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: श्री गणेशाय नमः

वास्तु के नियमों को ऐसे समझें, फिर कभी नहीं होगी धन हानि।

वास्तुशास्त्र में दिशाओं का महत्व

मकान का निर्माण करवाते समय या फ्लैट लेते समय वास्तु के नियमों का पालन जरूर करना चाहिए। घर का वास्तु अच्छा होने पर सुख-समृद्धि और शांति रहती है। वहीं वास्तु दोष होने से जीवन में तमाम तरह की परेशानियां और बाधाएं बनी रहती हैं। आइए जानते हैं घर का वास्तु कैसा होना चाहिए।

वास्तु अनुसार घर का मुख्य दरवाजा – पूर्व या उत्तर दिशा
सूर्योदय की दिशा होने की वजह से इस तरफ से सकारात्मक व ऊर्जा से भरी किरणें हमारे घर में प्रवेश करती हैं। घर के मालिक की लंबी उम्र और संतान सुख के लिए घर के मुख्य दरवाजे और खिड़की सिर्फ पूर्व या उत्तर दिशा में होना शुभ माना जाता है।

वास्तु अनुसार घर का पूजाघर- उत्तर-पूर्व
घर में पूजा का स्थान सबसे अहम होता है। वास्तु के अनुसार देवी-देवताओं के लिए उत्तर-पूर्व की दिशा अच्छी मानी जाती है। इस दिशा में पूजाघर स्थापित करें। पूजाघर से सटा हुआ या ऊपर या नीचे की मंजिल पर शौचालय या रसोईघर नहीं होना चाहिए। ‘ईशान दिशा’के नाम से जानी जाने वाली यह दिशा ‘जल’ की दिशा होती है। इस दिशा में बोरिंग, स्वीमिंग पूल, पूजास्थल आदि होना चाहिए। घर के मुख्य द्वार का इस दिशा में होना वास्तु की दृष्टि से बेहद शुभ माना जाता है।

वास्तु अनुसार घर की रसोई- दक्षिण-पूर्वी
रसोईघर के लिए सबसे शुभ स्थान आग्नेय कोण यानी दक्षिण-पूर्वी दिशा है। इस दिशा में रसोईघर का स्थान होने से परिवार के सदस्यों सेहत अच्छी रहती है। यह ‘अग्नि’ की दिशा है इसलिए इसे आग्नेय दिशा भी कहते हैं। इस दिशा में गैस, बॉयलर, इन्वर्टर आदि होना चाहिए। इस दिशा में खुलापन अर्थात खिड़की, दरवाजे बिल्कुल ही नहीं होना चाहिए। इससे अलावा उत्तर-पश्चिम दिशा में भी रसोई घर का निर्माण सही है।

वास्तु अनुसार शयनकक्ष की दिशा
शयनकक्ष के लिए मकान की दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य) या उत्तर-पश्चिम (वायव्य) में होना चाहिए। शयनकक्ष में बेड के सामने आईना और दरवाजे के सामने पलंग न लगाएं। बिस्तर पर सोते समय पैर दक्षिण और पूर्व दिशा में नहीं होना चाहिए। उत्तर दिशा की ओर पैर करके सोने से स्वास्थ्य लाभ तथा आर्थिक लाभ की संभावना रहती है।

वास्तु अनुसार अतिथि कक्ष- उत्तर-पूर्व या उत्तर-पश्चिम दिशा
मेहमानों के लिए अतिथि कक्ष उत्तर-पूर्व या उत्तर-पश्चिम दिशा में होना चाहिए। वास्तु गणना के अनुसार इस दिशा में अतिथि कक्ष होना उत्तम माना गया है। अतिथि कक्ष को भी दक्षिण-पश्चिम दिशा में नहीं बनाना चाहिए।

वास्तु अनुसार शौचालय की दिशा
शौचालय भवन के नैऋत्य यानि पश्चिम-दक्षिण कोण में या फिर नैऋत्य कोण व पश्चिम दिशा के मध्य में होना शुभ माना जाता है।

वास्तु अनुसार स्टडी रूम की दिशा
वास्तु में पूर्व, उत्तर, ईशान तथा पश्चिम के मध्य में अध्ययन कक्ष बनाना शुभ होता है। पढ़ाई करते समय दक्षिण तथा पश्चिम की दीवार से सटकर पूर्व तथा उत्तर की ओर मुख करके बैठना चाहिए।

: क्या आप जानते हैं घर में कौन सा पेड़ लगाना शुभ और कौन-सा अशुभ होता है?
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लोग अपने घर की सुंदरता बढ़ाने के लिए कई प्रकार के पेड़-पौधे लगाते है। कहते हैं घर में पेड़-पौधे लगाने से हरियाली आती है और घर में रहने वाले लोगों का स्वास्थ्य अच्छा रहता हैं, लेकिन कई बार आपके लगाए गए पेड़-पौधे अच्छे परिणाम नहीं देते।

कई बार उनमें भी वास्तुदोष उत्पन्न हो जाता है। हम आपको यहां आपको बता रहे हैं कि घर में कौन सा पेड़-पौधा लगाना और कौन-सा नहीं लगाना चाहिए?

घर में रसोई किस मुख होनी चाहिए से लेकर घर का मुख्य द्वार किधर होना चाहिए। वास्तु में सबका उपाय है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि घर का वास्तु आपके आसपास की चीजों पर भी निर्भर करता है?

जैसे कि आपके घर के आसापास कौन से पेड़ हैं? जानिए वे कौन से पेड़ हैं जिनका घर के पास होना अशुभ माना जाता है।

आइए जानते हैं वृहतसंहिता के अनुसार घर में कौन सा पेड़ नही लगायें जो अशुभ फल देगा-

1- बरगद,पीपल, गूलर का पेड़ लगाना शुभ माना जाता है। ये वृक्ष यदि घर में हो तो, अशुभ फल देने लगते है।

2- सामान्यत: लोग घर में नीम का पेड़ लगाना पसंद नहीं करते, लेकिन घर में इस पेड़ का लगा होना बहुत शुभ होता है। सकारात्मक उर्जा और शुद्ध वायु के साथ यह पेड़ कई प्रकार से कल्याणकारी होता है

3- हिन्दू धर्म में तुलसी के इस पौधे का बहुत महत्व होता है। तुलसी के पौधे को एक प्रकार से लक्ष्मी का रूप माना गया है। यदि आपके घर में किसी प्रकार की नकारात्मक नकारत्मक उर्जा है, तो यह पौधा उसे नष्ट करने में सहायक होता है। हां, ध्यान रखें कि तुलसी का पौधा घर के दक्षिणी भाग में नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि यह आपको फायदे के बदले काफी नुकसान पहुंचा सकता है।

4- आंवला: घर में आंवले का पेड़ लगा हो और वह भी उत्तर दिशा और पूरब दिशा में तो यह अत्यंत लाभदायक है। यह आपके कष्टों का निवारण करता है।

  1. केला: केले का पौधा धार्मिक कारणों से भी काफी महत्वपूर्ण माना गया है। गुरुवार को इसकी पूजा की जाती है और अक्सर पूजा-पाठ के समय केले के पत्ते का ही इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए घर में केले का पेड़ ईशान कोण में हो तो बेहतर है। कहते हैं इस पेड़ की छांव तले यदि आप बैठकर पढ़ाई करते हैं तो वह जल्दी जल्दी याद भी होता चला जाता है।

6- बांस: बांस का पौधा घर में लगाना अच्छा माना जाता है। यह समृद्धि और आपकी सफलता को ऊर ले जाने की क्षमता रखता है।

7- सामान्यता: घरों में आम के पेड़ लगे होते हैं और लोग बड़े शौक से अलग-अलग तरह के आम का पेड़ लगाते हैं, लेकिन क्या आपको मालूम है कि इसका घर के आसपास लगा होना आपको किस तरह की हानि पहुंचा सकता है?
वैसे तो घर के पास आम का पेड़ होना आपके बच्चों पर बुरा असर डालता है। ऐसे पेड़ शौक से तो कभी न लगाएं और यदि पहले से मौजूद हो तो आप यह कर सकते हैं कि इस पेड़ के पास ऐसे पेड़ लगाएं जो शुभ माने जाते हैं। जैसे- नारियल, नीम, अशोक आदि का पेड़ आप लगा सकते हैं।

8- जिनके घर में नारियल के पेड़ लगे हों, उनके मान-सम्मान में खूब वृद्धि होती है।

9- घर के समीप कांटेदार वृक्ष शत्रुभय उत्पन्न करते हैं एंव दूध वाले पेड़ धन का नाश करते है।

10- घर के ईशान और पूर्व दिशा में अधिक ऊंचे पेड़ नहीं होने चाहिए।

11- और ध्यान रखें कि आंगन और घर के आसपास भी ऐसे पेड़ ना हों।

12- घर के आसपास आधा सूखा या आधा जला हुआ पेड़ भी अशुभ माना जाता है। वास्तु में कहा गया है कि इससे घर में नकारात्मकता और बुरी हवाएं प्रवेश करती हैं।

13- कुछ विशेष प्रकार के पेड़-पौधे भी आपके घर के पास नहीं होने चाहिए।
जैसे- रेशम, ताड़, और कपास, का पेड़ पास होने से घर में कलह की स्थिति पैदा होती है।

14- घर के आगे इमली या मेहंदी का पेड़ है तो उसे हटवा दिजिए। वास्तु के अनुसार इनमें बुरी आत्माएं वास करती हैं। यदि आप इन पेड़ों को कटवा नहीं सकते तो इनके दुष्प्रभावों को कम कर सकते हैं। इन पेड़ों के पास तुलसी,अशोक, हल्दी, नीम, चंदन या नागकेसर के पौधे लगा दीजिये इनके बुरे प्रभाव से बच जायेंगे।📚 : बुरी नजर का असर

अगर किसी व्यक्ति को बुरी नजर लग जाती है तो उसके बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है, व्यापार-व्यवसाय में घाटा हो सकता है, नौकरी में परेशानियां बढ़ सकती हैं या पति-पत्नी के बीच झगड़े शुरू हो सकते हैं। इन सभी परेशानियों से बचने के लिए यहां बताए जा रहे उपाय कर सकते हैं।

  1. लाल मिर्च, अजवाइन और पीली सरसों को मिट्‍टी के एक छोटे बर्तन में जलाएं। फिर उसका धुआं उस व्यक्ति को लगने दें, जिसे बुरी नजर लगी है। इससे बुरी नजर उतर सकती है।
  2. शनिवार को हनुमान मंदिर जाएं और हनुमानजी की पूजा करें। उनके कंधे पर से सिंदूर लाकर नजर लगे हुए व्यक्ति के माथे पर लगाने से बुरी नजर का प्रभाव कम होता है।
  3. नमक, राई, राल, लहसुन, प्याज के सूखे छिलके और सूखी मिर्च को एक साथ एक कागज में बांध लें और नजर दोष के पीड़ित व्यक्ति के ऊपर से 7 बार वार लें। इसके बाद अंगारे पर ये पुड़िया डाल दें। इससे बुरी नजर उतर सकती है।
  4. अगर अचानक ही भूख लगना बंद हो गई है तो संभव है कि खाने पर बुरी नजर लग गई हो। इससे बचने के लिए भोजन बनाने के बाद एक रोटी लें और उसे नजर लगे हुए व्यक्ति के ऊपर से 7 बार वार लें। इसके बाद इस रोटी पर गुलाब के फूल रखकर किसी चौराहे पर रख आएं। इससे भी बुरी नजर उतर सकती है।
  5. नजर लगे व्यक्ति को पान में गुलाब की सात पंखुड़ियां रखकर खिलाएं। नजर लगा हुआ व्यक्ति अपने इष्टदेव के नाम का जाप करते हुए पान खाएं। इससे भी बुरी नजर का प्रभाव दूर हो : तत्वों के अनुसार राशियों का वर्गीकरण

तत्वों के आधार पर सभी बारह राशियों को चार भागों में बाँटा गया है. यह चार तत्व अग्नि,पृथ्वी, वायु तथा जल है. जो राशि जिस तत्व में आती है उसका स्वभाव भी उस तत्व के गुण धर्म के अनुसार हो जाता है. उदाहरण के लिए किसी जातक की राशि जलतत्व है तब उसके स्वभाव में जल के गुण पाएं जाएंगे जैसे कि वह स्वभाव से लचीला हो सकता है और परिस्थिति अनुसार अपने को ढालने में सक्षम भी हो सकता है. जल की तरह नरम होगा तथा भावनाएँ भी कूट-कूटकर भरी होगी इसलिए शीघ्र भावनाओं में बहने वाला होगा.

इसी तरह से अन्य राशियों के गुण भी उनके तत्वानुसार होगें. आइए जानने का प्रयास करते हैं।

अग्नि तत्व
मेष, सिंह व धनु राशियां इस वर्ग में आती हैं. अग्नि तत्व वाले जातक दृढ़ इच्छा शक्ति वाले, कर्मशील और गतिशील रहते हैं. अग्नि के समान ज्वाला भी इनमें देखी जा सकती है और हर कार्य में अत्यधिक जल्दबाज भी होते हैं.

पृथ्वी तत्व
वृष, कन्या व मकर राशियां इस वर्ग में आती हैं.व्यक्ति पृथ्वी के समान ही सहनशील होता है,मेहनती होता है, जमीन से जुड़ा होता है,धैर्य भी बहुत रहता है, संतोषी होता है तथा व्यवहारिक भी होता है. सांसारिक सुख चाहता है लेकिन समस्याओं के प्रति उदासीन रहता है.

वायु तत्व
मिथुन, तुला तथा कुंभ राशियाँ इस वर्ग में आती हैं. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है इस राशि का व्यक्ति वायु की तरह हवा में बहुत बहता है अर्थात अत्यधिक विचारशील होता है, सोचना अधिक लेकिन करना कम. कल्पनाशील बहुत होता है लेकिन इन्हें बुद्धिमान भी कहा जाएगा. अनुशानप्रिय होने के साथ विचारों को हवा बहुत देते है. मन के घोड़े दौड़ाते ही रहते हैं.

जलतत्व
कर्क, वृश्चिक तथा मीन राशियाँ इस वर्ग में आती हैं. यह अत्यधिक भावुक तथा संवेदनाओं से भरे हुए रहते हैं. शीघ्र ही बातों में आने वाले होते हैं और खुद भी बातूनी होते हैं. स्वभाव से लचीले होते हैं और जिसने जो कहा वही ठीक है, अपने विचार इसी कारण ठोस आधार नहीं रखते हैं. मित्र प्रेमी होते हैं और स्वाभिमान भी इनमें देखा जा सकता है.

स्वभाव के अनुसार राशियों का वर्गीकरण

राशियों के स्वभावानुसार इन्हें तीन श्रेणियों में बाँटा गया है. चर, स्थिर तथा द्विस्वभाव राशि. हर श्रेणी में चार-चार राशियाँ आती है और इन श्रेणियों के अनुसार ही इनका स्वभाव भी होता है. आइए इसे भी समझने का प्रयास करते हैं.

चर राशि
मेष, कर्क, तुला व मकर राशियाँ इस श्रेणी में आती है. जैसा नाम है वैसा ही इन राशियों का काम भी है. चर मतलब चलायमान तो इस राशि के जातक कभी टिककर नहीं बैठ सकते हैं. हर समय कुछ ना कुछ करते रहना इनकी फितरत में देखा गया है. व्यक्ति में आलस नहीं होता है, क्रियाशील रहता है.गतिशील व क्रियाशील इनका मुख्य गुण होता है. ये परिवर्तन पसंद करते हैं और एक स्थान पर टिककर नहीं रह पाते हैं. ये तपाक से निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं.

स्थिर राशि
वृष, सिंह, वृश्चिक व कुंभ राशियाँ इस श्रेणी में आती हैं. इनमें आलस का भाव देखा गया है इसलिए अपने स्थान से ये आसानी से हटते नहीं हैं. इन्हें बार-बार परिवर्तन पसंद नहीं होता है. धैर्यवान होते हैं और यथास्थिति में ही रहना चाहते हैं. इनमें जिद्दीपन भी देखा गया है. कोई भी काम जल्दबाजी में नहीं करते और बहुत ही विचारने के बाद महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं.

द्विस्वभाव राशि
मिथुन, कन्या, धनु व मीन राशियाँ इस श्रेणी में आती है. इन राशियों में चर तथा स्थिर दोनों ही राशियों के गुण देखे जा सकते हैं. इनमें अस्थिरता रहती है और शीघ्र निर्णय लेने का अभाव रहता है. इनमें अकसर नकारात्मकता अधिक देखी जाती है.
: 🌷🌷 ॐ ह्लीं पीताम्बरायै नमः🌷🌷
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क्या है ज्योतिष की वैज्ञानिक कसौटियां जानकर हैरत में पड़ जाएंगे !! 💠💠
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ज्योतिष को विज्ञान कहने पर अक्सर तार्किकों और ज्योतिषियों में बहस होती है। मेरे देखेते ज्योतिष एक विशुद्ध विज्ञान है लेकिन उस रूप में नहीं, जिस रूप में तथाकथित ज्योतिष इसे सिद्ध करने की असफल कोशिश करते रहते हैं।

 ज्योतिष को उसके व्यावहारिक रूप में समझना अतिआवश्यक है तभी हम उसके वैज्ञानिक रूप को भलीभांति समझ पाएंगे। इस संबंध में कई वैज्ञानिकों और विद्वानों ने अनुसंधान कर कुछ निष्कर्ष निकाले हैं, जो यह सि‍द्ध करते हैं कि ज्योतिष एक विज्ञान है। हम यहां उनमें से कुछ निष्कर्षों पर ध्यान आकृष्ट करेंगे।

💥 प्रसिद्ध चिकित्सा शास्त्री पैरासेलीसस ने अपने अनुसंधानों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि कोई व्यक्ति तब बीमार पड़ता है, जब उसके वर्तमान नक्ष‍त्र और जन्म नक्षत्र के बीच अंतरसंबंध बिगड़ जाता है। पैरासेलीसस किसी भी मरीज को दवा देने से पूर्व उसकी जन्म कुंडली का अध्ययन करते थे।

💥 उनका कहना था कि जब तक वे यह न जान लें कि मरीज किस नक्षत्र में पैदा हुआ है, उसका अंतरसंगीत पकड़ना संभव नहीं और बिना अंतरसंगीत जाने वे उसकी गड़बड़ी ठीक नहीं कर सकते। पैरासेलीसस के बारे में मशहूर था कि वे ऐसे मरीजों को भी ठीक कर देते थे जिन्हें बड़े से बड़े चिकित्सक भी ठीक नहीं कर पाते थे।

💥 ईसा से 500 वर्षों पूर्व यूनान में पाइथोगोरस ने प्लेनेटरी हार्मनी ग्रहीय अंतरसंगीत के बहुमूल्य सिद्धांत को जन्म दिया। पाइथोगोरस का मानना था कि प्रत्येक ग्रह या नक्षत्र जब अं‍तरिक्ष में यात्रा करता है तो उसकी यात्रा से एक विशेष ध्वनि पैदा होती है

💥 जब कोई मनुष्य जन्म लेता है, तब उस जन्म के क्षण में इन नक्षत्रों व ग्रहों के बीच जो संगीत व्यवस्था है, वह उस जातक के चित्त पर अंकित हो जाती है, जो उसे जीवनपर्यंत प्रभावित करती है।

💥 सन् 1950 में जियाजारजी गिआरडी ने एक नए विज्ञान को जन्म दिया जिसका नाम है- कास्मिक केमिस्ट्री अर्थात ब्रह्मंड विज्ञान। इस वै‍ज्ञानिक ने अपने प्रयोगों से यह सिद्ध कर दिया कि समस्त जगत एक आर्गेनिक यूनिटी है। गिआरडी के अनुसार समस्त जगत अंतरसंबंधित है, ठीक एक मानवीय शरीर‍ की भांति।

💥 जिस प्रकार यदि किसी मनुष्य के पैर के अंगूठे को चोट लगती है, तो उस चोट के कारण पूरा शरीर प्रभावित होता है, ठीक उसी प्रकार यदि ब्रह्मंड में ग्रहों का परिवर्तन होता है, तो उससे भी मनुष्य और प्रकृति दोनों प्रभावित होते हैं।

💥 ब्राउन, पिकाडी, तोमातो इन सारे वैज्ञानिकों की खोज का एक अद्भुत निष्कर्ष यह है कि ग्रह-नक्षत्रों से जीवन प्रभावित होता है
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🌷🌷 जय मां पीताम्बरा🌷🌷
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हमारे महान ऋषि अविष्कारक

भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि पुकारा जाता है। यह कई तरह के विलक्षण ज्ञान व चमत्कारों से अटी पड़ी है। सनातन धर्म वेद को मानता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उपासना, संयम के जरिए वेद में छिपे इस गूढ़ ज्ञान व विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले ही कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किए व युक्तियां बताईं। ऐसे विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है।
कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र-शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे अद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा।
अगले पृष्ठों पर जानिए ऐसे ही असाधारण या यूं कहें कि प्राचीन वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों द्वारा किए आविष्कार व उनके द्वारा उजागर रहस्यों को जिनसे आप भी अब तक अनजान होंगे –

  1. महर्षि दधीचि –

महातपोबलि और शिव भक्त ऋषि थे। वे संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान करने की वजह से महर्षि दधीचि बड़े पूजनीय हुए। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि
एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए। देवताओं ने विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित होकर उसका सिर काट दिया। विश्वरूप त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर को पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे।
ब्रह्मादेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए वज्र बनाने के लिए देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए अपनी हड्डियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए।

  1. आचार्य कणाद –

कणाद परमाणुशास्त्र के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले आचार्य कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।

  1. भास्कराचार्य –

आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।

  1. आचार्य चरक –

‘चरकसंहिता’ जैसा महत्तवपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर की सबसे ज्यादा होने वाली डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग जैसी बीमारियों के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर की।

  1. भारद्वाज –

आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।

  1. कण्व

वैदिक कालीन ऋषियों में कण्व का नाम प्रमुख है। इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ। सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है।

  1. कपिल मुनि –

भगवान विष्णु का पांचवां अवतार माने जाते हैं। इनके पिता कर्दम ऋषि थे। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र चाहा। इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ से पैदा हुए। कपिल मुनि ‘सांख्य दर्शन’ के प्रवर्तक माने जाते हैं। इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख जताया। इस पर ऋषि कर्दम देवहूती को इस बारे में पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही। वक्त आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया, वही ‘सांख्य दर्शन’ कहलाता है।
इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप भी संसार के लिए कल्याणकारी बना। इससे जुड़ा प्रसंग है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सगर ने द्वारा किए गए यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के करीब छोड़ दिया। तब घोड़े को खोजते हुआ वहां पहुंचे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे कुपित होकर मुनि ने राजा सगर के सभी पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद के कालों में राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर स्वर्ग से गंगा को जमीन पर उतारा और पूर्वजों को शापमुक्त किया।

  1. पतंजलि –

आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।

  1. शौनक :

वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों तुलना में भी कहीं ज्यादा थी।

  1. महर्षि सुश्रुत –

ये शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है।
जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।

  1. वशिष्ठ :

वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे। दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी।

  1. विश्वामित्र :

ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी।
ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।

  1. महर्षि अगस्त्य –

वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञ कलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर तपस्वी ऋषि थे। उनके तपोबल से जुड़ी पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुःख को दूर करने के लिए समुद्र का सारा जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ।

  1. गर्गमुनि –

गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार। ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के के बारे नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।

  1. बौद्धयन –

भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया।
: अवगुणों की गठरी

एक महात्मा कहीं जा रहे थे। रास्ते में वो आराम करने के लिये रुके। एक पेड़🌳 के नीचे लेट कर सो गये नींद में उन्होंने एक स्वप्न देखा कि…

“वे रास्ते में जा रहे हैं ,और उन्हें एक सौदागर मिला, जो पांच गधों पर बड़ी- बड़ी गठरियां 🎏लादे हुए जा रहा था।

गठरियां बहुत भारी थीं, जिसे गधे🐮 बड़ी मुश्किल से ढो पा रहे थे।

संत ने सौदागर से प्रश्न किया- “इन गठरियों में तुमने ऐसी कौन-सी चीजें रखी हैं, जिन्हें ये बेचारे गधे 🐮ढो नहीं पा रहे हैं ?”

सौदागर ने जवाब दिया- “इनमें इंसान के इस्तेमाल की चीजें भरी हैं। उन्हें बेचने 💰 मैं बाजार जा रहा हूं।

संत ने पूंछा- 🗣“अच्छा! कौन-कौन सी चीजें हैं, जरा मैं भी तो जानूं ?

सौदागर ने कहा- “यह जो पहला गधा🐮 आप देख रहे हैं इस पर अत्याचार की गठरी लदी है।संत ने पूछा- “भला अत्याचार कौन खरीदेगा ?

सौदागर ने कहा- “इसके खरीदार हैं राजा- महाराजा 🤴और सत्ताधारी लोग। काफी ऊंची दर पर बिक्री होती है इसकी।

-“इस दूसरी गठरी 🎏 में क्या है ?

सौदागर बोला- 🗣“यह गठरी अहंकार से लबालब भरी है और इसके खरीदार हैं पंडित और विद्वान।

तीसरे गधे पर ईर्ष्या की गठरी लदी है और इसके ग्राहक हैं वे धनवान 💰लोग, जो एक दूसरे की प्रगति को बर्दाश्त नहीं कर पाते। इसे खरीदने के लिए तो लोगों का तांता लगा रहता है।

  • 🗣“अच्छा! चौथी गठरी में क्या है भाई ?

सौदागर ने कहा- “इसमें बेईमानी भरी है और इसके ग्राहक हैं वे कारोबारी, जो बाजार में धोखे से की गई बिक्री 💰 से काफी फायदा उठाते हैं। इसलिए बाजार में इसके भी खरीदार तैयार खड़े हैं।“

  • “अंतिम गधे🐮 पर क्या लदा है ?

सौदागर ने जवाब दिया- “इस गधे पर छल-कपट से भरी गठरी रखी है और इसकी मांग उन औरतों👩👩‍💼 में बहुत ज्यादा है जिनके पास घर में कोई काम-धंधा नहीं हैं और जो छल-कपट का सहारा लेकर दूसरों की लकीर छोटी कर अपनी लकीर बड़ी करने की कोशिश करती रहती हैं। वे ही इसकी खरीदार हैं।

तभी महात्मा की नींद खुल गई।
इस सपने में उनके कई प्रश्नों का उत्तर उन्हें मिल गया। सही अर्थों में कहें तो वह सौदागर स्वयं शैतान 👹था, जो संसार में बुराइयाँ फैला रहा था। और उसके शिकार कमजोर मानसिकता के स्वार्थी लोग बनते हैं।

शिक्षा-✍ शैतान का शिकार बनने से बचने का एक ही उपाय है कि…ईश्वर☝ पर सच्ची आस्था रखते हुवे अपने मन को ईश्वर का मंदिर बनाने का प्रयत्न किया जाय।

ईश्वर☝ को इससे मतलब नहीं कि कौन मंदिर गया, या किसने कितने वक्त तक पूजा की,पर उन्हें इससे अवश्य मतलब होगा कि किसने अपने किन अवगुणों का त्याग कर किन गुणों का अपने जीवन में समावेश किया ,और उसके रचे संसार🌎 को कितना सजाया-संवारा।

💥 सद्गुरु शिक्षा- जब कोई व्यक्ति दुःखी होकर अपनी की हुई गलती आपको बताता है। तो आप उसे डांटे नहीं क्योंकि वह पहले से ही दुःखी😥 है और उसे अपनी गलती का एहसास है इसलिए उसे प्यार💖 दें क्योंकि उसे आपके प्यार और सहानुभूति की जरूरत है।
: मृत्यु,के बाद क्या होता है?????

श्रीमदभगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को गीता का ज्ञान दे रहे हैं,,,

अर्जुन पूछता है – हे त्रिलोकीनाथ! आप आवागमन अर्थात पुनर्जन्म के बारे में कह रहे हैं, इस सम्बन्ध में मेरा ज्ञान पूर्ण नहीं है। यदि आप पुनर्जन्म की व्याख्या करें तो कृपा होगी।

कृष्ण बताते हैं – इस सृष्टि के प्राणियों को मृत्यु के पश्चात् अपने-अपने कर्मों के अनुसार पहले तो उन्हें परलोक में जाकर कुछ समय बिताना होता है जहाँ वो पिछले जन्मों में किये हुए पुण्यकर्मों अथवा पापकर्म का फल भोगते हैं।

फिर जब उनके पुण्यों और पापों के अनुसार सुख दुःख को भोगने का हिसाब खत्म हो जाता है तब वो इस मृत्युलोक में फिर से जन्म लेते हैं। इस मृत्युलोक को कर्मलोक भी कहा जाता है। क्योंकि इसी लोक में प्राणी को वो कर्म करने का अधिकार है जिससे उसकी प्रारब्ध बनती है।

अर्जुन पूछते हैं – हे केशव! हमारी धरती को मृत्युलोक क्यों कहा जाता है?

कृष्ण बताते हैं – क्योंकि हे अर्जुन, केवल इसी धरती पर ही प्राणी जन्म और मृत्यु की पीड़ा सहते हैं।

अर्जुन पूछता है – अर्थात दूसरे लोकों में प्राणी का जन्म और मृत्यु नहीं होती?

कृष्ण बताते हैं – नहीं अर्जुन! उन लोकों में न प्राणी का जन्म होता है और न मृत्यु। क्योंकि मैंने तुम्हें पहले ही बताया था कि मृत्यु केवल शरीर की होती है, आत्मा की नहीं। आत्मा तो न जन्म लेती है और न मरती है।

अर्जुन फिर पूछते हैं – तुमने तो ये भी कहा था कि आत्मा को सुख-दुःख भी नहीं होते। परन्तु अब ये कह रहे हो कि मृत्यु के पश्चात आत्मा को सुख भोगने के लिए स्वर्ग आदि में अथवा दुःख भोगने के लिए नरक आदि में जाना पड़ता है। तुम्हारा मतलब ये है कि आत्मा को केवल पृथ्वी पर ही सुख दुःख नहीं होते, स्वर्ग अथवा नरक में आत्मा को सुख या दुःख भोगने पड़ते हैं।

कृष्ण बताते हैं – नहीं अर्जुन! आत्मा को कहीं, किसी भी स्थान पर या किसी काल में भी सुख दुःख छू नहीं सकते। क्योंकि आत्मा तो मुझ अविनाशी परमेश्वर का ही प्रकाश रूप है। हे अर्जुन! मैं माया के आधीन नहीं, बल्कि माया मेरे आधीन है और सुख दुःख तो माया की रचना है। इसलिए जब माया मुझे अपने घेरे में नहीं ले सकती तो माया के रचे हुए सुख और दुःख मुझे कैसे छू सकते हैं।
सुख दुःख तो केवल शरीर के भोग हैं, आत्मा के नहीं।

अर्जुन कहता है – हे केशव! लगता है कि तुम मुझे शब्दों के मायाजाल में भ्रमा रहे हो। मान लिया कि सुख दुःख केवल शरीर के भोग हैं, आत्मा इनसे अलिप्त है। फिर जो शरीर उनको भोगता है उसकी तो मृत्यु हो जाती है। वो शरीर तो आगे नहीं जाता, फिर स्वर्ग अथवा नरक में सुख दुःख को भोगने कौन जाता है?

अर्जुन पूछता है – जीव आत्मा? ये जीव आत्मा क्या है केशव!

कृष्ण कहते हैं – हाँ पार्थ! जीव आत्मा। देखो, जब किसी की मृत्यु होती है तो असल में ये जो बाहर का अस्थूल शरीर है केवल यही मरता है। इस अस्थूल शरीर के अंदर जो सूक्ष्म शरीर है वो नहीं मरता। वो सूक्ष्म शरीर आत्मा के प्रकाश को अपने साथ लिए मृत्युलोक से निकलकर दूसरे लोकों को चला जाता है। उसी सूक्ष्म शरीर को जीवात्मा कहते हैं।

अर्जुन पूछता है – इसका अर्थ है- जब आत्मा एक शरीर को छोड़कर जाती है तो साथ में जीवात्मा को भी ले जाती है?

कृष्ण कहते हैं – नहीं अर्जुन! ये व्याख्या इतनी सरल नहीं है। देखो, जैसे समुद्र के अंदर जल की एक बून्द समुद्र से अलग नहीं है उसी महासागर का एक हिस्सा है वो बून्द अपने आप सागर से बाहर नहीं जाती, हाँ! कोई उस जल की बून्द को बर्तन में भरकर ले जाये तो वो समुद्र से अलग दिखाई देती है, इसी प्रकार सूक्ष्म शरीर रूपी जीवात्मा उस आत्म ज्योति के टुकड़े को अपने अंदर रखकर अपने साथ ले जाता है। यही जीवात्मा की यात्रा है जो एक शरीर से दूसरे शरीर में, एक योनि से दूसरी योनि में विचरती रहती है।

इस शरीर में सुन अर्जुन एक सूक्ष्म शरीर समाये रे,
ज्योति रूप वही सूक्ष्म शरीर तो जीवात्मा कहलाये रे।
मृत्यु समय जब यह जीवात्मा तन को तज कर जाये रे,
धन दौलत और सगे सम्बन्धी कोई संग ना आये रे।
पाप पुण्य संस्कार वृत्तियाँ ऐसे संग ले जाए रे,
जैसे फूल से उसकी खुशबु पवन उड़ा ले जाए रे।
संग चले कर्मों का लेखा जैसे कर्म कमाए रे,
अगले जन्म में पिछले जन्म का आप हिसाब चुकाए रे।

हे अर्जुन! जीवात्मा जब एक शरीर को छोड़कर जाती है तो उसके साथ उसके पिछले शरीर की वृत्तियाँ, उसके संस्कार और उसके भले कर्मों का लेखा जोखा अर्थात उसकी प्रारब्ध सूक्ष्म रूप में साथ जाती है।

अर्जुन पूछते हैं – हे मधुसूदन! मनुष्य शरीर त्यागने के बाद जीवात्मा कहाँ जाता है?

कृष्ण कहते हैं – मानव शरीर त्यागने के बाद मनुष्य को अपने प्रारब्ध अनुसार अपने पापों और पुण्यों को भोगना पड़ता है। इसके लिए भोग योनियाँ बनी हैं जो दो प्रकार की हैं- उच्च योनियाँ और नीच योनियाँ।

स्वर्ग नर्क क्या है, श्रीमद भागवत गीता??????

एक पुण्य वाला मनुष्य का जीवात्मा उच्च योनियों में स्वर्ग में रहकर अपने पुण्य भोगता है और पापी मनुष्य का जीवात्मा नीच योनियों में, नरक में रहकर अपने पापों को भोगता है। कभी ऐसा भी होता है कि कई प्राणी स्वर्ग नरक का सुख दुःख पृथ्वी लोक पर ही भोग लेते हैं।

अर्जुन पूछता है- इसी लोक में? वो कैसे?

कृष्ण कहते हैं – इसे तुम यूं समझों अर्जुन कि जैसे कोई सम्पन्न मनुष्य है, महल में रहता है, उसकी सेवा के लिए दास-दासियाँ हर समय खड़ी है, उसका एक इकलौता जवान बेटा है, जिसे वो संसार में सबसे अधिक प्रेम करता है और अपने आपको संसार का सबसे भाग्यशाली मनुष्य समझता है। परन्तु एक दिन उसका जवान बेटा किसी दुर्घटना में मारा जाता है।

दुखों का पहाड़ उस पर टूट पड़ता है। संसार की हर वस्तु उसके पास होने के बावजूद भी वो दुखी ही रहता है और मरते दम तक अपने पुत्र की मृत्यु की पीड़ा से मुक्त नहीं होता। तो पुत्र के जवान होने तक उस मनुष्य ने जो सुख भोगे हैं वो स्वर्ग के सुखों की भांति थे और पुत्र की मृत्यु के बाद उसने जो दुःख भोगे हैं वो नरक के दुखों से बढ़कर थे जो मनुष्य को इसी तरह, इसी संसार में रहकर भी अपने पिछले जन्मों के सुख दुःख को भोगना पड़ता है।

अर्जुन पूछता है – हे मधुसूदन! अब ये बताओ कि मनुष्य अपने पुण्यों को किन-किन योनियों में और कहाँ भोगता है?

कृष्ण बताते हैं – पुण्यवान मनुष्य अपने पुण्यों के द्वारा किन्नर, गन्धर्व अथवा देवताओं की योनियाँ धारण करके स्वर्ग लोक में तब तक रहता है जब तक उसके पुण्य क्षीण नहीं हो जाते।

अर्जुन पूछता है – अर्थात?

कृष्ण कहते हैं – अर्थात ये कि प्राणी के हिसाब में जितने पुण्य कर्म होते हैं उतनी ही देर तक उसे स्वर्ग में रखा जाता है। जब पुण्यों के फल की अवधि समाप्त हो जाती है तो उसे फिर पृथ्वीलोक में वापिस आना पड़ता है और मृत्युलोक में पुनर्जन्म धारण करना पड़ता है।

प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः।
शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते।।

अर्थ :- वह योगभ्रष्ट पुण्यकर्म करने वालों के लोकों को प्राप्त होकर और वहाँ बहुत वर्षों तक रहकर फिर यहाँ शुद्ध श्रीमानों(धनवान) के घर में जन्म लेता है।

अर्जुन पूछता है – परन्तु स्वर्ग लोक में मनुष्य के पुण्य क्यों समाप्त हो जाते हैं? वहाँ जब वो देव योनि में होता है तब वो अवश्य ही अच्छे कर्म करता होगा, उसे इन अच्छे कर्मों का पुण्य तो प्राप्त होता होगा?

कृष्ण बताते हैं – नहीं अर्जुन! उच्च योनि में देवता बनकर प्राणी जो अच्छे कर्म करता है या नीच योनि में जाकर प्राणी जो क्रूर कर्म करता है, उन कर्मों का उसे कोई फल नहीं मिलता।
अर्जुन पूछता है – क्यों?

कृष्ण कहते हैं – क्योंकि वो सब भोग योनियाँ है। वहाँ प्राणी केवल अपने अच्छे बुरे कर्मों का फल भोगता है। इन योनियों में किये हुए कर्मों का पुण्य अथवा पाप उसे नहीं लगता। हे पार्थ! केवल मनुष्य की योनि में ही किये हुए कर्मों का पाप या पुण्य होता है क्योंकि यही एक कर्म योनि है।

पाप पुण्य का लेखा जोखा कैसे होता है?

अर्जुन पूछते हैं – इसका अर्थ ये हुआ यदि कोई पशु किसी की हत्या करे तो उसका पाप उसे नहीं लगेगा और यदि कोई मनुष्य किसी की अकारण हत्या करे तो पाप लगेगा? परन्तु ये अंतर क्यों?

कृष्ण कहते हैं – इसलिए कि पृथ्वी लोक में समस्त प्राणियों में केवल मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो विवेकशील है, वो अच्छे बुरे की पहचान रखता है। दूसरा कोई भी प्राणी ऐसा नहीं कर सकता। इसलिए यदि सांप किसी मनुष्य को अकारण भी डस ले और वो मर जाये तो साप को उसकी हत्या का पाप नहीं लगेगा।

इसी कारण दूसरे जानवरों की हत्या करता है तो उसे उसका पाप नहीं लगता या बकरी का उदाहरण लो, बकरी किसी की हत्या नहीं करती, घास फूंस खाती है, इस कारण वो पुण्य की भागी नहीं बनती। पाप पुण्य का लेखा जोखा अर्थात प्रारब्ध केवल मनुष्य का बनता है। इसलिए जब मनुष्य अपने पाप और पुण्य भोग लेता है तो उसे फिर मनुष्य की योनि में भेज दिया जाता है।

ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं- क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति ।

एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना- गतागतं कामकामा लभन्ते ॥
अर्थ :- वे उस विशाल स्वर्गलोकके भोगोंको भोगकर पुण्य क्षीण होनेपर मृत्युलोकमें आ जाते हैं। इस प्रकार तीनों वेदोंमें कहे हुए सकाम धर्मका आश्रय लिये हुए भोगोंकी कामना करनेवाले मनुष्य आवागमनको प्राप्त होते हैं।

अर्जुन पूछता है – अर्थात देवों की योनियों में जो मनुष्य होते हैं वो अपने सुख भोगकर स्वर्ग से भी लौट आते हैं?
कृष्ण कहते हैं – हाँ! और मनुष्य की योनि प्राप्त होने पर फिर कर्म करते हैं और इस तरह सदैव जन्म मृत्यु का कष्ट भोगते रहते हैं।

अर्जुन पूछता है – हे मधुसूदन! क्या कोई ऐसा स्थान नहीं, जहाँ से लौटकर आना न पड़े और जन्म मरण का ये चक्कर समाप्त हो जाये?

कृष्ण बताते हैं – ऐसा स्थान केवल परम धाम है अर्थात मेरा धाम। जहाँ पहुँचने के बाद किसी को लौटकर नहीं आना पड़ता, इसी को मोक्ष कहते हैं।
: 🌹🚩🌺🌷🌹संतान प्राप्ति के अचूक उपाय🌹🚩🌺🌷🌹

ध्यान रहे कि जिनकी जिंदगी में ऐसा दुःख नहीं होता वो इस बात के मर्म को नहीं समझ सकते हैं किंतु जो वाकई इससे पीड़ित हैं, उन्हें इसका चमत्कार बहुत शीघ्र देखने को मिलता है। परंतु इससे पूर्व संतान हीनता से पीड़ित हर जातक को ये तथ्य भली-भांति समझ लेनी होगी कि किसी भी मंत्र-तंत्र-यंत्र सहित रत्न तक आस्था-श्रद्धा-विश्वास व अटूट निष्ठा की मांग करते हैं। यानि इन प्रयोगों को अपनाने के लिए आपको इतना संकल्पकृत होना ही होगा कि मध्य राह में चाहे जितनी बाधाएं आएं किंतु आप अपने कदम डिगने नहीं देंगे।

इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए हमने गत आलेख में ये स्पष्ट किया था कि डेस्टिनी चेंज हो सकती है बशर्ते आप ग्रहों की चालाकियां समझ लें तथा अपने विवेक को इस्तेमाल करते हुए सही ढंग से उपाय करें।

तो आइए अब हम संतानहीन योगों के बावज़ूद संतान प्राप्ति के उपायों की बात आरंभ करते हैं:

यदि पति व पत्नी, दोनों की कुण्डलियों में पूर्ण संतानहीनता की स्थिति हो तो उन्हें संतान बाधा मुक्ति के लिए निम्न उपाय अविलंब आरंभ करना चाहिए। इसका परिणाम हमेशा सुखद रहा है…………
मंत्र: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः

जप विधि: तुलसी की माला से प्रतिदिन 5 माला प्रातः काल जप करना श्रेयस्कर रहेगा।

भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर के सामने बैठकर कातर भाव से जप करने के पश्चात लड्डू का भोग (प्रसाद) अवश्य चढ़ाएं।

पुत्रेष्टि यज्ञ: यह एक विशद यज्ञ विधान है, जिसे आचार्यों की सहायता के बिना करना संभव नहीं। इस महान यज्ञ का अनुष्ठान संतानहीनता की स्थिति से मुक्त कर देता है। वस्तुतः यह याज्ञिक विधान वैदिक रीति से संपन्न किया जाता है जिसमें भारी व्यय होता है। इसलिए आम आदमी को ये सलाह दी जाती है कि वह इस यज्ञ के स्थान पर गोपाल संतान मंत्र का जाप कराए निश्च़ित ही लाभ होग


: 🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷

लोग कहते है कथा में क्या रखा है?

एक बार खुद कथा में आकर देखो तभी तो जान पाओगे की कथा में रखा क्या हैं। यदि किसी व्यक्ति को तैरना सीखना हैं तो पानी में जाना पड़ेगा। उसी तरह से आनंद चाहिए तो कथा में आओ,ज़माने में क्या रखा हैं।

  • भव सागर चह पार जो पावा। राम कथा ता कहँ दृढ़ नावा॥
    बिषइन्ह कहँ पुनि हरि गुन ग्रामा। श्रवन सुखद अरु मन अभिरामा॥

भावार्थ:-जो संसार रूपी सागर का पार पाना चाहता है, उसके लिए तो श्री रामजी की कथा दृढ़ नौका के समान है। श्री हरि के गुणसमूह तो विषयी लोगों के लिए भी कानों को सुख देने वाले और मन को आनंद देने वाले हैं॥

जो लोग इस संसार रूपी भवसागर से पार पाना चाहते हैं उसके लिए सिर्फ राम नाम की नौका काफी हैं। बस एक बार आप भगवान के नाम पर विश्वास करके बैठ जाइये। भगवान श्री राम आपका खुद ही बेडा पार कर देंगे। और जो लोग संसार के विषयों को और सुखों को ढूंढने में लगे हैं भगवान के गुण तो उन लोगो को भी आनंद प्रदान करते हैं।

ऐसा कौन होगा जिसे भगवान की कथा अच्छी नही लगती होगी और उसमे से भी विशेषकर श्री रामजी
की कथा।

तुलसीदास जी बहुत सुंदर लिखते हैं-

  • श्रवनवंत अस को जग माहीं। जाहि न रघुपति चरित सोहाहीं॥
    ते जड़ जीव निजात्मक घाती। जिन्हहि न रघुपति कथा सोहाती॥

भावार्थ:-जगत्‌ में कान वाला ऐसा कौन है, जिसे श्री रघुनाथजी के चरित्र न सुहाते हों। जिन्हें श्री रघुनाथजी की कथा नहीं सुहाती, वे मूर्ख जीव तो अपनी आत्मा की हत्या करने वाले हैं॥

आपने देखा होगा कुछ लोग आत्महत्या कर लेते हैं, कुछ बुरे लोग दूसरो की हत्या भी कर देते हैं। लेकिन ये सब शरीर की हत्या करते हैं। तुलसीदास जी कहते हैं अरे मूर्ख जीव, तूने तो अपनी आत्मा की ही हत्या कर डाली की भगवान का चरित्र ना तूने सुना और ना तुझे सुहाया। इसलिए राम जी की कथा जरूर सुनिए।

तुलसीदास जी कहते हैं की राम कथा तो चन्द्रमा की किरणों के समान शीतलता प्रदान करने वाली हैं। किसी ने कहा की राम कथा को चन्द्रमा के समान क्यों नही कहा?

क्योंकि चन्द्रमा की किरणे सबको शीतलता प्रदान करती हैं। और जब चन्द्रमा की किरणे धरती पर पड़ती हैं तो सब जगह समान रूप से जाती हैं। वह ये नही देखती की ये गरीब की कुटिया हैं या आमिर की कुटिया। इसी तरह से राम कथा भी सबके लिए हैं और सबको शीतलता प्रदान करती हैं।

श्री रामजी की कथा चंद्रमा की किरणों के समान है, जिसे संत रूपी चकोर सदा पान करते हैं। और इस कथा को चकोर रूपी संत हमेशा पीते रहते हैं।

किसी ने कहा की कितनी बार सुनें? कितनी बार इस कथा रस का पान करें? तो संत जन बड़ा सुन्दर बताते हैं की जब तक जियो तब तक पियो।

सत्संग के बिना हरि की कथा सुनने को नहीं मिलती, उसके बिना मोह नहीं भागता और मोह के गए बिना श्री रामचंद्रजी के चरणों में दृढ़ (अचल) प्रेम नहीं होता।

यदि श्री रामजी की कृपा से इस प्रकार का संयोग बन जाए तो ये सब रोग नष्ट हो जाएँ। सद्गुरु रूपी वैद्य के वचन में विश्वास हो। विषयों की आशा न करे, यही संयम (परहेज) हो।

भगवान की कथा दैहिक, दैविक और भौतिक तीनो ताप को मिटा देती है। श्रीमद भागवत कथा के अंतर्गत आया है की एक बार देवता कथा सुनने के बदले ऋषियों के पास अमृत लेकर पहुंचे थे। तब उन संतो ने कहा का कहाँ मेरी मणि रूपी कथा और कहाँ तुम्हारा कांच रूपी अमृत।

राम चरित जे सुनत अघाहीं। रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं॥
जीवनमुक्त महामुनि जेऊ। हरि गुन सुनहिं निरंतर तेऊ॥1॥

भावार्थ:-श्री रामजी के चरित्र सुनते-सुनते जो तृप्त हो जाते हैं (बस कर देते हैं), उन्होंने तो उसका विशेष रस जाना ही नहीं। जो जीवन्मुक्त महामुनि हैं, वे भी भगवान्‌ के गुण निरंतर सुनते रहते हैं॥

कहने का तात्पर्य भगवान की कथा तो अमृत से भी बढ़कर है। आपने देखा होगा हनुमान जी महाराज जहाँ भी कथा होती है वहां जरूर होते है। क्योंकि हनुमानजी को कथा से बहुत अधिक प्रेम है।

इसलिए भगवान की कथा का श्रवण करें,जरूर करे बार बार करे और फिर फिर स्मरण करें। बस ये दो काम ही काफी है।

।।राम कथा सुन्दर करतारी.. ।

जय श्रीराधे कृष्णा

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: मुझे रोज सत्संग की क्या जरूरत है ?

एक बार एक युवक पुज्य कबीर साहिब जी के पास आया और कहने लगा, ‘गुरु महाराज! मैंने अपनी शिक्षा से पर्याप्त ज्ञान ग्रहण कर लिया है। मैं विवेकशील हूं और अपना अच्छा-बुरा भली-भांति समझता हूं, किंतु फिर भी मेरे माता-पिता मुझे निरंतर सत्संग की सलाह देते रहते हैं। जब मैं इतना ज्ञानवान और विवेकयुक्त हूं, तो मुझे रोज सत्संग की क्या जरूरत है?

कबीर ने उसके प्रश्न का मौखिक उत्तर न देते हुए एक हथौड़ी
उठाई और पास ही जमीन पर गड़े एक खूंटे पर मार दी। युवक अनमने भाव से चला गया अगले दिन वह फिर कबीर के पास आया और बोला, ‘मैंने आपसे कल एक प्रश्न पूछा था, किंतु अापने उत्तर नहीं दिया। क्या आज आप उत्तर देंगे?’

कबीर ने पुन: खूंटे के ऊपर हथौड़ी मार दी। किंतु बोले कुछ
नहीं। युवक ने सोचा कि संत पुरुष हैं, शायद आज भी मौन में हैं वह तीसरे दिन फिर आया और अपना प्रश्न दोहराया। कबीर ने फिर से खूंटे पर हथौड़ी चलाई।

अब युवक परेशान होकर बोला, ‘आखिर आप मेरी बात का जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं?

मैं तीन दिन से आपसे प्रश्न पूछ रहा हूं।’ तब कबीर ने कहा, ‘मैं तो तुम्हें रोज जवाब दे रहा हूं। मैं इस खूंटे पर हर दिन हथौड़ी मारकर जमीन में इसकी पकड़ को मजबूत कर रहा हूं। यदि मैं ऐसा नहीं करूंगा तो इससे बंधे पशुओं द्वारा खींचतान से या किसी की ठोकर लगने से अथवा जमीन में थोड़ी सी हलचल होने पर यह निकल जाएगा।

यही काम सत्संग हमारे लिए करता है। वह हमारे मनरूपी खूंटे पर निरंतर प्रहार करता है, ताकि हमारी पवित्र भावनाएं दृढ़ रहें। युवक को कबीर ने सही दिशा-बोध करा दिया। सत्संग हररोज नित्यप्रति हृदय में सत् को दृढ़ कर असत् को मिटाता है, इसलिए सत्संग हमारी जीवन चर्या का अनिवार्य अंग होना चाहिए।
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: ग्रह पीड़ा के लक्षण और सामान्य उपाय–
मैं ग्रहो के खराब या पीड़ित होने के सामान्य लक्षण बता रहा हु जिसे जातक अनुभव करते है और मेरे अनुभव में भी आया है जिसे मैं साझा कर रहा हु सामान्य उपाय के साथ, जिनका सम्बन्ध कुंडली के हिसाब से नही मिल रहे बुरे परिणामो के तात्कालिक प्रभाव को रोकना है
• सूर्य- सूर्य खराब होने का पहला लक्षण है ज्यादा थूकना दूसरा लक्षण है पिता से अनबन या झगड़ा होते रहना तीसरा लक्षण है सरकार से घाटा या कोई कार्यवाही होना और चौथा है आत्मसम्मान पर ठेस या किसी के द्वारा लांछन लगाना, घर के पूर्वी भाग पर पेड़ो की छाया पड़ना और सूर्य की रोशनी ना पहुचने से भी सूर्य बुरा परिणाम देता है, सपने में कुत्ते जातक के पीछे दौड़ते हुए दिखते है।
उपाय- सूर्य नारायण को रोज अर्घ्य दे, पिता के पैर दबाए, गेहू के आटे का दान रविवार के दिन मंदिर में दे।
• चंद्र- मन में घबराहट होना, निराशा, अवसाद माता से रिश्ता अच्छा ना होना, शरीर में पानी की कमी, बलगम आना, कफ से पीड़ित होना ,घर पानी फालतू बहना या पाइप लीकेज होना, सपने में पानी बहता हुआ और पानी बहने की आवाज सुनाई देती है।
उपाय- अपनी माता को चांदी की कोई चीज गिफ्ट दे विशेषतः बिछुए, विधवा औरतो को सफेद साड़ी दान दे , महादेव का अभिषेक करे ।
• मंगल- खून का बहना, आचनक शत्रुओ का हावी होना, बात बात पे झगड़े होना, भाई से रिश्ता खराब होना दोस्तो द्वारा चुगली करना, घर में खाना पकाने को लेकर परेशानी होती है और अचानक स्वाद उड़ सा जाता है।
उपाय- लाल दाल का दान करे, रक्तदान करे, बूंदी के लड्डू बजरंगबली को चढ़ाये एवम लाल चुनरी माता को यदि स्त्री ग्रह में मंगल बैठा हो।
• बुध- बुध खराब हो तो याददाश कमजोर हो जाए , चेहरे पर दाग , फोड़े , फुंसी ,चमड़ी में खुजाल, घर की तुलसी सुख जाना या पौधों का सुख जाना, किसी के बीच में बोलने से काम बिगड़ जाए, मोबाइल, कंप्यूटर के कीबोर्ड में प्रॉब्लम आजाना, important कागजाद को भूल जाना।
उपाय- सरस्वती को सफेद फूल चढ़ाये , विष्णु सहस्त्रणाम का पाठ करे गाय को हरा चारा चढ़ाये।
• गुरु- गुरु पीड़ित हो तो घर के पूजा घर में दरारे आये आये कोई मूर्ती खण्डित हो जाए, धर्म में मन ना लगें, पैसे फस जाए , गुरु रुठ जाए , अधर्म के कार्य में जातक लीन हो जाए, भाग्य साथ ना दे, कर्जा वापस ना कर पाए।
उपाय- गुरुवार के दिन केलो का दान करे , गुरुदेव दत्तात्रय की आराधना करे, लक्ष्मी नारायण के मंदिर में गेहू या बेसन दान करे।
• शुक्र – शुक्र के पीड़ित हो जाने से स्वप्नदोष होना, भोग के कारण रोग होना , वासना पर सयम ना होना पत्नी द्वारा अपमान होना वीर्य में कमी होना आदि, घर का किचन खराब होना, इलेक्ट्रिसिटी में प्रॉब्लम आना।
उपाय- शुक्रवार के दिन मातारानी को लाल फूल चढ़ाये, पत्नी के बालो में गजरा लगाए , माँ लक्ष्मी की आराधना करे।
• शनि- शनि पीड़ित हो तो मेहनत व्यर्थ हो जाए, शरीर में दर्द हो जाए, चेहरे पर सावला पन आजाये, हर कार्य में बाधा आ जाए, आलस द्वारा जातक घिरा जाए लम्बी बीमारियों का सामना करना पड़े, घर के पश्चिम में स्थित रूम का लाइट बार बार फ्यूज हो जाए।
उपाय- शनि को हर शनिवार सरसो अथवा तिल का तेल चढ़ाये, बजरंगबली को नमन करे, पीपल के पेड़ की प्रदक्षणा कर वहा शानिवार को दिया लगाए, निचले दर्जे के लोगो को दान दक्षिणा करे।
• राहु- राहु पीड़ित हो तो बुरे सपने पड़े , घर के छत पर दरारे आये ,बार बार खाने में बाल निकले, अनजाना सा भय हो , बुद्धि भ्रमित हो अचानक नशे या लड़की की लत लग जाए, इंटरनेट प्रॉब्लम होना, टॉयलेट में जाले और अशुद्धि बढ़ जाना।
उपाय- चांदी का उपयोग ज्यादा करे, काले सफेद तिलों को बहते पानी में बहादे बुधवार या शनिवार के शाम को, नागों की पूजा करे।
• केतु- केतु पीड़ित हो तो फसाद हो जाए कहि न कहि फसा फसा सा लगे, संसार से मन उठ जाए, शारिरिक पीड़ा हो, घर के फर्श में दरारे आना, चीजो की चोरियां भी बढ़ जाती है, मरा साँप सपने में देखना।
उपाय- कुत्तो को रोटी डाले, गणपति की पूजा करे, गाय को मीठा इतिशुभम 🙏

      ॐ नमः शिवपुत्राय गौरीनंद प्रकाशाय मुरुगन    
                      गजाननाय नमामि तव

[6/5, 19:34] Daddy: जिनकी कुंडली में शादी होने में कुछ बाधाएं आने का योग होता है
ग्रह स्थिति निम्न प्रकार से होती है बीस से चौबीस वर्ष की उम्र में शादी |बुध शीघ ही शादी करवाता है | सातवें घर में बुध हो तो शादी जल्दी होने के योग होते हैं | बीस वर्ष की उम्र में शादी होती है यदि बुध पर कोई किसी अन्य ग्रह का प्रभाव न हो | बुध यदि सातवें घर में हो तो सूर्य भी एक स्थान पीछे या आगे होगा या फिर बुध के साथ सूर्य के होने की संभावना रहती है | सूर्य साथ हो तो दो साल का विलम्ब शादी में अवश्य होगा | इस तरह उम्र बाईस में शादी का योग बनता है | यदि सूर्य के अंश क्षीण हों तो शादी केवल बीस से इक्कीस वर्ष की उम्र में हो जाती है |
अभिप्राय यह है कि बीस से चौबीस की उम्र में शादी का योग बनता है जब बुध सातवें घर में हो |
चौबीस से सत्ताईस की उम्र में शादी का योग
यदि शुक्र गुरु या चन्द्र आपकी कुंडली के सातवें घर में हैं तो चौबीस पच्चीस शादी की उम्र में होने की प्रबल संभावना रहती है |
गुरु सातवें घर में हो तो शादी पच्चीस की उम्र में होती है | गुरु पर सूर्य या मंगल का प्रभाव हो तो शादी में एक साल की देर समझें | राहू या शनि का प्रभाव हो तो दो साल की देर यानी सत्ताईस साल की उम्र में शादी होती है |
शुक्र सातवें हो और शुक्र पर मंगल, सूर्य का प्रभाव हो तो शादी में दो साल की देर अवश्यम्भावी है | शनि का प्रभाव होने पर एक साल यानी छब्बीस साल की उम्र में और यदि राहू का प्रभाव शुक्र पर हो तो शादी में दो साल का विलम्ब होता है |
चन्द्र सातवें घर में हो और चन्द्र पर मंगल, सूर्य में से किसी एक का प्रभाव हो तो शादी छब्बीस साल की उम्र में होने का योग होगा | शनि का प्रभाव मंगल पर हो तो शादी में तीन साल का विलम्ब होता है | राहू का प्रभाव होने पर सत्ताईस वर्ष की उम्र में काफी विघ्नों के बाद शादी संपन्न होती है |
कुंडली के सातवें घर में यदि सूर्य हो और उस पर किसी अशुभ ग्रह का प्रभाव न हो तो सत्ताईस वर्ष की उम्र में शादी का योग बनता है | शुभ ग्रह सूर्य के साथ हों तो विवाह में इतनी देर नहीं होती |
अट्ठाईस से बत्तीस वर्ष की उम्र में शादी का योग
मंगल, राहू केतु में से कोई एक यदि सातवें घर में हो तो शादी में काफी देर हो सकती है | जितने अशुभ ग्रह सातवें घर में होंगे शादी में देर उतनी ही अधिक होगी | मंगल सातवें घर में सत्ताईस वर्ष की उम्र से पहले शादी नहीं होने देता | राहू यहाँ होने पर आसानी से विवाह नहीं होने देता | बात पक्की होने के बावजूद रिश्ते टूट जाते हैं | केतु सातवें घर में होने पर गुप्त शत्रुओं की वजह से शादी में अडचनें पैदा करता है |
शनि सातवें हो तो जीवन साथी समझदार और विश्वासपात्र होता है | सातवें घर में शनि योगकारक होता है फिर भी शादी में देर होती है | शनि सातवें हो तो अधिकतर मामलों में शादी तीस वर्ष की उम्र के बाद ही होती है |
बत्तीस से चालीस वर्ष की उम्र में शादी
शादी में इतनी देर तब होती है जब एक से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रभाव सातवें घर पर हो | शनि मंगल, शनि राहू, मंगल राहू या शनि सूर्य या सूर्य मंगल, सूर्य राहू एक साथ सातवें या आठवें घर में हों तो विवाह में बहुत अधिक देरी होने की संभावना रहती है | हालांकि ग्रहों की राशि और बलाबल पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है परन्तु कुछ भी हो इन ग्रहों का सातवें घर में होने से शादी जल्दी होने की कोई संभावना नहीं होती |
शादी में देर के लिए जो ऊपर नियम दिए गए हैं उनमे अधिक सूक्ष्म गणना की आवश्यकता जरूर है परन्तु मोटे तौर पर ये नियम अत्यंत व्यावहारिक सिद्ध होते हैं |
[6/5, 19:34] Daddy: 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

शिव को गुरु बनाने की विधि –

  1. आंखें बंद करके आराम से बैठ जायें.
    भगवान शिव से कहें हे शिव मै आप को अपना गुरु बनने का आग्रह कर रहा हूं. आप मुझे शिष्य के रूप में स्वीकार करें !
  2. दोनों ऊपर हाथ उठाकर ब्रह्मांड की तरफ देखते हुए 3 बार घोषणा करें. कहें- अखिल अंतरीक्ष सम्राज्य में मै घोषणा करता हूं कि शिव मेरे गुरु हैं मै उनका शिष्य हूं. शिव मेरे गुरु हैं मै उनका शिष्य हूं. शिव मेरे गुरु हैं मै उनका शिष्य हूँ ! तथास्तु. घोषणा दर्ज हो. हर हर महादेव.इससे भगवान शिव अपनी ही तय शास्त्रीय व्यवस्था के मुताबिक आग्रह करने वाले को शिष्य के रूप में स्वीकार कर लेते हैं. इसी कारण उसी दिन से जीवन बदलने लगता है !
  3. शिव गुरु को साक्षी बनाकर शुरु किये कार्यों में रुकावटें नही आतीं. इसलिये जो भी काम करें उसके लिये भगवान शिव को पहले साक्षी बना लें. कहें- हे शिव आप मेरे गुरु हैं मै आपका शिष्य हूं आपको साक्षी बनाकर ये कार्य करने जा रहा हूं. इसकी सफलता के लिये मुझे दैवीय सहायता और सुरक्षा प्रदान करें !
  4. हर रोज शिव गुरु से कम से कम तीन बार कहें- हे शिव आप मेरे गुरु हैं मै आपका शिष्य हूं. मुझ शिष्य पर दया करें. हे शिव आप मेरे गुरु हैं मै आपका शिष्य हूं. मुझ शिष्य पर दया करें. हे शिव आप मेरे गुरु हैं मै आपका शिष्य हूं. मुझ शिष्य पर दया करें !
  5. हर रोज शिव गुरु को नमन करें. इसके लिये शांत मन से कुछ मिनटों तक जपें – नमः शिवाय गुरुवे !
  6. भगवान शिव को राम नाम सबसे अधिक प्रिय है. वे खुद भी सदैव इसका ध्यान करते रहते हैं. इसलिये उन्हें गुरु दक्षिणा के रूप में उनकी सबसे प्रिय चीज राम राम ही अर्पित करें !

इसके लिए रोज नमन करने के बाद शिव गुरु से निवेदन करें. कहें – मै आपको गुरु दक्षिणा के रूप में राम नाम सुना रहा हूं. आप मेरे मन के मंदिर में आकर बैठ जायें और राम राम सुने. और स्वीकार करें !

मुझे सदैव दैवीय सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करें !

हे शिव ! आपका धन्यवाद !!
🙏🙏📿📿🔱🔱🕉🕉
[6/5, 19:46] Daddy: 🚩🔥धर्म का रहस्य है क्या❓🔥🚩

बिना धर्म को जाने धर्म के बारें में न तो पूर्ण रूप से अच्छा सोच सकते है न ही पूर्ण रूप से अच्छा कर सकते है क्योंकि धर्म का रहस्य इतना गुप्त एवं मार्मिक है कि इसे अपने इन्द्रीयों के द्वारा जान ही नहीं सकते है। जिस धर्म के रक्षा के लिए त्रेता में भगवान श्रीराम ने तीर उठाए उसी धर्म के चक्र के लिए द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण ने चक्र उठाए लेकिन बात कलयुग में तो किसी ने ज्ञान का प्रकाश फैलाया तो किसी ने कूटनीति का सहारा लिया तो किसी ने तलवार उठाए। हर बार धर्म की रक्षा के लिए हर रूप से महापुरुष आए और अपने लीला के द्वारा धर्म की रक्षा किए और मानव को एक नई दिशा की ओर अग्रसर किए जिसने धर्म को जान लिया उसने धर्म के स्थापना में अपना सहयोग दिया पूर्णरूप से ओर लीला के रंगमंच में भी आनंद उठाया।
उसी तरह आज भी आए होंगे लेकिन अगर अपनी मनमानी तरीके से धर्म के सहयोगी बनने के कोशिश किए अपूर्ण होगा।
इसलिए पहले धर्म को जाने फिर सहयोगी बनें पूर्णरूप से🚩🙏🏻
🚩🔥ॐ श्री आशुतोषाय नमः🔥🚩
[6/6, 01:13] Daddy: बीमारी से संबंधित उपाय एवं टोटके
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किसी भी बीमारी से ग्रसित होने पर अक्‍सर लोग डॉक्‍टर के पास जाते हैं और उनकी सलाह के अनुसार दवाएं आदि लेते हैं. परंतु कई बार इलाज के बावजूद रोग दूर नहीं होते. बीमारी की मूल वजह दूर किए बिना केवल बाहरी इलाज कराने से ही ऐसे प्रयास बेकार जाते हैं. ऐसे में कुछ उपाय बेहद कारगर सिद्ध हो सकते है।

अगर ज्योतिष के नजरिए से देखें, तो हर तरह के रोगों के मूल कारण इंसान के पूर्व जन्‍म या इस जन्‍म के पाप ही होते हैं अथवा ग्रहबाधा भी कई बार रोगों को ठीक होने से रोकती है ऐसी स्थिति में दवाएं भी काम नही करती इसलिए ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि देवताओं का ध्‍यान-स्‍मरण करते हुए पूर्ण निष्ठा से कुछ विशेष उपायों को करने के बाद दवाओं के सेवन से शारीरिक और मानसिक रोग दूर होते हैं।

१👉 कोई व्यक्ति रक्तचाप या डिप्रेशन से ज्यादा परेशान है तो उसे रविवार की रात को ३२५ ग्राम दूध सिरहाने रख कर सो जाना चाहिए सोमवार को सुबह उस दूध को कि कीकर या पीपल के पेड़ में डाल देना चाहिए ऐसा ५ रविवार करने से शरीर को आराम मिलता है।

२👉 किसी रोगी को बुखार आ रहा है और दवा लेने के बावजूद भी ना उतर रहा हों तो एक आंकड़े के पौधे की जड़ को किसी कपड़े में बांधकर उस रोगी के कान से बांध देना चाहिए धीरे-धीरे बुखार उतर जाता है लगातार बुखार रहने पर इच्छा के अनुरूप चीनी चावल दूध एक पेठा लेकर उसे रोगी के ऊपर से ७ बार उल्टा उतार कर किसी धार्मिक स्थान पर लंगर अादी के लिए दान कर देना चाहिए बुखार उतरने लगेगा।

३👉 यदि टाइफाइड जैसी जानलेवा बीमारी से परेशान हो तो प्रतिदिन नारियल का पानी पीना चाहिए और नारियल को अपने ऊपर से उतार के मंदिर में दान करना चाहिए रोग ठीक होने लग जाता है।

४👉 किसी बच्चे का स्वास्थ्य बार-बार खराब होता हो तो किसी मंगलवार को कच्चा दूध १ लीटर ११ बार बच्चे के ऊपर से उतार कर किसी भी कुत्ते को शाम को पिला देना चाहिए बच्चे को स्वास्थ्य में लाभ होगा और बच्चा जल्दी स्वस्थ हो जाएगा।

५👉 यदि किसी बच्चे का स्वास्थ्य बार-बार खराब होता है तो बच्चे के राशि के स्वामी के वार के दिन एक काला धागा लेकर उसमें ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करते हुए थोड़ी थोड़ी दूर पर ७ गाठें लगाकर उस धागे को बच्चे के गले में पहना देना चाहिए बच्चे का स्वास्थ्य धीरे-धीरे ठीक हो जाएगा।

६👉 किसी व्यक्ति को लंबे समय से बीमारी होने पर उसके शयन कक्ष में पलंग के पास सेंधा नमक किसी कांच की कटोरी में भरकर रख देना चाहिए दवा का असर तेजी से होने लगेगा और व्यक्ति जल्दी स्वस्थ हो जाएगा।

७👉 यदि किसी व्यक्ति को माइग्रेन या आधा शीशी का दर्द होने पर व्यक्ति को मंगलवार को सूर्योदय के समय किसी चौराहे पर एक गुड़ का डाला लेकर जाना चाहिए वहां पर दक्षिण मुखी खड़े होकर के दांतो से दो टुकड़ों में बांटकर दोनों टुकड़ों को उसी चौराहे पर फेंक देने के बाद बिना पीछे मुड़े वापस आ जाना चाहिए ऐसा लगातार पांच मंगलवार करना चाहिए ऐसा करते समय ना तो किसी से बोलें और ना ही कोई आपको पुकारे यह ध्यान रखना चाहिए अवश्य लाभ होगा और बहुत जल्दी माइग्रेन और आधासीसी का दर्द गायब हो जाएगा।

८👉 सदा स्वास्थ्य बने रहने के लिए रात्रि को पानी किसी लोटे या गिलास में भर कर रखें सुबह उठकर उसे पीकर बर्तन को उल्टा रख दें तथा दिन में भी पानी पीने के बाद बर्तन को उल्टा रखने से यकृत संबंधी बीमारियां नहीं होती हैं तथा व्यक्ति सदैव स्वस्थ बना रहता है।

९👉 हदयविकार या उच्च रक्तचाप के लिए १६ मुखी रुद्राक्ष उत्तम होता है इनके ना मिलने पर ११ मुखी ७ मुखी अथवा ५ मुखी रुद्राक्ष का उपयोग कर सकते हैं रुद्राक्ष को लेकर श्रावण माह में या किसी प्रदोष व्रत के दिन अथवा सोमवार के दिन अभिषेक करा कर गंगा जल से स्नान कराएं रुद्राभिषेक कराएं ओम नमः शिवाय बोलते हुए दूध से अभिषेक करें इस प्रकार रुद्राक्ष को सिद्ध और अभिमंत्रित करवा कर काले डोरे में डालकर गले में पहने।

१०👉 एक पांच मुखी रुद्राक्ष एक लाल रंग का हकीक सात साबुत डंठल सहित लाल मिर्च को आधा मीटर लाल कपड़े में रखकर व्यक्ति के ऊपर से २१ बार उतार कर इसे किसी नदी या बहते हुए पानी में प्रवाहित कर दें स्वास्थ्य लाभ होने लग जाएगा।

११👉 किसी भी सोमवार से या प्रयोग करें बाजार से कपास के थोड़े से फूल खरीद लाए रविवार शाम ५ फूल आधा कप पानी मैं साफ करके भिगो दें सोमवार को प्रातः उठकर फूल को निकाल कर फेंक दे बचे हुए पानी को पी जाएंगे जिस पात्र में पानी पिए उसे उल्टा करके रख दें कुछ ही दिनों में आश्चर्यजनक स्वास्थ्य लाभ अनुभव करेंगे।

१२👉 पूर्णिमा के दिन चांदनी में खीर बनाएं ठंडी होने पर चंद्रमा और अपने पितरों को भोग लगाएं कुछ खीर काले कुत्ते को भी खिला दे वर्षभर पूर्णिमा पर ऐसा करते रहने से गृह क्लेश बीमारी तथा व्यापार हानि से मुक्ति मिलती है।

१३👉 रोगों से मुक्ति के लिए प्रतिदिन अपने भोजन का चौथा हिस्सा गाय को तथा चौथाई हिस्सा कुत्ते को खिलाएं रोगों से मुक्ति रहेगी।

१४👉 घर में कोई बीमार हो जाए तो उस रोगी को शहद में चंदन मिलाकर चट़ाएं।

१५👉 पुत्र बीमार हो तो कन्याओं को हलवा खिलाएं पीपल के पेड़ की लकड़ी सिरहाने रखें पत्नी बीमार हो तो गोदान करें जिस घर में स्त्री वर्ग को निरंतर स्वास्थ्य की पीड़ा होती रहती है उस घर में तुलसी का पौधा लगाकर उसकी श्रद्धा पूर्वक देखभाल करके रोग एवं पीड़ाओं से मुक्ति मिल सकती है।

१६👉 अगर परिवार में कोई व्यक्ति बीमार रहता है लगातार औषधि सेवन के पश्चात भी स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा है तो किसी भी रविवार से आरंभ करके लगातार तीन दिन तक गेहूं के आटे का पेड़ा तथा एक लोटा पानी व्यक्ति के सिर के ऊपर से उतार के जल को पौधे में डाल दें पेड़ा को गाय को खिला दें इन ३ दिनों के अंदर व्यक्ति स्वस्थ महसूस करने लगेगा अगर टोटके की अवधि में रोगी ठीक हो जाता है तो भी प्रयोग को पूरा करना है बीच में रोकना नहीं है।

१७👉 अमावस्या को प्रातः काल मेहंदी का दीपक पानी मिलाकर बनाएं तेल का दीपक बनाकर ७ उड़द के दाने कुछ सिंदूर दो बूंद दही डालकर एक नींबू की दो फांकी ,शिवजी या भैरव जी के चित्र का पूजन कर दीपक जला दें महामृत्युंजय मंत्र की एक माला या बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ कर रोग शोक दूर करने की भगवान से प्रार्थना करें और घर के दक्षिण की ओर दूर सूखे कुएं में नींबू सहित सामग्री डाल दें पीछे मुड़कर नहीं देखें उस दिन एक ब्राह्मण ब्राह्मणी को भोजन कराकर वस्त्र आदि का दान भी कर दें कुछ दिनों तक पक्षियों पशु और रोगियों की सेवा करते रहें इससे घर की बीमारी भूतबाधा मानसिक अशांति निश्चय ही दूर हो जाती है।

१८👉 अगर बीमार व्यक्ति ज्यादा गंभीर हो तो जो का १२५ ग्राम आटा ले ले उसमें साबुत काले तिल मिलाकर रोटी बनाएं अच्छी तरह सेकलें जिससे वह कच्ची ना रहे फिर उस पर थोड़ा सा तिल्ली का तेल और गुड़ डालकर पेड़ा बनाएं और एक तरफ लगा दें फिर उस रोटी को बीमार व्यक्ति के ऊपर से सात बार उतार कर किसी भैसे को खिला दे पीछे मुड़कर ना देखें और ना कोई आवाज लगाएं भैसा कहां मिलेगा इसका पता पहले से ही मालूम करके रखें भैंस को रोटी नहीं खिलानी है केवल भैसे को ही खिलानी है शनि और मंगलवार को ही यह कार्य करें जल्द ही बीमारी दूर हो जाएगी।

१९👉 शुक्रवार रात को सवा किलो काले साबुत चने भिगोए शनिवार की शाम को काले कपड़े में उन्हें बांध एक कील और काले कोयले का टुकड़ा रखें इस पोटली को किसी तालाब या कुएं में फेंक दें फेंकने से पहले रोगी के ऊपर सात बार उतार दे उल्टा ऐसा ३ शनिवार करें बीमार व्यक्ति शीघ्र ही स्वस्थ हो जाएगा।

२०👉 सवा सेर गुलगुले बन वाले घर में उनको रोगी पर ७ बार वारकर चीलों को खिला दें सारे गुलगुले या आधे से ज्यादा खा ले तो रोगी ठीक हो जाएगा यह कार्य शनिवार या मंगलवार को ही शाम को ४ से ६ के बीच में करें गुलगुले ले जाने वाले व्यक्ति को कोई टोके नहीं और ना ही वह पीछे मुड़ कर के देखें।

२१👉 हर मंगलवार और शनिवार को रोगी के ऊपर से एक पाव इमरती को सात बार उतार कर कुत्ते को खिलाने से धीरे-धीरे स्वास्थ्य में आराम मिलता है कार्य कम से कम ७ सप्ताह करना चाहिए बीच में रुकावट ना हो अन्यथा वापस शुरू करना चाहिए।

२२👉 साबुत मसूर काले उड़द मूंग और ज्वार चारों को बराबर बराबर लेकर साफ करके मिला लें कुल वजन १ किलो ही हो इसको रोगी के ऊपर से सात बार वार कर उनको एक साथ पकाएं जब चारों अनाज पूरी तरह पक जाए तब उसमें तेल गुड़ मिलाकर किसी मिट्टी के दीए में डालकर दोपहर को किसी चौराहे पर रख दें उसके साथ मिट्टी का दिया तेल से भर भरकर जलाएं अगरबत्ती जलाएं फिर पानी से उसके चारों और घेरा बना दें पीछे मुड़कर ना देखें घर आकर हाथ हाथ पैर धोलें बे रोगी ठीक होना शुरू हो जाएगा।

२४👉 धान कूटने वाला मूसर और झाड़ू रोगी के ऊपर से २१ बार उतार के उसके सिराहने रखें रोगी ठीक होने लग जाएगा।

२५👉 सरसों का तेल गर्म करके इसमें एक चमड़े का टुकड़ा डालें पुनः गर्म कर इस में नींबू फिट करी कील और काली कांच की चूड़ी डालकर मिट्टी के बर्तन में रखकर रोगी के सिर पर फिर आए इस बर्तन को जंगल में ले जाकर एकांत में गाड़ दें।

२६👉 घर से बीमारी जाने का नाम ना ले रही हो तो किसी का रोग शांत नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर उसे हांडी में पिरोकर रोगी के पलंग के पाए पर बांधने से आश्चर्यजनक परिणाम मिलता है उस दिन से रोग समाप्त होने लग जाता है।

२७👉 यदि पर्याप्त उपचार करने पर भी रोग पीड़ा शांत नहीं हो रही हो एक ही रोग प्रकट होकर पीड़ित कर रहा हो तथा उपचार करने पर भी शांत नहीं होता हो ऐसे व्यक्ति को अपने वजन के बराबर गेहूं का दान करना चाहिए रविवार के दिन गेहूं का दान जरूरतमंद व्यक्तियों को ही करना चाहिए।

कोई भी उपाय या टोटका बिना गुरु की आज्ञा या साधक के परामर्श के बिना नहीं करना चाहिए कोई भी उपाय करने से पहले आप अपने गुरु से आज्ञा लेकर करें तो सफलता की संभावना शतप्रतिशत रहती है।

संकलित✏️✏️✏️
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[6/6, 01:13] Daddy: आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र (प्रशासनिक सेवा)

यह भी जानें हम.

कभी-कभी हम आपस में बात करते हुए अपनी असहमति को प्रकट करते हुए जोर-जोर से उच्च आवाज में बोलने लगते हैं, जबकि सुनने वाला वहीं निकट बैठा होता है ।

हम ऐसा क्यों करते हैं ? या कोई ऐसा क्यों करता है ? और
यह किस बात को सूचित करता है ?

इस बिंदु पर विचार करने पर हम इसमें दो निम्न बिंदु समाहित होना पाते हैं ।

प्रथम बिंदु यह पाते हैं कि – सामान्य रूप में कोई व्यक्ति जोर से बोलकर दूरस्थ व्यक्ति को अपना संदेश देता है तथा जो निकट है उससे धीमी आवाज में बात करता है ।

अतः आपस में बात करते हुए जोर से बोलना यह सूचित करता है कि जिससे आप बात कर रहे हैं – उसके निकट रहते हुए भी आपके दिल और मन में दूरी का भाव आ गया है । जो निकटता का मित्रता का भाव था वह दूरी में परिवर्तित हो चुका है ।

अतः बुद्धिमान पुरुष कभी भी ऊँचे स्वर में अपनी बात नहीं कहते हैं । और यदि कोई अपना व्यक्ति ऊँचे स्वर में बात करता है तो वे परस्पर निर्मित हुई दूरी को स्वयं जानकर सतर्क हो जाते हैं और मित्रता का भाव फिर एकपक्षीय रूप में अपनाते नहीं ।

द्वितीय यह कि –
श्रुति वाणी अर्थात वाक को अग्नि कहती है । अतः जिस प्रकार हम अग्नि का सही उपयोग करके सुस्वादु भोजन तैयार करते हैं और तीव्र अग्नि में जला हुआ भोजन अग्राह्य हो जाता है । उसी प्रकार तीव्र आवाज में की गयी बात वांछित परिणाम लाती नहीं है ।

अतः वाणी के प्रभाव को जानकर हमें सदैव ही मधुर वाणी में परस्पर संवाद करना चाहिए ।
मन की बात मधुरता के साथ किसी के समक्ष प्रकट करना चाहिए ।
।।ॐ।।

[6/6, 01:13] Daddy: आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र (प्रशासनिक सेवा)

गुरु चांडाल योग

गुरु का राहु या केतु की युति से गुरु चांडाल योग/दोष का निर्माण होता है। जब भी कुंडली में गुरु और राहु ग्रह एक ही राशि में विराजमान होते तो यह कहा जाता है कि आपके कुंडली में गुरु चांडाल योग/दोष है। यदि किसी की जन्मकुंडली में गुरु (बृहस्पति) के साथ राहु या केतु की युति है अथवा गुरु का राहु या केतु के साथ दृष्टि आदि से कोई संबंध बन रहा हो तो ऐसी स्थिति में कुंडली में गुरु चांडाल योग का निर्माण होता है।

गुरु चांडाल योग/दोष का जातक के ऊपर प्रभाव-

किसी की कुंडली में यदि राहु का गुरु के साथ संबंध बन रहा है तो वह व्यक्ति बहुत अधिक भौतिकवादी होता है जिसके कारण ऐसा व्यक्ति अपनी प्रत्येक इच्छा को पूरा करने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार होता है। वह अधिक से अधिक धन कमाकर अपनी इच्छा को मूर्त रूप देना चाहता है और इसके लिए वह अनैतिक अथवा अवैध कार्यों का चुनाव कर लेता है इसमें संदेह नहीं है बल्कि अनुभवजन्य है।

राहु केतु का किसी कुंडली में गुरु के साथ संबंध स्थापित होने पर व्यक्ति के चरित्र में अमर्यादित विकृतिया आ जातीं हैं जिसके कारण वह पाखंडी, अहंकारी, हिंसक, धार्मिक कट्टरवादी बन जाता है जो परिवार तथा समाज के लिए ठीक नहीं माना जा सकता है। परन्तु इस बात का भी जरूर ध्यान रखना चाहिए कि गुरु चांडाल योग प्रत्येक व्यक्ति को अशुभ प्रभाव नहीं देता बल्कि कई बार यह भी देखा गया है व्यक्ति बहुत अच्छे चरित्र तथा उत्तम मानवीय गुणों से युक्त होते है तथा इन्हें सामाजिक पद और प्रतिष्ठा की भी प्रप्ति होती है।

इस दोष के सम्बन्ध में फलादेश करने से पूर्व गुरु तथा राहु के स्वभाव का भलीभाँती अवश्य ही परीक्षण कर लेना चाहिए। इसके लिए इस बात का जरूर ख्याल रखना चाहिए की गुरु चांडाल योग किस स्थान में बन रहा है और कौन सा ग्रह शुभ है तथा कौन सा ग्रह अशुभ है या दोनों अशुभ है परिणाम इसके ऊपर निर्भर करता है।

यदि दोनों ग्रह अशुभ अवस्था में है तो अवश्य ही अशुभ फल प्रदान करेगा वैसी स्थिति में गुरु चांडाल योग जातक को एक घृणित व्यक्ति बना सकता है जिस स्थान/भाव में यह योग बनेगा उस स्थान विशेष के फल को खराब करेगा तथा ऐसा जातक धर्म ,जाति, समुदाय के आधार पर लोगों को हानि अथवा कष्ट पहुंचा सकता है।

शुभ गुरु तथा शुभ केतु का फल-

यदि शुभ गुरु तथा शुभ केतु के संयोग से गुरु चांडाल योग बन रहा है तो वैसा जातक सामजिक तथा आध्यात्मिक होता है। समाज सेवा ही अपना धर्म समझकर कार्य करता है। जातक में मानवीय गुण कूट-कूट कर भरा होता है और कभी कभी तो मानव कल्याण में ही अपना पूरा जीवन निकाल देता है।

शुभ गुरु तथा शुभ राहु का फल-

यदि शुभ गुरु और शुभ राहु द्वारा गुरु चांडाल योग बन रहा है तो व्यक्ति को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में शुभ फल प्रदान की प्रप्ति होगी। गुरु चांडाल योग के जातक के जीवन पर जो भी दुष्प्रभाव पड़ रहा हो उसे नियंत्रित करने के लिए जातक को भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए। एक अच्छा ज्योतिषी कुण्डली देख कर यह बता सकता है कि हमे गुरु को शांत करना उचित रहेगा या राहु के उपाय जातक से करवाने पड़ेंगे। अगर चाण्डाल दोष गुरु या गुरु के मित्र की राशि या गुरु की उच्च राशि में बने तो उस स्थिति में हमे राहु देवता के उपाय करके उनको ही शांत करना पड़ेगा ताकि गुरु हमे अच्छे प्रभाव दे सके। राहु देवता की शांति के लिए मंत्र-जाप पुरे होने के बाद हवन करवाना चाहिए तत्पश्चात दान इत्यादि करने का विधान बताया गया है. अगर ये दोष गुरु की शत्रु राशि में बन रहा हो तो हमे गुरु और राहु देवता दोनों के उपाय करने चाहिए गुरु-राहु से संबंधित मंत्र-जाप, पूजा, हवन तथा दोनों से सम्बंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए।

भावानुसार गुरु चांडाल योग के फल-

1- यदि लग्न में गुरू चाण्डाल योग बन रहा है तो व्यक्ति का नैतिक चरित्र संदिग्ध रहेगा। धन के मामलें में भाग्यशाली रहेगा। धर्म को ज्यादा महत्व न देने वाला ऐसा जातक आत्म केन्द्रित नहीं होता है।

2- यदि द्वितीय भाव में गुरू चाण्डाल योग बन रहा है और गुरू बलवान है तो व्यक्ति धनवान होगा। यदि गुरू कमजोर है तो जातक धूम्रपान व मदिरापान में ज्यादा आशक्त होगा। धन हानि होगी और परिवार में मानसिक तनाव रहेंगे।

3- तृतीय भाव में गुरू व राहु के स्थित होने से ऐसा जातक साहसी व पराक्रमी होती है। गुरू के बलवान होने पर जातक लेखन कार्य में प्रसिद्ध पाता है और राहु के बलवान होने पर व्यक्ति गलत कार्यो में कुख्यात हो जाता है।

4- चतुर्थ घर में गुरू चाण्डाल योग बनने से व्यक्ति बुद्धिमान व समझदार होता है। किन्तु यदि गुरू बलहीन हो तो परिवार साथ नहीं देता और माता को कष्ट होता है।

5- यदि पंचम भाव में गुरू चाण्डाल योग बन रहा है और बृहस्पति नीच का है तो सन्तान को कष्ट होगा या सन्तान गलत राह पकड़ लेगा। शिक्षा में रूकावटें आयेंगी। राहु के ताकतवर होने से व्यक्ति मन असंतुलित रहेगा।

6- षष्ठम भाव में बनने वाले गुरू चाण्डाल योग में यदि गुरू बलवान है तो स्वास्थ्य अच्छा रहेगा और राहु के बलवान होने से शारीरिक दिक्कतें खासकर कमर से सम्बन्धित दिक्कतें रहेंगी एंव शत्रुओं से व्यक्ति पीडित रह सकता है।

7- सप्तम भाव में बनने वाले गुरू चाण्डाल योग में यदि गुरू पाप ग्रहों से पीडित है तो वैवाहिक जीवन कष्टकर साबित होगा। राहु के बलवान होने से जीवन साथी दुष्ट स्वभाव का होता है।

8- यदि अष्टम भाव में गुरू चाण्डाल योग बन रहा है और गुरू दुर्बल है तो आकस्मिक दुर्घटनायें, चोट, आपरेशन व विषपान आदि की आशंका रहती है। ससुराल पक्ष से तनाव भी बना रहता है। इस योग के कारण अचानक समस्यायें उत्पन्न होती है।

9- नवम भाव में बनने वाले गुरू चाण्डाल योग में गुरू के क्षीण होने से धार्मिक कार्यो में कम रूचि होती है एंव पिता से वैचारिक सम्बन्ध अच्छे नहीं रहते है। पिता के लिए भी यह योग कष्टकारी साबित होता है।

10- दशम भाव में बनने वाले गुरू चाण्डाल योग में व्यक्ति में नैतिक साहस की कमी होती, पद, प्रतिष्ठा पाने में बाधायें आती है। व्यवसाय व करियर में समस्यायें आती है। यदि गुरू बलवान है तो आने वाली बाधायें कम हो जाती है।

11- एकादश भाव में बनने वाले गुरू चाण्डाल योग में राहु के बलवान होने से धन गलत तरीके से भी आता है। दुष्ट मित्रों की संगति में पड़कर व्यक्ति गलत रास्ते पर भी चल पड़ता है। यदि गुरू बलवान है तो राहु के अशुभ प्रभावों को कुछ कम कर देगा।

12- द्वादश भाव में बन रहेे गुरू चाण्डाल योग में आध्यात्मिक आकांक्षाओं की प्राप्ति भी गलत मार्ग से होती है। राहु के बलवान होने से शयन सुख में कमी रहती है। आमदनी अठन्नी खर्चा रूपया रहता है। गुरू यदि बलवान है तो चाण्डाल योग का दुष्प्रभाव कम रहता है।

अशुभ प्रभाव कम करने के कुछ उपाय-

भगवान विष्णु के सहस्र नाम का पाठ करें।

भैरव स्त्रोत व चालीसा का नित्य पाठ करें।

गुरू को बलवान करने के लिए केसर व हल्दी का प्रयोग करें।

गुरूवार व शनिवार को मदिरा एंव धूम्रपान का सेंवन कदापि न करें।

गुरूवार के दिन पीपल पेड़ के सेवा करें एंव वृद्धजनों को भोजन करायें।
[6/6, 01:13] Daddy: महामृत्युंजय मंत्र पौराणिक महात्म्य एवं विधि
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महामृत्युंजय मंत्र के जप व उपासना कई तरीके से होती है। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है। मंत्र में दिए अक्षरों की संख्या से इनमें विविधता आती है।

मंत्र निम्न प्रकार से है
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एकाक्षरी👉 मंत्र- ‘हौं’ ।
त्र्यक्षरी👉 मंत्र- ‘ॐ जूं सः’।
चतुराक्षरी👉 मंत्र- ‘ॐ वं जूं सः’।
नवाक्षरी👉 मंत्र- ‘ॐ जूं सः पालय पालय’।
दशाक्षरी👉 मंत्र- ‘ॐ जूं सः मां पालय पालय’।

(स्वयं के लिए इस मंत्र का जप इसी तरह होगा जबकि किसी अन्य व्यक्ति के लिए यह जप किया जा रहा हो तो ‘मां’ के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लेना होगा)

वेदोक्त मंत्र👉
महामृत्युंजय का वेदोक्त मंत्र निम्नलिखित है-

त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌ ॥

इस मंत्र में 32 शब्दों का प्रयोग हुआ है और इसी मंत्र में ॐ’ लगा देने से 33 शब्द हो जाते हैं। इसे ‘त्रयस्त्रिशाक्षरी या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। श्री वशिष्ठजी ने इन 33 शब्दों के 33 देवता अर्थात्‌ शक्तियाँ निश्चित की हैं जो कि निम्नलिखित हैं।

इस मंत्र में 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य 1 प्रजापति तथा 1 वषट को माना है।

मंत्र विचार
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इस मंत्र में आए प्रत्येक शब्द को स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि शब्द ही मंत्र है और मंत्र ही शक्ति है। इस मंत्र में आया प्रत्येक शब्द अपने आप में एक संपूर्ण अर्थ लिए हुए होता है और देवादि का बोध कराता है।

शब्द बोधक
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‘त्र’ ध्रुव वसु ‘यम’ अध्वर वसु
‘ब’ सोम वसु ‘कम्‌’ वरुण
‘य’ वायु ‘ज’ अग्नि
‘म’ शक्ति ‘हे’ प्रभास
‘सु’ वीरभद्र ‘ग’ शम्भु
‘न्धिम’ गिरीश ‘पु’ अजैक
‘ष्टि’ अहिर्बुध्न्य ‘व’ पिनाक
‘र्ध’ भवानी पति ‘नम्‌’ कापाली
‘उ’ दिकपति ‘र्वा’ स्थाणु
‘रु’ भर्ग ‘क’ धाता
‘मि’ अर्यमा ‘व’ मित्रादित्य
‘ब’ वरुणादित्य ‘न्ध’ अंशु
‘नात’ भगादित्य ‘मृ’ विवस्वान
‘त्यो’ इंद्रादित्य ‘मु’ पूषादिव्य
‘क्षी’ पर्जन्यादिव्य ‘य’ त्वष्टा
‘मा’ विष्णुऽदिव्य ‘मृ’ प्रजापति
‘तात’ वषट
इसमें जो अनेक बोधक बताए गए हैं। ये बोधक देवताओं के नाम हैं।

शब्द वही हैं और उनकी शक्ति निम्न प्रकार से है-

शब्द शक्ति 👉 ‘त्र’ त्र्यम्बक, त्रि-शक्ति तथा त्रिनेत्र ‘य’ यम तथा यज्ञ
‘म’ मंगल ‘ब’ बालार्क तेज
‘कं’ काली का कल्याणकारी बीज ‘य’ यम तथा यज्ञ
‘जा’ जालंधरेश ‘म’ महाशक्ति
‘हे’ हाकिनो ‘सु’ सुगन्धि तथा सुर
‘गं’ गणपति का बीज ‘ध’ धूमावती का बीज
‘म’ महेश ‘पु’ पुण्डरीकाक्ष
‘ष्टि’ देह में स्थित षटकोण ‘व’ वाकिनी
‘र्ध’ धर्म ‘नं’ नंदी
‘उ’ उमा ‘र्वा’ शिव की बाईं शक्ति
‘रु’ रूप तथा आँसू ‘क’ कल्याणी
‘व’ वरुण ‘बं’ बंदी देवी
‘ध’ धंदा देवी ‘मृ’ मृत्युंजय
‘त्यो’ नित्येश ‘क्षी’ क्षेमंकरी
‘य’ यम तथा यज्ञ ‘मा’ माँग तथा मन्त्रेश
‘मृ’ मृत्युंजय ‘तात’ चरणों में स्पर्श

यह पूर्ण विवरण ‘देवो भूत्वा देवं यजेत’ के अनुसार पूर्णतः सत्य प्रमाणित हुआ है।

महामृत्युंजय के अलग-अलग मंत्र हैं। आप अपनी सुविधा के अनुसार जो भी मंत्र चाहें चुन लें और नित्य पाठ में या आवश्यकता के समय प्रयोग में लाएँ।

मंत्र निम्नलिखित हैं
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तांत्रिक बीजोक्त मंत्र
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ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ ॥

संजीवनी मंत्र अर्थात्‌ संजीवनी विद्या
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ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूर्भवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ।

महामृत्युंजय का प्रभावशाली मंत्र
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ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ॥

महामृत्युंजय मंत्र जाप में सावधानियाँ
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महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है। लेकिन इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियाँ रखना चाहिए जिससे कि इसका संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके और किसी भी प्रकार के अनिष्ट की संभावना न रहे।
अतः जप से पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  1. जो भी मंत्र जपना हो उसका जप उच्चारण की शुद्धता से करें।
  2. एक निश्चित संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं।
  3. मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें।
  4. जप काल में धूप-दीप जलते रहना चाहिए।
  5. रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।
  6. माला को गोमुखी में रखें। जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गोमुखी से बाहर न निकालें।
  7. जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है।
  8. महामृत्युंजय के सभी जप कुशा के आसन के ऊपर बैठकर करें।
  9. जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें।
  10. महामृत्युंजय मंत्र के सभी प्रयोग पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें।
  11. जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए।
  12. जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधरन भटकाएँ।
  13. जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें।
  14. मिथ्या बातें न करें।
  15. जपकाल में स्त्री सेवन न करें।
  16. जपकाल में मांसाहार त्याग दें।

कब करें महामृत्युंजय मंत्र जाप?
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महामृत्युंजय मंत्र जपने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है, आरोग्यता की भी प्राप्ति होती है। स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य-लाभ होता है।
दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है। साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएँ दूर होती हैं, अतः इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए।

निम्नलिखित स्थितियों में इस मंत्र का जाप कराया जाता है।
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(1) ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास, गोचर और दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा आदि में ग्रहपीड़ा होने का योग है।
(2) किसी महारोग से कोई पीड़ित होने पर।
(3) जमीन-जायदाद के बँटबारे की संभावना हो।
(4) हैजा-प्लेग आदि महामारी से लोग मर रहे हों।
(5) राज्य या संपदा के जाने का अंदेशा हो।
(6) धन-हानि हो रही हो।
(7) मेलापक में नाड़ीदोष, षडाष्टक आदि आता हो।
(8) राजभय हो।
(9) मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो।
(10) राष्ट्र का विभाजन हो गया हो।
(11) मनुष्यों में परस्पर घोर क्लेश हो रहा हो।
(12) त्रिदोषवश रोग हो रहे हों।

महामृत्युंजय मंत्र जप विधि
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महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है। महामृत्युंजय मंत्र के जप व उपासना के तरीके आवश्यकता के अनुरूप होते हैं। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है। यहाँ हमने आपकी सुविधा के लिए संस्कृत में जप विधि, विभिन्न यंत्र-मंत्र, जप में सावधानियाँ, स्तोत्र आदि उपलब्ध कराए हैं। इस प्रकार आप यहाँ इस अद्‍भुत जप के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

महामृत्युंजय जपविधि – (मूल संस्कृत में)

कृतनित्यक्रियो जपकर्ता स्वासने पांगमुख उदहमुखो वा उपविश्य धृतरुद्राक्षभस्मत्रिपुण्ड्रः । आचम्य । प्राणानायाम्य। देशकालौ संकीर्त्य मम वा यज्ञमानस्य अमुक कामनासिद्धयर्थ श्रीमहामृत्युंजय मंत्रस्य अमुक संख्यापरिमितं जपमहंकरिष्ये वा कारयिष्ये।
॥ इति प्रात्यहिकसंकल्पः॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॐ गुरवे नमः।
ॐ गणपतये नमः। ॐ इष्टदेवतायै नमः।
इति नत्वा यथोक्तविधिना भूतशुद्धिं प्राण प्रतिष्ठां च कुर्यात्‌।

भूतशुद्धिः विनियोगः
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ॐ तत्सदद्येत्यादि मम अमुक प्रयोगसिद्धयर्थ भूतशुद्धिं प्राण प्रतिष्ठां च करिष्ये। ॐ आधारशक्ति कमलासनायनमः। इत्यासनं सम्पूज्य। पृथ्वीति मंत्रस्य। मेरुपृष्ठ ऋषि;, सुतलं छंदः कूर्मो देवता, आसने विनियोगः।

आसनः
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ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय माँ देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌।
गन्धपुष्पादिना पृथ्वीं सम्पूज्य कमलासने भूतशुद्धिं कुर्यात्‌।
अन्यत्र कामनाभेदेन। अन्यासनेऽपि कुर्यात्‌।
पादादिजानुपर्यंतं पृथ्वीस्थानं तच्चतुरस्त्रं पीतवर्ण ब्रह्मदैवतं वमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌। जान्वादिना भिपर्यन्तमसत्स्थानं तच्चार्द्धचंद्राकारं शुक्लवर्ण पद्मलांछितं विष्णुदैवतं लमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌।
नाभ्यादिकंठपर्यन्तमग्निस्थानं त्रिकोणाकारं रक्तवर्ण स्वस्तिकलान्छितं रुद्रदैवतं रमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌। कण्ठादि भूपर्यन्तं वायुस्थानं षट्कोणाकारं षड्बिंदुलान्छितं कृष्णवर्णमीश्वर दैवतं यमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌। भूमध्यादिब्रह्मरन्ध्रपर्यन्त माकाशस्थानं वृत्ताकारं ध्वजलांछितं सदाशिवदैवतं हमिति बीजयुक्तं ध्यायेत्‌। एवं स्वशरीरे पंचमहाभूतानि ध्यात्वा प्रविलापनं कुर्यात्‌। यद्यथा-पृथ्वीमप्सु। अपोऽग्नौअग्निवायौ वायुमाकाशे। आकाशं तन्मात्राऽहंकारमहदात्मिकायाँ मातृकासंज्ञक शब्द ब्रह्मस्वरूपायो हृल्लेखार्द्धभूतायाँ प्रकृत्ति मायायाँ प्रविलापयामि, तथा त्रिवियाँ मायाँ च नित्यशुद्ध बुद्धमुक्तस्वभावे स्वात्मप्रकाश रूपसत्यज्ञानाँनन्तानन्दलक्षणे परकारणे परमार्थभूते परब्रह्मणि प्रविलापयामि।तच्च नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभावं सच्चिदानन्दस्वरूपं परिपूर्ण ब्रह्मैवाहमस्मीति भावयेत्‌। एवं ध्यात्वा यथोक्तस्वरूपात्‌ ॐ कारात्मककात्‌ परब्रह्मणः सकाशात्‌ हृल्लेखार्द्धभूता सर्वमंत्रमयी मातृकासंज्ञिका शब्द ब्रह्मात्मिका महद्हंकारादिप-न्चतन्मात्रादिसमस्त प्रपंचकारणभूता प्रकृतिरूपा माया रज्जुसर्पवत्‌ विवर्त्तरूपेण प्रादुर्भूता इति ध्यात्वा। तस्या मायायाः सकाशात्‌ आकाशमुत्पन्नम्‌, आकाशाद्वासु;, वायोरग्निः, अग्नेरापः, अदभ्यः पृथ्वी समजायत इति ध्यात्वा। तेभ्यः पंचमहाभूतेभ्यः सकाशात्‌ स्वशरीरं तेजः पुंजात्मकं पुरुषार्थसाधनदेवयोग्यमुत्पन्नमिति ध्यात्वा। तस्मिन्‌ देहे सर्वात्मकं सर्वज्ञं सर्वशक्तिसंयुक्त समस्तदेवतामयं सच्चिदानंदस्वरूपं ब्रह्मात्मरूपेणानुप्रविष्टमिति भावयेत्‌ ॥
॥ इति भूतशुद्धिः ॥

अथ प्राण-प्रतिष्ठा
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विनियोगःअस्य श्रीप्राणप्रतिष्ठामंत्रस्य ब्रह्माविष्णुरुद्रा ऋषयः ऋग्यजुः सामानि छन्दांसि, परा प्राणशक्तिर्देवता, ॐ बीजम्‌, ह्रीं शक्तिः, क्रौं कीलकं प्राण-प्रतिष्ठापने विनियोगः।

डं. कं खं गं घं नमो वाय्वग्निजलभूम्यात्मने हृदयाय नमः।
ञं चं छं जं झं शब्द स्पर्श रूपरसगन्धात्मने शिरसे स्वाहा।
णं टं ठं डं ढं श्रीत्रत्वड़ नयनजिह्वाघ्राणात्मने शिखायै वषट्।
नं तं थं धं दं वाक्पाणिपादपायूपस्थात्मने कवचाय हुम्‌।
मं पं फं भं बं वक्तव्यादानगमनविसर्गानन्दात्मने नेत्रत्रयाय वौषट्।
शं यं रं लं हं षं क्षं सं बुद्धिमानाऽहंकार-चित्तात्मने अस्राय फट्।
एवं करन्यासं कृत्वा ततो नाभितः पादपर्यन्तम्‌ आँ नमः।
हृदयतो नाभिपर्यन्तं ह्रीं नमः।
मूर्द्धा द्विहृदयपर्यन्तं क्रौं नमः।
ततो हृदयकमले न्यसेत्‌।
यं त्वगात्मने नमः वायुकोणे।
रं रक्तात्मने नमः अग्निकोणे।
लं मांसात्मने नमः पूर्वे ।
वं मेदसात्मने नमः पश्चिमे ।
शं अस्थ्यात्मने नमः नैऋत्ये।
ओंषं शुक्रात्मने नमः उत्तरे।
सं प्राणात्मने नमः दक्षिणे।
हे जीवात्मने नमः मध्ये एवं हदयकमले।
अथ ध्यानम्‌रक्ताम्भास्थिपोतोल्लसदरुणसरोजाङ घ्रिरूढा कराब्जैः
पाशं कोदण्डमिक्षूदभवमथगुणमप्यड़ कुशं पंचबाणान्‌।
विभ्राणसृक्कपालं त्रिनयनलसिता पीनवक्षोरुहाढया
देवी बालार्कवणां भवतुशु भकरो प्राणशक्तिः परा नः ॥

॥ इति प्राण-प्रतिष्ठा ॥

संकल्प
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तत्र संध्योपासनादिनित्यकर्मानन्तरं भूतशुद्धिं प्राण प्रतिष्ठां च कृत्वा प्रतिज्ञासंकल्प कुर्यात ॐ तत्सदद्येत्यादि सर्वमुच्चार्य मासोत्तमे मासे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रो अमुकशर्मा/वर्मा/गुप्ता मम शरीरे ज्वरादि-रोगनिवृत्तिपूर्वकमायुरारोग्यलाभार्थं वा धनपुत्रयश सौख्यादिकिकामनासिद्धयर्थ श्रीमहामृत्युंजयदेव प्रीमिकामनया यथासंख्यापरिमितं महामृत्युंजयजपमहं करिष्ये।

विनियोग
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अस्य श्री महामृत्युंजयमंत्रस्य वशिष्ठ ऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः श्री त्र्यम्बकरुद्रो देवता, श्री बीजम्‌, ह्रीं शक्तिः, मम अनीष्ठसहूयिर्थे जपे विनियोगः।

अथ यष्यादिन्यासः
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ॐ वसिष्ठऋषये नमः शिरसि।
अनुष्ठुछन्दसे नमो मुखे।
श्री त्र्यम्बकरुद्र देवतायै नमो हृदि।
श्री बीजाय नमोगुह्ये।
ह्रीं शक्तये नमोः पादयोः।

॥ इति यष्यादिन्यासः ॥

अथ करन्यासः
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ॐ ह्रीं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः त्र्यम्बकं ॐ नमो भगवते रुद्रायं शूलपाणये स्वाहा अंगुष्ठाभ्यं नमः।
ॐ ह्रीं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः यजामहे ॐ नमो भगवते रुद्राय अमृतमूर्तये माँ जीवय तर्जनीभ्याँ नमः।
ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्‌ ओं नमो भगवते रुद्राय चन्द्रशिरसे जटिने स्वाहा मध्यामाभ्याँ वषट्।
ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः उर्वारुकमिव बन्धनात्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिपुरान्तकाय हां ह्रीं अनामिकाभ्याँ हुम्‌।
ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः मृत्योर्मुक्षीय ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिलोचनाय ऋग्यजुः साममन्त्राय कनिष्ठिकाभ्याँ वौषट्।
ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः मामृताम्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय अग्निवयाय ज्वल ज्वल माँ रक्ष रक्ष अघारास्त्राय करतलकरपृष्ठाभ्याँ फट् ।

॥ इति करन्यासः ॥

अथांगन्यासः
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ॐ ह्रौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः त्र्यम्बकं ॐ नमो भगवते रुद्राय शूलपाणये स्वाहा हृदयाय नमः।
ॐ ह्रौं ओं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः यजामहे ॐ नमो भगवते रुद्राय अमृतमूर्तये माँ जीवय शिरसे स्वाहा।
ॐ ह्रौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय चंद्रशिरसे जटिने स्वाहा शिखायै वषट्।
ॐ ह्रौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः उर्वारुकमिव बन्धनात्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिपुरांतकाय ह्रां ह्रां कवचाय हुम्‌।
ॐ ह्रौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः मृत्यार्मुक्षीय ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिलोचनाय ऋग्यजु साममंत्रयाय नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ ह्रौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः मामृतात्‌ ॐ नमो भगवते रुद्राय अग्नित्रयाय ज्वल ज्वल माँ रक्ष रक्ष अघोरास्त्राय फट्।
॥ इत्यंगन्यासः ॥

अथाक्षरन्यासः
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त्र्यं नमः दक्षिणचरणाग्रे।
बं नमः,
कं नमः,
यं नमः,
जां नमः दक्षिणचरणसन्धिचतुष्केषु ।
मं नमः वामचरणाग्रे ।
हें नमः,
सुं नमः,
गं नमः,
धिं नम, वामचरणसन्धिचतुष्केषु ।
पुं नमः, गुह्ये।
ष्टिं नमः, आधारे।
वं नमः, जठरे।
र्द्धं नमः, हृदये।
नं नमः, कण्ठे।
उं नमः, दक्षिणकराग्रे।
वां नमः,
रुं नमः,
कं नमः,
मिं नमः, दक्षिणकरसन्धिचतुष्केषु।
वं नमः, बामकराग्रे।
बं नमः,
धं नमः,
नां नमः,
मृं नमः वामकरसन्धिचतुष्केषु।
त्यों नमः, वदने।
मुं नमः, ओष्ठयोः।
क्षीं नमः, घ्राणयोः।
यं नमः, दृशोः।
माँ नमः श्रवणयोः ।
मृं नमः भ्रवोः ।
तां नमः, शिरसि।
॥ इत्यक्षरन्यास ॥

अथ पदन्यासः
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त्र्यम्बकं शरसि।
यजामहे भ्रुवोः।
सुगन्धिं दृशोः ।
पुष्टिवर्धनं मुखे।
उर्वारुकं कण्ठे।
मिव हृदये।
बन्धनात्‌ उदरे।
मृत्योः गुह्ये ।
मुक्षय उर्वों: ।
माँ जान्वोः ।
अमृतात्‌ पादयोः।
॥ इति पदन्यास ॥

मृत्युञ्जयध्यानम्‌
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हस्ताभ्याँ कलशद्वयामृतसैराप्लावयन्तं शिरो,
द्वाभ्याँ तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्याँ वहन्तं परम्‌ ।
अंकन्यस्तकरद्वयामृतघटं कैलासकांतं शिवं,
स्वच्छाम्भोगतं नवेन्दुमुकुटाभातं त्रिनेत्रभजे ॥
मृत्युंजय महादेव त्राहि माँ शरणागतम्‌,
जन्ममृत्युजरारोगैः पीड़ित कर्मबन्धनैः ॥
तावकस्त्वद्गतप्राणस्त्वच्चित्तोऽहं सदा मृड,
इति विज्ञाप्य देवेशं जपेन्मृत्युंजय मनुम्‌ ॥

अथ बृहन्मन्त्रः
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ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूः भुवः स्वः। त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्‌। उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्‌। स्वः भुवः भू ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ॥

समर्पण
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एतद यथासंख्यं जपित्वा पुनर्न्यासं कृत्वा जपं भगन्महामृत्युंजयदेवताय समर्पयेत।
गुह्यातिगुह्यगोपता त्व गृहाणास्मत्कृतं जपम्‌।
सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसादान्महेश्वर ॥

॥ इति महामृत्युंजय जप विधि ।।
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