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कुंडली विश्लेषण के कुछ महत्वपूर्ण नियम
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कुंडली का विश्लेषण करते हुए कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों जैसे- सभी ग्रहों की स्थिति, डिग्री, दृष्टि, गति, नवांश और चलित की स्थिति आदि को अवश्य ही ध्यान में रखना चाहिए और उन्हीं के अनुसार भविष्यकथन करना चाहिए। इन सभी पहलुओं को देख कर अगर भविष्य कथन होगा तो निश्चित रूप से ज्योतिष के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को हम सार्थक कर सकते हैं।

ज्योतिष शास्त्र मनुष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है और अपरा तथा परा विद्याओं को जोड़ने वाले पुल की तरह कार्य करता है।

इस शास्त्र से ही हम किसी के प्रारब्ध और भविष्य के बारे में कुछ जान सकते हैं। हर व्यक्ति का जन्म उसके प्रारब्ध के अनुसार ही होता है और इस जन्म के लेखे-जोखे के अनुसार ही अगला जन्म होता है। प्रायः इसी तरह यह जीवन चक्र चलता रहता है।

ज्योतिष शास्त्र जो खगोलीय शास्त्र पर आधारित है हमारे भविष्य कथन में बहुत सहायक सिद्ध होता है। इसमें कोई संशय नहीं है कि खगोल शास्त्र की तरह ज्योतिष भी विज्ञान है परंतु इसमें कुछ अपवाद भी हैं। यह एक संभावनाओं का शास्त्र अधिक है। कोई भी भविष्यवाणी पूर्ण सत्यता से करना असंभव तो नहीं पर काफी कठिन है। जहां एक ओर कुंडली में ग्रहों की स्थिति दृष्टि, दशा, गोचर आदि के आधार पर भविष्यवाणी की जाती है वहीं ज्योतिषी की छठी इंद्री अर्थात अंतज्र्ञान तथा उसकी ईश्वरीय शक्ति भी बहुत महत्वपूर्ण होती है। कुछ ज्योतिषी केवल कुंडली से ही देख कर बता देते हैं तो कुछ कुंडली के प्रत्येक पहलू को अच्छी तरह परख कर बताते हैं।

अलग-अलग ज्योतिषियों के भविष्यकथन में भी काफी फर्क होता है क्योंकि उनके अनुभव व तरीके भी भिन्न होते हैं। भविष्य कथन के व्यवहारिक पक्ष को देखें तो कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए जैसे –

  1. देश काल परिस्थिति
  2. चलित
  3. नवांश
  4. राजयोग, दशा व गोचर का समन्वय
  5. षड्बल
  6. नीच भंग राज योग
  7. वक्री ग्रह
  8. स्तंभित ग्रह
  9. शनि शुक्र दशा का विचित्र नियम
  10. दृष्टि संबंध
  11. ग्रहों का परस्पर परिवर्तन योग (विनिमय)
  12. काल सर्प योग
  13. पंचमहापुरुष योग
  14. पुरुष जातक या स्त्री जातक
  15. देश, स्थान, काल, परिस्थिति का महत्व
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    भविष्यकर्ता को देश, काल, स्थान व परिस्थितियों के अनुसार ही भविष्यकथन करना चाहिए। हर देश/समाज व्यक्ति विशेष की संस्कृति, वैभव, समृद्धि आदि का ध्यान रख कर ही कुंडली देखनी चाहिए। किसी धनाढ्य व्यक्ति की कुंडली का लक्ष्मी योग या राजयोग उसे अरबपति बना देगा जबकि गरीब व्यक्ति की कुंडली का वही योग उसे लखपति बनाएगा।

इसी प्रकार सामाजिक स्थिति और संस्कृति भी भविष्य कथन में जरूरी है क्योंकि विदेश में सप्तम भाव में यदि पाप ग्रह स्थित हों और किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो तलाक की भविष्यवाणी काफी सही सिद्ध होगी। पर भारत में इस विषय पर काफी सोच समझ कर बोलना चाहिए क्योंकि अब भी प्रौढ़ उम्र के व्यक्ति तलाक के बारे में नहीं सोचते।

  1. चलित का महत्व
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    कुंडली का आकलन करते हुए चलित को अवश्य देखना चाहिए क्योंकि लग्न कुंडली में ग्रह त्रिकोण या केंद्र में होते हुए भी यदि चलित में षष्ट, अष्टम या द्वादश में चले जाएं तो फलादेश भिन्न हो जाता है और उसमें न्यूनता आ जाती है; अथवा अष्टम या द्वादश में स्थित शुभ ग्रह सप्तम या केंद्र में आ जाएं तो फल की शुभता में वृद्धि होती है। लग्न कुंडली में ग्रह उसी भाव के फल देता है जिसमें कि चलित में जाता है।
  2. नवांश की महत्ता
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    जन्मकुडली के अतिरिक्त नवांश कुंडली को देखना अत्यंत आवश्यक है। सप्तम भाव के अतिरिक्त अन्य ग्रहों की नवांश में स्थिति जैसे उच्च, नीच, स्वगृही या मूलत्रिकोण आदि को देखने से कुंडली के अतिरिक्त बल का ज्ञान होता है जिससे सही फलादेश में बहुत सहायता मिलती है।
  3. ग्रह बल
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    फलादेश करते हुए ग्रह बल का ध्यान रखना भी आवश्यक है क्योंकि कई बार कुंडली में योग होते हुए भी ग्रह के हीन बली होने से योग फलीभूत नहीं होता और भविष्यकथन की सटीकता प्रभावित होती है जैसे- अनेक बार ऐसी कुंडली देखने को मिलती है जिसे देख कर कहा नहीं जा सकता कि विवाह नहीं होगा। विवाह कारक ग्रह की स्थिति अच्छी होते हुए भी विवाह नहीं होता क्योंकि कलत्र कारक ग्रह शुक्र/गुरु सप्तमेश होकर कहीं भी शून्य अंश में हों, शुभ ग्रह की दृष्टि में न हो, पाप ग्रह की दृष्टि या युति में हांे अथवा पापकत्र्तरी से पीड़ित हो तो विवाह की संभावना कम हो जाती है।
  4. स्थान परिवर्तन का राजयोग तथा दशाफल का विचित्र नियम
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    कवि कालिदास द्वारा रचित उत्तरकालामृत के अनुसार शुक्र और शनि यदि दोनों उच्च, स्वक्षेत्री तथा वर्गोत्तमी होकर बलवान स्थिति में हांे, तो एक दूसरे की दशा तथा अंतर्दशा में खराब फल देते हैं। लेकिन दोनों में से एक बलवान और दूसरा बलहीन हो तो अपने योग का फल देते हैं।
  5. नीच भंग राज योग
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    इसी तरह से भविष्य कथन करते हुए नीच ग्रह और उच्च ग्रह का काफी विचार किया जाता है। उसमें भी नीच भंग राज योग का ध्यान रखना चाहिए। यदि नीच ग्रह वक्री हो जाए तो उच्च ग्रह के समान फल देता है और उच्च ग्रह वक्री हो जाए तो वह अपने बल में क्षीण हो जाता है और अपेक्षित फल नहीं दे पाता।
  6. वक्री ग्रह
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    कालिदास के अनुसार उच्च ग्रह वक्री होकर क्षीण फल देते हैं। इनके अतिरिक्त ग्रहों के अंश, अस्त अथवा परास्त स्थिति, दृष्टि संबंध तथा दशाफल व गोचर का ध्यान भी रखना चाहिए। क्योंकि उचित दशा आने पर जन्मकुंडली के योगों द्वारा बनाई गई कर्मफल की पोटली लाने का काम गोचर ही करता है। बहुत बार ऐसा भी होता है कि अच्छे योग देने वाले ग्रहों की दशा आने पर भी सही गोचर के अभाव में पूर्ण रूप से संतोषजनक फल नहीं मिल पाते। निष्कर्ष: भविष्य कथन करते हुए यदि ज्योतिष के इन महत्वपूर्ण नियमों का पालन किया जाए और सभी तथ्यों का ध्यान रखा जाए तो निश्चित रूप से फलकथन में सटीकता आ जाएगी।
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