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ध्यान साधना , और तमाम साधना थोड़ा गहरा अनुभव।

जब साधक की साधना थोड़ी गहरी हो जाती, जब उनकी चेतना पहले से थोड़ी बिकसीत होने लगती चाहे वो किसी भी ज़रिया से हो तंत्र, मंत्र, ध्यान, बिपासना, त्राटक, इष्ट के प्रति समर्पण या इस्लामिक और किसी भी रास्ते से हुई हो पर इस अवस्था पे आकर सब विधी सब रास्ते और ज़रिया चेतना को यहाँ लाकर एक कर देता और सारे रास्ते यहाँ आकर शून्यता में विलीन होने लगती और सभी का अनुभव एक जैसा होने लगता और वो धीरे धीरे सूक्ष्म विचारों से अलग होने लगता तो धीरे धीरे उनकी चेतना वहाँ की ओर बढ़ने लगती जहाँ विचारों और शब्दों की निर्माण होती और जिस ऊर्जा से होती, अर्थात साधक अलौकिक consciences की दुनियाँ और स्थूल से उसकी चेतना सिमटने लगती एक ऊर्जा के रूप में। और साधक सूक्ष्म अर्थात आत्मा को थोड़ा थोड़ा जानने लगता महसूस करने लगता। इस बीच साधक को बहुत संभलने के अवयसकता पड़ती। ध्यान दीजिएगा, साधक को साधना के दौरान लगता हैं की शायद अब धीरे धीरे सिद्ध होते जा रहा हैं, ऐसा लगता जैसे वो कोई भी चमत्कार करने में अब सक्षम ऐसा तब लगता हैं जब नाड़ियों में प्राण वायु के वजह और चेतना को अंतर्मुखी होना जिससे नाड़ियों में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह तेज़ होने लगती।और साधक के मन में भ्रम पैदा होना शुरू हो जाता और वो उस सिद्धि को प्रयोग कर के उसे check करना चाहते। उन्हें ऐसा लगने लगता वो औरों आम इंसान से बिलकुल भिन्न। और यहाँ मन अपना खेल दिखाना शुरू कर देता और इस तरह का कयी भ्रमित विचारों का निर्माण मन में होने लगता हैं और ऐसी अवस्था में विचारों का उत्पन होने की ऊर्जा भी काफ़ी तीव्र होती और साधक की एक भी इक्षा पे जायदा देर चिंतन करना सोचना उसे अपने साथ वापिस सांसारिक दुनियाँ की तरफ़ बहा कर मोड़ कर उनकी चेतना को बाहरी दुनियाँ की ओर लेजाने लगती, इस समय साधक को धैर्य, साहस, और चेतना को सिद्धि रास्ते पे रखने की एकाग्रता बनाए रखना चाहिए और उन विचारों के प्रति जागरूक और सजग होने की अवयसकता।

कुछ शब्दों की कमी और कुछ अनुभव शब्दों से परे होते जिनको दर्शाने के लिए शब्द कम पड़ने लगते इसलिए जैसा सामर्थ्य हुआ लिख दिया

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