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दोस्तों ,

हर युग की कुछ खासियत होती है। ये कलयुग है ,कलयुग में हमे क्या तैयारी करनी चाहिए????

पहेले युग था बल का। जो बलवान होता था वो ही राजा , फिर युग आया बुद्धि का ,जिसके पास बुद्धि थी वही धनवान होने लगा, अब युग है चित का।

कलयुग में जिसका चित स्थिर होगा वही जी सकेगा बाकी सब परेसान रहेंगे ,चित स्थिर का मतलब है बाहरी परिस्थिति कुछ भी हो अंदर की परिस्थिति को असर न हो …. क्योंकि कलयुग विचारों के विकारों का युग है, इसमे अगर आप स्थिर न रहे तो आजकल सुन रहे है वैसी डिप्रेशन या और कई मानसिक बीमारी के शिकार बनते जाएंगे।

इस युग मे जो चित से स्थिर होगा वही राज करेगा ।चित से स्थिर होने का एक उपाय है ध्यान।जितना जरूरी walk है उससे ज्यादा जरूरी ध्यान है। ध्यान करे और चित सुद्ध और स्थिर रखे।

दोस्तो , अनन्यता शब्द आपने जरूर सुना होगा। इसका अर्थ है अपने आराध्य देव के सिवा किसी और से किंचित अपेक्षा ना रखना। आपने उपास्य देव के चरणों में पूर्ण निष्ठ और पूर्ण समर्पण ही वास्तव में अनन्यता है।

एक भरोसो एक बल , एक आस विश्वास।
समय कैसा भी हो, सुख- दुःख, सम्पत्ति, विपत्ति जो भी हो हमें धैर्य रखना चाहिए। धर्म के साथ धैर्य जरूरी है। प्रभु पर भरोसा ही भजन है। अनन्यता का अर्थ है अन्य की ओर ना ताकना।

श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि जो मेरे प्रति अनन्य भाव से शरणागत हो चुके हैं। मै उनका योगक्षेम वहन करता हूँ अर्थात जो प्राप्त नहीं है वो दे देता हूँ और जो प्राप्त है उसकी रक्षा करता हूँ। अनन्यता का मतलव संसार में अन्य किसी की अथवा अन्य देवों की उपेक्षा करना नहीं अपितु उनसे अपेक्षा ना रखना है।

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