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: मन को वश में करने का सरलतम उपाय

इस व्यवहार-जगत् में जहाँ मनुष्य को अनेक विरोधी तत्त्वों से संघर्ष करना होता है उसके लिए मन को वश में कर पाना अत्यन्त कठिन हो जाता है। कृत्रिम रूप में मनुष्य अपने मित्र तथा शत्रु दोनों के प्रति मानसिक संतुलन स्थापित कर सकता है, किन्तु अंतिम रूप में कोई भी संसारी पुरुष ऐसा नहीं कर पाता, क्योंकि ऐसा कर पाना वेगवान वायु को वश में करने से भी कठिन है।
प्रत्येक व्यक्ति इस भौतिक शरीर रूपी रथ पर आरूढ है और बुद्धि इसका सारथी हैं। मन लगाम है और इन्द्रियाँ घोड़े हैं। इस प्रकार मन तथा इन्द्रियों की संगति से यह आत्मा सुख तथा दुःख का भोक्ता है। ऐसा बड़े-बड़े चिन्तकों का कहना है।
यद्यपि बुद्धि को मन का नियन्त्रण करना चाहिए, किन्तु मन इतना प्रबल तथा हठी है कि इसे अपनी बुद्धि से भी जीत पाना कठिन हो जाता है जिस प्रकार कि अच्छी से अच्छी दवा द्वारा कभी-कभी रोग वश में नहीं हो पाता। ऐसे प्रबल मन को योगाभ्यास द्वारा वश में किया जा सकता है, किन्तु ऐसा अभ्यास कर पाना अर्जुन जैसे संसारी व्यक्ति के लिए कभी भी व्यावहारिक नहीं होता, तो फिर आधुनिक मनुष्य के सम्बन्ध में क्या कहा जाय? यहाँ पर प्रयुक्त उपमा अत्यन्त उपयुक्त है – आंधी को रोक पाना कठिन होता है और उच्छृंखल मन को रोक पाना तो और भी कठिन है।
मन को वश में रखने का सरलतम उपाय, जिसे भगवान चैतन्य महाप्रभु ने सुझाया है, यह है कि समस्त दैन्यता के साथ मुक्ति के लिए “हरे कृष्ण” महामन्त्र का कीर्तन किया जाय।
विधि यह है – स वै मनः कृष्ण पदारविन्दयोः – मनुष्य को चाहिए कि वह अपने मन को पूर्णतया कृष्ण में लगाए। तभी मन को विचलित करने के लिए अन्य व्यस्तताएँ शेष नहीं रह जाएँगी।

प्रेम से बोलो “जय श्री कृष्ण..
विनम्र निवेदन …एक बार श्रीमद्भगवद्गीता अवश्य पढ़े अपने जीवन में । 🙏
परम भगवान श्री कृष्ण सदैव आपकी स्मृति में रहें
श्री कृष्ण शरणं मम
ये महामंत्र नित्य जपें और खुश रहें। 😊
सदैव याद रखें और व्यवहार में आचरण करें। ईश्वर दर्शन अवश्य होंगे।


: ‼भगवान के लिए ही रोयें‼

हरिबाबा से एक भक्त ने कहाः “महाराज ! यह अभागा, पापी मन रूपये पैसों के लिए तो रोता पिटता है लेकिन भगवान अपना आत्मा हैं, फिर भी आज तक नहीं मिलि इसके लिए रोता नहीं है। क्या करें ?”

हरिबाबाः “रोना नहीं आता तो झूठमूठ में ही रो ले।”

“महाराज ! झूठमूठ में भी रोना नहीं आता है तो क्या करें ?”

महाराज दयालु थे। उन्होंने भगवान के विरह की दो बातें कहीं। विरह की बात करते-करते उन्होंने बीच में ही कहा कि “चलो, झूठमूठ में रोओ।” सबने झूठमूठ में रोना चालू किया तो देखते-देखते भक्तों में सच्चा भाव जग गया।

झूठा संसार सच्चा आकर्षण पैदा करके चौरासी के चक्कर में डाल देता है तो भगवान के लिए झूठमूठ में रोना सच्चा विरह पैदा करके हृदय में प्रेमाभक्ति भी जगा देता है।

अनुराग इस भावना का नाम है कि “भगवान हमसे बड़ा स्नेह करते हैं, हम पर बड़ी भारी कृपा रखते हैं। हम उनको नहीं देखते पर वे हमको देखते रहते हैं। हम उनको भूल जाते हैं पर वे हमको नहीं भूलते। हमने उनसे नाता-रिश्ता तोड़ लिया है पर उन्होंने हमसे अपना नाता-रिश्ता नहीं तोड़ा है। हम उनके प्रति कृतघ्न हैं पर हमारे ऊपर उनके उपकारों की सीमा नहीं है। भगवान हमारी कृतघ्नता के बावजूद हमसे प्रेम करते हैं, हमको अपनी गोद में रखते हैं, हमको देखते रहते हैं, हमारा पालन-पोषण करते रहते हैं।’ इस प्रकार की भावना ही प्रेम का मूल है। अगर तुम यह मानते हो कि ‘मैं भगवान से बहुत प्रेम करता हूँ लेकिन भगवान नहीं करते’ तो तुम्हारा प्रेम खोखला है। अपने प्रेम की अपेक्षा प्रेमास्पद के प्रेम को अधिक मानने से ही प्रेम बढ़ता है। कैसे भी करके कभी प्रेम की मधुमय सरिता में गोता मारो तो कभी विरह की।

दिल की झरोखे में झुरमुट के पीछे से जो टुकुर-टुकुर देख रहे हैं दिलबर दाता, उन्हें विरह में पुकारोः ‘हे नाथ !…. हे देव !… हे रक्षक-पोषक प्रभु !….. टुकुर-टुकुर दिल के झरोखे से देखने वाले देव !…. प्रभुदेव !… ओ देव !… मेरे देव !…. प्यारे देव !….. तेरी प्रीति, तेरी भक्ति दे….. हम तो तुझी से माँगेंगे, क्या बाजार से लेंगे ? कुछ तो बोलो प्रभु !…’

कैसे भी उन्हें पुकारो। वे बड़े दयालु हैं। वे जरूर अपनी करूणा-वरूणा का एहसास करायेंगे।

तुलसी अपने राम को रीझ भजो या खीज।

भूमि फैंके उगेंगे, उलटे सीधे बीज।।

विरह से भजो या प्रेमाभक्ति से, जप करके भजो या ध्यान करके, उपवास, नियम-व्रत करके भजो या सेवा करके, अपने परमात्मदेव की आराधना ही सर्व मंगल, सर्व कल्याण करने वाली है।।
‼❤‼❤‼❤‼❤‼❤‼

   *हमारे सनातन धर्म में जितने भी ग्रंथ हैं उनमें हमारे जीवन की सभी समस्याओं का समाधान निहित हैं।* 

   *समाज सदा दो वर्गों में बँटा हुआ है, जैसे धनवान-निर्धन, विद्वान-अज्ञ आदि। दोनों की अभिरुचि में अंतर होता है। एक विद्वान जिस वस्तु का आदर करता है, साधारण व्यक्ति उसे समझ नहीं पता।* 

 *बुद्धिमान व्यक्ति बुद्धिप्रधान होता है जबकि साधारण व्यक्ति मनःप्रधान। साधारण व्यक्ति को मनोरंजन चाहिए जबकि बुद्धिनिष्ठ को बौद्धिक वस्तु। हमारे ग्रन्थो की विशेषता है कि वह दोनों प्रकार के व्यक्तियों की अभिरुचि को तुष्ट करती है।*

जय श्री कृष्ण🙏🙏
: मनुष्य इतना अशांत इतना असहिष्णु इतना बैचेन क्यों है ?? उसे स्वार्थ और मोह ने इतना अंधा क्यों कर रखा है….क्योंकि मनुष्य का सारा चिंतन अहंकार पर केंद्रित है और धन उसके मूल में है ।मेरा धर्म , मेरा परमात्मा, मेरा देश, मेरा परिवार, मेरा घर सिर्फ मैं और , मैं , । सारा जीवन वह ,मैं , इकट्ठा करने में लगा देता है और मर कर तो मरता ही है ,जीते जी भी मर जाता है अहंकार को भरने का बहाना चाहिए आदमी को और अहंकार कभी भरता देखा नहीं गया । इसकी भुख बहुत ही बड़ी है वह अपने मालिक को ही खा जाता है ।
यदि आपके पास अहंकार भाव है तो समझ लेना फिर आपको किसी और शत्रु की जरुरत ही नही क्योंकि अहंकार वो सब काम कर देगा शायद जो काम कोई महाशत्रु भी न कर सके। अहंकार बड़ा ही शक्तिशाली होता है।

Զเधॆ Զเधॆ🙏 : प्रकृति के तीन कड़वे नियम जो सत्य है

1-: प्रकृति का पहला नियम
यदि खेत में बीज न डालें जाएं तो कुदरत उसे घास-फूस से भर देती हैं…!!
ठीक उसी तरह से दिमाग में सकारात्मक विचार न भरे जाएँ तो नकारात्मक विचार अपनी जगह बना ही लेती है…!!

2-: प्रकृति का दूसरा नियम
जिसके पास जो होता है…!!
वह वही बांटता है….!!
सुखी सुख बांटता है…
दुःखी दुःख बांटता है..
ज्ञानी ज्ञान बांटता है..
भ्रमित भ्रम बांटता है..
भयभीत भय बांटता हैं……!!

3-: प्रकृति का तिसरा नियम
आपको जीवन से जो कुछ भी मिलें उसे पचाना सीखो क्योंकि भोजन न पचने पर रोग बढते है…!
पैसा न पचने पर दिखावा बढता है…!
बात न पचने पर चुगली बढती है…!
प्रशंसा न पचने पर अंहकार बढता है….!
निंदा न पचने पर दुश्मनी बढती है…!
राज न पचने पर खतरा बढता है…!
दुःख न पचने पर निराशा बढती है…!
और सुख न पचने पर पाप बढता है…!

बात कड़वी बहुत है पर सत्य है
😱😱😱

किसी से बदला लेने का भाव/विचार हमारे ही तन/मन पर विपरीत प्रभाव डालता है और हम स्वयं भी इस आग में जलने लगते हैं। इस प्रकार की जलन/व्याकुलता में दूसरों के साथ-साथ अपना भी नुकसान करने लगते हैं, जैसे तीली दूसरे को जलाने से पूर्व खुद जलती है। दूसरा कार्य/व्यवहार के लिए अन्तत: स्वयं उतरदायी होगा। दूसरे से ‘बदला लेने के भाव’ को महत्त्व देने के बजाय, हमें ‘स्वयं में बदलाव/समझ/आत्मविश्लेषण के मार्ग की ओर अग्रसरित करना ही श्रेयस्कर होगा। सहनशीलता और समत्व के शीतल जल से जितनी जल्दी हो सके इस आग को रोकना ही बुद्धिमत्ता है। बदले की भावना हमारे समय को ही नष्ट नहीं करती, अपितु हमारे स्वास्थ्य तक को चौपट कर जाती है। दुनिया को बदल पाना बड़ा मुश्किल/असम्भव है, इसलिए स्वयं को बदलने में ऊर्जा लगाना ही सुखी/सफल होने का एक मात्र उपाय है।

जय श्री कृष्ण🙏🙏

आज का दिन शुभ मंगलमय हो।
: कुछ चीजें हमें अच्छी लगती हैं और कुछ चीजें हमारे लिए अच्छी होती हैं। यह जरुरी नहीं कि जो चीजें हमें अच्छी लगें वो हमारे लिए भी अच्छी हों और जो चीजें हमारे लिए अच्छी हों वो हमें अच्छी भी लगें।

    *बहुत प्रयत्न करने के बावजूद भी यदि कोई काम न बन सके तो समझ लेना कि प्रभु की नज़रों में वह जरुरी नहीं, अन्यथा प्रयत्न करने वाले को यह प्रकृति पुरुस्कृत अवश्य करती है। जिस प्रकार एक माँ अपने बीमार बालक के लिए उसके मना करने व चीखने चिल्लाने के बावजूद भी जबरदस्ती उसके आरोग्य वर्द्धन के लिए कडवी दवा का घूँट पिला देती है।*

    *वह ये नहीं देखती कि इसे क्या अच्छा लगता है अपितु यह देखती है कि इसके लिए क्या अच्छा होता है। ठीक इसी प्रकार ईश्वर वो नहीं देते जो हमें अच्छा लगता है अपितु वो देते हैं जो हमारे लिए अच्छा होता है। इसलिए ईश्वरीय विधान पर हमेशा भरोसा रखो।*

Զเधॆ Զเधॆ🙏🙏
: राधे राधे ॥ आज का भगवद चिन्तन ॥

माना कि जीवन का उद्देश्य परम शांति को प्राप्त करना है मगर बिना संघर्ष के जीवन में शांति की प्राप्ति हो पाना कदापि सम्भव नहीं है। शांति मार्ग नहीं अपितु लक्ष्य है। बिना संघर्ष पथ के इस लक्ष्य तक पहुँचना असम्भव है।
जो लोग पूरे दिन को सिर्फ व्यर्थ की बातों में गवाँ देते हैं वे रात्रि की गहन निद्रा के सुख से भी वंचित रह जाते हैं। मगर जिन लोगों का पूरा दिन एक संघर्ष में, परिश्रम में, पुरुषार्थ में गुजरता है वही लोग रात्रि में गहन निद्रा और गहन शांति के हकदार भी बन जाते हैं।
जीवन भी ठीक ऐसा ही है। यहाँ यात्रा का पथ जितना विकट होता है लक्ष्य की प्राप्ति भी उतनी ही आनंद दायक और शांति प्रदायक होती है। मगर याद रहे लक्ष्य श्रेष्ठ हो, दिशा सही हो और प्रयत्न में निष्ठा हो फिर आपके संघर्ष की परिणिति परम शांति ही होने वाली है।

🙏 जय श्री राधे कृष्णा 🙏

     *ऐसे कर्म न करो जिससे कि आपको दूसरों की नजरों से गिरना पड़े क्योंकि पहाड़ से गिरकर फिर उठा जा सकता है मगर नजरों से गिरकर उठना आसान नहीं।*

      *जिस प्रकार महल बनाने में वर्षों लग जाते हैं मगर उसे ध्वस्त करने के लिए एक क्षण पर्याप्त होता है। ठीक इसी प्रकार चरित्र निर्माण में तो वर्षों लग जाते हैं मगर चरित्र के पतन होने में भी एक क्षण मात्र लगता है।*

      *हर कार्य को करने से पहले उसके परिणाम का विचार कर लेना यह बुद्धिमानों का लक्षण है। और कार्य कर लेने के बाद परिणाम पर विचार करना मूर्खों का। अत: परिणाम के बाद नहीं अपितु कार्य करने के पहले सोचने की आदत बनाओ। ताकि आपकी गिनती भी बुद्धिमानों में हो सके।*

जय श्री कृष्ण🙏🙏
: मनुष्य का अगर कुछ अपराध हुआ है तो वह यही हुआ है कि उसने
संसार के साथ अपना सम्बन्ध मान लिया और भगवान् से विमुख हो गया।
अब उस अपराध को दूर करने के लिये वह अपनी ओर से संसार का सम्बन्ध तोड़कर भगवान् के सम्मुख हो जाय। सम्मुख हो जाने पर जो कुछ
कमी रह जायगी, वह भगवान् की कृपा से पूरी हो जायगी। अब आगे का
सब काम भगवान् कर लेंगे।
.Զเधॆ Զเधॆ🙏🙏
: कुल्लू में तापमान 33℃ है , ऋषिकेश में तापमान 38℃ है ,

नैनीताल में 26℃ है , डलहौजी में भी 25 से 30 के बीच मे है ,
कुफरी में 23℃ है

शिमला में 25℃ है ,
मसूरी में भी 26 है ,

इन सभी हिल स्टेशन्स के तापमान लगातार बढ़ रहें , दिल्ली से शिमला के लिए रोज हजारों लोग निकलते हैं

कार उठाई चल दिये , और जो लंबा जाम लगता है वहाँ जिसकी कोई हद नही ,

शिमला को दिल्ली बनाने का प्रोसेस लगातार जारी है ,

हिल स्टेशन्स का जब ये हाल है तो भैया UP बिहार दिल्ली राजस्थान में 50+ तापमान पहुँचना नार्मल है ।

AC घर घर लग रही , AC पूरे मोहल्ले को गैस की भट्ठी में झोंक देती है , बिना AC आप रह भी नही सकते,

हम अपनी मौत अपने हाँथो लिख रहे , गंगा सूख गई है , ग्लेशियर में बर्फ ही नही है पिघलेगा कहाँ से ।

गर्मी पड़ती है हम झुंझलाते हैं , जिनका फील्ड वर्क है उनकी हालत खराब है , एक फेरी वाला जो 10 चक्कर लगाता था एक नही लगा पा रहा ,

सरकार भी सस्ती AC बाँटने निकली है ,
दुबई जो की रेगिस्तान में बसा है वहाँ तापमान 42℃ है ,

और हमारे यहाँ 50 पहुँच रहा ,

सरकारों को इस ओर ध्यान देना चहिये , 50 के बाद तो AC भी काम नही करती 55 के बाद खून उबल जाएगा सब मर जाएँगे,

एक बार ऐसा हुआ भी है , तब AC का सहारा नही था , 80 के दशक में लोग गंगा में कूद के मर गए थे ।

इस बार ठंडी में कुहरा का दर्शन नही हुआ , वरना पूरे दिन कुहरा पड़ता था ,

सावन की झड़ी तो लोग भूल ही चुके हैं जब हफ़्तों महीनों लगातार बारिश होती थी रिमझिम रिमझिम ।

एक AC और लाइये
चलाइये
सो जाइये !!
😑

विज्ञान और प्रकृति की लड़ाई में विजेता सदैव प्रकृति होगी लिख के ले लीजिए ।

Happy world environment day !!🌻🌻🌻🌻🌻

 तंबाकू में एक प्रकार का नहीं, चार प्रकार का विष पाया जाता है -- *निकोटीन, कोलटार, आर्सेनिक और कार्बन मॉनोऑक्साइड।* अस्तु, उसका सेवन करने से इन विषों का शरीर में पहुँचना स्वाभाविक ही है।
  जहाँ आध्यात्मिक प्रगति के लिए मनुष्य का हर प्रकार से निर्व्यसन एवं निर्विकार होना अनिवार्य है; वहाँ तंबाकू जैसा मादक पदार्थ मनुष्य को अनिवार्य रूप से शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक तीनों प्रकार से मंद एवं मलीन बनाता रहता है। 
  निराहार व्रत, उपवासों में भी तंबाकू की तलब रोके नहीं रुकती; पूजा-पाठ में एकाग्रता नहीं आने देती और ध्यान-धारणा में भी उसकी आवश्यकता व्यवधान डालती है, जिससे साधक के सारे नियम-निर्वाह भंग एवं भ्रष्ट हो जाते हैं। इस तंबाकू का तुच्छ व्यसन मनुष्य की आध्यात्मिक यात्रा में बहुत बड़ा अवरोध बना रहता है।
  अस्तु, तन, मन, धन के साथ बुद्धि-विवेक तथा आत्मा का ह्रास करने वाली तंबाकू को संकल्पपूर्वक त्यागकर मनुष्य को आत्मविश्वास, आत्मबल एवं मानसिक महानताओं की वृद्धि के साथ मधुर एवं मांगलिक जीवन का द्वार खोल लेना चाहिए।
               - युग निर्माण योजना 


                ✍🏼🌺

: 🙏 आजका सदचिंतन 🙏
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*मनुष्य प्रसन्न एवं संतुष्ट कैसे रहता”
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मनुष्य एक चेतन प्राणी है इसलिए वह भौतिक वस्तुओं से पूरी तरह संतुष्ट नहीं होता। उसे भावनात्मक रूप से भी संतुष्टि चाहिए। यह उसे परिवार, समाज, दोस्तों और अन्य लोगों के साथ रहकर मिलती है। स्नेह, सहानुभूति, सह्रदयता के वातावरण में वह अपने आप को प्रसन्न एवं संतुष्ट अनुभव करता है।
आत्मीयता का भाव उसे बहुत अधिक प्रसन्नता और आशा से भर देता है। सहानुभूति का संबल पाकर निराश रोगी भी चमत्कारिक रुप से ठीक होते देखे गए हैं।
दुसरो के प्रति आश्वासन के शब्दों से सहानुभूति रखने का प्रयास करें।

      *विचार क्रांति अभियान*

🙏 सबका जीवन मंगलमय हो 🙏
: बिना तप के कुछ भी प्रप्त नहीं होता है। जो तपता है वही चमकता हैं। साधक को साधना निष्ठापूर्वक करना चाहिए।

 *बिना कुछ किये तो इस संसार मे पैसे भी प्राप्त नहीं होते। उसके लिए भी श्रम करना पड़ता है तो फिर बिना भजन के भगवान कैसे मिल सकते हैं।*

 *एक स्वांस छोड़े तो ही दूसरी स्वांस मिलती हैं। प्रभु का चिंतन तो प्रारम्भिक अवस्था से ही करना चाहिए। क्योंकि यही जीवन में और जीवन के बाद भी साथ रहेगा।*

🚩🌸 राम राम जी🌸🚩👏🏼🌹🙏🏼
: ✍एक महात्मा ने पूछा कि सबसे ज्यादा बोझ कौन सा जीव उठा कर घुमता है ?…….. किसी ने कहा गधा तो किसी ने बैल तो किसी ने ऊंट अलग अलग प्राणीयो के नाम बताए। लेकिन महात्मा किसी के भी जवाब से संतुष्ट नहीं हुए।

        *महात्मा ने हंसकर कहा - गधे, बैल और ऊट के ऊपर हम एक मंजिल तक बोझ रखकर उतार देते हैं लेकिन, इंसान अपने मन के ऊपर मरते दम तक विचारों का बोझ लेकर घूमता है किसी ने बुरा किया है उसे न भूलने का बोझ, आने वाले कल का बोझ, अपने किये पापों का बोझ इस तरह कई प्रकार के बोझ लेकर इंसान जीता है।*

          *जिस दिन इस बोझ* *को इंसान उतार देगा तब सही मायने मे जीवन जीना सीख जाएगा।*

Զเधॆ Զเधॆ🙏🙏
: #पंचवटी_वाटिका
पीपल, बेल, वट, आंवला व अशोक ये पांचो वृक्ष पंचवटी कहे गये हैं। इनकी स्थापना पांच दिशाऒं में करनी चाहिए। पीपल पूर्व दिशा में, बेल उत्तर दिशा में, वट (बरगद) पश्चिम दिशा में, आंवला दक्षिण दिशा , आग्नये कोण में अशोक की तपस्या के लिए स्थापना करनी चाहिए । पांच वर्षों के पश्चात चार हाथ की सुन्दर वेदी की स्थापना बीच मॆं करनी चाहिए । यह अनन्त फलों कॊ देने वाली व तपस्या का फल देने प्रदान करने वाली है।

पंचवटी का महत्व
1 औषधीय महत्व
इन पांच वृक्षों में अद्वितीय औषधीय गुण है । आंवला विटामिन “c” का सबसे समृद्ध स्त्रोत ह एवं शरीर को रोग प्रतिरोधी बनाने की महौषधि है। बरगद का दूध बहुत बलदायी होता है। इसके प्रतिदिन प्रयोग से शरीर का कायाकल्प हो जाता है। पीपल रक्त विकार दूर करने वाला वेदनाशामक एवं शोथहर होता है। बेल पेट सम्बन्धी बीमारियों का अचूक औषधि है तो अशोक स्त्री विकारों को दूर करने वाला औषधीय वृक्ष है।
इस वृक्ष समुह में फलों के पकने का समय इस प्रकार निर्धारित है कि किसी न किसी वृक्ष पर वर्ष भर फल विधमान रहता है। जो मौसमी रोगों के निदान हेतु सरलता से उपलब्ध होता है। गर्मी में जब पाचन सम्बन्धी विकारों की प्रबलता होती है तो बेल है। वर्षाकाल में चर्म रोगों की अधिकता एवं रक्त विकारों में अशॊक परिपक्व होता है। शीत ऋतु में शरीर के ताप एवं उर्जा की आवश्यकता को आंवला पूरा करता है
2 पार्यावरणीय महत्व
बरगद शीतल छाया प्र्दान करने वाला एक विशाल वृक्ष है। गर्मी के दिनों में अपरान्ह में जब सुर्य की प्रचन्ड किरणें असह्य गर्मी प्रदान करत हैं एवं तेज लू चलता है तो पचवटी में पश्चिम के तरफ़ स्थित वट वृक्ष सघन छाया उत्पन्न कर पंचवटी को ठ्न्डा करत है।
पीपल प्रदुषण शोषण करने वाला एवं प्राण वायु उत्पन्न करन वाला सर्वोतम वृक्ष है
अशोक सदाबहार वृक्ष है यह कभी पर्ण रहित नहीं रहता एवं सदॆव छाया प्रदान करत है।
बेल की पत्तियों, काष्ठ एवं फल में तेल ग्रन्थियां होती है जो वातावरण को सुगन्धित रखती हैं।
पछुआ एवं पुरुवा दोनों की तेज हवाऒं से वातावरण में धूल की मात्रा बढती है जिसकॊ पुरब व पश्चिम में स्थित पीपल व बरगद के विशाल पेड अवशोशित कर वातावरण को शुद्ध रखते हैं।
3 धार्मिक महत्व
बेल पर भगवान शंकर का निवास माना गया है तो पीपल पर विष्णु एवं वट वृक्ष पर ब्रह्मा का। इस प्रकार प्रमुख त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश का पंचवटी में निवास है एवं एक ही स्थल पर तीनो के पूजन का लाभ मेलता है।
4 जैव विविधता संरक्षण
पंचवटी में निरन्तर फल उपलब्ध होने से पक्षियों एवं अन्य जीव जन्तुऒं के लिए सदैव भोजन उपलब्ध रहता है एवं वे इस पर स्थाई निवास करते हैं। पीपल व बरगद कोमल काष्टीय वृक्ष है जो पक्षियॊं के घोसला बनाने के उपयुक्त है ।
हमें संकल्प लेना चाहिये कि अपने जीवनकाल में एक पंचवटी स्थापित ज़रूर करे और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को प्रेरित करे । इस वर्ष राजस्थान में गर्मा ने १२५ वर्षों का रिकोर्ड तोड़ दिया , तापमान 52 डिग्री हो चुका है । अभी भी नहीं संभले तो फिर बहुत देर हो जायेगी और पृथ्वी को आग का गोला बनते देर नहीं लगेगी । तो आपसे अपील है कि आज से अभी से शुभ कार्य की शुरूवात करे
: डॉ. माइकल हॉलिक विटामिन-डी-शोध के लिए दुनिया में सुख्यात और कुख्यात , दोनों हैं।

वे बॉस्टन में एंडोक्रायनोलॉजी के प्रोफ़ेसर हैं। विटामिन-डी पर उनके अनेक शोधपत्र हैं , किताबें हैं। अपने भाषणों में और लेखों में विटामिन-डी की महामारी के बारे में वे लोगों को बताते हैं। विटामिन-डी की कमी को वे डायनासॉरों के विलुप्तीकरण तक ले जाते हैं। कहीं ये विशाल छिपकलियाँ इसलिए तो लुप्त नहीं हुईं कि उन्हें सूरज का पर्याप्त प्रकाश न मिलने से उन्हें रिकेट्स और ऑस्टियोमलेशिया रोग हो गये , जो विटामिन-डी की कमी से होते हैं ? ध्यान रहे कि विटामिन-डी का निर्माण तमाम जीव-जन्तु अपनी त्वचा के नीचे करते हैं और चूँकि इसका निर्माण स्वतः शरीर में किया जा सकता है , इसलिए अब इसे विटामिन की जगह हॉर्मोन माना जाने लगा है।

विटामिन-डी के मेडिकल-प्रेस्क्रिप्शन संसार-भर में बढ़े हैं। पारम्परिक तौर पर जहाँ इस विटामिन की कमी से केवल हड्डियों के स्वास्थ्य का सम्बन्ध समझा जाता था , वहाँ अन्य अन्दरूनी अंगों की बीमारियों से भी इसका सम्बन्ध शोधपत्रों में सामने आया है। नतीजन अमेरिका में ही नहीं , पूरी दुनिया में विटामिन डी की जाँच कराने और उसे प्रेस्क्राइब करने की मुहिम-सी चल पड़ी है।

बड़े डॉक्टरों एवं वैज्ञानिकों के लिए अन्तरात्मा या कॉन्शेन्स की बात छोटों से अधिक महत्त्व रखती है। ( यह बात हर उच्चस्तरीय व्यक्ति पर लागू होती है। ) वे जो कह देते हैं या प्रस्तुत कर देते हैं , पत्थर की लकीर की तरह केवल रोगी ही नहीं मानते , उनके साथी-चिकित्सक भी स्वीकार कर लेते हैं। ऐसे में डॉक्टर हॉलिक के कारण अमेरिका में और फिर पूरे संसार में विटामिन-डी की जाँच और उसके अनुसार इसे सप्लीमेंट करने का एक अन्धा दौर चल पड़ा है।

विज्ञान अब वह विज्ञान नहीं , जब कोई वैज्ञानिक कमरे में बैठकर , बाग़ में लेटकर और मीनार पर चढ़ कर कोई प्रयोग कर लेता था। कुछ गणितीय समीकरणों से जूझता था और एक नयी जानकारी सामने ले आता था। यद्यपि तब भी राजे-महाराजे वैज्ञानिकों के शोधों को प्रोत्साहन देते हुए उन्हें अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करते थे , लेकिन तब वैज्ञानिक विज्ञान के लिए उतना रुपयों पर उतना निर्भर नहीं रहता था , जितना वह आज हो गया है।

आधुनिक विज्ञान को शोध के लिए बेशुमार पैसे चाहिए और वह सरकारें देती हैं अथवा उद्योगपति। बढ़ते निजीकरण के दौर में अधिकाधिक शोध फ़ार्मा-कम्पनियाँ स्पॉन्सर करा रही हैं। बाज़ार के सर्वत्र चलन को देखते हुए जनता यह कैसे मान ले कि अमुक दवा या अमुक जाँच में उसके हित को सर्वोपरि रखा गया है और मुनाफ़े को बाद में जगह दी गयी है ? जब साबुन-तेल-मंजन-अंडरवीयर-लिप्स्टिक-बिस्कुट में व्यापारी जनता के स्वास्थ्य को तरजीह नहीं देता , तो क्या वह दवाओं के सम्बन्ध में हो रहे शोधों के नतीजों में छेड़छाड़ न करता होगा ?

विटामिन-डी बनाने वाली कम्पनियों से , विटामिन-डी की जाँच करने वाली पैथोलॉजी-लैबों से और टैनिंग ( यानी साँवला ) करने वाले सैलूनों से डॉ.हॉलिक को ‘लाभ’ मिले , इसपर पूरे अमेरिका में चर्चा है। समय ही यह तय करेगा कि विटामिन-डी के सम्बन्ध में डॉ.हॉलिक के भीतर विज्ञान और अन्तरात्मा की आवाज़ में कितना साम्य , कितना तादात्म्य था। साइंस का पौधा उन्होंने अपने कॉन्शेन्स की पवित्र मिट्टी पर रोपा था अथवा निजी स्वार्थों-लाभों के कीचड़ पर।

अब हो क्या रहा है ? लोग अपने मन से विटामिन-डी की जाँच कराने लगे हैं। उन्हें यह नकली जागरूकता बेची जा रही है , जैसे बिलावजह-अकारण के हेल्थ-पैकेज बेचे जा रहे हैं। लक्षण कोई नहीं , केवल विटामिन-डी लो है। अथवा लक्षण हैं भी , तो वे विटामिन-डी की कमी से सम्बद्ध नहीं जान पड़ते। अब वह व्यक्ति डॉक्टरों के चक्कर लगा रहा है , परेशान है। डॉक्टर उसे विटामिन-डी चला रहे हैं। व्यक्ति खा रहा है। उसे लग रहा है कि वह ठीक हो रहा है। लेकिन जो लक्षण थे , वे तो अब भी जस-के-तस हैं !

भय की जागरूकता जब व्यापारी के हाथ लग जाती है , तब उसे बेचकर वह बेतहाशा मुनाफ़ा निचोड़ता है। यह सच है कि विटामिन-डी की कमी होती है और उसके लिए इसे दवा के रूप में देना भी चाहिए , किन्तु जिस स्तर पर इसे दवा-कम्पनियाँ विज्ञान के नाम पर ले गयी हैं , उसपर से धुँधलका छाँटने के लिए ऐसे वैज्ञानिकों की ज़रूरत है जिनकी अन्तरात्मा कहीं गिरवी न हो।

: पर्यावरण शब्द का निर्माण दो शब्दों परि और आवरण से मिलकर बना है,जिसमें परि का मतलब है हमारे आसपास अर्थात जो हमारे चारों ओर है, और ‘आवरण’ जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की कुल इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं।
कहते हैं कि धरती के लगभग 71 फीसदी हिस्से में पानी है,अब सवाल ये हैं कि अगर ऐसा हैं तो फिर एक-एक बूंद पानी के लिए हम क्यो तरस रहें हैं क्यों मुहताज हैं ? आखिर कौन पी गया धरती का सारा पानी? शायद ये सवाल पूछने का हक हम इंसान को तो बिलकुल नहीं, क्योंकि इस अभूतपूर्व संकट के लिए आखिर जिम्मेदार भी तो हम ही है.धरती रहने के लिए थी लेकिन विकास और तरक्की के नाम पर इंसान धरती को ही खाने लगा. जमीन के टुकड़े से निकलने वाले पैसों की खनक ने इसे और स्वादिष्ट बना दिया. तालाब-कुएं पाट दिए गए. शहरों में तो और भी बुरा हाल है. ज़मीन के एक एक इंच पर क्रंक्रीट की परत बिछा दी गई. आखिर पानी ठहरे तो भी तो कहां? ऐसे में नदी एक उम्मीद थी लेकिन वो भी हमारी गंदगी ढोने का एक जरिया भर बन कर रह गई.उन्हें भी सती किया जा रहा हैं ।
अब आप देखिए दुनिया में हर 1 मिनटमें एक बच्चा गंदा पानी पीने से मर जाता है. और हम खास दिन पर बधाई देने का चलन में ही सिर्फ व्यस्त रहते है लेकिन हर डेढ़ मिनट में एक बच्चे की मौत का आंकड़ा अर्थ डे को हैप्पी वाले एहसास से वंचित कर देता है. वक्त खुश होने का है भी नहीं, यह वक्त है विकास के नाम पर प्रकृति के साथ अब तक किए गए अनगिनत पापों के प्रायश्चित करने का।
कल्पना कीजिए कि जीव-जंतु, पेड़-पौधे, जिनके पास सोचने की समझने की शक्ति नहीं वो कभी भूख से, दरिद्रता से नहीं मरे तो फिर मानव कैसे मर सकता है! लेकिन मानव ने अपने सुविधा के लिए जंगल के जंगल साफ कर दिये. मानव की कृत्रिम भूख के चलते नदियों का वजूद खत्म होने की कगार पर है. कई नदियां तो जीते जी मर गईं. मानव ने अपने शरीर को सुविधा सम्पन्न बनाने के लिए वायुमंडल को जहरीला बना दिया. मानव के चलते जीव-जंतुओं की कई प्रजातियां, वनस्पतियों की असंख्य प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं। सड़को के विस्तार के नाम पर हरे-भरे जंगलों पर कसाईयो का आरा चलते कही भी देख लीजिए क्योंकि हमें चिंता भारत में होने वाले 33 बच्चे प्रति मिनट..1980 बच्चे प्रति घंटा…47520 बच्चे प्रति दिन और 1,73,44,800 बच्चे प्रति वर्ष,पैदा हो रही नई नस्लें,और फिलहाल 122 करोड़ लोगों के पास जिनपर आधार है. और 20% (25करोड़) जिनपर आधार नही हैं..4 करोड़ बांग्लादेशी, 1 करोड़ रोहिंग्या अर्थात डेढ़ सौ करोड़ लोगो के चलने की चिंता जो हैं पर इनके खाने की, इनके पानी की, इनके साँस लेने की चिंता बिलकुल नही हैं.. कहाँ से लायेगें इनके लिए हवा पानी और राशन.?
जरा सोचिए..और देखिए शहरो में बने प्लास्टिक के कचरे वाले पहाड़ो की तरफ और पहचानिए उस अन्तराष्ट्रीय साजिश को जिसमें इस देश के वो लोग भी शामिल हैं, जो दुनिया के सबसे बडे रईस होने का दंभ भरते हैं और आज इस हरे-भरे भारतवर्ष को कचरे के ढेर में परिवर्तित करने पर उतारूँ हैं वर्ना तो फिर झेलिए पर्यावरण की एक और प्रलय को ।
पर्यावरण दिवस उर्फ़ “अर्थ डे” की बहुत-बहुत बधाई।
: बुरे दिनो से बचने के चमत्कारिक उपाय एवं टोटके

यदि आप पर ग्रह-नक्षत्रों की बुरी दशा चल रही है या आप संकटों से घिरे हैं। यह भी हो सकता है कि पिछले कई माह से आप समस्याओं से घिरे हुए हैं। एक के बाद एक संकट आते ही रहते हैं और धन संपत्ति आदि सभी संकट में है तो यहां बताए गए अचूक टोटके आजमाएं।
टोटके कहने से अक्सर लोग यह समझते हैं कि यह कोई तांत्रिक या जादू टोने वाली बात होगी लेकिन यह ज्योतिष संबंधी सात्विक टोटके रहते हैं उन्हें आप उपाय कह सकते हैं। बहुत से लोग इसे आस्था और अंधविश्वास का मामला मानते हैं। लेकिन ये उपाय करने में किसी भी प्रकार कि कोई बुराई नहीं।
हनुमान चालीसा पढ़ना :
सबसे पहले आप हनुमान चालीसा नियम से पढ़ना शुरू कर दें। प्रतिदिन संध्यावंदन के साथ हनुमान चालीसा पढ़ना चाहिए। संध्यावंदन घर में या मंदिर में सुबह-शाम की जाती है। पवित्र भावना और शांतिपूर्वक हनुमान चालीसा पढ़ने से हनुमानजी की कृपा प्राप्त होती है, जो हमें हर तरह की जानी-अनजानी होनी-अनहोनी से बचाती है। हनुमान चालीसा पढ़ने के बाद हनुमानजी की कपूर से आरती करें।

हनुमानजी को चढ़ाएं चोला :5 बार हनुमानजी को चोला चढ़ाएं, तो तुरंत ही संकटों से मुक्ति मिल जाएगी। इसके अलावा प्रति मंगलवार या शनिवार को बढ़ के पत्ते पर आटे का दीया जलाकर उसे हनुमानजी के मंदिर में रख आएं। ऐसा कम से कम 11 मंगलवार या शनिवार को करें।

नारियल का उतारा :पानीदार एक नारियल लें और उसे अपने ऊपर से 21 बार वारें। वारने के बाद उसे किसी देवस्थान पर जाकर अग्नि में जला दें। ऐसा परिवार के जिस सदस्य पर संकट हो उसके ऊपर से वारें।

उक्त उपाय किसी मंगलवार या शनिवार को करना चाहिए। 5 शनिवार ऐसा करने से जीवन में अचानक आए कष्ट से छुटकारा मिलेगा। यदि किसी सदस्य की सेहत खराब है तो ऊसके लिए यह ऊपाय उत्तम है।

गाय, कुत्ते, ‍चींटी और पक्षियों को भोजन
खिलाएं :
वृक्ष, चींटी, पक्षी, गाय, कुत्ता, कौवा, अशक्त मानव आदि प्राणियों के अन्न-जल की व्यवस्था करने से इनकी हर तरह से दुआ मिलती है। इसे वेदों के पंचयज्ञ में से एक ‘वैश्वदेव यज्ञ कर्म’ कहा गया है। यह सबसे बड़ा पुण्य माना गया है।

मछलियों को खिलाएं :कागजों पर छोटे अक्षरों में राम-राम लिखें। अधिक से अधिक संख्या में ये नाम लिखकर सबको अलग-अलग काट लें। अब आटे की छोटी-छोटी गोलियां बनाकर एक-एक कागज उनमें लपेट लें और नदी या तालाब पर जाकर मछलियों और कछुओं को ये गोलियां खिलाएं। कछुओं और मछलियों को नित्य आटे की गोलियां खिलाएं और चीटियों को भुने हुए आटे में बूरा मिलाकर बनाई पंजीरी खिलाएं।

  • प्रतिदिन कौवे या पक्षियों को दाना डालने से पितृ तृप्त होते हैं।
  • प्रतिदिन चींटियों को दाना डालने से कर्ज और संकट से मुक्ति मिलती है।
  • प्रतिदिन कुत्ते को रोटी खिलाने से आकस्मिक संकट दूर रहते हैं।
  • प्रतिदिन गाय को रोटी खिलाने से आर्थिक संकट दूर होता है।

जल अर्पण :एक तांबे के लोटे में जल लें और उसमें थोड़ा-सा लाल चंदन मिला दें। उस पात्र को अपने सिरहाने रखकर रात को सो जाएं। प्रात: उठकर सबसे पहले उस जल को तुलसी के पौधे में चढ़ा दें। ऐसा कुछ दिनों तक करें। धीरे-धीरे आपकी परेशानी दूर होती जाएगी।
छाया दान करें :शनिवार को एक कांसे की कटोरी में सरसों का तेल और सिक्का (रुपया-पैसा) डालकर उसमें अपनी परछाई देखें और तेल मांगने वाले को दे दें या किसी शनि मंदिर में शनिवार के दिन कटोरी सहित तेल रखकर आ जाएं।

यह उपाय आप कम से कम पांच शनिवार करेंगे तो आपकी शनि की पीड़ा शांत हो जाएगी और शनिदेव की कृपा शुरू हो जाएगी।
जप से मिलेगी संकटों से मुक्ति:
सभी तरह के बुरे काम छोड़कर प्रतिदिन राम के नाम, गायत्री मंत्र या महामृत्युंजय मंत्र का जाप शुरू कर दें। ध्यान रहे इसमें से किसी एक मंत्र का जाप ही करें। यह जप आप सुबह या शाम को मंदिर में जाकर अच्छे से बैठकर ही करें।

कम से कम 51दिनों तक लगातार इसका जाप सुबह और शाम नियम से करें। इस जाप का असर जब शुरू होगा तो संकट भी धीरे धीरे दूर होने लगेगा। उक्त जाप के दौरान झूठ न बोलें, तामसिक भोजन न करें और किसी भी प्रकार का नशा न करें अन्यथा इसके बुरे परिणाम भी हो सकते हैं। राम का नाम तो आप दिनभर जप सकते हैं। कलियुग में राम के नाम से बड़ा कोई उपाय नहीं।

गुड़ और घी की धूप :
हिंदू धर्म में धूप देने और दीप जलाने का बहुत ज्यादा महत्व है। सामान्य तौर पर धूप दो तरह से ही दी जाती है। पहला गुग्गुल-कर्पूर से और दूसरा गुड़-घी मिलाकर जलते कंडे पर उसे रखा जाता है। यहां गुड़-घी व चावल से दी गई धूप का खास महत्व है।

गुड़ और घी की धूप प्रति ग्यारस, तेरस, चौदस, अमावस्य और पूर्णिमा के अलावा ग्रहण पर दें। यह गुड़ और घी की धूप देवताओं के निमित्त दें। किसी पूर्वज या अन्य के निमित्त न दें।

श्मशान में सिक्के डाल आएं:
यदि किसी की अर्थी में जाना हो जो लौटते वक्त श्मशान में कुछ सिक्के फेंकते हुए आ जाएं। पीछे पलटकर न देखें। इस उपाय से अचानक आई बाधा तुरंत ही समाप्त हो जाएगी और देवीय सहयोग मिलने लगेगा।

घर में रखें मछलीघर:
इसके लिए आप अपने घर में एक अलंकारिक फव्वारा रखें या एक मछलीघर जिसमें 8 सुनहरी व एक काली मछली हो रखें। इसको उत्तर या उत्तरपूर्व की ओर रखें। यदि कोई मछ्ली मर जाय तो उसको निकाल कर नई मछली लाकर उसमें डाल दें।
: : आज का विषय रहेगा कि दशाफल का निर्धारण कैसे करें।सबसे पहले ज्योतिर्विद की तरफ से आप सबको हाथ जोड़ के प्रणाम। विंशोत्तरी दशा काल निर्धारण का अति महत्वपूर्ण औजार है।कौन सी घटना कब घटेगी इसकी जानकारी भी ग्रहो की दशा से हमे पता चलती है। दशाफल अर्थात किस दशा में हमें क्या फल मिलेगा। दशाफल निर्धारण के लिए कुछ बातें ध्यान रखने योग्य हैं।।सर्वप्रथम तो यह कि किसी भी मनुष्य को वह ही फल मिल सकता है जो कि उसकी कुण्डली में निर्धारित हो। उदाहरण के तौर पर अगर किसी की कुण्डली में विवाह का योग नहीं है तो दशा कितनी भी विवाह देने वाली हो, विवाह नहीं हो सकता।
। कितना फल मिलेगा यह ग्रह की शुभता और अशुभता पर निर्भर करेगा। ग्रहों की शुभता और अशुभता कैसे जानें इसकी चर्चा हम इस लेख से अगले लेख में करेंगे।इस बात के लिए मैं आपको कुल 36 37 नियम बताऊंगा जो दशा के 15 एक बार में लिखूंगा और कुंडली देखने के 20 22 एक बार में ।मुझे खुद 100% यकीन है आप उन नियमो को पढ़ने के बाद ग्रहो की शुभता और कुंडली कैसे देखते है इसे जान जाओगे। उदाहरण के तौर पर अगर किसी दशा में नौकरी मिलने का योग है और दशा का स्वामी सभी 15 दिए हुए नियमों के हिसाब से शुभ है तो नौकरी बहुत अच्छे वेतन की मिलेगी। ग्रह शुभ नहीं है तो नौकरी मिली भी तो तनख्वाह अच्छी नहीं होगी। कोई भी दशा पूरी तरह से अच्छी या बुरी नहीं होती है। जैसे किसी व्यक्ति को किसी दशा में बहुत अच्छी नौकरी मिलती है परन्तु उसके पिता की मृत्यु हो जाती है तो दशा को अच्छा कहेंगे या बुरा? इसलिये दशा को अच्छा या बुरा मानकर फलादेश करने की बजाय यह देखना चाहिए कि उस दशा में क्या क्या फल मिल सकते हैं।ये मेरा अनुभव है।

किसी दशा में क्या फल मिलेगा?
दशाफल महादशा, अन्तर्दशा और प्रत्यन्तर्दशा स्वामी ग्रहों पर निर्भर करता है। ग्रहों कि निम्न स्थितियों को देखना चाहिए और फिर मिलाजुला कर फल कहना चाहिए –
1- ग्रह किस भाव में बैठा है। ग्रह उस भाव का फल देते हैं जहां वे बैठै होते हैं। यानी अगर कोई ग्रह सप्तम भाव में स्थित है और जातक की विवाह की आयु है तो उस ग्रह की दशा विवाह दे सकती है, यदि उसकी कुण्डली में विवाह का योग है।
2- ग्रह अपने कारकत्व के हिसाब से भी फल देते हैं। जैस सूर्य सरकारी नौकरी का कारक है अत: सूर्य की दशा में सरकारी नौकरी मिल सकती है। इसी तरह शुक्र विवाह का कारक है। समान्यत: देखा गया है कि दशा में भाव के कारकत्व ग्रह के कारकत्व से ज्यादा मिलते हैं।
3- ग्रह किन ग्रहों को देख रहा है और किन ग्रहों से दृष्ट है। दृष्टि का असर भी ग्रहों की दशा के समय मिलता है। दशा के समय दृष्ट ग्रहों असर भी मिला हुआ होगा।
4- सबसे महत्वपर्ण और अक्सर भूला जाने वाला तथ्य यह है कि ग्रह अपने नक्षत्र स्वामी से बहुत अधिक प्रभावित रहता है। ग्रह वह सभी फल भी देता है जो उपरोक्त तीन बिन्दुओं के आधार पर ग्रह का नक्षत्र स्वामी देगा। उदाहरण के तौर पर अगर सूर्य बुध के नक्षत्र में बैठा है।और बुध 7वे भाव मे बैठा है।तो सूर्य की दशा में बुध 7वे भाव को activate करेगा।मतलब सूर्य अपनी दशा में बुध का फल भी पूरे प्रभाव से देगा।और इस दशा में भी विवाह हो सकता है, क्योंकि सप्तम भाव विवाह का स्थान है। इसी तरह जब कोई ग्रह किसी के साथ युति में बैठा हो तो वो अपनी दशा में युति वाले ग्रह का भी फल देने में सक्षम होता है।
5- राहु और केतु उन ग्रहों का फल देते हैं जिनके साथ वे बैठे होते हैं और दृष्टि आदि से प्रभावित होते हैं।
6- महादशा का स्वामी ग्रह या कोई भी ग्रह अपनी अन्तर्दशा में अपने फल नहीं देता। इसके स्थान पर वह पूर्व अन्तर्दशा के स्वयं के अनुसार संशोधित फल देता है।
7- उस अन्तर्दशा में महादशा से संबन्धित सामान्यत: शुभ फल नह…: आपके कार्यस्थल का वास्तु कैसा हो

१. आपका केबिन इस तरह हो कि कुर्सी पर बैठते समय आपका मुख पूर्व या उत्तर कि तरफ़ हो.
२. आपको केबिन मै क्लॉक वाइस घूमकर बैठना चाहिए.
३. आपकी कुर्सी के पीछे दीवार होना चाहिये ना कि खिड़की.यदि खिड़की है तो उसे बंद रखना उचित रहेगा.
४. आपके ऑफिस मै हवा आने के लिए खुला खुला वातावरण होना चाहिए तथा किसी भी प्रकार कि बदबू नही आना चाहिए.
५. अपने ऑफिस मै जहा तक संभव हो व्यवहार में विनम्रता रखे और हँसते रहे.क्रोध आपको विचलित रखेगा और माहौल में नकारात्मकता फैलेगी.
६. ऑफिस में टेबल पर सामान सुविधाजनक रुप से रखा होना चाहिए तथा आवशक्ततानुसार लाइट का अच्छा प्रबंध होना चाहिए.
७. केबिन का दरवाजा आपकी टेबल के एकदम सामने ना होकर दाहिने या बाएं में होना उचित रहता है.
८. मशीन आदि इलेक्ट्रॉनिक या मेकेनिकल वस्तुएं दक्षिण-पश्चिम कोने में रखना उचित रहता है.
९. ऑफिस में कबूतर के घर होना या मधुमक्खी के छत्ते होना अशुभ माना गया है.
१०. यदि आप ऑफिस में मायूस रहते है या आपके अपने बॉस से अनबन रहती है तो केबिन में अगरबर्त्ती का प्रयोग करने से लाभ मिलता है.
११. ऑफिस में हमेशा जूते पहन कर जाना चाहिये,चप्पल पहनने से नकारात्मक ऊर्जा आती है.
१२. ऑफिस जाने से पहले अपने इष्ट देवता कि पूजा करना,माता पिता का आशीर्वाद लेना हमेशा शुभ रहता है.
१३. यदि अशुभ समय चल रहा हो तो घर पर पूजा करते समय लौंग से हवन करके अपने मालिक की सुख व शांति हेतु प्रार्थना करने से लाभ मिलता है.
१४. टेबल के दराज या अल्मारी आदि में अनावश्यक सामान भरना,या अव्यवस्थित ऑफिस होना अशुभ माना गया है.
१५. आफिस में युद्धादी के चित्र अथवा डूबते जहाज अथवा तूफ़ान आदि के चित्र न लगाएं
: शनि से भी अधिक हानिकारक है राहु-केतु की महादशा- *
छाया ग्रह राहु-केतु का यूं तो अपना कोई अस्तित्व नहीं होता, लेकिन ज्योतिष शास्त्र इसे शनि ग्रह की मारक दशाओं से भी अधिक हानिकारक मानता है। ऐसा इसलिए क्योंकि शनि न्यायपूर्ण हैं और केवल व्यक्ति के कर्मों के अनुसार उसे फल देते हैं, जबकि राहु-केतु पापी ग्रह माने जाते हैं जिसकी छाया पड़ने मात्र से व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।
छाया ग्रह-इसलिए बहुत जरूरी है कि इसके प्रभाव शुरु होने से पहले ही बचने के उपाय कर लिए जाएं। ऐसा ना करना जीवन को दयनीय स्थितियों में पहुंचा सकता है।
राहु-केतु के प्रभाव-
अपना अस्तित्व ना होने के कारण कुंडली में राहु-केतु का प्रभाव अन्य ग्रहों की स्थितियों के आधार पर ही होता है, लेकिन इसकी महादशाएं व्यक्ति के लिए बेहद कष्टकारक होती हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ये बुद्धि का ग्रह माने जाते हैं, इसलिए इसके प्रभावों से व्यक्ति के साथ जो भी बुरा होता है उसके लिए वह खुद ही जिम्मेदार होता है।
शनि के दंड का हिस्सा-
ज्योतिष शास्त्र में इन दोनों ही ग्रहों को शनि का अनुचर माना गया है, इसलिए कुंडली में राहु-केतु की युति और पापी प्रभाव आना भी व्यक्ति के बुरे कर्मों के दंड स्वरूप शनिदेव के न्याय का हिस्सा होता है। शारीरिक रूप से पीड़ित करने के अलावा यह व्यक्ति को मानसिक आघात देता है और सामाजिक मान-सम्मान में भी क्षति पहुंचाता है।
कुंडली में राहु-केतु की दशााएं-
कुंडली देखकर व्यक्ति के जीवन में राहु-केतु की दशाओं और महादशाओं के बारे में जाना जा सकता है, लेकिन डेली लाइफ में भी आपको इससे पीड़ित होने के कई लक्षण मिलते हैं। इन्हें पहचानकर इनसे बचने के उपाय करते हुए आप इसके कष्टों से बच सकते हैं। आगे हम इसकी चर्चा कर रहे हैं।
शरीर में राहु-केतु का स्थान-
शरीर में राहु को ‘सिर’ और केतु को ‘धड़’ का प्रतीक माना गया है। कुंडली में पापी राहु गले और उससे ऊपर के हिस्से यानि कि सिर को प्रभावित करता है। इससे प्रभावित व्यक्तियों को वात, कफ जैसी परेशानियां होती हैं।
राहु-केतु का प्रभाव-
वहीं केतु की बुरी दशा व्यक्ति को गले से नीचे के हिस्सों यानि सिर के अलावा शरीर के अन्य हिस्सों को प्रभावित करता है। ऐसे व्यक्तियों को फेफड़े, पेट और पैरों की परेशानियां लगी रहती हैं। हालांकि राहु-केतु की शुभ दशाएं व्यक्ति को सोच परे अचानक लाभ की स्थितियां भी पैदा करती हैं।
राहु के शुभ-अशुभ प्रभाव-
कुंडली में इसकी अशुभ दशा होने पर यह आलस्य की प्रवृत्ति बढ़ाता है। बुद्धि भ्रमित होती है अर्थात व्यक्ति किसी भी चीज के लिए सही निर्णय नहीं ले पाता। अशुभ राहु सीधा तंत्रिका तंत्र पर बुरा असर करता है, इसलिए ये मस्तिष्क से संबंधित बीमारियों जैसे पक्षाघात आदि का जल्दी शिकार होते हैं।
शुभ राहु-
कुंडली में शुभ राहु व्यक्ति को शक्ति संपन्न करने में बहुत बड़ा योगदान देता है। ऐसे व्यक्ति समाज में बेहद प्रभावशाली माने जाते हैं। ये बुद्धि संपन्न, वाक संपन्न यानि के बेहद प्रभावशाली वक्ता होते हैं और अपनी बुद्धि-बातों से शत्रु तक को मित्र बनाने की क्षमता रखते हैं।
ज्योतिष शास्त्र में इसे क्रूर ग्रह के नाम से जाना जाता है। यह व्यक्ति में तर्कशक्ति, बुद्धि, ज्ञान, दूरदर्शिता, जलन, ईर्ष्या, लोभ, बदले की भावना, छल-कपट जैसी भावों का कारक होता है। इसकी शुभता जहां व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर झुकाव पैदा करती है, वहीं अशुभ राहु व्यक्ति को आपराधिक कृत्यों के लिए प्रेरित करता है।
इसका प्रभाव बहुत हद तक मंगल की तरह होता है। इसलिए कुंडली में राहु अशुभ होने पर यह व्यक्ति को हिंसात्मक बनाता है। ऐसे लोग गलत संगति में पड़ते हैं, जो कई बार उनके लिए घातक सिद्ध होता है।
यह मानसिक विकार भी पैदा करता है और इससे प्रभावित व्यक्ति कई प्रकार के गलत कामों में लिप्त होते हैं। क्योंकि यह क्रूर ग्रह माना गया है इसलिए ऐसे व्यक्ति हत्या, अपहरण, दूसरों को सताने जैसे क्रूर कामों की ओर आसानी से प्रेरित हो जाते हैं और अक्सर ऐसे आपराधिक कृत्यों से गहरे जुड़ जाते हैं।
केतु का अर्थ होता है ‘ध्वज’ अर्थात ऊंचाई, इसलिए कुंडली में इसकी शुभ स्थिति जातकों को जहां कॅरियर और दूसरे क्षेत्रों में सफलता देते हुए ऊंचाइयों पर पहुंचती है, वहीं इसका अशुभ होना उतना ही अधिक पतन की ओर धकेलता है।
उपाय-
इसमें कोई शक नहीं कि राहु-केतु हर रूप में बेहद कष्टकारक और भयभीत करने वाले हैं, लेकिन इसके लक्षणों को समझते हुए अगर दशा शुरु होते ही उपाय कर लिए जाएं तो इतने भयानक परिणाम नहीं भुगतने पड़ते। अच्छा तो और यह होगा कि कि दशाएं प्रारंभ होने से पहले ही इसके उपाय कर लिए जाएं, इससे व्यक्ति इससे थोड़ा-बहुत प्रभावित होने के अलावा लगभग इससे अप्रभावित रहता है।
राहु के कुप्रभावों से बचने के लिए क्या करें-
राहु की अशुभ दशाओं से बचने या इसके बुरे प्रभावों को कम करने के लिए शनिवार का व्रत करना हर प्रकार से लाभ देता है। व्यक्ति को हर हाल में अपने माता-पिता, गुरुजनों का अपमान करने से बचना चाहिए तथा उनकी सेवा करनी चहिए। कुष्ट रोगियों की सेवा भी इसके बुरे प्रभावों को कम करने में विशेष लाभकारी होता है।
इसके अलावा गरीबों तथा ब्राह्मणों को चावल खिलाना या इसका दान करना, कौव्वे को मीठी रोटी खिलाना भी लाभदायक होता है। संभव हो तो किसी गरीब की कन्या का विवाह कराएं। राहु की अशुभ दशाएं बहुत परेशान कर रही हों तो रात में तकिए के नीचे साबुत जौ रखकर सोएं और सुबह किसी जरूरतमंद को इसका दान कर दें। शनिवार को यह उपाय करें तो और भी अच्छा है।
शनिवार के अलावा मंगलवार का व्रत इसमें लाभकारी होता है। इसके अलावा लोहे से बनी वस्तुओं-हथियाओं, कम्बल, भूरे रंग की वस्तुओं का दान इसकी अशुभ दशाओं के प्रभाव कम करता है। मां-बाप की कुंडली में केतु दशाओं के कारण अगर संतान को कष्ट हो, तो व्यक्ति को मंदिर में जाकर कम्बल का दान करना चाहिए।
इसके अलावा देसी गाय की बछिया और केतु रत्नों का दान करना भी इसके अशुभ प्रभावों को दूर करता है। माता-पिता, गुरुजनों तथा संतों की सेवा इसकी शांति में भी हितकारी है।
मंत्र जाप-राहु-केतु छाया ग्रह हैं और मां दुर्गा को ‘छायारूपेण’ कहा गया है। इसलिए मां दुर्गा की आराधना तथा पूजा इसमें विशेष लाभ देता है। इसके अलावा दुर्गा मंत्र “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाय्ये विच्चै” का 108 बार जाप आपको राहु और केतु के दुष्प्रभावों से मुक्त करता है। रोजाना इस मंत्र का जाप इन पापी ग्रहों की दशाओं और महादशाओं से भी बचाता है।
राहु मंत्र-रात्रि के समय राहु का बीज मंत्र “ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम: “ का 108 बार जाप करें। इसके अलावा रात्रि में भगवान शिव या भैरव की पूजा करना भी इसके कुप्रभावों को कम करते हैं।
राहु मंत्र-अगर राहु की दशाएं बहुत पीड़ित कर रही हों तो इस बीज मंत्र का 18000 बार जाप करें या किसी पंडित से कराएं। इसके अलावा घर में राहु यंत्र की स्थापना करने से भी इसकी पीड़ा कम करता है।
भगवान शिव की पूजा-भगवान शिव की नियमित पूजा करना राहु और केतु दोनों से बचाता है। पूरे वर्ष और श्रावण मास में सोमवार को शिवलिंग पर जलाभिषेक करने वालों को राहु-केतु के पापी प्रभावों का कभी सामना नहीं करना पड़ता या उसके जीवन में इसके प्रभाव नगण्य होते हैं।
वस्त्र-राहु के लिए हल्के नीले और केतु के लिए हल्के गुलाबी वस्त्र पहनना और दान करना विशेष लाभकारी होता है। इसके अलावा सफेद मलयागिरि चंदन का टुकड़ा किसी रेशमी नीले कपड़े में लपेटकर बुधवार को गले में या बाजूबंद की तरह धारण करें।
: अन्य ग्रह से उतपनन उत्पन्न गृह दोष
उपाय कुंडली की प्रोब्लम जानिये
1 . सूर्य दोष के लक्षण:- असाध्य रोगों के कारण परेशानी, सिरदर्द, बुखार, नेत्र संबंधी कष्ट, सरकार के कर विभाग से परेशानी, नौकरी में बाधा
उपाय:- भगवान विष्णु की आराधना करें [ ऊं नमो भगवते नारायणाय ] मंत्र का 1 माला लाल चंदन की माला से जाप करें गुड़ खाकर पानी पीकर कार्य आरंभ करें बहते जल में 250 ग्राम गुड़ प्रवाहित करें सवा पांच रत्ती का माणिक तांबे की अंगूठी में बनवायें रविवार को सूर्योंदय के समय दाएं हाथ की मध्यमा अंगूली में धारण करें मकान के दक्षिण दिशा के कमरे में अंधेरा रखें पशु-पक्षियों के लिए पीने के पानी की व्यवस्था करें घर में मां, दादी का आशीर्वाद जरूर लें.

  1. चंद्रमा दोष के लक्षण:- जुखाम, पेट की बीमारियों से परेशानी, घर में असमय पशुओं की मत्यु की आशंका, अकारण शत्रुओं का बढ़ना, धन का हानि
    उपाय:- भगवान शिव की आराधना करें [ ऊं नम: शिवाय ] मंत्र का रूद्राक्ष की माला से 11 माला जाप करें बड़े बुजुर्गों, ब्रह्मणों, गुरूओं का आशीर्वाद लें सोमवार को सफेद कपड़े में मिश्री बांधकर जल में प्रवाहित करें चांदी की अंगूठी में चार रत्ती का मोती सोमवार को जाएं हाथ अनामिका में धारण करें शीशे की गिलास में दूध, पानी पीने से परेहज करें 28 वर्ष के बाद विवाह का निर्णय लें लाल रंग का रूमाल हमेशा जेब में रखें माता-पिता की सेवा से विशेष लाभ.
    3 . मंगल दोष के लक्षण:- घर में चोरी होने का डर, घर-परिवार में लड़ाई-झगड़े की आशंका, भाई के साथ संबंधों में अनबन, दांपत्य जीवन में तनाव, अकाल मृत्यु की आशंका.
    उपाय: भगवान हनुमान की आराधना करें [ ऊं हं हनुमते रूद्रात्मकाय हुं फट कपिभ्यो नम: ] का 1 माला जाप करें हनुमान चालीसा या बजरंगबाण का रोज पाठ करें त्रिधातु की अंगुठी बाएं हाथ की अनामिका अंगूली में धारण करें 400 ग्राम चावल दूध से धोकर 14 दिन तक पिवत्र जल में प्रवाहित करें घर में नीम का पौधा लगायें बहन, बेटी, मौसी, बुआ, साली को मीठा खिलायें बहन, बुआ को कपड़े भेंट न दें तंदूर की बनी रोटी कुत्तों को खिलायें.
  2. बुध दोष के लक्षण: स्वभाव में चिड़चिड़ापन, जुए-सट्टे के कारण धन की बड़ी हानि, दांत से जुड़े रोगों के कारण परेशानी सिर दर्द. अधिक तनाव की स्थिति.
    उपाय: मां दुर्गा की आराधना करें ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे मंत्र का 5 माला जाप करें देवी के सामने अखंड घी का दीया जलायें घर की पूर्व दिशा में लाल झंडा लगायें सोने के आभूषण धारण करें, हरे रंग से परहेज करें खाली बर्तनों को ढ़ककर न रखें चौड़े पत्ते वाले पौधे घर में लगायें, मुख्य द्वार पंचपल्लव का तोरण लगायें 100 ग्रíम चावल, चने की दाल बहते जल में प्रवाहित करें.
  3. गुरू दोष के लक्षण:- सोने की हानि, चोरी की आशंका उच्च शिक्षा की राह में बाधाएं झूठे आरोप के कारण मान-सम्मान में कमी पिता को हानि होने की आशंका.
    उपाय:- परमपिता ब्रह्मा की आराधना करें बहते पानी में बादाम, तेल, नारियल प्रवाहित करें माथे पर केसर का तिलक लगायें सोने की अंगूठी में सवा पांच रत्ती का पुखराज गुरूवार को दाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करें पूजा स्थल की नियमित रूप से सफाई करें पीपल के पेड़ पर 7 बार पीला धागा लेपटकर जल दें 600 ग्राम पीले चने मंदिर में दान दें जुए-सट्टे की लत न पालें, मांसाहार-मद्यपान से परहेज करें कारोबार में भाई का साथ लाभकारी संबंध मधुर बनायें रखें.
    6 शुक्र दोष के लक्षण:- बिना किसी बीमारी के अंगूठे, त्वचा संबंधी रोगों से परेशानी, राजनीति के क्षेत्र में हानि, प्रेम व दापंत्य संबंधों में अलगाव जीवनसाथी के स्वास्थ्य को लेकर तनाव.
    उपाय: मां लक्ष्मी की आराधना करें. [ ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसिद प्रसिद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम: ] रोज रात में मंत्र का 1 माला जाप करें मां लक्ष्मी को कमल के पुष्पों की माला चढ़ायें मंदिर में आरती पूजा के लिए गाय का घी दान करें 2 किलो आलू में हल्दी या केसर लगाकर गाय को खिलायें चांदी या मिटटी के बर्तन में शहद भरकर घर की छत पर दबा दें आडू की गुटली में सूरमा भरकर घास वाले स्थान पर दबा दें शुक्रवार के दिन मंदिर में कांसे के बर्तन का दान करें लाल रंग के गाय की सेवा करें, 800 ग्राम जिमीकंद मंदिर में दान करें.
    7 शनि दोष के लक्षण: पैतृक संपत्ति की हानि, हमेशा बीमारी से परेशानी मुकदमे के कारण परेशानी बनते हुए काम का बिगड़ जाना.
    उपाय: भगवान भैरव की आराधना करें [ ऊं प्रां प्रीं प्रौं शं शनिश्चराय नम: ] मंत्र का 1 माला जाप करें शनिदेव का 1 किलो सरसों के तेल से अभिषेक करें सिर पर काला तेल लगाने से परहेज करें 43 दिन तक लगातार. शनि मंदिर में जाकर नीले पुष्प चढ़ायें कौवे या सांप को दूध, चावल खिलायें किसी बर्तन में तेल भरकर अपना चेहरा देखें, बर्तन को जमीन में दबा दें शनिवार 800 ग्राम दूध, उड़द जल में प्रवाहित करें जल में दूध मिलाकर लकड़ी या पत्थर पर बैठकर स्नान करें घर की छत पर साफ-सफाई का ध्यान रखें 12 नेत्रहीन लोगों को भोजन करायें.
    8 राहु दोष के लक्षण: मोटापेके कारण परेशानी अचानक दुर्घटना, लड़ाई-झगड़े की आशंका हर तरह के व्यापार में घाटा.
    उपाय: मां सरस्वती की आराधना करें [ ऊं ऐं सरस्वत्यै नम: ] मंत्र का 1 माला जाप करें तांबेके बर्तन में गुड़, गेहूं भरकर बहते जल में प्रवाहित करें माता से संबंध मधुर रखें 400 ग्राम धनिया, बादाम जल में प्रवाहित करें घर की दहलीज के नीचे चांदी का पत्ता लगायें सीढ़ियों के नीचे रसोईघर का निर्माण न करवायें रात में पत्नी के सिर के नीचे 5 मूली रखें, सुबह मंदिर में दान कर दें मां सरस्वती के चरणों में लगातार 6 दिन तक नीले पुष्प की माला चढ़ायें चांदी की गोली हमेशा जेब में रखें लहसुन, प्याज, मसूर के सेवन से परहेज करें.
    9 केतु दोष के लक्षण: बुरी संगत के कारण धन का हानि जोड़ों के दर्द से परेशानी संतान का भाग्योदय न होना, स्वास्थ्य के कारण तनाव.
    उपाय: भगवान गणेश की आराधना करें [ ऊं गं गणपतये नम:] मंत्र का 1 माला जाप करें गणेश अथर्व शीर्ष का पाठ करें कुंवारी कन्याओं का पूजन करें, पत्नी का अपमान न करें घर के मुख्य द्वार पर दोनों तरफ तांबे की कील लगायें पीले कपड़े में सोना, गेहूं बांधकर कुल पुरोहित को दान करें दूध, चावल, मसूर की दाल का दान करें बाएं हाथ की अंगुली में सोना पहनने से लाभ 43 दिन तक मंदिर में लगातार केला दान करें काले व सफेद तिल बहते जल में प्रवाहित करें.आजतक ब्यूरो.
    10 राहु की महादशा में नवग्रहों की अंतर्दशाओं का फल एवं उपाय अशोक शर्मा राहु मूलतः छाया ग्रह है, फिर भी उसे एक पूर्ण ग्रह के समान ही माना जाता है। यह आद्र्रा, स्वाति एवं शतभिषा नक्षत्र का स्वामी है। राहु की दृष्टि कुंडली के पंचम, सप्तम और नवम भाव पर पड़ती है। जिन भावों पर राहु की दृष्टि का प्रभाव पड़ता है, वे राहु की महादशा में अवश्य प्रभावित होते हैं। राहु की महादशा 18 वर्ष की होती है।
    राहु में राहु की अंतर्दशा का काल 2 वर्ष 8 माह और 12 दिन का होता है। इस अवधि में राहु से प्रभावित जातक को अपमान और बदनामी का सामना करना पड़ सकता है। विष और जल के कारण पीड़ा हो सकती है। विषाक्त भोजन, से स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। इसके अतिरिक्त अपच, सर्पदंश, परस्त्री या पर पुरुष गमन की आशंका भी इस अवधि में बनी रहती है। अशुभ राहु की इस अवधि में जातक के किसी प्रिय से वियोग, समाज में अपयश, निंदा आदि की संभावना भी रहती है। किसी दुष्ट व्यक्ति के कारण उस परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है।
    उपाय: भगवान शिव के रौद्र अवतार भगवान भैरव के मंदिर में रविवार को शराब चढ़ाएं और तेल का दीपक जलाएं। शराब का सेवन कतई न करें। लावारिस शव के दाह-संस्कार के लिए शमशान में लकड़िया दान करें। अप्रिय वचनों का प्रयोग न करें।
    राहु में बृहस्पति: राहु की महादशा में गुरु की अंतर्दशा की यह अवधि दो वर्ष चार माह और 24 दिन की होती है। राक्षस प्रवृत्ति के ग्रह राहु और देवताओं के गुरु बृहस्पति का यह संयोग सुखदायी होता है। जातक के मन में श्रेष्ठ विचारों का संचार होता है और उसका शरीर स्वस्थ रहता है। धार्मिक कार्यों में उसका मन लगता है। यदि कुंडली में गुरु अशुभ प्रभाव में हो, राहु के साथ या उसकी दृष्टि में हो तो उक्त फल का अभाव रहता है। ऐसी स्थिति में निम्नांकित
    उपाय : किसी अपंग छात्र की पढ़ाई या इलाज में सहायता करें। शैक्षणिक संस्था के शौचालयों की सफाई की व्यवस्था कराएं। शिव मंदिर में नित्य झाड़ू लगाएं। पीले रंग के फूलों से शिव पूजन करें। राहु में
    शनि: राहु में शनि की अंतदर्शा का काल 2 वर्ष 10 माह और 6 दिन का होता है। इस अवधि में परिवार में कलह की स्थिति बनती है। तलाक भाई, बहन और संतान से अनबन, नौकरी में या अधीनस्थ नौकर से संकट की संभावना रहती है। शरीर में अचानक चोट या दुर्घटना के दुर्योग, कुसंगति आदि की संभावना भी रहती है। साथ ही वात और पित्त जनित रोग भी हो सकता है। दो अशुभ ग्रहों की दशा-अंतर्दशा कष्ट कारक हो सकती है।
    उपाय : भगवान शिव की शमी के पत्रों से पूजा और शिव सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र के जप स्वयं, अथवा किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से कराएं। जप के पश्चात् दशांश हवन कराएं जिसमें जायफल की आहुतियां अवश्य दें। नवचंडी का पूर्ण अनुष्ठान करते हुए पाठ एवं हवन कराएं। काले तिल से शिव का पूजन करें।
    राहु में बुध: राहु की महादशा में बुध की अंतर्दशा की अवधि 2 वर्ष 3 माह और 6 दिन की होती है। इस समय धन और पुत्र की प्राप्ति के योग बनते हैं। राहु और बुध की मित्रता के कारण मित्रों का सहयोग प्राप्त होता है। साथ ही कार्य कौशल और चतुराई में वृद्धि होती है। व्यापार का विस्तार होता है और मान, सम्मान यश और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
    उपाय: भगवान गणेश को शतनाम सहित दूर्वाकुंर चढ़ाते रहें। हाथी को हरे पत्ते, नारियल गोले या गुड़ खिलाएं। कोढ़ी, रोगी और अपंग को खाना खिलाएं। पक्षी को हरी मूंग खिलाएं।
    राहु में केतु: राहु की महादशा में केतु की यह अवधि शुभ फल नहीं देती है। एक वर्ष और 18 दिन की इस अवधि के दौरान जातक को सिर में रोग, ज्वर, शत्रुओं से परेशानी, शस्त्रों से घात, अग्नि से हानि, शारीरिक पीड़ा आदि का सामना करना पड़ता है। रिश्तेदारों और मित्रों से परेशानियां व परिवार में क्लेश भी हो सकता है।
    उपाय: भैरवजी के मंदिर में ध्वजा चढ़ाएं। कुत्तों को रोटी, ब्रेड या बिस्कुट खिलाएं। कौओं को खीर-पूरी खिलाएं। घर या मंदिर में गुग्गुल का धूप करें।
    राहु में शुक्र: राहु की महादशा में शुक्र की प्रत्यंतर दशा पूरे तीन वर्ष चलती है। इस अवधि में शुभ स्थिति में दाम्पत्य जीवन में सुख मिलता है। वाहन और भूमि की प्राप्ति तथा भोग-विलास के योग बनते हैं। यदि शुक्र और राहु शुभ नहीं हों तो शीत संबंधित रोग, बदनामी और विरोध का सामना करना पड़ सकता है। इस अवधि में अनुकूलता और शुभत्व की प्राप्ति के लिए निम्न
    उपाय करें- सांड को गुड़ या घास खिलाएं। शिव मंदिर में स्थित नंदी की पूजा करें और वस्त्र आदि दें। एकाक्षी श्रीफल की स्थापना कर पूजा करें। स्फटिक की माला धारण करें।
    राहु में सूर्य: राहु की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा की अवधि 10 माह और 24 दिन की होती है, जो अन्य ग्रहों की तुलना में सर्वाधिक कम है। इस अवधि में शत्रुओं से संकट, शस्त्र से घात, अग्नि और विष से हानि, आंखों में रोग, राज्य या शासन से भय, परिवार में कलह आदि हो सकते हैं। सामान्यतः यह समय अशुभ प्रभाव देने वाला ही होता है।
    उपाय: इस अवधि में सूर्य को अघ्र्य दें। उनका पूजन एवं उनके मंत्र का नित्य जप करें। हरिवंश पुराण का पाठ या श्रवण करते रहें। चाक्षुषोपनिषद् का पाठ करें। सूअर को मसूर की दाल खिलाएं।
    राहु में चंद्र: एक वर्ष 6 माह की इस अवधि में जातक को असीम मानसिक कष्ट होता है। इस अवधि में जीवन साथी से अनबन, तलाक या मृत्यु भी हो सकती है। लोगों से मतांतर, आकस्मिक संकट एवं जल जनित पीड़ा की संभावना भी रहती है। इसके अतिरिक्त पशु या कृषि की हानि, धन का नाश, संतान को कष्ट और मृत्युतुल्य पीड़ा भी हो सकती है।
    उपाय: राहु और चंद्र की दशा में उत्पन्न होने वाली विषम परिस्थितियों से बचने के लिए माता की सेवा करें। माता की उम्र वाली महिलाओं का सम्मान और सेवा करें। प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव का शुद्ध दूध से अभिषेक करें। चांदी की प्रतिमा या कोई अन्य वस्तु मौसी, बुआ या बड़ी बहन को भेंट करें। राहु में मंगल: राहु की महादशा में मंगल की अंतर्दशा का यह समय एक वर्ष 18 दिन का होता है। इस काल में शासन व अग्नि से भय, चोरी, अस्त्र शस्त्र से चोट, शारीरिक पीड़ा, गंभीर रोग, नेत्रों को पीड़ा आदि हो सकते हंै। इस अवधि में पद एवं स्थान परिवर्तन तथा भाई को या भाई से पीड़ा की संभावना भी है माइंड रीडर
    जन्मकुंडली में बारह भावों के विभिन्न नाम एवं उनसे संबंधित विषयों का विवरण
    प्रथम भाव : यह भाव जन्मकुंडली का मुख्य भाव होता है एवम इसे लग्न भाव कहते हैं। लग्न के अतिरिक्त अन्य कुछ नाम ये भी हैं : हीरा, तनु, केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, प्रथम। इस भाव से मुख्यत: जातक का शरीर, मुख, मस्तक, केश, आयु, योग्यता, तेज, आरोग्य का विचार होता है।
    द्वितीय भाव : यह धन भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं, पणफर, द्वितीय। इससे कुटुंब-परिवार, दायीं आंख, चेहरा,वाणी, बहुमुल्य सामग्री का संग्रह, सोना-चांदी, चल-सम्पत्ति, नम्रता, भोजन, वाकपटुता आदि पर विचार किया जाता है।
    तृतीय भाव : यह पराक्रम भाव के नाम से जाना जाता है। इसे भातृ भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं आपोक्लिम, उपचय, तृतीय। इस भाव से भाई-बहन, दायां कान, लघु यात्राएं, साहस, सामर्थ्य अर्थात् पराक्रम, नौकर-चाकर, भाई बहनों से संबंध, पडौसी, लेखन-प्रकाशन आदि पर विचार करते है।
    चतुर्थ भाव : यह सुख भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुष्टय। इस भाव से माता, जन्म समय की परिस्थिति, दत्तक पुत्र, हृदय, छाती, पति-पत्नी की विधि यानी कानूनी मामले, चल सम्पति, गृह-निर्माण, वाहन सुख,सीना,फैफड़ों
    आदि का विचार करते है।
    पंचम भाव : यह सुत अथवा संतान भाव भी कहलाता है। अन्य नाम है-त्रिकोण, पणफर, पंचम। इस भाव ,उच्च शिक्षा ,प्रेम, संतान अर्थात् पुत्र .पुत्रियां, मानसिकता, मंत्र-ज्ञान, विवेक, स्मरण शक्ति, विद्या, प्रतिष्टा,यकृत,पाचन शक्ति व इष्ट देवता आदि का विचार करते हैं।
    षष्ट भाव : इसे रिपुभाव कहते हैं। अन्य नाम हैं रोग भाव, आपोक्लिम, उपचय, त्रिक, षष्ट। इस भाव से मुख्यत: शत्रु, रोग, मामा, जय-पराजय, भूत, बंधन, विष प्रयोग, क्रूर कर्म ,आंत्र व गुर्दों,आदि का विचार होता है।
    सप्तम भाव : यह पत्नी भाव अथवा जाया भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं-केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, सप्तम। इस भाव से पति अथवा पत्नी, विवाह संबंध, विषय-वासना, आमोद-प्रमोद, व्यभिचार, आंतों, सांझेदारी के व्यापार व गुप्तांग , आदि पर विचार किया जाता है।
    अष्टम भाव : इसे मृत्यु भाव भी कहते है अन्य नाम हैं-लय स्थान, पणफर, त्रिक, अष्टम। आठवें भाव से आयु, मृत्यु का कारण, दु:ख-संकट, मानसिक पीड़ा, आर्थिक क्षति, भाग्य हानि, गुप्तांग के रोगों, आकस्मिक धन लाभ व कूल्हों आदि का विचार होता है।
    नवम भाव : इसे भाग्य भाव कहलाता हैं। अन्य नाम हैं त्रिकोण और नवम। भाग्य, धर्म पर आस्था, गुरू, पिता, पूर्व जन्म के पुण्य-पाप, शुद्धाचरण, यश, ऐश्वर्य, वैराग्य व जांघों आदि विषयों पर विचार इसी भाव के अन्तर्गत होता है।
    दशम भाव : यह कर्म भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुष्टय,उपचय, राज्य, दशम। दशम भाव से कर्म, नौकरी, व्यापार-व्यवसाय, आजीविका, यश, सम्मान, राज-सम्मान, राजनीतिक विषय, पदाधिकार, पितृ धन, दीर्ध यात्राएं, सुख आदि पर विचार किया जाता है।
    एकादश भाव : यह भाव आय भाव भी कहलाता है। अन्य नाम हैं- पणफर, उपचय, लब्धि, एकादश। इस भाव से प्रत्येक प्रकार के लाभ, मित्र, पुत्र वधू, पूर्व संपन्न कर्मों से भाग्योदय, सिद्धि, आशा, माता की मृत्यु व मनोकामनाओं की पूर्ती आदि का विचार होता है।
    द्वादश भाव : यह व्यय भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- अंतिम, आपोक्लिम, एवं द्वादश। इस भाव से धन व्यय, बायीं आंख, शैया सुख, मानसिक क्लेश, दैवी आपत्तियां, दुर्घटना, मृत्यु के उपरान्त की स्थिति, पत्नी के रोग, माता का भाग्य, राजकीय संकट, राजकीय दंड, आत्म-हत्या, मोक्ष ,विदेश आदि का विचार किया जाता हैं।
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    🕉 कालसर्प योग 🕉

जब सभी ग्रह राहु-केतु को छोड़कर राहु-केतु के मध्य आ जाये अर्थात सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि सभी राहु केतु के मध्य आ जाये तब कालसर्प योग की सृष्टि होती है।
ध्यान रहे राहु और केतु सदैव वक्री ही चलते है। इस योग के लिए आवश्यक है कि सभी ग्रह राहु से केतु के मध्य हो न कि केतु से राहु के मध्य, राहु को अंग्रेजी में ड्रैगन्स हैड व केतु को ड्रैगन्स टेल कहा है

राहु मीन से कुंभ, कुंभ से मकर, ओर मकर से धनु राशि की ओर गति मान रहते है

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में इस योग के विषय मे ज्यादा कुछ नही लिखा हुआ है लेकिन सांसारिक ज्योतिष शास्त्र में इस योग के विपरीत परिणाम देखने मे आते है

कालसर्प योग जिसके जन्मकुंडली में बनता है ऐसे जातक को अपने जीवन मे काफी संघर्ष का सामना करना पड़ता है।
मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक रूप से व्यक्ति परेशान रहता है।इच्छित और प्राप्त होने वाली प्रगति में रुकावटें आती है और बहुत ही विलम्ब से यश प्राप्त होता है

📿कालसर्प योग का प्रभाव कब होता है 📿

1:- जब-जब राहु की दशा, अन्तर्दशा, और प्रत्यंतर दशा आती है

2 – जब-जब भी गोचर में राहु अशुभ चलता हो

3 – जब भी गोचर में कालसर्प योग की सृष्टि हो तब-तब कालसर्प योग का प्रभाव अधिक होता है

📿कालसर्प योग कमजोर / होना 📿

1 – जब द्वादश भाव या द्वितीय भाव मे शुक्र हो

2 – जब लग्न या केन्द्र में बृहस्पति हो

3 – जब बुधादित्य योग हो

4 – जब दशम मंगल हो

5 – जब चन्द्र-मंगल की युति केन्द्र में हो पर मंगल मेष, वृष्चिक या मकर का हो एवं चन्द्र उसके साथ मिलकर लक्ष्मी योग बनता हो

6 – जब पंच महायोग में से कोई एक महायोग हो

7 – जब चार ग्रहों की युति केंद में कही भी 1,4,7,10वें भाव मे हो और उसके साथ एक ग्रह शुक्र, गुरु, शनि, मंगल, सूर्य, चन्द्र, में से स्वगृही अथवा अपनी उच्च राशि मे हो

8 – राहु-केतु के मध्य शेष में से छः ग्रह हो एवं एक ग्रह बाहर हो और वह ग्रह राहु के अंश से अधिक अंश में हो तो कालसर्प योग भंग हो जाता है
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: 🌹🌹🌹🌹उत्तम मनचाही संतान प्राप्ति के लिए कुछ खास उपाय

यदि किसी दम्पति को संतान की प्राप्ति नहीं हो रही है तो वह स्त्री शुक्ल पक्ष में अभिमंत्रित संतान गोपाल यंत्र को अपने घर में स्थापित करके लगातार 16 गुरुवार को ब्रत रखकर केले और पीपल के वृक्ष की सेवा करें उनमे दूध चीनी मिश्रित जल चड़ाकर धुप अगरबत्ती जलाये फिर मासिक धर्म से ठीक तेहरवीं रात्रि में अपने पति से रमण करें संतान सुख अति शीघ्र प्राप्त होगा ।

पति पत्नी गुरुवार का ब्रत रखें या इस दिन पीले वस्त्र पहने , पीली वस्तुओं का दान करें यथासंभव पीला भोजन ही करें …..अति शीघ्र योग्य संतान की प्राप्ति होगी ।

संतान सुख के लिए स्त्री गेंहू के आटे की 2 मोटी लोई बनाकर उसमें भीगी चने की दाल और थोड़ी सी हल्दी मिलाकर नियमपूर्वक गाय को खिलाएं …शीघ्र ही उसकी गोद भर जाएगी ।

शुक्ल पक्ष में बरगद के पत्ते को धोकर साफ करके उस पर कुंकुम से स्वस्तिक बनाकर उस पर थोड़े से चावल और एक सुपारी रखकर सूर्यास्त से पहले किसी मंदिर में अर्पित कर दें और प्रभु से संतान का वरदान देने के लिए प्रार्थना करें …निश्चय ही संतान की प्राप्ति होगी ।

किसी भी गुरुवार को पीले धागे में पीली कौड़ी को कमर में बांधने से संतान प्राप्ति का प्रबल योग बनता है।

संतान प्राप्ति के लिए स्त्री पारद शिवलिंग का नियम से दूध से अभिषेक करें …उत्तम संतान की प्राप्ति होगी ।

हर गुरुवार को भिखारियों को गुड का दान देने से भी संतान सुख प्राप्त होता है।

पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में आम की जड़ को लाकर उसे दूध में घिसकर पिलाने से स्त्री को अवश्य ही संतान की प्राप्ति होती है यह अत्यंत ही सिद्ध / परीक्षित प्रयोग है ।

रविवार को छोड़कर अन्य सभी दिन निसंतान स्त्री यदि पीपल पर दीपक जलाये और उसकी परिक्रमा करते हुए संतान की प्रार्थना करें उसकी इच्छा अति शीघ्र पूरी होगी ।

उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में नीम की जड़ लाकर सदैव अपने पास रखने से निसंतान दम्पति को संतान सुख अवश्य प्राप्त होता है ।

नींबू की जड़ को दूध में पीसकर उसमे शुद्ध देशी घी मिला कर सेवन करने से पुत्र प्राप्ति की संभावना बड़ जाती है ।

माघ शुक्ल षष्ठी को संतानप्राप्ति की कामना से शीतला षष्ठी का व्रत रखा जाता है। कहीं-कहीं इसे ‘बासियौरा’ नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर मां शीतला देवी का षोडशोपचार-पूर्वक पूजन करना चाहिये। इस दिन बासी भोजन का भोग लगाकर बासी भोजन ग्रहण किया जाता है ।

उत्तम पुत्र प्राप्ति हेतु स्त्री को हमेशा पुरूष के बायें तरफ़ सोना चाहिये. कुछ देर बांयी करवट लेटने से दायां स्वर और दाहिनी करवट लेटने से बांया स्वर चालू हो जाता है. इस स्थिति में जब पुरूष का दांया स्वर चलने लगे और स्त्री का बांया स्वर चलने लगे तभी दम्पति को आपस में सम्बन्ध बनाना चाहिए. इस स्थिति में अगर गर्भादान हो गया तो अवश्य ही पुत्र उत्पन्न होगा. कौन सा स्वर चल रहा है इसकी जांच नथुनों पर अंगुली रखकरकर सकते है ।

योग्य कन्या संतान की प्राप्ति के लिये स्त्री को हमेशा पुरूष के दाहिनी और सोना चाहिये. इस स्थिति मे स्त्री का दाहिना स्वर चलने लगेगा और स्त्री के बायीं तरफ़ लेटे पुरूष का बांया स्वर चलने लगेगा. इस स्थिति में अगर गर्भ ठहरता है तो निश्चित ही सुयोग्य और गुणवान कन्या प्राप्त होगी ।

कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्बन्ध बनाने से बचना चाहिए .. जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवाश्या ।

गर्भाधान के लिए ऋतुकाल की आठवीं, दसवी और बारहवीं रात्रि सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इन रात्रियों में सम्बन्ध बनाने के बाद स्त्री के गर्भधारण करने से संतान की कामना रखने वाले दम्पतियों को श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति की सम्भावना बहुत बड़ जाती है ।

यदि आप अति उत्तम गुणवान संतान प्राप्त करना चाहते हैं,तो यहाँ दी गयी माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी का अवश्य ही ध्यान रखें ।

चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा हुए पुत्र की आयु कम होती है और उसे जीवन में धन के आभाव का सामना करना पड़ता है।

पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या को भविष्य में पुत्र रत्न की सम्भावना क्षीण होगी वह सिर्फ लड़की ही पैदा करेगी।

छठवीं रात्रि के गर्भ से पुत्र उत्पन्न होगा जो मध्यम आयु वाला होगा।

सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होती है, वह भविष्य में संतान को जन्म देने में असमर्थ होगी।

आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र धनी होता है, वह जीवन में समस्त ऐश्वर्य को प्राप्त करता है।

नौवीं रात्रि के गर्भ से उत्पन्न पुत्री धनवान होती है उसे अपने जीवन में समस्त ऐश्वर्य प्राप्त होते है।

दसवीं रात्रि के गर्भ से बुद्धिमान पुत्र जन्म लेता है।

ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री का जन्म होता है ।

बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।

तेरहवीं रात्रि के गर्भ से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।

चौदहवीं रात्रि के गर्भ से भाग्यशाली उत्तम पुत्र का जन्म होता है।

पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से अति सौभाग्यवती पुत्री जन्म लेती है।

सोलहवीं रात्रि के गर्भ से अपने कुल का नाम रोशन करने वाला सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।

अगर स्त्री किसी भी कारणवश गर्भ धारण नहीं कर पा रही हो तो पति पत्नी मंगलवार के दिन कुम्हार के घर जाकर उससे प्रार्थना कर मिट्टी के बर्तन बनाने वाला डोरा ले आएं।फिर उसे किसी गिलास में जल भरकर डाल दें। कुछ समय पश्चात उस डोरे को निकाल कर वह पानी पति-पत्नी दोनों पी लें। यह क्रिया केवल मंगलवार को ही करनी है और उस दिन पति-पत्नी अवश्य ही सम्बन्ध बनांये। गर्भ ठहरते ही उस डोरे को मंदिर में हनुमानजी के चरणों में रख दें और हनुमान जी से अपने सुरक्षित प्रसव के लिए प्रार्थना करें ।

अगर इच्छुक महिला रजोधर्म से मुक्ति पाकर लगातार तीन दिन चावल का धोवन यानी मांड में एक नीबू निचोड़कर पीने के बाद उत्साह से पति के साथ सम्बन्ध बनाये तो उसको निश्चित ही स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति होती है। गर्भ न ठहरने तक प्रतिमाह यह प्रयोग तीन दिन तक करें, गर्भ ठहरने के बाद नहीं करें।

गर्भाधान के दिन से ही स्त्री को चावल की खीर, दूध, भात, रात को सोते समय दूध के साथ शतावरी का चूर्ण, प्रातः मक्खन-मिश्री, जरा सी पिसी काली मिर्च मिलाकर ऊपर से ताजा कच्चा नारियल व सौंफ खाते रहना चाहिए, यह पूरे नौ माह तक करना चाहिए, इससे होने वाली संतान गोरी और पूर्ण स्वस्थ होती है।

गर्भिणी स्त्री ढाक (पलाश) का एककोमल पत्ता घोंटकर गौदुग्ध के साथ रोज़ सेवन करे | इससे बालक शक्तिशाली और गोरा होता है | माता-पीता भले काले हों, फिर भी बालक गोरा होगा |

सवि का भात और मुंग की दाल खाने से बाँझ पन दूर होता है और पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है ।

गर्भ का जब तीसरा महीना चल रहा हो तो गर्भवती स्त्री को शनिवार को थोडा सा जायफल और गुड़ मिलाकर खिलाने से अवश्य ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी ।

*पुराने चावल को धोकर भिगो दें बनाने से पहले उसके पानी को अलग करके उसमें नीबूं की जड़ को महीन पीसकर उस पानी को स्त्री पी कर अपने पति से सम्बन्ध बनाये वह स्त्री कन्या को जन्म देगी । 🌹🌹🌹🌹🌹
: कुंडली में केतु
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केतु भारतीय ज्योतिष में राहु ग्रह के सिर का धड़ है। यह सिर समुद्र मन्थन के समय मोहिनी अवतार रूपी भगवान विष्णु ने काट दिया था। यह एक छाया ग्रह है। माना जाता है कि इसका मानव जीवन एवं पूरी सृष्टि पर अत्यधिक प्रभाव रहता है। केतु को प्राय: सिर पर कोई रत्न या तारा लिये हुए दिखाया जाता है, जिससे रहस्यमयी प्रकाश निकल रहा होता है।

केतु की स्थिति
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भारतीय ज्योतिष के अनुसार राहु और केतु, सूर्य एवं चंद्र के परिक्रमा पथों के आपस में काटने के दो बिन्दुओं के द्योतक हैं जो पृथ्वी के सपेक्ष एक दूसरे के उलटी दिशा में (180 डिग्री पर) स्थित रहते हैं। चूंकि ये ग्रह कोई खगोलीय पिंड नहीं हैं, इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है। सूर्य और चंद्र के ब्रह्मांड में अपने-अपने पथ पर चलने के कारण ही राहु और केतु की स्थिति भी साथ-साथ बदलती रहती है।
ज्योतिष में केतु अच्छी व बुरी आध्यात्मिकता एवं प्राकृतिक प्रभावों का कार्मिक संग्रह का द्योतक है। केतु विष्णु के मत्स्य अवतार से संबंधित है। केतु, भौतिकीकरण के शोधन के आध्यात्मिक प्रक्रिया का प्रतीक है और हानिकर और लाभदायक, दोनों ही माना जाता है, क्योंकि ये जहां एक ओर दु:ख एवं हानि देता है, वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति को देवता तक बना सकता है। यह व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर मोडऩे के लिये भौतिक हानि तक करा सकता है। यह ग्रह तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ और अन्य मानसिक गुणों का कारक है।
माना जाता है कि केतु, सर्पदंश या अन्य रोगों के प्रभाव से हुए विष के प्रभाव से मुक्ति दिलाता है। ये अपने भक्तों को अच्छा स्वास्थ्य, धन-संपदा व पशु-संपदा दिलाता है। मनुष्य के शरीर में केतु अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। ज्योतिष गणनाओं के लिए केतु को तटस्थ अथवा नपुंसक ग्रह मानते हैं। केतु स्वभाव से मंगल की भांति ही एक क्रूर ग्रह है तथा मंगल के प्रतिनिधित्व में आने वाले कई क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व केतु भी करता है। यह ग्रह तीन नक्षत्रों का स्वामी है अश्विनी, मघा एवं मूल नक्षत्र। यही केतु जन्म कुण्डली में राहु के साथ मिलकर कालसर्प योग की स्थिति बनाता है। केतु को सूर्य व चंद्र का शत्रु कहा गया हैं। केतु, मंगल ग्रह की तरह प्रभाव डालता है। केतु वृश्चिक व धनु राशि में उच्च का और वृष व मिथुन में नीच का होता है।

मत्स्य पुराण के अनुसार केतु बहुत-से हैं, उनमें धूमकेतु प्रधान है। भारतीय-ज्योतिष के अनुसार यह छायाग्रह है। व्यक्ति के जीवन-क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को यह प्रभावित करता है। ज्योतिष के अनुसार राहु की अपेक्षा केतु विशेष सौम्य तथा व्यक्ति के लिये हितकारी है। कुछ विशेष परिस्थितियों में यह व्यक्ति को यश के शिखर पर पहुँचा देता है।

यद्यपि राहु-केतु का मूल शरीर एक था और वह दानव-जाति का था। परन्तु ग्रहों में परिगणित होने के पश्चात उनका पुनर्जन्म मानकर उनके नये गोत्र घोषित किये गये। इस आधार पर राहु पैठीनस-गोत्र तथा केतु जैमिनि-गोत्र का सदस्य माना गया।

कुण्डली में केतु
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जन्म कुंडली में लग्न, षष्ठम, अष्ठम और एकादश भाव में केतु की स्थिति को शुभ नहीं माना गया है। इसके कारण जातक के जीवन में अशुभ प्रभाव ही देखने को मिलते हैं। जन्मकुंडली में केतु यदि केंद्र-त्रिकोण में उनके स्वामियों के साथ बैठे हों या उनके साथ शुभ दृष्टि में हों तो योगकारक बन जाते हैं। ऐसी स्थिति में ये अपने शुभ परिणाम जैसे लंबी आयु, धन, भौतिक सुख आदि देते हैं।

केतु के अधीन आने वाले जातक जीवन में अच्छी ऊंचाइयों पर पहुंचते हैं, जिनमें से अधिकांश आध्यात्मिक ऊंचाईयों पर होते हैं।

जातक की जन्म-कुण्डली में विभिन्न भावों में केतु की उपस्थिति भिन्न-भिन्न प्रभाव दिखाती हैं।

👉 प्रथम भाव में अर्थात लग्न में केतु हो तो जातक चंचल, भीरू, दुराचारी होता है। इसके साथ ही यदि वृश्चिक राशि में हो तो सुखकारक, धनी एवं परिश्रमी होता है।

👉 द्वितीय भाव में हो तो जातक राजभीरू एवं विरोधी होता है।

👉तृतीय भाव में केतु हो तो जातक चंचल, वात रोगी, व्यर्थवादी होता है।

👉 चतुर्थ भाव में हो तो जातक चंचल, वाचाल, निरुत्साही होता है।

👉 पंचम भाव में हो तो वह कुबुद्धि एवं वात रोगी होता है।

👉 षष्टम भाव में हो तो जातक वात विकारी, झगड़ालु, मितव्ययी होता है।

👉 सप्तम भाव में हो तो जातक मंदमति, शत्रु से डरने वाला एवं सुखहीन होता है।

👉 अष्टम भाव में हो तो वह दुर्बुद्धि, तेजहीन, स्त्री द्वेषी एवं चालाक होता है।

👉 नवम भाव में हो तो सुखभिलाषी, अपयशी होता है।

👉 दशम भाव में हो तो पितृद्वेषी, भाग्यहीन होता है।

👉 एकादश भाव में केतु हर प्रकार का लाभदायक होता है। इस प्रकार का जातक भाग्यवान, विद्वान, उत्तम गुणों वाला, तेजस्वी किन्तु रोग से पीडि़त रहता है।

👉 द्वादश भाव में केतु हो तो जातक उच्च पद वाला, शत्रु पर विजय पाने वाला, बुद्धिमान, धोखा देने वाला तथा शक्की स्वभाव होता है।

केतु के अन्य ग्रहों से युति के प्रभाव
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👉 सूर्य जब केतु के साथ होता है तो जातक के व्यवसाय, पिता की सेहत, मान-प्रतिष्ठा, आयु, सुख आदि पर बुरा प्रभाव डालता है।

👉 चंद्र यदि केतु के साथ हो और उस पर किसी अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो व्यक्ति मानसिक रोग, वातरोग, पागलपन आदि का शिकार होता है।

👉 वृश्चिक लग्न में यह योग जातक को अत्यधिक धार्मिक बना देता है।

👉 मंगल केतु के साथ हो तो जातक को हिंसक बना देता है। इस योग से प्रभावित जातक अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पाते और कभी-कभी तो कातिल भी बन जाते हैं।

👉 बुध केतु के साथ हो तो व्यक्ति लाइलाज बीमारी ग्रस्त होता है। यह योग उसे पागल, सनकी, चालाक, कपटी या चोर बना देता है। वह धर्म विरुद्ध आचरण करता है।

👉 केतु गुरु के साथ हो तो गुरु के सात्विक गुणों को समाप्त कर देता है और जातक को परंपरा विरोधी बनाता है। यह योग यदि किसी शुभ भाव में हो तो जातक ज्योतिष शास्त्र में रुचि रखता है।

👉 शुक्र केतु के साथ हो तो जातक दूसरों की स्त्रियों या पर पुरुष के प्रति आकर्षित होता है।

👉 शनि केतु के साथ हो तो आत्महत्या तक कराता है। ऐसा जातक आतंकवादी प्रवृति का होता है। अगर बृहस्पति की दृष्टि हो तो अच्छा योगी होता है।

👉 किसी स्त्री के जन्म लग्न या नवांश लग्न में केतु हो तो उसके बच्चे का जन्म आपरेशन से होता है। इस योग में अगर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो कष्ट कम होता है।

👉 भतीजे एवं भांजे का दिल दुखाने एवं उनका हक छीनने पर केतु अशुभ फल देता है। कुत्ते को मारने एवं किसी के द्वारा मरवाने पर, किसी भी मंदिर को तोडऩे अथवा ध्वजा नष्ट करने पर इसी के साथ ज्यादा कंजूसी करने पर केतु अशुभ फल देता है। किसी से धोखा करने व झूठी गवाही देने पर भी केतु अशुभ फल देते हैं।

अत: मनुष्य को अपना जीवन व्यवस्थित जीना चाहिए। किसी को कष्ट या छल-कपट द्वारा अपनी रोजी नहीं चलानी चाहिए। किसी भी प्राणी को अपने अधीन नहीं समझना चाहिए जिससे ग्रहों के अशुभ कष्ट सहना पड़े।

केतु का सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव:
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गुरु के साथ नकारात्मक केतु अपंगता का इशारा करता है, उसी तरह से सकारात्मक केतु साधन सहित और जिम्मेदारी वाली जगह पर स्थापित होना कहता है, मीन का केतु उच्च का माना जाता है और कन्या का केतु नकारात्मक कहा जाता है, मीन राशि गुरु की राशि है और कन्या राशि बुध की राशि है। गुरु ज्ञान से सम्बन्ध रखता है और बुध जुबान से, ज्ञान और जुबान में बहुत अन्तर है। इसी के साथ अगर शनि के साथ केतु है तो काला कुत्ता कहा जाता है, शनि ठंडा भी है और अन्धकार युक्त भी है, गुरु अगर गर्मी का एहसास करवा दे तो ठंडक भी गर्मी में बदल जाती है, चन्द्र केतु के साथ गुरु की मेहरबानी प्राप्त करने के लिये जातक को धर्म कर्म पर विश्वास करना जरूरी होता है, सबसे पहले वह अपने परिवार के गुरु यानी पिता की महरबानी प्राप्त करे, फिर वह अपने कुल के पुरोहित की मेहरबानी प्राप्त करे, या फिर वह अपने शरीर में विद्यमान दिमाग नामक गुरु की मेहरबानी प्राप्त करे।

मंगल एवं केतु में समानता
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मंगल व केतु दोनों ही जोशीले ग्रह हैं, लेकिन इनका जोश अधिक समय तक नहीं रहता है। दूध की उबाल की तरह इनका जोश जितनी चल्दी आसमान छूने लगता है उतनी ही जल्दी वह ठंडा भी हो जाता है। इसलिए, इनसे प्रभावित व्यक्ति अधिक समय तक किसी मुद्दे पर डटे नहीं रहते हैं, जल्दी ही उनके अंदर का उत्साह कम हो जाता है और मुद्दे से हट जाते हैं। मंगल एवं केतु का यह गुण है कि इन्हें सत्ता सुख काफी पसंद होता है। ये राजनीति में एवं सरकारी मामलों में काफी उन्नति करते हैं। शासित होने की बजाय शासन करना इन्हें रूचिकर लगता है। मंगल एवं केतु दोनों को कष्टकारी, हिंसक, एवं कठोर हृदय वाला ग्रह कहा जाता है। परंतु, ये दोनों ही ग्रह जब देने पर आते हैं तो उदारता की पराकष्ठा दिखाने लगते हैं यानी मान-सम्मान, धन-दौलत से घर भर देते हैं।
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: A Must Read :

“मैं न होता तो क्या होता”

अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा, तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीन कर इसका सिर काट लेना चाहिये, किन्तु अगले ही क्षण उन्हों ने देखा मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर वे गदगद हो गये। वे सोचने लगे। यदि मैं आगे बड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मै न होता तो सीता जी को कौन बचाता???

बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मै न होता तो क्या होता ? परन्तु ये क्या हुआ सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया। तब हनुमान जी समझ गये कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं।

आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बंदर आया हुआ है और वह लंका जलायेगा तो हनुमान जी बड़ी चिंता मे पड़ गये कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नही है और त्रिजटा कह रही है की उन्होंने स्वप्न में देखा है, एक वानर ने लंका जलाई है। अब उन्हें क्या करना चाहिए? जो प्रभु इच्छा।

जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिये दौड़े तो हनुमान ने अपने को बचाने के लिए तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब विभीषण ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो हनुमान जी समझ गये कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया है।

आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नही जायेगा पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाये तो हनुमान जी सोचने लगे कि लंका वाली त्रिजटा की बात सच थी, वरना लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता और कहां आग ढूंढता, पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया, जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !

इसलिये हमेशा याद रखें कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि…
मै न होता तो क्या होता

🙏 🙏🏻

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