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अतीन्द्रिय ज्ञान-एक्स्ट्रा सेंसरी पर्सेप्शन-अब एक वैज्ञानिक तथ्य है। सामान्यतया पाँच ज्ञानेन्द्रियों की सहायता से ज्ञान सम्पादन होता है, पर अब विश्लेषण का एक विषम छठी इन्द्रिय-सिक्सथ सेन्स-भी बन गया है। मनुष्य कई बार ऐसी जानकारियाँ प्राप्त करता है जो इन्द्रिय ज्ञान की परिधि से सर्वथा बाहर की बात होती है। कान एक सीमित शब्द ध्वनियाँ सुन सकते हैं और आँखों से सीमित प्रकाश किरणों के आधार पर बनने वाले दृश्य देखते हैं। यन्त्रों ने दूरदर्शन और दूर श्रवण को सुलभ बना दिया है तो भी बिना किसी यन्त्र उपकरण से दूरस्थ दृश्यों को देख सकना और शब्दों को सुन सकना आश्चर्य का ही विषय है।
अमेरिका के मन रोग चिकित्सक डा0 एणुरीना पुहरिच ने विचार संसार विद्या पर एक पुस्तक लिखी है- ”बियोण्ड टैलीपैथी”। उसमें उन्होंने ऐसी अनेकों घटनाओं का उल्लेख किया है जिनसे सिद्ध होता है कि कितने ही मनुष्यों को समय-समय पर दूरस्थ स्थानों पर घटित हुई घटनाओं का ज्ञान बिना किसी साधन संचार के अनायास ही होते देखा गया है।
प्रामाणिक इतिहासकार ‘हिरोडोटस’ ने ईसा से पूर्व 546-560 में हुए लीडिया के राजा क्रोशस का विवरण लिखा है। उसमें कहा गया है कि राजा अपने शत्रुओं से आतंकित था। उसने किसी भविष्यवक्ता की सहायता से रास्ता निकालने की बात सोची। प्रामाणिक भविष्यवक्ता को ढूंढ़ निकालने के लिए उनसे तत्कालीन सात प्रसिद्ध भविष्यवक्ताओं के पास अपने दूत भेजे और कहा जिस समय मिले उसी समय वह पूछे कि- अब ड़ड़ड़ड़ क्या कर रहे हैं? इधर राजा ने अपना घड़ी-घड़ी का कार्य विवरण लिखने की व्यवस्था कर दी।
छः के उत्तर तो गलत निकले, पर सातवें उल्फी नामक भविष्यवक्ता की बात अक्षरशः सही निकली उसने दूत के बिना पूछे ही बताया-”क्रोशस इस समय पीतल के बर्तन में कछुए और भेड़ का मिला हुआ माँस भून रहा है।” पीछे राजा ने उस भविष्यवक्ता को बुलाया ओर उसके परामर्श से-कठिनाइयों से त्राण पाया।
इटली के एक पादरी अलोफ्रोन्सस लिगारी ने अर्धमूर्छित स्थिति में दिवा स्वप्न देखा कि “ठीक उसी समय रोम के बड़े पोप का स्वर्गवास हो गया है।”
उन दिनों सन् 1774 में यातायात या डाक-तार का भी कोई प्रबन्ध न था। इतनी दूर की किसी घटना की ऐसी जानकारी जब उनने अपने शिष्यों को सुनाई तो किसी को इसका कोई आधार प्रतीत नहीं हुआ। बड़े पोप बीमार भी नहीं थे फिर अचानक ऐसी यह मृत्यु किसी प्रकार हो सकती है? कुछ ही दिन बाद समाचार मिला कि पोप की ठीक उसी समय वैसी ही स्थिति में मृत्यु हुई थी जैसी कि लिगाडरी ने विस्तारपूर्वक बताई थी।
सन् 1759 की वह घटना प्रामाणिक उल्लेखों में दर्ज है जिसके अनुसार स्वीडन के इमेनुअल स्वीडन वर्ग नामक साधक ने सैकड़ों मील दूर पर ठीक उसी समय हो रहे भयंकर अग्निकाण्ड का सुविस्तृत विवरण अपनी मित्र मण्डली को सुनाया था। उस अग्निकाण्ड में घायल तथा मरने वालों के नाम तक उनने सुनाये थे जो पीछे पता लगाने पर अक्षरशः सच निकले।
खोये हुए मनुष्यों एवं सामानों के संबंध में अतीन्द्रिय चेतना सम्पन्न मनुष्य जब सही अता-पता देने में सही सिद्ध होते हैं तो यही मानना पड़ता है प्रत्यक्ष साधनों एवं इन्द्रिय ज्ञान के सहारे जो कुछ जाना जाता है बात उतने तक ही सीमित नहीं है, मनुष्य की रहस्यमयी शक्तियों के आधार पर वैसा भी बहुत कुछ जाना जा सकता है जो सामान्यतया असम्भव ही कहा जा सकता है। विज्ञानी डा0 मोरे बर्सटीन ने लेटी वेडर के बारे में एक दिन अपने एक मित्र से सुना। इसके पूर्व विमान-यात्रा में उनका बिस्तर व सामान खो गया था, जिसमें जरूरी कागजातों वाला बक्सा भी था। विमान कम्पनी ने खोए समाना के न मिलने की घोषणा कर दी थी तथा मुआवज़े का प्रस्ताव रखा था, जिसे वर्सटीन ने अस्वीकार कर खोज जारी रखने को कहा था। अब मित्र से सुन वर्सटीन को अपने सामान की चिन्ता तो जाती रही। भीतर की जिज्ञासा-वृत्ति उमड़ उठी। वे चल पड़े लेडी लेडी वन्डर से मिलने। वहाँ सर्वप्रथम वर्सटीन ने पूछा-बताइये, पेरिस में मैंने जो बिल्ली पाल रखी थी उसका नाम क्या था ? लेडी वंडर ने उसे विस्मित करते हुए बताया-भर्तिनी। फिर वर्सटीन ने अपने सामान की बाबत पूछा। लेडी वन्डर ने बताया-तुम्हारा सामान न्यूयार्क हवाई अड्डे में है।
पहले तो वर्सडीन को अविश्वास हुआ। क्योंकि न्यूयार्क हवाई अड्डा छाना जा चुका था। पर फिर उसने हवाई अड्डे के अधिकारियों को फोन किया-”महोदय, मुझे विश्वस्त सूत्रों से जानकारी मिली है कि मेरा सामान न्यूयार्क हवाई अड्डे के भवन के ही भीतर है। कृपया दुबारा तलाश करें।” तलाशी शुरू हुई और सामान सचमुच मिल गया। ड़ड़ड़ड़ की आत्मवेत्ता महिला फ्लोरेन्स किसी वस्तु को छूकर उससे संबंधित व्यक्ति के बारे में जो कुछ बताती थी, उसका प्रायः 80 प्रतिशत सच होता रहा। गुमशुदा की तलाश, हत्याओं की जाँच तथा अन्य खोजबीन के मामलों में पुलिस भी उसकी सहायता लेती रही।

         

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