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💥पितृदोष उसके लक्षण और परिणाम💥

पितृदोष के संबंध में ज्योतिष और पुराणों की अलग अलग धारणा है लेकिन यह तय है कि यह हमारे पूर्वजों और कुल परिवार के लोगों से जुड़ा दोष है। पितृदोष के कारण हमारा सांसारिक जीवन पग-पग पर कष्ट और रुकावटों का सामना करता है।।आध्यात्मिक साधना में भी बाधाएं उत्पन्न होती हैं। हमारे पूर्वजों का लहू, हमारी नसों में बहता है। हमारे पूर्वज कई प्रकार के होते हैं, क्योंकि हम आज यहां जन्में हैं तो कल कहीं ओर।

पितृ दोष के कई और भी कारण (प्रकार) होते हैं। पूर्वजों के कारण वंशजों को किसी प्रकार का कष्ट ही पितृदोष माना गया है। ऐसा नहीं है और भी कई कारणों से यह दोष प्रकट होता है। इसे पितृ ऋण भी कह सकते हैं। आओ जानते हैं कि पितृदोष और ऋण क्या होता है। जानने में ही समाधान छुपा हुआ है।

ज्योतिष के अनुसार पितृ दोष और पितृ ऋण से पीड़ित कुंडली श्रापित कुंडली भी कही जाती है।

अगर कुंडली में सूर्य, मंगल, लग्न, या पित्रभाव से राहू, केतू या शनी का योग बन रहा है तो उस कुंडली में पित्रदोष माना जाता है। ऐसे व्यक्ति इस जन्म अथवा पूर्व जन्मों में…अपने पित्रपक्ष, मातृपक्ष अर्थात माता के अतिरिक्त मामा-मामी मौसा-मौसी, नाना-नानी तथा पितृपक्ष अर्थात दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई आदि को कष्ट व दुख देता है और उनकी अवहेलना व तिरस्कार करता रहा है।

इसके अलावा भी अन्य कई स्थितियां होती है।हालांकि इसके अलावा व्यक्ति अपने कर्मों से भी पितृदोष निर्मित कर लेता है। विद्वानों ने पितर दोष का संबंध बृहस्पति (गुरु) से भी बताया है। अगर गुरु ग्रह पर दो बुरे ग्रहों का असर हो तथा गुरु 4-8-12वें भाव में हो या नीच राशि में हो तथा अंशों द्वारा निर्वल हो तो यह दोष पूर्ण रूप से घटता है । और यह पितर दोष पिछले पूर्वज (बाप दादा परदादा) से चला आता है, जो सात पीढ़ियों तक चलता रहता है।

लाल किताब के अनुसार पितृ ऋण-

पितृ ऋण कई प्रकार का होता है जैसे हमारे कर्मों का, आत्मा का, पिता का, भाई का, बहन का, मां का, पत्नी का, बेटी और बेटे का। आत्मा का ऋण को स्वयं का ऋण भी कहते हैं। जब कोई जातक अपने जातक पूर्व जन्म में धर्म विरोधी कार्य करता है तो वह इस जन्म में भी अपनी इस आदत को दोहराता है। ऐसे में उस पर यह दोष स्वत: ही निर्मित हो जाता है। धर्म विरोधी का अर्थ है कि आप भारत के प्राचीन या पैत्रक धर्म के प्रति जिम्मेदार नहीं हो। पूर्व जन्म के बुरे कर्म, इस जन्म में पीछा नहीं छोड़ते।

अधिकतर भारतीयों पर यह दोष विद्यमान है। स्वऋण के कारण निर्दोष होकर भी उसे सजा मिलती है। दिल का रोग और सेहत कमजोर हो जाती है। जीवन में हमेशा संघर्ष बना रहकर मानसिक तनाव से व्यक्ति त्रस्त रहता है। परिवार में तनाव बना रहता है।

इसी तरह हमारे पितृ धर्म को छोड़ने या पूर्वजों का अपमान करने आदि से पितृ ऋण बनता है, इस ऋण का दोष आपके बच्चों पर लगता है जो आपको कष्ट देकर इसके प्रति सतर्क करते हैं। पितृ ऋण के कारण व्यक्ति को मान प्रतिष्ठा के अभाव से पीड़ित होने के साथ-साथ संतान की ओर से कष्ट, संतानाभाव, संतान का स्वास्थ्य खराब रहने या संतान का सदैव बुरी संगति में रहने से परेशानी झेलना होती है।

पितर दोष के और भी दुष्परिणाम देखे गए हैं- जैसे कई असाध्य व गंभीर प्रकार का रोग होना। पीढ़ियों से प्राप्त रोग को भुगतना या ऐसे रोग होना जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहे। पितर दोष का प्रभाव घर की स्त्रियों पर भी रहता है।

इसके अलावा मातृ ऋण से आप कर्ज में दब जाते हो और ऐसे में आपके घर की शांति भंग हो जाती है। मातृ ऋण के कारण व्यक्ति को किसी से किसी भी तरह की मदद नहीं मिलती है। जमा धन बर्बाद हो जाता है। फिजूल खर्जी को वह रोक नहीं पाता है। कर्ज उसका कभी उतरना नहीं।

दूसरी ओर बहन के ऋण से व्यापार-नौकरी कभी भी स्थायी नहीं रहती। जीवन में संघर्ष इतना बढ़ जाता है कि जीने की इच्छा खत्म हो जाती है। बहन के ऋण के कारण 48वें साल तक संकट बना रहता है। ऐसे में संकट काल में कोई भी मित्र या रिश्तेदार साथ नहीं देते भाई के ऋण से हर तरह की सफलता मिलने के बाद अचानक सब कुछ तबाह हो जाता है। 28 से 36 वर्ष की आयु के बीच तमाम तरह की तकलीफ झेलनी पड़ती है।

स्त्री के ऋण का अर्थ है कि आपने किसी स्त्री को किसी भी प्रकार से प्रताड़ित किया हो, इस जन्म में या पूर्जजन्म में तो यह ऋण निर्मित होता है। स्त्री को धोखा देना, हत्या करना, मारपीट करना, किसी स्त्री से विवाह करके उसे प्रताड़ित कर छोड़ देना आदि कार्य करने से यह ऋण लगता है। इसके कारण व्यक्ति को कभी स्त्री और संतान सुख नसीब नहीं होता। घर में हर तरह के मांगलिक कार्य में विघ्न आता है।

इसके अलावा गुरु का ऋण, शनि का ऋण, राहु और केतु का ऋण भी होता है। इसमें से शनि के ऋण उसे लगता है जो धोके से किसी का मकान, भूमि या संपत्ति आदि हड़ लेता हो, किसी की हत्या करवा देता हो या किसी निर्दोष को जबरन प्रताड़ित करता हो। ऐसे में शनिदेव उसे मृत्यु तुल्य कष्ट देते हैं, उसका परिवार और कारोवार बिखर जाता है।

राहु के ऋण को अजन्मे का ऋण कहते हैं। इस ऋण के कारण व्यक्ति मरने के बाद प्रेत बनता है। किसी संबंधी से छल करने के कारण या किसी अपने से ही बदले की भावना रखने के कारण यह ऋण उत्पन्न होता है। इसके कारण आपने सिर में गहरी चोट लग सकती है। निर्दोष होते हुए भी आप मुकदमे आदि में फंस जाते हैं। बच्चों को इससे कष्ट होता है। इसी तरह केतु के ऋण अनुसार संतान का जन्म मुश्किल से होता है और यदि हो भी जाता है तो वह हमेशा बीमार रहती है। यदि आपने किसी कुत्ते को मारा हो तो भी यह ऋण लगता है।

ब्रह्म श्राप (ऋण)- पितृ ऋण या दोष के अलावा एक ब्रह्म दोष भी होता है। इसे भी पितृ के अंर्तगत ही माना जा सकता है। ब्रम्हा ऋण वो ऋण है जिसे हम पर ब्रम्हा का कर्ज कहते हैं। कई मनुष्य निज परम्परा और धर्म से विमुख होकर कई पीढिंयों तक ब्रह्मश्राप को भोगते रहते हैं। ब्रम्हाजी और उनके पुत्रों ने हमें बनाया तो किसी भी प्रकार के भेदवाव, छुआछूत, जाति आदि में विभाजित करके नहीं बनाया । लेकिन पृथ्वी पर आने के बाद हमने ब्रह्मा के कुल को जातियों में बांट दिया। अपने ही भाइयों से स्वार्थ बस अलग होकर उन्हें कष्ट दिया। इसका परिणाम यह हुआ की हमें युद्ध, हिंसा और अशांति को भोगना पड़ा और पड़ रहा है। देश के कई क्षेत्रो को भी लगातार ब्रह्म दोष के परिणाम लगातार हिंसा और प्राकृतिक दंश झेलकर भुगतना पड़ रहे है।। धर्मान्तरण के भी होते हैं बुरे परिणाम वर्तमान में लालच, डर या सैंकड़ों सालों से फैलाई गई नफरत के आधार पर कुछ लोग अपना पितृ धर्म छोड़कर दूसरा धर्म अपना लेते हैं। इसका परिणाम वर्तमान में नहीं लेकिन बाद में भुगतना ही होगा। धर्मान्तरण जैसे कृत्यों से ब्रह्मा का दोष उत्पन्न होता है और फिर आपके बच्चों तक को इसका भुगतान करना होगा। ब्रह्मा दोष हमारे पूर्वजों, हमारे कुल, कुल देवता, कुलदेवी, हमारे धर्म, हमारे वंश आदि से जुड़ा है। बहुत से लोग अपने पितृ धर्म, मातृभूमि या कुल परम्परा को छोड़कर चले गए हैं। उनके पीछे यह दोष कई जन्मों तक पीछा करता रहता है। यदि कोई व्यक्ति अपने धर्म और कुल को छोड़कर गया है तो उसके कुल के अंत होने तक यह चलता रहता है, क्यों‍कि यह ऋण ब्रह्मा और उनके पुत्रों से जुड़ा हुआ है। मान्यता अनुसार ऐसे व्यक्ति का परिवार पीढी दर पीढी किसी न किसी दुख से हमेशा पीड़ित बना रहता है और अंतत: मरने के बाद भी उसे प्रेत योनी मिलती है।

*अतः इन सभी प्रकार के पितृ दोष (ऋण) की शान्ती-पूजन के लिए किसी योग्य विद्वान ज्योतिषी के उचित परामर्श अनुसार और देखरेख में वैदिक आचार्य जनों से पूर्ण विधान से ही अनुष्ठान करना लाभकारी होता है। (क्यों कि ये विषेश प्रायश्चित कर्म है)….। ध्यान रहे एक छोटी-सी गलती भी आप के पूरे अनुष्ठान को निश्फल कर सकती है ।
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