| लेकिन स्त्री वर्ग को असुरक्षा सी महसुस करवाता है|
( 9 ) दुसरें भाव में पापगृह हो तथा बारहवें भाव में शुभ गृह हो या देखते हो तो जीवन साथी को समझने में भूल करवा देता हैं|
( 10 ) चतुर्थ भाव में शुक्र या चंन्द्रमा नीच राशि का हो तो घर का सुख की क्षति करते है
( 11 ) ब्यव भाव में वृषभ का शनि बकि् हो अब्टम भाव में चंन्द्र,राहु हो गोचर का शनि जब भी मेषराशि पर भ्रमण करेगा उस समय गृह कलह लड़ाई झगड़े.दुर्घटना आदि के योग बनतें है|
: संतान बाधा योग

हर स्त्री-पुरुष की यह कामना होती है कि उन्हें एक योग्य संतान उत्पन हो जिससे उनका वंश चले और वह उम्र के आखरी पड़ाव में उनका सहारा बने। निचे दिए गए ग्रह योग जो संतान बाधक योग हैं, यदि किसी की कुंडली में मौजूद हो तो उन्हें अवश्य सचेत हो जाना चाहिए और समय रहते उचित उपाय के जरिये उन प्रतिकूल ग्रहों को अनुकूल बनाना चाहिए जिनके वजह यह बाधक योग उत्पन्न हुए हैं।

1)लग्न से, चंद्र से तथा गुरु से पंचम स्थान पाप ग्रह से यक्त हो और वहाँ कोई शुभ ग्रह न बैठा हो न ही शुभ ग्रह की दृष्टि हो।

2) लग्न, चंद्र तथा गुरु से पंचम स्थान का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में बैठा हो।

3) यदि पंचमेश पाप ग्रह होते हुए पंचम में हो तो पुत्र होवे किन्तु शुभ ग्रह पंचमेश होकर पंचम में बैठ जाये और साथ में कोई पाप ग्रह हो तो वह पाप ग्रह संतान बाधक बनेगा।

4) यदि पंचम भाव में वृष, सिंह, कन्या या वृश्चिक राशि हो और पंचम भाव में सूर्य, आठवें भाव में शनि तथा लग्न में मंगल स्थित हो तो संतान होने में दिक्कत होती है एवं विलंब होता है।

5) लग्न में दो या दो से अधिक पाप ग्रह हों तथा गुरु से पांचवें स्थान पर भी पाप ग्रह हो तथा ग्यारवें भाव में चन्द्रमा हो तो भी संतान होने में विलंब होता है।

6) प्रथम, पंचम, अष्टम एवं द्वादस । इन चारो भावों में अशुभ ग्रह हो तो वंश वृद्धि में दिक्कत होती है।

7) चतुर्थ भाव में अशुभ ग्रह, सातवें में शुक्र तथा दसवें में चन्द्रमा हो तो भी वंश वृद्धि के लिए बाधक है।

8) पंचम भाव में चंद्रमा तथा लग्न, अष्टम तथा द्वादस भाव में पाप ग्रह हो तो भी बंश नहीं चलता।

9) पंचम में गुरु, सातवें भाव में बुध- शुक्र तथा चतुर्थ भाव में क्रूर ग्रह होना संतान बाधक है।

10) लग्न में पाप ग्रह, लग्नेश पंचम में, पंचमेश तृतीय भाव में हो तथा चन्द्रमा चौथे भाव में हो तो पुत्र संतान नहीं होता।

11) पंचम भाव में मिथुन, कन्या, मकर या कुंभ राशि हो। शनि वहां बैठा हो या शनि की दृष्टि पांचवे भाव पर हो तो पुत्र संतान प्राप्ति में समस्या होती है।

12) षष्टेश, अष्टमेश या द्वादशेश पंचम भाव में हो या पंचमेश 6-8-12 भाव में बैठा हो या पंचमेश नीच राशि में हो या अस्त हो तो संतान बाधायोग उत्पन्न होता है।

13) पंचम में गुरु यदि धनु राशि का हो तो बड़ी परेशानी के बाद संतान की प्राप्ति होती है।

14) पंचम भाव में गुरु कर्क या कुंभ राशि का हो और गुरु पर कोई शुभ दृष्टि नहीं हो तो प्रायः पुत्र का आभाव ही रहता है।

15) तृतीयेश यदि 1-3-5-9 भाव में बिना किसी शुभ योग के हो तो संतान होने में रूकावट पैदा करते हैं।

16) लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश एवं गुरु सब के सब दुर्बल हों तो जातक संतानहीन होता है।

17) पंचम भाव में पाप ग्रह, पंचमेश नीच राशि में बिना किसी शुभ दृष्टि के तो जातक संतानहीन होता है।

18) सभी पाप ग्रह यदि चतुर्थ में बैठ जाएँ तो संतान नहीं होता।

19) चंद्रमा और गुरु दोनों लग्न में हो तथा मंगल और शनि दोनों की दृष्टि लग्न पर हो तो पुत्र संतान नहीं होता ।

20) गुरु दो पाप ग्रहों से घिरा हो और पंचमेश निर्बल हो तथा शुभ ग्रह की दृष्टि या स्थिति न हो तो जातक को संतान होने में दिक्कत होता है।

21) दशम में चंद्र, सप्तम में राहु तथा चतुर्थ में पाप ग्रह हो तथा लग्नेश बुध के साथ हो तो जातक को पुत्र नहीं होता ।

22) पंचम,अष्टम, द्वादश तीनो स्थान में पाप ग्रह बैठे हों तो जातक को पुत्र नहीं होता।

23) बुध एवं शुक्र सप्तम में, गुरु पंचम में तथा चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हो एवं चंद्र से अष्टम भाव में भी पाप ग्रह हो तो जातक का लड़का नहीं होता।

24) चंद्र पंचम हो एवं सभी पाप ग्रह 1-7-12 या 1-8-12 भाव में हो तो संतान नहीं होता ।

25) पंचम भाव में तीन या अधिक पाप ग्रह बैठे हों और उनपर कोई शुभ दृष्टि नहीं हो तथा पंचम भाव पाप राशिगत हो तो संतान नहीं होता।

26) 1-7-12 भाव में पाप ग्रह शत्रु राशि में हों तो पुत्र होने में दिक्कत होती है ।

27) लग्न में मंगल, अष्टम में शनि, पंचम में सूर्य हो तो यत्न करने पर ही पुत्र प्राप्ति होती है।

28) पंचम में केतु हो और किसी शुभ गृह की दृष्टि न हो तो संतान होने में परेशानी होती है।

29) पति-पत्नी दोनों के जन्मकालीन शनि तुला राशिगत हो तो संतान प्राप्ति में समस्या होती है।
: “घर से कबाड़ और कचरे को हटाकर वास्तु देव की कृपा को बढ़ाएं”

✅वास्तु शास्त्र के अनुसार कचरे कबाड़ रखने के लिए नेऋत्य कोण [दक्षिण -पश्चिम] को सबसे उपयुक्त माना गया है ।

✅सर्वप्रथम वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में कचरे कबाड़ होना ही नही चाहिए ,

✅अगर है तो घर के सारे सदस्य छुट्टी के दिन बैठकर अलग अलग कर लें ।

✅कुछ सामान को जरूरतमंद को दे दें क्योंकि आप यह निश्चित मानिये ये आपके कुछ भी काम का नही है ,

✅ये जीवन भर कुछ भी काम नही आने वाला । कुछ सामान को कबाड़ी के पास बेच दें इससे आपको कुछ पैसे मिल जायेंगे

✅ देखिये आपने कबाड़ निकाला नही कि लक्ष्मी कि कृपा शुरू हो गयी ।

✅जरूरत मंद को आपने जैसे ही सामान दिया नही कि वो लोग आपको दुवा देना शुरू कर देंगे —

✅यह भी समृद्धि कि शुरुवात है —निर्मल बाबा के अनुसार आपकी कृपा वँही रुकी हुयी थी —-कबाड़ हटाते ही कृपा शुरू हो गई।

✅नेऋत्य कोण वैवाहिक जीवन का कोण है अगर पति-पत्नी के सम्बन्धों में कोई अवरोध या कडुवाहट है तो इस कोण में स्थित कबाड़ को तुरंत घर से बाहर का रास्ता दिखाएँ ।

✅इसी कोण से बच्चों का विवाह देखा जाता है अगर बच्चों के विवाह में कोई बाधा उत्पन्न हो रहा है तो इस कोण के कबाड़ हो तुरंत हटा दें ।

✅पति-पत्नी के बीच अगर तलाक के केस कोर्ट में चल रहे हैं और कोई भी एक पक्ष पुन: मिलने को इच्छुक है तो इस कोण में स्थित कचरे कबाड़ की तुरंत बिदाई की तैयारी करें ।

✅राजनीती के क्षेत्र में काम करने वालो के लिए —इसी कोण से मतदाताओं के साथ सम्बन्ध देखा जाता है —–

✅राजनेता भूलकर भी इस कोण में कबाड़ न रखें —-राजनेताओं के लिए नेऋत्य कोण अत्यंत महत्व पूर्ण है क्योंकि इसी कोण से पार्टी आलाकमान से सम्बन्ध भी देखा जाता है ,

✅और बगैर आलाकमान से अच्छे सम्बन्ध बनाये आपको पार्टी की टिकिट ,मंत्री पद ,राज्यसभा ,राजभोग मिलने से रहा
: शाबर मंत्र सिद्ध कैसे करें और प्रयोग कैसे करें ?

शाबर मंत्र साधना व वैदिक मंत्र साधना के पश्चात् अधिकतर साधकों के मन में यह प्रश्न उठता है कि उनके द्वारा सिद्ध किया गया मंत्र सिद्ध हुआ कि नहीं | मंत्र को सिद्ध करने के पश्चात् उसे किस प्रकार से प्रयोग करना है ? यह प्रश्न भी महत्वपूर्ण है | वैसे तो दोनों प्रकार के मन्त्रों को प्रयोग करने की विधि एक जैसी है किन्तु शाबर मंत्र के विषय में एक प्रश्न उठता है कि ये मंत्र तो पहले से ही सिद्ध होते है तो इनको सिद्ध करने की क्या आवश्यकता है ? शाबर मंत्र साधना में शाबर मन्त्रों को सिद्ध नहीं किया जाता बल्कि इन मन्त्रों में परिपक्वता लाने के लिए एक निश्चत संख्या में मंत्र जप किये जाते है |

तो आइये जानते है मंत्र सिद्ध होने पर मंत्र का प्रयोग किस प्रकार से करना है : –

वैदिक मंत्र साधना में मंत्र का प्रयोग :-

किसी भी वैदिक मंत्र को 41 दिनों तक नियमित रूप से द्रढ़ संकल्प व पूर्ण निष्ठा के साथ किये गये मंत्र जप मंत्र साधना में सफलता प्रदान करते है | वैदिक मंत्र साधना के पश्चात् मंत्र का प्रयोग इस प्रकार करें : –

अपने ईष्ट देव पर पूर्ण विश्वास रखते हुए जिस मंत्र को आपने सिद्ध किया है उसके देव का 3 स्मरण मंत्र प्रयोग करने से पहले करें, ऐसा करने के पश्चात् मंत्र का उच्चारण करें और फिर से 3 बार देव का स्मरण करें और अपने देव से उस कार्य की पूर्णता की अरदास लगा दे | उदहारण के लिए : माँ बगलामुखी मंत्र को सिद्ध करने के पश्चात् जब भी इसे प्रयोग करें : पहले 3 बार ॐ श्री बगलामुखी देव्यै नमः इस मंत्र से माँ बगलामुखी का स्मरण करें फिर उस मंत्र का उच्चारण करें जिसकों आपने सिद्ध किया है, अब फिर से 3 बार ॐ श्री बगलामुखी देव्यै नमः द्वारा माँ का ध्यान करें | और अब माँ बगलामुखी से अपने कार्य की पूर्णता की अरदास लगा दे |

हनुमान जी के किसी भी मंत्र को सिद्ध करने के पश्चात् आप कार्य की पूर्णता के लिए पहले 3 बार जय श्री राम बोले फिर मंत्र का उच्चारण करें और अंत में 3 बार जय श्री राम बोले और हनुमान जी से अपने कार्य की पूर्णता की अरदास लगा दे |

शाबर मंत्र साधना के पश्चात् मंत्र प्रयोग विधि :-

शाबर मंत्र साधना के पश्चात् आप शाबर मंत्र का प्रयोग भी ठीक वैदिक मंत्र जैसे ही कर सकते है | किन्तु कभी कभी यह स्पष्ट न होने पर कि यह शाबर मंत्र किस देव का है ऐसे में आप मंत्र को प्रयोग करते समय शुरू में 3 बार ॐ श्री परमात्मने नमः का जप करें और फिर शाबर मंत्र का उच्चारण करें और अंत में फिर से 3 बार ॐ श्री परमात्मने नमः का जप कर परमपिता परमेश्वर से अपने कार्य की पूर्णता की अरदास लगा दे |

किसी बीमारी या नजर के दोष या ऊपरी बाधा के सन्दर्भ में किसी शाबर मंत्र का प्रयोग किसी पीड़ित व्यक्ति पर उपरोत्क विधि अनुसार ही करें व उसे 3 या 7 दिन के समय अन्तराल पर 3 बार शाबर मंत्र द्वारा झाड़ा करें |

अपने ईष्ट देव पर पूर्ण विश्वास रखते हुए मंत्र का प्रयोग करें | मंत्र साधना के पश्चात् मंत्र का प्रयोग जितना अधिक निस्वार्थ भाव से दूसरों के लिए आप करेंगे, आपके द्वारा सिद्ध किये गये मन्त्रों में परिपक्वता और अधिक आने लगेगी | नोट : शाबर मन्त्रों का प्रयोग आप किसी को हानि पहुचाने के उद्देश्य से कदापि न करें, ऐसा करने से मन्त्रों में आई परिपक्वता समाप्त होने लगती है

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: अर्धनग्नावस्था विपरीत लिंगधारी में वासना पैदा करता है, खास कर मनुष्यों में क्योंकि छुपा होने के कारण उसमें आसक्ति होता हैं पशु पंछियों में नहीं। यदि हम सामाजिक व नैतिक दृष्टिकोण से हट कर वैज्ञानिक व आध्यात्मिक दृष्टिकोण पर विचार करते हैं तो यह बात स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि जब अर्धनग्धावस्था में स्त्री पुरुष एक दूसरे को देखते हैं तो उनमें एक बिशेष प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न होता है जिसे काम वासना व काम ऊर्जा कहते है। कामशाक्ति/काम ऊर्जा मूलाधार चक्र में जागृत होता है जो योनी व गुदा के बीच में स्थापित है । जब इस काम ऊर्जा को योग व ध्यान के माध्यम से उर्ध्वगामी कर सकने में सफल हो पाते है तो यह काम ऊर्जा ज्ञान ऊर्जा में तथा जब मैथुनक्रिया में लिप्त होते है या वैसा भावना करते हैं अर्थात वह काम ऊर्जा अधोगामी होता है जिसके परिणाम स्वरूप आपके दिव्य शक्ति का क्षय होता है। यह भी सत्य है कि इस दौरान संतानोपत्ति भी होता ।

अर्थात जब आप किसी अर्धनग्नावस्था में किसी को देखते हैं और उसके बाद आप के भीतर कामवासना जागृत होता/ होती हैं तो आप यह समझ सकते है कि आप अपने उस काम ऊर्जा को दिव्य शक्ति अर्थात ज्ञान शक्ति में परिवर्तित कर सकते हैं। यह आप की स्वयं की सोच पर निर्भर करता है।

 भारत के युवक के चारों तरफ सेक्‍स घूमता रहता है पूरे वक्‍त। और इस घूमने के कारण उसकी सारी शक्‍ति इसी में लीन और नष्‍ट हो जाती है। जब तक भारत के युवक की सेक्‍स के इस रोग से मुक्‍ति नहीं होती, तब तक भारत के युवक की प्रतिभा का जन्‍म नहीं हो सकता। प्रतिभा का जन्‍म तो उसी दिन होगा, जिस दिन इस देश में सेक्‍स की सहज स्‍वीकृति हो जायेगी। हम उसे जीवन के एक तथ्‍य की तरह अंगीकार कर लेंगे—प्रेम से, आनंद से—निंदा से नहीं। और निंदा और घृणा का कोई कारण भी नहीं है।

सेक्‍स जीवन का अद्भुत रहस्‍य है। वह जीवन की अद्भुत मिस्ट्रि हे। उससे कोई घबरानें की,भागने की जरूरत नहीं है। जिस दिन हम इसे स्‍वीकार कर लेंगे, उस दिन इतनी बड़ी उर्जा मुक्‍त होगी भारत में कि हम न्‍यूटन पैदा कर सकेंगे,हम आइंस्‍टीन पैदा कर सकेंगे।

उस दिन हम चाँद-तारों की यात्रा करेंगे। लेकिन अभी नहीं। अभी तो हमारे लड़कों को लड़कियों के स्‍कर्ट के आस पास परिभ्रमण करने से ही फुरसत नहीं है। चाँद तारों का परिभ्रमण कौन करेगा। लड़कियां चौबीस घंटे अपने कपड़ों को चुस्‍त करने की कोशिश करें या कि चाँद तारों का विचार करें। यह नहीं हो सकता। यह सब सेक्सुअलिटी का रूप है।
संजय कुमार शोधकर्त्ता वैज्ञानिक आध्यात्म

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कीलन मंत्र: मुसीबत के समय करें इसका जाप,
मंत्र की आवश्यकता
आज विज्ञान का युग है जिसमें इन अप्रत्यक्ष क्रिया-कलापों और मान्यताओं को बड़ी कठिनाई से स्वीकार किया जाता है। इसका पता तब चलता है या आभास होता है जबकि कोई ऐसी कार्यप्रणाली अपनाई जाती है जो कि इन बंधनों से मुक्ति दिलाने से सम्बन्धित होती है।

तांत्रिक प्रयोगों से गुप्त रूप से सुरक्षा
भवन की, कार्य स्थल आदि की अथवा व्यक्ति की रक्षा के लिए अनंत काल से रक्षा सूत्र, रक्षा कवच, रक्षा रेखा, रक्षा यंत्र आदि का उपयोग होता आया है। यह सदैव दुर्भिक्षों, अनहोनी घटनाओं, कुदृष्टि, मारण, उच्चाटन, विद्वेषण आदि तांत्रिक प्रयोगों से गुप्त रूप से सुरक्षा का कार्य करते रहे हैं। इस रक्षा-सुरक्षा क्रम-उपक्रम में ही कीलन का उपयोग देखने को मिलता है।

कीलन का उपयोग
विद्वान लोग स्थान को भांति-भांति की कीलों से तंत्र क्रियाओं द्वारा कील देते हैं अर्थात एक सुरक्षा कवच स्थापित कर देते हैं। कीलन सुरक्षा की दृष्टि से तो किया ही जाता है परन्तु इसके विपरीत ईर्ष्या-द्वेष, अनहित की भावना, शत्रुवत व्यवहार आदि के चलते भी स्थान का कीलन कर दिया जाता है।

कीलन का अर्थ
कीलन का अर्थ है सुरक्षा कवच। बाँधने की क्रिया अर्थात किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थान को सुरक्षा कवच में बाँधने को कीलन या स्तम्भन कहते हैं और बँधे हुये को मुक्त करने की क्रिया को उत्कीलन कहलाती है।

कीलन का अर्थ
कीलन सकारात्मक और नकारात्मक रूप में दो प्रकार से प्रयोग में लिए जाते हैं, जैसे:- किसी के कार्य से अन्य लोगों को हानि हो रही हो तो कीलन की विशेष प्रक्रिया द्वारा उसके कार्य को रोक दिया जाता है या दूसरे शब्दों में कहे तो कील दिया जाता है या स्तम्भित कर दिया जाता है।

तंत्र विद्या
तंत्र विद्या जितना प्राप्त करना दुर्लभ है, उतना ही दुर्लभ इस विद्या में सफलता प्राप्त करना है। जो लोग तंत्र साधनाएं करते हैं वो ज्यादातर पागल हो जाते हैं या किसी शारीरिक व मानसिक परेशानियों का शिकार बन जातें है। यह इसलिए होता है क्यूंकि वो किसी भी तंत्र साधना करने से पहले अपने शरीर की रक्षा के लिए कुछ नहीं करते अर्थात अपने शरीर को नहीं बांधते।

कीलन मंत्र का प्रभाव
साधना करते हैं हुए अनेक प्रकार की दुष्ट शक्तियां जैसे डाकिनी,भूत,प्रेत आदि हमारी साधना में हानि पहुंचाने को तत्पर रहते हैं, इसलिए किसी भी साधना को शुरू करने से पहले सबको शरीर कीलन मंत्र को ज़रूर सिद्ध कर लेना चाहिए,जिससे साधना करते वक्त किसी भी शारीरिक या मानसिक परेशानियों का शिकार नहीं होना पडे। कीलन मंत्र बहुत प्रभावशाली होते है।

साधना विधि:
इस मंत्र की साधना आप कभी भी शुरू कर सकते है। कीलन मंत्र साधना के लिए मंगलवार या शनिवार अच्छा रहता है। इस मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से करने से इसका प्रभाव ओर बढ़ जाट है। आपको रोजाना दिन में एक बार इसका जाप करना होता है। पूर्व की तरफ मुख करके रुद्राक्ष की माला से किसी भी आसन का उपयोग कर इसका जप करें।

मात्र 21 दिनों की होती हैं। मंत्र जपने के वक्त दो अगरबत्ती,कुछ पुष्प और कोई सी भी मिठाई पास रखें। इस तरह करने से कीलन मंत्र सिद्ध हो जाता है। किसी भी साधना को करने से पहले इसे सिद्ध कर लेना चाहिए। इससे उग्र सध्नायों के समय होने वाले अनिष्ट से बचा जा सकता है।

जब भी किसी साधना को शुरू करना हो तो सिर्फ कीलन मंत्र का केवल 11 बार मंत्र जप करें। ऐसा करने से आपकी हर विघ्न बाधायों से रक्षा होगी। मुसीबत के समय भी इस मन्त्र का प्रयोग किया जा सकता है!

मंत्र #1
सिल्ली सिद्धिर वजुर के ताला, सात सौ देवी लूरे अकेला, धर दे वीर,पटक दे वीर,पछाड़ दे वीर, अरे-अरे विभीषण बल देखो तेरा, शरीर बाँध दे मेरा, मेरी भक्ति,गुरु की शक्ति, फुरो मंत्र ,इश्वरो वाचा!

मंत्र #2
आस कीलूँ पास कीलूँ, कीलूँ अपनी काया जागदा मसान कीलूँ बैठी कीलूँ छाया इसर का कोट बर्मा की थाली मेरे घाट पिंड का हनुमान वीर रखवाला!

मंत्र #3
हनुमन् सर्वधर्मज्ञ, सर्वकार्य विधायक। अकस्मादागतोत्पातं नाशयाशु नमोऽस्तुते।। इस मंत्र का प्रयोग किसी व्यक्ति पर जो कि भूत-प्रेत या जादू टोने या अभिचार कर्म से ग्रसित हो उस पर किया जाता है। इस मंत्र का उपयोग किसी मकान पर अथवा व्यापारिक प्रतिष्ठान पर जिसको किसी शत्रु ने बाँध दिया हो, उसके बंधन तोडऩे में यह मंत्र अति प्रभावशाली सिद्ध होता है।

मंत्र #3
ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए लगातार 11 दिन तक प्रतिदिन इस मंत्र का 3000 बार जप करें। ग्यारह दिनों में 33000 जाप पूरे हो जायेंगे। जाप पूरे हो जाने पर 3300 आहुतियों से दशांश हवन या जाप करके 33 ब्राह्मणों को भोजन कराये। ऐसा करने से अचानक आई विपत्तियाँ, व्यापारिक बाधाएं बहुत जल्दी समाप्त हो जाती हैं, निरन्तर अच्छी आय होने लगती है।

मंत्र #4
सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याऽखिलेश्वरी। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ।। श्री दुर्गा सप्तशती का यह मंत्र अत्यन्त प्रभावशाली है।

मंत्र #4
कभी ऐसी अनुभूति हो कि व्यापार को किसी ने बँधा दिया है तो व्यापारिक प्रतिष्ठान पर प्रात: माँ दुर्गा का सिंह पर सवार कोई चित्र या मूर्ति स्थापित कर, घी का दीपक लगाकर, पीली सरसों के कुछ दाने बाँये हाथ में मुट्ठी बंद करके रखें और सीधे हाथ में रुद्राक्ष की माला को कपड़े से ढक कर, एकाग्र होकर उपरोक्त मंत्र का जाप करें।

मंत्र #4
एक माला पूरी होने पर बाँये हाथ में रखे हुये सरसों के दानों को पूरे व्यापारिक स्थल पर दसों दिशाओं में बिखेर दें। यह प्रयोग एक महीने तक लगातार करने से किसी भी प्रकार की बाधा जो आपको अपने व्यवसाय में आ रही होगी वो दूर हो जाती है।आदेश *नाथ सेवक **🔱🚩🔥📿🌺🦚🌿⚛🌤🍂
: *यूरोप की विवशता – हमारी अज्ञानता :*

👁 1. आठ महीने ठण्ड के कारण, कोट पैंट पहनना उनकी विवशता और शादी वाले दिन भरी गर्मी में कोट-पैंट डाल कर बरात ले जाना, हमारी अज्ञानता

👁 2. ताजा भोजन उपलब्ध ना होने के कारण, सड़े आटे से पिज्जा, बर्गर, नूडल्स खाना यूरोप की विवशता और 56 भोग छोड़ कर ₹ 400/- की सड़ी रोटी (पिज्जा ) खाना, हमारी अज्ञानता

👁 3. ताज़ा भोजन की कमी के कारण फ्रिज़ इस्तेमाल करना, यूरोप की विवशता और रोज ताज़ी सब्जी बाजार में मिलनें पर भी, हफ्ते भर की सब्जी फ्रीज में ठूँस सड़ा कर खाना, हमारी अज्ञानता

👁 4. जड़ी-बूटियों का ज्ञान ना होने के कारण, जीव जन्तुओं के माँस से दवायें बनाना, उनकी विवशता और आयुर्वेद जैसी महान चिकित्सा होने के बावजूद, माँस की दवाईयाँ उपयोग करना, हमारी अज्ञानता

👁 5. पर्याप्त अनाज ना होने के कारण जानवरों को खाना, उनकी विवशता और 1600 किस्मों की फसलें होनें के बावजूद, स्वाद के लिए निरीह प्राणी मार कर खाना, हमारी अज्ञानता

👁 6. लस्सी, मट्ठा, छाछ, दूध, जूस, शिकंजी आदि ना होने के कारण, कोल्ड ड्रिंक पीना उनकी विवशता और 36 तरह के पेय पदार्थ होते हुऐ भी, कोल्ड ड्रिंक नामक जहर पी कर खुद को आधुनिक समझना, हमारी अज्ञानता

🙏 अनुरोध : भारतीय सँस्कृति अद्वितीय, पुरातन एवं महान है।

इस पर अवश्य विचार करें।

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