आपकेखयालसेविज्ञानऔरमानवताकाभविष्यकैसा_होगा?
संसार में कोई वस्तु नई हो या पुरानी, हर प्रकार से मानव-सापेक्ष हुआ करती है। विज्ञान भी इसका अपवाद नहीं कहा जा सकता। किसी पुस्तक में पढ़ा था, गाय के स्तनों पर यदि जोंक को चिपका दिया जाए, तो दूध पीने के स्थान पर वह उसका खून चूसने लगेगी। जल्द ही वह गाय निचुडक़र समाप्त हो जाएगी। ठीक वही स्थिति आधुनिक भौतिक ज्ञान-विज्ञान की भी है। उसका मूल स्वरूप और स्वभाव गाय के समान ही दुधारू और मानव-जीवन का पोषण करके स्वस्थ स्वरूप देने वाला है पर आज निहित स्वार्थी स्वभाव वाली मानव-जोंकें विज्ञान रूपी इस गाय के स्तनों में चिपककर उसका इस बुरी तरह दोहन कर रही हैं कि विज्ञान और मानवता दोनों का भविष्य ही संदिग्ध एंव भयावह दृष्टिगोचर होने लगा है।
सभी जानते हैं कि आधुनिक विज्ञान ने हमें बहुत कुछ दिया है। सुई से लेकर बड़ी-से-बड़ी वस्तु जो कुछ भी हम प्रयोग में लाते हैं, वह सब विज्ञान की ही देन है। उसके कारण मानव-जीवन बड़ा ही सरल और सुखी हो गया है। वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से आज के मानव ने जल, थल, आकाश-मंडल सभी कुछ को मथ डाला है। ये सब उसे अब और छोटे और हस्तगत लगने लगे हैं। आज का विज्ञानी मानव अपने कार्यों के लिए अब कोई अन्य और बड़ी धरती, अन्य बड़ा आकाश, अन्य बड़ा सागर चाहता है जिससे कि और आगे बढक़र उनकी अथाह गहराइयों को नाप सके। इसका परिणाम हो रहा है कि मानव की तृष्णाओं का अनंत विकास-विस्तार, हृदय की शून्यता एंव हीनता, बौद्धिकता की तड़प और नीरस-शुष्क भाग-दौड़। परिणामस्वरूप अब विज्ञान की नई खोंजें भी दूसरों पर धौंस जमाने वाली और मारक होती जा रही हैं। मानवता का स्वभाव भी अधिकाधिक उग्र एंव मारक होता जा रहा है। इसी कारण विज्ञान की प्रगतियों के संदर्भ में आज ‘मानवता का भविष्य’ जैसे सोचनीय, विचारणीय उग्र प्रश्न नित नया रूप धारण करके सामने आ रहे हैं। इस प्रकार के प्रश्नों का उचित उत्तर एंव समाधान नितांत नदारद है। स्वंय वैज्ञानिकों द्वारा चेष्टा करके भी उत्तर नहीं मिल पा रहे हैं।
आज हम स्पष्ट देख रहे हैं कि वैज्ञानिक प्रगतियों एंव उपलब्धियों के कारण ही चारों ओर अविश्वास का भाव और तनावपूर्ण वातावरण सघन से सघनतर होता जा रहा है। छोटा-बड़ा प्रत्येक राष्ट्र एक-दूसरे से अपने को नाहक पीडि़त एंव भयभीत अनुभव कर विज्ञान के मारक उपायों एंव साधनों से अपने-आपको अधिकाधिक लैस कर लेना चाहता है। वह धन जो मानव के जख्मों के लिए मरहम खरीदने या बनाने, भूखी-नंगी और गरीबी की निचली रेखा से भी नीचे की अवस्था में जी रही मानवता के लिए रोटी-कपड़ा जुटाने के काम में आ सकता है उसका खर्च अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं, हजारों मीलों दूर तक मार कर पाने वाले शस्त्रास्त्रों के निर्माण और खरीद पर हो रहा है। छोटे राष्ट्र तो स्वत्व रक्षा की चिंता से भयभीत हैं ही, बड़े राष्ट्र उससे भी अधिक भयभीत प्रतीत होते हैं। उन्हें छोटे-बड़े सभी अन्य राष्ट्रों पर अपनी लंबरदारी बनाए रखने की चिंता भी भयानक से भयानकतम शस्त्रों को जुटाने के लिए बाध्य कर रही है। परिणामस्वरूप चारों ओर वैज्ञानिक ढंग से निर्मित बारूद के ढेर इकट्ठे किए जा रहे हैं। बारूद भी सामान्य विस्फोट करने वाला नहीं, बल्कि पिघला और दम घोंटकर सभी कुछ चंद क्षणों में ही विनष्ट कर देने वाला जुटाया जा रहा है। ऐसी स्थिति में मानवता के भविष्य को सुरक्ष्ज्ञित कहा भी कैसे और रखा भी क्यों कर जा सकता है?
विज्ञान की गाय के थनों से जोंक की तरह दूध के स्थान पर रक्त पीने का हमारा स्वभाव बनता जा रहा है। यह सोचे बिना कि यह रक्तपान हमारे अपने ही तन-मन और सर्वस्व को विनष्ट करके रख सकता है। इस भावी विनाश और विस्फोटक बारूद के ढेर के फटने से बचने का एक ही उपाय है। वह है सहज मानवीय वृत्तियों की जागृति। जब हम इन मानवीय उदात्त और सहज वृत्तियों को जगाकर बारूद के ढेर को पलीता दिखाने के स्थान पर एक-एक कर गंदे नालों में बहा देंगे। जोंक का स्वभाव छोडक़र विज्ञान की गाय के स्तनों से केवल दूध पीने की आदत बना लेंगे, तभी मानवता का भविष्य सुरक्षित रह सकेगा। वास्तविक सुख-समृद्धि और शांति और नींव भी तभी डल सकेगी
#अन्यथासर्वनाशतोहैही_सुनिश्चित
और उससे बचाव का उपाय अभी तक नदारद है, यह ऊपर भी कहा भी जा चुका है। आशा करनी चाहिए कि बुद्धिमान मानव अभी इतना हृदयहीन नहीं हो गया है कि वह जान-बूझकर अपनी उपलब्धियों से अपने-आप को ही विनष्ट हो जाने देगा। बुद्धिमता से काम लेकर वह बचाव का रास्ता अवश्य ढूंढ लेगा, मानवता को बचा लेगा, ऐसी निश्चित आशा अवश्य बनाए रखी जा सकती है।