Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

: महत्वपूर्ण

  1. पंचोपचार – गन्ध , पुष्प , धूप , दीप तथा नैवैध्य द्वारा पूजन
    करने को ‘पंचोपचार’ कहते हैं |
  2. पंचामृत – दूध , दही , घृत , मधु { शहद ] तथा शक्कर इनके
    मिश्रण को ‘पंचामृत’ कहते हैं |
  3. पंचगव्य – गाय के दूध , घृत , मूत्र तथा गोबर इन्हें
    सम्मिलित रूप में ‘पंचगव्य’ कहते हैं |
  4. षोडशोपचार – आवाहन् , आसन , पाध्य , अर्घ्य , आचमन ,
    स्नान , वस्त्र , अलंकार , सुगंध , पुष्प , धूप , दीप ,
    नैवैध्य , ,अक्षत , ताम्बुल तथा दक्षिणा इन सबके द्वारा पूजन
    करने की विधि को ‘षोडशोपचार’ कहते हैं |
  5. दशोपचार – पाध्य , अर्घ्य , आचमनीय , मधुपक्र ,
    आचमन , गंध , पुष्प , धूप , दीप तथा नैवैध्य द्वारा पूजन करने
    की विधि को ‘दशोपचार’ कहते हैं |
  6. त्रिधातु – सोना , चांदी और लोहा |कुछ आचार्य सोना ,
    चांदी , तांबा इनके मिश्रण को भी ‘त्रिधातु’ कहते हैं |
  7. पंचधातु – सोना , चांदी , लोहा , तांबा और जस्ता |
  8. अष्टधातु – सोना , चांदी , लोहा , तांबा , जस्ता , रांगा ,
    कांसा और पारा |
  9. नैवैध्य – खीर , मिष्ठान आदि मीठी वस्तुये |
  10. नवग्रह – सूर्य , चन्द्र , मंगल , बुध , गुरु , शुक्र ,
    शनि , राहु और केतु |
    : 🌘 कुछ ज्योतिषिक योग🌒

आज हम कुछ ज्योतिष्क योगों के बारेमें विचार करेंगे ।।

(1) 🌔 लक्ष्मी योग- ये योग चंद्र+ मंगल की युति से बनता है । कुंडली के किसी भी भाव में चंद्र-मंगल का योग बन रहा है तो जीवन में धन की कमी नहीं होती है। मान-सम्मान मिलता है। सामजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है।

(2) 🌔 गजकेसरी योग- बहोत चर्चित इस योग के बारेमें सभी ज्योतिष में ज्ञान रखनेवाले पाठक जानते ही हैं । जिसकी कुंडली में शुभ गजकेसरी योग होता है, वह बुद्धिमान होने के साथ ही प्रतिभाशाली भी होता है। इनका व्यक्तित्व गंभीर व प्रभावशाली भी होता है। समाज में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करते है। शुभ योग के लिए आवश्यक है कि गुरु व चंद्र दोनों ही नीच के नहीं होने चाहिए। साथ ही, शनि या राहु जैसे पाप ग्रहों से प्रभावित नहीं होना चाहिए।

(3) 🌔 सिंघासन योग- जन्म कुन्डलीमें यदि सभी ग्रह दूसरे, तीसरे, छठे, आठवे और बारहवे घर में बैठ जाए तो कुंडली में सिंघासन योग बनता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति शासन अधिकारी बनता है और नाम प्राप्त करता है।

(4) 🌔 श्रीनाथ योग- अगर लग्नेश और सप्तमेश कर्म यानी की दशम भावमें में स्थित हो और दशमेश यदि भाग्यस्थान में भाग्येश के साथ हो तो श्रीनाथ योग का निर्माण होता है। इसके प्रभाव से जातक को धन, नाम, यश , वैभव आदि की प्राप्ति होती है। ये बहोत ही शुभ योग है ।।
🌘 🌒
: 🍀 दशाफल के कुछ नियम 🍀

👉कोई भी ग्रह अपनी दशा या अंतर्दशा में ही सामान्य रूप से अपना फल प्रदान करता है ।

👉इस मे कुछ आचार्यों ने अप्वादरूप नियम भी दिए हैं जैसे कि शनि की दशा में शुक्र और शुक्र की दशा में शनि का फल । किंतु हम बजाय गहन विचार किये ,सामान्य और सर्व सम्मत नियमों का ही विचार करेंगे ।

👉मुख्य रूपसे दशा फल कथन का आधार होती हैं | प्रत्येक ग्रह अपने स्वभाव और स्थिति के अनुसार दशा आने पर किस प्रकार से फल प्रदान करता हैं ,उस के बारेमें कुछ नियम |

🍀 1 परम ऊंच-इस अवस्था का ग्रह अपनी दशा मे श्रेष्ठ फल देता हैं |

☘️ 2 ऊंच –ऊंच राशि का ग्रह अपनी दशा मे प्रत्येक प्रकार का सुख प्रदान करता हैं |

☘️ 3 आरोही-अपनी ऊंच राशि से एक राशि पहले का ग्रह अपनी दशा आने पर धन्य धान्य की वृद्दि एवं आर्थिक दृस्ती से संपन्नता देता हैं |

☘️ 4 अवरोही-अपनी ऊंच राशि से अगली राशि पर स्थित ग्रह अपनी दशा मे रोग,परेशानी,मानसिक व्यथा व धन हानी प्रदान करता हैं |

☘️ 5 नीच- नीच राशि का ग्रह अपनी दशा मे मान व धन हानी करवाता हैं |

☘️ 6 परम नीच –इस अवस्था का ग्रह अपनी दशा मे ग्रह क्लेश,परिवार से अलगाव,दिवालियापन,चोरी व अग्नि का भय प्रदान करता हैं |

☘️ 7 मूल त्रिकोण –इसमे स्थित ग्रह अपनी दशा आने पर भाग्यवर्धक एवं धन लाभ कराने वाला होता हैं |

☘️ 8 स्वग्रही-इसमे स्थित ग्रह अपनी दशा आने पर विद्या प्राप्ति,यश बढ़ोतरी व पदोन्नति करवाता हैं |

☘️ 9 अति मित्र-अति मित्र ग्रह स्थित ग्रह अपनी दशा मे वाहन व स्त्री सुख देने वाला तथा विभिन्न मनोरथ पूर्ण करवाने वाला होता हैं |

☘️ 10 मित्र ग्रह-इसका ग्रह अपनी दशा मे सुख,आरोग्य व सम्मान प्रदान करने वाला होता हैं |

☘️ 11 सम ग्रह- इसमे बैठा ग्रह अपनी दशा मे सामान्य फल प्रदान करने वाला व विशेष भ्रमण करवाने वाला होता हैं |

☘️ 12 शत्रु ग्रह-इसमे बैठे ग्रह की दशा मे स्त्री से झगडे के कारण मानसिक अशांति प्रदान करता हैं |

☘️ 13 अति शत्रु- इसमे बैठा ग्रह अपनी दशा मे मुकद्दमेबाजी,व्यापार मे हानी,व बंटवारा करवाने वाला होता हैं |

☘️ 14 ऊंच ग्रह संग ग्रह –यह ग्रह अपनी दशा मे तीर्थ यात्रा वा भूमि लाभ करवाने वाला होता हैं |

☘️15 पाप ग्रह संग ग्रह- यह ग्रह अपनी दशा मे घर मे मरण,धन हानी प्रदान करता हैं |

☘️16 शुभ ग्रह के साथ ग्रह –यह ग्रह अपनी दशा आने पर धन धन्य की वृद्धि,धनोपार्जन व स्वजन प्रेम आदि का लाभ देता हैं |

☘️ 17 शुभ द्रस्ट ग्रह-यह ग्रह अपनी दशा मे विधा लाभ,परीक्षा मे सफलता,तथा ख्याति प्राप्त करवाता हैं |

☘️ 18 अशुभ द्रस्ट-इस ग्रह की दशा मे संतान बाधा,अग्निभय,तबादला तथा माता पिता मे से एक की मृत्यु होती हैं |

इनके अलावा कुंडली मे दशाओ का फलादेश करते समय कई अन्य बातों का भी ध्यान रखना चाहिए जिनमे कुछ बाते इस प्रकार हैं |

(1) 👉 लग्न से 3,6,10,व 11वे भाव मे स्थित ग्रह की दशा उन्नतिकारक व सुखवर्धक होती हैं |

(2) 👉 दशानाथ यदि लग्नेश,नवांशेश,होरेश,द्वादशेश व द्रेष्कानेश हो तो उसकी दशा जीवन मे मोड या बदलाव लाने मे सक्षम होती हैं |

(3) 👉 मांदी जिस स्थान मे हो उस राशि के स्वामी की दशा रोग प्रदान करने वाली होती हैं |

(4) 👉 अस्त/वक्री/युद्ध मे सम्मिलित ग्रह की दशा अशुभ फल प्रदान करती हैं

(5) 👉 संधिगत ग्रह,6,8,12 वे भाव के स्वामी की दशा अनिश्चय प्रधान होने से पतन की ओर ले जाती हैं |

(6) 👉 नीच और शत्रु ग्रह की दशा मे परदेश मे निवास,शत्रुओ व व्यापार से हानी तथा मुकदमे मे हार होती हैं परंतु नीच कार्यो से लाभ मिलता हैं |

(7) 👉 राहू व केतू यदि कुंडली मे 2,3,6 या 11 वे भावो मे हो ना तो इनकी दशा मे अशुभता ही मिलती हैं
~~~~~
अयन, ऋतु, मास

अयन
अयन दो हैं, “उत्तरायण” तथा “दक्षिणायन”। सूर्य नारायण जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो वे उत्तरायण कहलाते हैं और जब कर्क में प्रवेश करते हैं तो दक्षिणायन कहे जाते हैं। प्रत्येक अयन में सूर्य भचक्र पर ६ राशियों में भ्रमण करते हैं। उत्तरायण के समय “मकर से मिथुन” छः राशियों और दक्षिणायन के समय “कर्क से धनु” छः राशियों में सूर्य का गोचर होता है।

वास्तव में पृथ्वी उत्तरायण या दक्षिणायन होती है लेकिन अध्ययन या समझाने की सुविधा के लिए सूर्य को उत्तरायण या दक्षिणायन कहा जाता है। जब हमारा उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर झुका होता है उस समय को उत्तरायण और जब पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव पर सूर्य के किरणे अधिक पड़ती हैं तो उस समय सूर्य को दक्षिणायन कहते हैं।

समस्त शुभ कार्यों के लिए उत्तरायण सूर्य शुभ माना जाता है। यहां तक की जन्म तथा मृत्यु के लिए भी उत्तरायण सूर्य शुभ होता है। हर वर्ष लगभग १४ जनवरी से १५ जुलाई तक सूर्य नारायण उत्तरायण होते हैं।

पाप ग्रह दक्षिणायन में तथा शुभ ग्रह उत्तरायण होने पर बली होते हैं।

ऋतु
हमारे पंचांगों के अनुसार वर्ष में दो-दो महीने की छः ऋतुएं होती हैं।
ऋतु ग्रह चान्द्र मास
१. वसंत शुक्र चैत्र-वैशाख (Spring) March–May
२. ग्रीष्म मं+सू ज्येष्ठ-अषाढ़ (Summer) May-July
३. वर्षा चन्द्र श्रावण-भाद्रपद (Rainy) July-Sept
४. शरद बुध आश्विन-कार्तिक (Autumn) Sept-Nov
५. हेमन्त गुरु मार्गशीर्ष-पौष (Winter) Nov-January
६. शिशिर शनि माघ-फाल्गुन (Cool) January-March

मास (चाँद के महीने)
चन्द्र के अनुसार एक वर्ष में बारह महीने होते हैं। चन्द्र का वर्ष (३५४ दिन) सूर्य के वर्ष (३६५) से ग्यारह दिन छोटा होता है, इसका तालमेल बिठाने के लिए किसी-किसी चन्द्र-वर्ष में एक मास अधिक होता है, जोकि अधिक-मास नाम से जाना जाता है। अधिक-मास को और बहुत से नामों से पुकारा जाता हैं।

अधिक-मास, लीप-इयर की २९फरवरी की तरह हैं, लेकिन अधिम-मास चार वर्ष के बाद न होकर ढाई वर्ष (३० महीने) बाद होता है। इसलिए हर दो-तीन वर्ष बाद १३ महीनों का संवत् (वर्ष) होता है। जिस वर्ष में अधिक-मास जिस मौसम में पड़ता है, उस वर्ष वह मौसम भी एक महीना लम्बा हो जाता है।

अधिक मास को आध्यात्मिक विकास के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। अधिक-मास में कीर्तन-भजन, ध्यान, उपासना, धार्मिक कृत्य, यज्ञ, अनुष्ठान आदि अधिक से अधिक करने चाहिए। लेकिन इस माह में भौतिक सुख-समृद्धि के लिए यज्ञ-अनुष्ठान या क्रिया-कलाप नहीं होते।

किसी महीनें की पूर्णिमा के दिन चन्द्र जिस नक्षत्र पर होता है, उसी नक्षत्र के नाम पर उस महीने का नाम होता है।

चान्द्र मास नक्षत्र
१. चैत्र (March-April) चित्रा
२. वैशाख (April-May) विशाखा
३. ज्येष्ठ (May-June) ज्येष्ठा
४. अषाढ़ (July-August) पूर्वा षाढा
५. श्रावण (August-Sept) श्रवण
६. भाद्रपद (Sept-Oct) पूर्वा भाद्रपद
७. आश्विन (Oct-Nov) अश्विनी
८. कार्तिक (Nov-Dec) कृतिका
९. मार्गशीर्ष (Dec-Jan) मृगशिरा
१०. पौष (Jan-Feb) पुष्य
११. माघ (Feb-Mar) मघा
१२. फाल्गुन (Mar–April) पूर्वा फाल्गुनी

Recommended Articles

Leave A Comment