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   *जीवन एक वृक्ष है, संस्कार इसमें दिया जाने वाला खाद पानी और आचरण ही इसका फल है। जीवन रुपी इस वृक्ष में संस्कार रुपी खाद पानी का जितना सुन्दरतम सिंचन किया जाएगा, आचरण रुपी फल भी उतना ही मधुरतम व श्रेष्ठतम होगा।*

  *हरियाली अवश्य किसी वृक्ष का सौंदर्य है फल उसकी सार्थकता । जिस प्रकार फल वृक्ष की उपयोगिता को बड़ा देते हैं। ऐसे ही हमारा आचरण ही संसार  में हमारी उपयोगिता का निर्धारण भी करता है।*

  *फल जितना सुस्वादु व मधुर होगा वृक्ष की उपयोगिता उतनी ही अधिक। ठीक ऐसे ही हमारा आचरण भी जितना मधुर अथवा श्रेष्ठ होगा समाज में हमारी उपयोगिता भी उतनी ही अधिक होगी।*

जय श्री कृष्ण🙏🙏



ये बात तो सत्य है। कि भक्त के जीवन में भी दुख बहुत होते हैं।। लेकिन ये बात भी सत्य है, कि प्रभु भक्त के चेहरे पर कभी मायूसी नहीं रहती है। भक्ति दुख नहीं मिटाती है बस दुख सहने की क्षमता को इतना बढ़ा देती है।। कि बड़े से बड़ा दुख भी उसके आगे बौना ही नजर आता है। भक्ति जीवन का श्रृंगार है। भक्ति वो प्रसाधन है, जो जीवन के सौंदर्य को बढ़ा देता है। प्रभु श्री राम स्वयं माँ शबरी से कहते हैं।। कि-भगति हीन नर सोहइ कैसा। बिनु जल बारिद देखिअ जैसा। जैसे बिना जल के बादल शोभाहीन एवं अनुपयोगी हो जाता है, उसी प्रकार भक्ति हीन मानव का जीवन भी समझा जाना चाहिए।। प्रभु चरणों में विश्वास हमारे अंदर की सकारात्मकता को बनाए रखकर हमारे आत्मबल को मजबूत बनाता है। सत्य कहें तो भक्ति ही किसी व्यक्ति के अंदर साहस पैदा करती है। हनुमानजी महाराज ऐसे ही साहसी और बलशाली नहीं बन गये।। सच पूछो तो भक्ति के प्रताप से ही वो साहसी औ बलशाली भी बन पाये हैं। स्वकल्याण और पर सेवा की भावना दृढ़ हो, इसके लिए भी भक्ति महारानी का सुदृढ़ आश्रय अनिवार्य हो जाता है।।

        *जय श्री राधे कृष्णा।।*

[जिनके मुख से खराब बातें निकलती हैं, उनका मन भी बुराई से ही भरा होगा।। आपका शत्रु आपके भीतर है। यदि दूसरे को शत्रु समझते हो तो बड़ी गलती में हो।।भक्तिमार्ग में जिज्ञासु के आलस्य व स्वार्थ मुख्य शत्रु हैं। इनका दमन तभी हो सकता है।। जब वह दरबार की निष्काम सेवा और भजन में तल्लीन रहेगा।अपने को पूर्ण समझकर माया की तरफ मत जाओ, कहीं थोड़ी भक्ति भी न गंवा बैठना।। जैसे तपेदिक का पहले पता नहीं चलता बढ़ जाने के पष्चात उसे रोकना कठिन हो जाता है। वैसे ही जीव भी अनजाने में हानि की तरफ चल पड़ता है परन्तु पश्चात में बचाव करना कठिन हो जाता है।।
[संसार में अनेक समस्याएं हैं, उनमें से सबसे बड़ी समस्या है। कि मन नियंत्रण में नहीं रहता प्रायः सभी लोग यह शिकायत करते हैं।। कि, क्या करें, यह मन बड़ा चंचल है, हमको भटकाता रहता है। इस प्रकार से लोग सुबह से रात तक सारा दिन इस मन से परेशान रहते हैं। परंतु सत्य तो यह है।। कि इसमें उन लोगों की अपनी ही अविद्या कारण है। वे मन के बारे में ठीक से जानते नहीं इसलिए मन से परेशान रहते हैं।। जैसे कोई व्यक्ति नया नया कार चलाना सीख रहा हो, तब कार उसके नियंत्रण में नहीं रहती और वह कष्ट का अनुभव करता है। परंतु कार चलाना सीख लेने पर, तथा 6 माह या 1वर्ष अभ्यास कर लेने के बाद फिर उसे कार चलाना कष्ट दायक नहीं लगता। तब वह इस बात को समझ जाता है।। कि कार जड़ पदार्थ है। मैं इसे जैसा चलाऊंगा, यह वैसे चलेगी ठीक यही नियम मन पर भी लागू होता है।। मन भी कार की तरह से जड़ पदार्थ है। लोग मन को चलाना नहीं जानते, रोकना नहीं जानते, मोड़ना नहीं जानते, इसलिए मन से परेशान रहते हैं।। जब व्यक्ति कार पर नियंत्रण करना सीख लेता है, तो वह कार उसके लिए बहुत सुख दायक होती है। इसी प्रकार से जो व्यक्ति मन का नियंत्रण करना सीख लेता है, तो मन भी उसके लिए बहुत अधिक सुखदायक होता है।। वह अपनी इच्छा अनुसार मन से जो चाहे वही कार्य लेता है। और सदा आनंद में रहता है।।आप भी मन का संचालन करना सीखें और उसका अभ्यास करें। आप भी निश्चित रूप से सुखी हो जाएंगे।।

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