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वात पित्त कफ दोष के कारण लक्षण और इलाज

वात क्या होती है :वात या वायु तीनों दोषों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है | ‘वात’ या ‘वायु’ यह दोनों ही शब्द संस्कृत के वा गतिगन्धनयो: धातु से बने हैं, इसके अनुसार जो तत्व शरीर में गति या उत्साह उत्पन्न करें, वह वात अथवा वायु कहलाता है | इस प्रकार शरीर में सभी प्रकार की गतियां इसी वात के कारण होती है | वात को ही ‘प्राण’ भी कहा गया है | अथर्ववेद में ‘प्राणाय नमो यस्य सर्वमिदं वशे’ कहकर संपूर्ण ब्रहमांड को प्राण के वश में कहा गया है | चरक में वायु को ही अग्नि का प्रेरक, सभी इंद्रियों का प्रेरक तथा हर्ष व उत्साह का उत्पत्तिस्थान कहा गया है; क्योंकि यह वायु ही शरीरगत सभी धातुओं को अपने अपने कार्य में प्रवृत्त करता है तथा शरीर को धारण करने वाला वायु ही है | यही प्राण वायु के रूप में पंचमहाभूतों में विधमान है, वात के रूप में त्रिदोष में स्थित है | वही वायु श्वास-प्रश्वास व उर्जा के रूप में देह को धारण करता है, इसी का नाम प्राण वायु या वात है |

वात के गुण और कार्य :

1-यह प्राण शब्द जीवनीय शक्ति का घोतक है

2-यह मन, ज्ञानेंद्रियों और कर्म इंद्रियों को अपने-अपने विषयों और कर्मों में नियुक्त करता है

3-शरीर की पाचक अग्नि और धात्वग्नियो को भी यही प्रदीप्त करता है

4-हमारे शरीर में जो विभिन्न स्रोत हैं, उनके छोटे बड़े विवरों (खाली स्थानों) का निर्माण भी यही वात ही करता है

5-रस, रक्त आदि प्रत्येक धातु की सूक्ष्म से स्थूल रचना तथा शरीर के एक अंग का दूसरे अंग से संबंध का कारण भी यही वात है | इसी के कारण गर्भ में स्थित भ्रूण का विकास व उसके आकार का निर्माण हो पाता है

6-नाड़ीमंडल की सभी क्रियाओं का नियंत्रण इसी वात के अधीन है

7-वात के बिना तो दूसरे दोनों दोष- पित्त और कफ भी पंगु के समान निष्क्रिय से रहते हैं, क्योंकि यह वात ही इन दोनों दोषों तथा मलो को अपने अपने स्थान पर स्थिर रखता है तथा आवश्यकता पड़ने पर अन्यत्र पहुंचाता है |

8-इस प्रकार मल, मूत्र, स्वेद आदि मलो को शरीर से बाहर निकालने वाला यह वात ही है |

जब यह अपनी समावस्था में रहता है तो सभी दोषों धातुओं और मलो को भी सम अवस्था में रखता है | परंतु जब यह दूषित या कुपित हो जाए, तो सभी दोषों, धातुओं, मलो और स्रोतों को भी दूषित कर देता है, क्योंकि गतिशील होने के कारण यह किसी भी दोष को दूसरे स्थान पर पहुंचा देता है, जिससे उस स्थान पर पहले से ही विद्यमान दोष में वृद्धि हो जाती है और रोग उत्पन्न हो जाता है |

इस प्रकार आयुर्वेद के अनुसार शरीर में सभी प्रकार के रोगों का मूल कारण इसी वात का प्रकुपित होना ही है | जहां सामान्य दशा में वात दोषों और ⁠⁠⁠दूष्यों (धातु, ⁠⁠⁠मलों, उपधातुओं) को अलग-अलग रखता है, वही कुपित होने पर इनको आपस में संयुक्त कर देता है, जिससे रोग उत्पन्न हो जाते हैं |

वात में एक गुण है – योगवाहिता, अर्थात अन्य दोषों के सहयोग से उनके गुणों को धारण करना | इस प्रकार जब यह पित्त दोष के साथ मिलता है तो उसमें दाह, उष्णता आदि पित्त के गुण आ जाते हैं, और जब कफ के साथ मिलता है तो उसमें शीतलता, क्लेदन (गीलापन) आदि गुण आ जाते हैं | यह वात स्थान और कर्म के भेद से पांच प्रकार का माना गया है प्राण, उदान, समान, व्यान और अपान |सभी प्रकार के रोगों की उत्पत्ति में वात का योगदान होता है, परंतु केवल वात के प्रकोप से उत्पन्न होने वाले नानात्मज रोग, संख्या में 80 माने गए हैं |

वात दोष के कारण : वेगरोध अर्थात मल-मूत्र, छीक आदि स्वाभाविक इच्छाओं को दबाकर रखना, खाए हुए भोजन के पचने से पहले ही फिर कुछ खा लेना, रात को देर तक जागते रहना, ऊंचा बोलना, अपनी शक्ति की अपेक्षा अधिक शारीरिक श्रम करना, लंबी यात्रा के समय वाहन में धक्के लगना, रूखे, तीते (तिक्त) अर्थात कड़वे और कसैले खाद्य पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करना, सूखे मेवे अधिक मात्रा में खाना, बहुत अधिक चिंता करना, मानसिक परेशानी में रहना, अधिक संभोग करना, डरना, उपवास रखना, अधिक मात्रा में खाना तथा अधिक ठंडा खाना इन सभी कारणों से शरीर में वात दोष कुपित हो जाता है | वर्षा ऋतु में तो इन कारणों के बिना भी वात का प्रकोप स्वाभाविक रूप से हो जाता है | वात प्रकृति वाले लोगों में तो बहुत अल्प कारणों से ही वात का प्रकोप हो जाता है

वात दोष के लक्षण :जब शरीर में वात प्रकुपित हो जाता है, तो उससे शुष्कता, रूखापन, अंगों में शरीर में जकड़न, सुई की चुभन जैसा दर्द, संधि-शैथिल्य (हड्डियों के जोड़ों में ढीलापन), संधि-⁠⁠⁠च्युति (हड्डियों का खिसकना) हड्डी का टूटना, कठोरता, अंगो में कार्य करने की अशक्ति, अंगों में कंपन व अस्वाभाविक गति से अंगो का सुन्न पड़ना, शीतलता, कमजोरी, कब्ज, शूल (तेज पीड़ा), नाखून, दातों और त्वचा के रंग का कुछ काला या फीका पड़ना, मुंह का स्वाद कसैला या फीका होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं | वात का मूलस्थान पक्वाशय (आँत) है | अन्न का मल भाग जब पक्वाशय में पहुंचता है, तो वात उत्पन्न होती है जो दूषित या प्रकुपित वात ही होती है |

प्रकुपित वात का उपचार :जिन कारणों से वात का प्रकोप होता है, उन कारणों को दूर करने तथा वात के विरोधी खान-पान, औषधियां और साधनों का प्रयोग करने से वात शांत हो जाता है | इसके अतिरिक्त वात जो अपने गुण-कर्म है, उनसे विपरीत (उल्टी) चिकित्सा करनी चाहिए | इस दृष्टि से निम्नलिखित उपायों का प्रयोग करना चाहिए |

1- स्नेहन- अर्थात स्नेह पदार्थों (घी, तेल, वसा, मज्जा) का सेवन | उष्ण जल से स्नान करना तथा स्नेहयुक्त बस्ती (एनीमा) देना |
2- स्वेदन या सेंक- गर्म जल से तथा वातनाशक औषधियों के काढ़े से स्नान व अवगाहन (काढ़े वाले टब आदि में बैठना) एवं अन्य गर्म पदार्थों का प्रयोग करके पसीना लाना |
3- मृदु विरेचन- अर्थात स्निग्ध, उष्ण तथा मधुर (मीठे) अम्ल (खट्टे) तथा (लवण) नमकीन रस वाले द्रव्य से तैयार औषधि से हल्का विरेचन कराना, जिससे मल बाहर निकल जाए |
4- रोग वाले अंगों पर पुल्टिस व पट्टी (कपड़े से) बांधना, पादाघात अर्थात पैर से दबाव, वातनाशक द्रव्यों का नस्य लेना (नाक में डालकर ऊपर की ओर खींचना) उनका उबटन मलना, स्नान, संवाहन (हाथ से अंगों को दबाना) और मालिश करना|
*5- वातहर औषधियों के काढ़े की धारा सिर पर डालना| (शिरोधारा परिषेक)
*6- वातशामक औषधियों से तैयार आसव आदि पिलाना |*
7- पाचक, दीपक, (पाचक अग्नि को तेज करने वाली) उत्तेजक वात को शांत करने वाली तथा विरेचक (मल को बाहर निकालने वाली) औषधियों से पकाए गए घी, तेल आदि स्नेह पदार्थों का खाने-पीने वह मालिश करने के रूप में प्रयोग करना |
*8- गेहूं, तिल, अदरक, लहसुन और गुड आदि डालकर तैयार किए गए खाद पदार्थों का सेवन
*9- स्निग्ध और उष्ण औषधियों से तैयार अनेक प्रकार के एनिमा का प्रयोग |*
10– रोग व परिस्थिति के अनुसार मानसिक उपचार जैसे- रोगी को डराना, एकदम चौंकाना तथा विस्मरण करवाना, जिस किसी विशेष घटना से रोगी परेशान हुआ हो, उसे भुलाने की कोशिश करना |

स्निग्ध द्रव्यों में वात की शांति के लिए तिल का तेल सबसे अधिक श्रेष्ठ है तथा अनुवासन-बस्ती (एक प्रकार का एनिमा) विशेष रूप से लाभकारी है | जैसा कि पहले कहा गया है, रात का मूल स्थान पक्वाशय (बड़ी आँत) है, अतः इसे शांत करने के लिए तो निरूह और अनुवासन बस्तीयाँ (एनीमा के दो प्रकार) सबसे उत्तम उपाय है क्योंकि यह एनिमा पक्वाशय में जल्दी प्रवेश कर सभी दूषित पदार्थों को बाहर निकाल देता है, जिससे वात का प्रशमन हो जाता है |

पित्त क्या होती है :पित्त पांच प्रकार का होता है और शरीर में पांच स्थानों में रहता है। यह एक पतला पीले रंग का और तेज़ाब की तरह गर्म द्रव्य(तरल) होता है। यदि पित्त आम युक्त होता है तो पित्त का रंग नीलापन लिये होता है और आम रहित पित्त पीला रहता है। पित्त के लक्षण (गुण ) और चिकित्सा- सूत्र का विवरण आयुर्वेद ने इस प्रकार से प्रस्तुत किया है

सस्नेह मुष्णं तीक्ष्णं च द्रवमम्लं सरं कटु ।
विपरीत गुणैः पित्तं द्रव्यैराशु प्रशाम्यति ।।

अर्थात् पित्त तनिक चिकनाई युक्त, उष्ण, तीखा, द्रव, खट्टा, सर और कटु गुण वाला होता है। इनसे विपरीत् गुण वाले द्रव्यों के प्रयोग से पित्त का शमन होता है।

पित्त के प्रकार और कार्य :इसके 5 प्रकार व स्थान इस प्रकार हैं-

(1) पाचक पित्त- आमाशय में रह कर छः रसों को पचाता है,अग्नि (जठराग्नि) के बल को बढ़ाता है और शरीर के सब पित्तों का पालन-पोषण करता हैं।

(2) रंजक पित्त- यकृत (लिवर) व तिल्ली में रह कर रस को रक्त बनाता है।

(3) साधक पित्त – हृदय में रह कर रक्षा करता है और बुद्धि व स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।

(4) आलोचक पित्त- यह नेत्रों में रह कर देखने की शक्ति प्रदान करता है और इसी के बल से व्यक्ति को दिखाई देता है।

(5) भ्राजक पित्त- सारे शरीर और त्वचा में भ्राजक पित्त व्याप्त रह कर त्वचा की कान्ति बढ़ाता है और मालिश के तैल को सोखता है।

इन पित्तों में जो भी या जिस जिस स्थान का पित्त कुपित होगा उस उस स्थान से सम्बन्धित पित्तजन्य व्याधियां उत्पन्न हो जाएंगी।

पित्त के लक्षण :✶जब पित्त कुपित होता है तब शरीर में जलन और आग की ज्वाला की आंच लगने का अनुभव होना ।

✶गर्मी लगना, खट्टी डकारें आना, पसीना बहुत आना, शरीर से दुर्गन्ध आना, जी मचलाना ।
✶घबराहट, उलटी होने की इच्छा होना या उलटी होना, मुंह का स्वाद कड़वा होना, त्वचा का सूखा होना ।

✶ फटना, लाल-लाल चकत्ते होना, अधिक प्यास लगना, मुंह सूखना, पतले दस्त लगना, आखों व पेशाब का रंग पीला होना ।

✶आंखों के सामने अन्धेरा छाना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।

पित्त के कारण :

1-शारीरिक स्तर पर पित्त कुपित होने का मुख्य कारण होता है तेज़ मिर्च मसालेदार, तले हुए और उष्ण प्रकृति के पदार्थों का लगातार अधिक समय तक अति सेवन करना

2-इसके अलावा श्रम की अधिकता, मैथुन कर्म में अधिकता, खटाई और खट्टे पदार्थों का सेवन, मादक पदार्थों का सेवन व मांसाहार का सेवन करना, खट्टा दही आदि का सेवन करना

3- अनुचित ढंग के रहन सहन के कारण पित्त प्रकोप होता है

4-मानसिक रूप से अधिक क्रोध करना, शोक, चिन्ता व तनाव से पीड़ित रहना आदि कारणों से शरीर में गर्मी बढ़ती है और पित्त कुपित हो जाता है। ऐसे लोग ज्यादातर पित्त प्रकोप से पीड़ित रहते हैं

5-प्राकृतिक रूप से ग्रीष्म और शरद ऋतु में, शाम को और आधी रात के समय, युवावस्था और अन्न का पाचन होते समय पित्त कुपित रहता है।

6-वर्षा काल में पित्त संचित होता है, शरद ऋतु में कुपित होता हैऔर हेमन्त ऋतु में शान्त रहता है

पित्त के उपाय :✶ मधुर, कड़वे, कसैले, शीतल, तरल पदार्थ, विरेचक पदार्थ, मुनक्का, केला, आंवला, परवल, ककड़ी, मिश्री, घी, दूध, पित्त पापड़ा, शतावरी, त्रिफला आदि के सेवन से पित्त प्रकोप का शमन होता है।

✶कफ बढ़ाने वाले पदार्थों का उचित मात्रा में सेवन करने से पित्त का शमन होता है।*

कफ क्या होती है :पित्त की भांति कफ के विषय में विवरण देते हुए आयुर्वेद ने बताया है कि कफ भी पांच प्रकार होता है और शरीर में पांच स्थानों पर रह कर कार्य करता है। कफ का परिचय देते हुए आयुर्वेद कहता है

गुरु शीत मृदु स्निग्ध मधुर स्थिरपिच्छिलाः ।
श्लेष्मणः प्रशमयान्ति विपरीत गुणैर्गुणाः ॥

अर्थात् कफ भारी, ठण्डा, मृदु, चिकना, मीठा, स्थिर और पिच्छिल गुण वाला होता है। इन गुणों से विपरीत गुण वाले द्रव्यों के प्रयोग से कफ का शमन होता है।

कफ के प्रकार और कार्य :कफ के 5 प्रकार व स्थान इस प्रकार हैं-

(1) क्लेदन कफ- यह कफ आमाशय में रह कर अन्न (आहार द्रव्य) को गीला व अलग-अलग करता है।
(2) अवलम्बन कफ- रस युक्त वीर्य से यह कफ हृदय में रह कर हृदयभाग को अवलम्बन देता है।
(3) रसन कफ- यह कफ जीभ और कण्ठ में रह कर चिकनाई बनाए रखता है।
(4) स्नेहन कफ- यह कफ सभी इन्द्रियों को चिकनाई प्रदान कर उन्हें तृप्त रखता है।
(5) श्लेष्मा कफ- सभी जोड़ों में रह कर उन्हें जोड़े रख कर उन्हें अच्छी तरह रहने व काम करने की सामर्थ्य और सुविधा प्रदान करता है।

इन स्थानों में कफ के कुपित होने पर, इन स्थानों (अंगों) से सम्बन्धित क फ जन्य बीमारियां पैदा होती हैं।

कफ प्रकोप के लक्षण :✶ जब कफ कुपित होता है तब मलमूत्र, नेत्र और सारे शरीर का सफ़ेद पड़ जाना, ठण्ड अधिक लगना,

✶ भारीपन, अवसाद (डिप्रेशन), अधिक नींद आना, मुंह चिकना व मीठा रहना, अरुचि, भूख कम हो जाना,

✶ पेट भारी लगना, नींद व सुस्ती ज्यादा, शरीर व सिर में भारीपन,

✶ मुंह का स्वाद मीठा, लार गिरना, बार-बार मुंह व कण्ठ में कफ आना,

✶ मल ज्यादा व चिकना होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।

कफ प्रकोप के कारण :1-बाल्यावस्था में, भोजन करने के बाद, प्रातःकाल और वसन्त ऋतु में कफ प्राकृतिक रूप से कुपित रहता है

2-शीतकाल में अधिक शीतल व खटाई वाले पदार्थों का सेवन तथा अधिक समय तक ठण्ड सहन करने से कफ कुपित होता है।

3-हेमन्त ऋतु में कफ संचित होता है और प्रावृट ऋतु में शान्त रहता है।

4-दिन में सोना, श्रम न करना, आलसी दिनचर्या, अधिक मीठा व चिकना आहार लेना, भारी स्निग्ध पदार्थों का अति सेवन, चावल,

5-उड़द, गेहूं, दूध, पनीर, दूध चावल की खीर, मख्खन, घी, मांस, चरबी, मीठे फल और ठीक प्रकार से भोजन पचने से पहले फिर भोजन करना आदि कारणों से शरीर में कफ का प्रकोप होता है।

6-मानसिक रूप से लोभी मनोवृत्ति रखने से कफ का प्रकोप होता है इसीलिए लोभी-लालची और संग्रह करने का स्वभाव रखने वाला व्यक्ति प्रायः मोटा, भारी शरीर और बढ़े हुए पेट वाला होता है। ऐसे व्यक्तियों का कफ प्रायः कुपित ही रहता है।

कफ निकालने के उपाय :

✶ चरपरे, कसैले, रूखे व गर्म पदार्थों का सेवन करना,

✶ कफ नाशक स्वेदनक्रिया (पसीना निकालना), कफ-विरेचक (दस्त) लेना,

✶कसरत या अधिक श्रम करना,

✶वमन (उलटी) करना,

✶ठण्डे पानी में शहद घोल कर पीना,

✶गर्म पानी पीना, त्रिफला, चना, मूग, लहसुन, प्याज, नीम, निशोथ व कुटकी आदि का सेवन करने से कफ प्रकोप का शमन होता है।

इनमें से किसी भी एक या दो या तीनों के कुपित होने से तो अस्वस्थता पैदा होती ही है, साथ ही इनकी कमी होने से भी अस्वस्थता पैदा होती है। इस विषय में संक्षिप्त रूप से जानकारी प्रस्तुत करते हैं|

वात में कमी होने पर सांस लेने में कठिनाई, घबराहट, भारीपन, सुस्ती व अर्धमूर्च्छा का अनुभव होता है।

पित्त में कमी होने पर मन्दाग्नि, ठण्डापन, आलस्य, मन में उदासी और निस्तेजता आदि लक्षण प्रकट होते हैं।

कफ का क्षय (कमी) होने पर शरीर में रूखापन, जलन, सिर खाली खाली सा लगना, जोड़ और हाथ पैर ढीले होना, अनिद्रा और शरीर दुबला होना आदिलक्षण प्रकट होते हैं।

हमारे शरीर को धारण करने वाली तीन धातुओं यानी वात पित्त और कफ की जो हमारे शरीर और स्वास्थ्य के स्तम्भ यानी खम्भे हैं जो कुपित होने पर शरीर को दूषित करने वाले हो जाते हैं। इसलिए धातु नहीं, दोष कहे जाते हैं। इन तीनों का महत्व और प्रभाव एक समान है

इसलिए तीन खम्भों में प्रत्येक खम्भा महत्त्वपूर्ण और अनिवार्य होता है जैसे तीन टांग के स्टूल की प्रत्येक टांग महत्त्वपूर्ण और ज़रूरी होती है। एक भी टांग हटाने पर स्टूल खड़ा नहीं रहता, धराशायी हो जाता है। इसी तरह वात, पित्त और कफ- तीनों में सेप्रत्येक का अपनी सामान्य स्वस्थ अवस्था में रहना शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अनिवार्य है। ये स्वस्थ सामान्य अवस्था में रहते हैं तो शरीर को धारण किये रहते हैं।

इसलिए धातु कहे जाते हैं लेकिन कम ज्यादा होने पर ये ही रक्षक के बजाय भक्षक बन जाते हैं यानी शरीर को स्वस्थ न रख कर रोगी बना देते है। शरीर को दूषित कर देते हैं। इसलिए दोष कहलाने लगते हैं। अगर ये तीनों कुपित हो जाएं तो ‘त्रिदोष’ कहे जाते हैं। यह अवस्था बहुत कष्ट पूर्ण होती है। तीनों दोष कुपित होने को ‘सन्निपात (त्रिदोष) कहते हैं।

इन तीनों के लक्षण ध्यान में रखें। कोई व्याधि हो तो उसके लक्षणों पर ध्यान दे कर यह समझ लें कि ये किस दोष के लक्षण हैं। जिस दोष के लक्षणों से मिलते जुलते हों उस दोष को कुपित समझें और उस दोष का शमन करने वाला आहारविहार करें तो वह कुपित दोष शान्त हो जाएगा और रोग में भी आराम होने लगेगा। इस ज्ञान से लाभ उठाएं यानी तदनुसार अमल करके अपने शरीर व स्वास्थ्य को स्वस्थ और निरोग रखें ताकि बीमार होने की नौबत ही न आये।
: इस लेख को पढ़ने के बाद आप यह नहीं कह सकते की उबटन बनाने के लिए अभी तो घर में कुछ है ही नहीं कैसे बनाऊँ बहनो अब बहाना नहीं चलेगा फैसला आपके हाथ में है

उबटन बनाने की विधि : दाग धब्बे हटाने तथा फेयर स्किन के लिए घरेलू उबटन

मौसम में परिवर्तन, तेज हवा, धूल व प्रदूषण से त्वचा निरंतर प्रभावित होती हैं | ऐसे में उस की उचित देखभाल न की जाए तो असमय ही चेहरे की त्वचा झुर्रियों व झाइयों का शिकार होने लगती हैं | अपनी त्वचा की प्रकृति के अनुसार घरेलू उबटनों का प्रयोग कर के उसे स्वस्थ सुंदर व चमकदार बनाया जा सकता है घर पर उबटन बनाने की विधि जानकर आप इसे आसानी से प्रयोग कर सकते है | सौंदर्य विशेषज्ञों के अनुसार उबटन से त्वचा कांतिमय बनती है उस में गजब का निखार आ जाता है तभी तो शादी के 1 माह पहले से दुलहन को रोज उबटन लगाया जाता है | बस इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि उबटन के लिए जिस सामग्री का इस्तेमाल कर रही हैं वह आप की त्वचा के अनुकूल हो, ताकि आपको एलर्जी ना हो | साथ ही जब उबटन को स्क्रब करें तो हलके हाथों से करें, ताकत के साथ उबटन को न छुड़ाएं. ऐसा करने से त्वचा क्षतिग्रस्त हो सकती है | उस पर रैशेज पड़ सकते हैं | हलके हाथों से गोलाई में घुमाते हुए उबटन हटाएं |

उबटन के प्रयोग से त्वचा में नमी व चमक बनी रहती है, वह मृत त्वचा को हटा कर त्वचा को नई ताजगी प्रदान करता है, उबटन के प्रयोग से त्वचा का रक्तसंचार सुचारू बना रहता है, क्योंकि इस के उतारने में त्वचा की खुद ही मालिश हो जाती है, उबटन रंग को भी निखारता है | झुर्रियों, झांड़यों से त्वचा को छुटकारा दिलाता है । ज्यादातर उबटनों में हलदी का प्रयोग किया जाता है. अतः त्वचा कई रोगों से बची रहती हैं | अनेक लाभ होने के बावजूद उबटन का प्रयोग हमेशा अपनी त्वचा के अनुरूप ही करना चाहिए. जैसे सूखी त्वचा के लिए कभी खट्टे फल जैसे नींबू, संतरे का रस प्रयोग नहीं करना चाहिए |

घरेलू उबटन बनाने की विधि

केला से उबटन बनाने की विधि –एक केला लेकर उसका गूदा अच्छी तरह मसल कर लसलसा बनाकर उसमें दो चम्मच गुलाब जल, दो बूंद इत्र, खस-खस तथा चार बूंद ग्लिसरीन मिलाकर एक साफ शीशी में भर कर रख लें। आपकी त्वचा सूखी हो तो मेकअप करने से पहले चेहरे पर क्रीम की तरह लगाकर मालिश करें। सूख जाने पर गुनगुने पानी से धो लें। यह फेस पैक सात से बीस दिन तक बनाकर रखा जा सकता है। यदि बिगड़ने की आशंका हो तो गुलाब जल और मिला लेना चाहिए।

आलू से उबटन बनाने की विधि –यदि आपके चेहरे पर चेचक या मुंहासों के दाग या झाँइयाँ आदि हों तो का आलू पीसकर ग्लिसरीन तीन बूंद, सिरका, गुलाब का अर्क मिलाकर फेस पैक बना लें। इसे तीन मिनट तक चेहरे पर अच्छी तरह मसल-मसल कर लगाएँ। यह चेहरे के दाग तथा झाइयों । चमत्कारिक रूप से मुक्ति दिला सकता है। इसे कुछ दिन धैर्यपूर्वक लगातार प्रयोग करना चाहिये।

मुलतानी मिट्टी से उबटन बनाने की विधि– मुलतानी मिट्टी का एक टुकड़ा लेकर उसे बहुत ही बारीक पीस कर पाउडर के समान बना लें। अब इस पाउडर में इतना पानी मिलायें कि इस पाउडर की लुगदी (पेस्ट) बन जाए। अब इस पेस्ट को चेहरे पर लगायें। पन्द्रह मिनट सूखने दें। फिर गुनगुने पानी से धो लें। यह क्रिया सप्ताह में दो बार की जाए तो चेहरे पर ताजगी बनी रहेगी।

मसूर की दाल से उबटन बनाने की विधि -मसूर की दाल रात को भिगो कर सुबह बारीक पीस कर इसमें एक छोटा चम्मच दही मिलाकर फेंट कर चेहरे पर लगायें। सूखने पर गुनगुने पानी से धो लें।

सोयाबीन और मसूर की दाल प्रत्येक तीन-तीन चम्मच रात को पानी में भिगो दें। सुबह कच्चे दूध में पीसकर चेहरे पर लगायें। चेहरा चमक उठेगा।

मसूर की दाल घी में भूनकर तथा पीस कर रख लीजिये। सवेरे, शाम एक चम्मच दाल और दो चम्मच दूध मिलाकर चेहरे पर लगाइये। चेहरा थोड़े ही दिनों में सुन्दर एवं कोमल हो जायेगा।

धुली हुई मसूर की दाल त्वचा के रोम-रोम में रमी हुई गंदगी को साफ करने में सक्षम होती है। थोड़ी-सी मसूर की दाल, गुलाब की सूखी पंखुड़ियाँ और चन्दन का चुटकी भर चूरा रात पर दूध में भिगोकर फूल जाने पर पीस कर चेहरे पर हल्के-हल्के हाथ से अच्छी तरह लगाकर मसल मसल कर उसे छुड़ा लें। इसके बाद घण्टे भर तक हल्की धूप में चेहरे को रखें। बाद में गुनगुने पानी से धो डालें। इससे गर्मी में त्वचा को ठण्डक पहुँचती है।

मूली से उबटन बनाने की विधि –ताजा मूली के टुकड़े पीस लें। इसे निचोड़ कर कपड़े से छान कर रस निकाल लें। इस रस में बराबर का मक्खन मिला लें। लोशन तैयार है। नहाने से पहले रोजाना चेहरे पर इस लोशन का लेप कीजिए। जल्दी ही आपकी त्वचा में निखार आ जायेगा।

चावल से उबटन बनाने की विधि -चावल का आटा लेकर लेई बना लें। इसमें एक चुटकी चन्दन का चूरा, एक चुटकी पिसी हुई हल्दी, दो चम्मच गुलाब जल डालकर खूब अच्छी तरह फेंटते रहना चाहिए। इसके बाद आधा घंटे के लिए धूप में रख दें। मेकअप करने से पहले आधा घंटा चेहरे पर लगा और अच्छी तरह मलते रहें। बाद में हल्के गुनगुने पानी से धोकर अच्छी तरह मेकअप कर ले। चेहरे का सौन्दर्य एक नयी ही छवि उभारेगा।

पपीता से उबटन बनाने की विधि -पपीते से प्राप्त रासायनिक तत्त्व त्वचा की तैलीय परत को हटाने में सक्षम है। अच्छी तरह पके हुए पपीते का गूदा लेकर अच्छी तरह पेस्ट बना लें, 15 मिनट तक गूदे का पेस्ट चेहरे पर मसल कर कुछ देर बाद गुनगुने पानी से धो लें। यदि त्वचा रूखी हो तो पपीते के गूदे में गुलाब जल, चन्दन का बुरादा तथा हल्दी मिलाकर उबटन बना कर लगायें। इसको बाद में ठण्डे पानी से धो लेना चाहिए।

गाजर से उबटन बनाने की विधि -गाजर को पीसकर उसका रस निचोड़ लें या रस निकालकर उसमें चन्दन का बुरादा, गुलाब जल तथा बेसन मिलाकर पेस्ट बना लें। इसको चेहरे पर अच्छी तरह लगाकर मसल लेना चाहिए।

सेब का उबटन–सेब का थोड़ा-सा गूदा लेकर उसमें बेसन, चन्दन का पाउडर, हल्दी मिलाकर पेस्ट बना लें। इसको चेहरे पर हल्के-हल्के हाथों से लगाकर मालिश करनी चाहिए। झुर्रियों, मुँहासों व दाग आदि छुड़ाने के लिए इसका प्रयोग काफी लाभकर रहता है।

नारंगी से उबटन बनाने की विधि -दाग-धब्बों के लिए पैक–एक बड़े चम्मच बेसन में आधा चम्मच हल्दी, दो चम्मच संतरे के छिलकों का पिसा हुआ पाउडर, एक चम्मच दही व एक चम्मच दूध, एक चम्मच गुलाब जल, नींबू का रस, एक चम्मच नारियल का तेल डाल कर अच्छी तरह फेंट लें। चेहरे पर लगाकर सूखने तक लगाये रखें। फिर धो डालें। दो महीने तक हफ्ते में तीन-चार बार तक यह पैक लगाने से हर तरह के दाग, धब्बे दूर होने लगते हैं।

100 ग्राम संतरे के छिलके छाया में सुखा कर महीन पीस लें। इतनी ही मात्रा में बाजरे का आटा, 10 ग्राम हल्दी, थोड़ा-सा नींबू का रस-इन सब को एक साथ मिलाकर पानी में आटे की तरह गूंध लें, और इसे चेहरे पर मलें।

दही से उबटन बनाने की विधि –दही में बेसन मिलाकर चेहरे पर लगा ली जाये, सूखने के बाद ठंडे पानी से धो डालिए। ऐसा करने से चेहरे का रंग साफ होता है। धूप से पड़े त्वचा पर कुप्रभाव (Sunburn) भी दही के प्रयोग से दूर हो जाते हैं। चेहरे को साफ करने के लिए दही या नारंगी का रस मिलाकर प्रयोग किया जावे तो यह भी एक अच्छा क्लिंजर (क्लिंजिंग मिल्क) की तरह ही कार्य करत है। दही के प्रयोग से त्वचा में निखार आता है। मुँहासों के लिए दही में चावल का आटा मिलाकर लगाया जाये तो मुँहासे काफी जल्दी ठीक हो जाते हैं

डीप क्लीन्जिंग मास्क -एक बड़ा चम्मच चने के आटे में थोड़ा-सा दूध मिलाकर इस लेप की चेहरे पर मालिश करें। मालिश करने से त्वचा के भीतर गहरी धंसी गन्दगी बाहर आ जाएगी और त्वचा साफ हो जायेगी। मास्क लगाने के 20 मिनट बाद छुड़ायें। इसके बाद दो घण्टे तक मेकअप नहीं करें। मास्क सप्ताह में दो बार लगायें। प्राकृतिक सामग्री से बने मास्क हानिकारक नहीं होते। मास्क लगाने के बाद चेहरे पर हल्के हाथ से गोल-गोल मालिश करें, इससे रक्त-संचार बढ़ता है और त्वचा स्वस्थ व कांतिमान बनती ह

🌸जानिए, सोयाबीन का नियमित सेवन क्यों सेहत के लिए है वरदान

1 सोयाबीन में प्रोटीन, कैल्शियम, फाइबर, विटामिन ई, बी कॉम्लेक्स, थाइ‍मीन, राइबोफ्लेविन अमीनो अम्ल, सैपोनिन, साइटोस्टेरोल, फेनोलिक एसिड एवं अन्य कई पोषक तत्व होते हैं जो फायदेमंद होते हैं।

2 इसमें भरपूर मात्रा में आयरन होता है जो खास तौर से महिलाओं के लिए बेहद फायदेमंद है और एनिमिया व ऑस्ट‍ियोपोरोसिस से बचाने में लाभप्रद है। वहीं कमजोरी होने पर भी यह बेहद असरदार है।

3 सोयाबीन हड्ड‍ियों के लिए लाभदायक है। यह हड्ड‍ियों को पोषण देता है जिससे वे कमजोर नहीं होती और हड्डी टूटने का खतरा भी कम होता है। इसका सेवन हड्ड‍ियों की सघनता को बढ़ाने में सहायक है।

4 ब्लडप्रेशर की समस्या होने पर सोयाबीन का सेवन फायदेमंद होता है। खास तौर से ब्लडप्रेशर बढ़ने की स्थ‍िति में इसका सेवन ब्लडप्रेशर को नियंत्रित कर उसे बढ़ने से रोकता है।

5 डाइबिटीज रोगियों के लिए भी यह कमाल का असर करता है और रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित कर उसे बढ़ने से रोकता है। इस तरह से आपकी डाइबिटीज नियंत्रण में रहती है।
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अगर बिना वजह आपके पेट के किसी विशेष हिस्से में दर्द हो रहा है, तो यह किसी बीमारी की तरफ इशारा करता है। जानिए पेट के अलग-अलग हिस्सों में दर्द का आखि‍र क्या कारण है –

1 बाएं ओर – अगर आपको पेट में बाएं ओर दर्द महसूस हो रहा है, और यह कभी-कभार नहीं बल्कि अक्सर होता है, तो सतर्क हो जाइए। यह किडनी संबंधी परेशानी या फिर किडनी में पथरी बनने के कारण भी हो सकता है। इस स्थि‍ति में पानी ज्यादा से ज्यादा पिएं और डॉक्टर की सलाह लें।

2 दाहिनी ओर – पेट में दाहिने हाथ की ओर होने वाला दर्द जो अक्सर आपको परेशान करता है,सामान्य नहीं है। दाहिनी ओर होने वाला दर्द सेहत से जुड़ी अनेक समस्याओं की ओर इशारा करता है। यह खास तौर से अपेंडि‍साइटिस के कारण भी हो सकता है। इसके अलावा महिलाओं में नीचे की ओर यह दर्द गर्भाशय की समस्या के कारण भी हो सकता है।

3 बीच में – पेट के बीचो-बीच होने वाला दर्द पेट में अल्सर होने की तरफ इशारा कर सकता है। इसके अलावा गैस व अम्लीयता के कारण भी इस तरह का दर्द पैदा होता है। ऐसा होने पर तुरंत अपने डॉक्टर को दिखाएं और सलाह लें।

4 ऊपर की ओर – पेट में ऊपर की ओर और छाती से ठीक नीचे की ओर होने वाला दर्द, विशेष रूप से एसिडि‍टी के कारण हो सकता है। तो डॉक्टर को जरूर दिखाएं।

5 नीचे की ओर – पेट में नीचे की तरफ उठने वाला दर्द मूत्राशय से जुड़ी समस्या की ओर इशारा करता है। इसके अलावा यह मूत्रनली में इंफेक्शन या सिस्ट के कारण भी हो सकता है। महिलाओं में मासिक दर्द के दौरान भी पेट के निचले हिस्से में दर्द होता है।

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🌹आंखों के नीचे काले घेरे का आसान घरेलू इलाज | 

🌹टमाटर के रस में नींबू की कुछ बूंदे मिलाकर आंखों के नीचे लगाएं और कुछ देर बाद धो लें। एक हफ्ता लगातार इसका इस्तेमाल करने से काले घेरे से छुटकारा मिलेगा।

🌹आलू के रस में नींबू की कुछ बूंदे डालें और इसे आंखों के नीचे कुछ देर के लिए लगा कर रखने से फायदा होगा। इसके साथ ही आप आलू के टुकड़ें को आंखों के नीचे हल्का हल्का रब भी कर सकते हैं।

🌹काले घेरो से छुटकारा पाना है तो संतरे के छिलकों को सूखाकर पाउडर बना लें। इसके बाद पाउडर में गुलाब जल मिलाकर पेस्ट तैयार करें और आंखों के नीचे लगाएं।

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🌹कुष्ठ रोग के उपचार

🌻कुष्ठ रोग- बरगद का दूध कुष्ठ रोगों की रामबाण औषधि है। यह गम्भीर से गम्भीर और पुराने से पुराना कुष्ठ रोग ठीक कर देता है। इसके लिए कुष्ठ प्रभावित भाग को साफ करके उस पर बरगद के दूध का लेप करना चाहिए और इस पर बरगद की छाल की लुगदी (कल्क) बनाकर बाँधना चाहिए। यह उपचार एक सप्ताह से दो सप्ताह तक किया जाना चाहिए।

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[खाली पेट लहसुन खाना है फायदेमंद

1) लहसुन श्वसन तंत्र के लिए अच्छा होता है: यह टीबी, दमा, निमोनिया, सर्दी, ब्रोंकाइटिस, पुरानी ब्रोन्कियल सर्दी, फेफड़ों में संक्रमण और खांसी की रोकथाम और इलाज के लिए अच्‍छा होता है।
2) ट्यूबरक्लोसिस की समस्‍या होने पर सुबह खाली पेट लहसुन खाना बहुत फायदेमंद होता है।
3) दांत के दर्द में लहसुन का सेवन फायदेमंद होता है। यदि कीड़ा लगने से दांत में दर्द हो तो आप लहसुन के टुकड़ों को गर्म करें और उन टुकड़ों को दर्द वाले दांत पर रखकर कुछ देर तक दबाएं। ऐसा करने से दांत का दर्द ठीक हो जाता है।
4) फ्लू यानी इन्फलुएन्जा में सुबह उठकर गर्म पानी के साथ लहसुन और प्याज का रस पीने से फ्लू से निजात मिलता है।
5) लहसुन पूरी तरह से एंटीबायोटिक है। इसलिए फोड़े होने पर लहसुन को पीसकर उसकी पट्टी बांधने से फोड़े मिट जाते हैं।
6) टीबी और खांसी जैसी बीमारियों को दूर करने में लहसुन लाभकारी है। लहसुन के रस की बूंदों को रूई में भिगोकर सूंघने से सर्दी ठीक हो जाती है।
7) लहसुन के नियमित सेवन करने से आपको कई प्रकार के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ मिलते है और यह आपके स्‍वास्‍थ्‍य की रक्षा करता है। इनकी हीलिंग गुणों को नियमित इस्‍तेमाल करने से आप कुछ ही दिनों में यकीनन अपने समग्र स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार देखने लगेगें। . .Visit our website..

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[नेत्र रोग नाशक नुस्खे

नेत्र रोग के कारण :खुले स्थान में अधिक देर तक स्नान करना, सूक्ष्म और दूर की वस्तु को बहुत देर तक देखना, रात में जागना और दिन में सोना, आँखों में धूल, धुआँ और मिट्टी पड़ जाना, धूप में गरम हुए पानी से मुँह धोना, पौष्टिक खाद्य का अभाव, चाय और वनस्पति-घी का उपयोग अधिक करना आदि कारणों से नेत्रों के रोग उत्पन्न होते हैं।

नेत्र-रोगों से बचने के सामान्य उपाय :

💐💐💐 जो मनुष्य नियमित जीवंत सुबह उठते ही बासी थूक(लार) नयन में काजल की तरह लगाते हैं उन्हें जीवंत नयन रोग नहीं होता है व नयन रोग से ग्रसित है तो पूर्णतः ठीक हो जाता है 💐💐💐

(1) धूल या मिट्टी आँख में पड़ जाए तो आँखों को मसलना नहीं चाहिए। धीरे-धीरे आँखें खोलने और बन्द करने से या ठण्डे पानी के छींटे देने से धूल के कण आसानी से निकल जाते हैं।

(2) पढ़ते-लिखते समय प्रकाश हमेशा उचित मात्रा में, पीछे या बायीं तरफ से आना चाहिए, सामने से प्रकाश आने से आँखें बहुत जल्दी थक जाती हैं।

(3) कापी या किताब 12 से 15 इञ्च की दूरी पर रखना चाहिएं।

(4) सुबह उठते ही प्रतिदिन ठण्डे पानी से आँखें धोनी चाहिएं।

(5) सरसों के तेल से बना काजल या गुलाबजल आँखों में प्रतिदिन डालना चाहिए।

(6) अधिक देर तक पढ़ते-लिखते समय आँखों की थकान दूर करने के लिए-बीच-बीच में अपनी हथेलियों को हल्के से आँखों पर रखें, जिससे बाहरी-प्रकाश आँखों पर न पड़े।

(7) हरे शाक-सब्जी, दूध आदि के प्रयोग से आँखों की शक्ति बढ़ती है।
(8) आँखों को बार-बार ऊपर-नीचे, दाँए-बाँए, तिरछा और गोल-गोल घुमाकर आँखों का व्यायाम करें। फिर थोड़ी देर के लिए आँखें बन्द कर लें ।

(9) प्रतिदिन घी का अधिक से अधिक उपयोग करने से आँखों की शक्ति बढ़ती है।

(10) अन्य व्यक्ति का रूमाल, तौलिया या अँगोछे का उपयोग नहीं करना चाहिए।

नेत्र-रोगों से रक्षा के उपाय :

(1) तिल के ताजे 5 फूल प्रातःकाल (अप्रेल में ही) निगलें, तो पूरे वर्ष आँखें नहीं दुखेंगी।

(2) चैत्र के महीने में प्रतिवर्ष ‘गोरखमुण्डी’ के 5 या 7 ताजे फूल चबाकर पानी के साथ खाने से आँखों की ज्योति बढ़ती है ।

(3) एक सप्ताह के बच्चे को बेलगिरी के बीच की मिंगी शहद में मिलाकर चटाने से जीवनभर आँखें नहीं दुखतीं ।

(4) नींबू का एक बूंद रस महीने में एक बार आँखों में डालने से कभी आँखें नहीं दुखतीं।

नेत्र रोग नाशक घरेलु इलाज :

(1) पुनर्नवा के अर्क की 2-3 बूंदें आँखों में टपकाने से आँखों के सभी रोग दूर होते हैं।

(2) तिल के फूलों पर, जो ओस इकट्ठी होती है, उसे इंजेक्शन के द्वारा एकत्रित करके साफ शीशी में रख लें, इसे आँखों में डालने से नेत्रों के सभी विकार दूर होते हैं।

(3) नीम के हरे पत्तों को साफ करके एक सम्पुट में रख दें, ऊपर से एक कपड़ा ढंककर मिट्टी लगा दें तथा आग पर रख दें। जब पत्तियाँ बिल्कुल राख हो जायें, तब उन्हें निकालकर, नीबू के रस में मिलाकर आँखों में लगाने से खुजली, जलन आदि दूर होती है।

(4) एक भाग पीपल और दो भाग बड़ी हरड़ को पानी में घिसकर बत्ती बनाकर, आँखों में लगाने से सभी रोग दूर होते हैं।

(5) गोरखमुण्डी की जड़ को छाया में सुखाकर पीस लें, उसी मात्रा में शक्कर मिलाकर 7 माशा गाय के दूध के साथ पीने से आँखों के अनेक विकार दूर होते हैं।

(6) त्रिफला को 4 घण्टे पानी में भिगो दें और छानकर वही पानी आँखों में डालने से व त्रिफला की टिकिया बाँधने से त्रिदोष से उतपन्न आँखों के सभी रोग दूर होते हैं।

(7) सोंठ और नीम के पत्तों को पीसकर गरम कर लें और सेंधा नमक मिलाकर टिकिया बना लें फिर आँखों के ऊपर रखकर पट्टी बाँधने से कई रोगों में आराम मिलता है।

(8) हरड़, सेंधा नमक, गेरू और रसौत को पानी में पीसकर पलकों पर लगाने से सभी रोग दूर होते हैं।

(9) सात माशे फिटकरी को ग्वारपाठे के रस में घोंटकर, काँसे की थाली में बीच में रख दें, ऊपर से काँसे की कटोरी ढक दें। थाली के नीचे हल्की आँच जलाएं, फिटकरी के फूल उचटकर ऊपर ढकी हुई कटोरी में चिपक जायेंगे, इन फूलों में शुद्ध शोरा मिलाकर- आँखों में लगाने से फूला, जाला आदि रोग दूर होते हैं।

(10) ढाक की जड़ का स्वरस या भाप के द्वारा निकाला गया अर्क आँखों में डालने से- रतौंधी और आँखों से पानी बहना आदि रोग दूर हो जाते हैं।

(11) देवदारु के चूर्ण को बकरी के मूत्र की भावना देकर, घी के साथ लेने से आँखों के सभी रोग दूर होते हैं।

(12) देशी गाय के ताजा गौमूत्र को 16 तह सूती कपड़े से छानकर सुबह शाम एक एक बूंद आँखों मे डालने से नयन के सभी रोग नस्ट होते हैं

निरोगी रहने हेतु महामन्त्र

मन्त्र 1 :-

• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें

• ‎रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें

• ‎विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)

• ‎वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)

• ‎एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)

• ‎मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें

• ‎भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें

मन्त्र 2 :-

• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)

• ‎भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)

• ‎सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये

• ‎ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें

• ‎पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये

• ‎बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूर्णतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें


[जानिए, लगातार कमर दर्द के यह 5 कारण

कमर दर्द शारीरिक समस्याओं में काफी गंभीर विषय है, क्योंकि इसके चलते आप कई कार्यों को करने में बेहद दर्द और तकलीफ महसूस करते हैं। समस्या अगर गंभीर है, तो उसका उपचार भी गंभीरता से किया जाना जरूरी है, वरना यह दर्द आपके लिए घातक साबित हो सकता है। उपाय करने से पहले यह जानें कि कमर दर्द की आखि‍र सही वजह क्या है।

किसी प्रकार की चोट या व्यायाम की वजह से कमर में दर्द होना समझ में आता है, लेकिन अगर बगैर किसी वजह के आप कमर में लगातार दर्द महसूस कर रहे हैं, तो उसका कारण जानकर तुरंत उपचार कराएं।

1 नींद में आपकी सोने की मुद्रा या स्थि‍ति के कारण कई बार कमर या पीठ दर्द की समस्या हो सकती है। अगर आपको लगता है कि कमर दर्द का कारण आपके सोने की स्थि‍ति है, तो उसके लिए सतर्क रहें।

2 आप किस चीज पर सोते हैं, यह भी बेहद अहम होता है। अगर आप मोटे नर्म गद्दे पर सोते हैं, जो काफी स्पंजी है, तो यह आपके कमर या पीठ दर्द का कारण बन सकता है। कोशि‍श करें कि गद्दा थोड़ा कठोर हो, जो पीठ और कमर के लिए सहयोगी हो।

3 अत्यधि‍क तनाव लेना भी कमर दर्द के कारणों में से एक है। दरअसल आपका ज्यादा तनाव लेना आपके मस्तिष्क के साथ-साथ तंत्रिका तंत्र को भी प्रभावित करता है और रीढ़ की हड्डी वाले स्थान पर दर्द पैदा कर सकता है।

4 वसा का अत्यधि‍क जमाव कई बार आपकी मांसपेशि‍यों में दर्द पैदा करने का काम करता है, जो लगातार बना रहता है। इसके लिए जरूरी है, के वसा के जमाव अर्थात मोटापे को कम किया जाए।

5 हड्डि‍यों क कमजोर होना भी कमर और पीठ दर्द होने का एक प्रमुख कारण है। हड्ड‍ियां मजबूत रहें इसके लिए कुछ व्यायाम और सही खानपान को दिनचर्या में शामिल करना बेहद जरूरी है। हड्ड‍ियों के लिए कैल्शि‍यम का सेवन जरूरी है।

वन्देमातरम !
आओ दारू पिये

मौसम है बरसात का
आओ थोड़ा दारू पिये

खूब बारिश हो रही है। गीला मौसम है। सर्दी छींक आ रही, शरीर पर कीटाणुओ का प्रकोप बढ़ रहा है।

तो

आईये दारू पीजिये।

10 gm दारू को 1.5 गिलास पानी मे उबालिये। 20 मिनट बाद उतारिये, छानिये।
एक परिवार में 4 लोगो के हिसाब से 4 कप भाग करिये। पीजिये, भोजन के 1 घण्टे बाद।

सर्दी जुकाम, छींक , शरीर मे उपस्थित सूक्ष्म दुष्ट कीटाणुओ से मुक्ति मिलेगी, शरीर की गठान खत्म होगी, महिलाओ को किसी भी कारण से अधिक रक्त निकलने से मुक्ति मिलेगी, बुखार में लाभ होगा।
और
सबसे बड़ी बात

सावन माह या थोड़ा बाद के मौसम में ये पीने से किडनी में कभी किसी तरह की पथरी नही बनेगी।
साल में 2 बार करिये, अगली बार दिसम्बर माह में पीजिये।

दारु की तासीर गर्म होती है। इसलिए पहले से पित्त प्रकोप वाले व्यक्ति को पेशाब में जलन हो सकती है।

तो अब निकलिये घर से,

पंसारी की दुकान जाइये, 70 gm दारुहल्दी लकड़ी

लाइये।

ये 5 प्रकार की हल्दी में से एक प्रजाति है।
10 gm दारूहल्दी को 1.5 गिलास पानी मे उबालिये। 20 मिनट बाद उतारिये, छानिये।
एक परिवार में 4 लोगो के हिसाब से 4 कप भाग करिये। पीजिये, भोजन के 1 घण्टे बाद
: आयुर्वेदिक उपचार
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गुलाबी सौंदर्य के लिए गुलाब👇🏻

गुलाब के 2 फूलों को पीसकर, आधा प्याले कच्चे दूध में 30 मिनट तक भिगोएं, फिर इस लेप को आहिस्ता-आहिस्ता त्वचा पर मलें, सूखने पर ठंडे-ठंडे पानी से स्नान कर लें। शरीर की त्वचा नर्म, मुलायम और गुलाबी आभायुक्त दिखाई देगी।

गुलाब के फूलों का रस चेहरे पर मलने से चेहरे पर ठंडी-ठंडी ताजगी बनी रहती है। पसीने से स्किन सेल्स डेड हो जाते हैं। ऐसे में गुलाब की पत्तियों के जरिए नए सेल्स बनते हैं, जिससे त्वचा में ग्लो बढ़ने लगता है।

इसके अलावा दूध और केसर लगाने के बाद गुलाब की पत्तियां लगाने से भी त्वचा से कालापन बिलकुल साफ हो जाता है। साथ ही नहाने से पहले पानी में गुलाब की कुछ पत्तियां डाल दी जाएं तो हाथ-पैर भी साफ रहते हैं और पसीने की बदबू भी नहीं आती है।

राधे राधे🙏🏻🎋
पायरिया का आयुर्वेदिक उपचार
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अगर आप खाना खाने के बाद दांतों की साफाई ठीक ढंग से नहीं करते हैं तो आपको पायरिया जैसी घातक बीमारी होने की संभावना हो सकती है। मुंह से गंदी बदबू आना, दांतों में दर्द और मसूड़ों में सूजन और खून आना पायरिया के लक्षण हो सकते हैं। अगर पायरिया को रोका ना गया तो इस बीमारी की वजह से आपके पूरे दांत गिर सकते हैं।

कई लोग ब्रश तो अच्‍छी तरह से कर लेते हैं मगर जब बात जीभ को साफ करने की आती है तो, वह उसे ऐसे ही छोड़ देते हैं, जिससे मुंह में बैक्‍टीरिया पनपने लगते हैं। यह भी पायरिया होने का एक बड़ा कारण है। मुंह के छाले से छुटकारा पाने के घरेलू उपाय

मगर ऐसा नहीं है कि किसी भी बीमारी का कोई इलाज नहीं होता। पायरिया का भी इलाज है और वो भी आयुर्वेदिक उपचार। समय रहते ही इसका इलाज आयुर्वेदिक तरीके से कर लेना चाहिये नहीं तो मसूड़ों में सड़न की वजह से सारे दांत सड़ चुके होगें। आइये देखते हैं पायरिया का आयुर्वेदिक उपचार क्‍या कहता है। दंत स्वास्थ्य: स्वस्थ मसूड़ों के लिए टिप्स

नीम
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नीम की पत्‍तियों को धो कर छाया में सुखा लें और फिर उसे एक बत्रन में रख कर जला लें। जब पत्‍तियां जल जाएं तब बर्तन को ढंक दें और फिर कुछ देर के बाद राख में सेंधा नमक मिला लें। इस मिश्रण को शीशी में भर कर लख लें और चूर्ण बना कर तीन चार बार मंजन करें।

नमक और हल्‍दी
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चुटकी भर सादा नमक चुटकी भर हल्दी में चार पांच बुंद सरसों का तेल मिला कर उंगली से दांतों पर लगाकर 20 मिनट तक रखें और लार आने पर थूकते रहें।

कच्‍चा अमरूद
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कच्चे अमरुद पर थोडा सा नमक लगाकर खाने से भी पायरिया के उपचार में सहायता मिलती है, क्योंकि यह विटामिन सी का उम्दा स्रोत होता है जो दाँतों के लिए लाभकारी सिद्ध होता है।

घी और कपूर
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घी में कपूर मिलाकर दाँतों पर मलने से भी पायरिया मिटाने में सहायता मिलती है।

काली मिर्च
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काली मिर्च के चूरे में थोडा सा नमक मिलाकरदाँतों पर मलने से भी पायरिया के रोग से छुटकारा पाने के लिए काफी मदद मिलती है।

आंवला
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आंवला जलाकर सरसों के तेल में मिलाएं, इसे मसूड़ों पर धीरे-धीरे मलें।

सूखे मसाले
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जीरा, सेंधा नमक, हरड़, दालचीनी, दक्षिणी सुपारी को समान मात्रा में लें, इसे बंद बर्तन में जलाकर पीस लें,इस मंजन का नियमित प्रयोग करें।

प्याज
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प्याज के टुकड़ों को तवे पर गर्म कीजिए और दांतों के नीचे दबाकर मुंह बंद कर लीजिए। इस प्रकार 10-12 मिनट में लार मुंह में इकट्ठी हो जाएगी। उसे मुंह में चारों ओर घुमाइए फिर निकाल फेंकिए। दिन में 4-5 बार 8-10 दिन करें, पायरिया जड़ से खत्म हो जाएगा, दांत के कीड़े भी मर जाएंगे और मसूड़ों को भी मजबूती प्राप्त होगी।
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