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ध्यान क्या है इसे किताबों में , इंटरनेट में न खोजिए वहां से कचरा ही मिलेगा , ध्यान कोई चर्चा का विषय नही है , अधिकतर साधक बस इसकी चर्चा में ही रस लेते ऐसे तो बहुत भटकाव होगा । नहीं ध्यान अप्रतिम , अतिसुन्दर घटना है अनुभवगम्य है । ध्यान आपके सभी भ्रमों का विनाश करता है , ध्यान तुम्हें अपने से परिचय करवाता है , ध्यान तुम्हें उस परम से एकाकार करता है जिसे अभी तक पृथक समझ रहे थे , ध्यान तुम्हें अस्तित्व का बोध कराता है , ध्यान तुम्हें प्रेम के रस से परिपूर्ण कर देता है ।
ये कोई ऐसी घटना नही की बस बीज बोया और फल तोड़ लिया । नहीं जिस प्रकार एक बीज को बोया जाता है , बीज उस गहन अंधकार में धरती के गर्भ में तोड़ता है अपनी खोल को और उचित उर्वर्ण शक्ति आ संचय कर अंकुरित होता है , अंकुरित होने के बाद भी उसकी देखभाल करनी पड़ती है नियमित खाद पांस और पानी से सिंचित करना पड़ता है उसके आस पास उग रहे खर पतवारों को साफ करना है पड़ता तब उसके विकास की प्रक्रिया आरम्भ होती है और वर्षों लग जाते हैं उसे वृक्ष बनने में वृक्ष बनने के बाद भी समय लगता है उसे पुष्पित होने में , फल लगने में । ऐसे ही ध्यान में होने की प्रक्रिया है । पहले ध्यान का बीज अपने भीतर आरोपित तो करो , उसे सही दिशा तो प्रदान करो , अहंकार रूपी खर पतवार को हटाना पड़ता है , मौन और एकाग्रता ही तुम्हे ध्यान में प्रवेश करने के लिए उपजाऊ बनाते हैं ।
आसान नही है अदम्य साहस और धैर्य की जरूरत होती है, अदम्य मौन रहने की जरूरत होती है , बाहर से भीतर अपने को सरकाना पड़ता है और ये अचानक से नही होता , धीरे धीरे होता है ऐसे में परम् आवश्यकता होती है मार्गदर्शन की जो कि उन रास्तों पर चलता हुआ परम् अवस्था को प्राप्त , परमशून्य में लीन हो चुका गुरु ही सही मार्गदर्शन दे सकता है । सच्चा गुरु तुम्हें उचित दिशा प्रदान करता है , तुम्हें माली बनकर अपने प्रेम से अपनी ऊर्जा से अपने ज्ञान से सिंचित करता है और जब तुम पुष्पित हो जाते हो तो तुम्हें ईश्वर के चरणों में अर्पित कर देता है ।

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