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🙏🏻🚩जय श्री राम🚩🙏🏻
🙏🏻 कल विजय दशमी का विशेष उपाय🙏🏻

कल आप हनुमानजी को को.लड्डू का भोग लगाऐ, उसके पश्चात हनुमान जी का सिद्ध मन्त्र
ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्” ॥ कि दो माला करे इस.उपाय से.जीवन मे आ रही परेशानी.दूर होगी।
उपाय कै.बाद हनुमानजी. से अपनी. परेशानी दूर करने कि प्राथना करे

और शाम के.समय.हि पिपल कै.पेड के निचे तेल का दिपक जलाऐ । और हनुमान चालीसा का पाठ भी करै

कल.आप.किसी धार्मिक स्थल पर अपनी मनोकामना कहते हुए गुप्तदान जरुर करे ,इस से कार्य मे.आ रही अडचनें दूर होती है, समाज मे मान सम्मान कि प्राप्ति होगी।🌹🙏🏻रावण संहिता का एक और विशेष उपाय।कल रात्रि 12 बजे से पहले करे ये उपाय और उपाय करने के बाद इसे किसी को बताऐ नही।

किसी काले कपड़े में बारह बादाम बांधकर उसे किसी लोहे के बर्तन में भरकर किसी अंधेरे कमरे में रखने से रूके हुए कार्य मे अच्छे परिणाम मिलेंगे
ये.उपाय आप अपने.मिलने वालो को.जरूर बताऐ।🙏🏻
🌹
🌷 आध्यात्मिक उन्नति का पर्व-दशहरा 🌷

🌅आधुनिक समय की समस्याओं के हल रामायण में मिलते हैं और यही वजह है कि बुराई पर अच्छाई की विजय का यह पर्व सदैव प्रासंगिक है। रामायण सिर्फ राम और रावण के संघर्ष का आख्यान ही नहीं है बल्कि जीवन के अनेक पक्षों को समृद्ध करने वाली कथा है।
रावण ने सीता का हरण किया था और इस अपराध की सजा के तौर पर राम ने रावण का वध किया। रामायण इसी का आख्यान है। यह महाकाव्य रावण को एक असुर की तरह निरूपित करता है और चूंकि राम हिन्दुओं के लिए देव हैं तो रावण का कृत्य उसे खलनायक सिद्ध करता है।
यही वजह है कि हम दशहरे पर बुराई के प्रतीक के रूप में रावण के पुतले का दहन करते हैं। मगर, ऋषिकेश की पहाड़ियों और रामेश्वरम् मंदिर में यह कथा सुनाई जाती है कि राम ने रावण को मारने के बाद किस तरह प्रायश्िचत किया।
आखिर भगवान को एक दुष्ट को मारने के बाद प्रायश्चित करने की क्या जरूरत आन पड़ी? इससे यह समझ आता है कि रामायण ऐसा महाख्यान है जिसकी बहुत-सी चीजें जितनी सरल दिखती हैं वे उतना ही गूढ़ अर्थ लिए हैं। रावण एक ब्राह्मण था। वह विश्रवा का पुत्र और ऋषि पुलस्त्य का पोता था।
राम हालांकि ईश्वरीय अवतार थे, लेकिन उन्होंने क्षत्रिय कुल में जन्म लिया था। रावण से तुलना करें तो राम सामाजिक स्तर और वैभव में कमतर थे। ब्राह्मण होने के नाते रावण ब्रह्म ज्ञान का रक्षक था। उसकी हत्या का अर्थ था ब्रह्म हत्या का पाप लेना। इस ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए ही राम को प्रार्थना और प्रायश्चित करना पड़ा। एक और महत्वपूर्ण कारण यह है कि रावण राम का गुरु भी था।

राम ने माना रावण का ज्ञान
कहानी कुछ ऐसी है कि लंका के रणक्षेत्र में प्राणांतक बाण चलाने के बाद राम ने लक्ष्मण से कहा, ‘जाओ लक्ष्मण, इससे पहले कि रावण अपनी देह त्याग दे, उसके पास जाओ और उससे प्रार्थना करो कि वह अपना ज्ञान तुम्हें दे। भले ही रावण निर्दयी और दुष्ट रहा हो लेकिन वह प्रकांड पंडित है।
लक्ष्मण ने राम की आज्ञा का पालन किया। वह दौड़कर रावण के करीब गए और उसके कान में कहा, ‘हे, राक्षसराज, तुम्हारा ज्ञान तुम्हारे साथ ही समाप्त न हो इसलिए उसे हमारे साथ बांट लो और अपने पापों से मुक्त हो जाओ। रावण ने इसके उत्तर में अपना मुंह फेर लिया। क्रुद्ध लक्ष्मण राम के पास लौट आए और बोले, ‘रावण पूरे जीवन भर घमंडी रहा है और मृत्यु के क्षण में भी उसका अहंकार गया नहीं।
अहंकार के कारण वह कुछ भी बांटना नहीं चाहता है। राम ने भाई को शांत किया और उससे पूछा ‘रावण से ज्ञान बांटने का निवेदन करते हुए तुम कहां खड़े थे? लक्ष्मण ने श्री राम के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा ‘उसके मुख के निकट, ताकि वह जो भी कहे मैं ठीक-ठीक सुन सकूं । राम मुस्कुराए और अपना धनुष जमीन पर रख तुरंत उस जगह पहुंचे, जहां रावण भूमि पर लेटा हुआ था।

आकर्षक होती है बुराई
लक्ष्मण के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उसने देखा कि दैवीय गुणों वाले श्री राम ने झुककर रावण के चरणों में प्रणाम किया। अपने दोनों हाथ जोड़कर और अत्याधिक विनम्रता से राम ने कहा, ‘हे, लंकापति, आपने मेरी पत्नी का अपहरण किया, जो निंदनीय अपराध था और उसके बदले मुझे आपको दंडित करना पड़ा।
परन्तु, अब आप मेरे शत्रु नहीं हैं। मैं आपके सम्मुख नत हूं और आपसे प्रार्थना करता हूं कि आपके पास जो भी ज्ञान है उससे मुझे उपकृत कीजिए। मुझे अपना ज्ञान दीजिए क्योंकि अगर यह ज्ञान आपके साथ ही चला गया तो यह जगत का बड़ा नुकसान होगा। लक्ष्मण चकित रह गए जब रावण ने इन वचनों को सुनकर आंखें खोली और अपने दोनों हाथ जोड़कर श्रीराम का अभिनंदन किया।
रावण ने कहा कि, ‘काश मेरे पास शत्रु की बजाय आपके गुरु बनने का ज्यादा समय होता। आपके अहंकारी भाई की अपेक्षा मेरे सम्मुख झुककर मुझे प्रणाम करने वाले आप मेरे ज्ञान के उचित उत्तराधिकारी हैं। मेरे पास अधिक समय नहीं है और इसलिए मैं आपके साथ बहुत अधिक चीजें नहीं बांट सकता हूं लेकिन मैं आपको मेरे जीवन का सबसे बड़ा पाठ बताना चाहता हूं। तो सुनिए, कि जीवन में जो चीजें हमारे लिए बुरी होती हैं वे हमें अधिक आकर्षित करती हैं। हम अधीर होकर उनकी तरफ भागते हैं।

🔷 अच्छी चीजें आकर्षक नहीं होती
लेकिन वे चीजें जो उपयोगी हैं और जो हमारी अच्छाई का विस्तार करती हैं वे आकर्षित नहीं कर पाती हैं। हम उन अच्छी चीजों से बचाव के रास्ते तलाश लेते हैं और इस बचाव के लिए तर्क भी खोज लेते हैं। यही कारण है कि मैं सीता का अपहरण करने को बहुत ज्यादा अधीर हो उठा था और मैंने आपसे मिलने के बारे में तनिक भी नहीं सोचा। यही मेरे जीवन भर के ज्ञान का सार है, श्री राम। मेरे अंतिम वचन यही हैं जो मैं आपको सौंपता हूं। इन्हीं वचनों के साथ रावण ने अंतिम श्वास ली।

🔶 हनुमानजी भी आश्चर्य चकित थे
दस सिर, बीस भुजाओं, पुष्पक विमान और सोने की लंका का स्वामी रावण निसंदेह एक बड़ा खलनायक रहा है। अपनी शारीरिक इच्छाओं पर भी उसका नियंत्रण अद्भुत था। जब सीता की खोज में हनुमानजी ने लंका में प्रवेश किया, तो देखा कि लंकापति आराम कर रहा है और उसके आसपास अति सुंदर स्त्रियां सेविकाओं के रूप में उपस्थित हैं। ये वे स्त्रियां थीं, जिन्होंने अपनी इच्छा से पति का त्याग किया था। रावण की तुलना में राम का चरित्र अतिरंजित नहीं है और कहें तो बहुत ही रूखा है।
ऐसा राजा जो आदर्शों के पालन में विश्वासकरता है। राम कोई मायावी काम नहीं करते। वे आज्ञाकारी पुत्र हैं और हमेशा सच के पक्ष में ही खड़े होते हैं। वे कभी किसी को तिरछी दृष्टि से और कुटिल मुस्कान से नहीं देखते। इन्हीं कारणों से यह बहुधा संभव है कि शक्ति और आकर्षण के चलते कोई भी रावण का अनुयायी बन जाए और इसके पक्ष में तर्क भी प्रस्तुत कर दे। कोई भी इस बात को समझ नहीं पाया कि आखिर वाल्मीकि ने अपनी कथा के खलनायक को इतनी ऊंचाई क्यों दी। उसे इतना आकर्षक और इतना वैभवशाली क्यों प्रस्तुत किया?

विषयासक्त शिव भक्त
वाल्मीकि ने रावण को शिव का अनन्य भक्त बताया है। राम कथा और राम कीर्ति जैसे लोक संस्करणों में बखान मिलता है कि रावण ने योगी शिव की स्तुति में रुद्र स्त्रोत की रचना की थी। उसने अपने एक सिर को काटकर उसका तुंबा बनाया, अपनी भुजा से वीणा की बांह और अपनी तंत्रिकाओं से तार बनाकर रुद्र वीणाबनाई थी।
कुछ अध्येता कहते हैं कि राम-रावणद्वंद्व शिव अनुयायी और विष्णु अनुयायियों के बीच बड़ी लड़ाई को दर्शाता है। विष्णु अवतार राम ने रावण को मारा जो कि शिव का अनन्य भक्त था। लेकिन यह तर्क वहीं खारिज हो जाता है जब यह बात सामने आती है कि हनुमान, रुद्र के 16वें अवतार थे। रावण को शिव का परम भक्त बताकर वाल्मीकि ने बहुत चतुराई से कुछ कहने का प्रयास किया है।
इसे जानने के लिए हमें रामायण में गहरे उतरना पड़ता है। शिव ऐसे देव हैं जो वैराग्य और सांसारिक चीजों से विरक्ति के प्रतीक हैं। वे भभूत रमाकर और मसान में रहकर सांसारिक आकर्षणों की उपेक्षा का संदेश देते हैं। रावण उनका परम भक्त है, लेकिन वह शिव के मार्ग का अनुसरण नहीं करता। वास्तव में रावण उन मार्गों पर चलता है, जिन्हें शिव अस्वीकार करते हैं। रावण सांसारिक माया में उलझा है।
उसने श्रम से सोने की लंका नहीं बनाई। उसने सीता का अपहरण क्यों किया? अपनी बहन के अपमान का बदला लेना एक कारण हो सकता था, लेकिन उसका कर्म एक स्त्री की पवित्रता को जीतने की कोशिश ज्यादा थी। इसके अलावा युद्ध के समय रावण ने स्वयं से पहले अपने पुत्र और भाइयों को रणक्षेत्र में भेजा।
रावण के पास दस जोड़ी आंखें थीं इसका अर्थ था कि वह ज्यादा देख सकता था। दस जोड़ी भुजाएं थीं इसका अर्थ था कि वह ज्यादा सक्षम था। उसके दस सिर थे, मतलब वह ज्यादा विचार कर सकता था। लेकिन इन विशेषताओं के बावजूद वह इच्छाओं का दास रहा। रावण का अंत और विजयादशमी पर्व हमें इच्छाओं को जीतने की ही प्रेरण देता है।
सूर्य और चंद्रमा की गति विभिन्न प्रकार की ऊर्जा लहरों की रचना करती है। उदय होते हुए सूर्य अथवा प्रातः की संध्या के समय सूक्ष्म शक्तियां अपनी चरम सीमा पर होती हैं और यह समय आध्यात्मिक साधनाओं के लिए उपयुक्त होता है।
सूर्य ढलने के समय अथवा सांयकालीन संध्या के समय स्थूल शक्तियां अपनी चरम सीमा पर होती हैं जिससे नकारात्मकता बढ़ती है। इसी प्रकार से पूर्णिमा के समय शक्तियां निरंतर प्रवाह की स्थिति में होती हैं। अपने आसपास देखें तो पूर्णिमा के दिन आपको विशिष्ट परिवर्तन होते हुए दिखाई देंगे। समुद्र ज्वार के कारण अशांत होने लगते हैं। पशु का व्यवहार आक्रामक हो जाता है।
मानसिक तौर से असंतुलित व्यक्ति इस दिन स्पष्ट रुप से विचलित मानसिकता का प्रदर्शन करते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि शक्तियों का रुप बदल रहा होता है। और हमारे ऊर्जा स्वरुप न केवल दिन के अलग अलग समय में परिवर्तित होते हैं, अपितु कुछ विशेष दिनों में हमारी ऊर्जा अपने चरम पर होती है। ऐसा ही एक दिन है-दशहरा।
आश्विन शुक्ल की दशमी तिथि को मनाए जाने वाली यह पर्व सामान्य रुप से बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। लेकिन इसके पीछे एक गहन अर्थ छिपा हुआ है।
वैदिक ऋषि अपार ज्ञान के भंडार थे। उन्होंने सृष्टि के रहस्यों को, इसके स्रोत को, इसकी कार्यप्रणाली को, अंत को व इसके पुनः सृजन की गुत्थी को सुलझा लिया था। केवल एक साधारण व्यक्ति ही उन दिनों को हर्षोल्लास मनाने का माध्यम समझने की गलती कर सकता है वरना इन तिथियों का महत्त्व ऊर्जा ही है।
रावण वास्तव में एक पंडित था। वह व्यक्ति जिसने शिव तांडव स्तोत्र की रचना की, वह कोई साधारण असुर नहीं हो सकता। वह स्वर्ग लोक का द्वार पाल था और भूलोक के कष्ट व भोगों से युक्त जीवन व्यतीत करने का उसे श्राप मिला था।
उसे माया के बंधन से मुक्त करने के लिए भगवान विष्णु को स्वयं धरती पर आना पड़ा। यह प्रसंग युग परिवर्तन अथवा शक्तियों के परिवर्तन को भी दर्शाता है। इसे समझने के लिए मैं आपको एक कथा से अवगत कराता हूं। हनुमान की माता अंजना वास्तव में स्वर्गलोक की अप्सरा थी। एक दिन वह मर्यादा के विपरीत नृत्य और उछल कूद कर रही थी तो उसे भूलोक में जाकर वानर का जीवन व्यतीत करने का श्राप दे दिया गया।
समय बीतने के साथ वह माया में इतना बंध गई कि जब उसके शाप की अवधि समाप्त हुई तो उसने स्वर्ग लोक लौटने से इंकार कर दिया। अंत में जब वह पृथ्वी के सत्य से अवगत हुई तो उसने वापस लौटने का और माया के बंधनों से मुक्त होने का निर्णय लिया।
जो व्यक्ति जीवन के चरम सत्यों की खोज में हैं, उनके लिए ये कथाएं संकेत मात्र हैं जिससे कि सृष्टि के आधारभूत स्वरुपों तक पहुंचा जा सके व उनके अंदर छिपी शक्ति को वश में किया जा सके। दशहरे के दिन ऊर्जा स्वरुप कुछ इस प्रकार का होता है कि ब्रह्मांड के सत्य अति सरलता से उजागर हो सकते हैं जिससे कि आप माया के बंधनों से परे जाने में सक्षम हो जाएंगे।
अज्ञानी के लिए यह दिन ज्ञान प्राप्त करने का दिन है, स्वार्थी के लिए यह दान करने का दिन है, अभिमानी के लिए यह विनम्रता का दिन है, क्रोधी के लिए यह क्षमा करने का दिन है और आध्यात्मिक उत्थान की अभिलाषा रखने वाले के लिए यह दिन साधना माध्यम से स्वयं को भौतिक, भावनात्मक व आर्थिक असंतुलन से मुक्त कर प्रकृति व संतुलन की ओर अग्रसर करने का दिन है।
साधक दशहरे के दिन अपने गुरु के मार्गदर्शन में सृष्टि के क्रियाकलापों में योगदान देने के लिए मंत्र साधना व हवन के द्वारा दिव्य शक्तियों का आह्वान करते हैं और इस प्रक्रिया से अपने अंदर ही दिव्यता को प्राप्त कर लेते हैं।

🌹 जय सियाराम
🌹 जय हनुमानजी
🚩🚩 जय श्री राम 🚩🚩
🚩🚩 जय श्री राम 🚩🚩
🚩🚩 जय श्री राम 🚩🚩
[विजयदशमी 8 अक्टूबर का शुभ मुहूर्त
विजयदशमी वर्ष के श्रेष्ठ मुहूर्त बसंत पंचमी और अक्षय तृतीया की तरह ही शुभ माना गया है विजयदशमी के दिन कोई भी अनुबंध हस्ताक्षर करना हो गृह प्रवेश करना हो नया व्यापार आरंभ उतरना हो या किसी भी तरह का लेनदेन का कार्य करना हो तो उसके लिए श्रेष्ठ फलदाई माना गया है इन तीनों मुहूर्तो में राहु काल का भी दोष नहीं होता इस दिन सर्वश्रेष्ठ अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11 बजकर 36 से 12 बजकर 24 तक के मध्य है। इसके मध्य किया गया कोई भी कार्य सभी कठिनाइयों से लड़ता हुआ विषम परिस्थितियों से जूझता हुआ अपने उच्चतम स्तर पर पहुंचेगा। इस दिन का दूसरा मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 24 से 2 बजकर12 तक है इस अवधि के मध्य आरंभ किया जाने वाला कोई भी कार्य सफलता दायक रहेगा।

दशहरा का महत्व

  • दशहरे का पर्व साल के सबसे पवित्र और शुभ दिनों में से एक माना गया है। यह तीन मुहूर्त में से एक है – साल का सबसे शुभ मुहूर्त – चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्विन शुक्ल दशमी, वैशाख शुक्ल तृतीया। यह अवधि किसी भी चीज की शुरूआत करने के लिए उत्तम है।
  • क्षत्रिय समाज इस दिन अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं जिसे आयुध पूजा के रूप में भी जानी जाती है। इस दिन शमी पूजन भी करते हैं।
  • ब्राह्मण समाज इस दिन देवी सरस्वती की पूजा करते हैं।
  • वैश्य समाज अपने बहीखाते की आराधना करते हैं।
  • नवरात्रि रामलीला का समापन भी दशहरे के दिन होता है।
  • रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ का पुतला जलाकर भगवान राम की जीत का जश्न मनाया जाता है।

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