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🔥जीते जी मरो [Dying While Living]🔥

मरना दो प्रकार का होता है एक मरना वो है जिसमे आत्मा शरीर को हमेशा के लिए खाली कर देती है और उसके बाद शरीर को जला कर राख किया जाता है इसे मौत या मरना कहते हैं लकिन यहां जीते जी मरने का अर्थ है, मृत्यु से पहले मरना या अपनी मर्ज़ी से रोज रोज मरना – क्योकि इसमें जिन्दा रहते हुए ही शरीर से आत्मा को खाली करना होता है जब कोई शिष्य आँखों के केंद्र पर पहुचता है तो उसकी रूहानी प्रगति शुरु होती है । उसकी आत्मा नौ द्वारों से सिमट कर आँखों के पीछे आ जाती है और शरीर शून्य , यानी मुर्दे के समान हो जाता है। तब शिष्य की आत्मा अंदर के अध्यात्मिक जगत में प्रवेश करती है जब शरीर अचेत हो जाता है , परंतु शिष्य अंदर में पूरी तरह सजग रहता है वहाँ उसकी चेतना पूर्ण सक्रिय रहती है। आत्मा को स्थूल शरीर में से समेट कर आँखों के केंद्र पर लाने की इस क्रिया को ही संतो ने जीते जी मरना कहा है संतो के जीते जी मरने का कहने का भाव ये है कि संसार के प्रति मृत , यानि उदास हो जाना है। संसार के आकर्षणों में से अनासक्त हो जाना है आमतौर पर मृत्यु के समय आत्मा शरीर के विभिन्न अंगो- हाँथ, पैर ,धड़ आदि से सिमट कर आँखों से पीछे आ जाती है और यहीं से निकल कर हमेशा के लिए छोड़ देती है लेकिन संतो द्वारा सिखाये गये अभ्यास में शिष्य की आत्मा इसी प्रकार इस शरीर को छोड़ कर आँखों के केंद्र में आती है और यहां रूहानी मण्डलों में प्रवेश करती है परंतु इस अवस्था में उसे शरीर से जोड़ें रखने वाला सूक्ष्म तार नही टूटता जो मौत के समय टूट जाता है । और इस अभ्यास के बाद शिष्य की आत्मा वापस शरीर में आ जाती है इस लिए इसे जीते जी मरना कहा गया है यह जीते जी मरने की अवस्था प्रभु की प्राप्ति और जन्म मरण के बन्धनों से छूटने का एकमात्र साधन है संत कहते हैं जीते जी मरो और इस प्रकार मरकर पुनः जी उठो तो तुम्हारा फिर से जन्म नही होगा जो इस प्रकार जीवित मर कर नाम में समां जाते हैं , उनकी आत्मा माया रहित शुद्ध आत्मिक मण्डलों में लगी रहती है यह जीते जी मरने की अवस्था गुरु के दिए गए नाम के अभ्यास से ही प्राप्त होती है संत नाम देव कहते हैं कि गुरु द्वारा दिए गए शब्द के अभ्यास से मैंने अपने आपको पहचाना और जिन्दा रहते हुए मरने की विधि सीखी जब तक जीते जी शरीर को खाली नही करेंगे तब तक रूहानी आनंद की गली में पैर नही रखा जा सकता शरीर को खाली करके अंदर जाना ही जन्म-मृत्यु के बन्धन से छुटकारा पाने का एक मात्र उपाय है संतो के अनुसार इस अवस्था की प्राप्ति सच्चे शब्द अभ्यासी गुरु के द्वारा ही हो सकती है अपने एक दोहे में एक संत कहते हैं कि सतगुरु ने मुझे शब्द का बाण मारा तो मैं गूंगा , बहरा और मतिहीन हो गया तथा इन पैरों से लँगड़ा हो गया , अथार्त् जीते जी मरने से मेरी आत्मा रूहानी मण्डलों में चली गयी जहां शरीर इन्द्रियों और बुद्धि का कोई उपयोग नहीं आगे कहते हैं कि सतगुरु के बाण की चोट से मैं सुख की अवस्था में पहुच गया अब मैं न मरूँगा न जीऊंगा और ऐसे लोग असली और सच्चा सुख पा कर अमर हो जाते हैं जो इस प्रकार जीते जी मरते हैं
🚩जय माता दी🚩

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