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यह है दुनिया का प्रथम चमत्कारिक मंत्र…

दुनिया का एकमात्र ऐसा मंत्र है, जो ईश्वर के प्रति, ईश्वर का साक्षी और ईश्वर के लिए है। यह मंत्रों का मंत्र सभी हिन्दू शास्त्रों में प्रथम और महामंत्र कहा गया है। प्राचीनकाल में हमारे ऋषि-मुनियों ने इसी मंत्र के माध्यम से सिद्धियां और मोक्ष पाया और महाभारत काल में इसी मंत्र के माध्यम से अस्त्रों का निर्माण होता था। वेद, पुराण, स्मृति और संहिताओं में इस मंत्र की महिमा का वर्णन मिलता है।

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हम आपको बताएंगे कि वह कौन-सा मंत्र है और उसके क्या चमत्कार है? यह भी कि इस मंत्र का जाप कैसे किया जाए और इस मंत्र का जप करने से क्या-क्या लाभ मिलते है।
सभी हिन्दू शास्त्रों में लिखा है कि मंत्रों का मंत्र महामंत्र है गायत्री मंत्र। यह प्रथम इसलिए कि विश्व की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद की शुरुआत ही इस मंत्र से होती है। माना जाता है कि भृगु ऋषि ने इस मंत्र की रचना की है।

यह मंत्र इस प्रकार है- ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

गायत्री मंत्र का अर्थ : सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं, वह परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करे।

दूसरा अर्थ : उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

तीसरा अर्थ : ॐ : सर्वरक्षक परमात्मा, भू : प्राणों से प्यारा, भुव : दुख विनाशक, स्व : सुखस्वरूप है, तत् : उस, सवितु : उत्पादक, प्रकाशक, प्रेरक, वरेण्य : वरने योग्य, भर्गो : शुद्ध विज्ञान स्वरूप का, देवस्य : देव के, धीमहि : हम ध्यान करें, धियो : बुद्धि को, यो : जो, न : हमारी, प्रचोदयात् : शुभ कार्यों में प्रेरित करें।

अर्थात : स्वामी विवेकानंद कहते हैं इस मंत्र के बारे में कि हमें उसकी महिमा का ध्यान करना चाहिए जिसने यह सृष्टि बनाई।

आप भी गायत्री मंत्र की शक्ति और शुभ प्रभाव से सफलता चाहते हैं, तो गायत्री मंत्र जप से जुड़े नियमों का ध्यान जरूर रखें-

  • गायत्री मंत्र के लिए स्नान के साथ मन और आचरण पवित्र रखें, किंतु सेहत ठीक न होने या अन्य किसी वजह से स्नान करना संभव न हो तो किसी गीले वस्त्रों से तन पोंछ लें।
  • साफ और सूती वस्त्र पहनें।
  • तुलसी या चंदन की माला का उपयोग करें।
  • पशु की खाल का आसन निषेध है। कुश या चटाई का आसन बिछाएं।
  • गायत्री मंत्र जप के लिए तीन समय बताए गए हैं। इन तीन समयों को संध्याकाल भी कहा जाता है। गायत्री मंत्र का जप का पहला समय है- प्रात:काल। सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के पश्चात तक करना चाहिए।
  • मंत्र जप के लिए दूसरा समय है- दोपहर मध्याह्न का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। इसके बाद तीसरा समय है- शाम को सूर्यास्त के कुछ देर पहले। मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए। इन तीन समय के अतिरिक्त यदि गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से जप करना चाहिए।
  • सुबह पूर्व दिशा की ओर मुख करके गायत्री मंत्र जप करें। शाम के समय सूर्यास्त के घंटे भर के अंदर जप पूरे करें। शाम को पश्चिम दिशा में मुख रखें।
  • इस मंत्र का मानसिक जप किसी भी समय किया जा सकता है।
  • गायत्री मंत्र जप करने वाले का खान-पान शुद्ध और पवित्र होना चाहिए।
    *शौच या किसी आकस्मिक काम के कारण जप में बाधा आने पर हाथ-पैर धोकर फिर से जप करें, बाकी मंत्र जप की संख्या को थोड़ी-थोड़ी पूरी करें। साथ ही एक से अधिक माला कर जप बाधा दोष का शमन करें।

जीवन में किसी भी प्रकार का दुख हो या भय इस मंत्र का जाप करने से दूर हो जाते हैं। किसी भी प्रकार का संकट हो या कोई भूत बाधा हो तो यह मंत्र जपते ही पल में ही दूर हो जाती है।

Detaयदि आपको सिद्धियां प्राप्त करना हो या मोक्ष तो इस मंत्र का जाप करते रहने से यह इच्छा भी पूरी हो जाती है,

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