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गुणकारी सत्तू
गर्मी के मौसम में हर व्यक्ति के शरीर में पानी की मात्रा कम हो जाती है। गर्मी के मौसम में गर्म हवाओं और तेज धूप के कारण शरीर के ताप को नियंत्रण में रखने के लिए काफी मेहनत करनी पडती है। शरीर के ताप को सही बनाए रखने के लिए ही पसीने की ग्रंथियां अधिक मात्रा में पसीना निकालती है। इसमें इतनी ऊर्जा खर्च हो जाती है कि शरीर में कमजोरी महसूस होने लगती है। ऐसे समय में स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने के लिए ठंडे, मीठे एवं अधिक पानीयुक्त पदार्थों का सेवन करना ही ज्यादा लाभदायक होता है। इसलिए सत्तू का सेवन करना ज्यादा गुणकारी होता है।
हमारे देश में सत्तू का सेवन पुराने समय से किया जाता रहा है। अब तो कोल्ड ड्रिंक्स व फास्ट फूड के कारण सत्तू को लोग लगभग भूल ही चुके हैं। सत्तू बहुत सस्ता परंतु गुणकारी पदार्थ है। आयुर्वेद में सत्तू को अमृत के समान माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार सत्तू का सेवन करने से गले के रोग, प्यास, शंका, उल्टी, आंखों के रोग, भूख तथा अन्य कई रोगों में विशेष लाभ होता है और साथ ही शरीर की कमज़ोरी भी दूर होती है।

सत्तू कई तरह के होते है –

    *जौ का सत्तू, चावल का सत्तू, जौ-चने का मिश्रित सत्तू, गेहूं का सत्तू, चने का सत्तू। इनमें जो आपको पसंद हो उसी का ही सेवन करें क्योंकि इन सभी के गुण तो एक जैसे ही होते हैं।*

जौ का सत्तू –

जौ का सत्तू ठंडा होता है, जलन को शांत करता है, दस्त लाता है, यह कफ तथा पित्तनाशक तथा रूक्ष होता है। इसे पानी में घोलकर पीने से शरीर में पानी की कमी दूर होती है तथा प्यास लगना कम होती है। इसके अलावा यह मलभेदक, पुष्टिकर, मधुर तथा रूचिकर होता है। यह ज्यादा मेहनत के कारण हुई थकान, भूख, प्यास, घाव व आंखों के रोगों को समाप्त करता है।

चावल का सत्तू –

  *चावल का सत्तू हल्का, ठंडा, मीठा, ग्राही, रूचिकर, पथ्य, वीर्यवर्धक, बलवर्धक तथा अग्नि प्रदीपक होता है। आयुवेर्दिक ग्रंथों में इसका वर्णन `शालि सक्तव:´ नाम से मिलता है।*

चने का सत्तू –
चने के सत्तू में चौथाई भाग जौ के सत्तू को जरूर मिलाना चाहिए। चने के सत्तू का सेवन चीनी तथा घी के साथ करने से विशेष लाभ होता है। यह सत्तू जौ के सत्तू की तुलना में अधिक पावरफुल व पौष्टिक होता है। सत्तू घर पर बनाया जाये तो अच्छा है। इसे तैयार करने के लिए किसी बर्तन में सम्बंधित धान को साफ करके कम से कम 24 घंटे के लिए पानी में भिगो दें। इसके बाद उसे फैलाकर अच्छी तरह सुखा लें और ओखली में डालकर पीस लें इसके बाद इसे साफ करके चक्की में पिसवा लें, सत्तू तैयार हो गया।
सत्तू को खाना हो तो आवश्यकता के अनुसार मात्रा में पानी मिलाकर घोलें। फिर इसमें और पानी मिलाकर पतले पेय के समान बना लें। मीठा सत्तू बनाना हो तो इसमें थोड़ी चीनी या गुड़ मिला लें और नमकीन सत्तू बनाना हो तो इसमें थोड़ा सा नमक मिला दें।
सत्तू को खाते समय दांतों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सत्तू के खाने के बाद या खाने के समय बीच-बीच में पानी नहीं पीना चाहिए। इसे ताजे पानी में घोलना चाहिए गर्म पानी में नहीं। सत्तू का सेवन दूध के साथ नहीं करना चाहिए। कभी भी गाढ़े सत्तू का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि गाढ़ा सत्तू पचाने में भारी होता है। पतला सत्तू आसानी से पच जाता है। इसका सेवन करते समय एक ही बार इसमें पानी मिलाकर पतला कर लेना चाहिए, सेवन करते समय इसमें बार-बार पानी नहीं मिलाना चाहिए।
सत्तू का सेवन अधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए। इसका सेवन सुबह या दोपहर सिर्फ 1 बार ही करना चाहिए और रात में तो बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। सत्तू न केवल स्वास्थ्य को ठीक रखता है, बल्कि शरीर को विभिन्न रोगों से बचाता है। जौ-चने का सत्तू मधुमेह (डायबिटीज) रोगियों के लिए बहुत लाभदायक होता है।

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