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चंद्र राशि से ग्रह वेध अनुसार गोचर फल

सर्वेषु लग्नेष्व सत्सु चंद्र लग्नं प्रधानं खलु गोचरेषु तस्मा वर्तमा ग्रहेन्द्र चारैः कथयेत् यद्यपि

जन्म लग्न, सूर्य लग्न आदि से भी ग्रह गोचर फल देखा जाता है, परंतु चंद्र लग्न से गोचर फल देखने की पद्धति अधिक उपयोग मानी गई है।

गोचर के बिना सटीक फलादेश करना कठिन होता है। ग्रहों की महादशा अंतर्दशा के समय गोचर में भी वे ग्रह किसी अवस्था में संचरण कर रहे हैं। यह सब विचार करके फलित में अधिक सत्यता एवं सूक्ष्मता आ जाती है।

शनि की साढ़ेसाती ढैया आदि गोचर फल के ही प्रत्येक् उदाहरण हैं। जिस प्रकार प्रत्येक ग्रह के गोचर फल ज्ञात करने के कुछ शुभ भाव निशचत हैं उसी प्रकार अधिक सूक्ष्मता से गोचर फल जानने के लिए प्रत्येक ग्रह के कुछ वेध स्थान भी निशीचत हैं।

यदि कोई भी ग्रह सामान्य गोचर नियम से शुभ भाव में संचरण कर रहा हो लेकिन उसके वेध स्थान में कोई ग्रह हो, तो उस ग्रह का शुभ फल प्राप्त नहीं होता है। अर्थात ग्रह का वेध हो रहा हो तो वह शुभ भाव में होने पर भी अपना अच्छा फल नहीं देगा।

चंद्र राशि से ग्रहों का भाव अनुसार शुभ गोचर फल सूर्य जन्म राशि से 3, 6, 10 या 11वें भाव में शुभ फलदा होता है।
चंद्र जन्म से 1, 3, 6, 7, 10 या 11वें भाव में शुभ फलदा होता है।
मंगल जन्म राशि से 3, 6 या 11वें भाव में शुभ फलदा होता है।
बुध चंद्र राशि से 2, 4, 6, 8, 10 या 11वें भाव में शुभ फलदा होता है।
बृहस्पत जन्म राशि से 2, 5, 7, 9 या 11वें भाव में शुभ फलदा होता है।
शुक्र जन्म राशि से 1, 2, 3, 4, 5, 8, 9, 11 या 12वें भावों में शुभ फलदा होता है।
शनि जन्म राशि से 3, 6 या 11वें भाव में शुभ फलदा होता है।
राहु जन्म राशि से 3, 6, 10 या 11वें भाव में शुभ फलदा होता है।
केतु जन्म राशि से 3, 6, 10 या 11वें भाव में शुभ फलदा होता है।

सूर्य के वेध स्थान चंद्र राशि से प्रत्येक ग्रह के वेध स्थान 3, 6, 10 या 11वें स्थान में सूर्य शुभ फल देता है।
लेकिन यह शुभ फल तभी होगा जब 9, 12, 4 या 5 भाव में कोई ग्रह न हो।
केवल शनि से सूर्य का वेध नहीं होता है।
अर्थात तृतीय भाव में सूर्य तभी शुभ फल प्रदान करेगा जब नवम भाव में शनि को छोड़कर अन्य कोई ग्रह न हो।
छठे में शुभ फल तब होगा जब बारहवें भाव में शनि को छोड़कर अन्य कोई ग्रह न हो।
दसवें भाव में सूर्य तब शुभफल तब देगा जब चतुर्थ भाव में शनि को छोड़ कर अन्य कोई ग्रह न हो।
ग्यारहवे भाव में भी सूर्य तभी शुभ फल प्रदान करेगा जब पंचम भाव में शनि के अतिर अन्य ग्रह क्रमश वेध होता है।

चंद्र के वेध स्थान 1, 3, 6, 7, 10 या 11वें स्थान में चंद्र शुभ तभी होगा जब क्रमश 5, 9, 12, 4 या 8वें भाव में केवल बुध को छोड़ कर कोई अन्य ग्रह न हो।
चंद्र का बुध से बेध नहीं होता है।

मंगल के वेध स्थान 3, 6 या 11वें भाव में मंगल तभी शुभ होगा जब क्रमश 12, 9 या 5वें में कोई ग्रह न हो।

बुध का 2, 4, 6, 8, 10 या 11वें भाव में शुभ तभी होगा जब क्रमश 5, 3, 9, 1, 8 या 12वें भावों में चंद्र के अतिरीक्त अन्य कोई ग्रह न हो।
बुध व चंद्र का एक दूसरे से वेध नहीं होता है।

गुरु के वेध स्थान 2, 5, 7, 9 या 11वें स्थान में शुभ होता है।
परंतु क्रमश 12, 4, 3, 10 या 8वें स्थान में कोई ग्रह नहीं हो, तभी शुभ फल प्राप्त होगा।

शुक्र के वेध स्थान शुक्र के शुभ गोचर स्थान 1, 2, 3, 4, 5, 8, 9, 11, 12 हैं। परंतु शुक्र तभी शुभ फल करेगा जब 8, 7, 1, 10, 9, 5, 11, 3 या 6ठे स्थान में कोई ग्रह न हो।

शनि के वेध स्थान शनि 3, 6 या 11वें भाव में शुभ दायक होता है। परंतु 12, 9 या 5वें भाव में सूर्य को छोड़ कर यदि कोई अन्य ग्रह हो तो शुभ फल प्राप्त नहीं होगा।

विशेष: राहु केतु के वेध स्थान शनि के समान ही हैं।

गोचर कुंडली फलादेश

ज्योतिष में भचक्र की किसी राशि विशेष में ग्रह के जाने का नाम गोचर है | ‘गो’ का मतलब है ग्रह जो जाता है| ‘चर’ का मतलब है ‘गमन’ संचार | इसलिए दिनानुदिन आकाश में जो ग्रह जाते हैं तब उस राशि में गोचरवश ग्रह हुआ, यह कहते है जन्म-चक्र स्थिर है | इसमें ग्रहों की स्थिति जन्मकाल में है, परन्तु ग्रह स्थिर नहीं है, चलते रहते हैं | इसलिए जब जहाँ जाते हैं वहां पर उनकी स्थिति कही जाती है |
भचक्र में ये चलते रहते हैं और चक्र को पूरा करने पर फिर उसी मार्ग में दुबारा जाते हैं |इसलिए जब हम गोचर विचार कहते हैं तो जन्मकालिक ग्रह की स्थिति और ग्रह कहाँ जा रहे हैं, दोनों का ही विचार करते हैं |गोचर कुंडली फलादेश करते समय निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए –
१. ग्रह जब जन्म राशि से अथवा लग्न से बारहवें स्थान में जाते हैं तो अत्यधिक व्यय करते हैं, विशेष तौर पर उस समय जब दो या तीन ग्रह बारहवें स्थान में जाते हों|क्रूर ग्रह अधिक व्यय करते हैं | शुभ ग्रह अच्छे कार्यों में जैसे की विवाह, धर्म इत्यादि में व्यय करते हैं |
२. सूर्य, बुद्ध और शुक्र बारह राशियों का भ्रमण एक वर्ष में पूरा कर लेते हैं | ये ग्रह प्रायः एक राशि में एक मास तक रहते हैं | यदि जन्म के समय कोई ग्रह राशि में बलवान हो (अपने उच्च, मित्र अथवा अपनी ही राशि में) और किसी शुभ स्थान में भी बैठा हो तो गोचर में यदि वह किन्हीं अशुभ भावों में जाएगा तो भी उसका अधिक बुरा फल नहीं होगा |
यही फल उस समय भी समझना चाहिए जब ग्रह (जिसके गोचर का विचार किया जा रहा हो) अच्छे भाव का श्वामी हो या जन्म कुंडली में योगकारक हो |
३. यदि कोई ग्रह राशि ओर भाव में भी बलवान हो तो जब गोचर में शुभ स्थानों से जाता है तो अत्यधिक शुभ फल देता है |
४. यदि कोई ग्रह कमजोर हो (राशि और नवांश में नीच का हो या किसी शत्रु की राशि और नवांश में हो) और किसी क्रूर ग्रह के साथ बैठा हो या दृष्ट हो और उसपर किसी शुभ ग्रह की युति या दृष्टि न हो अथवा अशुभ स्थानों का श्वामी हो, अस्त हो तो गोचर में वह शुभ स्थानों में जाता हुआ भी विशेष शुभ फल नहीं देगा |
५. गोचर में यदि किसी ग्रह का क्रूर ग्रहों से योग हो या उसपर क्रूर ग्रहों की दृष्टि पड़े, तो गोचर में जाते हुए ग्रह का अच्छा फल कम हो जाता है और बुरा फल बढ़ जाता है| यदि कोई ग्रह गोचर में अस्त हो या अपनी नीच राशि या नीच नवांश में हो तो उसका भी इसी प्रकार फल होता है|
६. गोचर में जब किसी ग्रह का किसी शुभ ग्रह से योग होता है अथवा उसपर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि पड़ती है तो तो उस गोचर में जाते हुए ग्रह का अच्छा फल बढ़ जाता है और ख़राब फल कम हो जाता है|
उदाहरण के लिए मंगल यदि तीसरे स्थान में जा रहा हो और उसी समय शुक्र अथवा गुरु भी वहां जाएँ तो मंगल के शुभ फल को बढ़ाएंगे| इसके अलावा यदि मंगल नवम स्थान से जा रहा हो और उसपर गुरु की द्रष्टि पड़े तो मंगल का अशुभ फल कम हो जायेगा|
७. जब कोई ग्राह अपनी उच्च राशि या अपनी स्वयं की राशि या अपने नवांश या उच्च नवांश में से जाता है तो उसका अच्छा फल बढ़ता है और ख़राब फल कम हो जाता है
उदाहरण के लिए शनि के साढ़े सात वर्ष (साढ़े साती) ख़राब मानी गई है, परन्तु कन्या राशि वाले के लिए अंतिम ढाई वर्षों में शनि तुला में आयेगा| तुला राशि शनि का उच्च स्थान है इसलिए वहां पर शनि अधिक पीड़ा नहीं देगा|
८. शुभ ग्रह गोचर में जब वक्री होते हैं तो अधिक शुभ फल देते हैं| क्रूर ग्रहों के वक्री होने पर अत्यधिक अशुभ फल होता है|
९. सबसे अधिक शुभ अथवा अशुभ प्रभाव उस समय होता है जिस समय दो या अधिक ग्रह गोचर में वक्री हो जाएँ (शुभ ग्रह अथ्वा क्रूर ग्रह)
१०. क्रूर ग्रह अशुभ स्थानों में जाते हुए ज्यादा बुरा फल देंगे यदि जिस राशी में वे जा रहे है उस राशि में जन्म के समय कोई ग्रह बैठा हो तो भी अच्छा फल देते हैं|
उदहारण के लिए गुरु चौथे स्थान में जा रहा हो जहाँ सूर्य भी जन्म के समय है तो जिस समय गुरु सूर्य पर से जायेगा तो सूर्य अच्छा फल देगा जैसे उच्च स्थान, नए मित्र, नया कार्य, पिता का या स्वयं का धन इत्यादि|
१२. यदि जन्म के समय किसी भाव पर शुभ ग्रहों की द्रष्टि हो तो गोचर में क्रूर ग्रह भी उस भाव में जाते हुए बहुत बुरा फल नहीं देंगे|
१३. जन्म के समय लग्न में बैठा हुआ ग्रह गोचर में जिस भाव में जायेगा उस भाव का फल देगा|
१४. जो अच्छा या बुरा फल ग्रह जन्म-कुंडली में बताता है वह फल उस समय होगा जब ग्रह लग्न में ले जा रहा हो|
१५. गोचर विचार में सूर्य और मंगल प्रथम १० अंश के भीतर, गुरु और शुक्र १० से २० अंश के भीतर तथा बुध सम्पूर्ण राशि में अपना फल देते हैं|
१६. यह गोचर में किसी प्रकार का अच्छा या बुरा फल देगा यह इस बात पर निर्भर करता है की वह ग्रह जन्म-कुंडली में-
(अ) किन भावों का स्वामी है ?
(ब) किस स्थान में बैठा हुआ है ?
(स) किस वस्तु का कारक है ?
(द) गोचर में किस भाव में जा रहा है ?
यहाँ भाव का विचार जन्म राशि से, जन्म लग्न से तथा ग्रह के मूल स्थान से करना चाहिए |

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