अब मैं वाणी के १८ दोषों को कहूँगा ।–
१ — अपेतार्थ :– जिस वाणी के उच्चारण करने पर भी अर्थ का भान न हो ।
२– अभिन्नार्थ :– जिससे अर्थ भेद की स्पष्ट प्रतीति न हो।
३– अप्रवृत :– जो सदा व्यवहार में न आता हो ऐसा
शब्द ‘ अप्रवृत ‘ कहा जाता है ।
४– अधिक:– जिसके न रहने पर भी वाक्यार्थ बोध हो जाता है- वह वाक् या शब्द अधिक है ।
५– अश्लक्ष्ण :– अस्पष्ट अथवा अपरिमार्जित वाणी को ‘ अश्लक्ष्ण ‘ कहते हैं ।
६– सन्दिग्ध :– जिससे अर्थ में संदेह हो वह सन्दिग्ध है ।
७– पदान्त अक्षर का गुरू होना :– पदान्त अक्षर का गुरू उच्चारण भी एक दोष है ।
८– पराङ्मुख – मुख :– वक्ता जिस अर्थ को व्यक्त करना चाहता है
- उसके विपरीत अर्थ की ओर जाने वाली वाणी को ‘ पराङ्मुखमुख ‘ कहा गया है ।
९– अनृत :– अनृत का अर्थ है असत्य ।
व्याकरण से सिद्ध न होने वाली वाणी को ‘असंस्कृत’
कहते हैं ।
१०– त्रिवर्गविरूद्ध :– धर्म- अर्थ और काम के विपरीत
विचार प्रकट करने वाली वाणी ‘ त्रिवर्ग – विरूद्ध कही गई है ।
११– न्यून :– अर्थ – बोध के लिए पर्याप्त शब्द का न होना ‘ न्यून ‘ दोष है ।
१२ — कष्टशब्द :– जिसे उच्चारण में कष्ट हो वह कष्टशब्द है ।
१३– अतिशब्द :– अतिशयोक्ति पूर्ण शब्दों को यहाँ ‘ अतिशब्द ‘ कहा है ।
१४ — व्युत्क्रमाभिह्रत :– जहाँ क्रम का उल्लंघन करके
शब्द प्रयोग हुआ हो
- वह ‘ व्युत्क्रमाभिह्रत ‘
कहलाता है ।
१५– सशेष :– वाक्य पूरा होने पर भी यदि बात पूरी नहीं हुई तो वहाँ ‘ सशेष ‘ नामक दोष है ।
१६ — अहेतुक :– कथित अर्थ की सिद्धि के लिए जहाँ
उचित तर्क या युक्ति का अभाव हो – वहाँ ‘अहेतुक’
दोष है ।
१७ — असंस्कृत :– व्याकरण से सिद्ध न होने वाली वाणी
को ‘ असंस्कृत ‘ कहते हैं ।
१८– निष्कारण :– जब किसी बात के कहे जाने का कोई कारण नहीं बताया गया हो
अथवा किसी शब्द के
प्रयोग का उचित कारण न हो तब वहाँ ‘ निष्कारण ‘
दोष है ।
👏हर हर शंकर 👏🚩🚩