Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

ग्रहों की दशा-अंतर्दशा

  1. सभी ग्रह अपनी दशा और अपनी ही अंतर्दशा में सभी फल नहीं देते। जब संबंधी ग्रह या मित्र ग्रहों की दशा आती है, तब से अपना पूर्ण फल देते हैं जैसे शनि अपना पूर्ण फल शुक्र की महादशा के समय अपनी अंतर्दशा में देते है।
  2. जिस ग्रह की महादशा चल रही हो, उसे दशानाथ कहा जाएगा। दशानाथ की महादशा में सधर्मी ग्रह अच्छा फल देंगे, बाकी की अंतर्दशा विपरीत फलदायक ही रहेगी।
  3. यदि केंद्र और त्रिकोण के अधिपति परस्पर प्रेम रखते हो तो एक-दूसरे की महादशा-अंतर्दशा में शुभ फल ही प्राप्त होंगे। इनमें शत्रुता होने पर विपरीत फलों की प्राप्ति होगी।
  4. मारक ग्रह अपनी दशा में कष्ट देता ही है। यदि किसी शुभ ग्रह की अंतर्दशा आती है तो भी स्वास्थ्य हानि और धन हानि होगी ही, हाँ प्रतिष्ठा वृद्धि शुभ ग्रह दे सकता है।
  5. राहु केतु यदि त्रिकोण या केंद्र में हों और त्रिकोणेश या केंद्रेश के साथ हो या उनसे संबंध रखते हो तो इनकी दशा-महादशा उत्तम फलकारक होती है। योगकारी ग्रह की महादशा में इनकी अंतर्दशा भी शुभ फल देती हैं।
    6.लग्नेश-त्रिकोणेश व लग्नेश-केंद्रेश के संबंध भाग्योदयकारी होते हैं व परस्पर अच्छे फल देते हैं।
  6. शनि व शुक्र का यह स्वभाव है कि वह अपनी महादशा में पूर्ण फल न देकर मित्र ग्रह की अंतर्दशा में फल देते हैं।
  7. षष्ठेश व अष्टमेश की दशाएँ सदैव कष्ट ही देती हैं। शरीर कष्ट कुछ हद तक होता ही है।
  8. सभी ग्रह अपनी दशा में अपने भाव का, वे जहाँ है उस भाव का तथा संबंधी ग्रह के स्वामी भाव का फल अवश्य देते हैं।
  9. वक्री ग्रह यदि पाप प्रभाव हो तो उनकी महादशा भी कष्टकारक होती है।
  10. छठे व आठवे भाव में शुभ नही बताया गया है इसलिए वहाँ शुभ ग्रह न हो कर अगर कुंडली में पाप ग्रह है तो वो भाव कुछ हद तक संतुलित रहता है। अन्य बातो पर भी ध्यान देना पड़ता है।

Recommended Articles

Leave A Comment