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शनि द्वारा जनित विष योग

विष योग – जब भी किसी जातक की कुंडली में शनि और चन्द्रमा तथा शनि और सूर्य एक साथ विराजमान होते है ये विष योग की उत्पत्ति करते है ।
जिसके कारन कई कष्टो का कारन जातक के जीवन में बन जाता है।

•• आयु , मृत्यु, भय, दुख, अपमान, रोग, दरिद्रता, दासता, बदनामी, विपत्ति, निन्दित कार्य, नीच लोगों से सहायता, आलस, कर्ज, लोहा, कृषि उपकरण तथा बंधन का विचार शनि ग्रह से होता है।

अपने अशुभ कारकत्व के कारण शनि ग्रह को पापी तथा अशुभ ग्रह कहा जाता है। परंतु यह पूर्णतया सत्य नहीं है। वृष, तुला, मकर और कुंभ लग्न वाले जातक के लिए शनि ऐश्वर्यप्रद, धनु व मीन लग्न में शुभकारी तथा अन्य लग्नों में वह मिश्रित या अशुभ फल देता है।

शनि पूर्वजन्म में किये गये कर्मों का फल इस विषयोग की स्थिति ।

कुण्डली में विषयोग का निर्माण शनि और चन्द्र की स्थिति के या शनि सूर्य आधार पर बनता है।

शनि और चन्द्र की जब युति होती है ।
तब अशुभ विषयोग बनता है।

लग्न में चन्द्र पर शनि की तीसरी,सातवीं अथवा दशवी दृष्टि होने पर यह योग बनता है।

कर्क राशि में शनि पुष्य नक्षत्र में हो और चन्द्रमा मकर राशि में श्रवण नक्षत्र का हो और दोनों का परिवर्तन योग हो या फिर चन्द्र और शनि विपरीत स्थिति में हों और दोनों की एक दूसरे पर दृष्टि हो तब विषयोग की स्थिति बनती है।

सूर्य अष्टम भाव में, चन्द्र षष्टम में और शनि द्वादश में होने पर भी इस योग का विचार किया जाता है।

कुण्डली में आठवें स्थान पर राहु हो और शनि मेष, कर्क, सिंह या वृश्चिक लग्न में हो तो विषयोग भोगना होता है.विषयोग चंद्र-शनि से बनता है।

दांपत्य जीवन तब नष्ट होता है।जब सप्तम भाव या सप्तमेश से युति दृष्टि संबंध हो।

जैसे सप्तम भाव में धनु राशि हो और सप्तम भाव में शनि हो और लग्न में गुरु-चंद्र हो तब यह दोष लगेगा या शनि-चंद्र सप्तम भाव में हो तब दांपत्य जीवन को प्रभावित करेगा।

इसी प्रकार विस्फोटक योग शनि-मंगल से बनता है। यदि शनि-मंगल की युति सप्तम भाव में हो या शनि सप्तम भाव में हो व मंगल की दृष्टि पड़ती हो तो या शनि सप्तम भाव में बैठे मंगल पर दृष्टिपात करता हो या सप्तमेश शनि-मंगल से पीड़ित हो तो दांपत्य जीवन नष्ट होता है। अन्यत्र हो तो दांपत्य जीवन नष्ट नहीं होता।

जन्म पत्रिका में कितने भी शुभ ग्रह हों और इन योगों में से कोई एक भी योग बनता है तो सभी शुभ प्रभावों को खत्म कर देता है। यदि उपरोक्त योग जहाँ बन रहे हैं,
उन पर यदि शुभ ग्रह जैसे गुरु की दृष्टि हो तो कुछ अशुभ परिणाम कम कर देता है।

*ऐसा जातक नौकरी में भटकता रहता है,
स्थानांतरण होते रहते हैं एवं अपने अधिकारियों से नहीं बनती। यदि शनि-मंगल की युति तृतीय भाव में हो तो भाइयों से नहीं बनती व मित्र भी दगा कर जाते हैं। साझेदारी में किए गए कार्यों में घाटा होता हैं।

सूर्य-चंद्र की युति सदैव अमावस्या को ही होती है

इसे अमावस्या योग की संज्ञा दी गई है,

विष योग किस प्रकार बनता है ।ज्योतिष विज्ञान के अनुसार विषयोग तब बनता है जब वार और तिथि के मध्य विशेष योग बनता है।

•• जैसे जब रविवार के दिन चतुर्थी तिथि पड़े तब इस योग का निर्माण होता है।
सोमवार का दिन हो और षष्टी तिथि पड़े तब यह अशुभ योग बनता है।
मंगलवार का दिन हो और तिथि हो सप्तमी, इस बार और तिथि के संयोग से भी विष योग बनता है।
द्वितीया तिथि जब बुधवार के दिन पड़े तब विष योग का निर्माण होता है।
अष्टमी तिथि हो और दिन हो गुरूवार का तो इस संयोग का फल विष योग होता है।
शुक्रवार के दिन जब कभी नवमी तिथि पड़ जाती है ।
तब भी विष योग बनाता है।
शनिवार के दिन जब सप्तमी तिथि हो तब आपको कोई शुभ काम करने की इज़ाजत नहीं दी जाती है।
क्योंकि यह अशुभ विष योग का निर्माण करती है।

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