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कर्म और पुनर्जन्म:–
कर्म और पुनर्जन्म एक दुसरे ये कारण है कर्मों ये भोग ये लिए पुनर्जन्म होता है तथा पुनर्जन्म ये कारण फिर नये कर्म संग्रहीत होते है इस प्रकार पुनर्जन्म को दो उद्देश्य है पहला यह कि मनुष्य अपने पुर्व जन्मों ये कर्मों कि भोग करता है
जिससे वह उनसे मुक्त हो जाता है तथा दुसरा यह कि इन भोगों या अनुभव प्राप्त करके नये जीवन मे इनके सुधार का उपाय करता है जिससे बार बार जन्म लेकर जीवात्मा विकास सी ओर निरन्तर बढती जाती है ओर अन्त मे वह अपने सम्पूर्ण कर्मों द्वारा जीवन या क्षय करके मुक्ता अवस्था को प्राप्त होती है एक जन्म मे एक वर्ष मे मनुष्य कि पूर्ण विकास नही हो सकता विधालय मे जाकर बालक एक ही वर्ष मे विद्वान नही बन सकता उसी प्रकार इस जीवात्मा ते सम्पूर्ण जीवन काल मे एक जन्म एक वर्ष ये बराबर ही है जिसमे सुख दुख रूपी भोगों को भोग ते हुए अनुभवों या संग्रह करती है जो अगले जीवन कि आधार बनता है जिससे उसका दुसरा जीवन पूर्ववर्ती जीवन से उन्नत बनता है
इसी प्रकार निरन्तर उन्नति करती हुई वह जीवात्मा अन्त मे मोक्ष को प्राप्त कर लेती है
जीवन मे किए गए सभी कर्मों, प्राप्त अनुभवों तथा शिक्षा या प्रभाव संस्कार रूप मे मन ही संग्रहीत रहता है जो अगले जन्म मे प्रेरणा बनती है कोई अनुभव नष्ट नही होता ऐसा सृष्टि या विधान है इस प्रकार कर्म एवं पुनर्जन्म अध्याय ये दो ही मुख्य घटक है जिससे स्व चेतना की विकास प्रक्रिया धागे बढती है
प्रत्येक नया जीवन पूर्व जन्म का फल है तथा आगे के जीवन या कारण है नया जीवन तीनो प्रकार ये कर्मो क्रियमाण संचित एवं प्रारब्ध या सर्वोत्तम संगम है यही वह प्रयागराज है जिससे सिंचित कर्म प्रेरेणा देते है प्रारब्ध या भोग होता है तथा क्रियमाण मे स्वतन्त्रता मिलती है
ऐसा संगम परलोक मे भी नही होता जहां न क्रियमाण कर्म होते है न प्रारब्ध काभोग बल्कि केवल संस्कार अंश ही सक्रिय रहकर जीवात्मा को सुख दुख या अनुभव मात्र कराते है उनके परिष्कार कि उपाय वहां नही है

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