शांति हेतु सुंदरकांड ……
सुंदरकांड श्रीरामचरितमानस का चौथा अध्याय है।
यह श्रीरामचरितमानस का सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला भाग हैं क्योंकि इसमें हनुमानजी के बल, बुद्धि, पराक्रम व शौर्य का वर्णन किया गया है।
सुंदरकांड के पढऩे व सुनने से मन में एक अद्भुत ऊर्जा का संचार होता है। सुंदरकांड के हर दोहा, चौपाई व शब्द में गहन अध्यात्म छुपा है, जिससे मनुष्य जीवन की हर समस्या का सामना कर सकता है।
पराक्रम, शक्ति व शौर्य के इस अध्याय का प्रथम श्लोक है-
“शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं”
सुंदरकांड का आरंभ जिस श्लोक से हुआ है उसका पहला शब्द ही शांति है अर्थात सुंदरकांड का आरंभ शांति के आव्हान से हुआ है।
सुंदरकांड के प्रथम श्लोक का यह प्रथम शब्द यहां संकेत दे रहा है कि वर्तमान युग सुख अर्जित करने का युग है। सुख मिलना बहुत ही आसान है। पहले के समय में जो आदमी के लक्ष्य हुआ करते थे वे अब आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं जैसे- घर, बंगला, गाड़ी आदि।
लेकिन मन की शांति नहीं मिल पाती। शांति प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ उपाय भगवत स्मरण ही है। जब आपके मन में भगवान का वास होगा उसी समय शांति भी आपको प्राप्त हो जाएगी।