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मन पर विजय

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है-” हैअर्जुन! जिसने मन को जीत लिया उसने संपूर्ण संसार को जीत लिया।” हमारा यह मन ही तो है, जो हमें अंधकार मय गर्त में गिराता है ।जितने भी बुरे कर्म हैं, उन्हें हम करना नहीं चाहते किंतु फिर भी करते हैं क्यों? क्योंकि हमारा मन करवाता है ! आत्मा मना करती है, दुत्कारती है ।किंतु फिर भी मन हमें घसीट कर वहां ले जाता है, जहां हमें जाना ही नहीं चाहिए था।हम न तो पागल हैं न मूर्ख ! बल्कि हम संपूर्ण ज्ञान विज्ञान से भरे हुए हैं । सब कुछ जानते हैं कि हम जो कर रहे हैं , गलत है। इसका आज नहीं तो कल बुरा परिणाम निश्चित ही आएगा किंतु फिर भी हम ऐसे काम करते हैं। जिनके लिए बाद में हमें पछताना पड़ता है।

हम पशु पक्षी नहीं है !! हम परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति मनुष्य हैं! तर्क वितर्क एवं बुद्धि का अथाह सागर भरा हुआ है, हमारे मस्तिष्क में ! किंतु फिर भी हम गलत राह पर जाते हैं क्यों? क्योंकि हमारा मन हमारे नियंत्रण में नहीं है ।अगर मन पर हमारा नियंत्रण हो जाए तो फिर हम सच्चे इंसान ही नहीं , इसी जीवन में देवत्व को प्राप्त कर लेंगे!!

हम कल क्या थे? यह महत्वपूर्ण नहीं ! हम आज क्या हैं? यह महत्वपूर्ण है! हम कल क्या होना चाहते हैं? यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण है.. !!क्योंकि कल जो बीत चुका है ,अब हमारे हाथ में नहीं । कल के अच्छे बुरे कर्म अब हमारा प्रारब्ध बन चुके हैं।उनका तो समयानुसार हमें अच्छा या बुरा फल भोगना ही पड़ेगा, लेकिन वर्तमान हमारे हाथ में है। हम आज जो करेंगे,वह कल हमारा प्रारब्ध बन जाएगा। हमारा आज का कर्म हमारे आने वाले कल का निर्माण करेगा। इसलिए आज हमें सोचना है कि हमें हमारे जीवन पथ को किस राह पर ले जाना है और एक बार सोच कर, यह भी निश्चित करना है कि इसके लिए मुझे अपने व्यक्तित्व एवं कर्मों में क्या-क्या बदलाव करने हैं? जब सबकुछ निश्चित हो जाए तो उस राह पर ओंकार स्वरूपी सविता परमात्मा को स्मरण करके आगे बढ़ने का संकल्प लें और प्रार्थना करें-

“है परमपिता परमात्मा !मुझे अपने न्याय पूर्ण सत मार्ग पर चलने की शक्ति एवं सामर्थ्य दें। मैं अपने मन पर पूर्ण विजय पा सकूं, ताकि आप के रूप में मेरे हृदय में विद्यमान आत्मतत्व की आवाज सुनकर जीवन पथ पर आगे बढ़ सकूं।”

अब यदि आप अपने मन पर पूर्ण विजय पाना चाहते हैं तो एक छोटा सा अभ्यास आपको करना पड़ेगा ।सिर्फ 3 माह आप इस प्रयोग को नियमित करके देखिए। आपका मन कितना भी चंचल हो ,एकाग्र होने लग जाएगा। धीरे-धीरे आप अपने मन पर पूर्ण विजय प्राप्त कर लेंगे।

विद्यार्थियों को इस प्रयोग से अत्यधिक लाभ होगा एवं आमजन परमात्मा की ओर बढ़ चलेगा।

प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठ जाइए।उठते ही आपको चाय नहीं पीनी है।

नित्यकर्मों से निवृत हो जाइए।

अब अपने घर पर ही जहां आप आराम से 30 मिनट बिना व्यवधान के बैठ सकें। ऐसे स्थान पर आसन बिछाकर सिद्धासन ,पद्मासन या सुखासन में से जिस में भी आप बैठ सकें, बैठ जाइए।

जिस महापुरुष को भी आप आदर्श मानते हों उन्हें स्मरण करके आशीर्वाद लीजिए या पूज्य सदगुरुदेव श्री राम शर्मा आचार्य जी को स्मरण करके आशीर्वाद लीजिए।

ओंकार स्वरुप परमात्मा एवं जगत जननी मां आदिशक्ति को स्मरण कीजिए।

अब दाहिने हाथ के अंगूठे से दांया नासा छिद्र बंद करें एवं बाएं नाक से धीरे-धीरे लंबी गहरी श्वास खींचे।

सांस को अंदर ही रोक कर रखिए एवं भ्रकुटी( भौहों के बीच ) उगते हुए सूर्य या सफेद रंग की प्रकाश ज्योति का ध्यान कीजिए।

जब श्वास छोड़ने की आवश्यकता महसूस हो तो बांया नासा छिद्र मध्यमा एवं अनामिका अंगुली से बंद कर लीजिए एवं दाएं नाक से धीरे-धीरे श्वास बाहर छोड़ दीजिए। ध्यान भ्रकुटी पर ही लगाए रखिए।

कुछ देर बिना श्वास के रहें। ध्यान भ्रकुटी पर ही रखें।

अब पुनः जिस दाहिने नाक से श्वास छोड़ा था, उसी नाक से धीरे-धीरे श्वास को अंदर भरें। ध्यान भ्रकुटी पर ही सविता या आत्मज्योति पर।

जब तक श्वास रोक सकें रोक कर रखें।

अब दाहिने नाक को बंद करें एवं बाएं नाक से धीरे-धीरे श्वास छोड़ें।

इस प्रकार इस क्रिया का अभ्यास आप को कम से कम 7 से 10 मिनट तक करना है। इसके पश्चात 3 मिनट कपालभाति प्राणायाम एवं 2 मिनट भ्रामरी प्राणायाम कीजिए।

अब आप ध्यान मुद्रा अर्थात अंगूठा एवं तर्जनी अंगुली को मिलाकर बैठ जाइए।

आंखें बंद करके उगते हुए सूर्य (सविता) या सफेद रंग की आत्म ज्योति का भ्रकुटी पर ध्यान कीजिए।

मौन मानसिक रुप से गायत्री महामंत्र या ओंकार का जप करते रहिए।

लगभग 20 मिनट ध्यान एवं मंत्र जप कीजिए।

जिन भाइयों एवं माताओं, बहनों ने गुरु दीक्षा ले रखी है।वे गायत्री मंत्र या ओमकार के स्थान पर अपने गुरु मंत्र का जप कर सकते हैं किंतु गायत्री महामंत्र एवं ओमकार से जितनी तीव्र गति से साधक उन्नति प्राप्त करता है, उतनी तीव्र गति से अन्य मंत्र से उन्नति नहीं कर पायेगा। कोई भी साधक अपने गुरु मंत्र के साथ गायत्री महामंत्र का जप भी कर सकता है ,

महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकता है, आवश्यकता पड़ने पर। बस शुद्ध शाकाहारी होना ही एकमात्र मुख्य शर्त है।
जिन भाइयों को मंत्र जप से डर लगता है अर्थात मांसाहारी है किंतु मन को साधना चाहते हैं। वे प्रारंभिक प्राणायाम की क्रिया को करने के पश्चात आती-जाती श्वास को होश पूर्वक देखते रहें ।श्वास आ रही है ,श्वास जा रही है ।20 मिनट अपनी आती-जाती श्वास को देखते रहें। मांसाहारी व्यक्ति यदि मंत्र जप करना चाहे तो मां दुर्गा का नवार्ण मंत्र जप करें। नवार्ण मंत्र तंत्र पद्धति पर आधारित है। इस वजह से कोई नुकसान नहीं होगा। इस प्रकार किसी भी एक प्रयोग को अपनाकर आप मन पर नियंत्रण स्थापित कर सकते हैं। 1 माह के अभ्यास के बाद ध्यान का समय बढ़ाकर 30 से 35 मिनट अवश्य कर दें। साथ में एक बार मुझसे संपर्क करके मार्गदर्शन अवश्य लें। 2 महीने बाद 45 मिनट तक ध्यान का समय बढ़ा दे। संपर्क करके मार्गदर्शन लें। जो साधक पहले से ध्यान कर रहे हैं। वे सीधा कम से कम 30 मिनट ध्यान करें।

जहां तक संभव हो सके खट्टी वस्तुओं एवं कच्चे प्याज के सेवन से दूर रहें । शुद्ध शाकाहारी जीवन जीने का प्रयास करें। यदि आप वास्तविक रूप में अध्यात्म के क्षेत्र में आगे जाना चाहते हैं तो आपको शाकाहारी होना चाहिए। गायत्री महामंत्र एवं ओमकार का नाद मय जप आप तभी कर सकते हैं जब आप शाकाहारी हों। मात्र 3 माह के अभ्यास में आप अद्भुत चमत्कारिक प्रभाव देखेंगे।

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