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यकृत का बढ़ना | Liver inlargement

परिचय :यकृत (जिगर) में प्रदाह (जलन) होने के बाद और यकृत में बार-बार रक्त (खून) संचार अधिक होने से यकृत अधिक बड़ा हो जाता है, तो इसे यकृत का बड़ा होना या यकृत की प्रदाह (जलन) कहते हैं।

कारण :यकृत (लीवर) की बीमारी अधिकतर छोटे बच्चों को होती है, मां के दूध में खराबी, गाय-भैंस का भारी दूध, अधिक मात्रा में बिना किसी समय के दूध देना, कम उम्र में बच्चों को रोटी, दाल, चावल तथा भारी चीजें खिलाना, मीठे पदार्थों का अधिक सेवन, आइसक्रीम, बर्फ, आदि का अधिक प्रयोग करने से यकृत (लीवर) बढ़ जाता है।

लक्षण :   खाने के अपच के कारण धीरे-धीरे जिगर का बढ़ जाना, पेट बढ़ा मालूम पड़ना, बालक का स्वास्थ्य रोजाना गिरते जाना। खून की कमी, स्वभाव चिड़चिड़ा होना आदि इस रोग के लक्षण हैं।

सावधानी :- जिगर बढ़ने या जिगर में सूजन आ जाने की हालत में घी और चीनी का सेवन करना बंद कर देना चाहिए। अगर रोगी को बुखार रहता हो, तो उसके पेड़ू पर कपड़े की पट्टी को पानी में भिगोकर रखें। पट्टी को सूखे तौलिए से ढक दें। पट्टी अगर गर्म हो जायें, तो उसे पानी से भिगों दें। इस प्रयोग को 15-20 मिनट तक रोजाना करें। बुखार उतर जाने के बाद यह क्रिया बंद कर दें। 3-4 दिन तक ऊपर से गर्म सेंक करें, 7-8 दिन में जिगर की सूजन दूर हो जायेगी। रोगी के सिर को रोजाना गीले कपड़े से दो बार पोंछें। शरीर में सरसों के तेल की हल्की मालिश करें और अगर जाड़े के दिन हो, तो उसे 10 मिनट तक धूप में बैंठाएं। पेट में कब्ज ना बनने दें। बिना हल्दी तथा नाममात्र का नमक वाला खाना बनाकर खायें चोकर सहित आटे की रोटी तथा साग सब्जी दें। दालें कम दें मौसमी का रस, पपीता, अमरूद, सेब आदि का सेवन रोगी को कराते हैं। रोगी के सामने कभी ऐसी बात न करें जिससे वह गुस्से में आ जाए या परेशान हो जाए।

विभिन्न औषधियों से उपचार :

एक कागजी नींबू (अच्छा पका हुआ) लेकर उसके दो टुकड़े कर लें। फिर बीज निकालकर आधे नीबू के बिना काटे चार भाग करें पर टुकड़े अलग-अलग न हो। तत्पश्चात् एक भाग में काली मिर्च का चूर्ण, दूसरे में काला नमक (अथवा सैधा नमक), तीसरे में साँठ का चूर्ण और चौथे में मेिश्री का चूर्ण (या शक्कर चीनी) भर दें। रात को प्लेट में रखकर ढंक दें। प्रातः भोजन करने से एक घंटे पहले इस नींबू की फॉक (टुकड़ा) को मन्दी आंच या तवे पर गर्म करके चूस लें।

नियमित भूमि आँवला का रस एक से दो चम्मच सुबह शाम पियें

होमेओपेथी की SBL की LIV T सिरप एक से दो चम्मच सुबह शाम सेवन करें

1. आंवला :3-10 ग्राम आंवले के चूर्ण का रोजाना सेवन करने से यकृत की क्रिया ठीक रहती है।

3 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में आंवले का चूर्ण, शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से यकृत की क्रिया ठीक हो जाती है।

2. चित्रक : चित्रक या चिता मूल की क्षार आधा से 2 ग्राम सुबह-शाम मट्ठे यानी छाछ में 1 गुलाब फूल पीसकर घोल लें, या मट्ठे के बदले गुलाब के फूल के घोल के साथ ही सेवन करने से यकृत के बढ़ने में आराम मिलता हैं। ध्यान रहे कि यकृत पर चित्रक का दुष्प्रभाव भी पड़ सकता है, जब कि गुलाब का फूल दर्दनाशक का काम करता है।.

3. शराब : शराब के साथ खुरासानी अजवायन पीसकर यकृत पर लेप करने से यकृत के दर्द और सूजन कम हो जाते हैं।

4. हाऊबेर : हाऊबेर का चूर्ण 2-6 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से यकृत के समस्त रोग से राहत मिलती है।.

5. शहद : एक चौथाई ग्राम से एक ग्राम कुटकी चूर्ण सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से जिगर की कमजोरी दूर होती है।.

6. बड़ी माई : बड़ी माई के पत्तों को पीसकर यकृत पर लेप करने से यकृत वृद्धि से आराम मिलता है।

7. पुष्कर मूल : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग पुष्कर मूल सुबह-शाम सेवन करने से यकृत की वृद्धि को रोकने में फायदा होता है।

8. बड़ी हर्रे : बड़ी हर्रे, रोहितक की छाल, और छोटी पीपल के काढ़े के साथ लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग में जवाखार घोलकर रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से यकृत की बीमारी से लाभ होता है।

9. इलायची :लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग बड़ी इलायची को सुबह-शाम सेवन करने से पित्त का बहना ठीक होकर प्लीहा (तिल्ली) का बढ़ना भी कम हो जाता है।

छोटी इलायची लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग को सुबह-शाम सेवन करने से यकृत की वृद्धि और सूजन कम हो जाती है।

10. छोटी इलायची : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग छोटी इलायची सुबह-शाम सेवन करने से यकृत की वृद्धि और सूजन में लाभ होता है।

11. छरीला : 10 मिलीलीटर छरीला का फांट या घोल को रोजाना सुबह-शाम-दोपहर या चूर्ण 2-4 ग्राम सुबह-शाम सेवन करें और साथ ही छरीला को पीसकर यकृत के जगह पर लेप करने से यकृत वृद्धि और सूजन से राहत मिलती है।

12. गोखरू : बड़ी गोखरू का काढ़ा पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) को 20-80 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम पिलाने से लाभ होता है। और यकृत वृद्धि की बीमारी ठीक हो जाती है।

13. गोखरू : बड़ी गोखरू का काढ़ा, पंचांग  (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का काढ़ा सुबह-शाम 20 से 80 मिलीलीटर की मात्रा में पिलाने से यकृत वृद्धि ठीक हो जाती है।

14. मदार :मदार (आक) की जड़ की छाल 2-4 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम देने से यकृत की वृद्धि और इससे उत्पन्न उदर, पित्त, अतिसार (दस्त) और आंव सम्बन्धी अनेक रोग ठीक हो जाते हैं।

एक चौथाई ग्राम से आधा ग्राम मदार का दूध बतासे पर डालकर रोजाना सुबह सेवन करने से फायदा होता है।

15. शिकाकाई : शिकाकाई के पत्ते और काली मिर्च को बराबर मात्रा में प्रयोग करने से यकृत की क्रिया ठीक हो जाती है।

16. हरिसंगार : 7-8 हरिसंगार के पत्तों के रस को अदरक के रस के साथ शहद में सुबह-शाम सेवन करने से यकृत और प्लीहा (तिल्ली) की वृद्धि ठीक हो जाती है।

17. सहजन : 4- सहजन (मनुगा) के नये वृक्ष की जड़ की छाल 8 ग्राम सुबह-शाम हींग और सेंधानमक के साथ मिलाकर सेवन से लाभ होता है।

18. कंटकरंज : कंटकरंज के पत्ते का रस 10-20 मिलीलीटर या जड़ लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम सुबह-शाम सेवन से यकृत की बीमारी से लाभ होता है। ध्यान रहे, कि इस दवा को खाली पेट न दे।

19. सुकुलबेंत(जलमाला) : जलमाला के ताजे पत्तों का रस 50-100 ग्राम सेवन करने से यकृत और प्लीहा के रोगों से छुटकारा मिलता है।

20. क्षीर विदारी : क्षीर विदारी कन्द का चूर्ण घी में भूनकर लाल किया हुआ 3-6 ग्राम को मिश्री मिले दूध में उबाल कर सुबह-शाम पीने से यकृत और प्लीहा (तिल्ली) रोग से आराम मिलता है।

21. नागदन्ती : 3-6 ग्राम नागदन्ती की जड़ की छाल सुबह-शाम दालचीनी के साथ सेवन करने से यकृत की जलन मिट जाती है। यकृत समान्य अवस्था में आ जाता है। इसके साथ निर्गुण्डी (सिनुआर) तथा करंज का प्रयोग और अच्छा परिणाम देता है। शौच के द्वारा दूषित पित्त निकल कर यकृत की शोथ या जलन समाप्त हो जाती है।

22. नील : नील की जड़ का काढ़ा 50-100 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है और इससे यकृत सामान्य हो जाता है।

23. सरफोंका : सरफोंका की जड़ का चूर्ण 3-6 ग्राम हरीतकी के साथ सुबह-शाम सेवन से लाभ होता है।

24. तालमखाना : तालमखाना की जड़ का काढ़ा 40 मिलीलीटर या पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) की राख (भस्म) 1-2 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से यकृत की बीमारी से लाभ होता है।

25. ग्वार पाठा (घी कुंआरा) : 10-20 मिलीलीटर ग्वारपाठा का रस या एलुवा लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग को सेंधानमक और हरिद्रा के साथ देने से यकृत के बीमारी जैसे- इससे यकृत का बढ़ना, दर्द होना आदि ठीक होते हैं इसके अलावा पीलिया का होना कम होता है।.

26. मंगैरया : 5-10 मिलीलीटर की मात्रा में मंगैरया का रस सुबह-शाम लेने से यकृत सम्बन्धी समस्त रोगों से आराम मिलता है, इससे यकृत वृद्धि, अर्श (बवासीर), पेट का दर्द आदि ठीक हो जाते हैं।

27. मकोय :10-20 मिलीलीटर की मात्रा में मकोय का रस सुबह-शाम सेवन करने से यकृत वृद्धि और यकृत सम्बन्धी सभी रोगों से छुटकारा मिलता है।

मकोय का रस निकालकर यकृत के ऊपर लेप करने से यकृत का बढ़ना समाप्त हो जाता है।

हरी मकोय का रस, गुलाब के फूल और अमलतास का गूदा, तीनों को पीसकर यकृत पर लेप करने से यकृत वृद्धि मिट जाती है।

28. अमरबेल : 10 मिलीलीटर अमरबेल का रस सुबह-शाम सेवन करने से यकृत दोष से उत्पन्न दोष दूर हो जाते हैं।

29.सोनैया (देवदाली) : सोनैया की फांट या टिंचर (1-20) 10 से 20 बूंद सुबह-शाम सेवन करने से यकृत वृद्धि, प्लीहावृद्धि (तिल्ली का बढ़ना) और यकृत की शुरूआत में सेवन करने से लाभ होता है।

30.कठगूलर (कठूमर) : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग कठगूलर की छाल या फल सुबह-शाम देने से लाभ होता है। ध्यान रहे, इसे अधिक मात्रा में न दें, इससे उल्टी हो सकती है।

31. रोहेड़ा : 1-3 ग्राम रोहेड़ा की छाल का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करने या छाल का काढ़ा 5-10 मिलीलीटर रोजाना 2 बार सेवन करने से यकृत और प्लीहा वृद्धि में लाभ होता है।

32. ताड़ : ताड़ के नये पुष्पित भाग को जलाकर 3-6 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से यकृत वृद्धि और टाइफाइड के बुखार से लाभ होता है।

33. पालक : पालक साग के बीज 3-6 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से यकृत में आने वाली सूजन से छुटकारा मिलता है।

34. हरकुच : हरकुच शाक को चावल की मांड में उबालकर पका लें, फिर सेंधा नमक और सरसों के तेल में मिलाकर खिलाने से यकृत ठीक से काम करना शुरू कर देता है।

35. करेला :करेला के पत्तों का रस 3.5 से 7 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन करने से प्लीहा यकृत वृद्धि के साथ जलोदर और टाइफाइड जैसे बुखार से आराम मिलता है।

करेले की सब्जी बिना कडुवापन दूर किये खाने से यकृत वृद्धि के रोग कम हो जाते हैं।

36. अरुआ : अरुआ (अरुई) के कन्द का साग खाने से यकृत वृद्धि रुक जाती है।

37. अफसंतीन : अफसंतीन का तेल 10 से 15 बूंद दूध में मिलाकर या बताशे पर डालकर सेवन करने से यकृत की सूजन कम हो जाती है।.

38. उशष (उशक) : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग – लगभग 1 ग्राम उशष की गोंद सुबह-शाम सेवन करने से यकृत वृद्धि के रोग से लाभ होता है।

39. दुग्धफेनी : 4-12 ग्राम दुग्धफेनी की जड़ सुबह-शाम सेवन से यकृत वृद्धि में लाभ होता है।

40. बेलिया पीपर : 10 ग्राम बेलिया पीपर की छाल दूध के साथ पीसकर सुबह-शाम पिलाने से यकृत वृद्धि ठीक हो जाता है।

41. भांगरा : भांगरा के रस में थोड़ी अजवायन के चूर्ण को मिलाकर पानी के साथ रोगी बच्चे को सेवन कराने से यकृत वृद्धि मिट जाती है।

42. छोटी पिप्पली : छोटी पिप्पली को पानी के साथ पीसकर उसमें थोड़ा-सा शहद को मिलाकर चाटने से बहुत लाभ होता है। रोगी बच्चे को दिन में 2 बार देने से यकृत की वृद्धि रोकने में सहायक होता है।

43. खीरा : खीरे का सलाद बनाकर, उसमें नींबू का रस, पुदीने के रस की कुछ बूंदें डालकर और काला नमक मिलाकर खिलाने से यकृत वृद्धि मिट जाती है।

44.  नीम : 10 ग्राम नीम की छाल को पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं। उस काढ़ें को कपडे़ द्वारा छानकर, उसमें शहद को मिलाकर सुबह-शाम रोगी को सेवन कराने से यकृत वृद्धि मिट जाती है।

45. जामुन :5 ग्राम की मात्रा में जामुन के कोमल पत्तों का रस निकालकर उसको कुछ दिनों तक पीते रहने से यकृत वृद्धि से छुटकारा मिलता है।

आधा चम्मच जामुन का सिरका पानी में घोलकर देने से यकृत वृद्धि से आराम मिलता है।

46. पुदीना : पुदीने के रस में नींबू का रस मिलाकर पानी में डालकर पिलाने से यकृत वृद्धि मिट जाती है।

47.  अजवायन :अजवायन का 1.5 ग्राम चूर्ण, 5 ग्राम भांगरे का रस एक साथ मिलाकर पिलाने से यकृत का बढ़ना रुक जाता है।

अजवायन, चीता, यवाक्षर, पीपलामूल, दंती की जड़, छोटी पीपल, एकसाथ 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में से एक चुटकी चूर्ण दही के पानी के साथ बच्चे को सेवन कराने से यकृत रोग मिट जाता है।

48. चूना :रात को 300 ग्राम पानी में 5 ग्राम चूना डालकर रखें। सुबह उठकर चूने के पानी को ऊपर से निकालकर, कपडे़ से छानकर 10 ग्राम मात्रा में सुबह-शाम पिलाने से बहुत लाभ होता है।

चूने का पानी 2 बूंद से लेकर 10 बूंद तक सादे पानी में मिला लें और इसे रोगी को पीने के लिए दें।

49. पिप्पली (पीपल) :पीपल को कूट-पीसकर, उसे कपड़े से छानकर उसका चूर्ण बना लें, लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग चूर्ण शहद में मिलाकर सुबह-शाम चटाने से यकृत वृद्धि मिट जाती है।

पीपल का चूर्ण एक चुटकी की मात्रा में शहद के साथ दिन में 2 बार चटें इससे लाभ होता है।

1 ग्राम की मात्रा में छोटी पीपल लेकर उसमें 4 चम्मच सौंफ के रस में घिसकर बच्चे को पिलानें से यकृत की बीमारी से छुटकारा मिलेगा।

50. वंशलोचन :1.5 ग्राम वंशालोचन को शहद के साथ मिलाकर खिलाने से यकृत वृद्धि में बहुत लाभ होता है।

एक चौथाई ग्राम से भी कम मात्रा में असली वंशलोचन बालक को सुबह-शाम दूध या शहद के साथ सेवन कराने से लाभ होता है।

एक चौथाई ग्राम वंशलोचन, पपीता और चिरायता का चूर्ण शहद के साथ सेवन करने से यकृत वृद्धि में फायदा होता है।

51. जवाखार :लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग जवाखार को पानी के साथ खाने से यकृत के सभी रोग मिट जाते हैं।

5-5 ग्राम जवाखार, पीपल, बायविडंग बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर, छानकर चूर्ण बना लें। इसमें से एक चुटकी चूर्ण शहद के साथ सुबह देने से यकृत रोग मिट जाता है।

52. ग्वारपाठा : ग्वारपाठे के पत्ते का रस आधा चम्मच, हल्दी का चूर्ण एक चुटकी और पिसा हुआ सेंधा नमक 1 चुटकी मिलाकर पानी के साथ सुबह-शाम देने से यकृत रोग में लाभ होता है।

53. अलसी : अलसी की पुल्टिस बांधने से जिगर यानी यकृत के बढ़ जाने से होने वाले दर्द मिट जाते हैं।

54. त्रिफला : 20 ग्राम त्रिफला को 120 मिलीलीटर पानी में पकायें। जब चौथाई पानी रह जाये, तो इसे उतारकर छान लें। इसके ठंडा हो जाने पर, 6 ग्राम शहद के साथ मिलाकर पीने से लीवर या जिगर की जलन मिट जाती है।

55. गुड़ : 1.5 ग्राम पुराना गुड़ और बड़ी हरड़ के छिलके का चूर्ण बराबर वजन मिलाकर 1 गोली बनायें और ऐसी गोली दिन में 2 बार सुबह-शाम हल्के गर्म पानी के साथ 1 महीने तक लें। इससे यकृत (लीवर) और प्लीहा (तिल्ली) यदि दोनों ही बढे़ हुए हों, तो भी ठीक हो जाते हैं।

56. मोगरा : मोगरे की पत्तियों का रस 5-6 बूंद की मात्रा में बालक को शहद के साथ चटानें से यकृत रोग से राहत मिलता है।

57. तुलसी : तुलसी के पत्तों का रस गाय के दूध के साथ 20 दिन तक देने से यकृत रोग कम हो जाता है।

58. पपीता : कच्चे पपीते का रस 2 चम्मच लेकर उसमें थोड़ी-सी शक्कर मिलाकर देने से यकृत और प्लीहा रोग से अराम मिलता है।

59. त्रिफला : 5 ग्राम त्रिफला के चूर्ण को एक कप पानी के साथ पकाएं। जब चौथाई कप पानी शेष रह जायें तो उसे उतारकर छान लें। ठंडा हो जाने पर उसमें एक चम्मच शहद मिलाकर पिलाने से यकृत रोग में लाभ होता है।

60. करेला : करेले के फल और पत्तों का 8-10 बूंद लेकर उसमें थोड़ा-सा शहद मिलाकर बच्चे को देने से यकृत रोग मिट जाता है।

61. पुनर्नवा : बड़ी पुनर्नवा, और मण्डूर को पीसकर 1 छोटी गोली बना लें और इस गोली को आधी-आधी मात्रा में दिन में 3 बार देने से बच्चों की यकृत (जिगर) में लाभ होता है।

62. अपामार्ग : अपामार्ग का क्षार मठ्ठे या छाछ के साथ एक चुटकी की मात्रा से बच्चे को देने से बच्चे की यकृत रोग के मिट जाते हैं।

63. अंजीर : 4-5 अंजीर और गन्ने के रस के सिरके में गलने के लिए डाल दें। 4-5 दिन बाद उनको निकालकर 1 अंजीर सुबह-शाम बच्चे को देने से उसकी यकृत रोग की बीमारी से आराम मिलता है।

64. मकोय : मकोय के पौधों का डेढ़ ग्राम स्वरस नियमित रूप से पिलाने से बहुत दिनों से बढ़ा हुआ जिगर कम हो जाता है। एक मिट्टी के बर्तन में रस को निकाल कर इतना गर्म करें कि रस का रंग हरे से लाल या गुलाबी हो जाएं। रात को उबालकर सुबह ठंडा कर प्रयोग में लाना चाहिए।

65. कच्चे चावल : सूर्योदय से पहले उठकर 1 चुटकी कच्चे चावल मुंह में रखकर पानी से सेवन करने से यकृत या जिगर बहुत मजबूत होता है।

66. जामुन : जामुन के रस का सिरका दिन में 3 बार समय पर लें।

67. मूली : 50 मिलीलीटर मूली के रस में 10 ग्राम घीकुंवार का रस पिलाने से यकृत का बढ़ना दूर हो जाता है।.

68. चीता : चीता, यवक्षार, पांचों नमक, इमली क्षार, भुनी हींग इन सभी को समान मात्रा में लेकर जम्भारी नींबू के साथ मिलाकर बारीक पीसकर रख लें। इसके बाद लगभग आधा ग्राम की गोली बनाकर दिन में 4 बार सेवन करने से यकृत प्लीहा आदि रोग समाप्त हो जाते हैं।

69.  कचनार : पीले कचनार की 10 से 20 ग्राम जड़ की छाल का काढ़ा सुबह-शाम पिलाने से लीवर की सूजन उतर जाती है।

70. करेला : 3 से 8 साल तक के बच्चों को आधा चम्मच करेले का रस रोज देने से यकृत (लीवर) रोग ठीक हो जाते हैं।

71. गुलाब : सूजन, दर्द, यकृत (जिगर) बढ़ा हुआ हो तो गुलाब के 4 ताजा फूलों को पीसकर यकृत (जिगर) वाले स्थान पर लेप करना चाहिए।

72. विदारीकंद : विदारीकंद के 5 ग्राम की फांकी सुबह-शाम पानी के साथ लेने से यकृत प्लीहा की बढ़ना रुक जाता है।

73. निर्गुण्डी :निर्गुण्डी के पत्तों का 2 ग्राम और गाय के पेशाब 1 ग्राम के साथ देना चाहिए।

निर्गुण्डी के पत्तों के 2 ग्राम चूर्ण को काली कुटकी व रसोत आधा-आधा ग्राम के साथ सुबह और शाम देना चाहिए।

74. खुरासानी : यकृत (लीवर) के दर्द में तेल का लेप करने से पुरानी से पुरानी यकृत की पीड़ा दूर होती है।

75. लता करंज : लीवर में कीड़े होने पर 10 से 12 मिलीलीटर करंज के पत्तों के रस में बायविडंग और छोटी पीपर का चूर्ण एक चौथाई ग्राम 1 ग्राम तक मिलाकर सुबह-शाम खाना खाने के बाद 7 से 8 दिन तक यकृत के रोग में खायें।

76. लीची : लीची जल्दी पच जाता है। यह पाचन क्रिया को मजबूत बनाने वाली तथा यकृत रोगों में फायदेमंद होता है।

77. पपीता : जिन छोटे बच्चों का यकृत (जिगर) खराब रहता है, उन्हें पपीता खिलाना अच्छा होता क्योंकि पपीता यकृत (जिगर) को ताकत देता है। पेट के सभी रोगों के लिए पपीते का सेवन काफी अच्छा होता है।

78. बेल : यकृत (लीवर) के दर्द में बेल के 10 मिलीलीटर बेल के पत्तों के रस में 1 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर दिन में 3 बार पिलाने से लाभ मिलता है।

79.  तुलसी :एक गिलास पानी में 10 ग्राम तुलसी के पत्ते उबालकर चौथाई पानी रहने पर छानकर पीने से यकृत का बढ़ना एवं यकृत के अन्य रोग ठीक हो जाते हैं।

तुलसी के 100 पत्ते एक गिलास पानी में उबालें। इसका तीसरा भाग रहने पर शहद मिलाकर पिलाएं।

एक गिलास पानी में 12 ग्राम तुलसी के पत्ते उबालकर चौथाई पानी रहने पर छानकर पीने से यकृत बढ़ना एवं यकृत के अन्य रोग भी ठीक होते हैं।

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