नरक चौदस है इससे संबंधित अलग अलग कथा वर्णित है। कहा जाता है कि आज के दिन कृष्ण ने नरकासुर नामक असुर का वध कर इस धरा को नरकासुर के आतंक से मुक्त किया था इसलिए आज का दिन नरक चौदस के रूप में मनाया जाता है।
एक मान्यता हैं कि इस दिन कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस के दिन हनुमान जी ने माता अंजना के गर्भ से जन्म लिया था. इस प्रकार इस दिन दुखों एवम कष्टों से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जी की भक्ति की जाती हैं, जिसमे कई लोग हनुमान चालीसा, हनुमानअष्टक जैसे पाठ करते हैं. कहते हैं कि आज के दिन हनुमान जयंती होती हैं. यह उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता हैं. इस प्रकार देश में दो बार हनुमान जयंती का अवसर मनाया जाता हैं. एक बार चैत्र की पूर्णिमा और दूसरी बार कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस के दिन.
इसे नरक निवारण चतुर्दशी कहा जाता है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा हैं जो इस प्रकार हैं :
एक प्रतापी राजा थे, जिनका नाम रन्ति देव था. स्वभाव से बहुत ही शांत एवम पुण्य आत्मा, इन्होने कभी भी गलती से भी किसी का अहित नहीं किया. इनकी मृत्यु का समय आया, यम दूत इनके पास आये. तब इन्हें पता चला कि इन्हें मोक्ष नहीं बल्कि नरक मिला हैं. तब उन्होंने पूछा कि जब मैंने कोई पाप नहीं किया तो मुझे नरक क्यूँ भोगना पड़ रहा हैं. उन्होंने यमदूतों से इसका कारण पूछा तब उन्होंने बताया एक बार अज्ञानवश आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा चला गया था. उसी के कारण आपका नरक योग हैं. तब राजा रन्ति से हाथ जोड़कर यमराज से कुछ समय देने को कहा ताकि वे अपनी करनी सुधार सके. उनके अच्छे आचरण के कारण उन्हें यह मौका दिया गया. तब राजा रन्ति ने अपने गुरु से सारी बात कही और उपाय बताने का आग्रह किया. तब गुरु ने उन्हें सलाह दी कि वे हजार ब्राह्मणों को भोज कराये और उनसे क्षमा मांगे. रन्ति देव ने यही किया. उनके कार्य से सभी ब्राह्मण प्रसन्न हुए और उनके आशीर्वाद के फल से रन्ति देव को मोक्ष मिला. वह दिन कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस का था, इसलिए इस दिन को नरक निवारण चतुर्दशी कहा जाता हैं.
एक कथा यह भी है कि एक हिरण्यगभ नामक एक राजा थे. उन्होंने राज पाठ छोड़कर तप में अपना जीवन व्यतीत करने का निर्णय किया.उन्होंने कई वर्षो तक तपस्या की, लेकिन उनके शरीर पर कीड़े लग गए. उनका शरीर मानों सड़ गया. हिरण्यगभ को इस बात से बहुत दुःख तब उन्होंने नारद मुनि से अपनी व्यथा कही. तब नारद मुनि ने उनसे कहा कि आप योग साधना के दौरान शरीर की स्थिती सही नहीं रखते इसलिए ऐसा परिणाम सामने आया. तब हिरण्यगभ ने इसका निवारण पूछा. तब नारद मुनि ने उनसे कहा कि कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन शरीर पर लेप लगा कर सूर्योदय से पूर्व स्नान करे साथ ही रूप के देवता श्री कृष्ण की पूजा कर उनकी आरती करे, इससे आपको पुन : अपना सौन्दर्य प्राप्त होगा. इन्होने वही किया अपने शरीर को स्वस्थ किया. इस प्रकार इस दिन को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं.
मेरे मतानुसार कृष्ण के नरकासुर के वध की वजह से आज नरक चौदस मानने की कथा उचित नही जान पड़ती है क्योकि दीपावली तो सतयुग से मनाई जा रही है और क्या कृष्ण त्रेता युग मे उत्पन्न हुए थे ?
इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान का महत्व होता हैं. इस दिन स्नान करते वक्त तिल एवम तेल से नहाया जाता है, इसके साथ नहाने के बाद सूर्य देव को अर्ध्य अर्पित करते हैं.
इस शरीर पर चंदन लेप लगाकर स्नान किया जाता हैं एवम भगवान कृष्ण की उपासना की जाती हैं.
रात्रि के समय घर की दहलीज पर दीप लगाये जाते हैं एवम यमराज की पूजा भी की जाती हैं.
इस दिन हनुमान जी की अर्चना भी की जाती हैं.
नरक चौदस का दिन नरक के देवता यम की पूजा का भी पर्व है। इस दिन शरीर पर सुगंधित द्रव्य, उबटन, अपामार्ग (अझीझाड़) से जल मार्जन व स्नान करने से नरक का भय नहीं रहता। तिल युक्त जल से स्नान कर यम के निमित्त 3 अंजलि जल अर्पित किया जाता है।
सायंकाल घर-द्वार, मंदिर, देववृक्ष व सरोवर के किनारे दीप लगाए जाते हैं। त्रयोदशी से 3 दिन तक दीप प्रज्ज्वलित करने से यमराज प्रसन्न होते हैं। अंतकाल में व्यक्ति को यम यातना का भय नहीं होता। दीपदान से यम की पूजा करने पर नरक का भय भी नहीं सताता। नरक चौदस को रूप चौदस के रूप में भी मनाया जाता है।
तांत्रिक दृष्टिकोण से दीपावली से एक दिन पहले अलक्ष्मी यानि धूमावती की पूजा आराधना कर उन्हें विदा किया जाता है क्योकि इन्हें दरिद्रता का देवी कहा गया है । लक्ष्मी और अलक्ष्मी एक साथ नही रह सकती अतः आज के दिन अलक्ष्मी को विदा किया जाता है। तांत्रिक लोग आज धोमावती की आराधना भी करते है। और घर को साफ कर घर के कचड़े और गंदगी को जहाँ घर के बाहर एकत्र करते है वहां भी दिया जलाते है।
वैसे शाक्त सम्प्रदाय के हिसाब से चौदस, दीपावली और परेवा का खास महत्व है। इन तीन दिनों में 3 महादेवीयों की पूजा अर्चना की जाती है। आज चौदस के दिन महाकाली की पूजा की जाती है। बंगाल में आज के दिन का खास महत्व होता है वो आज रात्रि को काली पूजन का आयोजन करते है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जहाँ तक मैं समझता हूं आज का दिन स्वच्छता को समर्पित होता है। अस्वस्थता, दुख और दरिद्रता का मुख्य कारण हमारे आस पास की गंदगी ही होती है। आज के दिन सफाई पुताई का नियम इस लिए बनाया गया ताकि हम घर को अच्छी तरह साफ करें। घर के उस कोने की भी सफाई करे जिनको हम दैनिक सफाई में अनदेखा कर देते है। यदि हमारे आस पास का वातावरण स्वच्छ होगा तो हमारे अंदर सकारात्मक सोच का विकास होता है। हम अपने बुद्धि विवेक का सही उपयोग कर पाते है जो लक्ष्मी और आनंद के आने का मार्ग प्रसस्त करता है।
अतः आज के दिन इस अनुरोध के साथ अपनी बात को समाप्त करता हूँ कि स्वच्छ रहे और अपने आस पास भी स्वच्छता बनाये रखे। स्वच्छता की स्वस्थ शरीर और मष्तिष्क की वजह बन सकती है। ऐसा कर आप निरोग रहेंगे और मृत्यु यानि नरक से या यम को खुद से दूर रख सकते है।